desiaks
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बातें करते करते साढ़े नौ बज चुके थे, तो प्लान के मुताबिक पति ने कहा कि उनको अब नींद आ रही हैं तो सो जाते हैं।
मैंने कहा कि इतनी जल्दी क्या हैं, रोज तो देर से सोते हैं।
रंजन ने भी हां में हां मिलाई कि थोड़ी देर और बात करते हैं।
पति ने कहा कि आज ऑफिस में काम बहुत था तो थकान हो रही हैं तो बैठे बैठे नींद की झपकी आ रही हैं उनको तो सोना हैं।
हमें तो सोना था नहीं तो वो खिड़की के पास एक तरफ सो गए ताकि बाकी की जगह में हम बातें कर सके। उन्होंने एक छोटा चद्दर लिया और ओढ़ कर सोने का नाटक करने लगे।
मैं और रंजन अब स्कूल के समय की बातें करने लगे, अपने टीचर और अपने क्लासमेट को याद करने लगे। पता नहीं नहीं चला कब समय निकल गया।
मैंने अब रंजन से कहा अब सो जाते हैं, तुम भी थक गए होंगे।
रंजन ने कहा ठीक हैं, पर जगह बहुत कम हैं, तीनो को एक करवट सोना पड़ेगा। भैया को जगा देते हैं वो बीच में सो जायेंगे।
मैंने उसको टोकते हुए कहा, नहीं, इनको सोने दो गहरी नींद में उठाना ठीक नहीं हैं, उठाया तो वापस नींद मुश्किल से आएगी।
मैंने कहा मैं इनके पास सो जाती हूँ यहाँ बीच में और तुम मेरे पीछे सो जाना। एक रात की ही तो बात हैं हम एडजस्ट कर लेंगे।
रंजन ने पूछा कुछ ओढ़ने के लिए हैं क्या?
मैंने एक थोडी बडी चद्दर उसको देते हुए कहा कि छोटी वाली सिंगल चद्दर तुम्हारे भैया ने ओढ़ रखी है, मेरे पास ये डबल वाली चद्दर हैं ये तुम ओढ़ लो।
रंजन ने आनाकानी की, नहीं आप ओढ़ लो, आप क्या करोगे?
मैंने कहा चिंता मत करो मुझे वैसे भी जरुरत नहीं पड़ेगी। अगर जरुरत पड़ी तो तुमसे मांग लुंगी।
अब मैं पति की तरफ मुँह करके करवट लेकर सो गयी। मैंने अपने और पति के बीच में थोड़ी जगह छोड़ दी ताकि मेरे पीछे रंजन के सोने के लिए ज्यादा जगह ना बचे।
अब रंजन मेरे पीछे बची हुई जगह में लेट गया। ज्यादा जगह थी नहीं तो वो मुझसे सिर्फ चार इंच की दुरी पर रहा होगा।
अगर वो जोर की सांस लेता तो मुझे पीछे छोड़ी हुई सांस महसूस होती इतना नजदीक था। केबिन की लाइट पहले ही बंद कर दी थी, रास्ते में रोड लाइट की रोशनी कभी कभार हमारे केबिन में खिड़की के कांच से आती।
मैं अब इंतज़ार करने लगी कब वो पहली हरकत करेगा। एक दो बार वो हिला भी जब उसका शरीर मुझसे थोड़ा छू गया पर इसके अलावा कुछ हुआ नहीं।
अब मैंने ठण्ड लगने की एक्टिंग की और थोड़ा सिकुड़ गयी। रंजन ने चद्दर ओढ़ रखा था तो उसको लंबा करते हुए मुझे भी ओढ़ा दिया।
मैंने पलटते हुए कहा तुमको पूरी आ रही हैं न चद्दर। मुझे ओढ़ाने के चक्कर में खुद से मत हटा लेना।
उसने कहा नहीं ठीक हैं मेरे पास भी हैं।
मैंने उसको कहा थोड़ा ओर पास में खिसक जाओ पर पूरा ओढ़ कर रखना।
अब हम दोनों एक ही चद्दर में थे और मेरे कहे अनुसार वो ओर भी पास में खिसक कर लेटा था।
मैंने कहा कि इतनी जल्दी क्या हैं, रोज तो देर से सोते हैं।
रंजन ने भी हां में हां मिलाई कि थोड़ी देर और बात करते हैं।
पति ने कहा कि आज ऑफिस में काम बहुत था तो थकान हो रही हैं तो बैठे बैठे नींद की झपकी आ रही हैं उनको तो सोना हैं।
हमें तो सोना था नहीं तो वो खिड़की के पास एक तरफ सो गए ताकि बाकी की जगह में हम बातें कर सके। उन्होंने एक छोटा चद्दर लिया और ओढ़ कर सोने का नाटक करने लगे।
मैं और रंजन अब स्कूल के समय की बातें करने लगे, अपने टीचर और अपने क्लासमेट को याद करने लगे। पता नहीं नहीं चला कब समय निकल गया।
मैंने अब रंजन से कहा अब सो जाते हैं, तुम भी थक गए होंगे।
रंजन ने कहा ठीक हैं, पर जगह बहुत कम हैं, तीनो को एक करवट सोना पड़ेगा। भैया को जगा देते हैं वो बीच में सो जायेंगे।
मैंने उसको टोकते हुए कहा, नहीं, इनको सोने दो गहरी नींद में उठाना ठीक नहीं हैं, उठाया तो वापस नींद मुश्किल से आएगी।
मैंने कहा मैं इनके पास सो जाती हूँ यहाँ बीच में और तुम मेरे पीछे सो जाना। एक रात की ही तो बात हैं हम एडजस्ट कर लेंगे।
रंजन ने पूछा कुछ ओढ़ने के लिए हैं क्या?
मैंने एक थोडी बडी चद्दर उसको देते हुए कहा कि छोटी वाली सिंगल चद्दर तुम्हारे भैया ने ओढ़ रखी है, मेरे पास ये डबल वाली चद्दर हैं ये तुम ओढ़ लो।
रंजन ने आनाकानी की, नहीं आप ओढ़ लो, आप क्या करोगे?
मैंने कहा चिंता मत करो मुझे वैसे भी जरुरत नहीं पड़ेगी। अगर जरुरत पड़ी तो तुमसे मांग लुंगी।
अब मैं पति की तरफ मुँह करके करवट लेकर सो गयी। मैंने अपने और पति के बीच में थोड़ी जगह छोड़ दी ताकि मेरे पीछे रंजन के सोने के लिए ज्यादा जगह ना बचे।
अब रंजन मेरे पीछे बची हुई जगह में लेट गया। ज्यादा जगह थी नहीं तो वो मुझसे सिर्फ चार इंच की दुरी पर रहा होगा।
अगर वो जोर की सांस लेता तो मुझे पीछे छोड़ी हुई सांस महसूस होती इतना नजदीक था। केबिन की लाइट पहले ही बंद कर दी थी, रास्ते में रोड लाइट की रोशनी कभी कभार हमारे केबिन में खिड़की के कांच से आती।
मैं अब इंतज़ार करने लगी कब वो पहली हरकत करेगा। एक दो बार वो हिला भी जब उसका शरीर मुझसे थोड़ा छू गया पर इसके अलावा कुछ हुआ नहीं।
अब मैंने ठण्ड लगने की एक्टिंग की और थोड़ा सिकुड़ गयी। रंजन ने चद्दर ओढ़ रखा था तो उसको लंबा करते हुए मुझे भी ओढ़ा दिया।
मैंने पलटते हुए कहा तुमको पूरी आ रही हैं न चद्दर। मुझे ओढ़ाने के चक्कर में खुद से मत हटा लेना।
उसने कहा नहीं ठीक हैं मेरे पास भी हैं।
मैंने उसको कहा थोड़ा ओर पास में खिसक जाओ पर पूरा ओढ़ कर रखना।
अब हम दोनों एक ही चद्दर में थे और मेरे कहे अनुसार वो ओर भी पास में खिसक कर लेटा था।