hotaks444
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आधे घंटे बाद जीशान अपने रूम में चला जाता है। उसका लण्ड बहुत दर्द कर रहा था। कल रात से वो चूत के अंदर तो कभी गाण्ड के अंदर ही था।
उधर सोफिया अपनी कमर मटकाती हुई नग़मा को तलाश करती हुई उसके रूम में आ जाती है। नग़मा सोफिया को देखकर अपनी नजरें उससे चुरा लेती है।
सोफिया-नग़मा यहाँ क्यों बैठी है?
नग़मा कुछ नहीं कहती ।
सोफिया उसके एकदम पास आकर बैठ जाती है-“बोल ना क्या हुआ? चुप क्यों है?”
नग़मा-“मुझे आपसे बात नहीं करनी आपी। आप और भाई जान बहुत गलत कर रहे हैं, ये अच्छी बात नहीं है। आपकी शादी होने वाली है, और आप भाई जान के साथ?”
सोफिया हँस देती है-“इधर देख मेरी तरफ…” वो नग़मा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे अपने सीने पर रख देती है।
नग़मा-“ईईई क्या कर रही हैं आप?”
सोफिया फिर से नग़मा का हाथ पकड़कर अपनी चुची पर लगा देती है-“अभी-अभी मैं बाथरूम में जीशान से चुदवाकर आई हूँ , देख कैसे गरम कर दिया हैं तेरे भाईजान ने मेरी चुची दबा-दबा के?”
नग़मा शर्म से पानी-पानी हो जाती है-“आपी आपको जरा भी शर्म नहीं आती मेरे सामने ऐसी गंदी -गंदी बातें करते हुये?”
सोफिया-“प्यार में कुछ गंदा नहीं होता पागल …”
नग़मा-“क्या आप भाईजान से प्यार करती हैं?”
सोफिया-“हाँ बहुत करती हूँ । काश, मैं उससे शादी कर पाती? मगर किस्मत के आगे क्या किया जा सकता है? खुशनसीब है दादी और अम्मी जिन्हें अब्बू का प्यार मिला…”
नग़मा-क्या मतलब?
सोफिया-तुझे नहीं पता?
नग़मा-क्या नहीं पता?
सोफिया अपने माथे पर हाथ मार देती है-“क्या तुझे सच में नहीं पता?”
नग़मा-“नहीं ना… बोलो ना क्या?”
कहते हैं औरत से कोई बात हजम नहीं होती । आखिर सोफिया भी औरत ही थी। जब उसे ये पता चलता है कि नग़मा उस राज से अंजान है, तो वो उसे एक-एक करके सारी बात बताती चली जाती है और हर राज के खुलते ही नग़मा के चेहरे के भाव भी बदलते चले जाते हैं। जब सोफिया अपना मुँह बंद करती है तो नग़मा का हर सुराख जैसे खुल सा जाता है।
नग़मा अपने मुँह पर हाथ रख देती है-“इतनी बड़ी बात मुझे अब तक पता नहीं थी? आपको कैसे पता चली ये बात?”
सोफिया-“जीशान ने बताया मुझे…” सोफिया नग़मा से अमन के बारे में बताना नहीं चाहती थी, इसलिए वो जीशान का नाम लेती है।
नग़मा का हाथ अभी भी सोफिया की चुची पर ही था, मगर अब उसकी पकड़ में तब्दीली आ गई थी। अभी तक सोफिया ने नग़मा के हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे अपनी चुची पर दबा रखी थी, मगर अब नग़मा की पकड़ थोड़ी सोफिया की चुची पर बढ़ती जा रही थी, जिसे सोफिया भी महसूस कर रही थी।
सोफिया अपना एक हाथ नग़मा की जाँघ पर रख देती है-“नग़मा, तुझे नहीं पता इस ख़ानदान के बारे में? यहाँ कोई भी रिश्ता सगा नहीं , सबको बस एक चीज चाहिए, वो है प्यार बस…”
नग़मा-“हाँ आपी। मैं भी जब भाईजान को शीबा अम्मी के साथ देखी थी रूम में, वो सब करते हुये तो मुझे बहुत अजीब महसूस हुआ था…”
सोफिया-“क्या जीशान और अम्मी चुदाई कर रहे थे?”
नग़मा अपना सिर ‘हाँ’ में हिला देती है।
सोफिया-“जीशान बहुत कमीना है, उसे बस औरत चाहिए। तू उससे दूर रहना नग़मा, वरना वो तुझे भी नहीं छोड़ेगा…”
नग़मा-“मैं क्यों दूर रहूं? आखिरकार, मैं भी इस घर का एक हिस्सा हूँ । मैं भी अपने अब्बू की सग़ी बेटी हूँ । वाह वाह… आप सब मजे करो और मैं देखती रहूं । नहीं बिल्कुल नहीं …”
सोफिया-“तो क्या तू भी जीशान के साथ?”
नग़मा शरमाकर अपनी नजरें नीचे झुका लेती है। उसके नजरें झुकाते ही सोफिया का दिल बाग-बाग हो जाता है। आखिरकार, मछली खुद चारा खाना चाहती है।
सोफिया अपना हाथ नग़मा की चुची पर रख कर उसे जोर से मसलती है और अपने होंठों को नग़मा के होंठों के करीब ले आती है। नग़मा जैसे ही अपनी गर्दन ऊपर उठाती है सोफिया अपने होंठ नग़मा के होंठों से लगाकर उसे चूम लेती है।
नग़मा सोफिया की बातें सुनकर पूरी तरह गरम हो चुकी थी। वो अपनी आँखें बंद कर लेती है और सोफिया के मुँह में अपनी जीभ छोड़ देती है-गलपप्प-गलपप्प।
सोफिया अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुये उसे नग़मा की कमीज के अंदर डालने लगती है। मगर नग़मा पीछे हटने लगती है, कि तभी वहाँ जीशान भी आ जाता है।
जीशान-“आपी, नग़मा को छोड़ दो और उससे दूर रहो…”
दोनों बहनें जीशान की तरफ देखने लगती हैं। सोफिया कहती है-“क्यों क्या हुआ?”
जीशान-“अम्मी ने साफ कहा है कि नग़मा और लुब से दूर रहना, और उन्हें कुछ मत करना, कुछ मत कहो नग़मा को और लुबना को। वैसे भी नग़मा की शादी होने वाली है…”
नग़मा की आँखों में आँसू आ जाते हैं, और वो उठकर जीशान के पास आ जाती है-“भाईजान, मैं आपकी बहन हूँ , मुझसे ऐसा सौतेलापन क्यों? मैं आपका क्या बिगाड़ी हूँ ?”
जीशान-“देख नग़मा, तेरी शादी होने वाली है। अम्मी का कहना ठीक है। क्या सोचेंगे तेरे ससुराल वाले, जब उन्हें पता चलेगा कि त कुँवारी नहीं है?”
नग़मा-“अम्मी कौन होती हैं ये डिसाइड करने वाली कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं ? और आप इतने समझदार कैसे हो गये? जब अम्मी के साथ रात गुजारते थे तब कहाँ गई थी आपकी समझदारियाँ ? और जब मेरी दोस्त रूबी की अम्मी के साथ आपने वो सब किया तब कहाँ गई थी आपकी अकल? मुझे समझाने चले हैं…”
जीशान-“तुझे कैसे पता रूबी की अम्मी के बारे में?”
नग़मा-“मुझे रूबी सब बता चुकी है और उसके साथ आपने समर कैम्प में जो किया वो भी…”
जीशान को तब समझ में आता है की अपने रूम में चुपचाप सी रहने वाली नग़मा कुछ दिनों से बदली - बदली सी क्यों है? आखिरकार, रूबी ने नग़मा को सब कुछ बता दी थी, इसलिए नग़मा की कुँवारी चूत अपने भाई के लण्ड के लिए मचल रही थी।
जीशान नग़मा के बाल पकड़ लेता है।
नग़मा-“आह्ह… भाईजान्न… छोड़िए ना दर्द होता है…”
जीशान-“अच्छा? और जो तू करना चाहती है उससे दर्द नहीं होगा तुझे?
नग़मा-“वो बहन ही क्या जो अपने भाईजान की मोहब्बत को दर्द का नाम दे?” उसकी आँखों में आँसू थे और होंठों पर लरज़िश।
जीशान एक नजर सोफिया की तरफ देखता है। वो उन दोनों को ही देख रही थी। नग़मा जीशान के पैरों के पास बैठी थी।
जीशान-अच्छा तो तू मुझसे मोहब्बत करती है?
नग़मा-हाँ बेपनाह।
जीशान-“झूठ… सरासर झूठ…”
नग़मा-आजमा लो।
जीशान-“मोहब्बत में महबूब जो कहता है, जो करता है करना पड़ता है बीबी…”
नग़मा-मंजूर है।
जीशान अपने पैंट की जिप खोलने लगता है। मगर नग़मा उसके हाथ पर अपने हाथ रख कर उसे रोक देती है और खुद अपना हाथ अंदर डालकर जीशान के लण्ड को बाहर निकाल लेती है। जीशान हैरतजदा सा नग़मा को देखने लगता है।
नग़मा एक नजर भरकर जीशान को देखती है और अगले ही पल जीशान के लण्ड को मुँह में लेकर उसे अपने मुँह के अंदर जैसे छुपा लेती हैं-गलपप्प-गलपप्प।
जीशान-“नग़ ऽऽ आह्ह… तेरे माँ की…”
नग़मा बिना रुके उसे चूसती रहती है और अपनी कुँवारी बहन के मुँह की गर्मी जीशान सह नहीं पाता और 5 मिनट में ही अपना पानी नग़मा के मुँह में गिरा देता है। नग़मा एक-एक कतरा चाटती चली जाती है गलपप्प-गलपप्प।
पीछे से रज़िया उन्हें आवाज़ देती है-“मुँह मीठा हो गया होगा तो फॅक्टरी चले जाओ जीशान , तुम्हारी अम्मी का फोन आया था अभी-अभी।
तीनों चौंकते हुये रज़िया की तरफ देखते हैं, और नग़मा वहाँ से भाग जाती है। उसके जाने के बाद रज़िया के साथ-साथ जीशान और सोफिया के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। जीशान रज़िया और सोफिया को चूमते हुये फॅक्टरी चला जाता है।
उधर सोफिया अपनी कमर मटकाती हुई नग़मा को तलाश करती हुई उसके रूम में आ जाती है। नग़मा सोफिया को देखकर अपनी नजरें उससे चुरा लेती है।
सोफिया-नग़मा यहाँ क्यों बैठी है?
नग़मा कुछ नहीं कहती ।
सोफिया उसके एकदम पास आकर बैठ जाती है-“बोल ना क्या हुआ? चुप क्यों है?”
नग़मा-“मुझे आपसे बात नहीं करनी आपी। आप और भाई जान बहुत गलत कर रहे हैं, ये अच्छी बात नहीं है। आपकी शादी होने वाली है, और आप भाई जान के साथ?”
सोफिया हँस देती है-“इधर देख मेरी तरफ…” वो नग़मा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे अपने सीने पर रख देती है।
नग़मा-“ईईई क्या कर रही हैं आप?”
सोफिया फिर से नग़मा का हाथ पकड़कर अपनी चुची पर लगा देती है-“अभी-अभी मैं बाथरूम में जीशान से चुदवाकर आई हूँ , देख कैसे गरम कर दिया हैं तेरे भाईजान ने मेरी चुची दबा-दबा के?”
नग़मा शर्म से पानी-पानी हो जाती है-“आपी आपको जरा भी शर्म नहीं आती मेरे सामने ऐसी गंदी -गंदी बातें करते हुये?”
सोफिया-“प्यार में कुछ गंदा नहीं होता पागल …”
नग़मा-“क्या आप भाईजान से प्यार करती हैं?”
सोफिया-“हाँ बहुत करती हूँ । काश, मैं उससे शादी कर पाती? मगर किस्मत के आगे क्या किया जा सकता है? खुशनसीब है दादी और अम्मी जिन्हें अब्बू का प्यार मिला…”
नग़मा-क्या मतलब?
सोफिया-तुझे नहीं पता?
नग़मा-क्या नहीं पता?
सोफिया अपने माथे पर हाथ मार देती है-“क्या तुझे सच में नहीं पता?”
नग़मा-“नहीं ना… बोलो ना क्या?”
कहते हैं औरत से कोई बात हजम नहीं होती । आखिर सोफिया भी औरत ही थी। जब उसे ये पता चलता है कि नग़मा उस राज से अंजान है, तो वो उसे एक-एक करके सारी बात बताती चली जाती है और हर राज के खुलते ही नग़मा के चेहरे के भाव भी बदलते चले जाते हैं। जब सोफिया अपना मुँह बंद करती है तो नग़मा का हर सुराख जैसे खुल सा जाता है।
नग़मा अपने मुँह पर हाथ रख देती है-“इतनी बड़ी बात मुझे अब तक पता नहीं थी? आपको कैसे पता चली ये बात?”
सोफिया-“जीशान ने बताया मुझे…” सोफिया नग़मा से अमन के बारे में बताना नहीं चाहती थी, इसलिए वो जीशान का नाम लेती है।
नग़मा का हाथ अभी भी सोफिया की चुची पर ही था, मगर अब उसकी पकड़ में तब्दीली आ गई थी। अभी तक सोफिया ने नग़मा के हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे अपनी चुची पर दबा रखी थी, मगर अब नग़मा की पकड़ थोड़ी सोफिया की चुची पर बढ़ती जा रही थी, जिसे सोफिया भी महसूस कर रही थी।
सोफिया अपना एक हाथ नग़मा की जाँघ पर रख देती है-“नग़मा, तुझे नहीं पता इस ख़ानदान के बारे में? यहाँ कोई भी रिश्ता सगा नहीं , सबको बस एक चीज चाहिए, वो है प्यार बस…”
नग़मा-“हाँ आपी। मैं भी जब भाईजान को शीबा अम्मी के साथ देखी थी रूम में, वो सब करते हुये तो मुझे बहुत अजीब महसूस हुआ था…”
सोफिया-“क्या जीशान और अम्मी चुदाई कर रहे थे?”
नग़मा अपना सिर ‘हाँ’ में हिला देती है।
सोफिया-“जीशान बहुत कमीना है, उसे बस औरत चाहिए। तू उससे दूर रहना नग़मा, वरना वो तुझे भी नहीं छोड़ेगा…”
नग़मा-“मैं क्यों दूर रहूं? आखिरकार, मैं भी इस घर का एक हिस्सा हूँ । मैं भी अपने अब्बू की सग़ी बेटी हूँ । वाह वाह… आप सब मजे करो और मैं देखती रहूं । नहीं बिल्कुल नहीं …”
सोफिया-“तो क्या तू भी जीशान के साथ?”
नग़मा शरमाकर अपनी नजरें नीचे झुका लेती है। उसके नजरें झुकाते ही सोफिया का दिल बाग-बाग हो जाता है। आखिरकार, मछली खुद चारा खाना चाहती है।
सोफिया अपना हाथ नग़मा की चुची पर रख कर उसे जोर से मसलती है और अपने होंठों को नग़मा के होंठों के करीब ले आती है। नग़मा जैसे ही अपनी गर्दन ऊपर उठाती है सोफिया अपने होंठ नग़मा के होंठों से लगाकर उसे चूम लेती है।
नग़मा सोफिया की बातें सुनकर पूरी तरह गरम हो चुकी थी। वो अपनी आँखें बंद कर लेती है और सोफिया के मुँह में अपनी जीभ छोड़ देती है-गलपप्प-गलपप्प।
सोफिया अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुये उसे नग़मा की कमीज के अंदर डालने लगती है। मगर नग़मा पीछे हटने लगती है, कि तभी वहाँ जीशान भी आ जाता है।
जीशान-“आपी, नग़मा को छोड़ दो और उससे दूर रहो…”
दोनों बहनें जीशान की तरफ देखने लगती हैं। सोफिया कहती है-“क्यों क्या हुआ?”
जीशान-“अम्मी ने साफ कहा है कि नग़मा और लुब से दूर रहना, और उन्हें कुछ मत करना, कुछ मत कहो नग़मा को और लुबना को। वैसे भी नग़मा की शादी होने वाली है…”
नग़मा की आँखों में आँसू आ जाते हैं, और वो उठकर जीशान के पास आ जाती है-“भाईजान, मैं आपकी बहन हूँ , मुझसे ऐसा सौतेलापन क्यों? मैं आपका क्या बिगाड़ी हूँ ?”
जीशान-“देख नग़मा, तेरी शादी होने वाली है। अम्मी का कहना ठीक है। क्या सोचेंगे तेरे ससुराल वाले, जब उन्हें पता चलेगा कि त कुँवारी नहीं है?”
नग़मा-“अम्मी कौन होती हैं ये डिसाइड करने वाली कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं ? और आप इतने समझदार कैसे हो गये? जब अम्मी के साथ रात गुजारते थे तब कहाँ गई थी आपकी समझदारियाँ ? और जब मेरी दोस्त रूबी की अम्मी के साथ आपने वो सब किया तब कहाँ गई थी आपकी अकल? मुझे समझाने चले हैं…”
जीशान-“तुझे कैसे पता रूबी की अम्मी के बारे में?”
नग़मा-“मुझे रूबी सब बता चुकी है और उसके साथ आपने समर कैम्प में जो किया वो भी…”
जीशान को तब समझ में आता है की अपने रूम में चुपचाप सी रहने वाली नग़मा कुछ दिनों से बदली - बदली सी क्यों है? आखिरकार, रूबी ने नग़मा को सब कुछ बता दी थी, इसलिए नग़मा की कुँवारी चूत अपने भाई के लण्ड के लिए मचल रही थी।
जीशान नग़मा के बाल पकड़ लेता है।
नग़मा-“आह्ह… भाईजान्न… छोड़िए ना दर्द होता है…”
जीशान-“अच्छा? और जो तू करना चाहती है उससे दर्द नहीं होगा तुझे?
नग़मा-“वो बहन ही क्या जो अपने भाईजान की मोहब्बत को दर्द का नाम दे?” उसकी आँखों में आँसू थे और होंठों पर लरज़िश।
जीशान एक नजर सोफिया की तरफ देखता है। वो उन दोनों को ही देख रही थी। नग़मा जीशान के पैरों के पास बैठी थी।
जीशान-अच्छा तो तू मुझसे मोहब्बत करती है?
नग़मा-हाँ बेपनाह।
जीशान-“झूठ… सरासर झूठ…”
नग़मा-आजमा लो।
जीशान-“मोहब्बत में महबूब जो कहता है, जो करता है करना पड़ता है बीबी…”
नग़मा-मंजूर है।
जीशान अपने पैंट की जिप खोलने लगता है। मगर नग़मा उसके हाथ पर अपने हाथ रख कर उसे रोक देती है और खुद अपना हाथ अंदर डालकर जीशान के लण्ड को बाहर निकाल लेती है। जीशान हैरतजदा सा नग़मा को देखने लगता है।
नग़मा एक नजर भरकर जीशान को देखती है और अगले ही पल जीशान के लण्ड को मुँह में लेकर उसे अपने मुँह के अंदर जैसे छुपा लेती हैं-गलपप्प-गलपप्प।
जीशान-“नग़ ऽऽ आह्ह… तेरे माँ की…”
नग़मा बिना रुके उसे चूसती रहती है और अपनी कुँवारी बहन के मुँह की गर्मी जीशान सह नहीं पाता और 5 मिनट में ही अपना पानी नग़मा के मुँह में गिरा देता है। नग़मा एक-एक कतरा चाटती चली जाती है गलपप्प-गलपप्प।
पीछे से रज़िया उन्हें आवाज़ देती है-“मुँह मीठा हो गया होगा तो फॅक्टरी चले जाओ जीशान , तुम्हारी अम्मी का फोन आया था अभी-अभी।
तीनों चौंकते हुये रज़िया की तरफ देखते हैं, और नग़मा वहाँ से भाग जाती है। उसके जाने के बाद रज़िया के साथ-साथ जीशान और सोफिया के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। जीशान रज़िया और सोफिया को चूमते हुये फॅक्टरी चला जाता है।