कानपुर.....
काया को मनु ने लाख समझाया कि अभी वक़्त नही है वहाँ जाने का, लेकिन फिर भी वो नही मानी. अपनी ज़िद पर अड़ी ही रही और अंत मे
उसे ले ही गयी. काया अपने भाइयों और अखिल के साथ रात तक स्नेहा के दरवाजे पर थी.
दरवाजे पर उन सब को देखते ही स्नेहा के पिता ने गेट झट से बंद कर लिया. काफ़ी कहने और सुन'ने के बाद अंत मे स्नेहा की माँ ने दरवाजा खोल दिया और सब को बैठ कर अपनी बातें बात करने की सलाह दी.
सब बैठ कर बात करने मे लगे थे और मनु की नज़रें बस स्नेहा को ढूँढ रही थी. लोग क्या बातें कर रहे थे उसके कानो मे भी नही पड़ रहा था. सब लोग बातों मे लगे थे और मनु वहाँ से उठ गया. उस के कदम स्नेहा के कमरे तक जाने लगे.
मनु जैसे ही उसके कमरे मे पहुँचा, उसकी आँखें डब-डबा सी गयी थी. दिल जैसे रो पड़ा हो, उसकी स्नेहा की हालत देख कर और मनु वहीं ज़मीन पर बैठ कर रोने लगा.
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मीटिंग अट राजीव हाउस.....
मूलचंदानी हाउस मे हो रहे ड्रामा को देख कर तनु ने भी एक मीटिंग बुला ही ली. हालाँकि अंदर से अब सब अपने-अपने ही इरादों से थे. जहाँ एक ओर तनु अब सब से स्ट्रॉंग कड़ी यानी मनु का सहारा ले कर आगे बढ़ना चाहती थी वहीं वंश को अब इन सब मे कोई इंटरेस्ट नही रह गया था.
रौनक जो सब के धोको का शिकार था, उसने भी अपनी बेटी की बात मानते हुए सब से अलग हो कर अपनी ही रन-नीति तय करने की सोच रहा था.
राजीव.... तुम सब को तो पता ही है कि मनु और उसके भाई पर क्या इल्ज़ाम लगा है. तो यदि तुम सब साथ हो तो हम उसे एमडी की पोस्ट
से हटाने की डिमॅंड रखते हैं और आपस मे यूनिट हो कर कोई एमडी चुन लेते हैं.
रौनक.... और वो एमडी कौन होगा...
वंश.... एमडी अब कोई भी हो मैं जा रहा हूँ. मुझे इन झमेलों से कोई लेना देना नही, मेरे पास जितना है मैं उसी को खुद आगे बढ़ा लूँगा. मैं इन सब चक्करों से दूर हो रहा हूँ. जिसे जो करना है करो, मुझे अब कोई लेना देना नही.
इतना कह कर वंश वहाँ से उठा और चला गया..... "इसे अचानक क्या हो गया जो ये यहाँ से चला गया"
रौनक.... लगता है सारे कांड इसी ने करवाए हैं, और इसका राज खुल चुका होगा. तभी तो छिप रहा है अब सब से.
राजीव.... तभी मैं कहूँ ये अचानक से इसका हृदय परिवर्तन कैसे हो गया. लगता है इसका तो विकेट जाने वाला है.
तनु.... खैर छोड़ो उसे, ये बताओ की अब क्या करे. वंश तो छोड़ कर चला गया. अब हमे क्या करना चाहिए.
रौनक.... टारगेट मनु है या मूलचंदानी. क्योंकि टारगेट मनु है तो उसे कल ही एमडी के पोस्ट से रिज़ाइन करवा देते हैं. और यदि कहीं टारगेट मूलचंदानी है, तो उसे कंटिन्यू करने दो.... क्योंकि अभी तो उसकी फॅमिली मे ही लड़ाई होगी. उन्हे आपस मे लड़ने दो और हम अब चुप-चाप उनके आक्षन का इंतज़ार करते हैं...
तनु.... हां ये भी ठीक रहेगा....
सभा समाप्त हो गयी. मीटिंग जैसे ही ओवर हुई तनु ने मनु को कॉल लगा दिया... मनु इस वक़्त स्नेहा के दरवाजे पर बैठ कर रो रहा था. मनु
ने कॉल पिक अप नही किया.... कई बार तनु ने कोशिस की पर मनु ने कोई रेस्पॉंड नही किया.
मनु का कोई रेस्पॉंड ना देख कर तनु ने उसे मेसेज की..... "वंश से मिली थी. उसकी हरकतें अजीब थी. मुझे लगता है कल वाले कांड के पिछे वंश का हाथ है"
मनु ने टेक्स्ट का नोटिफिकेशन देखा. फिर पूरा मेसेज पढ़ा.... नम आँखों से उसने एक बार स्नेहा को देखा... और घायल शेर की तरह बदला
लेने के लिए तड़पने लगा.
मनु दरवाजे पर बैठ कर बस रोता हुआ स्नेहा को ही देख रहा था...... "सारी ग़लती मेरी है, ये मेरा किया है जो तुम भुगत रही हो. कुछ तो कहो, देखो तो इधर भी स्नेहा"
स्नेहा को ऐसा लगा जैसे कोई आवाज़ दे रहा हो. बिस्तर पर पड़ी वो अपनी अचेत अवस्था से जागी, नज़रें घुमा कर मनु को देखी, एक फीकी
मुस्कान उसके चेहरे पर थी.... मानो जैसा कहने की कोसिस कर रही हो "देखो ये क्या हो गया"
कुछ भी प्यार जैसा नही हुआ था दोनो के साथ. ना तो कभी प्रपोज़ल और ना ही प्यार के किसी अहसास मे साथ घूमना..... बस साथ रहते
-रहते इतने मजबूत बंधन मे ऐसे जुड़े थे कि दोनो एक दूसरे का दर्द महसूस कर सकते थे.
मनु का कलेजा जैसे फट गया हो. किसी तरह वो खड़ा हुआ, स्नेहा के पास तक पहुँचा और उसकी गोद मे सिर रख कर रोने लगा.... स्नेहा
उसके बाल पर हाथ फेरती..... "कोई नही बेबी जो होना था हो गया, तुम दिल छोटा नही करो. प्लीज़ मेरी खातिर रोना बंद कर दो".
मनु... स्नेहा मैने कभी ऐसा नही चाहा था... सूऊ सॉरी....
स्नेहा... मुझे भी रुला रहे हो मनु, जो हो गया अब वापस नही हो सकता. इसमे तुम्हारी कोई ग़लती नही....
मनु.... स्नेहा, जब इतना सोचती हो तो अपना ये हाल क्यों बनाया....
स्नेहा.... मैं तो सब समझती हूँ पर ये दिल नही मानता ना मनु. दिल के हाथों मजबूर हो कर मनु.....
मनु.... तुम्हारे पापा या मम्मा ने कुछ कहा भी......
स्नेहा.... उन से तो सामना करने की हिम्मत नही हुई... पर तुम आ गये ना तो अब थोड़ी हिम्मत आ गयी है... चलो...
बाहर सब डिसीजन मे इतना लगे हुए थे कि किसी को पता भी नही चला मनु कब स्नेहा के कमरे मे गया. स्नेहा, मनु का हाथ थाम कर बाहर निकली और ठीक अपने पापा के सामने खड़ी हो गयी. उन दोनो को ऐसे देख सब अपनी बात कहना भूल कर उन्ही दोनो को देखने मे लग गया...
स्नेहा... माँ-पापा, मुझे नज़रें मिलाने की हिम्मत नही. लेकिन एक ही बात कहूँगी जो हुआ उसमे हमारी कोई ग़लती नही है. यदि आप को लगता है कि मेरी वजह से आप की इज़्ज़त गयी है, तो इज़्ज़त जान से बढ़ कर नही. आप इशारा कीजिए मैं खुद अपनी जान ले लूँगी, लेकिन प्लीज़ आप हमे अलग नही कीजिए... प्लीज़ अलग नही कीजिए..
सब लोगों ने स्नेहा की दर्द भरी आवाज़ को महसूस किया. वो मनु का हाथ थामे बस रोती रही. उसका रोना देख कर उसकी माँ और काया दोनो की आँखों मे आँसू थे. उपर से कितना भी सख़्त क्यों ना हो लेकिन एक पिता के पास दिल नही होता क्या ? उसे क्या अपने बच्चो की तड़प नही दिखती ?
जो रिश्ता कल के गुस्से के साथ टूटा था, वो आज स्नेहा की तड़प के साथ जुड़ गया. स्नेहा के पिता श्रीमान नवीन ऱाठोड जी ने हामी भर दिया
इस शादी के लिए. मनु और स्नेहा दोनो के दिल को कितना सुकून मिला था ये वो दोनो हे महसूस कर सकते थे.