vasna story इंसान या भूखे भेड़िए - SexBaba
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vasna story इंसान या भूखे भेड़िए

hotaks444

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Nov 15, 2016
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भूख जब हद से बढ़ जाए तो उसे मिटाने के तरीके अक्सर अजीब ही होते हैं. फिर ना तो कुछ सही होता है, और ना ही कुछ ग़लत... दरिंदगी की कोई हद नही होती, बस जो सामने आए उसे खाते चले जाओ.


हंग्री वुल्फ गेम शुरू हो चुका था. भूखे भेड़िए की तरह सब नज़र गढ़ाए थे. जल्द ही कुबेर का पिटारा खुलने वाला था, और किस के हिस्से मे क्या गया वो पता चलना था.
 
एक कुत्ता अपने परिवार के साथ विचरण कर रहा था. साथ में कुतिया थी, उसकी पत्नी, और छोटे–बड़े कई बच्चे भी. जिनमें तीन नर थे, बाकी मादा. परिवार के छोटे बच्चे अपने स्वभाव के अनुसार रास्ते में शरारत करते हुए चल रहे थे. कुत्ता कभी उन्हें फटकारता, कभी पीठ थपथपाकर आगे बढ़ने का हौसला देता.
व्यस्त चैराहा पार करने के बाद जैसे ही वे एक बस्ती में घुसे, छोटे बच्चे वहां बड़े–बड़े, शानदार मकानों को देखकर हैरान रह गए.
‘मां, क्या हम कुछ दिनों तक यहां नहीं रह सकते?’ एक बच्चे ने पूछा.
‘नहीं मेरी बच्ची, यह बस्ती हम जैसों के लिए नहीं है?’ मां ने सहजभाव से उत्तर दिया.
‘क्या इन लोगों को कुत्तों से कतई प्यार नहीं है?’
‘ऐसा नहीं है, इनमें से अधिकांश घरों में कुत्ते हैं, जिन्हें उनके मालिक खूब प्यार करते हैं—और उनको अपने घर की शान समझते हैं. लेकिन वे हमसे अलग हैं.’
‘जब कुत्ते हैं तो हमसे अलग कैसे हुए मां?’ दूसरा बच्चा बोला. फिर तो उस बहस में दूसरे बच्चे भी शामिल हो गए.
‘मैंने सुना है कि आदमी जाति–पांति में विश्वास करता है, क्या हम कुत्तों में भी…’
‘हम जानवर है बेटा, अपने मुंह से आदमी की बुराई कैसे करें…’ कुत्ता जो अभी तक चुप था, बोला.
‘साफ–साफ क्यों नहीं कहते कि आदमी के साथ रहते–रहते कुत्ते भी जातियों में बंट चुके हैं.’ कुतिया सहसा उग्र हो उठी.
‘मैंने उन्हें देखा है, वे हमसे अलग हैं. उनमें से कोई भेड़िये के डीलडौल वाला, बहुत ही डरावना है. कोई एकदम खरगोश के बच्चे जैसा, छोटा, नर्म–मुलायम सफेद–झक्क बालों वाला, जो सिर्फ ‘कूं–कूं’ करना जानता है. फिर भी आदमी उन्हें बहुत प्यार करता है.’ बड़े बच्चे ने कहा.
‘भेड़िये जैसे डीलडौल वाला तो ठीक है. चोर–उच्चके उसको देखते ही घबरा जाते होंगे. लेकिन खरगोश के बच्चे जैसा कुत्ता पालने की कौन–सी तुक है. उनसे अधिक रखवाली तो मैं भी कर सकता हूं.’ एक बच्चे ने ताल ठोकी.
‘बेटा, ऐसे कुत्ते रखवाली के लिए नहीं पाले जाते….’ कुत्ता धीर–गंभीर स्वर में बोला.
‘तो फिर…?’ एक साथ कई बच्चे बोल पड़े.
‘बड़े आदमियों का अहम् उनसे भी बड़ा होता है बेटा. वही उनके भीतर डर बनकर समाया होता है. इसी कारण वे अपने भीतर इतने सिमट जाते हैं कि उनके लिए पड़ोसियों से बात करना तो दूर, परिवार के सदस्यों के बीच आपस में संवाद करने का भी समय नहीं होता. बाहर से तने–तने नजर आने वाले वे लोग भीतर से एकदम अकेले और वीरान होते हैं. पालतू कुत्ते उनके खालीपन को भरने के काम आते हैं.’
‘मां तू इस बस्ती से जल्दी बाहर निकल. जो आदमी अपनों का सगा नहीं है, वह हम कुत्तों के साथ क्या संबंध निभाएगा.’ एक पिल्ला घबराया–सा बोल पड़ा.
‘मुझे तो इन आदमियों के साथ–साथ यहां के कुत्तों पर भी तरस आ रहा है, जो आदमी की गोदी में पड़े–पड़े चुपचाप किकयाते रहते हैं. मन होने पर किसी पर भौंक भी नहीं सकते…’ दूसरे पिल्ले ने कहा.

’गुलाम कहीं के…‍’ दूसरे ने साथ दिया और आसमान की ओर मुंह करके जोर–जोर से भौंकने लगा.
कुत्ता–कुतिया बिना कुछ कहे, दूसरी ओर मुड़ गए.
 
कुत्ते का मन बस्ती से ऊबा तो सैर–सपाटे के लिए जंगल की ओर चल पड़ा. थोड़ी ही दूर गया था कि सामने से यमराज को आते देख चौंक पड़ा. भैंसे की पीठ, चारों पैर, पूंछ, सींग और माथा सब तेल और सिंदूर से पुते हुए थे. तेल इतना अधिक कि बहता हुआ खुरों तक पहुंच रहा था. कुत्ता देखते ही डर गया—

‘लगता है मेरी मौत ही मुझे जंगल तक खींच लाई है. हे परमात्मा! मेरे जाने–अनजाने पापों से मुक्ति दिला.’ कुत्ते ने प्रार्थना की और एक ओर खड़ा होकर यमराज के रूप में अपनी मौत के करीब आने की प्रतीक्षा करने लगा.

‘प्रणाम महाराज!’ निकट पहुंचते ही कुत्ते ने यमराज की अभ्यर्थना की. यमराज आगे बढ़ते गए. उसकी ओर देखा तक नहीं.

‘शायद किसी ओर के लिए आए है, मैं तो व्यर्थ ही डर गया…’ कुत्ते का बोध जागा. उसने सुन रखा था कि यह यमराज नामक देवता बड़ा बेबस होता है. सिवाय उसके जिसकी मौत आ चुकी है, यह किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. च्यूंटी को भी ले जाना हो तो ऊपर का आदेश चाहिए. इस बोध के साथ ही उसका कुत्तापन हहराने लगा. एक लंबी–सी सांस भीतर खींच उसने गले को जांचा–परखा और जोर से भौंकने लगा. यमराज तो नहीं पर उनका भैंसा बिदक गया—

‘मूर्ख कुत्ते शांत हो.’ यमराज ने कंधे पर रखी गदा हिलाई. कुत्ता उसकी विवशता से परिचित था. जानता था कि गदा चला ही नहीं सकते, गदा चलाई और कहीं प्राण निकल गए तो इन्हें लेने के देने पड़ जाएंगे. सो यमराज की गदा से डरे बिना बोला—‘महाराज! वर्षों से इस भैंसे को बोझ मारते आ रहे हो, अब तो इस बूढ़े पर तरस खाएं. कुछ न हो तो एक नैनो ही ले लीजिए.’

जैसे किसी ने यमराज की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. यमराज के दिल की व्यथा उनके चेहरे पर आ गई. तेल पुती दिपदिपाती देह की चमक फीकी पड़ने लगी. धरती पर प्राय: रोज ही आना पड़ता है, पर यहां सब डरते हैं. बात करना तो दूर कोई चेहरा भी देखना नहीं चाहता. ऊपर देवता उनके विभाग के कारण ढंग से बात नहीं करते. कुत्ते को बात करते देख मन के सारे जख्म हरे हो गए—

‘मेरा बस चलता तो कभी का ले लेता. एक सेठ जो हर मिनट लाखों कमाता था, सिर्फ एक घंटे की मोहलत के बदले मर्सडीज देने को तैयार था.’

‘तो ले लेते…कह देते कि भैंसे के पैर में मोच आ गई थी. हम जैसे प्राणियों को, मौत के बाद ही सही, मर्सडीज में सफर करने का आनंद तो मिलता…’

‘प्राणियों की आत्मा उनकी देह से ठीक समय पर खींच ली जाए, जिससे लोगों में डर बैठा रहे. सोमरस में डूबी अमरपुरी को इससे अधिक चिंता नहीं होती. लेकिन देवताओं की आचारसंहिता…’

‘देवताओं की आचारसंहिता?’ यमराज कहते–कहते रुके तो कुत्ते ने कुरेदा.

‘उसमें लिखा है कि देवता अपने घरों में चाहे जो रंग–रेलियां मनाएं, जैसा चाहें खाएं–पिएं, नंगे–उघाड़े रहें, लेकिन सार्वजनिक स्थल पर अपनी छवि का पूरा ध्यान रखें, टस से मस होते ही देवत्व छिन जाता है.’

‘जरा अपने भैंसे की हालत तो देखिए, त्वचा रोग से पीड़ित है. आप भी छूत से परेशान दिखते हैं!’

‘ठीक कहते हो, कुछ महीनों से हम दोनों स्कर्बी से ग्रसित हैं.’ यमराज अपना पेट खुजाने लगे.

‘तो कम से कम भैंसा ही बदल लीजिए.’

‘बहुत खोजा, पर हू–ब–हू ऐसा भैंसा तीनों लोकों में कहीं नजर नहीं आया…’

‘तब तो बाकी जिंदगी इसी भैंसे पर काटनी पड़ेगी, क्यों?’ कुत्ते ने कटाक्ष किया.

‘देवता हूं, बदल नहीं सकता.’ कहते हुए यमराज ने भैंसे को इशारा किया. हिलता–डुलता भैंसा आगे रेंगने लगा. इस बीच न जाने कहां से इधर–उधर से मक्खियां आकर भैंसे के घावों पर मंडराने लगीं.

‘गंदा है, पर धंधा है’— मृत्यु देवता की हालत देखकर कुत्ता मुस्कुराया और आगे बढ़ गया.
 
50 मंज़िली आलीशान इमारत के टॉप फ्लोर पर, एमडी के ऑफीस मे.....


"गुड मॉर्निंग सर, आज आप काफ़ी परेशान दिख रहे हैं"...... स्नेहा ने कुछ फाइल्स इधर-उधर करते, अपने बॉस जूनियर एमडी मनु से कही.


मनु अपना सिर उपर उठा कर उसे देखा, और फिर अपना काम करने लगा..... दोनो शांति से अपना करने मे लग गये. कुछ देर बाद स्नेहा सामने के चेयर पर बैठ कर पेपर वेट को गोल-गोल घुमाने लगी.


मनु.... स्टॉप इट स्नेहा, और कॉफी बुलवाओ.


स्नेहा..... एस सर...


(पता नही बॉस का आज मूड उखड़ा-उखड़ा क्यों है) ... स्नेहा अपने मन मे सोचती चुप-चाप अपना काम करने लगी. मनु को कभी आज से पहले इतना शांत नही देखी, हरदम वो खिला-खिला ही रहता था.


थोड़ी देर बाद पीयान दो कप कॉफी ले कर आया. स्नेहा एक बार फिर मनु के सामने चेयर पर बैठ कर कॉफी पीने लगी. मनु की ओर से कोई प्रतिक्रिया ना होने पर, स्नेहा ने एक कागज का टुकड़ा उसकी ओर उछाला.


मनु..... विल यू स्टॉप दीज़ नोन-सेन्स स्नेहा....


स्नेहा अपने जगह से उठ गयी, और मनु के चेयर के पास जा कर, उसके रोलिंग चेयर को थोड़ा पिच्चे की, और ठीक सामने उपर डेस्क पर बैठ गयी.


22 साल की एक बेहद खूबसूरत बाला, जिसके चेहरे की कशिश इस कदर थी कि लड़के मूड-मूड कर देखने पर मजबूर हो जाए. उस पर से, जब वो रोज आग लगाने वाले पोशाक मे आती...... घुटनो से 5 इंच उपर के टाइट स्कर्ट, जिसमे उसकी कसी मांसल जंघें बिल्कुल झलकती रहती, और उपर उसके वो शरीर से चिपके बिल्कुल टाइट शर्ट, जिसमे उसके स्तन के आकार सॉफ पता चलते थे.


देखने वाले जब भी उसको इस हॉट लुक मे देखते तो अपने दिल पर हाथ रख कर ठंडी आहें भरने लगते थे. हालाँकि ये बात अलग थी कि ऑफीस के वर्किंग स्टाफ्स और एमडी फ्लोर अलग-अलग था, इसलिए ऑफीस के मनचले स्टाफ को जब भी स्नेहा को देखना होता तो बस किस्मत के भरोसे ही रहते.


वहीं स्नेहा का बॉस मनु मूलचंदानी, 25 साल का एक यंग और डाइयेनॅमिक पारसनालटी था. दिमाग़ से बिल्कुल शातिर और पूरा धूर्त था. उसके कुटिल सी हँसी के पिछे का राज पता कर पाना किसी के बस की बात नही थी.


जितना मनु शातिर उतने ही दिमाग़ वाली स्नेहा भी थी, और जब से इन दोनो का साथ हुआ था, कयि कारनामे अंजाम दे चुके थे.


स्नेहा, ठीक सामने डेस्क पर बैठ कर, अपने सॅंडल के हील को मनु के लंड पर रख कर उससे प्रेस करने लगी.....


मनु.... स्नेहा प्लीज़ डिस्ट्रब मत करो अभी मेरा मूड ऑफ है.


स्नेहा.... उसी ऑफ मूड को तो ऑन कर रही हूँ बॉस.... कम-ऑन अब मूड मे आ भी जाओ.


स्नेहा, इतना कहती हुई अपनी हील थोड़ा अंदर की ओर पुश कर दी..... "उफफफफफफफफ्फ़" करते हुए मनु ने उसे कमर से पकड़ा और डेस्क के नीचे उतरने लगा. लेकिन स्नेहा डेस्क को ज़ोर से पकड़ ली और नीचे नही उतरी.
 
मनु हार कर स्नेहा की तरफ देख कर कहने लगा..... "मूड नही बेबी अभी, दो महीने बाद, काया के बर्तडे पर दादा जी वसीयत डिक्लेर करेंगे, और इधर मेरे बाप ने मेरा पत्ता सॉफ कर दिया".


स्नेहा, के हिल्स अब भी मनु के लंड पर थे, और उसे वो धीरे-धीरे प्रेस करती, अपने हाथों से अपनी शर्ट के बटन खोली, अपने ब्रा को बाहर निकालती, वो जा कर मनु के चेयर पर, अपने दोनो पाँव दोनो ओर लटका कर बैठ गयी.

"क्यों टेंशन लेते हैं सर, चिंता से कुछ हासिल नही होगा".... इतना कह कर स्नेहा ने मनु के हाथ को अपने शर्ट के अंदर डाल दिए, और होंठो से होंठो को चूसने लगी. मनु चिढ़ कर पूरी ताक़त से उसके बूब्स को दबा कर निचोड़ दिया....... "मेरा दिमाग़ काम नही कर रहा, और तुम्हे मस्ती चढ़ि है"


स्नेहा दर्द और मज़े मे पूरी तरह तड़प गयी..... "उफफफफफफफ्फ़, मनु... मर गयी..... पूरी ताक़त झोक दिए..... रूको अभी दिमाग़ ऑन करती हूँ तुम्हारा."


स्नेहा चेयर से उतर कर नीचे बैठ गयी, और मनु की बेल्ट को खोल कर उसके पैंट को घुटनो मे ले आई, और उसके शांत लंड को उलट-पलट कर देखने लगी. जैसे स्नेहा का हाथ मनु के लंड पर गया, उसके मूह से ठंडी "आआहह" निकल गयी, और वो खुद को ढीला छोड़ दिया.


स्नेहा ने मूह खोला और बॉल्स की जड़ पे जीभ टिकाती हुई, उसे नीचे से उपर तक चाट'ती चली गयी..... "ओह बाबयययी.... प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज रहने दो".... सिसकारियाँ निकालता मनु जैसे स्नेहा से अर्जी कर रहा हो.


पर स्नेहा नही मानी और अपनी लार को लंड पर टपकाती, उसे चाट'ती रही. स्नेहा की जीभ पड़ने से लंड हल्के-हल्के झटके ख़ाता अपना आकार लेने लगा... स्नेहा अपना बड़ा सा मूह खोली और लंड को मूह मे ले कर पूरा अंदर घुसा लिया.


मनु... "उफफफफफफफ्फ़" करता उसके सिर को ज़ोर से पकड़ कर तेज़ी से हिलने लगा..... वो भी अपने फुल मूड मे आ गया. तभी बेल बजी और बाहर से एक आवाज़ आई... "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ"


मनु की आखें बड़ी हो गयी, और वो नीचे देखने लगा....


स्नेहा, लंड को मूह से निकालती हुई कहने लगी.... "बुला लो" ... इतना कह कर वो जल्दी से डेस्क के नीचे घुसी, और चेयर को अंदर तक खींच ली. मनु का पेट बिल्कुल डेस्क के किनारे से लगा था, और नीचे कुछ देख पाना किसी के बस की बात नही...


मनु.... यस अंकल आ जाइए....


मनु के पापा हर्षवर्धन के दोस्त और कंपनी बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स मे से एक, रौनक गुप्ता, अंदर आते ठीक उसके सामने बैठ गये....


मनु..... कहिए अंकल कैसे आना हुआ....

मनु ने इधर सवाल पुछा, और उधर नीचे बैठी स्नेहा ने, लंड की चमड़ी को ज़ोर से पीछे करती, जीभ को उसके टॉप से लगा कर गोल-गोल फिराने लगी. मनु का चेहरा वासना की आग मे तप कर खिंच गया... सामने रौनक अंकल और नीचे लंड पर स्नेहा मेहरबान थी.


रौनक..... मेरे पास तुम्हारे लिए एक प्रपोज़ल है....


मनु..... "आहह, काअ.. कैसा प्रपोज़ल"
 
नीचे स्नेहा लंड को मूह मे ले कर पूरी मस्ती मे चूस रही थी, जिस से मनु की आवाज़ लड़खड़ा सी गयी... मनु ने एक जल्दी से पाँव नीचे मारा....


रौनक.... तबीयत ठीक नही क्या मनु, डॉक्टर को बुलवा दूं...


मनु.... नही, टेन्षन से सिर दर्द है, और कोई बात नही...


रौनक.... हां वही तो, देखो टेन्षन मे अजीब-अजीब खिंचा सा चेहरा है तुम्हारा.....


मनु पूरा चेहरा सिकोडते हुए..... कुछ काम था अंकल तो मुझे बुलवा लिया होता...


रौनक..... नही, मैने सोचा तुम से ही मिल कर बातें करूँ.... देखो मनु ये बात तुम्हे भी पता है और मुझे भी, तुम्हारी सौतेली माँ तुम्हे कुछ भी हासिल नही करने देगी, और जहाँ तक मुझे लगता है तुम भी इसी बात को ले कर परेशान हो....


मनु..... उफफफफफ्फ़... अंकल अभी तो दो-दो बातों की परेशानी है... आप कहो भी खुल के, कहना क्या चाहते हो.....


रौनक...... देखो मनु, मुझे पता है कि तुम अपना सब कुछ खो चुके हो. मुझे पूरी बात पता है, मैं तो यहाँ सिर्फ़ इसलिए आया हूँ कि तुम्हे, तुम्हारा हक़ मिलना चाहिए.


मनु ने नीचे अपने पाँव ज़ोर-ज़ोर से हिलाए, ये स्नेहा के रुकने का इशारा था.... स्नेहा रुक गयी... मनु ने पुछ्ना शुरू किया.....


"अंकल, पहली बात तो ये कि कब से आप कह रहे हैं .... मुझे पता है बात, मुझे पता है बात, और मैं उसी बात को ले कर परेशान हूँ.... लेकिन मुझे सच मे पता नही कोई भी बात. जहाँ तक टेन्षन और परेशानी की बात है, वो तो सिर्फ़ इसलिए है कि, एक के बाद एक मेरे तीन बड़े कांट्रॅक्ट रिन्यू होने से पहले मेरे हाथ से निकल गये. अचानक से मेरा बिज़्नेस बॅक-फुट पर आ गया और मैं इसी बात को ले कर परेशन हूँ"


रौनक, आश्चर्य से देखते हुए.... "क्या तुम्हे कुछ भी पता नही"


मनु.... हां अभी पता चला ना आप से... दादा जी की वसीयत से मुझे कुछ भी नही मिल रहा ... मेरी सौतेली माँ मुझे कुछ भी हासिल नही होने देगी.....


रौनक.... सॉरी, मुझे ये बात नही कहनी चाहिए थी शायद.... तुम मुझे ग़लत मत समझना..


मनु..... अंकल ऐसा भी कभी हो सकता है क्या, अब प्लीज़ आप इसका सल्यूशन भी तो बताएए...


रौनक..... कैसे कहूँ अब मैं, थोड़ा अजीब सल्यूशन है.


(मेरे बाप के चम्चे तू ऐसे नही बताएगा).... "कोई बात नही है अंकल जाने दो, यदि आप मुझे डूबता देखना चाहते हो तो वही सही, पर एक बात तो तय है, बर्बाद होने से पहले मैं यहाँ बहुत कुछ कर जाउन्गा.... और कोई इस भूल मे ना रहे कि वो यहाँ का अकेला मालिक बन जाएगा... मेरे अलावा भी 3 लोग और हैं, और मैं जानता हूँ किस वक़्त क्या करना है"


रौनक.... तुम क्या करने वाले हो मनु.


मनु.... मैं नही बचा, तो किसी को चैन से रहने नही दूँगा, बाकी ये तब की प्लान है जब मुझे कोई बर्बाद करना चाहे....
 
रौनक हँसते हुए.... अरे नही-नही मनु, खबरदार जो ऐसे उल्टे-सीधे कदम उठाए तो, मैं किस दिन काम आउन्गा... मैं ज़रा हिच-किचा रहा हूँ... कैसे कहूँ.....


मनु.... डॉन'ट वरी अंकल, आप बेझिझक कहिए......


रौनक.... प्लीज़ मुझे ग़लत मत समझना..... तुम ना जिया से शादी कर लो....


मनु.... अचानक यूँ शादी, वो भी आप की बेटी जिया से... पर क्यों अंकल...


रौनक.... मेरी एक ही तो बेटी है, और मेरा जो कुछ भी है मेरे बाद उसी का होगा. लेकिन मुझे डर है कि मुझ से भी मेरी सारी चीज़ें तुम्हारी सौतेली माँ छीन ना ले, इसलिए मैं चाहता हूँ तुम मेरी संपत्ति के वारिस बन जाओ.


मनु.... आप का प्रस्ताव अच्छा है, पर मुझे इस पर सोचने के लिए कुछ वक़्त दीजिए.


रौनक मुस्कुराते हुए.... "ठीक है मनु तुम आराम से सोचना मेरी बात, लेकिन मुझे तुम्हारी हां का इंतज़ार रहेगा. अभी मैं चलता हूँ.


रौनक के जाने के बाद, स्नेहा बाहर आई..... "हुहह, ठीक से खेलने भी नही दिया अपने हथियार से, साला बुड्ढ़ा बीच मे आ गया. वैसे ये बुड्ढ़ा आज इतना मेहरबान क्यों था"


मनु, अपने रंग मे आते हुए.... "परेशान क्यों होती हो जानेमन, अभी से अब पूरे जोश से हम खेल खेलेंगे... वो भी आज तुम्हारे पसंदीदा सीन और जगह के हिसाब से. बुड्ढे ने बातों-बातों मे मुझे ऐसा रास्ता दिखाया है, जिस से मैं अब सब का पत्ता सॉफ कर दूँगा"

स्नेहा.... वॉववव ! बॉस कंप्लीट इन मूड.... लगता है आज बहुत मज़ा आने वाला है, वैसे एक बात तो बताओ मनु, ये बुझे से महॉल मे उस बुड्ढे ने ऐसा क्या सुराग दे दिया.....


मनु..... जानेमन तीर-तीर की बात है. जो तीर वो मुझ पर छोड़ कर गया है, बस उसी तरह का तीर अब मैं भी चलाने का सोच रहा हूँ.... अब तुम अपनी सेक्स फॅंटेसी बताओगी, या मैं अपने प्लान मे लग जाऊ....


स्नेहा.... यू आर पर्फेक्ट बॉस. काम के वक़्त काम मे, और प्लेषर के वक़्त प्लेषर मे... सब मे पर्फेक्ट..... और आप की खुशी बता रही है कि आप ने अभी-अभी पूरी जंग जीतने जैसी प्लानिंग करी है... तो सेक्स भी उतना ही तूफ़ानी होना चाहिए......


मनु..... ठीक है फिर, अभी जाओ यहाँ से, और आधे घंटे मे रेलवे स्टेशन पहुँचो...


स्नेहा, वहाँ से निकली, और दोनो आधे घंटे बाद देल्ही रेलवे स्टेशन पर मिली....
 
स्नेहा हँसती हुई मनु के कानो मे कही..... "बॉस, सेक्स ट्रिप के लिए कही थी, आप ये कौन सी ट्रिप पर ले जा रहे हो"


मनु.... धीरज रखो, और चुप-चाप मुझे फॉलो करो.


कुछ देर बाद प्लतेफोर्म पर एक ट्रेन आ कर रुकी. मनु, स्नेहा को अपने पिछे आने के लिए कहा.... स्नेहा ट्रेन को देख कर सोच मे पड़ गयी..... "ये देल्ही-मुंबई की ट्रेन मे, पता नही क्या करना चाह रहा है मनु.. इसका तो फ्यूज़ ही उड़ा हुआ है"


मनु के पिछे-पिछे स्नेहा चलती रही. कुछ देर बाद तो उसका दिमाग़ ही सुन्न पड़ गया....

स्नेहा.... मनु तुम सठिया गये हो, एक तो कब से मैं, नये एक्सिटमेंट का सोच-सोच कर जल रही हूँ, और तुम हो कि एक तो पहले रेलवे स्टेशन बुला लिया, उपर से ट्रेन से मुंबई जा रहे हो... और हद होती है अब ये जनरल कॉमपार्टमेंट....


मनु.... सीईईईईई...... चुप-चाप मेरे पिछे आओ.


गुस्से मे चेहरा लाल करती स्नेहा, मनु के पिछे-पिछे जा चुप-चाप जा कर उस जनरल कॉमपार्टमेंट मे बैठ गयी. स्नेहा विंडो सीट पर, और उसके बगल मे मनु बैठा.


स्नेहा गुस्सा दिखाती हुई मनु से कोई बात ना करते हुए चुप-चाप खिड़की के बाहर देखने लगी. मनु भी मॅगज़ीन उठाया और पढ़ने लगा. ट्रेन चली, धीरे-धीरे जनरल कॉमपार्टमेंट भरने लगा.... भीड़ इतनी हो गयी कि लोगों पर लोग चढ़े हुए थे.


स्नेहा विंडो सीट पर सिकुड़ी सी बैठी थी... आख़िर उसके सब्र का बाँध टूट गया....


स्नेहा.... मनु मैं अभी रिजाइन कर रही हूँ, मुझे तुम्हारे साथ कोई काम नही करना....


मनु... ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...


स्नेहा... क्या???? ... मनु देखो ये ओवर हो रहा है... मुझे लगता है तुम्हारे दिमाग़ की नसें ढीली हो गयी हैं ... कोई फिजीशियन से इलाज करवाओ...


मनु हँसने लगा और स्नेहा की बातों का कोई जवाब नही दिया. कुछ देर बाद वो अपने बगल वाले से कुछ कहा और वो बंदा वहाँ से उठ कर चला गया...


मनु.... लो अब थोड़ी सी जगह बन गयी... आराम से बैठो...


स्नेहा.... हुहह !


ट्रेन चलती रही, और स्नेहा गुस्से मे खिड़की के बाहर देखती रही. धीरे-धीरे शाम भी होने लगी. सर्द हवाओं ने स्नेहा को हल्की ठंड का एहसास करवाया, वो थोड़ी सिकुड कर बैठ गयी....
 
मनु समझ गया, और बॅग से एक कंबल निकाल कर उसे दे दिया.... स्नेहा गुस्से से उसके हाथ से कंबल ले ली, और ओढ़ कर चुप-चाप बैठ गयी.


कुछ देर बाद ट्रेन की सारी लाइट भी बंद हो गयी... अंधेरा सा हो गया पूरा कॉमपार्टमेंट मे. स्नेहा अब भी कंबल मे दुब्कि हुई थी..... अचानक ही उसकी आँखें बड़ी हो गयी.... मनु के कान मे फुसफुसाते वो कहने लगी.....


"मेरे बूब्स से हाथ हटाओ मनु, क्या कर रहे हो"


मनु ने जल्दी से स्नेहा के होंठ चूमे और कहा..... "इस नये एक्सपीरियेन्स का भी मज़ा लो"...


स्नेहा की साँसे अटक गयी... वो तय नही कर पा रही थी अब क्या करे... खुली आँखों से वहाँ की भीड़ को देख रही थी... और कंबल के अंदर मनु के हाथ उसके बूब्स को सहला रहे थे....


अजीब सी सिहरन दौर गयी स्नेहा के बदन मे.... बूब्स पर हाथ पड़ने से उसकी साँसे उखड़ सी गयी... और जैसे ही खोती हुई वो अपनी आखें बंद करती, वैसे ही भीड़ को देख कर आखें बड़ी हो जाती....


स्नेहा पर तो अजीब सा फियर-एक्सिटमेंट छाया था.... इधर स्नेहा की तड़प को बढ़ाते हुए मनु ने उसकी टी-शर्ट के अंदर हाथ डाल दिया और उसके ब्रा को हटा कर उसके नंगे बूब्स को अपने हाथों से ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा.....


स्नेहा के मूह से हल्की सिसकारियाँ निकलने लगी... जिसे वो अपने होंठो मे दबा कर, अपने होन्ट दांतो से काट रही थी.... नज़रें चारो ओर घुमा रही थी... और होश खोने को बेकाबू थे...


तभी मनु ने दोनो बूब्स के निपल को पकड़ कर पूरी ताक़त से मसल दिया... स्नेहा दर्द से छटपटा गयी और एक तेज चीख निकली..... "अऔचह"


उस जगह की भीड़ बॅड-बड़ाने लगी... "क्या-हुआ, क्या-हुआ"....


स्नेहा किसी तरह जबाव दी.... "किसी कीड़े ने शैतानी की"


सभी लोगों मोबाइल की लाइट जला कर देखने लगे.... लाइट जलते ही स्नेहा धीरे से मनु के काम मे बोली ... डार्लिंग प्लीज़ हाथ हटा लो वरना सब जान जाएँगे....


लेकिन मनु हाथ हटाने के बदले... निपल को और भी तेज-तेज रब करने लगा... और फिर से पूरे ज़ोर से निपल को मरोड़ दिया.... स्नेहा के हलक मे साँसे अटक गयी.... चीख बाहर आने को तैयार थी पर होंठो को दांतो तले दबा लिया.....


तभी
 
तभी भीड़ से एक आदमी उसके चेहरे के भाव को देख कर बोला.... "मेडम, क्या आप को असहनीय दर्द हो रहा है"


मनु, उस आदमी की बात सुन कर हँसने लगा और थोड़ी देर के लिए अपना काम रोक दिया.... स्नेहा थोड़ी नॉर्मल होती कहने लगी.... "नही मुझे दवा मिल रही है... दर्द नही मज़ा आएगा ... आप टेन्षन ना लो और लाइट बंद कर दो"


स्नेहा इतना कह कर सीट से टिक गयी और लंबी-लंबी साँसे लेने लगी.... मनु ने हाथ फिर कंबल के अंदर डाल दिया.... कंबल के अंदर हाथ जाते ही... स्नेहा अजब सी एक्सिटमेंट फील करने लगी... उसकी योनि मे ऐसा लगा जैसे चिंगारियाँ जल रही हो.... इतना मज़ा उसे पहले कभी नही आया था.. जितना मज़ा वो इस .. भीड़ के होने का डर... के साथ ले रही थी....


हाथों ने अंदर जाते ही इस बार सबसे पहले जीन्स के बटन खोले फिर धीरे-धीरे जीप नीचे हुई... मनु ने स्नेहा की आखों मे देखा... वो हँसती हुई अपने कमर को थोड़ा हवा मे की, और मनु ने जीन्स को घुटनो तक नीचे कर दिया....


एक हाथ उसके बूब्स पर रखते उसे ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा... और दूसरे हाथ को पैंटी पर ले जा कर योनि के उपर ज़ोर-ज़ोर से थाप लगाता उसके अंदर उंगली करने लगा... स्नेहा ... होंठो को दांतो तले दबाए ... "आहह.... इस्शह" की सिसकारियाँ ले रही थी.... और मनु अपने काम मे लगा था.....




स्नेहा को इस खेल मे काफ़ी मज़ा आने लगा था.... बूब्स और योनि पर लगातार हाथ फिर रहे थे और लोगों की भीड़ को देख कर अंदर से अजीब तरह से फीलिंग आ रही थी... अब तो स्नेहा भी भीड़ को नज़रअंदाज़ करती इस खेल का मज़ा लेने लगी.... अचानक ही उसके होंठ खुल गये और एक ज़ोर की सिस्कारी उसके मूह से निकली.... "आअहह"


किसी ने लाइट स्नेहा के चेहरे पर दिखाई.... "कुत्ते के बच्चे सोने दे, कभी लड़की नही देखी जो टॉर्च जला कर देख रहा है"


स्नेहा के रंग मे भंग डालने वाले को उसने चिढ़ कर जबाव दिया... वो बेचारा चुप-चाप अपनी लाइट बंद कर दिया.... लाइट बंद होते ही स्नेहा मनु के पैंट पर लपकी और तेज़ी से उसकी पैंट खोलती उसके लिंग को बाहर निकाली.... मनु ने उस पर चादर ढकने की कोसिस की पर ... स्नेहा चादर हटाती झुक कर लिंग को अपने मूह मे ले कर चूसने लगी..
 
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