Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 3 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

11 बाप रे बाप

नाश्ते के बाद सोनिया एक नॉवल ले कर पूल के पास आराम कुर्सी पर पाँव लंबे कर के लेट गयी। उसका विचलित मन कहाँ उसे नॉवल पढ़ने देता ? वो तो आने वाले मजे की उत्सुकता में हिलोरें ले रहा था। कल्पन में उड़ती सोनिया को अचानक एक मर्दाना आवाज ने चौंका कर यथार्थ के धरातल पर उतार दिया।

आज बहुत चहक रही हो !” आवाज़ उसके डैडी मिस्टर शर्मा की थी।

वाकई ? आप भी बड़े स्मार्ट लग रहे हैं सामने कुर्सी पर बैठते अपने डैडी से फ़िल्मी अंदाज में बोली।

मिस्टर शर्मा ऐसे मुस्कुरा रहे थे, जैसे हर बाप जो अपनी बेटी को बड़ा होते देखता है, मुस्कुराता है। उन्हें लग रहा था कि बिल्कुल अपनी माँ जैसी सुंदर है। वे नहीं जानते थे कि माँ से उसे सुंदरता ही नहीं, सैक्स की प्रबल भूख भी वरदान में मिली थी।

“बेटा अगर तुम भी हमारे साथ चलती तो जय का हौसला और बढ़ जाता ?”

और कोई दिन होता तो सोनिया जवाँ छोरो को खेलते देखने के लिए फट से राजी हो जाती।

“आज नहीं डैडी। मैं कुछ आराम करना चाहती हूं।”

*जैसे तुम्हारी मर्जी बेटा।” मिस्टर शर्मा कुछ सालों से सोनिया के जवाँ जिस्म को उम्र के साथ निखरते देख रहे थे। देखें क्यों ना ? उसके परिपक्व होते स्त्रियांगों की मर्यादा को उसका लिबास ठीक से ढक भी नहीं पाता था। आज भी ऐसा ही कुछ पहन रखा था। फटी तंग जीन्स की चड्ढी जिससे उसके नितंबों की झलक दिखती थी। अंदर से पैन्टी नदारद। मिस्टर शर्मा में भी गबरू मर्द की प्रकृतिक सैक्स भवना रखते थे। इस आकर्षक नजारे से उनका दिल क्यों न मचले। लगे गिद्ध निगहें बेटी के शबाब पर फेरने। टी-शर्ट लो-कट की थी - यौवना के नारन्गी जैसे पुख्ता स्तनों का उभार साफ़ दिखता था। मुए निप्पल ऐसे कड़क रहते थे कि दो बेरों की तरह टी-शर्ट के कपड़े के नीचे उभार दे कर उन्हें और तर्पा रहे थे। मिष्टर शर्मा चाहत की ठंडी आह भर के अपनी जवाँ सेक्सी बेटी को खुल्लम-खुल्ला घूरते जा रहे थे। |
 
सोनिया ने ऊपर देखा तो अपने डैडी की नीयत को तुरन्त भाँप लिया। आदतन मर्द की निगाह पड़ते ही गोरि-गोरी जांघे खुद-ब-खुद फैल कर पसर गयीं।

पैंटी न होने का मिस्टर शर्मा का शक यकीन में बदल गया। उनकी निगाहें पेड़ पर जीन्स की हर सल्वट को नोट कर रहीं थीं। किस तरह जीन्स का कपड़ा चूत के झोलों से चिपका हुआ चूत को तराश रहा था। जीन्स पर एक गीले धब्बे से ही उनकी अनुभवी निगाहें चूत की आकृति का अंदाज लगा सकती थीं।

मिस्टर शर्मा ने खुद के लन्ड मे हलचल को महसूस कर थूक निगली। “हराम की औलाद बाप को ही डोरे डालती है!”

दोनो की नजरें मिलीं पर सोनिया ने दो पल में नजरें झुका कर अपने डैडी के लन्ड मे होती हलचल को भाँप लिया। चौंकाने वाली स्पीड से तना जा रहा था डैडी का बम्बू जैसे पैंट को चीर कर बाहर आ जाएगा। अपने डैडी को कुर्सी पर परेशानी से खिसकता देख बोलीः । । “सब ठीक तो है ना डैडी ?”

उसकी मुस्कान ने मिस्टर शर्मा के सामने मामला साफ़ कर दिया। वो वही मुस्कान थी जो वे अनगिनत बार अपनी पत्नी के कामुक होंठों पर देख चुके
थे चुदाई के पहले वाली मुस्कान !
 
12 और चाभी खो जाए

*आन नहीं बेटा! तुमहारी मम्मी मेरा इन्तजार करती होंगी। मुझे अब चलना चाहिये।” मिस्टर शर्म वहां से नौ-दो-ग्यारह हो गये। इससे पहले कि कोई उनके तने लन्ड को देख लेता। | मर्दो की सैक्स इन्द्रियों को जागृइत करने की अपनी शक्ती को पा कर वो बड़ी खुश थी। उसके सैक्सी जाँ जिस्म की आग मर्दो को मोम की तरह पिघला देती थी। खासकर अगर डैडी को भी उसने उत्तेजित कर के उसने साबित कर दिया था कि अब वो बच्ची नहीं थी। ये भी साबित हो चुका था कि डैडी उस पर ऐसे ही आकर्षित हो रहे थे जैसे की मम्मी पर होने चाहिये।

पति दीपक के जाने के बाद टीना ने गृइहिंइयों की तरह अपने घर की सफ़ाई करनी चालु कर दी। पूरा घर बिखरा पड़ा था। पहले तो हर रूम से धोने के कपड़े उठाने थे। सोनिया का कमरा तो एकदम चमाचम साफ़ था। पर जय का कमरा तो हमेशा ही गन्दा रहता है। मिसेज शर्म बेधड़क कमरे का दर्वाजा खोल कर अंदर घुस गयीं। अन्दर जो नजारा उनकी आँखों ने देखा, उससे उनके पैर जमीन पर गड़ गये।

उनका बेटा जय बिस्तर पर अधनंगा लेटा हुआ था और हाथ मे लन्ड पकड़ कर पूरे जोर से लगा हुआ था मुठ मारने । मिसेज शर्मा ने आश्चर्य में गहरी साँस ली। अचरज उन्हें अपने बेटे के मुठ मारने पर नहीं हुआ। हैरान तो थीं वे अपने बेटे के लन्ड के XXL साईज पर। इसका लन्ड इतना बड़ा कब हुआ! मिसेज शर्मा को हमेशा से बड़े और मोटे लन्ड पर मरती थीं और जय का लन्ड तो उसके देखे बड़े-बड़े महारथी लन्ड - स्वामियों की टक्कर का था! पति के लन्ड से क्या कम होगा। और देखने मे तो कहीं मोटा लगता है। जय ने मुंह दूसरी ओर फेरा हुआ था और वो हस्तमैथुन मैण इतना लीन थे कि उसने ना तो मम्मी को अन्दर आते देखा न ही आहट सुनी।

मिसेज शर्मा की आँखें अभी भी अपने बेटे के विशाल फड़कते लन्ड पर गड़ी हुई थीं। मारे रोमाण्च के दिल धक-धक बोल रहा था। जय को अपनी मुट्ठी से अपने तने हुए काले लन्ड की चमड़ी को जानवरों सा ऊपर-नीचे रगड़ता देख मिसेज शर्मा की चूत सैक्स की चाह में रिसने लगी। जय ने पलकें भींच रखीं थी और कमर को बिस्तर से उठा-पटक कर लन्ड को बेतहाशा मुट्ठी मे घुसाता और निकलाता जा रहा था।

मिसेज़ शर्मा असमंजस में थीं कि एक साधारण माँ
की तरह चुपचाप कमरा छोड़ दें या फिर चूत में उमड़ती वासना के सामने आत्मसमर्पण कर दें। | 4 रब्बा! कैसी आग लगायी तू ने चूत में !” सोच कर टीना जी ने पीछे दरवाजा लगा दिया।
 
हे भगवान! पापी चूत का सवाल है !” मिसेज शर्मा ने दरवाजे की चाभी घुमाई और जय के लन्ड से नजर हटाए बगैर धीमे से बिस्तर के करीब आयीं। बेटे जय का पुश्तैनी लन्ड तो बाप की तरह बड़ा था ही। मुठ मारते हुए वो लोहे सा सख्त और काला हो गया था जिसे देख

देख कर मिसेज शर्मा की चूत में सैक्स - इच्छा की उमड़ती लहरें उन्हें गुदगुदा रहीं थीं।

टीना जी खुद-ब-खुद अपनी छरहरी जाँघों से अपनी चूत को भींच -भींच कर दबाने लगीं। कामोत्तेजित हो जाने पर भी किसी लन्ड के चूत में न होने के समय वो अक्सर ऐसा ही करती थीं। उनका एक हाथ खुद-ब-खुद पैजामे के अन्दर सरक कर पैंटी के गीले कपड़े से चूत को मसलने लगा। मुठ मारते अपने बेटे से उन्होंने नशीली अवाज़ में फुसफुसा कर कहा:
* जय !”

अपनी माँ की आवाज सुन कर जय लपक कर बिस्तर पर सीधा बैठ गया।
“अह! अ अ आ मम्मी! आप यहाँ कब आयीं!” मिमियाते हुए बोला। झेप से उसके कान लाल हो रहे थे। आश्चर्यचकित होने की बारी अब जय की थी। मम्मी के अचानक आने से अधिक अचरज उसे ये देख कर हो रहा था कि मम्मी का एक हाथ पैजामे के अन्दर चूत को मसल रहा है !!!

अपने बेटे के चेहरे पे हवाईयाँ उरते देख टीना जी मुस्करा पड़ीं।

“अरे बेटा इसमें शरम कैसी ? जो तुम कर रहे हो वो तो बस कुदरत की बात है। सब करते हैं!” आगे बढ़ कर मिसेज़ टीना बोलीं।
 
जय वहाँ खड़ा ये नहीं तय कर पा रहा था कि अपने गुप्तांगों को ढके या नहीं। आखिर उसकी माँ उसके ही सामने खड़े उसके लन्ड को ऐसे ताक रही थी जैसे बच्चा लॉलीपॉप को। और तो और, साथ- साथ अपने पेड़ पर हाथों से मसल भी रही थी। जय को विश्वास नहीं हो रहा था! उसकी मम्मी उससे तो फुट की दूरी पर खड़ी थी।

जय का लन्ड सपेरे की बीन की तरह मिसेज़ टीना की आँखों की पुतलीयों को अपनी सम्मोहक ताल पर नचा रहा था। कुच देर मूर्खता से उसका चेहरा ताकने के बाद जय का ध्यान माँ के जिस्म की तरफ़ हुआ।

टीना जी के गोरे-चिट्टे बदन पर पीला सलवार सूट कमाल का सैक्सी लग रहा था। केवल पैंसिल स्टैप ही थे गोरी-चिकनी छाती पर। इस उम्र में भी ये पतली, लचीली कमर। उस पर सूट की टाईट फ़िटिंग। हालंकी सूट के घेर ने नितम्बों के उभार को छिपा लिया था पर उनके परिपक्व स्तनों का उभार साफ़ दिखता था। ये स्तन दो शिशुओं को दूध पिला चुके थे पर मजाल है कि जरा भी विकार या लटकाव हो। मातृ-गौरव से सदैव गगनोन्मुख रहते थे। क्या लोच और पुख्तापन था उनमें! उम्र के साथ खरबूजे जितने बड़े और मीठे लगने लगे थे! आषाढ़ के मीठे पके जामुनों जैसे निप्पल सूट के पतले कपड़े के नीचे से मानों चूसने को आमट्रित करते थे। टीना जी की साँसें तेज हो चली थीं - उठती-गिरती छाती उनके स्तनों को जय की आँखों के सामने नचा रही थी।

सिहरते हुए मिसेज शर्मा ने आगे बढ़ कर उनके और जय के बीच की बाकी बची दो फुट की दूरी भी समाप्त कर दी। उन्हें पास आते देख जय के कंठ में एक दबी गट-गट सी हुई। मम्मी इतनी करीब थीं कि वो उनके जिस्म की गर्माहट को महसूस कर पा रहा था। मिसेज टीना ने चेहरा जय के चेहरे पर झुका कर नजरें चार कीं। नजरों में बात हुई और टीना जी ने झिझकते हुए अपना एक हाथ दोनों के कंपकंपाते बदनों के दर्मयान नीचे की ओर बढ़ाया। टीना जी की अधीर उंगलियों का ममता भरा स्पर्श अपने लन्ड पर पा कर जय एक बार तो वासना से कांप उठा। फिर अचानक उसके चेहरे पर चिटा के बादल मंडरा गए।

“मम्मी! कोई आ जाएगा।” जय फुसफुसाया। उसे डर के मारे हाथ-पाँव नहीं सूझ रहा था।

“फ़िक्र मत कर! दरवाजा बंद है!” मिसेज टीना ने अपने बेटे के लंबे, काले लन्ड पर मुट्ठी कसते हुए कहा।

“तेरे डैडी बाजार गए हैं। सोनिया स्विमिंग पूल में है। हमें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं। फिर भी तू सब काम खामोशी से करना। ठीक ?” टीना जी ने नागिन सा फुकारते हुए कहा।

ऊह्ह! म्म! बिलकुल ठीक मम्मी!” उसने हामी भरी। जय का लन्ड माँ के हाथ में फुदकने लगा।

अः : कैसा लगता है मेरा हाथ अपने काले लन्ड पर मेरे लाल ?” “क्या बात है मम्मी! आपकी गोरी नरम उंगलियों में तो जादू है !”
 
* जय बेटा! मुझे तो इतने बरसों पता भी लनीं चला कब तेरा मुस्टन्डा लन्ड इतना बड़ा हो गया! अपने हाथ से तो कहीं ज्यादा मजा तो मम्मी के प्यारे हाथों में रहा है ना?”

हाँम मम्मी। काश पहले इतना प्यार मिला होता मेरे लन्ड को !”

“माँ के यहाँम देर है, अंधेर नहीं! अब देखना कितना लाड करती हूं बेटे के लन्ड को।” टिना जी जय के मोटे लन्ड पर दौड़ते हुए खून से फड़कती नसों को एकटक देखती जा रहीं थीं।

जय आन्ण्द से कराहा और अपनी मम्मी की चौड़ी कमर को हाथों से जकड़ कर अपनी तरफ़ खींच कर अपने सरिये से सख्त लन्ड को उसकी जाँघों से रगड़ने लगा। टीना जी ने मादा सिंगनी जैसे अपने बेटे की गर्दन पर दाँतों से काटते हाए जाँघों का दबाव लन्ड पर डाला। उमड़ती ममता और सुलगती वासना के विचित्र सम्मिश्रण से भरे भाव में उन्होंने बेटे जय को गर्दन पर चूमा। जय की बाहें माँ की कमर पर और कसती गईं। टीना जी के सुलगते होंठ चुमते - चुमते उसके होंठों तक पहुंचे और उनके - चुंबन से माँ-बेटे के बीच अब औरत मर्द का सैक्स सम्बद्ध प्रस्थापित होने लगा।

दोनों के होंठ स्वाभाविक रूप से खुले और टीना जी की लपकती जीभ बेटे के मुंह घुसी। घुस कर दोनों के मुंह में थूक का आदान-प्रदान हुआ। बड़ी महत्वपूर्ण क्रिया होती है यह। कामोत्तेजना से उत्पन्न हारमॉन थूक के जरिये मादा और नर दोनों को एक दूसरे की कामोत्तेजना का संकेत दे कर दोनों के जननांगों को होने वाली सैक्स क्रीड़ा के लिये और सक्रीय कर देते हैं। जय की जीभ भी माँ के मुंह में लपक लपक कर वो संकेत दे रही थी।

जय के चुंबन में एक कोमलता और अधीरता थी। जिसके विपरीत उसके पति का चुंबन कठोर मर्दाना आग़ोश से भरा होता था। जय की जीभ उसके दांतों पर दौड़ती और मुंह के हर कोने-कोने को छती। टीना जी ने जवाब में अपनी कमर को टमकाते हुए बेटे की जवान देह पर मसली। अपने हाथों से पकड़ कर उसके लन्ड को अपनी जाँघों के बीच में ऐन चूत की पावन दहलीज पर टेक दिया।

वे जानती थीं कि ये पाप की पूजा है और इसका संचालन अधिक अनुभवी होने के कारण उन्हें ही करना होगा। लन्ड पर जकड़ी मुठ्ठी को खोल कर अपने हाथों को जय के कढों पर जड़ा और उसके सीने को अपनी मातृत्व भरी छाती पर दबाया। निचले होंठ को दाँतों तले दबाते हुए तवायफ़ों वाली अदा से म्हा-स्तनों को उसके पसीने से तर सीने पर मसलने लगीं। साथ ही साथ उनकी चूत तने हुए लन्ड को गुदगुदाती हुई ललकार रही थी
 
14 माँ ने सिखाया

दोनों का कामालिंगन कामसूत्र में वर्णित पुरातन शिल्प-कृतियों सा लगता था। जय को अपने पूरे लन्ड की लंबाई पर अपनी मम्मी की गीली पैंटी का स्पर्श महसूस हो रहा था। टीना जी को भी पुत्र के लिंग की ज्वाला का अनुभव अपने जननांगों पर हो रहा था। पूजा के अगले अध्याय का श्री- गणेश करते हुए टीना जी ने कमर को सरकाते हुए बेटे के लन्ड के फूले हुए सख्त लिंग पर अपनी वासना से सरोबर चूत के द्वार को चिपका डाला और धीमे-धीमे हमाम - दस्ते की तरह गोल - गोल रगड़ने लगीं। | टीना जी ने काम- दीक्षा को जारी रखते हुए अपने एक हाथ से जय की गाँड को धकेलते हुए अपनी गर्माती चूत पर उसके लन्ड को और दबाया। दूसरे हाथ को जय की गर्दन के पीछे भींचते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में में घुसा- घुसा कर सड़प-सड़ाप आवाज निकालती हुई रंडीयों जैसे चाटती रहीं।

जय अपनी माता की चूत से टपकते मादा हरमॉनों से सरोबर दवों को अपने लिंग का स्नान करते हुए लौकिक संतोष का अनुभव कर रहा था। उसके लिंग का बल्बनुमा सिरा माता की योनि से रिसते हुए गरम चिपचिपे द्रवों से लबालब हो गया था। जैसे टीना जी लिंग का दूध से स्नान कर रही हो।

“अम्मा तेरी चूत कितनी गीली है! अब रहा नहीं जा रहा! प्लीज चोदने दो ना! सिरफ़ एक बार प्लीज !” जय के सब्र का बांध टूटा जाता था। अपने जवां लन्ड को चूत पर ठकठकाते हुए वो बोला।

“मुए चोद्दे! इतनी जल्दी नहीं !” धीमे स्वर में मिसेज “शर्मा फुसफुसाईं, “औरत की चूत की आग आहिस्ता-आहिस्ता से भड़काना सीख, तभी मरद - औरत दोनों को असली मजा आता है! चल मेरे स्तनों को की प्यास बुझा ।” पूज्य मात ने पुत्र को स्त्री की काम- संतुष्टी की गुप्त कला का ज्ञान दिया, “ जय। मम्मी के निप्पलों को चूस !”

आज्ञाकारी जय ने दोनों हाथों से माता के भरपुर स्तनों को ग्रहं किया और पुत्र- प्रेम की भावन से गोरे नरम माँस को निचोड़ने मरोड़ने लगा।

“आह। ऐसे ही, अब निप्पल्लों को भी निचोड़। स्त्री हम्श पुरुष से निप्पल निचुड़वाना चाहती है! पर बेटा धीरे से। अपनी बेचारी मम्मी को दर्द मत करना।”
 
जिन निप्पलों से बचपन में उसने दूध पिया था, अब उन्हीं को जय अपने पापी हाथों से निचोड़ रहा था। टीना जी ने भी अपना एक हाथ नीचे की ओर सरका कर अपनी गोरी-गोरी उंगलियों को बेटे के काले लन्ड पर फेरा। जय का लन्ड अब साईज मे दुगुना हो चला था और टीना जी के हाथ में भी नहीं समा पा रहा था। वासना ने लन्ड पर फैल रही नसों को रक्त से लबालब कर दिया था। काले कोबरा नाग जैसा फन उठाये था और टीना जी की गोरी उंगलियों में जब्त। उंगलियों पर लंबे नाखून और लाल रंग की नेलपालिश उनके मन्झे हुए हाथ जय के लन्ड के सिरे को अपनी गीली पन्टी से सटा कार चूत पर रगड़ा रहे थे। चूत के टीके-नुमा आकार पर ऊपर से नीचे वे लन्ड को मसल रहीं थीं। अपनी पैन्टी पर रगड़-रगड़ कर अपने ही पुत्र के तनतनाते लन्ड से हस्तमैथुन करवाने और उससे निप्पल निचुड़वाने का ये दृश्य उनके मन को रोमांचित कर रहा था। |

सोच रहीं थीं कि मन में इतना रोमांच आखिर क्यों है ? हमारे समाज ने कुछ रिश्तों को कड़ी हदों में बाम्ध कर कुछ हदें तय कर दी हैं। पर प्राक्रितिक प्रेम इन हदों को नहीं पहचानता। प्रकृति के नियम तो हर प्राणी को दुसरे प्राणी पर, जब तक दोनों की मर्जी हो, हर तरह से प्रेम व्यक्त करने को बाध्य करते हैं। माता और पुत्र का दिव्य प्रेम भी समाज की इन हदों से कहीं परे है। मातृ- प्रेम की पराकाष्ठा ही टीना जी को यह रोमांच दे रही थी। अपने ही बेटे को सैक्स कला का पाठ सिखते हुए बेटे से जिस्म की भूख मिटाने में उसे कुटिल और औरप्रत्याशित मज़ा आ रहा था। योनि में झुम झुम के सैक्स -हॉरमॉन बह रहे थे। उसे अचानक याद आया कि जय के जिस्म के लिये वासना पहले भि उसमें एक बार जागी थी। काम के ज्वर ने उसके बदन के रोम-रोम को तपा कर रख दिया था पर तब उसने उसे हवाई कल्पना कह के भुला दिया था।

स्विमिंग पूल में छलांग लगाते समय जय का स्विमिंग-ट्रक सरक कर नीचे गिर पड़ा था। उसकी जाँघों और गाँड की फड़कती माँसपेशियों को देख कर उसने क्या लुफ्त उठाया था। और जब वो हड़बड़ाया सा दुबकियाँ लगा कर अपना ट्रन्क पूल में खोजने लगा तो उसकी ट्रन्क लेकर तैरती हुई उसके पास पहुंची थी वो। फिर अचानक ही पानी कि सतह पर वो उभरा था तो उसके गरम लन्ड ने उसकी ठण्डी देह पर स्पर्ष से एक करन्ट सा कौन्ध गया था। टीना जी के भीतर के सैक्स पशु ने उन्हें लपक कर लन्ड को दबोचने को उकसाया तो बहुत पर जैसे तैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया था। पर मर्यादा से ज्यादा देर वहीं खड़े रह कर जय के लन्ड को अपनी जाँघों पर मसलने दिया था। अब मालूम होता था कि जय तभी से उनके जिस्म का भूखा था। अपने ही बेटे को इस तरह अपने कामुक बदन पर आकर्षित कर पाने से टीना जी
और भी कामोत्तेजित हो रहीं थीं।
 
15 माता-पुत्र मिलन

जय के हाथ अब मिसेज शर्मा के नितंबों पर थे। उनके स्तनों को के बाद अब उनकी छिकनी गोल गाँड के माँस को निचोड़ कर दबाने का मजा वो ले रहा था। उसका लन्ड टिन्ना जी की पैन्टी लिप्त चूत पर और भी टाईट रगड़ रहा था। अपनी माँ की मटकेदार गाँड को हाथों में भर कर अपने तने लन्ड को उनकी चूत पर ठेलते हुए उसके जिस्म में जानवरों सी सैक्सोत्तेजना जाग रहीं थी।

गाँड़ पर जय के हाथ पाकर टीना जी के मुँह से दबी सी चीख निकल गई और वो पीछे बिस्तर कि तरफ़ जय को अपनी तरफ़ खेंचते हुए ले गयीं। जैसे ही टीना जी के तलुवे बिस्तर के किनारे को छुए तो वे पीठ के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और जय को अपनी देह के करीब झुकाते हुए नीचे को खींच दिया। औरत जैसे ही ताकतवर पुरुष को जांगों के बीच पाती है तो खुद-ब-खुद टांगें खोल देती है। लिहाजा बेटे के लिये टीना जी ने मचलते हुए जाँघों को चौड़ा कर चूत के कपाट का ताला जय के दनदनाते लन्ड के लिये खोल दिया।

जय ने गर्व से अपने विशाल लन्ड के साये में अपनी माँ के मचलते जिस्म को, जिसे आज उसके लन्ड ने फ़तह किया था, एक नज़र देखा। उनका सल्वार सूट कमर पर इकट्ठा हुआ पड़ा था, गोरे-गोरे मम्मे उसके निचोड़ने से लाल होकर दो रसीले खरबूजों की तरह बाहर झांक रहे थे। अपने सर को माँम की छुहाति पर झुका कर निप्पलों को चूसता हुआ मातृ प्रेम का रसास्वादन करने लगा। । “ओह ! जय चूस ले मम्मी के स्तन। मुझे निहाल कर दे मेरे लाल ।” टीना जी ने जंगली लहजे में अपने कुल्हों को बेटे के घोड़े जैसे लन्ड पर रगड़ते हुए कहा।

जय का लन्ड ने साँप की तरह अपने बिल की टोह खुद ही ले रहा था। और इस बार लन्ड से चूत के अलौकिक स्पर्श के दैवी आनन्द ने कामोत्तेजित जय के सब्र का बाँध ही तोड़ दिया। वो अपनी माँम की पैन्टी से लिपटी चूत पर दे लगा मारने अपना लन्ड। टीना जी ने पैन्टी के महीण सैटिन के कपड़े से अपनी चूत के चोचले पर अपने बेटे के शक्तिशाली लन्ड के प्रहारों को पड़ते हुए महसुस्स किया।

“मादरचोद ने बैल जैसा ताकत्वार लन्ड पाया है! पैन्टी को चीर कर जैसे अभी चूत में घुसा जाता है !” इस बेहयाई से भरे खयाल ने उसके सब्र के बाँध को भी तोड़ दिया।
“ऊह्ह जय !!” अपनी चूत की गहरयीं मे अब मस्ती की लहरें उछलती महसूस कर रही थी।
“जय बेटे! हे ईश्वर! मैं तो ..! जय! मम्मी अब झड़ रही है !”
 
माँ के कुल्हे उचक उचक कर जय के लन्ड को टक्कर दे रहे थे। जैसे जैसे उसका जिस्म जय के नीचे मचल रहा था, वैसे वैसे उसका मुँह मस्ती एक निःशब्द चीख में खुला हुआ था। जय ने और जोर से अपने लन्ड को टीना जी की फुदकती चूत पर दनादन मारा। उसके टट्टे वासनना की आग में उबलते वीर्या से लबालब को कर ऐंथ रहे थे। उसने आज तक किसी स्त्री को सैक्स के चरम आनन्द (ऑरगैसम) में मचलते हुए नहीं देखा था। और उसके किशोर मन को इस बात ने और भी चौंका दिया था कि बिना लन्ड के चूत में डाले ही कैसे वो झर कर ऑरगैसम प्राप्त चुकी थी।

| और ऑरगैसम भी क्या धड़ाके का। कमाल का पन्च था इस ऑरगैसम में। सच कहते हैं। सैक्स - संतुष्टी शारीरिक से अधिक एक मानसिक स्तिथी है। सैक्स - सतुष्टी प कर वो कंपकंपा गई थी और आंखें मूंछ कर निर्जीव सी वहीं लेट गयी थी। बिस्तर पर अपने ही बेटे के सामने नन्गी पसरी हुई थी - उसका लन्ड अब भी उसकी चूत से सटा हुआ और गाँड आधी बिस्तर से बाहर। अपने जिस्म पर आच्छादित हौली-हौली कोमल अनुभुतियों से ओत-प्रोत हो कर उसने जय के हाथ अपनी कमर को जकड़ते महसूस किये। वो उसकी गीली पैन्टी को उसकी कंपकंपाती जाँघों के ऊपर से सरका रहा था। सैक्स - संतुष्टी मिल जाने के बाद उसे बाकायदा बेटे से सैक्स क्रीड़ा कर के इस रिश्ते की आखिरि हद को तोड़ने में अब एक झिझक लग रही थी।

बेटे के लन्ड से हस्तमैथुन करना एक बात थी, और पुर्णतयः सैक्स सम्बंध स्थापित करना दूसरी बात। । बहरहाल, जय ने मिसेज शर्मा के सूट को उनके सिर के ऊपर निकाल कर उतार डाला था। अब उनका पूरी तरह से नण्गा, हाँफ़ता जिस्म अपने बेटे के सामने पड़ा था। उसका लन्ड फूँकारता हुआ पाप का डंक मारने को बेकरार हो रहा था। माँ के कमजोर से विरोध को नजरअंदाज कर के जय उनकी खुली हुई जाँघों के बीच लपका और हाथों से पकड़ कर अपने लन्ड के लाल बल्बनुमा सिरे को कोख़ के द्वार पर टेक दिया। |

उसी कोख़ पर जिससे उसने शिशु रूप में जनम लिया था। और आज वो पुरुष रूप में अपनी जन्मजाता कोख में वापस घुसने आया था। क्या वो घुस कर अपना जीवन -बीज वीर्य उस कोख में उडेलेगा ? स्वयं के जनन और इस सैक्स क्रिया के बीच के अलौकिक सम्बंध के बारे में इस विचार ने उसे सर से पाँव तक सिहरा दिया।

एक पल उसने घने झांटों के बीच से झांकती लालिमा से भरी चूत को देखा। अब भी जैसे कांपती सी उसके आधे गड़े फूले हुए सुपाड़े को चपड़-चपड़ चूम चूम कर चूसती हुई अपने अन्दर लेना चाह रही हो।
 
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