hotaks444
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शीबा के लाल लाल गाल और सुर्ख हो जाते हैं-थैंक्स बेटा।
कामरान अपना हाथ का नाप बताइए?
शीबा-क्यूँ ?
कामरान बताइए ना? फिर कामरान शीबा का हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“मेरा एक दोस्त है जुवैद उसकी चूड़ियों की दुकान है। अम्मी के लिए मैं उसी के पास से चूड़ियाँ लेता हूँ । आपके हाथ सुने-सुने दिखाई दिए तो सोचा क्यों ना आपको भी कुछ चूड़ियाँ दिला दूँ …”
शीबा-“मेरे पास बहुत चूड़ियाँ है मगर पहनना भूल जाती हूँ …”
कामरान शीबा के नाजुक हाथों को मसलने लगता है और उससे इधर-उधर की बातें करने लगता है। शीबा बातें तो कामरान से कर रही थी मगर उसके हाथों में पशीना आने लगा था।
कामरान-आपके हाथ बहुत नाजुक है आंटी ।
शीबा-“ह्म्म्म्म… तो आपको अब बूढ़ी औरतें अच्छी लगने लगी हैं लगता है फ़िज़ा बाजी से बोलकर आपकी शादी की बात करनी पड़ेगी…”
कामरान एक ऐसी हरकत करता है जिसके बारे में शीबा सोच भी नहीं सकती थी। वो शीबा का हाथ अपनी तरफ खींच लेता है जिससे शीबा कामरान से चिपक जाती है।
शीबा-“अह्ह… बेटा क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा…”
कामरान- आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा? इतनी खूबसूरत और जवान तो हो आप। एक बार देखो तो देखता रह जाये बंदा।
शीबा का दिल जोर से धड़कने लगता है उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज था कामरान। वो अपना हाथ छुड़ाते हुये उसके पास से भाग जाती है।
कामरान जब भी अपनी अम्मी फ़िज़ा को चोदता था। फ़िज़ा उसे सारी बातें बताती थी, कैसे उसे अमन ने सबसे पहले किया था, अमन विला के हर एक शख्स के बारे में फ़िज़ा कामरान को बता चुकी थी, और नग़मा के बारे में फ़िज़ा जो सोच रही थी बहू बनाने के बारे में, ये बात भी कामरान अच्छी तरह जानता था। एक शातिर मर्द की तरह कामरान इस नतीजे पे पहुँचा था कि अमन विला में एक ही ऐसी औरत है, जो बहुत जल्दी अपनी टाँगें खोल सकती है और वो है शीबा।
क्योंकी फ़िज़ा की बातों से उसे अंदाज़ा हो चुका था कि रज़िया और अनुम दोनों अमन से कितनी मोहब्बत करती है और उन दोनों पे बुरी नजर डालना मतलब मुशीबत मोल लेना।
शीबा अपने रूम में जाकर बेड पे बैठ जाती है। उसका जिस्म आज एक और मर्द के तरफ झुकने लगा था। उसका दिल उसे गुनाह करने के लिए मजबूर कर रहा था, मगर शायद अभी वो वक्त नहीं आया था।
रज़िया के रूम में फ़िज़ा और अनुम तीनो औरतें बातें कर रह थीं, पास में जीशान भी बैठा हुआ था।
रज़िया-बहुत अच्छा हुआ फ़िज़ा तुम आ गई, घर में बहुत रौनक सी हो गई है। तुम्हारी अम्मी के साथ वो हादसा नहीं हुआ होता तो आज वो भी हमारे साथ होती।
फ़िज़ा-किस्मत के आगे किसकी चली है बड़ी अम्मी।
जीशान उठकर सोफिया के रूम में चला जाता है।
सोफिया अपने हाथों में मेहंदी लगा रही थी। लुबना और नग़मा किचेन में साफ सफाई का काम निपटाने में लगी हुई थीं।
जीशान धड़ाम से सोफिया के बेड पे आकर बैठ जाता है-“छीः ये क्या गोबर लगा रही हो बाजी?”
सोफिया-“बेवकूफ़ मेहंदी है ये। तू क्या कर रहा है यहाँ?”
जीशान-“आपके गोबर लगे हाथों को देखने आया था…”
सोफिया बुरी तरह चिढ़ जाती है-“देख फिर से इसे… कुछ उल्टा सीधा कहा ना तो मैं अब्बू को आवाज़ दूँगी …”
जीशान सोफिया के कान के पास आकर धीरे से उसके कान में कहता है-“रात में अमन और दिन में अब्बू … बहुत गलत बात है बाजी…”
सोफिया की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं-“ तू … तू कहना क्या चाहता है जीशान?”
जीशान-“मैंने आपके रूम से वो आवाज़ सुनी थी, जब आप अब्बू को अमन कहकर सिसक रह थीं और भी बहुत कुछ सुना है मैंने। बस देखना बाकी रह गया था…”
सोफिया से कुछ बोला नहीं जाता, वो अपना सर झुका लेती है।
जीशान-“डरो मत बाजी… ये तो इस घर का दस्तूर रहा है। बेटा अपनी अम्मी के साथ, बेटी अपने अब्बू के साथ। मुझे अमन विला के सारे राज पता हैं और अब मुझे इन सब बातों की आदत सी हो गई है…”
सोफिया- तू … तू जा यहाँ से।
जीशान अपना एक हाथ सोफिया की चुची पे रख कर उसे जोर से मसल देता है।
सोफिया-“उम्ह्ह… जीशान …” मेहंदी लगे हाथों से वो जीशान को कुछ कर भी नहीं सकती थी। उसे भी जीशान के हाथ अपनी चुची पे अच्छे लगे थे और वो अपनी आँखें बंद कर लेती है।
जीशान-“अब्बू को तो सब कुछ दे चुकी हो, भाई का हक कब अदा करोगी?”
सोफिया-“तेरा कोई हक नहीं मुझपे, कुछ नहीं दूँगी तुझे। ज्यादा फोर्स करेगा या ब्लैकमेल करेगा ना तो अब्बू को बता दूँगी …” बड़ी हिम्मत करके सोफिया ने जीशान से ये बात कही थी।
जीशान-“अच्छा ये बात है…” और वो दोनों हाथों से सोफिया की चुची मसलने लगता है-“तुम्हें पता है ना… जब भी मुझे कोई चेलेंज करता है तो मेरे जिस्म में का खून डबल स्पीड से दौड़ने लगता है…”
सोफिया- तू चला जा यहाँ से।
कामरान अपना हाथ का नाप बताइए?
शीबा-क्यूँ ?
कामरान बताइए ना? फिर कामरान शीबा का हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“मेरा एक दोस्त है जुवैद उसकी चूड़ियों की दुकान है। अम्मी के लिए मैं उसी के पास से चूड़ियाँ लेता हूँ । आपके हाथ सुने-सुने दिखाई दिए तो सोचा क्यों ना आपको भी कुछ चूड़ियाँ दिला दूँ …”
शीबा-“मेरे पास बहुत चूड़ियाँ है मगर पहनना भूल जाती हूँ …”
कामरान शीबा के नाजुक हाथों को मसलने लगता है और उससे इधर-उधर की बातें करने लगता है। शीबा बातें तो कामरान से कर रही थी मगर उसके हाथों में पशीना आने लगा था।
कामरान-आपके हाथ बहुत नाजुक है आंटी ।
शीबा-“ह्म्म्म्म… तो आपको अब बूढ़ी औरतें अच्छी लगने लगी हैं लगता है फ़िज़ा बाजी से बोलकर आपकी शादी की बात करनी पड़ेगी…”
कामरान एक ऐसी हरकत करता है जिसके बारे में शीबा सोच भी नहीं सकती थी। वो शीबा का हाथ अपनी तरफ खींच लेता है जिससे शीबा कामरान से चिपक जाती है।
शीबा-“अह्ह… बेटा क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा…”
कामरान- आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा? इतनी खूबसूरत और जवान तो हो आप। एक बार देखो तो देखता रह जाये बंदा।
शीबा का दिल जोर से धड़कने लगता है उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज था कामरान। वो अपना हाथ छुड़ाते हुये उसके पास से भाग जाती है।
कामरान जब भी अपनी अम्मी फ़िज़ा को चोदता था। फ़िज़ा उसे सारी बातें बताती थी, कैसे उसे अमन ने सबसे पहले किया था, अमन विला के हर एक शख्स के बारे में फ़िज़ा कामरान को बता चुकी थी, और नग़मा के बारे में फ़िज़ा जो सोच रही थी बहू बनाने के बारे में, ये बात भी कामरान अच्छी तरह जानता था। एक शातिर मर्द की तरह कामरान इस नतीजे पे पहुँचा था कि अमन विला में एक ही ऐसी औरत है, जो बहुत जल्दी अपनी टाँगें खोल सकती है और वो है शीबा।
क्योंकी फ़िज़ा की बातों से उसे अंदाज़ा हो चुका था कि रज़िया और अनुम दोनों अमन से कितनी मोहब्बत करती है और उन दोनों पे बुरी नजर डालना मतलब मुशीबत मोल लेना।
शीबा अपने रूम में जाकर बेड पे बैठ जाती है। उसका जिस्म आज एक और मर्द के तरफ झुकने लगा था। उसका दिल उसे गुनाह करने के लिए मजबूर कर रहा था, मगर शायद अभी वो वक्त नहीं आया था।
रज़िया के रूम में फ़िज़ा और अनुम तीनो औरतें बातें कर रह थीं, पास में जीशान भी बैठा हुआ था।
रज़िया-बहुत अच्छा हुआ फ़िज़ा तुम आ गई, घर में बहुत रौनक सी हो गई है। तुम्हारी अम्मी के साथ वो हादसा नहीं हुआ होता तो आज वो भी हमारे साथ होती।
फ़िज़ा-किस्मत के आगे किसकी चली है बड़ी अम्मी।
जीशान उठकर सोफिया के रूम में चला जाता है।
सोफिया अपने हाथों में मेहंदी लगा रही थी। लुबना और नग़मा किचेन में साफ सफाई का काम निपटाने में लगी हुई थीं।
जीशान धड़ाम से सोफिया के बेड पे आकर बैठ जाता है-“छीः ये क्या गोबर लगा रही हो बाजी?”
सोफिया-“बेवकूफ़ मेहंदी है ये। तू क्या कर रहा है यहाँ?”
जीशान-“आपके गोबर लगे हाथों को देखने आया था…”
सोफिया बुरी तरह चिढ़ जाती है-“देख फिर से इसे… कुछ उल्टा सीधा कहा ना तो मैं अब्बू को आवाज़ दूँगी …”
जीशान सोफिया के कान के पास आकर धीरे से उसके कान में कहता है-“रात में अमन और दिन में अब्बू … बहुत गलत बात है बाजी…”
सोफिया की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं-“ तू … तू कहना क्या चाहता है जीशान?”
जीशान-“मैंने आपके रूम से वो आवाज़ सुनी थी, जब आप अब्बू को अमन कहकर सिसक रह थीं और भी बहुत कुछ सुना है मैंने। बस देखना बाकी रह गया था…”
सोफिया से कुछ बोला नहीं जाता, वो अपना सर झुका लेती है।
जीशान-“डरो मत बाजी… ये तो इस घर का दस्तूर रहा है। बेटा अपनी अम्मी के साथ, बेटी अपने अब्बू के साथ। मुझे अमन विला के सारे राज पता हैं और अब मुझे इन सब बातों की आदत सी हो गई है…”
सोफिया- तू … तू जा यहाँ से।
जीशान अपना एक हाथ सोफिया की चुची पे रख कर उसे जोर से मसल देता है।
सोफिया-“उम्ह्ह… जीशान …” मेहंदी लगे हाथों से वो जीशान को कुछ कर भी नहीं सकती थी। उसे भी जीशान के हाथ अपनी चुची पे अच्छे लगे थे और वो अपनी आँखें बंद कर लेती है।
जीशान-“अब्बू को तो सब कुछ दे चुकी हो, भाई का हक कब अदा करोगी?”
सोफिया-“तेरा कोई हक नहीं मुझपे, कुछ नहीं दूँगी तुझे। ज्यादा फोर्स करेगा या ब्लैकमेल करेगा ना तो अब्बू को बता दूँगी …” बड़ी हिम्मत करके सोफिया ने जीशान से ये बात कही थी।
जीशान-“अच्छा ये बात है…” और वो दोनों हाथों से सोफिया की चुची मसलने लगता है-“तुम्हें पता है ना… जब भी मुझे कोई चेलेंज करता है तो मेरे जिस्म में का खून डबल स्पीड से दौड़ने लगता है…”
सोफिया- तू चला जा यहाँ से।