vasna story इंसान या भूखे भेड़िए - Page 13 - SexBaba
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vasna story इंसान या भूखे भेड़िए

रात को.... मानस & मनु....


मानस.... मनु बिल्कुल पास था वो, सब बताने ही वाला था, आन्ह्ह्ह .... मेरी तलाश को उन सब ने ऐसे ख़तम कर दिया...


मनु.... भाई हो गया ना. अब जाने भी दो. हम बाहर से क्या लड़ेंगे, जब घर ही अपना दुश्मन बना है....


मानस.... हां ठीक कहता है भाई. अब कोई तलाश नही, कोई पता नही लगाना. अब तो आक्षन टाइम है मनु. इन सब को ऐसे-ऐसे जगह मारो
की खून के घूँट पिए... ऐसा महॉल बनाओ कि खुद आत्महत्या कर ले. दिन रात बस अपने किए पर पछताते रहे.


मनु..... हां मैं वही करने वाला हूँ. अब तो तुम भी आ गये हो भाई, मेरा हौसला दुगना हो गया है. बस देखते जाओ इनके साथ क्या-क्या होता है.....

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मनु इन ऑफीस.....


मनु ऑफीस निकलने से पहले श्रेया को कॉल कर के अपने पास बुला लिया. श्रेया भी मनु से मिलने के लिए ऑफीस निकल चुकी थी.


श्रेया, कॅबिन मे दाखिल होते ही..... "ओह्ह्ह ! मनु जब से मैने तुम्हारे बारे मे सुना, तब से मैं कितनी परेशान थी जानते हो. ओह्ह्ह ! बेबी, जाने दो क्या हुआ जो एक रिश्ता टूट गया. वैसे भी वो तुम्हारे लायक नही थी."


मनु.... ह्म ! श्रेया, मैं खुद को तन्हा और अकेला महसूस कर रहा हूँ. मुझे समझ मे कुछ नही आ रहा था. सॉरी तुम्हे डिस्ट्रब तो नही किया ना.


श्रेया, मनु के सिर को अपने सीने से लगती, उसके बालों पर हाथ फेरने लगी...... "डिस्ट्रब क्यों होंगी बेबी. वैसे भी मैं हूँ ना डॉन'ट वरी. तुम्हे
किसी बात की पेन लेने की ज़रूरत नही है".


मनु.... थॅंक्स श्रेया. लेकिन मैं खुद को काफ़ी तन्हा महसूस करने लगा हूँ. इट'स कॉंप्लिकेटेड तो एक्सप्लेन, मैं तुम्हे कैसे समझाऊ.


श्रेया..... क्या बात है मनु, बताओ तो बेबी, जब तक कहोगे नही, तब तक मुझे समझ मे कैसे आएगा....


मनु..... श्रेया एक तो तुम मेरे पापा को तो जानती ही हो, सब के सब केवल दिखावा बाकी अंदर से मुझे बर्बाद करना चाहते हैं, उपर से मानस भाई... जब से आए हैं कह रहे हैं अलग बिज़्नेस करेंगे.... सब मुझे फसा दिया है.... मुझे ऐसा लगता है मैं चारो ओर से घिर गया हूँ...


श्रेया.... बेबी टेन्षन क्यों लेते हो, मानस भाई अलग होना चाहते हैं तो ये अच्छी ही बात है ना. उन्हे कुछ पैसे दे दो वो अलग बिज़्नेस करेंगे. बाकी उनके सारे शेर्स तुम रख लो...


मनु.... मैं अपनी कंपनी का एक पैसा उन्हे नही दूँगा. मैं क्यों देने लगा उन्हे एक भी पैसा. सारा मेहनत मेरा, सब कुछ मेरा, मैं भला क्यों दूं. मैं अपनी मेहनत का उन्हे कुछ भी नही देने वाला.


श्रेया.... तो मत दो उन्हे. उन्हे जो करना है करे. लीगली तो वैसे भी कोई पार्ट्नर्स अलग नही हो सकते और ना अपनी कंपनी अलग कर सकता है....


मनु.... ह्म ! सो तो है पर मानस तो मेरी मेहनत से बढ़ता ही रहेगा ना. यहाँ मैं मेहनत करूँगा और घर बैठे उसका प्रॉफिट बढ़ता जाएगा .....


श्रेया.... बेबी, अब इतना भी मत सोचो. मैं हूँ ना. मैं और मम्मा तुम्हारी हेल्प करेंगी इसमे, तुम टेन्षन ना लो.....


मनु..... एक तुम ही तो हो श्रेया और मुझे तो कोई सहारा नज़र नही आ रहा......
 
अखिल अपने ऑफीस मे.....


अखिल अपने सीआई से मनु के केस मे डिसकस करते हुए. दरअसल उस टेप के कांड के बाद अखिल ने मनु के खानदान का फोन सर्व्लेन्स
पर डाल दिया था. सिविलेन्स पर रखने के कारण इन लोगों ने रजत और सॅम की बातें भी सुन ली थी.....


सीआई.... सर, आप का शक़ सही था, वो मनु सर के खिलाफ टेप उसी की सौतेली माँ ने लीक किया था. उसके बेटे का प्लान तो मनु और
काया को मारने का भी था, लेकिन आप के वहाँ होने की वजह से उन लोगों ने मनु के बारे भाई मानस को फसा दिया....


अखिल..... उदय जी जानते हो ये काया कौन है...


सीआई..... हां आप के दोस्त मनु की सिस्टर.... पर एक बात समझ मे नही आई सर. सौतेला भाई अपनी बहन को जान से ज़्यादा चाहता है
और उस का खुद का अपना भाई उसे जान से मरवाना....


अखिल.... इट'स कॉंप्लिकेटेड उदय जी, जाने दो इसे. वैसे मैं बता दूं ये काया आप की होने वाली भाभी है, और किसी पोलीस वाले की बीवी
को जान से मारने की प्लॅनिंग किया जा रहा है....


सीआई.... पोलीस वाले की फॅमिली पर हमला. सर जो भी ये सोच रहा है उसे नंगा कर के हम उसका जुलूस पूरे सहर से निकालेंगे....


अखिल.... ये हुई ना बात. वैसे अभी इस आक्षन की ज़रूरत नही है, उस लड़के सॅम को रेमंड मे लो, फिर देखते है क्या करना है.....


उदय "एस सर" बोलता हुआ वहाँ से चला गया और उसके जाते ही मिश्रा जी..... "सर, आप अब तक शांत क्यों बैठे हैं"


अखिल.... हां मिश्रा जी, मैं भी यही सोच रहा था की अब तक मैं शांत क्यों बैठा हूँ... चलो आप रिज़ाइन करो या नही तो मैं आप को डिसमिस करता हूँ....


मिश्रा जी..... हद है, आप अपनी होने वाली बीवी के क़ातिलों को छोड़ कर मुझ से ही रिज़ाइन करने कह रहे हैं...


अखिल.... वो क्या है ना मिश्रा जी, मेरी काया पर जिसने भी बुरी नज़र डाली है उसका तो हाल बहाल करूँगा ही लेकिन साथ मे उसे भी नही छोड़ने वाला जिसने मेरे प्यार की राह मे आग लगाया है....


मिश्रा जी.... एस सर, प्यार की राह मे आग लगाने वाले को तो बिल्कुल नही छोड़ना चाहिए, उसे तो पहले सॉफ कर दो. पर मुझ ग़रीब पर क्यों सितम ढा रहे हो....


अखिल..... ज़्यादा भोले ना बानिए... किसने काया के दिमाग़ मे पनौती वाली बात डाली... मिश्रा जी चुप चाप रिज़ाइन करो....


मिश्रा जी..... आप सीरीयस हो क्या सर...


अखिल.... हां.. बहुत ही ज़्यादा सीरीयस....


मिश्रा जी..... फिर ठीक है मुझे एक कॉल करने दो. मैं भी अपना सोर्स लगा लूँ, फिर देखता हूँ कि आप क्या करते हो.


अखिल.... पीयेम साहब भी बोलेंगे तो भी मैं नही पिछे हटने वाला कोसिश कर के देख लो....


मिश्रा जी.... लीजिए बात कीजिए मेरे सोर्स से, तभी आप की अकल ठिकाने आएगी...


"इतना भी क्या उच्छालना मिश्रा जी, लाओ दिखाओ कौन है लाइन पर".... अखिल ने फोन हाथ मे लिया. शेर की दहाड़ के साथ फोन हाथ मे लिया था और भीगी बिल्ली की तरह चुप-चाप बातें सुन रहा था. दूसरी तरफ काया थी जो अखिल को हड़का रही थी और वो चुप-चाप सुन रहा था....


अखिल, फोन रखते ही..... "मिश्रा जी मैं आप का खून कर दूँगा, देख लेना आप"
 
श्रेया & सुकन्या.....


श्रेया अपनी माँ सुकन्या से अपने मनसा जाहिर करती हुई कहने लगी वो मनु से शादी करेगी. मनु से शादी की बात सुन कर सुकन्या बिल्कुल शॉक्ड हो गयी....


सुकन्या.... तुम्हारा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ना श्रेया. या तुम कुछ नशा कर के आई हो.


श्रेया.... मैं पूरे होश मे हूँ मॉम, और मैं जानती हूँ मैं क्या कर रही हूँ.


सुकन्या.... लेकिन बेटा मनु तेरे लायक नही है. तुम तो कुछ भी नही जानती...


श्रेया.... बच्ची नही हूँ मोम. क्या जान'ना है मुझे, यही कि आप और हर्ष अंकल कब से कंपनी हथियाने का प्लान कर रहे हो और हुआ कुछ
नही. सिंपल सा फंडा है मोम, पवर मनु के हाथ मे है और वही मेरे लिए बेस्ट है तुम चाहे जो समझो.


सुकन्या.... उसकी पवर तो बस चन्द दिनो की मेहमान है....


श्रेया.... और चन्द दिनो बाद क्या होगा मॉम. जा कर तुम तलवे चाटना हर्ष अंकल के...


सुकन्या.... श्रएाआअ.... ज़ुबान को लगाम दो...


श्रेया.... क्या ग़लत कहा मैने मॉम. तुम जितनी प्लॅनिंग हर्ष अंकल के साथ मिल कर मनु के अगेन्स्ट करती हो उसका इंपॅक्ट 10% भी नही होता उस पर. मैं कहती हूँ मनु के साथ मिल कर काम करो देखना तुम्हे फ़ायदा होगा. वैसे भी तुम्हारे दामाद की कंपनी होगी तो हो गयी ना तुम ऑटोमॅटिक मालकिन.


सुकन्या.... उस काव्या के बीज पर भरोसा नही किया जा सकता....


श्रेया.... अच्छा, और बाकियों पर कितना भरोसा है. मोम मेरी बात गौर से सुनो... तुम्हारे पास तुम्हारे अपने शेर्स हैं. मनु से मेरी शादी हो गयी
और हम सेपरेट भी होते हैं तो उसके 50% शेर मेरे होंगे, ये क्यों भूल जाती हो तुम... और हां एक बात और...


सुकन्या.... क्या ????


श्रेया.... मनु इस वक़्त यदि किसी को अपना मानता है, तो वो मैं ही हूँ. मनु अपनी सारी बातें मुझ से शेयर करता है....


सूकन्या.... जैसे कि...


श्रेया... जैसे कि ये मॉम, मनु जल्द ही अपने भाई का शेयर हथियाने वाला है. तुम देखती रहना...


सूकन्या.... पर वो कैसे...


श्रेया.... बस मैं जानती हूँ.... तुम देख लेना....


सूकन्या.... ह्म ! तो तय रहा, यदि मनु ने ऐसा कर दिया तो मैं तुम्हारा कहा मान कर, उसे पूरा सपोर्ट करूँगी.
 
रात को .... मनु & मानस...


मनु.... भाई तुम्हारे अलग होने का समय आ गया है....


मानस.... ह्म ! समझ गया मैं... तुम फ़िक्र मत करो बस अपने प्लान मे आगे बढ़ते रहो.


मनु.... भाई बस थोड़े दिन और, सब को मैं इन कदमों मे ना झुकाया तो मेरा नाम मनु नही...


मानस.... तू तो मेरा शेर है. तुझ जैसा भाई किस्मत वालों को मिलता है. खैर सब कुछ चला जाए तो भी गम नही मनु, बस उन्हे ज़मीन पर ले आओ...


मनु.... बस भाई देखते जाओ, सब ऐसे तड़पेंगे जैसे जल बिन मछली तड़पती हो. वैसे कल हमारी एक मीटिंग होगी. बीते दिनो मे कुछ अच्छे लोग भी मिले है हमे....


मानस.... ह्म ! ठीक है मनु. जो करना है कर लेकिन इस सीने की आग को ठंडा कर दे मेरे भाई.
 
रात के ठीक 11 बजे... अखिल


मिश्रा जी आज ना आप घर जाओ. मैं जब-जब आप की मौजूदगी मे पाइप पर चढ़ा हूँ, मुझे ना ऐसा क्यों लगा है कि आप मेरे लिए पनौती हो,
हर बार कुछ ना कुछ ग़लत ही होता है. और हां डॉन'ट डेर टू कॉल काया हां.


मिश्रा जी... ओके सर जैसी आप की इक्च्छा... बाइ-बाइ सर. कल को कोई मुसीबत मे फसो तो मेरा नाम मत लेना...


अखिल.... हां हां मैं समझ गया अब जाओ भी....

.................................

इधर काया अपने कमरे मे, आँखें मुन्दे बिस्तर पर लेटी अखिल के बारे मे हे सोच कर मुस्कुरा रही थी. उसे याद आ रहा था ब्रेक-अप कहने
के वक़्त का अखिल का चेहरा.... उस चेहरे को याद कर के काया धीमे से होंठ हिलाती बोली.....


"ओ' मेरे सोना कितने क्यूट लग रहे थे. कहने को तो सहर के सब से बड़े दबंग कहलाते हो पर हर चुलबुल पांडे अपनी रज्जो के पास भीगी
बिल्ली ही बन जाता है"


तभी जैसे कमरे मे किसी के आने की आहट हुई और काया मुस्कुराती हुई अपनी आँखें खोल ली. कमरे की लाइट जल रही थी. बिल्कुल दूधिया सी रौसनी मे काया गेट की ओर करवट किए लेटी थी. चेहरे की कसिस ऐसी थी मानो किसी प्यार भरी खुमारी से अभी जागी हो. और
बिल्कुल काले लिबास से झाँकती उसकी खूबसूरत सौम्या बदन.


अखिल, काया की खूबसूरती मे खोते हुए बस अपनी जगह से उसे निहारता ही रहा. काया ने भी धूमिल सी आखें खोली मुस्कुराती अपनी दोनो बाहें फैला ली और कहने लगी.... "आओ ना इतने दूर क्यों खड़े हैं"


अखिल का जैसे ध्यान टूटा हो. मुस्कुराते हुए वो भी काया के पास पहुँचा. काया के बगल मे बैठ कर उसके बालों पर हाथ फेरते उसे प्यार से देखने लगा.


काया गहरी साँसे लेती अपनी आखें मूंद ली..... "मेरे चुलबुल पांडे, तुम पर तो मैं कब से फिदा हूँ... सल्लू मियाँ आप के हर आक्षन पर हूटिंग करने को दिल चाहता है"


"सल्लू मियाँ... काया ... बेबी मैं हूँ अखिल"........ "मेरे चुलभुल पांडे जी किस पनौती का नाम ले लिया, उसने तो मेरा घर तोड़ दिया है. प्लीज़
इतने अच्छे मोमेंट पर उस गधे का नाम नही लीजिए"


अखिल बालों मे उंगलियाँ फसा कर, बालो पर अपने हाथ फिरा रहा था. काया की बात सुन कर वो ऐसा जला कि उसने अपनी मुट्ठी बंद कर लिया और काया के बाल खींच गया.... "आउच" करती हुई काया उठ कर बैठ गयी और सामने अखिल को बैठा देख कर गुस्से मे आखें गुर्राने लगी......


"तुम फिर यहाँ आ गये. और ये मेरे पास बैठ कर क्या कर रहे थे.... कहीं तुम कुछ ग़लत करने की तो नही सोच रहे थे".


अखिल.... वो चुलबुल पांडे कुछ भी कर सकता है, और मैं तो गधा हूँ ना.


काया.... डॉन'ट से अबाउट माइ हीरो. वो चुलबुल पांडे है, मेरा हीरो, उसे कुछ भी कर ने का हक़ है... उसके बारे मे कोई कॉमेंट नही. बाकी
तुम गधे हो तो मैं क्या कर सकती हूँ...


अखिल, उतरा सा मुँह बनाते..... "ह्म्‍म्म ! ठीक है, सॉरी काया जी आप को परेशान किया, चलता हूँ. आज के बाद आप को डिस्ट्रब नही करूँगा"


काया.... ओके ठीक है जाओ. और जाते-जाते गेट बंद करते जाना.
 
काया अखिल का रोनी सूरत देख कर अंदर से हंस रही थी और उसे थोड़ा बुरा भी लग रहा था, लेकिन फिर भी वो अखिल को एक बार भी नही रोकी. अखिल, काया को पूरी नज़रों से एक बार देखा और मायूसी के साथ अपना धीमा कदम बढ़ा दिया.


अखिल दरवाजे पर ही पहुँचा होगा कि काया के मुँह से तेज दर्द भरी सिसकारी निकली, और वो अपनी कमर पकड़ कर बैठ गयी. अखिल तेज़ी से दौड़ा और परेशान होता पूछने लगा.... "क्या हुआ, क्या हुआ काया. तुम ठीक तो हो ना"


काया तूनकति हुई कहने लगी..... "हुहह तुम जाओ ना. तुम्हे मुझ से थोड़े ना कोई मतलब है. कहा चले जाओ तो चले गये, ये भी नही सोचा कि मैं कितना तड़पती हूँ. तुम कभी मेरे दिल की बात नही समझ सकते. जाओ जाओ एसपी साहब आप जाओ".


"अब मैने क्या कर दिया. खुद ही सब कुछ करती है और उल्टा मुझे ही दोषी ठहराती है"....... काया के अजीब से रवैय्ये पर अपनी प्रतिक्रिया देते अखिल कहने लगा...... "सच ही कहा है लोगों ने लड़कियों को कोई नही समझ सकता. एक तो खुद मुझे चुलबुल पांडे के नाम से चिढ़ा
कर भगा दी, उपर से उल्टा मुझे ही सुना रही हो. मैं कितना तडपा हूँ उसे समझने वाला कोई नही"


काया.... हुहह ! मेरा चुलबुल पांडे तो तुम हे हो. और देखो इस बारे मे दोबारा कॉमेंट किया ना तो बहुत बुरा हो जाएगा....


काया मुस्कुराती हुई अखिल को देखने लगी. काया की नौटंकी पर अखिल भी हँसने लगा..... "सीरियस्ली, मेरे सीने मे जलन हुई थी जब तुमने
किसी और के बारे मे सोच कर मुझे इग्नोर किया. सच कहूँ तो मैं तो टूट ही गया था.


"ओ' साची मे मेरे चुलबुल.... सॉली जी ... लो कान पकड़ी मैं. थोड़ी सी शरारत और तुम्हारा लटका सा मुँह जो देखना था. ओ' अखिल कितने
क्यूट लग रहे थे उस वक़्त".


अखिल.... जाओ पहले रुला देती हो, अपनी शरारत पर खुद हंस लेती हो. मैं इतना तडपा उसका मत सोचना, तकरार पूरा हो गया तो एक बार प्यार भी नही करती.....


अब तक दोनो बिस्तर पर पालती लगाए एक दूसरे के आमने सामने बैठ चुके थे.....


काया.... अच्छा तो बेबी को प्यार चाहिए... वो भी कंपान्सेशन मे... और वो भला प्यार कैसा हो....


अखिल.... थोड़ा टाइट्ली हग कर के एक जोरदार झप्पी दे पप्पी....


काया.... ओफफफ्फ़' ओ बाबू साहेब केतो मचलते से अरमान हैं. बट सॉरी डार्लिंग आज प्यार का मूड ज़रा भी नही है.....


अखिल..... प्लीज़..... बेबी.. सोना... मेरी मिस यूनिवर्स... माइ लवी... प्लीज़ ना. अब इतनी मेहनत से यहाँ तक आया हूँ तो इतना करम कर दो....


काया अपनी बड़ी सी आँखें दिखाती..... "नोप मिस्टर... अब यहाँ से चलते बनो"
 
"नौटंकी कहीं की, तेरी तो"......

. "हीएीएीए... अखिल.... छोड़ो भी.... अखिल... नही ना बाबा"....


दो बार रिक्वेस्ट करने के बाद अखिल तीसरी बार ज़बरदस्ती पर उतर आया.... उसने अपने दोनो पाँव काया की कमर के इर्द-गिर्द फसाते
उसके बालों को हल्का पिछे खींच दिया और अपना चेहरा आगे बढ़ाते हुए उसे चूमने की कोसिस करने लगा....


जिसके विरोध मे काया किल्कारी भरी हँसी हस्ती हुई उसे मना करने लगी. तभी अखिल ने काया के पीठ पर हाथ डाला और ज़ोर से उसे
अपने सीने से चिपका लिया.... हल्का झटके के साथ दोनो के बदन चिपक गये आगे से और काया के मुँह से .... "आअहह" निकल गया.


दोनो की नज़रों से नज़र मिलने लगी. एक दूसरे की आँखों मे देखते दोनो डूबते चले गये. धरकने जैसे खुद-व-खुद तेज होने लगी हो. काया ने
अपने दोनो हाथ से अखिल का ललाट पकड़ी और अपना चेहरा धीरे-धीरे पास लाने लगी.....


अखिल के मज़ाक से खेल शुरू हुआ जो तमन्नाओं के अहसासो तक पहुँच गया. लेकिन अखिल को याद आया वो तो बस एक मज़ाक के तौर
पर उसे चूम रहा था. उसने काया के ललाट को चूमा और ना मे सिर हिलाता उस से दूर होने लगा.


जैसे ही अखिल उस से दूर होने की कोसिस करने लगा, काया ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसने अपने होंठों से धीमी आवाज़ निकाला... "नही जाओ ना".....


पल जैसे ठहरा हो, नज़रों ने जैसे कई अरमान ज़ाहिर किए हो और काया, अखिल के कंधे पर अपना सिर टिकाती उसके गले लग गयी. गर्म साँसे एक दूसरे के गर्दन पे पड़ रही थी. अखिल ने काया के कान के नीचे, धीमे से चूम लिया. हल्की झुनझुनाहट जैसे काया के अंदर गयी
हो..... "इष्ह" करती उसने अखिल को और ज़ोर से पकड़ ली.


अखिल, काया के गर्दन पर होंठ चलाते अपने हाथ उसके पीठ पर फिराने लगा. जब भी अखिल का हाथ उसकी खुली पीठ पर पड़ता एक
अलग ही जलन और तड़प का अहसास होता. दोनो की साँसे गरम और तेज हो चली थी.


अखिल ने काया को खुद से अलग करते उसे बिस्तर पर लिटा दिया. गरम चलती सांसो की आवाज़.... "हुहह"... तेज धड़कनों पर उपर नीचे
होती छाती और मदहोश सी आँखें..... अखिल घायल सा होता उसने अपने हाथ काया के सीने पर फिराते हुए उपर उसके चेहरे पर ले गया.


मदहोशी की वो तेज धड़कने और उखड़ी सी साँसे, काया ने अखिल का हाथ पकड़ा और उसे अपने होंठो से लगा लिया. नज़रों मे झाँकते हुए, अखिल ने काया का चेहरा अपने दोनो हाथों मे थाम लिया. दोनो के चेहरे पर फैली हुई मुस्कुराहट कई अफ़साने बयान कर रहे थे.... प्यार के
इस पल मे दोनो ने अपने होत एक दूसरे के होठों से लगा कर चूमना शुरू कर दिया....


चूमते हुए अखिल ने काया के बालों को आगे से समेट'ते हुए पिछे जाने दिया. नज़रें एक बार फिर दोनो की टकरा गयी... और होठ खुद
-व-खुद चूमने को मचल उठे.
 
हल्का नशा दोनो को छाने लगा था.... चूमते हुए साँसें दोनो की चढ़ने लगी थी, और खून मे उत्तेजना की लहर दौड़ना शुरू हो चुका था....


चूमते हुए अखिल ने एक-एक कर के नाइट ड्रेस के सारे बटन खोल दिए... काया अपनी पीठ थोड़ा उपर की और ड्रेस बदन से अलग हो गया.... लबों से लब ऐसे मिले थे कि साँसें उखड़ी सी हो गयी, पर चूमना किसी ने नही छोड़ा. जब सांस बिल्कुल भी नही बची तो हान्फते हुए
एक दूसरे के होठ को छोड़ा.


अभी तेज साँसे धीमी भी नही हुई थी कि, तेज साँसों की गर्मी काया को अपनी गर्दन पर महसूस होने लगी. अखिल अपने होंठ काया की गारदन पर चलाने लगा. काया आँखे खोल कर एक बार देखी और फिर अपनी आँखों को मूंद कर काम के मधुर एहस्सास मे डूब गयी...

अखिल लगातार गर्दन से सीने तक अपने होंठों का स्पर्श देते उसे चूमने लगा. काया, अखिल के बालों पर हाथ फेरती अपने होंठो को दाँतों तले दबा कर हौले-हौले मादक सिसकारियाँ भरने लगी.


अखिल, काया के बदन की खुसबु लेते हुए नीचे कमर तक आया और अपने होंठों से नाभि को स्पर्श करते उपर की ओर बढ़ा. काया की
साँसे बेचैन हो गयी. होंठ को दांतो तले दबाए.... "इस्शह, अखिल्ल्ल...... आइ लव यू बेबी"....


अखिल बिना कुछ बोले उपर तक आया और फिर से होठों से होंठ लगा दिया. काया भी अखिल का साथ देती उसके होंठों को चूमने लगी. दोनो बेसूध हो कर एक दूसरे के होंठ को चूम रहे थे, जीभ से जीभ टकरा रहे थे और दोनो डूब चुके थे होतों के रस्पान मे. अखिल, काया के
होंठो को छोड़ कर चूमते हुए उसके गर्दन तक होंठो को लेकर आया और गर्दन से छाती तक....


अखिल थोड़ा उपर उठा कर तेज चलती सांसो पर उपर नीचे होती छातियों को देखा, और प्यार से अपने हाथों की हल्का स्पर्श किया. छूते ही
जैसे काया का बदन जैसे मचला हो, तेज साँसे खींचती उसने अपना सीना थोड़ा उपर उठाया और छोड़ती सांसो के साथ नीचे बिस्तर पर.


अखिल, काया के सीने पर अपने हाथ बाएँ से दाएँ और दाएँ से बाएँ फिराने लगा.... अंदर एक मस्ती की सिहरन दौड़ गयी काया के तन बदन
मे, और वो हल्की मचलती ... सांसो से भी धीमी आवाज़ मे ...."इष्ह... आहह" की सिसकारियाँ लेने लगी.....


अखिल प्यार से अपने हाथ उसके वक्षों की गोलाईयो पर फिराने लगा.... हल्के छुने से मस्ती की सिहरन के दाने काया के बदन पर उठ रहे थे, काया पूरी उत्तेजना मे डूब चुकी थी.... अखिल के अंदर भी काफ़ी हलचल सी मची हुई थी.... धीर-धीरे हाथ फिराते उसने उभारों को हौले-हौले दबाने लगा....


अपने बदन को मचलाती काया सिसकारियाँ लेती हुई.... अपने जीवन की पहली काम-रीति मे खोती चली गयी... आँखें अब ऐसी बोझिल हुई
की खुलने का नाम ही नही ले रही थी... और मधुर मिलन की प्यास धीरे-धीरे बढ़'ती ही जा रही थी.
 
अखिल होंठो को स्तन से लगाते हुए अब उसे लगातार बड़े प्यार से चूस रहा था और एक हाथ को नीचे ले जाकर उसके कमर के पास फिराने लगा.....


उंगलियाँ सरकती हुई पैंटी के अंदर जाने लगी और काया को हल्की गुदगदी सी होने लगी.... धीरे-धीरे हाथ अंदर और अंदर की ओर गया.... योनि के पास हाथ पहुँचते ही हल्की गर्मी सी महसूस हुई... काम-उत्तेजना की तपन और काया की योनि पूरी तरह जैसे मस्ती की रस फुहार छोड़ रही थी.


जैसे ही हाथ का पहला स्पर्श योनि पर हुआ, काया छटपटा उठी, लंबी सी सांस लेती उपर उठी और छोड़ती हुई नीचे आई... अखिल भी स्तनों
का रस-पान करने के बाद अपने होंठो को उसके बदन पर फिराते हुए धीरे-धीरे नीचे ले आया....


काया लगातार सिसकती हुई बस अपने हाथों से चादर को भींच रही थी और बदन को उपर नीचे लहरा कर इस पल का आनंद उठा रही थी.... कमर के दोनो ओर हाथ रख कर अखिल ने उसकी पैंटी को धीरे-धीरे नीचे सरकाना शुरू कर दिया... हर एक स्टेप पर जब पैंटी नीचे
आ रहा था और खुली योनि दिखने लगी थी, अखिल की आँखों मे वासना की अजीब सी चमक तैर गयी...


स्लो मोशन मे पैंटी को उतारने के बाद, अखिल ने धीरे से काया की योनि पर अपना पूरा हाथ फिरा दिया.... अहह क्या अहसास था दोनो के लिए.... सब कुछ भूल कर दोनो बस अब मस्ती मे डूब चुके थे....


उत्तेजना मे जल रही योनि जब नगन हुई और हल्की तन्ड़ी हवा का जब उसपर एहस्सास हुआ तो काया का बदन सिहर उठा .... काम की
आग को और भड़काते हुए ... अखिल ने तलवो से चूमना शुरू किया... अपने होठ धीरे धीरे उपर करता जांघों तक लाया....


गोरी चिकनी जांघों पर जैसे विराम लग गया हो... अपने होठ और जीभ जांघों पर फिराते हुए अपने नाक भी रगड़ने लगा... काया की योनि के
अंदर तो जैसे आग लगी हो .... उसे अपने अंदर काफ़ी बेचैनी और अजीब ही प्यास महसूस होने लगा... उत्तेजना ऐसी बढ़ी थी कि अब और
बर्दास्त कर पाना मुस्किल था....

अपने बेड पर मचलती काया, अपने हाथो से बिस्तर को ज़ोर-ज़ोर से बस भिंचे ही जा रही थी..... "आहह.... इसस्स्शह...... अखिल..... बेबी,
अब बर्दास्त नही हो रहा.... इष्ह"


काया मचलती हुई अब तो और तेज-तेज सिसकारियाँ लेने लगी थी... अंदर की आग अब बिल्कुल संभाल नही पा रही थी...

अखिल, काया की जांघों को छोड़ अब ... अपनी नाक को योनि के पास लाया, तेज साँसे लेता जैसे उसने खुसबु लिया हो....

अखिल "आअहह" करता बड़ी तेज़ी से अपना नाक और होंठ योनि पर फिराने लगा....
 
अखिल ने योनि को पूरा मुँह मे भरे अपना मुँह खोला और हल्का दाँतों को गढ़ाता उसे धीरे-धीरे बंद करने लगा..... "उफफफफफफफफफफफ्फ़... उम्म्म्ममममम.... आहह... अखिल्ल्ल्ल". तेज और लंबी सिसकारी लेती हुई काया अखिल के सिर को अपनी
जाँघो से जकड ली.... और उसके चेहरे को अपनी योनि पर दबाने लगी.


बदहाल से साँसे हो चुकी थी. पसीने से दोनो का बदन पूरा भींग चुका था.... अखिल से भी अब रुका नही जा रहा था... नीचे पैंट मे उसके भी
काफ़ी हलचल सी हो रही थी.... अखिल बड़ी तेज़ी से अपने कपड़े उतारता दोनो पाँव के बीच मे आ गया...


काया की कमर के नीचे तकिये लगा कर अखिल दोनो पाँव के बीच आ गया. अखिल ने योनि पर एक अपना हाथ फिराया फिर लिंग को योनि के लिप से लगा कर हल्का दबाव डाला और उसे धीरे-धीरे उपर-नीचे रब करने लगा....

काया अपने सिर झटकती..... "ऊऊफफफफफफ्फ़ बायययी.... आहह..... मैं जल रही हूँ..... इस्शह"


काया दोनो हाथों मे चादर को भिंचे अखिल की आँखों मे देखने लगी. अपने होंठो को दाँतों तले दबा कर मानो नज़रों से कह रही हो.... "प्लीज़
अब और मत तडपाओ"... अखिल भी तो जल रहा था, उस से भी कहाँ रुका जा रहा था.... रब करते हुए उसने पहला धक्का दिया....


अपने होंठो को दाँतों तले दबा कर काया ने इस पहले धक्के को झेला ... दर्द की एक धीमी "आअहह" निकली थी पर मस्ती के आगे वो अंदर
ही सिमट कर रह गयी.... दो टीन धक्कों तक उसे हल्के-हल्के दर्द का अनुभव होता रहा.

लेकिन उत्तेजना इतनी चरम पर थी कि योनि से कुछ हे देर मे जैसे रस वर्षा शुरू हो गयी हो. काया का बदन जैसे कांप कर अकड गया हो. एक लंबी सी "आहह" उसके मुँह से निकली हो, और रोम-रोम मे मस्ती दौड़ गया.


मस्ती ऐसी कि काया की कमर खुद-व-खुद हिलने लगी. काया अपनी कमर गोल गोल घुमाती.... हर धक्कों पर.... "अहह... इस्शह" करती
तेज-तेज सिसकारियाँ ले रही थी. अखिल भी मस्ती मे आता, उसे उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया.


काया, अखिल के कंधों पर हाथ रखती अपनी कमर उपर नीचे करने लगी. अखिल भी काया के सीने मे अपना मुँह घुसाए तेज-तेज धक्के मारने लगा. दोनो के बदन पसीने मे डूबे चमक रहे थे. सिसकारियों की आवाज़ जैसे उस कमरे मे गूँज रही हो..... "उफफफफफफ्फ़... आअहह..... ऊओह.... उम्म्म्मम.... आअहह"


दोनो के कमर ने जैसे एक साथ रफ़्तार पकड़ी हो. धक्कों की रफ़्तार बढ़ती ही चली गयी थी. हर धक्कों मे ऐसा आनंद, उफफफफफ्फ़ दोनो के बदन बिल्कुल मचल रहे थे. कभी ख़तम ना हो ये पल ऐसा लग रहा था. और फिर दोनो एक चरम पर पहुँचे....


जैसे बदन ने बदन को जकड लिया हो. अखिल ने इतने तेज-तेज धक्के मारने शुरू किए कि काया अपने अकड्ते बदन के साथ अपने होंठो
से अखिल के कंधे को काटने लगी, अपने नाख़ून से उसके पीठ को ज़ोर से भींचा ली और हाँफती हुई निढाल बिस्तर पर लेट गयी.
 
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