hotaks444
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अदिति बहूरानी के घर पहुंचते पहुंचते साढ़े छः हो गए. मुझे पता था कि अदिति घर में अकेली ही होगी क्योंकि मेरे बेटा तो पिछली शाम को ही बंगलौर निकल लिया होगा. मैं टैक्सी से उतरा तो देखा बहूरानी जी ऊपर बालकनी में खड़ी हैं. मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया.
“आई पापा जी!” वो बोली.
एक ही मिनट बाद वो मेरे सामने थी. आते ही उसने सिर पर पल्लू लेकर मेरे पैर छुए जैसे कि वो हमेशा करती थी. मैंने भी हमेशा की तरह उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया.
मेरी बहूरानी में ये विचित्र सी खासियत है. मुझसे इतनी बार चुदने के बाद भी उसका व्यवहार कभी नहीं बदला. मेरा आदर, मान सम्मान वो पहले की ही तरह करती आ रही थी.
हां जब वो बिस्तर में मेरे साथ पूरी मादरजात नंगी मेरे आगोश में होती तो उसका व्यवहार किसी मदमस्त प्यासी, चुदासी कामिनी की तरह होता था. बहूरानी जी बेझिझक मेरी आँखों में आँखे डाल के मुस्कुरा मुस्कुरा के लंड चूसती फिर अपनी चूत में लंड लेकर लाज शर्म त्याग कर मेरी नज़र से नज़र मिलाते हुए उछल उछल कर लंड का मज़ा लेती और अपनी चूत का मज़ा लंड को देती और झड़ते ही मुझसे कस के लिपट जाती, अपने हाथ पैरों से मुझे जकड़ लेती, अपनी चूत मेरे लंड पर चिपका देती और जैसे सशरीर ही मुझमें समा जाने का प्रयत्न करती.
चुदाई ख़त्म होते ही वो मेरा गाल चूम के “थैंक्यू पापा जी, यू आर सो लविंग” जरूर कहती और कपड़े पहन, सिर पर पल्लू डाल के संस्कारवान बहू की तरह लाज का आवरण ओढ़ बिल्कुल सामान्य बिहेव करने लगती थी जैसे हमारे बीच कुछ ऐसा वैसा हो ही नहीं!
मैं चकित रहता था उसके ऐसे व्यवहार से.
अब आगे:
बहूरानी ने नीचे आकर मेरे हाथ से बैग और सामान का थैला ले लिया, “पापा जी, अन्दर चलिये” वो बोली.
मैं घर के अन्दर जाने लगा अदिति मेरे पीछे पीछे आ रही थी. बहूरानी का फ़्लैट सेकंड फ्लोर पर था. हम लोग लिफ्ट से एक मिनट से भी कम समय में दूसरी मंजिल पर पहुंच गए. मैं बहूरानी का घर देखने लगा, दो बेडरूम हाल किचन का घर था. बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से घर को सजाया था मेरी बहू ने.
बाहर बालकनी थी जहां से सड़क और बाहर का दृश्य देखना अच्छा लगता था. मैं बालकनी में चेयर पर बैठ गया. बहूरानी पानी का गिलास लिए आई.
“पानी लीजिये पापा जी, मैं चाय बना के लाती हूं!” वो बोली और किचन में चली गई.
पानी पी कर मैं बाथरूम चला गया. बाथरूम अच्छा बड़ा सा था. एयर फ्रेशनर की मनभावन सुगंध से बाथरूम महक रहा था. बाथरूम में एक तरफ वाशिंग मशीन रखी थी जिस पर बहूरानी के कपड़े धुलने के लिए रखे थे.
कपड़ों के ढेर के ऊपर ही उसकी तीन चार ब्रा और पैंटी पड़ी थीं. मैंने एक ब्रा को उठा कर उसका कप मसला और दूसरे हाथ से पैंटी उठा कर सूंघने लगा. बहूरानी की चूत की हल्की हल्की महक पैंटी से आ रही थी.
मैंने पैंटी को मुंह से लगा के चूमा और फिर गहरी सांस भर कर बहूरानी की चूत की गंध मैंने अपने भीतर समा ली. फिर मैंने पैंटी को अपने लंड पर लपेट कर पेशाब की और पैंटी, ब्रा वापिस रख कर बाहर आ के बालकनी में बैठ गया.
कुछ ही देर बाद बहूरानी चाय और बिस्किट्स लेकर आईं और मेरे सामने ही चेयर ले के बैठ गईं.
“लीजिये पापा जी!” वो बोली और चाय सिप करने लगी. मैंने भी एक बिस्किट ले के चाय ले ली और सिप करने लगा.
अब मैंने बहूरानी को गौर से निहारा. नहाई धोई अदिति उजली उजली सी लग रही थी. गहरे काही कलर की कॉटन की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका सौन्दर्य खिल उठा था. गले में पहना हुआ मंगलसूत्र अपनी चमक बिखेरता हुआ उसके उरोजों के मध्य जाकर छुप गया था. गाजर की तरह सुर्ख लाल उसके होठों से रस जैसे छलकने ही वाला था. मेरी बहूरानी लिपस्टिक कभी नहीं लगाती, ये मुझे पता था, उसके होठों का प्राकृतिक रंग ही इतना मनभावन है कि कोई लिपस्टिक उसका मुकाबला कर ही नहीं सकती.
‘इन्हीं होठों ने मेरे लंड को न जाने कितनी बार चूसा है, चूमा है मैंने मन ही मन सोचा.
“हां, पापा जी. अब बताओ आपकी जर्नी कैसी रही. घर पर मम्मी जी कैसी हैं?” अदिति ने पूछा.
“सब ठीक है अदिति बेटा. तेरी मम्मी ने बहुत सारा सामान भेजा है देख ले उसमें दही बड़े भी हैं, कहीं ख़राब न हो जायें, उन्हें फ्रिज में रख देना.” मैंने कहा.
“ठीक है पापा जी. अभी दही नमक मिलाकर रख दूंगी” वो बोली.
हमलोग काफी देर तक यूं ही बातें करते रहे. फिर वो मुझे नहाने का बोल कर नाश्ता बनाने चली गई.
नाश्ता, लंच सब हो गया. इस बीच मैंने एक बात नोट की कि मैं जब भी उसकी तरफ देख कर बात करता वो आँखे चुरा लेती और कहीं और देखते हुए मेरी बात का जवाब देने लगती.
पहले तो मैंने इसे अपना वहम समझा लेकिन मैंने बार बार इसे कन्फर्म किया.
बहूरानी जी ऐसे ही मेरी तरफ डायरेक्ट देखना अवॉयड कर रहीं थीं.
तो क्या सबकुछ ख़त्म हो गया? बहूरानी को उन सब बातों का पछतावा था?
उसकी आत्मग्लानि थी?
आखिर शुरुआत तो उसी ने मेरा लंड चूसने के साथ की थी. भले ही अनजाने में वो मुझे अपना पति समझ कर पूरी नंगी होकर मेरा लंड चूस चूस कर चाट चाट कर मुझे अपनी चूत मारने को उकसा रही थी. फिर चुद जाने के बाद अगले दिन जब वो राज खुल ही गया था कि मैंने, उसके ससुर ने ही उसे चोदा था, उसके बाद भी वो मुझसे कई बार चुदी थी. मेरा लंड हंस हंस कर चूसा था और मेरी आँखों में आँखें डाल के उछल उछल के मेरा लंड अपनी चूत में लिया था.
हो सकता है जवानी के जोश में वो बहक गई हो और यहाँ आने के बाद जरूर उसने अपने किये पर शुरू से आखिर तक सोचा होगा और पछताई भी होगी. इसीलिए मुझसे नज़रें नहीं मिला रही. जरूर यही बात रही होगी.
‘चलो अच्छा ही है’ मैंने भी मन ही मन सोचा और मुझे राहत भी मिली, आखिर गलत काम करने का दोषी तो मैं भी था. पहली बार भले ही मेरी कोई गलती नहीं थी लेकिन उसके बाद तो मैंने जानबूझ कर अपनी कुल वधू को किसी रंडी की तरह अपना लंड चुसवा चुसवा कर तरह तरह के आसनों में उसकी चूत मारी थी.
यही सब सोचते सोचते मैंने निश्चय कर लिया कि अगर बहूरानी की यही इच्छा है तो जाने दो. ‘जो हुआ सो हुआ’ अब आगे वो सब नहीं करना है. अतः मैंने बहूरानी की जवानी फिर से भोगने का विचार त्याग दिया.
शाम हुई तो मैं बाहर जा के मार्केट का चक्कर लगा कर साढ़े आठ के करीब लौट आया. बाहर जा के मैंने मेरे और बहूरानी के रिश्ते के बारे फिर से गहराई से ऐ टू जेड सोचा; मेरे दिल ने भी गवाही दी की ‘जाने दो जो हुआ सो हुआ’. अब जब बहूरानी नज़र उठा के भी नहीं देख रही है तो इसका मतलब एक ही है कि वो उन सब बातों को अब और दोहराना नहीं चाहती.
अब मेरे सामने बड़ा सवाल ये था कि अभी नौ दस रातें मुझे उसके साथ अकेले घर में गुजारनी हैं तो मुझे अच्छा ससुर, अच्छा केयरिंग पापा बन के दिखाना ही पड़ेगा. मुझे अपने दिल ओ दिमाग पर पूर्ण नियंत्रण रख के अदिति बहूरानी के साथ अपनी खुद की बेटी के जैसी केयर करनी ही होगी. ये सब बातें सोच के मुझे कुछ तसल्ली मिली.
अब मन को समझाने को कुछ तो चाहिए ही सो मैंने घर लौटते हुए व्हिस्की का हाफ ले लिया कि चलो खा पी कर सो जाऊंगा; नो फिकर नो टेंशन.
तो दोस्तो इस रसभरी सत्य कथा का मज़ा लीजिये और पढ़ते पढ़ते जैसे चाहें मज़ा लीजिये पर मुझे अपने कमेंट्स जरूर लिखिए. आपके कमेंट्स ही तो हम लेखकों का पारश्रमिक है और प्रोत्साहन भी.
“आई पापा जी!” वो बोली.
एक ही मिनट बाद वो मेरे सामने थी. आते ही उसने सिर पर पल्लू लेकर मेरे पैर छुए जैसे कि वो हमेशा करती थी. मैंने भी हमेशा की तरह उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया.
मेरी बहूरानी में ये विचित्र सी खासियत है. मुझसे इतनी बार चुदने के बाद भी उसका व्यवहार कभी नहीं बदला. मेरा आदर, मान सम्मान वो पहले की ही तरह करती आ रही थी.
हां जब वो बिस्तर में मेरे साथ पूरी मादरजात नंगी मेरे आगोश में होती तो उसका व्यवहार किसी मदमस्त प्यासी, चुदासी कामिनी की तरह होता था. बहूरानी जी बेझिझक मेरी आँखों में आँखे डाल के मुस्कुरा मुस्कुरा के लंड चूसती फिर अपनी चूत में लंड लेकर लाज शर्म त्याग कर मेरी नज़र से नज़र मिलाते हुए उछल उछल कर लंड का मज़ा लेती और अपनी चूत का मज़ा लंड को देती और झड़ते ही मुझसे कस के लिपट जाती, अपने हाथ पैरों से मुझे जकड़ लेती, अपनी चूत मेरे लंड पर चिपका देती और जैसे सशरीर ही मुझमें समा जाने का प्रयत्न करती.
चुदाई ख़त्म होते ही वो मेरा गाल चूम के “थैंक्यू पापा जी, यू आर सो लविंग” जरूर कहती और कपड़े पहन, सिर पर पल्लू डाल के संस्कारवान बहू की तरह लाज का आवरण ओढ़ बिल्कुल सामान्य बिहेव करने लगती थी जैसे हमारे बीच कुछ ऐसा वैसा हो ही नहीं!
मैं चकित रहता था उसके ऐसे व्यवहार से.
अब आगे:
बहूरानी ने नीचे आकर मेरे हाथ से बैग और सामान का थैला ले लिया, “पापा जी, अन्दर चलिये” वो बोली.
मैं घर के अन्दर जाने लगा अदिति मेरे पीछे पीछे आ रही थी. बहूरानी का फ़्लैट सेकंड फ्लोर पर था. हम लोग लिफ्ट से एक मिनट से भी कम समय में दूसरी मंजिल पर पहुंच गए. मैं बहूरानी का घर देखने लगा, दो बेडरूम हाल किचन का घर था. बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से घर को सजाया था मेरी बहू ने.
बाहर बालकनी थी जहां से सड़क और बाहर का दृश्य देखना अच्छा लगता था. मैं बालकनी में चेयर पर बैठ गया. बहूरानी पानी का गिलास लिए आई.
“पानी लीजिये पापा जी, मैं चाय बना के लाती हूं!” वो बोली और किचन में चली गई.
पानी पी कर मैं बाथरूम चला गया. बाथरूम अच्छा बड़ा सा था. एयर फ्रेशनर की मनभावन सुगंध से बाथरूम महक रहा था. बाथरूम में एक तरफ वाशिंग मशीन रखी थी जिस पर बहूरानी के कपड़े धुलने के लिए रखे थे.
कपड़ों के ढेर के ऊपर ही उसकी तीन चार ब्रा और पैंटी पड़ी थीं. मैंने एक ब्रा को उठा कर उसका कप मसला और दूसरे हाथ से पैंटी उठा कर सूंघने लगा. बहूरानी की चूत की हल्की हल्की महक पैंटी से आ रही थी.
मैंने पैंटी को मुंह से लगा के चूमा और फिर गहरी सांस भर कर बहूरानी की चूत की गंध मैंने अपने भीतर समा ली. फिर मैंने पैंटी को अपने लंड पर लपेट कर पेशाब की और पैंटी, ब्रा वापिस रख कर बाहर आ के बालकनी में बैठ गया.
कुछ ही देर बाद बहूरानी चाय और बिस्किट्स लेकर आईं और मेरे सामने ही चेयर ले के बैठ गईं.
“लीजिये पापा जी!” वो बोली और चाय सिप करने लगी. मैंने भी एक बिस्किट ले के चाय ले ली और सिप करने लगा.
अब मैंने बहूरानी को गौर से निहारा. नहाई धोई अदिति उजली उजली सी लग रही थी. गहरे काही कलर की कॉटन की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका सौन्दर्य खिल उठा था. गले में पहना हुआ मंगलसूत्र अपनी चमक बिखेरता हुआ उसके उरोजों के मध्य जाकर छुप गया था. गाजर की तरह सुर्ख लाल उसके होठों से रस जैसे छलकने ही वाला था. मेरी बहूरानी लिपस्टिक कभी नहीं लगाती, ये मुझे पता था, उसके होठों का प्राकृतिक रंग ही इतना मनभावन है कि कोई लिपस्टिक उसका मुकाबला कर ही नहीं सकती.
‘इन्हीं होठों ने मेरे लंड को न जाने कितनी बार चूसा है, चूमा है मैंने मन ही मन सोचा.
“हां, पापा जी. अब बताओ आपकी जर्नी कैसी रही. घर पर मम्मी जी कैसी हैं?” अदिति ने पूछा.
“सब ठीक है अदिति बेटा. तेरी मम्मी ने बहुत सारा सामान भेजा है देख ले उसमें दही बड़े भी हैं, कहीं ख़राब न हो जायें, उन्हें फ्रिज में रख देना.” मैंने कहा.
“ठीक है पापा जी. अभी दही नमक मिलाकर रख दूंगी” वो बोली.
हमलोग काफी देर तक यूं ही बातें करते रहे. फिर वो मुझे नहाने का बोल कर नाश्ता बनाने चली गई.
नाश्ता, लंच सब हो गया. इस बीच मैंने एक बात नोट की कि मैं जब भी उसकी तरफ देख कर बात करता वो आँखे चुरा लेती और कहीं और देखते हुए मेरी बात का जवाब देने लगती.
पहले तो मैंने इसे अपना वहम समझा लेकिन मैंने बार बार इसे कन्फर्म किया.
बहूरानी जी ऐसे ही मेरी तरफ डायरेक्ट देखना अवॉयड कर रहीं थीं.
तो क्या सबकुछ ख़त्म हो गया? बहूरानी को उन सब बातों का पछतावा था?
उसकी आत्मग्लानि थी?
आखिर शुरुआत तो उसी ने मेरा लंड चूसने के साथ की थी. भले ही अनजाने में वो मुझे अपना पति समझ कर पूरी नंगी होकर मेरा लंड चूस चूस कर चाट चाट कर मुझे अपनी चूत मारने को उकसा रही थी. फिर चुद जाने के बाद अगले दिन जब वो राज खुल ही गया था कि मैंने, उसके ससुर ने ही उसे चोदा था, उसके बाद भी वो मुझसे कई बार चुदी थी. मेरा लंड हंस हंस कर चूसा था और मेरी आँखों में आँखें डाल के उछल उछल के मेरा लंड अपनी चूत में लिया था.
हो सकता है जवानी के जोश में वो बहक गई हो और यहाँ आने के बाद जरूर उसने अपने किये पर शुरू से आखिर तक सोचा होगा और पछताई भी होगी. इसीलिए मुझसे नज़रें नहीं मिला रही. जरूर यही बात रही होगी.
‘चलो अच्छा ही है’ मैंने भी मन ही मन सोचा और मुझे राहत भी मिली, आखिर गलत काम करने का दोषी तो मैं भी था. पहली बार भले ही मेरी कोई गलती नहीं थी लेकिन उसके बाद तो मैंने जानबूझ कर अपनी कुल वधू को किसी रंडी की तरह अपना लंड चुसवा चुसवा कर तरह तरह के आसनों में उसकी चूत मारी थी.
यही सब सोचते सोचते मैंने निश्चय कर लिया कि अगर बहूरानी की यही इच्छा है तो जाने दो. ‘जो हुआ सो हुआ’ अब आगे वो सब नहीं करना है. अतः मैंने बहूरानी की जवानी फिर से भोगने का विचार त्याग दिया.
शाम हुई तो मैं बाहर जा के मार्केट का चक्कर लगा कर साढ़े आठ के करीब लौट आया. बाहर जा के मैंने मेरे और बहूरानी के रिश्ते के बारे फिर से गहराई से ऐ टू जेड सोचा; मेरे दिल ने भी गवाही दी की ‘जाने दो जो हुआ सो हुआ’. अब जब बहूरानी नज़र उठा के भी नहीं देख रही है तो इसका मतलब एक ही है कि वो उन सब बातों को अब और दोहराना नहीं चाहती.
अब मेरे सामने बड़ा सवाल ये था कि अभी नौ दस रातें मुझे उसके साथ अकेले घर में गुजारनी हैं तो मुझे अच्छा ससुर, अच्छा केयरिंग पापा बन के दिखाना ही पड़ेगा. मुझे अपने दिल ओ दिमाग पर पूर्ण नियंत्रण रख के अदिति बहूरानी के साथ अपनी खुद की बेटी के जैसी केयर करनी ही होगी. ये सब बातें सोच के मुझे कुछ तसल्ली मिली.
अब मन को समझाने को कुछ तो चाहिए ही सो मैंने घर लौटते हुए व्हिस्की का हाफ ले लिया कि चलो खा पी कर सो जाऊंगा; नो फिकर नो टेंशन.
तो दोस्तो इस रसभरी सत्य कथा का मज़ा लीजिये और पढ़ते पढ़ते जैसे चाहें मज़ा लीजिये पर मुझे अपने कमेंट्स जरूर लिखिए. आपके कमेंट्स ही तो हम लेखकों का पारश्रमिक है और प्रोत्साहन भी.