Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना - Page 10 - SexBaba
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Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना

इस बार टीना जी को उसकी बात समझ में आ गयी। उन्हें थोड़ी हैरानी अवश्य हो रही थी, कि उनका बेटा, उन्हीं के मुख से, सैक्स के विषय में उनके अन्तर्मन की सर्वाधिक गोपनीय कल्पनाओं का विस्तृत ब्यौरा सुनाने की इच्छा रखता था। पर अधिक हैरानी उन्हें इस बात की थी, कि वो भी उससे सब कुछ कह डालने के लिये उतावली थीं!
“मममममम! हाँ जय! मम्मी को ऐसे बड़ा मज़ा आता है! मेरी चूत को मसल , मेरे लाल ! अपनी उंगलियों से मम्मी की चूत को चोद। क्या तू मेरी चूत को अपनी उंगलियों पर कसता हुआ महसूस कर रहा है, मेरे बच्चे ?”, टीना जी ने दाँत भींचते हुए पूछा। ।

“ओहहह, भोंसड़चोद, हाँ मम्मी!”, जय कराहा, “आपकी चूत ऐसी टाइट और गरमागरम है, अब तो जी करता है कि बस अन्दर घुसेड़े अपना लन्ड और चोद डालें फिर एक बार !”

“चोद लेना, मम्मी की चूत कहाँ भगती है, उसकी माँ ने जय के सर की ओर बढ़ते हुए उत्तर दिया, “मैं चाहती हूं कि चोदने के पहले तू मेरी चूत को चाटे। बोल बेटा, चाटेगाअ ना अपनी प्यारी मम्मी की चूत ?”

“क्यों नहीं मम्मी!”, जय ने गरमजोशी से उत्तर दिया। टीना जी ने प्रसन्नता से नोट किया कि उनके इस वार्तालाप के उपरांत उनके पुत्र के लिंग की मोटायी में अच्छी वृद्धि हो गयी थी। पुत्र - लिंग को हाथ में लेकर उन्होंने उसे दुलार-भरे ढंग से ऊपर और नीचे रगड़ा। । जय की आँखों में आँखें डाल कर उन्होंने अपना अश्लील वार्तालाप जारी रखा।

चल फिर, मैं चाहती हूँ कि तू अपनी जीब मम्मी की चूत में घुसेड़े।”, वे नागिन जैसे फुफकारती हुई बोलीं, “जितनी अन्दर घुसती है, घुसेड़ना। घुसेड़कर चूसना। मेरी चूत के चोंचले को भी चूसना पुत्तर! जोर-जोर से चूसते रहना, जब तक मैं तेरे मुँह में झड़ न जाऊँ। तुझे पाल-पोस कर बड़ा किया है, इतना करना तो तेरा फ़र्ज बनता है, है ना जानेमन ?” अपना कथन स्माप्त करते-करते उनकी योनि अब बेसब्री के मार निरंकुश होकर कंपकंपा रही थी।

बिलकुल मम्मी! तेरे दूध का बदला तो जरूर दूंगा। आप कहें तो पूरी रात आपकी गरम और रसीली चूत को चूसता रहूं”, अपनी माँ के अश्लील और बेहया निर्देशों को सुनकर जय की आँखों में उत्साह के दीपक टिमटिमा रहे थे।
 
52 सन्तान सुख

ना! ना! ऐसा न करना मेरे लाल !”, मिसेज शर्मा ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, “मुझे अपने मुंह में झड़ाने के बाद तो रात और बाकी होगी। फिर मैं चाहती हूँ कि तू अपने साड जैसे काले मुस्टन्डे लन्ड को लेकर मेरी चुतिया में ठूष दे, जिताना गहरा खुसता हो, मम्मी की चूत में घुसेड़ना !”, टीना जी ने एक सैकन्ड को रुक कर अपने बेटे के उतावले नेत्रों के भीतर झाँक कर देखा। “फिर मेरे लाल, तू मुझे अच्छी तरह से चोदनाअ! बोल मुन्ने, चोदेगा ना मम्मी की चूत को ? देखें कितना दम है मेरे लौन्डे में, आज तेरा टेस्ट हो जाये, कितनी देर तक चोद सकता है। ठीक बात ?”

इस बात की कल्पना से ही जय का लिंग लम्बी कुलाचे भरने लगा। उसे सुबह अपनी माता की योनि के कसाव और ऊष्मा का स्मरण हुआ। मातृ-देह से संभोग करने की इच्छा उसके मन में अब बहुत प्रबल हो चुकी थी।

“मम्मी, आज तुझे चोदकर दिखा ही दूंगा, कि मैने अपनी माँ की छाती से दूध पिया है!”, वो दम्भी स्वर में, अपने पूर्ण - लम्बवत्त लिंग को माँ के मुख की ओर झुकाता हुआ बोला, “तेरी चूत में इतना वीर्य भर दूंगा, कि मेरा बाप तेरी चूत से हफ़्तों तक वीर्य पियेगा।”, टीना जी कंपकंपायीं, ‘हरामी दीपक तो इतना बेशरम है, कि अगर मैं कहूं तो शायद पी भी जाये अपने ही बेटे का वीर्य अपनी ही पत्नि की चूत से!', ऐसा सोचते हुए उन्होंने अपनी उंगलियों के बीच में उसके लिंग के कठोर तनाव का अनुभव किया।

“आजा मेरे पहलवान ,”, जय की माँ लम्बी साँसें भरती हुई बोलीं, “उतर जा मैदान में और दिखा दे माँ को कि उसके दूध में कितना जोर था !”

जय तुरन्त अपने घुटनों के बल बैठ कर उनकी जाँघों के बीच लपका। टीना जी अपने पुत्र के श्वास को अधिक व्याकुलता और व्यग्रता से चलता हुआ सुन रही थीं। किशोर जय बड़ी आतुरता से अपनी आँखों को माँ की चौड़ी पटी हुई योनि-गुहा के द्वार पर सेक रहा था। टीना जी को इस अश्लील और वासना-लिप्त दृइष्य को देख कर एक दुष्टता भरी चुलबुलाहट अनुभव हो रही थी। जिस प्रकार अपनी सारी लज्जा और मर्यादा को त्याग कर वे अपनी ही कोख से जने पुत्र को अपनी नग्न देह निहारने का अवसर दे रही थीं, वह उनकी कामोत्तेजना में ईंधन का काम कर रहा था। कामुकता उअर पाप भरे अनेक विचार उनके मस्तिष्क में कौंध रहे थे, जो उनके मन को और अधिक उत्कट वासना से भरते जा रहे थे। उन्होंने नीचे झुक अर अपने पुत्र की चिकनी युवा जाँघों के मध्य से निकल कर गगन चूमते विशाल लिंग को देखा और उसे अपनी काम-व्यग्र, क्षुधा - पीड़ीत योनि में आक्रामक वार करते हुए, उनके अपने नन्हे जय को खुद से संभोगरत मुद्रा में उनकी योनि को लिंग द्वारा खींचते-तानते हुए कल्पित किया।
 
जय ने अपनी नाक को माता के खेस जैसे योनि-रोमों पर दबाया और एक लम्बी साँस भरी। मातृ-कस्तूरी की मादक सुगन्ध उसके नथुनों में समा गयी, और उसके मस्तिष्क की दिशा में पाश्विक दुराग्रह के संकेत भेजने लगी। क्षुधा- रंजित मादा-योनि की सुगन्धि तो प्रत्येक नर को आकर्षित करती ही है, पर यदि पाठकगण , आपको कामदेव अपनी माता की योनि सूंघने का सुअवसर प्रदान करें, तो वो अनुभव आपको स्वर्ग सा आनन्द पृथ्वी पर ही दे सकता है। । “सच कहूं मम्मी, आपकी चूत तो बिलकुल बोंसड़दान है! दर्जन कुत्तों से चुदी कुतिया जैसी स्मेल है आपकी ! मन तो करता है की मैं भी इसे कुत्ते जैसा चाटने लगू !”, जय बुदबुदाया और कुंडली मारे हुए नाग जैस अपनी जिह्वा को मुँह से बाहर निकाल कर लाल लिसलिसी योनी की ओर बढ़ा। टीना जी धैर्य नहीं धर पा रही थीं। उनकी कमर काँप रही थी, और उनकि योनि तो यदि कुछ और क्षण क्रिया-वंचित रहती तो जैसे चूर-चूर ही हो जाती।

“रब्बी! ओहहह मेरे भगवान! कितना तड़पा रहा है मुझे मादरचोद! मेरे लाल, चाट मुझे अब ! प्लीज मेरी चूत को चूस! अब नहीं रुका जाता !”, अपने दोनो हाथों से पुत्र के सर को पकड़ कर उन्होंने आग्रह किया, और जय की जिह्वा को अपनी फड़कती, द्रव - लिप्त योनि-माँद में बलपूर्वक ढूंस दिया।

“अमम्म मम्प्फ़म! अँहहममम !”, जैसी ही उसकी माँ की योनि की कोपलें उसपर टकरायीं, उसका मुँह स्वतः ही खुल गया। टीना जी की गोरी-गोरी माँसल जाँघे उसके कानों पर कसी हुई थीं और उसे अपना लाचार बन्दी बनाये हुए थीं। ऐसा बन्दी जो केवल उनकी बहती योनी के प्रचण्ड द्रव - प्रवाह को चाट और चूस सकता था। जय ने सहारे के लिये माता के सुडौल गोलाकार नितम्बों को हाथों में जकड़ा। टीना जी उचक-उचक कर अपने कूल्हों को कसमसाते हुए अपने पुत्र के चूसते मुँह पर दबा रही थीं। इतनी किशोर आयु में भी जय उपेक्षा से अधिक कुशलता क स्राहनीय प्रदर्शन कर रहा था। क्षुधित मुख से अपनी वासना की पात्र माँ की तपती, टपकती योनि को निरन्तर चूसता और चाटता हुआ जय, मजाल है कि एक बार भी साँस लेने के लिये रुका हो।

जय अपने मुँह को अपने जननस्थल में जैसे जैसे घुसेड़-घुसेड़ कर उनके संवेदनशील योनिमाँस को लपड़ - लपड़ करके निपुणता से चाटता हुआ गुदगुदा रहा था, टीना जी तो वैसे ही काम-तृइप्ति के समीप पहुँच गयी थीं। उनका पुत्र उनकी योनि से मुखमैथुन करता हुआ उन्हें अपूर्व आनन्द प्रदान कर रहा था! ‘सदके जाँवा, क्या मुँह पाया है! मुस्टन्डा पहले भी तजुर्बा कर चुका है!', टीना जी ने सोचा, ‘अपने बाप जैसा ही हुनर है। बाप नम्बरी, तो बे बेटा दस नम्बरी !' जय अपनी माँ के सूजे हुए लाल योनि - पटलों को चूस रहा था, पहले दायें फिर बायें, और जब उसकी टटोलती जिह्वा और होंठों को चोंचले की फुदफुदी गाँठ मिल गयी, तो टीना जी स्चमुच ही अपने कूल्हों को लावारिस कुतिया जैसे ऊपर और नीचे उचकाने लगीं। जिस तरह वे अपने काले केशों को आजू-बाजू फटका रही थीं, ‘दर्जनों कुत्तों से चुदी कुतिया' ही प्रतीत हो रही थीं।
जय अब अपना पूरा शरीरिक और मानसिक बल काम-क्रिया में झोंक रहा था। अपनी जिह्वा पर अनुभव होते एक नवीन स्वाद का अनुभव करने के पश्चात , वो जान गया था कि उसकी माँ किसी भी क्षण काम - सन्तुष्टि के शिखर पर पहुँचने वाली थीं। अपनी जिह्वा को हौले-हौले टीना जी की फैली हुई योनि की सम्पूर्ण लम्बाई पर फेरते हुए, वो उनके धड़कते चोंचले को अप्ने मुंह में किसी दूध के प्यासे शिषु की तरह लिये हुए चूस रहा था।

अँन्नहहहह! हा, जय! चूस जोर से पिल्ले ! आहहगहह! चूस अपनी कुतिया माँ की चूत ! मादरचोद, मैं झड़ने वाली हूँ! :... भोंसड़चोद, देख तेरे मुँह में तेरी माँ झड़ रही है !” ।
 
जय ने अपनी माता की निर्लज्ज कर्णभेदी चीख सुनी और अपने धूम को दुगुना कर दिया।

टीना जी अपने पाश्विक उन्माद में लिप्त होकर अपनी योनि को ऐसे अलौकिक बल से उसके आतुरता से रसास्वादन करते मुख पर ढकेल रही थीं, कि जय को एक पल लगा जैसे स्वयं को घायल ही न कर बैठे। पर ऐसी कोई बात नहीं थी; टीना जी तो इन्द्रीय सुख के आवेग में आरोहित हो रही थीं, अपनी सुगठित स्त्री- देह में स्फुटित होती ये नवनवीन अनुभूतियँ उन्हें स्वर्ग की ओर प्रक्षेपित कर रही थीं।

ऊऊह, चोहे! ये ले मेरी चूत के पूत ! मैं तो झड़ीऽ !” । कामोत्तेजना से सुखद मुक्ति की आनन्द - लहरें उनकी कुम्हलाती योनि से निकल कार उनके पूरे कांपते बदन पर शीघ्रता से फलने लगीं। टीना जी की आवाज उन्हीं की दबी हुई चीख में कहीं लुप्त हो गयी। जय अपनी लम्बी जिह्वा द्वारा माँ की रिसती योनि पर किसी पिल्ले की तरह ही चटुकार कर रहा था। अपनी माता की प्रचुर योनि-वृष्टि की बून्द बून्द को वो असाधारण तल्लीनता से सफ़ा - चट्ट कर गया। आखिरकार जब टीना जी ने अपनि योनि से उसका मुंह उठाया, तब कहीं जाकर जय ने योनि को चाटना बन्द किया और चेहरा उठाकर उनकी आँखों में झाँका।। । “ओहह, मम्मी डार्लिंग! मजा आ गया! ऐसी चटपटी चूत तो जिन्दगी में पहले कभी नहीं चाटी।”, उसने स्वीकारा। टीना जी ने झुक कर उसके द्रव -मंजित मुख को देखा और मुस्कुरा कर बोलीं, “मेरी चूत के नन्हे आशिक़, मम्मी की चूत को आज तक किसी मर्द ने इतने प्रेम से नहीं चाटा है!”, उसकी माँ ने उत्तर दिया और उसके सर को अपने उठते-गिरते पेट पर सुला दिया।

“पर एक बात मेरी समज में नहीं आयी, जय। इतनी मजेदार चूत - चटायी तूने आघिर सीखि किससे? हरामी तेरे मुंह में ऐसा जादू है कि चाहे तो दुनिया की किसी भी औरत को अपना गुलाम कर ले !”

जय ने कुछ झेपते हुए से ऊपर टीना जी को देखा। “क्या कहूं, बस प्रैक्टिस हो गयी है। मम्मी!”, कुछ अधिक ही डींग हाँकते हुए वो बोला।

“प्रैक्टिस? किससे करता है, लाडले? कहीं आजकाल सोनिया की चूत चाटने का शौक़ तो नहीं पाल रहा है तू ? बोल मादरचोद !”, टीना जी ने पूछा। अपनी पुत्री के प्रति होती ईष्र्या उन्हें कुछ अटपटी लग रही थी।

“नहीं, मम्मी। पर सोनिया की चूत चखने में मुझे कोई हर्ज नहीं! अब तो लगता है मेरी जुबान को बस चूत - चटायी की लत लगने वाली है।” । | टीना का मुख लालिमा- रण्जित हुआ, लजा से नहीं, वासना से, और वे मुस्कुरायीं। पर उन्हें अब भी जय साफ़-साफ़ नहीं बतला रहा था कि किसकी योनी को चाट-चाट कर उसने मुख-मैथुन की विद्या में निपुणता प्राप्त की थी।

“अरे मादरचोद, अब बोल भी! अगर बहन की नहीं तो किसकी चूत चाटता है तू?”
 
जय अपनी माँ के मुँह को ताक रहा था और प्रार्थना कर रहा थी कि कहीं बिगड़ ना पड़े।

* कमला बाई की, मम्मी।”

कमला बाई? वो जो हमारी जमादारन है ?”

जय ने स्वीकृअति में सर हिलाया।

“अबे जनमजले ! भंगिन की चूत चाटता है! वो तो तेरी दादी की उमर की है !” टीना जी भौचक्की हो गयी थीं। उनका पुत्र उनके बाथरूम की गन्द-मैल साफ़ करने वाली अधेड़ उम्र की मोटी और काली-कलूटी जमादारन की चूत चाटता है। एक बार, नहीं दो बार नहीं , वो तो दस साल से उनके घर में काम कर रही है। :::

अबे नक-कटे, कितने दिनों से मुँह काला कर रहा है ?”

बस मम्मी, जब से उसका खसम गुजरा, यही कोई एक साल हुआ होगा। अब सैक्स में जात-पाँत क्या मम्मी। जमादारन है पर एकदम सैक्सी है। लन्ड चूसने में तो बिलकुल एक्स्पर्ट।” टीना जी का मुँह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया।

“सच मम्मी! हम दोस्त लोग तो उसे कुत्ती कमला कहते हैं।”, जय ने साधारण स्वर में कहा। वो देख सकता था कि उसकी माँ एकदम स्तब्ध थीं, और अपनी माँ को इस तरह हैरान करके, खासकर क्योंकि विषय उसके सैक्स जीवन का था, उसे एक दुष्ट आनन्द की अनुभूति हो रही थी। इससे पहले की टीना जी प्रत्युत्तर में कुछ बोल पातीं, जय ने उन्हें सब कुछ विस्तार से बतला डाला। । “हाँ मम्मी, खूब मजे ले कर चूसती है! फुर्सत में कभी आप भी कमला बाई को लन्ड चूसते हुए देखियेगा! बाथरूम धोने के लिये आती है तो मुझे कॉमोड पर नंगा बैठा कर खुद घुटनों के बल सामने बैठ जाती है और मुंह में लेकर चूसती है। ऐसी एक्स्पर्ट है कि पूरे लन्ड को निगल जाती है, साथ ही दोनो टट्टों को भी।” ।

“कमला बाई की तो ... !”, टीना जी बुदबुदायीं। वे आगे की कहानी सुनने के लिये व्याकुल हो रही थीं! उनकी हैरानी की प्रथम प्रतिक्रिया अब घुल कर दिलचस्पी में परिवर्तित हो चुकी थी। अपने किशोर पुत्र के इक़बालिया- बयान को सुनते-सुनते टीना जी की अभी-अभी तृप्त हुई योनि फिर से फड़कनी-धड़कनी चालू हो गयी थी।

“याद है आपको पिछली गर्मियों की छुट्टियाँ, जब डैडी ने कमला बाई के पति के गुजरने के बाद सर्वेन्ट क़वर्टर में उसे जगह दे दी थी ?”, टीना ने शीघ्रता से सर हिलाया, वे आगे का वृत्तांत सुनने को व्याकुल थीं।

“उसी दिन जब आपने मुझे गद्दा-तकिया लेकर कमला बाई के क्वार्टर भेजा था, तभी से हम दोनों के बीच दोस्ती यो गयी थी। आप मेरा मतलब समझ रही हैं ना मम्मी ?”, जय ने अपनी माँ को अपने आतुरता से खुले नरम होंथों को जीभ फेरकर चाटते हुए देखा। उनकी आँखें वासना के मारे सुलग रही थीं। जय अच्छी तरह से जानता था कि उसकी रामकहानी माँ को फिर से गर्मा रही है!
 
54 भंगिन बनी सेठाइन

हाँ, हाँ। बोल ना! फिर क्या हुआ, मेरे लाडले ? मम्मी को सब कुछ सच-सच बता दे।”

“मम्मी, कमलाबाई तो पहँची हुई रॉड है। पहले दिन ही अखियों से इशारे करके मुझसे सैटिंग कर ली थी। कहती थी, जय बाबा, जब से मेरा मरद मरा है, मेरा बिस्तर गरम करने को कोई नहीं। और बुढ़िया ने दे खोला अपना ब्लाऊज, और बोली , आ जय बबा, माँ का दूध पिया है तो दिखा अपने लन्ड की गर्मी। फिर क्या, मैने भी पैन्ट खोली और तब से हमारी चूत - चटाई और लन्ड चुसाई का प्रोग्राम फ़िट हो गया।”

उँह! मुई बुढ़िया के ब्लाऊज में भला क्या माल दिखा तुझे ? मरियल कुतिया से लटके हुए मम्मे होंगे!”, टीना जी दम्भ भरे स्वर में बोलीं।

“अरे मम्मी, मम्मे और चूत तो जमादारन ने ना जाने कितने मर्दो से चुद-चुद कर लटकवा लिये थे। मैं इतना गया- गुजरा नहीं की उसकी टूट सी बॉडी पर लार टपकाऊँ। कमलाबाई का जादू तो उसके रन्डीपने में है। कोई भी मर्द उसकी ललकार और गाली गलौज सुनकर लन्ड पर काबू नहीं पा सकता !” अपनी माँ के मुख पर ईष्र्या के भाव को देखकर जय झट से बोला, “नहीं मम्मी, मेरा मतलब आपके सैक्सीपन का तो लैवल ही कुछ और है ना, वो तो आपकी जूती भी नहीं !”

टीना जी ने अपने कूल्हे मटका कर पुत्र की ठोड़ी को अपने चोंचले पर टिकवा डाला।

“अच्छा, अच्छा, मादरचोद, तू ये बता कि तूने और क्या-क्या किया ? चूत चाटने के अलावा, कुछ चुदाई वुदाई भी की या नहीं ?', टीना जी ने जय से पूछा, जानती थीं कि पुत्र उनके स्वर में भड़ती उत्तेजना को भाँप रहा था। ।

“कहाँ मम्मी, उसकी चूत तो बिलकुल सूखी हुई है। साली चुदाई में जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाती थी, बस लन्ड चूसती थी और चूत चटाती थी। फिर एक दिन बाथरूम में मैने ऐसे थूक-थूक कर उसकी चूत चाटी, कि रॉड खुद ही मुझसे अपनी भोंसड़ी में उंगल डालने की फ़र्माइश करने लगी !” ।

“फिर !”, टीना जी के शुष्क कंठ से स्वर निकला। वे अब अपने नम पेड़ को अपने बेटे की ठोड़ी पर हौले-हौले मसलने लगी थीं।

जय ने भी माँ के कूल्हों की सरगर्मी को देखकर विस्मय किया कि कहीं वे उससे प्रतिक्रिया की उपेक्षा तो नहीं कर रही थीं। “क्या मम्मी, आपका भी फिर चूत चटायी का मूड बन रहा है क्या ?”, उसने पूछा।

“नहीं। अभी नहीं, मेरे पूत ! पहले तू अपनी कहानी तो बता !” अपने दाँतों को भींचती हुई वे बोलीं, “और खबरदार, कोई भी डीटेल छोड़ना नहीं, समझा !”

। जय भली भाँती अपनी माँ की उत्सुकता का कारण जानता था। और उनकी उत्सुकता की पूर्ती करने का पूरा इरादा रखता था। वो माँ को अपनी प्रथम सैक्स-क्रीड़ा का वृत्तांत सुना कर उनकी कामेन्द्रियों को उकसाना चाहता था, ताकि जब वे वासने के आवेग में अपना आत्मनियंत्रण खो डालें, तो वो अपने लिंग को माँ की योनि में प्रवेश करा कर जी भर कर उनके संग सम्भोग का आनन्द भोगे।।

“ओके मम्मी! हाँ तो उस दिन कमला बाई की चूत को मैने ऐसा प्रेम से चाटा, को वो अपनी चूत में कुछ तो घुसवाये बगैर रह नहीं पा रही थी। उसकी चूत बाहर से बिलकुल सूखी है, और झाँटे सफ़ेद हैं।”
 
बहरहाल, उस दिन कमलाबाई कमोड पर बैठी थी और मैं घुटनों के बल उसकी जाँघों के बीच मुँह घुसेड़े हुए बैठा था।” | टीना जी अपनी आँखें मूंदे पुत्र के वर्णन की कल्पना करते हुए अपने दोनों हाथों से अपने खरबूजों से लबाबदार स्तनों को दबा रही थीं और बार-बार निप्पलों को मसलती जा रही थीं।

“जियो बेटा! भंगिन को कमोड पर बैठा कर चूत चाटता था! साले रन्डुवे, तेरे बाप को ये पता चले तो सोचेगा किसी स्वीपर से चुदकर मैने तुझे पैदा किया है!”, कराहती हुई टीना जी अपने मन में आते कलुषित विचारों को स्वच्छन्दता से अभिव्यक्त कर रही थीं। ।

“अरे मम्मी, कमलाबाई के रन्डीपन को देख कर तो मेरा बाप भी उसकी चूत चाटने को राजी हो जाये !” जय ने माता की कीचड़ भाषा का उपयुक्त प्रतिउत्तर दिया था। “हाँ तो कमलाबाई ने मेरी ओर रन्डी जैसे दाँत पीसकर आँखों का इशारा नीचे को किया और बोली, “सूअर, बहूत हुआ चाटना, अब हाथ की सफ़ाई नहीं दिखायेगा ?” मैं बोला, “क्यों सेठानी जी, क्या कमी रह गयी चाटने में ?' मम्मी हम ऐसे ही मजा लेते हैं, कमला बाई मुझे गालियाँ देती है, और मैं उसे मालकिन कहता हूँ।

* कमलाबाई ने अपनी जाँघों के बीच मेरे मुंह के बिलकुल पास कमोड में थूका और बोली, “अबे भूतनी के, चुपचाप उंगली अन्दर डाल और मेरी चूत को उंगल कर !' ऐसा रन्डीपना दिखाती है वो मम्मी! सोचो, अपनी भंगिन हमारे ही घर में, मुझे गाली दे-दे कर अपनी चूत में उंगल - चोदी का ऑर्डर दे रही थी।”

“फिर मैंने मुँह को झुका कर कमलाबाई की जाँघों पर हाथ फेरे। फिर उसने हल्के से कराह कर अपनी गाँड को मेरी ओर उचका दिया।”

“कमलाबाई की जाँघों पर पसीने छूट रहे थे, बिलकुल तुम्हारी तरह मम्मी!”, जय ने अपनी माँ की जाँघों पर हाथों को फेरा।

टीना जी के कंठ से वासना-लिप्त कराहट निकली।

“मैने हाथ बढ़ा कर छुआ तो भोंसड़ी सूखी हुई थी, तो कमलाबाई मुझसे बोली कि बाबा थोड़ी सी वैसलीन हाथ पर ले लो, और फिर चूत में घुसाना। मैने डिबिया से उंगली भर कर वैसलीन निकाली और कमलाबाई की भोंसड़ी पर लथेड़ने लगा, जब चूत मक्खन सी चिकनी हो गयी तो मेरी पूरी की पूरी उंगली उसके अन्दर आराम से फिसल गयी। फिर तो उसका चेहरे देखने लायक था मम्मी। किसी चुडैल की तरह आँखें फाड़े हुए अपने पीले-पीले दाँतों के बीच से लाल जीभ निकाल कर वो मुस्कुरा रही थी। फिर मुझसे कहने लगी, ‘डर मत गाँडू, कस के रगड़ इसे, ये तेरी माँ की भोंसड़ी नहीं है, कमलाबाई की चूत है। बड़े-बड़े सेठों और पन्डितों से चुद चुकी है। फिर मम्मी, मैने वैसा ही किया! दे घुसाई अपनी उंगली और लगा रगड़ने हरामजादी की भोंसड़ में !” ।

| ‘फिर तो बस, कमलाबाई कमोड पर आराम से पसर कर मजे लेने लगी। चूत चटाई से ज्यादा मजा तो उसे उंगल - चोदी में आ रहा था। टीना जी अपने चोंचले पर पुत्र की ठोड़ी के दबाव, और उसके द्वारा उत्पन्न होते अश्लील रोमांच का आनन्द उठा रही थीं। जय माँ की उत्कट उत्तेजित अवस्था को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराता हुआ अपना वृत्तान्त आगे कहने लगा। । “हाँ, तो अब साला मेरा लन्ड भी खड़ा होकर लालम लाल हो गया था। कमलाबाई तो लन्ड चूसने का नाम ही नहीं ले रही थी, मैने ही कुछ जुगाड़ करने की ठानी।”
 
55 निम्न वर्ग

* मैं चढ़ कर कमोड पर कमलाबाई के सामने बैठ गया और उसकी जाँघों को फैला कर अपनी जाँघों के ऊपर रख दीं। कमलाबाई को तो जैसे किसी बात की सुध नहीं थी, बस सिर्फ अपनी वैसलीन से चिकनी हो चुकी भोंसड़ को मेरी उंगली पर मसलती जा रही थी।” ।

“मैने मौका देखकर अपने लन्ड को उसकी गरम भोंसड़ी पर दबाया, अपनी उंगली के नीचे लन्ड को छुपाया और पलक झपकते ही उंगली बाहर निकाली और उसके बदले अपना लौड़ा अन्दर घुसा डाला। फिर तो हरामजादी ऐसी चीखी की अगर मैं उसके मुंह को अपनी हथेली से नहीं दबाता तो सारे पड़ोसी घर आ जाते। कुतिया छह महीने बाद पहली बार किसी लन्ड को अपनी चूत में लिये थी। पर मिनटों में उसे जवानी की यादें ताजा हो गयीं और फिर पेशेवर रन्डी की तरह लन्ड का मजा लेने लगी।”

“जल्द ही कमलाबाई अपनी झाँटेदार चिकनी चूत को ऐसे उचकाने लगी, कि मैने सोचा बुढ़िया को अपनी जवानी के दिन याद आ गये !” टीना जी ने अपना मुँह खोला तो, परन्तु कोई स्वर नहीं निकला, उनकी स्वयं की योनि से उनके पुत्र की रगड़ती ठोड़ी पर द्रवों का प्रवाह प्रारम्भ हो गया था। मम्मी, सच, बुढ़िया की भोंसड़ी में ग़जब का जादू था। मेरा लन्ड ऐसा लग रहा था कि किसी गरम भट्टी में घुसा हुआ है !”
“साली आवारा कुतिया की तरह बिलबिला रही थी, और मैं उसे मजे से चोद रहा था। मैने नीचे देखा तो मेरा लन्ड उसकी भोंसड़ी में अन्दर-बाहर, अन्दर-बाहर चले जा रहा था। उसकी भोंसड़ी के झोल भी मेरे लन्ड के साथ फच्च - फच्च करते हुए अन्दर बाहर हिल रहे थे। जब लन्ड को बाहर खींचता तो रन्डी ऐसी स्टाइल से मेरे लन्ड पर भोंसड़ी जकड़ती थी कि सोलह साल की कुंवारी चूत हो! क्या कस के निचोड़ती है हमारी भंगिन अपनी चूत से ! साथ-साथ अपने मुंह से ऐसी गन्दी गाली-गलौज करती जा रही थी। अरे मम्मी, आप तो ऐसी गालियाँ सपने में भी नहीं सोच सकतीं !”

परन्तु टीना जी अच्छी तरह से अनुमान लगा सकती थीं कि नीच कुल की महिलायें कैसी भद्दी भाषा का उपयोग कर सकती हैं। जय अपनी माँ के हर हाव-भाव को ताड़ता हुआ आगे कहने लगा।

कहती थी, “अबे सूअरनी की औलाद, तेरी माँ ने भी संदास पर चुद कर तुझे पैदा किया है! ऍह ... ऍह ... तुम शर्मा लोग हम भंगियों से ही तो सीखे हो संडास पर चोदना! :: ऍह :: आँह ::अपनी सुअरनी माँ की चूत समझ रखी है क्या जो लन्ड से खुजा रहा है। चोद साले चोद! खैर मना, मेरा मरद जिन्दा नहीं,... आँह :: ‘नहीं तो ऐसी कमजोर चुदाई देख कर तेरी अभी गाँड मार लेता। बस मम्मी, मुझे ऐसे ही रन्डी की तरह चैलेंज दे-दे कर पागल कर रही थी हरामजादी!”

“फिर उसने मेरी गाँड पर अपनी उंगलियों के नाघूनों को गाड़ना शुरू कर दिया और मेरे लन्ड को अपनी भोंसड़ी में और अन्दर डालने की कोशिश करने लगी। मेरा लन्ड अब पूरा का पूरा अब अन्दर घुस चुका था। और मम्मी मेरे टट्टे झूल झूल कर कभी उसकी गन्डी गाँड पर टकराते तो कभी कमोड पर। पर कमलाबाई तो चुप होने का नाम नहीं लेती थी। जानती हो क्या बोली वो ?”, जय ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए पूछा।
 
“कः ‘क्या बेटा ?”, टीना जी हकलाते हुए बोलीं। वे अपनी जाँघों के बीच पनपती हुई कामुकता की तरंगों का असफ़ल विरोध कर रही थीं, इस प्रयास में कि इस असाधारण रूप से लज्जाहीन प्रसंग की अवधि को किसी तरह से लम्बा करें।

“वो राँड मुझसे अपनी गाँड में उंगली डालने को कहने लगी, मम्मी। मम्मी, तुम मानोगी नहीं, पर वो साली, मेरी दादी की उमर की बुढ़िया, मुझी से अपनी गाँड में उंगल करने को कह रही थी !”

टीना जी को जय के कथन पर विश्वास करने में कोई आपत्ति नहीं थी, उल्टे उनका मन तो किया कि वे उसे वही हरकत अपनी गुदा पर करने का प्रस्ताव दे डालें। जय ने सांकेतिक रूप से अपनी ठोड़ी को टीना जी के पेड़ पर रगड़ कर वर्णन जारी रखा।

“लो, मैने अपने हाथों पर थोड़ी और वैसलीन ली और अपनी बीच की उंगली को उसकी चौड़ी गाँड पर दबाने लगा। हरामजादी के दोनों बटक्स मेरी हथेली पर थे। मम्मी कमलाबाई की गाँड ऐसी चौड़ी थी कि मुझे विश्वास हो गया उसका पति वाकई गाँड मारने में उस्ताद था! मैने उससे पूछा भी, क्यों कमलाबाई, लगता है तेरे पति ने ही तेरी गाँड ऐसी खोल रखी है।”

बस कुतिया को मौक़ा मिल गया, ‘ऊँह ::: ऍह ::: मेरा मरद तो साला लड़कों की गाँड ज्यादा मारता था, मेरी कम। आँह • आँह ये तो मेरे मामा ने बचपन में मारी हुई है! : ‘आँह चाहूं तो तेरे और तेरे बाप, दोनों के लन्ड को एक साथ गाँड में ले लें : ‘आँह बोल सूअर, मारेगा बाप के साथ मिलकर मेरी गाँड :: हाँ ?' मैने हाँ कर दी। ‘मेरी माँ तो हाथ से मामा का लन्ड पकड़ कर मेरी गाँड में डालती थी। ‘अँह बोल, सूअर, तू भी बाप के लन्ड को हाथ में पकड़ कर घुसायेगा ना ऍह ?' मैने फिर हाँ किया। सच मम्मी, कमलाबाई से ऐसी बातें करके बड़ा मज़ा आ रहा था।”

“लगता है उसे ऐसे बोलने में और भी मज़ा आ रहा था, बस कुछ ही मिनटों में हरामजादी कमोड पर बैठी झड़ने लगी। मेरा लन्ड अब भी उसकी भोंसड़ी में कूद रहा था, और मेरी उंगली उसकी गाँड को खोद रही थी।” | टीना जी कराहते हुए अपने स्तनों को दबोच रही थीं। अत्यन्त बेसुधी की मुद्रा में अपने निप्पलों को निचोड़ रही थीं वे । कठिनाई से अपने पुत्र के सामने उनसे सम्भोग क्रिया का प्रस्ताव रखने की कामना पर वे काबू पा सकीं। आगे की कथा जो सुनना चाहती थीं। जय की कथा उनके कामानन्द को कई गुना अवृद्ध जो कर रही थी।

“साले मुस्टंडे, तू नहीं झड़ा ?”, जय की माँ ने शरारत भरे स्वर में पूछा।

“मैं भी बस झड़ ही जाता मम्मी! कमलाबाई जब झड़ी तो उसकी भोंसड़ी सौ चूतों की तरह मेरे लन्ड को पुचकारने लगी थी। उसकी चूत में ऐसा कस-कस के मैने लन्ड मारा, कि हरामजादी हाँफ़ने लगी।”

“मम्म ::: तू मुझे बता रहा है, मुझे याद है जब मैं झड़ी तो तू कैसे जानवरों से मुझे चोद रहा था! खैर आगे कः क्या हुआ ?”, टीना जी कराहीं।
 
56 उच्च वर्ग

मम्मी, उसकी अगली हरकत ने तो मुझे हैरान कर डाला। जब कमलाबाई ने मेरे लन्ड को अपनी भोंसड़ी में फूल कर उछलता हुआ महसूस किया, तो एक हाथ नीचे कर के मेरे लन्ड को दबोच कर बाहर निका लिया! हरामजादी बोली, “आ साले , तुझे गाँड मारना सिखाऊँ! फिर उसने खड़ा होकर एक हाथ को कमोड की टंकी पर टेका और दूसरे हाथ को अपनी टाँगों के बीच से पीछे लेकर मेरे लन्ड को पकड़ा और अपनी उचकी हुई गाँड में दबा कर सटाने लगी। बुढ़ापे में सूखी चूत से ज्यादा अब कमलाबाई को गाँड मरवाने में मजा आता है !”

टीना जी अपने सगे पुत्र के मुख से उसकी कामक्रीड़ा के स्पष्ट वर्णन को सुनकर मारे उत्तेजना के पागल हो रही थीं। यदि जय अब जल्द ही उनकी तड़प का निवारण नहीं करता, तो वे पुत्र के लिंग को बलपूर्वक अपनी योनि में घुसा कर बलात्कार करने का इरादा कर चुकी थीं।

| फिर मैने कुत्ती की गाँड से अपनी उंगली बाहर निकाली, और अपने लन्ड को उसकी बदबूदार गाँड में घुसेड़ डाला! साली और चीखने लगी, ‘साले तू माँ की चूत से नहीं : ‘आँह, गाँड से पैदा हुआ है।''आँह : ' झुक कर मेरे टट्टों को दबाती हुई बोली, “निकाल टट्टों से तेल, अँह तो तेरे लन्ड पर टट्टी कर देंगी !’ फिर चीख चीख कर मेरे लन्ड को अपनी गाँड से सिकोड़ने लगी, “ऍह आजा अन्दर, ऍह और अन्दर 'ऍह ऍह 'ऍह 'ऍह ऍह':'। गाँड मरवाते हुए कमलाबाई को थूकने की आदत है, बार बार कमोड मे थूके जा रही थी, ‘सूअर तेरी माँ की तो, थू!', तो कभी मुड़ कर मेरे मुँह पर ही थूक देती, ‘मादरचोद ! थू!' बस ऐसे ही चीख-चीख कर गन्दी गन्दी बातें करती रही और मैने भी उसकी गाँड में लन्ड रगड़-रगड़ कर आखिर उसकी गाँड को अपने वीर्य से भर दिया।” |

टीना जी अब और आत्मनियंत्रण की क्षमता नहीं रखती थी। वे तुरन्त खड़ी होकर औंध मुँह मेज पर लेट गयीं और अपनी सुडौल गोरी टांगों को फैला कर पाश्विक मुद्रा में पुत्र की वासना से बोझिल आखों के समक्ष अपनी सराबोर योनि और गुदा को प्रदर्शित करने लगीं।

“जय, मुझे चोद! मादरचोद, तुने मुझे अपनी बातों से बड़ा गर्मा डाला है, अब नहीं सहा जाता! चोद मेरे लाल ! उस राँड कमलाबाई को जैसे चोदा था, वैसे ही अपनी बेचारी मम्मी को भी तू आज चोद !”

जय फुर्ती से माता के पीछे जा खड़ा हुआ और उनके पटे हुए योनि - कोपलों पर अपने विशाल लिंगोभार को रगड़ने लगा। जैसे ही उन्होंने अपने पुत्र के नग्न, बलिष्ठ तन का आभास पाया, टीना जी के तन में पापी वासना की एक उमंग जाग गयी।
 
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