Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र - Page 10 - SexBaba
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Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र

अब पायल का मुँह छोटा सा हो गया. अब डरने की बारी उसकी थी. पर फिर कुछ सोच उसने स्वीकार कर लिया.

मैं अब बिस्तर के बीच जाकर लेट गयी और वो सफ़ेद कपड़ा ले कमर से जांघो तक ढक दिया. अशोक मेरे सिरहाने बैठ गए और डीपू मेरे पावो के पास.

पायल अपने बेग से दो फीते ले आयी और डीपू को बोली इसके दोनों पैर चौड़े कर टांगो को एक दूजे से दूर बिस्तर से बाँध देना ताकि हिल ना पाए.

अशोक: “टांग बांधने की क्या जरुरत हैं, वो तो वैसे भी तैयार हैं.”

पायल: “ये सब ज्यादा उकसाने के तरीके हैं और रूल के अंदर हैं.” पायल ने अब वो ढका कपड़ा मेरे ऊपर से हटा दिया.

पायल: “तुम तो बोल रही थी ना कि तुम बिना कपड़े से ढके करवाओगी. ये कपड़ा नहीं मिलेगा अब तुम्हे.”

फिर पायल ने मेरा एक हाथ सिरहाने लाकर बिस्तर पर दबा दिया और दूसरा हाथ अशोक से कह के बिस्तर पर दबवा लिया. पायल ने अब मेरे स्लीप शर्ट के बटन खोलना शुरू कर दिया.

मैं: “मसाज नीचे की हैं तो ऊपर के कपड़े क्यों खोलना?”

पायल: “ये तुम्हे तब याद नहीं आया जब मेरा टॉप खोला था.”

उसने मेरे सारे बटन खोल कर शर्ट को सीने और पेट से पूरा हटा कर साइड में कर दिया. थोड़ी देर पहले लेवल वन वाली ही स्तिथि हो गयी थी मेरी.

डीपू: “प्रतिमा अब मैं तुम्हारा शार्ट निकाल रहा हूँ.”

उसने कल रात की तरह एक बार फिर मेरे शार्ट में अपनी ऊँगली घुसाई और धीरे धीरे प्यार से शार्ट को नीचे खिसकाने लगा. फर्क सिर्फ इतना था कि आज मेरे पति और खुद की पत्नी की मौजूदगी में उतार रहा था. मैंने पैंटी अभी भी पहनी हुई थी.

डीपू: “अरे तुम्हारी भी पैंटी गीली हो गयी थी क्या?”

पायल और अशोक भी मेरा हाथ छोड़े बिना, थोड़ी देर के लिए झुक कर देखने लगे. मैं शरमा गयी, उसने सबके सामने बोल दिया, चुप भी तो रह सकता था.

डीपू ने अब अपनी उंगलिया मेरी पैंटी में फँसायी और मजे लेते हुए धीरे धीरे नीचे खिसकाने लगा. मेरे पति के सामने उनकी बीवी को उनका दोस्त नंगी कर रहा था. जैसे जैसे मेरी पैंटी नीचे खिसकी मेरी गोरी गोरी चिकनी सफाचट चूत नजर आती गयी.

मैंने पायल का चेहरा देखा, मेरी सफाई देख उसका चेहरा देखने लायक था. मुझे बहुत ख़ुशी मिली. फिर अगले ही क्षण सोचने लगी मेरे पति क्या सोच रहे होंगे. मैंने ही लेवल टू के लिए हामी भरी थी. अब अगर मैं उनके सामने डीपू के हाथों झड़ गयी तो?

डीपू ने अब मेरी पैंटी टांगो से पूरी निकाल दी थी. डीपू ने अब वो फीते उठाये जो पायल ने उसे मेरी टांग बाँधने को दिए थे और एक एक फीता दोनों एड़ियों के वहा बाँधने लगा.

अशोक: “तुम सही में टाँगे बाँधने वाले हो?”

डीपू: “हां, मैडम की फरमाइश हैं, पूरी करनी पड़ेगी.”

उसने अब मेरी एक टांग पकड़ी और थोड़ा साइड में ले जाकर फैला दिया और उस फीते को पलंग के कोने से बांध दिया. मैं अपनी दूसरी टांग को भी पहले वाली के साथ रखे रही ताकि टाँगे ना खुले.

अब उसने मेरी दूसरी टांग पकड़ी और दूसरी तरफ ले जाकर टांगो को फैला दिया और उसको भी बाँध दिया. मेरी दोनों टांगो के एक दूसरे से दूर फैलते ही मेरी चूत की दरार खुल गयी.

डीपू: “ठीक हैं ना पायल?”

पायल: “देखो छेद खुला कि नहीं, वरना ओर चौड़े करो इसके पाँव.”

डीपू: “आकर देख लो, खुल गया हैं छेद.”

उनकी बातें सुन मैं शरमा रही थी. मैं किसी से नजरे नहीं मिला पा रही थी और छत की तरफ देखने लगी. पता नहीं कैसे मैं इस मुसीबत फंस गयी. किस घडी में मैंने हां बोल दिया और मुझे पता ही नहीं चला था. डीपू मेरी कमर की बगल में आकर बैठ गया.
 
अशोक: “तुम्हारी तैयारियां हो गयी हो तो शुरू करे? चलो थ्री टू वन गो.”

डीपू ने वहा से शुरू किया जहा अशोक ने ख़त्म किया था. अपनी एक ऊँगली मेरी चूत की दरारों पर रखी और जोर जोर से ऊपर नीचे रगड़ने लगा. उस रगड़ से उत्तेजित हो मैं आहें भरने लगी.

फिर उसने एक बजाय उंगलिया बढ़ाते हुए दो और फिर चार कर दी. अशोक की तरह वो भी तेजी से मशीन की तरह ऊपर नीचे हाथ कर बड़ी तेजी से रगड़ रहा था.

मेरी चिकनी सफाचट चूत की वजह से उसका हाथ अच्छे से फिसल रहा था पर घर्षण वैसा नहीं हो पाया जो पायल के बालों की वजह से पहले हुआ था.

मैं लगातार सिसकियाँ निकाले तड़प रही थी, क्यों कि जब भी उसकी उंगलिया नीचे जाती तो मेरी खुली चूत की वजह से उसकी उंगलिया मेरे छेद में थोड़ी धंसती हुई निकल रही थी.

तीन मिनट ऐसे ही निकल गए और डीपू को लगा कि पैतरा बदलना पड़ेगा. डीपू अब आकर मेरी दोनों फैली टांगो के बीच आकर बैठ गया.

उसने अब अपनी एक ऊँगली मेरे छेद में डाली और तेजी से अंदर बाहर करने लगा. ये तरकीब मेरे लिए ज्यादा परेशानी खड़ी करने वाली थी. उसकी ऊँगली के मेरी चूत को अंदर बाहर भेदने से मुझे मजा आने लगा. मैं जैसे तैसे नियंत्रण कर रही थी.

डीपू अब एक की बजाय दो उंगलियों से निशाना भेदने लगा. मेरी ओर तेज आहें निकलने लगी.

पायल डीपू का उत्साहवर्धन कर रही थी और मेरे पति मेरे कंधे पर एक हाथ फेरते हुए मुझे ढांढस बंधा रहे थे.

अब छह मिनट हो गए थे.

पायल: “दोनों में डालो डीपू दोनों में, जल्दी.”

डीपू थोड़ा ओर झुका और अपना अंगूठा मेरी गांड के छेद में डाल दिया. उसकी दो उंगलिया मेरी चूत के छेद में और अंगूठा गांड के छेद में एक साथ अंदर और बाहर हो रहे थे और मेरे लिए नियंत्रण करना ओर मुश्किल होता जा रहा था.

मैंने तड़प के मारे पाँव को ऊपर नीचे हिलाने की कोशिश की, जिससे जल्द ही पाँव को बांधें रखे वो फीते खुल गए और टाँगे आज़ाद हो गयी. मैं अपना मुँह खुला रख सदमे में सिसकियाँ निकाल रही थी.

अशोक ने घोषणा की आखिरी दो मिनट.

पायल : “डीपू अपना आखरी दांव लगा ही दो.”

डीपू ने अपनी उंगलिया मेरे छेदो से बाहर निकाली और मेरे घुटनो को मोड़ कर टाँगे ऊपर कर चौड़ी कर दी. अशोक और मैंने सोचा नहीं था कि वो ये करेगा.

उसने अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए. मेरी चूत की दोनों पंखुड़ियों को बारी बारी से अपने होंठों में फंसा हल्का सा ऊपर खिंच छोड़ देता.

मेरे दिमाग ने नशे के मारे काम करना बंद किया. मैं जोर जोर से गला फाड़ते हुए चिल्ला रही थी.

अशोक: “ये गलत हैं, इसकी बात नहीं हुई थी.”

पायल: “मसाज हाथ से करो या मुँह से, करना तो मसाज ही हैं. ये रूल के अंदर ही हैं.”

मेरे हाथ अभी भी पायल और अशोक ने दबा रखे थे और मैं तड़प रही थी.

पायल ने अब अपने दूसरे हाथ से मेरी चूंचीयों को दबाना शुरू कर दिया था. मैं अब चारो तरफ से गिर चुकी थी. मैंने हथियार डाल दिए. वो उन्माद मैं सहन नहीं कर पा रही थी. मुझे अब वो झड़ने की शर्मिंदगी झेलनी ही थी.

शायद उत्तेजनाओं को दबाने की शक्ति में, मेरे और पायल के बीच कोई फर्क नहीं था. मैं रह रह कर तड़प के मारे कभी अपने सीने का हिस्सा ऊँचा उठा देती तो कभी कूल्हों को बिस्तर से उठा ऊँचा कर देती.

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जैसे ही मेरा सीना ऊँचा होता तो खिंचाव से मेरे मम्मे और भी तन जाते और मेरे सीने के कर्व ओर भी खूबसूरती सी दिखाई देते.

डीपू चपड़ चपड़ की आवाज करते हुए अपनी जबान से मेरे छेद को चोद रहा था.

मैं अब झड़ने के करीब थी और मैं आह आह आह करते हुए अपना पानी छोड़ना शुरू ही करने वाली थी कि तभी स्टॉप टाइमर बज उठा.

डीपू को उठना पड़ा और बाकि दोनों ने भी मुझे छोड़ दिया.

पायल: “क्या यार एक बार फिर से होते होते रह गया. ये मुंह से मसाज तुम्हे थोड़ा पहले ट्राय करना था.”

डीपू के छोड़ देने के बाद भी मैं उसकी जबान अपनी चूत में महसूस कर पा रही थी. मेरी चूत के होंठ जैसे फड़फड़ाते हुए हलकी मसाज दे रहे थे. मेरे अंदर अभी भी कोई हलचल हो रही थी.
 
मैंने महसूस किया कि मेरा पानी अंदर ही अंदर धीरे धीरे छूट रहा हैं.

तभी मैंने जल्दी से अपनी पैंटी और शार्ट पहन लिया. मैंने अपना स्लिप शर्ट आगे की और से कवर करते हुए बिना किसी से बात किये भागते हुए बाथरूम में गयी.

मैंने अपनी ऊँगली चूत के अंदर डाल हिलाते हुए अपनी रही सही कसर पूरी कर झड़ गयी और अपनी अच्छे से सफाई की. ऊपर वाले को शुक्रिया कहा कि मुझे एक शर्मनाक स्तिथि से बाल बाल बचा लिया.

जब मैं बाहर आयी तो उन्होंने मेरा हाल चाल पूछा.

मैं: “हो गया तुम्हारा चैलेंज पूरा, तुम्हारे चैलेंज के चक्कर में मैंने अपनी इज़्ज़त गवां दी.”

पायल: “तुम तो ऐसे बात कर रही हो जैसे किसी ने तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध बना लिए हो.”

मैं: “अब बचा ही क्या था? कपडे खुल गए, हाथ, मुँह सब तो लगा दिया.”

अशोक: “अरे तुम इतना मत सोचो. ये सिर्फ एक चेलेंज था. और तुमने तो दोनों चेलेंज पार किये हैं.”

पायल: “इस चैलेंज के बहाने पता चला कि हमारी सहनशक्ति कितनी हैं. और इससे भी ज्यादा ये कि हमारे पतियों की सहनशक्ति कितनी हैं. तुमने ध्यान दिया, जब हमारे साथ ये हो रहा था तो पतियों की क्या हालत थी?”

डीपू: “क्या हालत थी? तुम्हारे साथ हुआ तब मैं एकदम नार्मल था.”

मैं: “अब झूठ मत बोलो, मैंने भी देखी थी तुम्हारी हालत.”

पायल: “अभी साबित करती हूँ डेमो देके. अशोक जरा अपनी गोदी में जगह बनाना तो.”

ये कहते हुए पायल अशोक की गोद में जा बैठी और डीपू के हाव भाव पढ़ने लगी.

पायल: “कैसा लग रहा हैं, मैं अशोक की गोद में बैठी हूँ?”

डीपू : “ऐसा कुछ नहीं हैं. एक दोस्त दूसरे की गोद में नहीं बैठ सकता क्या?”

पायल ने अब अशोक का एक हाथ पकड़ा और उसके पंजे को अपनी छाती के उभारो से दो इंच दूर पकड़ कर रखा.

पायल: “अब जलन हो रही हैं क्या?”

मैं: “ये देखो, डीपू के माथे पर शिकन शुरू हो गयी हैं. इसको जलन हो रही हैं.”

मेरे चिढ़ाने से नाराज हो, डीपू ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खिंच कर मुझे अपनी गोद में बैठा दिया.

डीपू : “अब बोलो पायल, तुम्हे कैसा लग रहा हैं?”

पायल ने जो अशोक का हाथ पकड़ रखा था उस पंजे को अपने एक मम्मे पर रख दिया.

अशोक: “अरे, ये क्या कर रही हो. चेलेंज ख़त्म हो चूका हैं.”

पायल : “बोलो डीपू, जलन हुई न?”

डीपू ने तेजी से मेरे स्लीप शर्ट का ऊपर का एक बटन खोल दिया. मैं एक दम चीखी और अपना बटन बंद करने को हाथ बढ़ाया, पर डीपू ने मेरी दोनों पतली कलाइयों को मेरी गोद में रख अपने एक हाथ से झकड़ लिया. मेरे शर्ट के एक बटन खुलने से मेरा क्लीवेज दिखने लगा.

मैं: “तुम दोनों की लड़ाई में मुझे क्यों पीस रहे हो?”
 
उन दोनों के बीच एक दूजे को जलाने का कम्पटीशन शुरू हो चूका था. पायल ने अब अशोक का दूसरा हाथ पकड़ा और उसके दूसरे पंजे को भी अपने दूसरे मम्मे पर रख दिया. मेरे पति उनकी इस नादानी पर हंस पड़े. पायल डीपू को देखने लगी.

डीपू ने अपने फ्री हाथ से मेरे स्लीप शर्ट का दूसरा बटन भी खोल दिया और अपना हाथ मेरे शर्ट में घुसा कर मेरा मम्मा दबोच लिया. मैं जोर से चिल्लाई “क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.”

अशोक ने पायल को अपनी गोद से हटाया और डीपू को डांटने लगे “ये अब तुम्हारा ज्यादा हो रहा हैं. चेलेंज तक ठीक था, मर्जी से हो रहा था पर उसकी इच्छा के खिलाफ उसको तुम हाथ नहीं लगा सकते.”

डीपू ने मुझे छोड़ दिया और अशोक से बोला: “सॉरी अशोक, मेरा ये मकसद नहीं था. मैंने मजाक मजाक में लिमिट क्रॉस कर दी. सॉरी प्रतिमा, मैंने तुम्हे गलत नीयत से नहीं छुआ था. बस ऐसे ही पायल को जलाने के लिए किया था.”

पायल: “एकदम सही, मैं यही चेक कर रही थी. डीपू मुझे अशोक की गोदी में नहीं देख पाया और अशोक ये नहीं सहन कर पाया कि कोई दूसरा प्रतिमा को छू रहा हैं. तुम मर्दो ने सिर्फ कहने भर के लिए उस चेलेंज के लिए हां बोला था पर असल में तुम पछता रहे थे.”

अशोक: “मैं तो सिर्फ प्रतिमा को बचा रहा था.”

मैं: “बीवी की रक्षा की वो अच्छा किया तुमने, पर जलन तो हुई थी ना?”

अशोक: “अब मैं कैसे यकीन दिलाऊ. मुझे अच्छा लगा कि तुमने चैलेंज लिया और जीती भी.”

डीपू: “मैं भी समर्थन करता हूँ. जलन वाली कोई बात ही नहीं थी.”

पायल: “अगर प्रतिमा चेलेंज हार जाती फिर भी तुम यही कहते अशोक?”

अशोक: “हां भाई, हार जीत से क्या फ़र्क़ पड़ता हैं. ये कोई असली टेस्ट थोड़े ही था. मुझे अपनी वाइफ पर पूरा यकीन हैं.”

पायल: “शरीर को नियंत्रित करने का ही तो चेलेंज था. अगर इससे थोड़ा मुश्किल टेस्ट होता तो शायद प्रतिमा हार जाती.”

डीपू: “तुम्हारा इशारा चेलेंज के तीसरे लेवल की तरफ तो नहीं हैं?”

अब वो लोग तीसरे लेवल की भी बात करने लगे थे. मुझे अब वहाँ से दूर जाना ही सही लगा.

मैं: “चलो अशोक, अब चलते हैं.”

पायल : “ये लो, ये तो सुनने से भी डर रही हैं. वैसे ये चेलेंज सिर्फ बीवियों का नहीं पतियों का भी हैं.”

अशोक: “फिर तो सुनना पड़ेगा, ऐसा क्या हैं?”

पायल: “इस टेस्ट में सारे कपल एक साथ लेटते हैं. पर कुछ इस तरह कि पति पत्नी आस-पास नहीं लेट सकते. बीवियों को कोशिश करनी हैं कि वो बिना अपने शरीर का नियंत्रण खोये पूरी रात गुजारे. जो बीवी सुबह तक नियंत्रण रख पायी वो जीत जाती हैं. इसी तरह पतियों को कोशिश करनी हैं कि वो दूसरे की बीवियों को उकसा कर उन्हें हरवाये ताकि उनकी खुद की बीवी जीत जाये.”

डीपू: “ऐसे तो कोई भी पति दूसरे की पत्नी के साथ जबरदस्ती भी कर सकता हैं.”

पायल: “रुल के हिसाब से कोई किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता और न ही शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति होती हैं. हार तब होती हैं जब बीवी ये स्वीकार कर ले कि वह अब ओर नियंत्रण नहीं कर पाएगी या फिर उसका खुद ही हो जाये. जैसा मुझे दूसरे लेवल में हुआ था.”

अशोक: “मतलब औरतो की सेफ्टी हैं इसमें. कोई जोर जबरदस्ती नहीं.”

मैं: “ओर पति लोग उकसाने के लिए क्या क्या करेंगे?”

पायल: “कपड़े खोलने और अपने शरीर से उसके शरीर को छूने की खुली छूट हैं, पर मर्द अपना कोई अंग स्त्री के अंगो में नहीं डाल सकते. ऊँगली तक नहीं.”

डीपू: “फिर तो ये बीवियों के लिए बहुत आसान हो जायेगा.”

अशोक: “ये तो पिछले दो लेवल से ज्यादा आसान हैं. मुझे लगा तीसरा लेवल सबसे कठिन होगा.”
 
मैं: “मुश्किल शायद ये हैं कि क्या मर्द अपनी बीवियों को दूसरे मर्द के साथ रात भर लेटा हुआ सहन कर पाएंगे कि नहीं. भले ही उनके बीच कुछ गलत नहीं हो रहा हो.”

पायल: “एकदम सही, उनके मन में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहेगा. खास तौर से जब उनकी बीवी बिना कपड़ों के किसी से चिपक कर सो रही होगी.”

डीपू: “कुल मिला के आप अपनी बीवी पर कितना भरोसा करते हो इसका टेस्ट.”

अशोक: “विजेता का फैसला कैसे होता हैं?”

पायल: “जो बीवीयां सुबह उठ कर बोल दे कि उन्होंने हार नहीं मानी.”

डीपू : “ऐसे तो कोई बीवी झूठ भी बोल सकती हैं.”

मैं: “आस पास दूसरे लोग भी तो होंगे. खास तौर से वो मर्द जो उसके साथ लेटा हैं. वो मर्द किसी ओर को जितवाने के लिए के लिए अपनी बीवी को तो नहीं हरवायेगा.”

अशोक: “सही कहा, दरअसल ये खेल मिया बीवी को मिल कर खेलना हैं. एक को उकसाने का काम करना हैं तो दूसरे को सहने का.”

पायल: “हैं न मजेदार चेलेंज?”

डीपू: “तो ये लेवल पहले करवा देती, शुरू के दो लेवल की क्या जरुरत थी?”

मैं: “मुझे बहुत नींद आ रही हैं अशोक, चलो हम चलते हैं.”

पायल: “प्रतिमा तुम सोने जाओ, वैसे भी तुम्हे कल मैंने लिखी वो सजा मिलेगी.”

मैं: “मुझे क्यों सजा मिलेगी ! मैंने चेलेंज करने से मना थोड़े ही किया था.”

पायल: “चेलेंज के रूल तोड़ने की सजा. हमने कपड़े से ढकने का रूल बनाया था, पर तुमने मेरे ऊपर से कपडा हटा दिया था.”

मैं: “पर तुमने भी तो मुझे कपड़ा नहीं लगाने दिया था.”

पायल: “क्युकी वो तुम्हारी चॉइस थी. तुमने ही तो पहले कहा था कि तुम बिना कपड़ा लगाए करवाओगी.”

डीपू: “हां प्रतिमा ने बोला था वो बिना कपड़े के ढके करवाने को रेडी थी.”

मैं: “पर ये तो गलत हैं, मैं जीती फिर भी मुझे ही सजा. अशोक कुछ तो बोलो, मैं ये सजा नहीं ले सकती.”

अशोक: “अब तुम्ही लोगो ने रूल बनाये, तुम्ही ने तोड़ा और सजा भी बनाई.”

पायल: “अशोक ये अब तुम्हारी जिम्मेदारी हैं कि तुम प्रतिमा से सजा पूरी करवाओगे.”

अशोक: “अरे करवा दूंगा. पर सजा हैं क्या? ”

पायल: “सजा तो कल ही दे पाएंगे. अभी तुम अपनी मम्मी की कसम खाके बोलो तुम प्रतिमा से सजा पूरी करवाओगे.”

मैं: “मत खाना कसम, फंस जाएंगे.”

अशोक: “अरे ऐसा क्या हैं सजा में?”

डीपू : “क्या फर्क पड़ता हैं, छोडो ना, कोई शरारत होगी. तुम खा लो कसम.”

अशोक: “ठीक हैं बाबा, माँ की कसम, प्रतिमा से सजा पूरी करवा दूंगा.”

पायल: “यस, अब मजा आएगा प्रतिमा का.”

अशोक: “वैसे सजा तो तुम्हे भी मिलेगी, रूल तो तुमने भी तोडा था.”

पायल “कौन सा रूल तोडा था?”

अशोक: “आखिरी के दो मिनट में तुमने प्रतिमा की छाती को मसाज दिया. रूल के हिसाब से मसाज सिर्फ डीपू को ही देना था.”

मैं: “यस, वैरी गुड अशोक. डीपू अब तुम कसम खाओ कि पायल से सजा पूरी करवाओगे.”

डीपू: “रूल तो सबके लिए बराबर हैं. दोनों को सजा मिलेगी. मैं भी मम्मी की कसम खाता हूँ, पायल से सजा पूरी करवाऊंगा.”

पायल: “एक काम करो, हम दोनों की सजा को आपस में कैंसिल कर दो.”

मैं: “हां, ये ठीक हैं.”

अशोक: “एक तो तुम हमको बता नहीं रहे हो कि सजा क्या हैं और अब खुद ही कैंसिल करवा रहे हो.”

डीपू: “हमने तो माँ की कसम भी खा ली, अब कुछ नहीं हो सकता. सजा तो पूरी करनी ही पड़ेगी. लाओ चिठ्ठी क्या सजा हैं.”

पायल: “अब कल ही देख लेना क्या है सजा.”

मैं: “चलो अशोक नींद आ रही हैं”.

पायल: “हां तुम सोने ही जाओ, अगर चेलेंज का तीसरा लेवल शुरू हो गया तो तुम्हारी सहनशक्ति की पोल खुल जाएगी.”

मैं: “तुम्हे जो बोलना हैं वो बोल दो, अब मैं तुम्हारी बातों में आ कर कोई चेलेंज नहीं करने वाली.”

अशोक: “पर तूम लोग तो बोल रहे थे कि इस लेवल में असली चेलेंज तो मर्दो के लिए हैं.”

डीपू: “अब सोना ही हैं तो उस कमरे में सोओ या यहाँ, क्या फर्क पड़ता हैं. बेड वैसे भी किंग साइज हैं, चार लोग सो सकते हैं.”
 
पायल: “मैं तो दूसरा लेवल वैसे ही हार चुकी हूँ, तीसरे का क्या फायदा?”

डीपू: “तुम प्रतिमा को हारते हुए देख पाओगी.”

पायल: “हां, ये फायदा तो हैं. पर हम औरतो के लिए आसान नहीं हैं इस तरह बिना कपड़ो के किसी ओर के साथ सोना.”

मैं: “सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली.”

पायल: “क्या मतलब?”

मैं: “पहले दोनो लेवल में क्या किया था हमने? वहा भी कपडे तो खुले ही थे सबके सामने.”

अशोक: “लाइट बंद रख सकते हैं या चद्दर ओढ़ सकते हैं.”

डीपू: “जब कुछ दिखेगा ही नहीं तो सहनशक्ति कैसे टेस्ट होगा!”

पायल: “तुम मर्दो को अब भी लगता हैं कि तुम में सहनशक्ति हैं! एक मिनट किसी की गोदी में तो देख नहीं पाए.”

अशोक: “चलो मर्द बनाम औरत का मुकाबला हो जाये. किस मे ज्यादा सहनशक्ति हैं.”

पायल: “क्या बोलती हो प्रतिमा, इनको सबक सिखाये?”

मैं: “सोच लो, हमारे साथ क्या क्या बीतेगी.”

पायल: “जो भी बीतेगी, सहन तो इन दोनों को ही करना पड़ेगा.”

मैं: “तुम औरत अकेली ना पड़ जाओ इसलिए साथ दे देती हूँ.”

डीपू: “सब लोग बाथरूम हो आओ. रूल के हिसाब से एक बार लेटने के बाद उठना नहीं हैं सुबह तक.”

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हम चारो अब चेलेंज के तीसरे लेवल के लिए तैयार हो गए. मैं और पायल बिस्तर के बीच में आमने सामने मुँह कर करवट लेकर लेट गए. मेरे पीछे डीपू लेटा था और पायल के पीछे अशोक.

हम लेट तो गए पर माहौल बड़ा अजीब सा लग रहा था. पति अपनी पत्नियों को किसी ओर के साथ लेटा देख रहे थे, जैसे वो उनकी नहीं उनके दोस्त की ही पत्नी हो. ऐसा ही हाल हम बीवियों का भी था.

थोड़ी देर पहले तक जो आसान लग रहा था वो इतना भी आसान नहीं था. कुछ सेकण्ड्स तक तो हम लोग ऐसे ही बिना कुछ किये लेटे रहे.

मर्दो के नाजुक अंग हम बीवियों के पिछवाड़े को छू रहे थे, तो शायद थोड़ी ही देर में उनके खम्बे भी जागने लगी थी.

पर अपने दोस्त और बीवी के डर से उनकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी. वो दोनों अपनी कोहनियो से तकिया बना कर अपना सर थोड़ा ऊपर उठा कर लेटे थे.

पायल: “अब ऐसे ही लेटे रहना हैं तो इस से अच्छा है सो ही जाए.”
 
मैं: “मुझे लगता हैं ये दोनों सहन नहीं कर पाएंगे इसलिए आपस में हाथ मिला लिया हैं.”

अशोक: “ऐसा कुछ नहीं हैं. अब देखो.”

ये कहते हुए अशोक ने पायल का टैंकटॉप ऊपर खिसकाना शुरू किया और उसके मम्मो को बाहर कर दिया. फिर पायल के सर से होते हुए पूरा टॉप बाहर निकाल दिया.

पायल: “देखो देखो, डीपू की हालत देखो. तड़प रहा हैं.”

मैंने अपनी गर्दन थोड़ी मोड़ते हुए डीपू के चेहरे को पढ़ा. उसकी हवाइयाँ उडी हुई थी. डीपू नकली हंसी दिखा रहा था. मैं फिर सीधा देखने लगी.

पायल का हाथ उसके सर के ऊपर था जिससे उसकी कांख के छोटे छोटे बाल भी दिखाई दे रहे थे, उसने उनकी भी शायद कुछ समय से सफाई नहीं की थी.

अशोक ने अपने होठ वही पे लगा दिए और चूमने लगा.

चूमते चूमते वो अपने होंठ पायल के साइड बूब्स के उपर ले आया और चूमता रहा. पायल के गहरे गुलाबी निप्पल एक दम तन से गए और उसक सीने के रोंगटे खड़े हो गए. पायल सिसकिया निकालने लगी.

मैंने एक बार फिर गर्दन मोड़ कर डीपू को देखा, वो कड़वे घूंट पी रहा था. खास तौर से जिस तरह पायल सिसकियाँ मार रही थी.

मैं फिर आगे का नजारा देखने लगी. मुझे भी थोड़ी जलन तो हो रही थी पर इससे भी ज्यादा मैं देख चुकी थी दोपहर में अशोक और पायल को.

अशोक ने अब चूमना बंद किया अपने हाथों से पायल की गुलाबी चूंचियो अपने हाथों और उंगलियों से रगड़ने लगा.

पायल: “क्या हुआ मेरे पति, सहन तो कर पा रहे हो ना?”

डीपू ने आव देखा ना ताव और मेरे सीने पर हाथ मार मेरे स्लिप शर्ट के चारो बटन खोल दिए, और मेरे ऊपर की बाजु से शर्ट को पूरा निकाल दिया. फिर आगे झुकते हुए नीचे की बांह से भी शर्ट को खिंच कर पूरा निकाल दिया.

पायल: “लगता हैं डीपू को गुस्सा आ गया हैं. प्रतिमा तूम तो गयी.”

कुछ ही देर पहले पायल की हालत देख मेरे मम्मे वैसे ही तन गए थे. उसके शर्ट खोल देने से हल्की ठण्ड लगी और मेरे भी गूज़बम्प निकल आये.

अब डीपू भी गम कम करने के लिए मेरी चूंचियो को हाथ लगा मलने लगा. पर वो बड़े प्यार से कर रहा था, शायद मेरे मजे लेना चाहता था या फिर मेरा मूड बना मुझे हराना चाहता था.

पायल: “अब अशोक को देखो, अपनी बीवी को अपने ही दोस्त के हाथों नंगे होता देख इसको भी गुस्सा आ रहा हैं, देखो कैसे मसल रहा हैं मेरे सीने को.”

अशोक ने अपना हाथ अब आगे से पायल के पाजामे में डाल दिया. पायल के पाजामे में अशोक का हाथ ऊपर नीचे हिलता हुआ दिख रहा था. पायल नशीली आहें भर डीपू को जलाने लगी.

पायल: “उम्म, आह, आ हा हां, क्या जादू हैं तुम्हारे हाथों में अशोक. डीपू को तो कुछ आता ही नहीं.”

डीपू ने भी बदले की नीयत से अपना हाथ मेरी नाभी पर रखा और घसीटते हुए मेरी चूत पर ले गया, और शार्ट के ऊपर से ही मेरी चूत को एक हाथ से दबोच लिया. फिर शार्ट के ऊपर से ही मेरी चूत को अपने हाथ से रगड़ने लगा.

मुझे मजा तो आ रहा था पर बता नहीं रही थी, बस मन ही मन मुस्करा रही थी. पायल अपनी चूत को रगड़वाने से आहें भरती जा रही थी.

अब डीपू ने मेरे शॉर्ट्स को रगड़ना बंद किया. अपनी चारो उंगलिया एक दूसर से सटा कर पेट पर रख अपना हाथ धीरे धीरे नीचे फिसलाते हुए उंगलिया मेरी शॉर्ट्स और पैंटी में डाल दी. जैसे जैसे उसका हाथ मेरी पैंटी में घुसता गया मेरी हलकी आहें निकलती गयी.

जैसे ही उसका हाथ मेरी चूत की दरारों को छुआ मेरी एक गहरी सांस से सिसकी निकली. वो अपनी उंगलियों को चूत की दरार पर रगड़ते हुए नीचे छेद तक ले गया.

मैं: “आह्ह, अंदर ऊँगली मत डालना रूल के खिलाफ हैं.”

वो भी अब मेरी चूत की दरारों में अपनी उंगलिया फेरने लगा. मैं आँख बंद करते हुए उसकी मालिश को महसूस कर रही थी और अपनी आहों को दबाने की कोशिश कर रही थी.

थोड़ी देर बाद उसने मेरी चूत को रगड़ना बंद किया. मेरी आँखें अभी बंद ही थी और उसने हाथ मेरी पैंटी से निकाल कर मेरे मम्मो पर रख दिया.

माहौल थोड़ा हल्का हो रहा था. पायल एक राग में हलकी हलकी सिसकिया निकालते हुए जैसे लौरी सुना रही थी. डीपू बड़े प्यार से मेरे मम्मो को सहला रहा था. दिन भर की थकान और उस सहलाने और लौरी से पता ही नही चला मेरी आँख कब लग गयी.

मेरी नींद फिर से खुली. सामने पायल गहरी नींद में सोई हुई थी और उसके पीछे अशोक सोये थे. अशोक का हाथ पायल की कमर को लपेटे हुए था.

पीछे घडी में देखा तो रात के तीन बज रहे थे. एक दम शांती थी सब सो रहे थे. मेरे पीछे कोई चिपक के सोया था और उसका नंगा बदन मैं अपनी पीठ पर महसूस कर पा रही थी.

मुझे कुछ खुला खुला सा लगा और मैं अपना हाथ अपने कूल्हे पर ले गयी, मेरे नीचे के कपडे भी नहीं थे. जब आँख लगी थी तब मैंने शॉर्ट्स पहन रखे थे, शायद उसके बाद डीपू ने ही निकाले होंगे.
 
पीछे घडी में देखा तो रात के तीन बज रहे थे. एक दम शांती थी सब सो रहे थे. मेरे पीछे कोई चिपक के सोया था और उसका नंगा बदन मैं अपनी पीठ पर महसूस कर पा रही थी.

मुझे कुछ खुला खुला सा लगा और मैं अपना हाथ अपने कूल्हे पर ले गयी, मेरे नीचे के कपडे भी नहीं थे. जब आँख लगी थी तब मैंने शॉर्ट्स पहन रखे थे, शायद उसके बाद डीपू ने ही निकाले होंगे.

मेरी गांड पर मैं डीपू का नरम पड़ा लंड चिपका हुआ महसूस कर रही थी. पायल और अशोक के नीचे के कपड़े भी नहीं थे. हम चारो पुरे नंगे एक दूसरे के पार्टनर के साथ सोये हुए थे.

पता नहीं मेरे सोने के बाद क्या हुआ था. डीपू का हाथ मेरे दोनों मम्मो के बीच की गली में फंसा पड़ा था. मैंने डीपू के कूल्हे को हिलाकर उसको जगाने की कोशिश की. वो जाग गया और पूछा “क्या हुआ सुबह हो गयी क्या?”

मैं दबी आवाज में फुसफुसाते हुए बात करने लगी. “नहीं, अभी तीन बजे हैं. ये बताओ मेरे सोने के बाद क्या हुआ था?”

डीपू: “तुम्हारे सोने के बाद भी ये दोनों मुझे चिढ़ाने के लिए कुछ न कुछ हरकतें करते रहे. अशोक ने पायल का पाजामा और पैंटी निकाल दिया था तो मैंने भी उसको चिढ़ाने को तुम्हारे नीचे के कपड़े निकाल दिए थे.”

मैं: “और तुम दोनों के कपड़े?”

डीपू: “अशोक ने खुद ही अपने कपड़े निकाल दिए पायल के उकसाने पर. तो मैंने भी वैसा ही किया. पर तुम सोई थी तो तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं थी तो मुझे भी बोरियत महसूस होने लगी और मैं तुमसे चिपक कर लेटा और फिर पता नहीं कब नींद आ गयी.”

मैं: “तुम जब सोये थे तब ये दोनों जाग रहे थे?”

डीपू: “हाँ.”

मैं: “तुम्हे क्या लगता हैं? इन दोनों ने कुछ किया होगा हम दोनों के सो जाने के बाद?”

डीपू: “नहीं, पायल ऐसा नहीं कर सकती. चेलेंज के रूल के हिसाब से भी अंदर डालना मना हैं.”

मैं: “पायल के नीचे देखो, दोनों जांघो के बीच में अशोक के अंग की टोपी पायल की योनी के एकदम पास.”

डीपू: “शायद पायल को उकसा कर चेलेंज में हराने के लिए दोनों जांघो के बीच लगाया हो, अंदर डाला हो इसके कोई सबूत नहीं.”

मैंने अपनी ऊँगली पायल के नीचे ले गयी और इशारा किया “ये देखो, पायल के नीचे के बाल आपस में चिपके हुए हैं. ऐसा चिकने पानी से होता हैं. पानी तो सूख गया पर बाल चिपक गए. मुझे गड़बड़ लग रही हैं.”

डीपू: “सही हैं, इन धोखेबाजो को मैं सबक सिखाऊंगा. मैं तुम्हे अभी चोदूंगा और अपना लंड तुम्हारे अंदर ही रख कर हम सो जायेंगे. सुबह जब ये उठ कर देखेंगे तो इनको पता चलेगा धोखा देना क्या होता हैं.”

मैं: “पागल हो क्या? करना हैं तो कर लो पर इनको नहीं पता चलना चाहिए कि हमने पूरा किया हैं. मेरे पति को मेरे पर भरोसा हैं, वो टूटना नहीं चाहिए.”

डीपू अपना लंड रगड़ कर कड़क करने लगा, उसको मुझे चोदने का मौका एक बार फिर मिल गया था. वैसे भी वो कल शाम को बहुत तड़पा था जब मेरे पति के सामने ही मसाज कर रहा था और आगे कुछ कर नहीं पाया था.

मैं: “कम से कम अब तो कंडोम पहन लो. दो बार बिना प्रोटेक्शन कर चुके हो.”

डीपू : “नहीं हैं, मैं दो रात के हिसाब से दो ही लाया था. एक सुबह घूमने जाने से पहले पायल पर इस्तेमाल कर लिया पर दूसरा मिला नहीं.”

मैं: “दूसरा कहाँ गया?”

डीपू : “नहीं मिला, पायल ने बोला इधर उधर कही बेग में छुप गया होगा, पर मुझे नहीं मिला.”

मैं सोचने लगी, उस रात जब अशोक इतनी देर से वापिस रूम में आये थे, तब हो न हो वो पायल के साथ ही थे, एक कंडोम तब यूज हुआ होगा. शायद पायल को अभी तक पता नहीं हैं कि मेरे पति किसी को माँ नहीं बना सकते.

मैं: “तो फिर पीछे वाले छेद में कर लो.”

डीपू: “आगे लेने में तुम्हारी हालत ख़राब हो जाती हैं, पीछे वाले छेद में ये लंबा वाला लंड सहन कर पाओगी तुम?”

मैं: “नहीं, आगे ही ठीक हैं. पीछे वाले में तो मेरी चीखें ही नहीं रुकेगी.”

डीपू: “चलो मेरा कड़क होकर तैयार हैं. दो बार बिना प्रोटेक्शन किया हैं तो एक बार ओर सही. वैसे भी दोपहर में मैं तुम्हे इमरजेंसी पिल लाकर दे दूंगा.”

मैं: “पक्का दे देना. और धीरे धीरे करना, तुम्हारा बहुत लंबा हैं, मेरी चीख निकली तो भांडा फुट जायेगा.”

डीपू: “दिन में जंगल में किया था तब तो इतनी चीख नहीं निकली थी.”

मैं: “तब तो वो दोनों मेरे सामने उधर नीचे खड़े थे न. बड़ी मुश्किल से रोका था खुद को.”

डीपू “तो अभी ये दोनों तुम्हारे सामने ही तो हैं. फिर से कण्ट्रोल कर लेना, पर मैं तो जैसे करता हूँ वैसे ही करूँगा.”

अब उसने अपना कड़क लंबा लंड पकड़ कर मेरी चूत के मुहाने पर रख दिया, और अपने हाथ से मेरे कूल्हे की हड्डी पकड़ते हुए मेरे कूल्हों के अपनी तरफ खिंचा और खुद को आगे की तरफ धक्का लगाते हुए अपना लंड मेरी चूत में पूरा पेल दिया. मेरी तो चीख निकलते निकलते बची.

वो अब गचागच झटके मारता हुआ मेरी चूत को चोद रहा था, और मैं बड़ी मुश्किल से अपने दोनों होंठों को भींचते हुए अपने कराहने की आवाज अंदर ही अंदर दबा रही थी.
 
मैं अपनी आँखें खुली रखने का प्रयास कर रही थी. ताकि देख पाऊ सामने लेटे दोनों लोग कही उठ ना जाये पर अपनी सिसकियों की आवाज को दबाने के चक्कर में मेरी आँखें बंद ज्यादा रही.

डीपू के लंड में सचमुच एक जादू सा था, या फिर मेरी चूत इसी तरह के लंड के लिए बनी थी. थोड़ी ही देर में हम दोनों का पानी बनने लगा था. और फच्च फच्च की आवाजे आने लगी.

मैं: “रुको, आवाज आ रही हैं. अब धीरे धीरे करो. थोड़ी देर में पानी छुट जाएगा फिर जोर से कर लेना.”

डीपू अब धीमे धीमे धक्के मारते हुए अंदर बाहर करने लगा. अब चिकने पानी पर लंड के रपटने की हलकी सी चिप चिप की आवाज आ रही थी.

धीरे धीरे जैसे ही वो आवाज बंद हुई तो डीपू ने फिर से जोर से झटके मारना शुरू कर दिया. वो अपने झटके इस तरह से एडजस्ट कर रहा था जहा से कम से कम आवाज आये.

जैसे भी झटके हो मेरी तो हालत ख़राब हो रही थी. मजा बहुत आ रहा था पर आवाज निकाल ही नहीं पा रही थी.

थोड़ी देर ऐसे ही चोदते चोदते हम दोनों एक के बाद एक झड़ गए. डीपू का लंड अभी भी मेरी चूत में ही था.

मैं: “चलो अब बाहर निकालो.”

डीपू: “अरे रहने दो ना, थोड़ी देर में नरम पड़ कर अपने आप बाहर आ जायेगा.”

मैं: “तुम मरवाओगे मुझे.”

डीपू मुझसे चिपक के लेटा रहा और मेरे मम्मो को हौले हौले सहलाता रहा और कच्ची नींद में उठने से मैं एक बार फिर नींद की आग़ोश में चली गयी.

सुबह मेरी आँख खुली. पायल और अशोक वहां नहीं थे. सामने घडी में देखा आठ बज चुके थे. तभी सामने बाथरूम से पायल और अशोक कपड़े पहने हुए बाहर आये, वो कुछ बातें कर रहे थे. मैंने अपनी आँखें बंद कर ली.

डीपू मेरे पीछे से चिपक के सोया हुआ था. उसका लंड मेरी दोनों जांघो के बीच फंसा था, चूत के एकदम पास.

मैं सोच में पड़ गयी, अशोक ने पता नहीं क्या देखा होगा. जब अशोक उठा होगा तब तक क्या डीपू का लंड मेरी चूत में ही होगा.
 
मैं सोच में पड़ गयी, अशोक ने पता नहीं क्या देखा होगा. जब अशोक उठा होगा तब तक क्या डीपू का लंड मेरी चूत में ही होगा.

अशोक और पायल अब बिस्तर के नजदीक आते जा रहे थे और उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगी. मैं बिना हिले ढूले उनको बातें सुननी लगी.

पायल: “तुम मानो या न मानो, इन दोनों ने पक्का कोई गुल खिलाया हैं. देखो प्रतिमा की चूत के एकदम बाहर डीपू का लंड हैं.”

अशोक: “तुम प्रतिमा को नहीं जानती, बहुत पतिव्रता हैं. कल भी चेलेंज के टाइम वो कितना घबरा रही थी. उसने कुछ नहीं किया होगा.”

पायल: “तो फिर उसने डीपू को उसका लंड अपनी चूत के इतना करीब कैसे आने दिया, लगभग छू रहे हैं.”

अशोक: “दोनों अंग इतने पास में हैं इसका मतलब ये थोड़े ही न हैं कि अंदर भी डाला ही होगा. अगर डीपू ने प्रतिमा को सोते हुए कुछ किया होता तो प्रतिमा जग जाती और उसको रोक देती.”

पायल: “तुम्हे डीपू के लंड पर सूखा हुआ सफ़ेद पानी नहीं दिख रहा क्या?”

अशोक: “डीपू का थोड़ा बहुत पानी निकल गया होगा, प्रतिमा सो गयी थी, उसको थोड़े ही पता होगा.”

पायल: “चलो अभी इनको उठा कर पूछते हैं.”

पायल और अशोक अब हम दोनों को उठाने लगे. मैंने नींद में होने का नाटक किया, पर डीपू जग गया और उन दोनो को देख हड़बड़ी में मुझसे अलग हुआ.

फिर मैंने भी अपनी आँखों पर हाथ मलते हुए अपनी आँखें खोली. उनको देखते ही मैंने भी जल्दी से वहा पड़े अपने कपड़े उठाये और पहनने लगी. डीपू ने तब तक अपना पाजामा पहन लिया था.

पायल: “अब कपड़े पहनने का क्या फायदा, सब कुछ तो कर लिया तुमने.”

मैं: “क्या बकवास कर रही हो? तुम लोग रात को मस्ती कर रहे थे और मेरी आँख लग गयी, उसके बाद तो मैं अब उठी हूँ. मेरे नीचे के कपड़े किसने खोले?”

अशोक: “चिंता मत करो, हमारे सामने कल रात को डीपू ने ही खोले थे.”

डीपू: “प्रतिमा के बाद मुझे भी नींद आ गया थी. तुम लोगो का क्या हुआ फिर?”

पायल: “क्या होना था, तुम दोनों तो सो गए, फिर अशोक ने मुझे उकसाना जारी रखा और फिर मैंने हार मान ली.”

डीपू: “हार गयी ! मतलब?”

पायल: “ज्यादा शक मत करो, मैंने अशोक को बोल दिया कि अब परेशान करना बंद करो मैं हार मान लेती हूँ.”

डीपू: “मैं शक थोड़े ही कर रहा हूँ. मैं तो ये कह रहा था कि ये राउंड तो तुम्हारे लिए ज्यादा आसान था.”

पायल: “तुमने तो मेरी मदद नहीं की ना. तुम प्रतिमा को हराने की कोशिश कर सकते थे, पर सो गए.”

डीपू: “अब नींद आ गयी तो क्या कर सकते हैं.”

पायल: “मेरे साथ तो गलत हुआ न? प्रतिमा सोने की वजह से बच गयी. ये अनफेयर हैं. देखा जाये तो प्रतिमा ने चेलेंज पूरा किया ही नहीं.”

अशोक: “अरे अब छोडो, नहा धो कर नाश्ता कर लेते हैं. हम चेकआउट करके सामान होटल के लॉकर में रख देते हैं, फिर घूमने निकलते हैं. शाम को हमें घर के लिए निकलना भी हैं.”

मैं: “चलो चलते हैं, हमारा रूम कल रात से सूना पड़ा हैं. एक रात के पैसे बर्बाद हो गए.”

पायल: “चेकआउट तो बारह बजे तक कर सकते हैं. तब तक यही रुकते हैं. वैसे भी आज ज्यादा जगह नहीं हैं घूमने को, तीन चार घंटे में कवर कर लेंगे.”

डीपू: “चेकआउट का बाद में देखते हैं, पहले नहा धो कर नाश्ता कर लो, कैंटीन बंद हो जाएगी.”

अशोक: “आज नाश्ता फ़ोन करके अपने अपने कमरे में ऊपर ही मंगा लेते हैं, क्यों कि नहा के जाएंगे तब तक देर हो जाएगी.”

डीपू: “ठीक हैं नाश्ते के बाद हम तुम्हारे रूम में आते हैं, फिर आगे का प्लान करते हैं.”

मैं और अशोक अब हमारे रूम में आ गए. अशोक मेरे बारे में पूछने लगा.

अशोक: “डीपू ने मेरे सोने के बाद तुम्हे परेशान तो नहीं किया ना?”

मैं: “मैं तो सो गयी थी, पता नहीं. क्यों क्या हुआ तुम्हे कुछ गड़बड़ लगा?”

अशोक: “नहीं, मेरा मतलब. अगर कोई नींद में.. कुछ करने की कोशिश..”

मैं: “हम औरतो को सब पता चलता हैं, बेहोशी में भी कोई करे तो उठने के बाद पता चल जाता हैं. तुम मुझ पर शक तो नहीं कर रहे?”

अशोक: “तुम पर नहीं, डीपू पर, जिस तरह कल उसने मजाक मजाक में तुम्हारे शर्ट में हाथ डाल दिया था.”

मैं: “ये सारा चेलेंज वाला खेल भी तो तुम्ही लोगो ने शुरू किया था. मुझ बेचारी को तो ऐसे ही फंसा दिया. पता नहीं क्या क्या काम करवाया मुझसे बेशर्मो वाला.”

अशोक: “आई एम सॉरी, वो दोस्ती यारी में चेलेंज चेलेंज करते ज्यादा ही हो गया. चलो तुम पहले नहा धो लो. मैं तब तक नाश्ते के लिए फ़ोन कर देता हूँ.”

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मैं अब नहाने को चली गयी. वापिस आयी तब तक अशोक ने नाश्ता कर लिया था. वो नहाने गया तब तक मैंने भी नाश्ता कर लिया.

फिर मैं और अशोक अभी भी बाथरोब पहने हुए थे कि पायल और डीपू भी आ गए. वो लोग भी हमारी तरह अभी तैयार नहीं हुए थे और बाथरोब में ही थे.
 
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