desiaks
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थोड़ी देर में हम पूरा प्रेम रस में डूब कर अपनी तड़प मिटाने लगे। पुरुष पर चढ़ कर संगम का आनंद लेने का मजा ही कुछ और था। ऊपर से चोरी चोरी प्यार करने का उत्साह और मैं पूर्ण आनंद में डूबने लगी।
उसने अब मेरी साड़ी निकाल ली और साड़ी को लहंगे से अलग कर दिया, मैं उसको रोक नहीं पायी, मैं भी सारे बंधन से मुक्त हो पूरा खुल कर प्यार करना चाहती थी।
अब उसने लहंगे का नाड़ा खोल कर मेरे सर के ऊपर से निकाल दिया। अब हम दोनों पूर्ण नग्न होकर आनंद लेने लगे। मेरे शरीर पर सिर्फ गहने थे।
शायद ये हमारा आखरी मिलन हो, यही सोच कर हम अपनी पूरी ताकत जुटा कर इस अवसर का ओर भी मजा लेने लगे। मैं उस पर पूरा लेट कर चोदने लगी पर जल्द ही थकने लगी। वह नीचे लेटे ही झटके मारने लगा। थोड़ी देर तक हम इसी तरह एक दूसरे से मिलन का आनंद लेते रहे।
मैं प्रशांत का नाम ले लेकर उसको और भी जोर से करने को उकसा रही थी। मेरी पुकार सुन कर वो ओर जोश में आ गया। उसने भी शायद अब तक ऐसा जंगली प्यार नहीं किया था। हम दोनों अपने जीवन का सबसे हसीन मिलन कर रहे थे। हम अपनी चेतना खो चुके थे।
उसने अब मुझे नीचे लेटाया और मेरे पाँव घुटनो से मोड़ कर ऊपर कर के चौड़ाई में थोड़े फैला दिए। अब वो फिर मेरी खुली चूत को भेदने के लिए तैयार था। मुझे ख़ुशी थी की प्रोटेक्शन की वजह से आज वो आगे के छेद में पूरा कर पायेगा और मुझे भी मजा दिलाएगा।
ऊपर आने के बाद उसके झटके ओर भी गहरे हो गए, शायद कल की तरह उसको भी चिंता नहीं थी आज किसी रिस्क की। जैसे जैसे मजा बढ़ता रहा मेरा पानी निकलने लगा। उसके तेजी से अंदर बाहर होते लंड से मेरे पानी के टकराने से पच पच पच आवाज़े आने लगी।
इस दौरान हम दोनों के बीच संवाद जारी रहा। मैं उसका नाम ले उकसा रही थी और वो मुझे पूछता जा रहा था इतना जोर से ठीक हैं या ओर जोर से मारु। मैं उसको बोलती ओर जोर से, तो वो जोश में आकर ओर तेज झटके मारता।
बाहर मंडप में शादी के मंत्र पढ़े जा रहे थे और यहाँ अंदर हम एक दूसरे के नाम का जाप कर रहे थे। वो लगातार अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करता हुआ मेरा और अपना उत्साह बनाये रख रहा था। हम दोनों ने काफी देर तक जम कर मजे लिए और हम एक साथ झड़ गए।
हम दोनों ऐसे ही नग्न अवस्था में थोड़ी देर पड़े रहे और अपनी ताकत बटोरने लगे। घडी की ओर ध्यान गया पौन घंटा हो चूका था। हमने तुरंत कपडे पहनना शुरू किया। अपने आप को व्यवस्थित कर हम फिर गार्डन की तरफ बढे।
हमने एक ही प्लेट में खाना खाया और दूसरे लोगो की नजरे बचा कर एक दूसरे को खाना भी खिलाया। शाम होने तक हमें जब भी मौका मिलता पास आ जाते और अपने मन की बात करते और अफ़सोस करते अब पता नहीं कब हमारा मिलन हो।
शाम को दुल्हन की विदाई होते होते हम बीच बीच में कई बार नजरे बचाते हुए उस कोने वाले बाथरूम में जाते और दो तीन मिनट के लिए एक दूसरे को गले लगा कर अपनी तड़प भी मिटा आते।
देर शाम को वधु की विदाई के बाद मौसी और मैंने होटल रूम में शादी के भारी कपडे बदल कर हलके कपडे पहन लिए, वापसी के सफर के लिए।
प्रशांत के भैया भाभी बाद में आने वाले थे। अब एक बार फिर हम चारो मेजबान से विदा लेकर अपनी कार में बैठ कर घर के लिए रवाना होने वाले थे।
मुझे लगा प्रशांत के साथ मेरा आखरी मिलन हो गया हैं पर मैं गलत थी।
देर शाम विदाई के बाद सभी मेहमान धीरे धीरे जाने लगे। हमने भी अपने बैग पैक कर लिए और विदाई ले कर कार तक आये। मैं मौसी के साथ पीछे बैठ गयी और प्रशांत अपने पापा के साथ आगे बैठा और कार चलाने लगा।
अँधेरा हो चला था और आधे घंटे के बाद ही उसने गाडी रोक कर सड़क किनारे लगा ली और कहा थकान हो रही हैं और नींद आ रही हैं।
मौसाजी ने कहा अब गाडी वो चला लेंगे। प्रशांत ने सोने का बहाना बना मौसी को आगे की सीट पर बुला कर पीछे आकर मेरे पास बैठ गया।
उसने अब मेरी साड़ी निकाल ली और साड़ी को लहंगे से अलग कर दिया, मैं उसको रोक नहीं पायी, मैं भी सारे बंधन से मुक्त हो पूरा खुल कर प्यार करना चाहती थी।
अब उसने लहंगे का नाड़ा खोल कर मेरे सर के ऊपर से निकाल दिया। अब हम दोनों पूर्ण नग्न होकर आनंद लेने लगे। मेरे शरीर पर सिर्फ गहने थे।
शायद ये हमारा आखरी मिलन हो, यही सोच कर हम अपनी पूरी ताकत जुटा कर इस अवसर का ओर भी मजा लेने लगे। मैं उस पर पूरा लेट कर चोदने लगी पर जल्द ही थकने लगी। वह नीचे लेटे ही झटके मारने लगा। थोड़ी देर तक हम इसी तरह एक दूसरे से मिलन का आनंद लेते रहे।
मैं प्रशांत का नाम ले लेकर उसको और भी जोर से करने को उकसा रही थी। मेरी पुकार सुन कर वो ओर जोश में आ गया। उसने भी शायद अब तक ऐसा जंगली प्यार नहीं किया था। हम दोनों अपने जीवन का सबसे हसीन मिलन कर रहे थे। हम अपनी चेतना खो चुके थे।
उसने अब मुझे नीचे लेटाया और मेरे पाँव घुटनो से मोड़ कर ऊपर कर के चौड़ाई में थोड़े फैला दिए। अब वो फिर मेरी खुली चूत को भेदने के लिए तैयार था। मुझे ख़ुशी थी की प्रोटेक्शन की वजह से आज वो आगे के छेद में पूरा कर पायेगा और मुझे भी मजा दिलाएगा।
ऊपर आने के बाद उसके झटके ओर भी गहरे हो गए, शायद कल की तरह उसको भी चिंता नहीं थी आज किसी रिस्क की। जैसे जैसे मजा बढ़ता रहा मेरा पानी निकलने लगा। उसके तेजी से अंदर बाहर होते लंड से मेरे पानी के टकराने से पच पच पच आवाज़े आने लगी।
इस दौरान हम दोनों के बीच संवाद जारी रहा। मैं उसका नाम ले उकसा रही थी और वो मुझे पूछता जा रहा था इतना जोर से ठीक हैं या ओर जोर से मारु। मैं उसको बोलती ओर जोर से, तो वो जोश में आकर ओर तेज झटके मारता।
बाहर मंडप में शादी के मंत्र पढ़े जा रहे थे और यहाँ अंदर हम एक दूसरे के नाम का जाप कर रहे थे। वो लगातार अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करता हुआ मेरा और अपना उत्साह बनाये रख रहा था। हम दोनों ने काफी देर तक जम कर मजे लिए और हम एक साथ झड़ गए।
हम दोनों ऐसे ही नग्न अवस्था में थोड़ी देर पड़े रहे और अपनी ताकत बटोरने लगे। घडी की ओर ध्यान गया पौन घंटा हो चूका था। हमने तुरंत कपडे पहनना शुरू किया। अपने आप को व्यवस्थित कर हम फिर गार्डन की तरफ बढे।
हमने एक ही प्लेट में खाना खाया और दूसरे लोगो की नजरे बचा कर एक दूसरे को खाना भी खिलाया। शाम होने तक हमें जब भी मौका मिलता पास आ जाते और अपने मन की बात करते और अफ़सोस करते अब पता नहीं कब हमारा मिलन हो।
शाम को दुल्हन की विदाई होते होते हम बीच बीच में कई बार नजरे बचाते हुए उस कोने वाले बाथरूम में जाते और दो तीन मिनट के लिए एक दूसरे को गले लगा कर अपनी तड़प भी मिटा आते।
देर शाम को वधु की विदाई के बाद मौसी और मैंने होटल रूम में शादी के भारी कपडे बदल कर हलके कपडे पहन लिए, वापसी के सफर के लिए।
प्रशांत के भैया भाभी बाद में आने वाले थे। अब एक बार फिर हम चारो मेजबान से विदा लेकर अपनी कार में बैठ कर घर के लिए रवाना होने वाले थे।
मुझे लगा प्रशांत के साथ मेरा आखरी मिलन हो गया हैं पर मैं गलत थी।
देर शाम विदाई के बाद सभी मेहमान धीरे धीरे जाने लगे। हमने भी अपने बैग पैक कर लिए और विदाई ले कर कार तक आये। मैं मौसी के साथ पीछे बैठ गयी और प्रशांत अपने पापा के साथ आगे बैठा और कार चलाने लगा।
अँधेरा हो चला था और आधे घंटे के बाद ही उसने गाडी रोक कर सड़क किनारे लगा ली और कहा थकान हो रही हैं और नींद आ रही हैं।
मौसाजी ने कहा अब गाडी वो चला लेंगे। प्रशांत ने सोने का बहाना बना मौसी को आगे की सीट पर बुला कर पीछे आकर मेरे पास बैठ गया।