desiaks
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मैंने हां में सर हिला दिया. मुझे अब थोड़ी ठंड लगने लगी थी. मैंने हल्का ठिठुरते हुए पूछा “मैना कहा हैं”
उन्होंने जवाब दिया वो “घर पर नहीं हैं.” और मैं अवाक रह गयी.
काश सरप्राइज को छोड़ कर फ़ोन ही कर दिया होता आने से पहले. पर अब क्या हो सकता था, मैं फंस चुकी थी. मैंने अगला सवाल दागा, “वो कहा गई और कितने देर में आ जाएगी?”
उन्होंने कहाँ “सब इत्मीनान से बताता हूँ, पहले आप कपडे बदल लीजिये.”
मैंने ना मैं सर हिला दिया, उनसे कैसे कहु की मुझे कपडे बदलने हैं. मैं उनसे इजाजत लेकर वापिस जाने लगी तो उन्होंने मुझे रोका. “इस तरह आप बाहर ना जाये, सर्दी लग सकती हैं”.
बैडरूम की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहाँ उस अलमारी में मैना के कपडे पड़े हैं, उनमे से कुछ पहन लू. वो मेरे कपडे ड्रायर में डाल कर सूखा लेंगे और वापिस पहनने को दे देंगे.
मैं भी यही चाहती थी पर थोड़ा हिचकिचाई. उन्होंने मुझे आश्वश्त किया की यही ठीक हैं और ज्यादा समय नहीं लगेगा. मैंने अपने सैंडल उतारे और स्टैंड पर रख दिए.
लिविंग रूम में कारपेट बिछा था. अब मैं बैडरूम की तरफ जाने लगी जहा कारपेट नहीं था. जैसे ही चिकने फर्श पर गीले पैर पड़े मैं फिसल कर बैठ गयी. मुझे बहुत शर्म आयी और तुरंत उठ कर खड़ी हो हुई.
उन्होने मुझे ध्यान से चलने के लिए कहाँ. मैं बिना पीछे मुड़े बैडरूम में प्रवेश कर गयी और तेजी से सामने रखी अलमारी की तरफ बढ़ गयी.
अलमारी खोली तो कुछ साड़ियां और सूट करीने से रखे थे, मैंने उन्हें बिगाड़ना ठीक नहीं समझा, आखिर कुछ देर के लिए ही तो पहनना था.
मैंने कोने में पड़े एक गाउन को उठा लिया. अब मैंने अपना लेगिंग और कुर्ता उतारा और एक तरफ रख दिया.
अंदर के कपडे भी भीग चुके थे तो उन्हें भी उतार दिया. एक तौलिया लेकर अपने बदन को पोंछने लगी. फिर तौलिया पास में रखी कुर्सी पे रखा, तभी मैंने थोड़ी रौशनी आते हुए महसूस की.
याद आया फिसलने के बाद शर्म के मारे जल्दबाजी में मैंने दरवाज़ा ही बंद नहीं किया था. मैंने दरवाज़े के उस ओर देखना मुनासिब नहीं समझा और आँखों के एक कोने से देखने की कोशिश की तो एक साया हिलता हुआ दिखा.
मैंने अनजान बने रहने का नाटक करने में ही भला समझा. बिना समय गवाए मैंने वो गुलाबी गाउन पहन लिया. वह बहुत नरम और मुलायम था, शायद अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण मुझे और भी नरम लगा.
मैं अपने गीले अंतवस्त्रों को कुर्ता लेगिंग के अंदर छुपाते हुए बाहर आयी. हॉल में वो नहीं थे, शायद मुझे आते हुआ देख कही अंदर चले गए, यह जताने के लिए की वो साया वह नहीं थे.
वह रसोई से बाहर निकले और बोले चाय चढ़ा दी हैं मुझे चाय पीकर थोड़ी राहत मिलेगी. मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पा रही थी.
फिसलने की वजह से ज्यादा मेरे उस अनचाहे अंगप्रदशन की वजह से. मुझे वह अब बाथरूम की ओर ले गए जहां ड्रायर लगा था. और ड्रायर का ढक्कन खोल कर मुझे कपडे अंदर डालने को कहाँ.
मैंने बड़ी सावधानी बरती कि कपडे डालते वक़्त छुपाये हुए अंतवस्त्र बाहर न निकल जाये, किस्मत फूटी थी, मेरी उंगली में ब्रा का स्ट्रैप फंसा और मेरे हाथ के साथ बाहर आ गया और फर्श पर गिर गया.
मेरे हाथ कांप रहे थे. मैं झेप गयी और तुरन्त उठा कर उसे भी अंदर डाल दिया और ड्रायर का दरवाज़ा बंद कर दिया. अब उन्होंने कुछ बटन घुमा कर मशीन को सेट कर दिया.
अब हम लोग बाहर हॉल में आ गए, मैं वही सोफे पर बैठ गयी और वो रसोई में चाय लेने चले गए. मै जहां बैठी थी वहाँ से वो जगह साफ़ दिख रही थी जहां मैंने कपडे बदले थे, मैं अब और हिल गयी थी.
उन्होंने जवाब दिया वो “घर पर नहीं हैं.” और मैं अवाक रह गयी.
काश सरप्राइज को छोड़ कर फ़ोन ही कर दिया होता आने से पहले. पर अब क्या हो सकता था, मैं फंस चुकी थी. मैंने अगला सवाल दागा, “वो कहा गई और कितने देर में आ जाएगी?”
उन्होंने कहाँ “सब इत्मीनान से बताता हूँ, पहले आप कपडे बदल लीजिये.”
मैंने ना मैं सर हिला दिया, उनसे कैसे कहु की मुझे कपडे बदलने हैं. मैं उनसे इजाजत लेकर वापिस जाने लगी तो उन्होंने मुझे रोका. “इस तरह आप बाहर ना जाये, सर्दी लग सकती हैं”.
बैडरूम की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहाँ उस अलमारी में मैना के कपडे पड़े हैं, उनमे से कुछ पहन लू. वो मेरे कपडे ड्रायर में डाल कर सूखा लेंगे और वापिस पहनने को दे देंगे.
मैं भी यही चाहती थी पर थोड़ा हिचकिचाई. उन्होंने मुझे आश्वश्त किया की यही ठीक हैं और ज्यादा समय नहीं लगेगा. मैंने अपने सैंडल उतारे और स्टैंड पर रख दिए.
लिविंग रूम में कारपेट बिछा था. अब मैं बैडरूम की तरफ जाने लगी जहा कारपेट नहीं था. जैसे ही चिकने फर्श पर गीले पैर पड़े मैं फिसल कर बैठ गयी. मुझे बहुत शर्म आयी और तुरंत उठ कर खड़ी हो हुई.
उन्होने मुझे ध्यान से चलने के लिए कहाँ. मैं बिना पीछे मुड़े बैडरूम में प्रवेश कर गयी और तेजी से सामने रखी अलमारी की तरफ बढ़ गयी.
अलमारी खोली तो कुछ साड़ियां और सूट करीने से रखे थे, मैंने उन्हें बिगाड़ना ठीक नहीं समझा, आखिर कुछ देर के लिए ही तो पहनना था.
मैंने कोने में पड़े एक गाउन को उठा लिया. अब मैंने अपना लेगिंग और कुर्ता उतारा और एक तरफ रख दिया.
अंदर के कपडे भी भीग चुके थे तो उन्हें भी उतार दिया. एक तौलिया लेकर अपने बदन को पोंछने लगी. फिर तौलिया पास में रखी कुर्सी पे रखा, तभी मैंने थोड़ी रौशनी आते हुए महसूस की.
याद आया फिसलने के बाद शर्म के मारे जल्दबाजी में मैंने दरवाज़ा ही बंद नहीं किया था. मैंने दरवाज़े के उस ओर देखना मुनासिब नहीं समझा और आँखों के एक कोने से देखने की कोशिश की तो एक साया हिलता हुआ दिखा.
मैंने अनजान बने रहने का नाटक करने में ही भला समझा. बिना समय गवाए मैंने वो गुलाबी गाउन पहन लिया. वह बहुत नरम और मुलायम था, शायद अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण मुझे और भी नरम लगा.
मैं अपने गीले अंतवस्त्रों को कुर्ता लेगिंग के अंदर छुपाते हुए बाहर आयी. हॉल में वो नहीं थे, शायद मुझे आते हुआ देख कही अंदर चले गए, यह जताने के लिए की वो साया वह नहीं थे.
वह रसोई से बाहर निकले और बोले चाय चढ़ा दी हैं मुझे चाय पीकर थोड़ी राहत मिलेगी. मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पा रही थी.
फिसलने की वजह से ज्यादा मेरे उस अनचाहे अंगप्रदशन की वजह से. मुझे वह अब बाथरूम की ओर ले गए जहां ड्रायर लगा था. और ड्रायर का ढक्कन खोल कर मुझे कपडे अंदर डालने को कहाँ.
मैंने बड़ी सावधानी बरती कि कपडे डालते वक़्त छुपाये हुए अंतवस्त्र बाहर न निकल जाये, किस्मत फूटी थी, मेरी उंगली में ब्रा का स्ट्रैप फंसा और मेरे हाथ के साथ बाहर आ गया और फर्श पर गिर गया.
मेरे हाथ कांप रहे थे. मैं झेप गयी और तुरन्त उठा कर उसे भी अंदर डाल दिया और ड्रायर का दरवाज़ा बंद कर दिया. अब उन्होंने कुछ बटन घुमा कर मशीन को सेट कर दिया.
अब हम लोग बाहर हॉल में आ गए, मैं वही सोफे पर बैठ गयी और वो रसोई में चाय लेने चले गए. मै जहां बैठी थी वहाँ से वो जगह साफ़ दिख रही थी जहां मैंने कपडे बदले थे, मैं अब और हिल गयी थी.