Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी - Page 4 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी

उसके जिस्म की गर्मी, सीने से चिपके उसके मम्में टांगों में लिपटीं वो गुदाज़ चिकनी टाँगें उफ्फ… ईश्वर ने कैसी प्यारी रचना रची ये.

“पापा जी सुबह सुबह नहीं, अभी मुझे नहाना है फिर पूजा करनी है. अभी नहीं, रात को दूंगी.”
“अरे मैं तेरी ले थोड़ी ही रहा हूँ. मैं बस ऐसे ही प्यार कर रहा हूँ तुझे!”
“आपका ऐसे ही मैं जानती हूँ कैसा होता है. मेरे कपड़े तो उतार ही दिए हैं आपने, वो भी कब घुसा दो कोई भरोसा है आपका?”
“अरे मैं कुछ नहीं करूंगा; अभी तो तेरी झांटें शेव करनी हैं न!”
“तो पहले अपनी चड्डी और लोअर पहन लो आप. सामने खुली हुई पड़ी देख कर आपका मन तो ललचा ही रहा है कब अचानक अपना झंडा गाड़ दो इसमें… कोई भरोसा नहीं आपका!”

बहू रानी की बात सुनकर मुझे हंसी आ गयी.
“अब आप हंसिये मत, प्लीज जाकर वाशरूम में शेविंग किट रखी है, लेकर आईये और अच्छे नाई की तरह अपना काम दिखाइये.”

चूत की झांटें शेव करना मेरा प्रिय काम है, इसे मैं बड़ी लगन से, प्यार से, आहिस्ता आहिस्ता करता हूँ क्योंकि चूत की स्किन ब्लेड के लिए बहुत ही कोमल और नाज़ुक होती है जरा सी असावधानी से चूत को कट लग सकता है; हालांकि चूत में लंड कैसा भी पेल दो उससे इसका कुछ नहीं बिगड़ता.

मैंने बहूरानी की कमर के नीचे तकिया लगा कर उस पर एक अखबार बिछा दिया ताकि तकिया गंदा न हो. फिर मैंने बहूरानी के पैर मोड़ कर ऊपर कर दिए जिससे उनकी चूत अच्छे से उभर गई, मैं चूत को निहारने लगा. चूत का सौन्दर्य, इसका ऐश्वर्य मुझे आकर्षक लगता है.

बहूरानी की झांटों भरी चूत कोई चार पांच अंगुल लम्बी थी, चूत की फांकें खूब भरी भरी थीं, बीच की दरार खुली हुई थी इसके बीच चूत की नाक और नीचे लघु भगोष्ठों से घिरा प्रवेश द्वार जिसका आकार किसी गहरी नाव की तरह लगता था.
मैंने मुग्ध भाव से बहूरानी की चूत को निहारा और फिर चूम लिया और दरार में अपनी नाक रगड़ने लगा.

बहूरानी कसमसाई और उठ के बैठ गई- पापा जी, ये सब मत करो मुझे कुछ होने लगा है ऐसे करने से!
“क्या होने लगा है चूत में?”
“आप सब जानते हो. आप तो जल्दी से इसे चिकनी कर दो फिर मैं नहाने जाऊं!”

मैंने भी और कुछ करना उचित नहीं समझा और बहूरानी की चूत पर शेविंगक्रीम लगा कर ब्रश से झाग बनाने लगा. ब्रश को अच्छी तरह से गोल गोल घुमा घुमा के मैंने चूत के चारों ओर खूब सारा झाग बना दिया; कुछ ही देर में झांटें एकदम सॉफ्ट हो गयीं. फिर मैंने रेज़र में नया ब्लेड लगा कर धीरे धीरे चूत को अच्छे से शेव कर दिया और टिशू पेपर से चूत अच्छे से पौंछ दी.

उसके बाद मैं बहूरानी की इजाजत से ही उनकी चूत के नजदीक से कई क्लोजप्स अपने मोबाइल से लिए, जैसे अलग अलग एंगल से, एक पोज में बहूरानी अपनी दो उँगलियों से अपनी चूत फैलाए हुए, दूसरे पोज में अपने दोनों हाथों से चूत को पूरी तरह से पसारे हुए इत्यादि; ताकि इन पलों की स्मृति हमेशा बनी रहे.

उनकी चूत के फोटो आज भी मेरे कंप्यूटर में कहीं पासवर्ड से सुरक्षित हैं और कभी कभी देख लेता हूँ इन्हें. अगर कोई और भी इन्हें देख भी ले तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि चूत का क्लोजप देख के कोई चूत वाली की पहचान कोई नहीं कर सकता.

फोटो सेशन के बाद मैंने बहूरानी को बैठा दिया और उनके हाथ ऊपर उठा कर कांख के बालों को भी सादा पानी से भिगो भिगो कर रेजर से शेव कर दिया.
 
फिर एक छोटा शीशा लाकर बहूरानी को उनकी चूत शीशे में दिखाई. अपनी सफाचट चिकनी चूत देखकर बहूरानी ने प्रसन्नता से चूत पर हाथ फिराया और खुश हो गई और अपनी झांटें अखबार में समेट कर डस्टबिन में डाल दीं और नहाने चली गई.

बहु की चूत चुदाई की कामुकता भरी हिन्दी सेक्सी कहानी आपको कैसी लग रही है?
कहानी अभी जारी रहेगी.

अभी तक आपने पढ़ा कि मैंने अपनी बहु की झांटें शेव करके उसकी चूत को चिकनी कर दिया.

उसी दिन दोपहर के बारह बजे का टाइम होगा, बहू रानी किचन में लंच के लिए सब्जी काट रही थी, मैं वहीं चेयर पर बैठा मोबाइल से खेल रहा था. बहूरानी ने मैक्सी पहन रखी थी जिसमें से उसका पिछवाड़ा बड़े शानदार तरीके से उभरा हुआ नज़र आ रहा था. क्या मस्त गांड थी बहूरानी की… जिसे देख कर मन मचल गया.
मैं उठा और बहूरानी को पीछे से पकड़ कर अपने से सटा लिया और गर्दन चूमने लगा.

“काम करने दो पापा जी, परेशान मत करो अभी!” बहूरानी ऐसे ही मना करती रही और मैं मनमानी करता रहा.
फिर उनकी मैक्सी नीचे से ऊपर तक उठा दी, सामने हाथ ले जा कर दोनों मम्में दबोच लिए और गर्दन चूमते हुए मम्में सहलाने लगा, ब्रा ऊपर खिसका कर नंगे दूध मसलने लगा, फिर दोनों अंगूरों को धीरे धीरे उमेठने लगा.


“उफ्फ… अब मान भी जाइए ना प्लीज!” बोलते हुए बहूरानी मुझे दूर हटाने लगी लेकिन मैंने एक हाथ उसकी पैंटी में डाल दिया और चिकनी चूत मुट्ठी में भर के उससे खेलने लगा.

“बहू रानी, तुमने अपने बाल तो कटवा लिए पर नाई की फीस तो दी ही नहीं?”
“सब कुछ तो ले लिया मेरा और मनमानी अब भी कर रहे हो. अब और क्या फीस चाहिए मेरे नाई जी को?”

मैंने बहु की पैंटी नीचे खिसका दी और अपना लंड गांड के छेद से अड़ा दिया- फीस तो मैं इसी छेद से वसूलूंगा आज!
“धत्त, वहाँ मैंने कभी नहीं करवाया.”
“तो आज करवा के देखो. वहाँ भी बहुत मज़ा आता है बिल्कुल चूत की तरह!”
“नहीं बाबा वहाँ नहीं. बहुत मोटा है आपका, मैं वहाँ नहीं सह पाऊँगी.”
“अरे एक बार ट्राई तो कर, मज़ा नहीं आये तो मत करने देना.”

“अच्छा, एक बार घुसाने के बाद आप क्या मान जाओगे?”
“सच में अदिति बेटा, बहुत दिनों से मन में था तेरी गांड मारने का. आज मत रोक मुझे!”
“पर पापा जी मुझे बहुत बहुत डर लग रहा है वहाँ नहीं. आप तो आगे वाली में कर लो चाहो तो!”
“कुछ नहीं होता बेटा, तेरी मम्मी की भी तो लेता हूँ पीछे वाली!”
“अच्छा करो धीरे से, लेकिन निकाल लेना जल्दी से अगर मैं कहूँ तो!”
“ठीक है तू चिंता मत कर अब.”

मैंने पास रखे सब्जी फ्राई करने वाले तेल से लंड को अच्छे से चुपड़ लिया और बहूरानी के दोनों हाथ सामने स्लैब पर गैस के चूल्हे के पास रख दिए और उसे झुका कर कमर पकड़ कर पीछे की तरफ खींच ली जिससे उसका पिछवाड़ा अच्छी पोजीशन में मेरे लंड के सामने आ गया.

इसी स्थिति में मैंने बहूरानी की चूत में लंड पेल दिया और दस बारह धक्के लगा कर बहूरानी को तैयार किया. फिर मैंने बहूरानी की दोनों टांगों को दायें बाएं फैला के लंड को उसके गांड के छेद से सटा दिया और उसके कूल्हों पर चपत लगाने लगा, पहले इस वाले पे, फिर उस वाले पे.

“अदिति बेटा, जरा अपनी गांड को अन्दर की तरफ सिकोड़ो और फिर ढीली छोड़ दो.”
“कोशिश करती हूँ पापा.” बहूरानी बोली और अपनी गांड को सिकोड़ लिया. उसकी गांड के झुर्रीदार छेद में हलचल सी हुई और उसका छेद सिकुड़ गया.
“गुड वर्क, बेटा. ऐसे ही करो तीन चार बार!”

मेरे कहने पर बहूरानी ने अपनी गांड को तीन चार बार सिकोड़ के ढीला किया.
“बेटा, अब बिलकुल रिलैक्स हो जाओ. गहरी सांस लो और गांड को एकदम ढीला छोड़ दो.”
बहू रानी ने बिल्कुल वैसा ही किया.

“अदिति बेटा, गेट रेडी, मैं आ रहा हूँ.” मैंने कहा. और लंड से उसकी गांड पर तीन चार बार थपकी दी.
“पापा जी आराम से”
“आराम से ही जाएगा बेटा, बस तू ऐसे ही रहना; एकदम रिलैक्स फील करना.”
 
गांड के छेद का छल्ला थोड़ा सख्त होता है. लंड एक बार उसके पार हो जाए फिर तो कोई प्रॉब्लम नहीं आती. अतः मैंने अपनी फोरस्किन को कई बार आगे पीछे करके सुपाड़े को तेल से और चिकना किया और बहूरानी की गांड पर रख कर उनकी कमर कस के पकड़ ली और लंड को ताकत से धकेल दिया गांड के भीतर.

लंड का टोपा पहले ही प्रयास में गप्प से बहूरानी की गांड में समा गया. उधर बहूरानी जलबिन मछली की तरह छटपटाई- उई मम्मी रे… बहुत दर्द हो रहा है, पापा… फाड़ ही डाली आपने तो; हाय राम मर गयी, हे भगवान् बचा लो आज!
बहूरानी ऐसे ही आर्तनाद करने लगी.

ऐसे अनुभव मुझे पहले भी अपनी धर्मपत्नी के साथ हो चुके थे, वो भी ऐसी ही रोई थी और रो रो कर आसमान सिर पर उठा लिया था, बाद में जब मज़ा आने लगा था तो अपनी गांड हिला हिला के लंड का भरपूर मज़ा लिया था और आज भी लेती है.

मैं जानता था कि बस एक दो मिनट की बात थी और बहूरानी भी अभी लाइन पर आ जायेगी. अतः मैं बहूरानी की चीत्कार, रोने धोने को अनसुना करके यूं ही स्थिर रहा और उसकी पीठ चूमते हुए नीचे हाथ डाल कर उसके बूब्स की घुन्डियाँ मसलता रहा और उसे प्यार से सांत्वना देता रहा.
उधर बहूरानी चूल्हे पर अपना सिर रख के सुबक सुबक के रोती रही.

कुछ ही मिनटों बाद मुझे अनुभव हुआ कि मेरे लंड पर गांड का कसाव कुछ ढीला पड़ गया साथ ही बहूरानी भी कुछ रिलैक्स लगने लगीं थी. हालांकि रोते रोते उसकी हिचकी बंध गई थी.
“अदिति बेटा, अब कैसा लग रहा है?” मैंने लंड को गांड में धीरे से आगे पीछे करते हुए पूछा.
“पहले से कुछ ठीक है पापा, लेकिन दर्द अब भी हो रही है.”
“बस थोड़ी सी और हिम्मत रखो बेटा, दर्द अभी ख़त्म हो जाएगा फिर तुझे एक नया मज़ा मिलेगा.”

मैं लंड को यूं ही उसकी गांड में फंसाए हुए उसके हिप्स सहलाता और मसलता रहा; बीच बीच में पीठ को चूम कर मम्में दबाता रहा. कुछ ही मिनटों में बहू रानी नार्मल लगने लगी, लंड पर उसकी गांड की जकड़ कुछ ढीली पड़ गई और उसकी कमर स्वतः ही लंड लीलने का प्रयास करते हुए आगे पीछे होने लगी.

“पापा जी, नाउ इट्स फीलिंग गुड. जल्दी जल्दी करो अब!” बहूरानी ने अपनी गांड उचका के दायें बाएं हिलाई.
“आ गई ना लाइन पे, बहुत चिल्ला चिल्ला के रो रो के दिखा रही थी अभी!” मैंने बहूरानी के कूल्हों पर चांटे मारते हुए कहा.
“अब मुझे क्या पता था कि पीछे वाली भी दर्द के बाद इतना ढेर सारा मज़ा देती है.”
“तो ले बेटा, अपनी गांड में अपने ससुर के लंड का मज़ा ले.” मैंने कहा और लंड को थोडा पीछे ले कर पूरे दम से पेल दिया बहूरानी की गांड में.

“लाओ, दो पापा जी.. ये लो अपनी बहूरानी की गांड!” अदिति बोली और अपनी गांड को मेरे लंड से लड़ाने लगी.
“शाबाश बेटा, ऐसे ही करती रह.” मैंने बहू रानी की पतली कमर दोनों हाथों से कसके पकड़ के उसकी गांड में लंड से कसकर ठोकर लगाई, साथ में नीचे उसकी चूत में अपनी बीच वाली उंगली घुसा के अन्दर बाहर करने लगा.

“आह…पापा जी, आज तो गजब कर रहे हो आज, मेरा मन जोर जोर से चिल्ला चिल्ला के चुदने का कर रहा है.”
“तो चिल्ला जोर से!” मैं उसकी चूत के दाने को मसलते हुए बोला.
“पापा आ… तीन उंगलियां घुसेड़ दो मेरी चूत में और धक्के लगाओ जोर जोर से!”
“ये लो अदिति बेटा… ऐसे ही ना?” मैंने हाथ का अंगूठा और छोटी अंगुली मोड़ कर तीनों उंगलियाँ बहूरानी की बुर में घुसा दीं और उसकी गांड में धक्के पे धक्के देने लगा.

बहूरानी की चूत रस बरसा रही थी. मेरी सारी उंगलियां और हथेली उसके चूत रस से सराबोर हो गयी.
“और तेज पापा और तेज… अंगुलियां और भीतर तक घुसा दो चूत में पापा!” बहूरानी मिसमिसा कर बोली.
 
अबकी मैंने अपनी चारों उंगलियां उसकी चूत में जितना संभव था उतनी गहराई तक घुसा के उसकी गांड ठोकने लगा.
“आह… यू आर ग्रेट पापा; फक मी लाइक अ बिच… टिअर माय बोथ होल्स… फाड़ के रख दो मेरी गांड को और उंगलियां गहराई तक घुसा दो मेरी चूत में और चोदो मेरी गांड को!” बहूरानी अब अपने पे आ चुकी थी और मज़े के मारे बहकी बहकी बातें करने लगी थी.

मैं जानता था कि औरत जब पूरी हीट पर आ जाये तो उसे बड़े ही एहितयात से टेक्टफुल्ली संभालना होता है; इसी पॉइंट पर पुरुष की सम्भोग कला और धैर्य का इम्तिहान होता है.
“हाँ अदिति बेटा ये ले!” मैंने कहा और उसकी चोटी अपने हाथ में लपेट के खींच ली जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और अपने धक्कों की स्पीड कम करके लंड को धीरे धीरे उसकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा.

“पापा जी, लंड को चूत में दीजिये न कुछ देर प्लीज!”
“ये लो बेटा!” मैंने कहा और लंड को गांड से निकाल कर फचाक से बहूरानी की चूत में पहना दिया और चोदने लगा.
“वाओ पापा… चोदो तेज तेज चोदो… लंड के साथ अपनी दो अंगुलियां भी घुसा दो भीतर.” बहू रानी किसी हिस्टीरिया से पीड़ित की तरह बहकने लगी.

अदिति की गांड का छेद मुंह बाए लंड के इंतज़ार में कंपकंपा सा रहा था लेकिन मैं एक अंगुल नीचे उसकी चूत को अपने लंड से संभाले हुए था.

तभी मुझे एक आडिया आया. किचिन में सामने प्लेटफॉर्म पर सब्जियां रखीं थी. मेरी नज़र कच्चे केलों के गुच्छे पर गयी जिसमें बड़े बड़े लम्बे मोटे साइज़ के हरे हरे कच्चे कड़क कठोर केले लगे थे. बहूरानी को कच्चे केलों की सब्जी बहुत पसंद है न.

“अदिति बेटा तुझे कच्चे केले की सब्जी बहुत अच्छी लगती है ना?” मैंने उसकी चूत को लंड से धकियाते हुए पूछा.
“हाँ, पापा जी. कल बनाऊँगी आप भी खाना. मस्त लगती है मुझे तो!” बहूरानी ने अपनी कमर पीछे ला के लंड लीलते हुए कहा.
“तो बेटा, आज तेरी चूत को कच्चे केलों का स्वाद चखाता हूँ मैं!” मैंने कहा और केलों के गुच्छों में से दो बड़े वाले जुड़े हुये केले तोड़ लिए और अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकाल के एक सबसे बड़ा वाला केले पर तेल चुपड़ के बहूरानी की चूत में कोशिश करके पूरा घुसा दिया, दूसरा केला नीचे लटक के झूलने लगा; इसी स्थिति में मैं लंड को फिर से अदिति की गांड में घुसाने लगा. नीचे चूत में केला फंसे होने के कारण लंड को केले की रगड़ महसूस हो रही थी और वो अटकता हुआ सा गांड में घुस रहा था. मैंने धीरे धीरे करके लंड को आगे पीछे करते हुए आखिर पूरा लंड बहूरानी की गांड में जड़ तक पहना दिया. और उसकी कमर पकड़ कर गांड मारने लगा.

लंड के धक्कों से नीचे लटकता हुआ केला जोर जोर से झूलने लगता साथ में चूत में फंसे हुए केले में भी कम्पन होने लगते इस तरह बहूरानी की चूत और गांड दोनों छेदों में जबरदस्त हलचल मचने लगी. मैं पूरी ताकत और स्पीड से दांत भींच कर लंड चलाता रहा.

गांड मारने का अपना अलग ही मज़ा है कारण की गांड के छल्ले में लंड फंसता हुआ अन्दर बाहर होता है जिससे दोनों को अविस्मरणीय सुख की अनुभूति होती है. चूत तो चुदते चुदते सभी की ढीली ढाली हो ही जाती है और फिर चुदाई के टाइम इतना पानी छोड़ती है कि लंड को बीच में रोक के पौंछना ही पड़ता है; जबकि गांड हमेशा एक सा मज़ा देती रहती है.

“पापा जी… बहुत थ्रिलिंग महसूस हो रहा है चूत में. ऐसा मज़ा तो पहले कभी भी नहीं आया मुझे!” बहूरानी बोली और अपना हाथ पीछे ला कर केले को चूत में और भीतर तक घुसा लिया और अपनी गांड पीछे की तरफ करके धक्कों का मजा लेने लगी और बहुत जल्दी झड़ने पे आ गयी.
“आह..मैं तो आ गयी पापा” बहूरानी बोली और खड़ी हो गई और अपनी पीठ मेरे सीने से चिपका के अपनी बांहें पीछे लाकर मेरे गले में डाल के मुझे लिपटा लिया. उत्तेजना के मारे बहूरानी का जिस्म थरथरा रहा था.

मेरा लंड अभी भी उसकी गांड में फंसा हुआ था. मैं भी झड़ने के करीब ही था, मैंने बहू रानी के दोनों मम्में मुट्ठियों में दबोच लिए और जल्दी जल्दी धक्के मारने लगा जिससे चूत में घुसा हुआ केला धक्कों से नीचे गिर गया साथ में मैं झड़ने लगा और मेरे लंड से रस की फुहारें निकल निकल के उसकी गांड में समाने लगीं.

“पापा जी मुझे नीचे लिटा दो अब अब खड़ा नहीं रहा जाता मुझसे!” बहूरानी कमजोर स्वर में बोली.
मैंने उसे पकड़े हुए ही धीरे से फर्श पर लिटा दिया और और खुद उसके बगल में लेट कर हाँफने लगा.

“पापा, आज तो गजब का मज़ा आया पहली बार!” बहूरानी प्यार से मेरी आंखों में देखती हुई बोली और मेरे सीने पर हाथ फिराने लगी.
मैंने भी उसे चूम लिया और अपने से लिपटा लिया. बहुत देर तक हम दोनों ससुर बहू यूं ही चिपके पड़े रहे.

“छोड़ो पापा जी, लंच भी तो बनाना है अभी!” बहूरानी बोली और उठ के खड़ी होने लगी और जैसे तैसे खड़ी होकर प्लेटफोर्म का सहारा ले लिया और धीरे धीरे बाथरूम की तरफ चल दी.
मैंने नोट किया कि बहूरानी की चाल बदली बदली सी लगने लगी थी.

जिस दिन दोपहर की यह घटना है उस दिन रात को और अगले दिन बहूरानी ने मुझे कुछ भी नहीं करने दिया; कहने लगी कि उसकी गांड बहुत दर्द कर रही है और उसे चलने फिरने में भी परेशानी हो रही है. अतः मैंने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा और ये दो दिन बिना कुछ किये ऐसे ही निकल गए.
 
आप मेरी पुत्रवधू के साथ सेक्स की मेरी रियल सेक्स स्टोरी पढ़ रहे हैं.

गांड मराई के तीसरे दिन बहू रानी का मूड अच्छा और खुश खुश सा दिखा, अतः मैंने शाम को रोमांटिक बनाने के लिए बहू रानी को आउटिंग पर ले जाने और बाहर ही डिनर करने का प्रस्ताव रखा जिसे बहूरानी ने तुरंत हंस कर मान लिया.

“ठीक है पापा जी, पहले मॉल में चलेंगे मुझे शॉपिंग करवा देना, आप फिर वहीं पर किसी अच्छे रेस्तरां में डिनर भी करवा देना. फिर घर लौट के मैं आपको बढ़िया सरप्राइज दूंगी बिस्तर में.” बहूरानी रहस्य भरी मुस्कान के साथ बोली.
“क्या, सरप्राइज दोगी बिस्तर में? मैं कुछ समझा नहीं बहू बेबी?” मैंने अचंभित होकर पूछा.
“इंतज़ार करो पापा जी. अभी थोड़ा सस्पेंस रहने दो.”
“ओके माय डिअर बेबी, एज यू लाइक.” मैंने भी कहा और बहूरानी के मम्में सहला दिए.

शाम को साढ़े पांच बजे के करीब हम लोग निकले. बहू रानी बड़ी सजधज कर टिपटॉप होकर आयी थी; मुझे भी कुछ यूं लग रहा था जैसे मैं फिर से अट्ठाईस साल का जवान हो गया हूँ और साथ में मेरी गर्लफ्रेंड चल रही है जिसे रात में जी भर के चोदना है.
ये सब सोचते ही मन उमंग तरंग से भर उठा. पार्किंग से मैंने गाड़ी निकाली और बहूरानी को अपने बगल में आगे बैठा के गाड़ी बढ़ा दी. साथ में मन में बहू रानी की सरप्राइज वाली बात भी हलचल मचा रही थी.

मॉल पहुँचते पहुँचते टाइम छः से ऊपर ही हो गया, अंधेरा होने लगा था और मॉल में अच्छी चहल पहल हो गई थी. नयी नयी रंगीन तितलियां टाइट जींस टॉप पहले हुए, टॉप में से अपने मम्मों का नजारा दिखलातीं हुई, हाथ में बड़ा वाला स्मार्ट फोन लिए अपने मम्में मटकाती इठलाती हुई घूम रहीं थीं.
मैं और अदिति भी किसी प्रेमी युगल की तरह एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए दुकानों के नज़ारे देखते जा रहे थे. बीच बीच में अदिति को जो चाहिए होता वो खरीदती जा रही थी.


परफ्यूम, शैम्पू, नाईट गाउन, डिज़ाइनर ब्रा और पैन्टीज के सेट इत्यादि और मेरे लिए एक शर्ट और टाई भी बहूरानी ने पसन्द की; सामान के चार पांच बैग्स मैं ही ले के चल रहा था. यूं ही घूमते घामते, खरीदारी करते करते सवा नौ बज गए; अब भूख भी जोर से लगने लगी थी अतः बहूरानी की पसन्द के रेस्तरां में हमने बढ़िया डिनर लिया.
घर लौटते लौटते ग्यारह के ऊपर ही टाइम हो गया.

घर पहुँचते ही शॉपिंग बैग्स वहीं सोफे पर फेंक के मैंने बहूरानी को दबोच लिया.
“पापा जी, थोड़ा रुको तो सही. बस दो मिनट. पहले मैं सू सू कर लूं. फिर पूरी तरह से आपकी!”
“ओके डार्लिंग बेबी, ट्रीट योरसेल्फ वेल!”
“बस अभी आती हूँ.” बहू रानी बोली और वाशरूम में घुस गयी.

बहू रानी के वाशरूम में घुसते ही तेज सीटी की आवाज सुनसान घर में गूंजने लगी. ये चूत से निकलती सीटी मुझे सुनने में बहुत मजेदार लगती है और अदिति बहूरानी की चूत तो सू सू करते टाइम ऐसे सीटी निकालती है जैसे कहीं लगातार घुंघरू से बज रहे हों.

कुछ ही समय बाद हम दोनों ससुर बहू बहूरानी के बेडरूम में मादरजात नंगे एक दूसरे की बांहों में लिपटे पड़े थे. मैं बहूरानी के मम्में गूंथते हुए उसके गाल काट रहा था और बहूरानी मुझसे बचने के लिए अपना मुंह दायें बाएं हिला रही थी.

“बस करो पापा अब… नीचे वाली की भी कुछ खबर लो!” बहूरानी अपनी चूत पर हाथ फेरती हुई बोली.

मैं बहूरानी का बदन चूमते हुए नीचे की तरफ उतरा, होंठ चूसने के बाद गला दोनों दूध पेट नाभि और जांघें; इन सबको चूमते चाटते मैं उसकी गुलाबी जांघों पर ठहर गया. जवान औरत की नंगीं जांगहें चाटने का अपना एक अलग ही किस्म का मज़ा आता है. बहूरानी की चूत से दालचीनी जैसी गंध उठ रही थी. मैंने मस्त होकर उसके दोनों बूब्स पकड़ लिए और जांघों को चाटते चाटते चूत के होंठ चाटने लगा.
बहूरानी अपनी चूत अच्छे से धो कर आईं थीं सो हल्का सा गीलापन और पानी की नमी अभी भी थी चूत में.
 
मैं पूरी तन्मयता के साथ बहूरानी की जांगहें और चूत का त्रिभुज चूम चूम के चाटे जा रहा था और बहूरानी अपनी एड़ियाँ बेड पर रगड़ते हुए कामुक सिसकारियां निकाल रही थी.
“हाय पापा जी, खा जाओ मेरी चूत को, ये लो.” बहूरानी बोली और अपनी चूत की फांकें दोनों हाथों से धीमे से खोल दी.

मैंने भी अपनी जीभ उसकी चूत के दाने पर रख दी और उसके निप्पल निचोड़ता हुआ चाटने लगा. बीच बीच में मैं उसकी चूत के दाने को थोड़ा जोर से दांतों में दबा लेता जिससे बहूरानी उत्तेजना के मारे उछल जाती और मेरे बाल मुट्ठी में भर लेती.
ऐसे करने से बहूरानी कुछ ही देर झेल पाई और उसकी चूत का बांध टूट गया, वो भलभला के झड़ गयी और बदन को ढीला छोड़ के गहरी गहरी सांसें लेने लगी.

“अब आप लेट जाओ पापा!”
मेरे लेटते ही बहूरानी ने मेरा लंड पकड़ लिया और जल्दी जल्दी आठ दस बार इसे मुठियाया और फिर सुपारा मुंह में भर लिया और मेरी तरफ मुस्कुरा के देखती हुई चूसने लगी. लंड चूसने में तो मेरी बहूरानी को विशेष योग्यता प्राप्त है. लंड कैसे कहाँ से पकड़ना है कैसे चाटना है, लंड को हाथ से छोड़ के जीभ से कैसे छूना चाटना और मुंह में लेना है; ये सब कला वो बखूबी जानती है.

कुछ देर बहूरानी ने सुपारा चूसने के बाद लंड छोड़ दिया और सुपारा भी मुंह से बाहर निकाल दिया और एक जोरदार चटखारा लिया जैसे कोई पसंदीदा चाट खा कर स्वाद लेते हुए चटखारे लेते हैं या कोई बच्चा अपने मन पसन्द खिलौने से खेल कर हर्षित होता है.

मेरा तमतमाया हुआ लंड छत की तरफ मुंह उठाये किसी खम्भे जैसा खड़ा था, बहूरानी की लार नीचे बह बह के मेरे अण्डों को भिगो रही थी. बहूरानी ने लंड को फिर से चूमा और फिर से इसे चूस चूस कर लाड़ प्यार करने लगी साथ में दूसरे हाथ से अपनी चूत भी सहलाती मसलती जा रही थी.
“पापा जी, अब जल्दी से अपना झंडा गाड़ दो मेरी चूत में.” वो बोली और मेरे बगल में लेट गयी.

मैंने भी देर न करते हुए अपनी पोजीशन ले ली, मुझे भी निपटने की जल्दी थी, आधी रात कब की गुजर चुकी थी मेरे पास बस यही रात थी. कल शाम को साढ़े पांच की ट्रेन से मेरा बेटा बैंगलोर से वापिस लौट रहा था.
यही सोचते हुए मैंने अपना लंड बहूरानी की चूत से सटाया और एकदम से पेल दिया लेकिन लंड फिसल गया, मैंने फिर से उसकी चूत के छेद पर लंड को बिठाया और धकिया दिया आगे.
लेकिन नहीं, बहू रानी की चूत का दरवाजा तो जैसे सील बंद था.

मैंने बहूरानी की ओर देखा तो वो हंस रही थी.
“अदिति तू हंस क्यों रही है?”
“घुसाओ पापा जी, पूरी ताकत लगा दो लंड की.” बहूरानी बोली और वो हंस दी.

मैं भी अचंभित था, जिस चूत को मैं पहले बीसों बार चोद चुका था, जिस चूत के मुहाने पर लंड रखते ही वो लंड को गप्प से लील जाती थी आज वही चूत किसी सील बन्द कुंवारी कन्या की चूत की तरह टाइट सील बंद सी लग रही थी.
मैंने फिर से चूत को अपने हाथों से खोला और चूत के भीतर का जायजा लिया. बहूरानी की चूत की सुरंग जैसे चिपक गयी थी, ‘एडमिशन क्लोज्ड’ जैसी स्थिति लग रही थी.

“ओये अदिति… ये तेरी चूत आज इतनी तंग कैसे हो गयी किसी बच्ची की चूत की जैसे?”
“पापा जी, मैंने कहा था न आपसे कि आपको बेड में सरप्राइज दूंगी. यही सरप्राइज है. अब आप ताकत से लंड घुसाओ और जीत लो मुझे!” बहू रानी जैसे चैलेंज भरे स्वर में बोली.

“अच्छा. देखता हूँ. अभी लो.” मैंने कहा और उसकी चूत को अच्छे से खोल कर चाटना शुरू किया और अपनी बीच वाली उंगली थूक से गीली करके चूत में घुसाई. बड़ी मुश्किल से दो पोर ही घुसीं थीं कि आगे रास्ता बंद मिला.
उधर बहूरानी मुझे देख देख के मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी- क्या हुआ पापा, आपकी उंगली भी नहीं घुस रही है अपना मूसल कैसे घुसाओगे मेरी छुटकी में?
 
“तेरा सरप्राइज अच्छा लगा अदिति बिटिया, अभी देख कैसे घुसता है तेरी छुटकी में!” मैंने कहा और उठ कर बहूरानी की ड्रेसिंग टेबल से हेयर आयल की शीशी में से तेल लेकर लंड को अच्छे से चुपड़ लिया और दो तीन बार फोरस्किन को आगे पीछे कर के लंड को चूत के द्वार पर रखा और धीरे धीरे ताकत से आगे धकेलने लगा.

ऐसे तीन चार बार करने से मेरी कोशिश रंग लायी और मेरा सुपाड़ा बहू की चूत में घुसने में कामयाब हो गया. मैं इसी पोजीशन में गहरी गहरी सांसें भरता हुआ लंड को आगे पीछे डुलाता रहा. कुछ ही देर में लगा की चूत कुछ नर्म पड़ गयी है. बस अब क्या था; बहूरानी के दोनों मम्में कस कर दबोच कर लंड को पूरी ताकत से फॉरवर्ड कर दिया उसकी चूत में.
इस बार पूरा लंड जड़ तक समा गया बहू की चूत में. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा लंड किसी ने अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ताकत से दबा रखा हो.

उधर बहू रानी के चेहरे पर तकलीफ के चिह्न दिखाई दिए.

“वेलडन, पापा… यू हेव डन इट. नाउ फ़क मी लाइक एनीथिंग.” बहू रानी मुझे चूमते हुए बोली.
“वो तो अब चोदूँगा ही तेरी चूत को. पहले ये बता कि आज तेरी चूत ऐसी टाइट कैसे हो गयी?” मैंने अधीरता से पूछा.
“पापा जी क्या करोगे आप ये जान के. ये तो हम लेडीज का सीक्रेट हैं.”
“अरे बता तो सही, कैसे चिपका ली अपनी चूत तूने?”

“पापा जी, आपको क्या लेना देना इससे… आपने मुझे जीत लिया अब जैसे चाहो चोदो मुझे… ऍम हॉर्नी नाउ… फाड़ दो इसको!”
“नहीं, पहले बता तू, तभी चोदूँगा तेरे को!” मैंने भी जिद की और अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया.
“लेकिन आप जान के क्या करोगे?”
“तेरी सासू माँ की चूत भी ऐसी ही टाइट करके सरप्राइज दूंगा उसे.” मैंने कहा.

“ओह पापा जी, आप भी ना. अच्छा सुनो वो होती है न… उसे… … …” बहूरानी ने मुझे घिसी पिटी ढीली ढाली चूत को फिर से कुंवारी चूत की तरह टाइट कर लेने का उपाय बताया.
“इस प्रयोग को क्या कोई भी कर सकती है?” मैंने पूछा.
“नहीं पापा जी, स्त्री की उम्र उसकी चूत की बनावट और ढीलेपन के अनुसार ही इसका प्रयोग कुछ फेर बदल के साथ किया जाता है.”

“ह्म्म्म… बढ़िया. तो बेटा ये बता कि ये ज्ञान तुझे किसने दिया?”
“पापा जी, वो मेरी बड़ी मामी हैं न वो बुरहानपुर में आयुर्वेदाचार्य हैं. उनसे मेरी सहेलियों की तरह बातें होती हैं; एक बार उन्ही ने ये सब प्रयोग मुझे बताये थे. मैंने इस्तेमाल आज पहली बार ही किया है. ऐसे प्रयोग कई तरह के हैं मैं वो सब आपको बता दूंगी.”
“बढ़िया लगा. अब घर जा के तेरी सासू माँ की चूत की खबर लेता हूँ.” मैंने कहा और बहूरानी की तंग चूत में अपना मूसल पेलने लगा.

थोड़ी देर की मेहनत के बाद चूत की पकड़ कुछ लूज हुई तो लंड आराम से मूव करने लगा. बस फिर क्या था, मैंने बहूरानी के दोनों पैर अपने कन्धों पर रखे और उसकी दोनों चूचियां दबोच के चुदाई शुरू कर दी, पहले आराम से धीरे धीरे, फिर तेज और तेज फिर पूरी बेरहमी से. ऐसा लग रहा था जैसे किसी नयी नवेली चूत की पहली पहली चुदाई हो रही हो.

बहू रानी भी मस्ता गयी अच्छे से और कमर उठा उठा के हिचकोले खाती हुई लंड का मज़ा लेने लगीं.
मैं थोड़ी देर रिलैक्स करने के लिए रुक गया. मेरे रुक जाने से बहूरानी ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रही हो कि रुक क्यों गए.
“बस बेटा एक मिनट” मैंने कहा और लंड को उसकी चूत से बाहर खींच लिया. चूत से ‘पक्क’ जैसी आवाज निकली जैसे कोल्ड ड्रिंक का ढक्कन ओपनर से खोलते टाइम निकलती है.

बहूरानी की चूत रस से सराबोर होकर बहने लगी थी, मैंने नेपकिन से उसकी चूत और अपने लंड को अच्छे से पोंछा और चूत में उंगली घुसा कर भीतर की चिकनाई निकाल कर अपने टोपे पर चुपड़ी और बहू को घोड़ी बना कर लंड को फिर से चूत के ठीये पर रख कर धकेल दिया.
इस बार भी लंड को ठेलना पड़ा तब जा के रगड़ता हुआ घुस पाया.
“आह…धीरे पापा जी. चूत की चमड़ी खिंच रही है.” बहू रानी बोली.
“अदिति बेटा तुम्ही ने तो अपनी चूत कस ली है, अब लंड को थोड़ा सहन करो.” मैंने कहा और धीरे धीरे चोदने लगा बहू को.

एकाध मिनट की चुदाई के बाद बहूरानी की चूत रसीली हो उठी और लंड चूत में सटासट चलने लगा.
“आह… वंडरफुल चुदाई… लव यु माय ग्रेट पापा.” वो बोली और अपनी चूत ऊपर उठा दी.
मैं भी थोड़ा सा ऊपर को खिसका और जम के धकापेल उसकी चूत बजाने लगा. बहूरानी की चूत बिल्कुल वैसा मज़ा दे रही थी जैसे किसी कुंवारी गर्लफ्रेंड की चूत देती है.
 
बेडरूम में बहूरानी की कामुक कराहें और उसकी चूत से निकलतीं फचफच फचाफाच की आवाजें गूंज रहीं थीं उसकी चूत मेरे लंड से लोहा लेती हुई संघर्षरत थी.
जल्दी ही हम दोनों मंजिल के करीब जा पहुंचे और बहूरानी कामुक किलकारियां निकालती हुई कमर उछालने लगी और फिर उसने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और टाँगे मेरी कमर में लपेट कर झड़ने लगी.
मैंने भी आठ दस धक्के पूरी ताकत से लगाये; बहूरानी अपनी बांहों और टांगो से मुझे जकड़े थी जिससे मेरे धक्कों से उसका बदन उठता और गिरता था लेकिन वो मुझसे चिपटी रही और कुछ ही पलों में लंड जैसे फटने को हुआ और रस की फुहारों से चूत को भरने लगा और शीघ्र ही वीरगति को प्राप्त होकर निढाल बाहर निकल गया.

तो मित्रो, अब ये मेरी सच्ची दास्तान समाप्ति पर है. फिर उस रात हम दोनों नंगे ही लिपट कर बेसुध होकर सो गए.
हमेशा की तरह पांच बजे मेरी नींद खुल गयी, बहूरानी का एक हाथ अभी भी मेरी गर्दन में लिपटा था और वो नींद में किसी अबोध शिशु की तरह गहरी गहरी सांसें लेती हुई निद्रामग्न थी. उसके नग्न उरोज सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.

जैसा कि सुबह सुबह होता ही है, मेरे लंड महाराज टनाटन तैयार खड़े थे मन तो हुआ कि नंगी बहूरानी के पैर खोल कर लंड चूत में पहना कर फिर से आँख मूंद कर पड़ा रहूँ. लेकिन बहूरानी को जगाने का दिल नहीं किया सो चुपके से बहूरानी के आगोश से निकलने लगा.

जैसे ही उसका हाथ अपनी गर्दन से हटाया वो जाग गयी- ऊंऊं… कहाँ जा रहे हो पापा?
उसने मुझे फिर से लिपटा लिया.
“अरे सुबह हो गयी, मैं तो जल्दी उठ जाता हूँ न. तू सोती रह आराम से!”
“नहीं, आप भी यहीं रहो मेरे पास.” बहूरानी ने मुझे फिर से लिपटा लिया.

थोड़ी ही देर में बहूरानी को मस्ती चढ़ने लगी और उसने मेरा लंड पकड़ के खेलना शुरू कर दिया फिर मेरी कमर में अपना पैर फंसा कर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मुझे चूमने लगी. मैंने भी उसकी टांगें खोल के लंड को बहु की चूत पर रखा और धीरे से घकेल दिया भीतर.
“बस अब चुपचाप लेटे रहो पापा, धक्के नहीं लगाना.” वो बोली.

मुझे पता था इस पोजीशन का भी अपना अलग ही आनन्द है. चूत में लंड फंसाए पड़े रहो बस. ऐसी पोजीशन में भी बदन में अजीब सी सनसनाहट, सुरसुरी होती रहती है और फिर एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि दोनों पार्टनर मिसमिसा कर लिपट जाते हैं और चूत लंड की लड़ाई होने लगती है.

हुआ भी वही. हम लोग ऐसे ही एक दूसरे के अंगों का आनन्द महसूस करते चिपटे हुए लेटे रहे. लगभग आधे घंटे बाद लंड अनचाहे ही चूत में अन्दर बाहर होने लगा, उधर चूत भी प्रत्युत्तर देने लगी, हमारे होंठ एक दूसरे से लड़ने लगे. बहू रानी की जीभ पता नहीं कब मेरे मुंह में घुस गयी और वो करवट लिए लिए ही अपनी चूत चलाने लगी. जल्दी ही लंड ने लावा उगल दिया और चूत फैल सिकुड़ कर लंड को निचोड़ने लगी.

सुबह की धूप बेडरूम में खिड़की से झांकने लगी थी. हमारे नंगे जिस्म अभी भी चुदाई की खुमारी में थे.
“उठने दो पापा. काम वाली आ जायेगी सात बजे!”
“अरे अभी छह ही तो बजे हैं, चली जाना.”
“नहीं पापा. उठो आप भी और ड्राइंग रूम में सो जाओ. मैं बिस्तर ठीक कर दूं. काम वाली आपको यहाँ सोते देख पता नहीं क्या सोचे… अच्छा नहीं लगेगा.” बहूरानी ने अपनी चिंता जताई.

बहूरानी की समझदारी पर मैं भी खुश होता हुआ बिस्तर से निकल गया.
अब सोना किसे था. मैं तैयार होकर सुबह की सैर पर निकल पड़ा. उसी दिन मेरा बेटा बैंगलोर से वापस लौट रहा था. मुझे भी आज ही रात घर लौटना था. मेरी ट्रेन भी रात में साढ़े दस पर थी. बहूरानी के साथ चुदाई के ये दस दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

शाम को सवा पांच बजे मैं और बहू रानी स्टेशन पहुंच गए. बेटे की ट्रेन राईट टाइम थी. फिर मेरे चार पांच घंटे बेटे के साथ अच्छे से गुजरे.
डिनर के बाद बेटा और बहू दस बजे मुझे स्टेशन छोड़ने आये.

तो मित्रो, मैंने इस रियल सेक्स स्टोरी को भरसक ईमानदारी से लिखा है. हाँ कहीं कहीं मिर्च मसाला भी लगाया है ताकि कथा की रोचकता बनी रहे और आप सबके लंड और सबकी चूतें मज़ा लेती रहें पढ़ते पढ़ते.
अब आप सबको अपने अपने कमेंट्स जरूर लिखे और अपने अमूल्य सुझाव देने हैं ताकि मैं अपनी अगली कहानियों में उचित सुधार कर सकूं.
बस दोस्तो अगर बहुरानी और ससुर के बीच आगे कुछ होता है तो आपको जरूर बताऊंगा तब तक के लिए विदा दीजिये
 
“उफ्फ…अब हट भी जाइये, अब और कितना रगड़ोगे मुझे. आधा घंटा से ऊपर हो गया; मेरा तो दो बार हो भी चुका. थक गयी मैं बुरी तरह से सांस फूल गयी मेरी तो” मेरी रानी ने भुनभुनाते हुए कहा और मुझे परे धकेलने की कोशिश की.
“बस मेरी जान, होने वाला है, मेरा भी बस दो तीन मिनट और!” मैंने कहा और रानी (मेरी धर्मपत्नी) की चूत में ताबड़तोड़ धक्के लगा के जल्दी झड़ने की कोशिश करने लगा.रानी मेरे नीचे अपनी जांघें पूरी चौड़ी किये हुए पड़ी थी और उसकी अथाह गहरी चूत में मैं अपना लंड पेले जा रहा था. बेडरूम रानी की चूत से निकलती फचफच फचाफच की मधुर ध्वनि से गूँज रहा था, उनकी चूत से जैसे रस की नदिया सी बह रही थी. मेरी झांटें, जांघें, बिस्तर सब के सब उसकी चूत के रस में भीग चुके थे.
“उमर हो गयी आपकी, बच्चों की शादियाँ हो गयीं लेकिन आपकी आदतें आज भी वही जवानी वाली हैं जैसे कल ही शादी हुई हो अपनी. अरे अब थोड़ा धरम करम में भी मन लगाया करो!” रानी जी ने मुझे ज्ञान दिया.“ठीक है मेरी जान, तू भी तो पचास की होने वाली है लेकिन तेरी ये मस्त चूत अभी भी वैसी ही जवान छोरी की तरह है जैसी तीस साल पहले थी” मैंने बीवी को मक्खन लगाया और उनकी चूत में फुर्ती से धक्के मारने लगा.
“सैय्याँ जी, अब रहने भी दो ये मक्खन बाजी. मैं पहचानती हूं आपको अच्छे से. बस इसी टाइम मेरी तारीफ़ करते हो आप, मतलब निकल जाय फिर पहचानते नहीं.”“मेरी जान, तू ही तो मेरी अर्धांगिनी है. अरे तेरे सहारे ही तो मैं ये भव सागर पार उतरूंगा ना!” मैं अपनी बीवी को चूमते हुए कहा.“हूंम्मम्म, अच्छा सुनो एक मिनट ध्यान से; मैं वो तो बताना भूल ही गयी; अभी दोपहर में अदिति का फोन आया था आप उससे बात कर लेना कल सवेरे!”
“अदिति बहूरानी का फोन? किसलिए बात करना है?” मैंने कहा. अदिति बहूरानी का नाम सुनते ही मेरा लंड अचानक ही फूल कर कुप्पा हो गया. मैंने रानी के दोनों बूब्स पकड़ के लंड को बाहर तक खींच के एक पावरफुल शॉट उसकी चूत में मार दिया जैसे कि मैं अदिति बहूरानी को चोदता था.“हाय राम मार डाला रे!” रानी ने मुझे कसके अपनी बाहों में समेट लिया और अपनी टाँगे मेरी कमर में कस दीं. मेरे लंड ने भी लावा उगलना शुरू कर दिया उधर रानी की चूत तीसरी बार झड़ने लगी.
हम दोनों पति-पत्नी कुछ देर यूं ही एक दूजे की बांहों में पड़े अपनी अपनी साँसें काबू करते रहे. उनकी चूत रह रह के मेरे लंड को निचोड़ रही थी और फिर वो सिकुड़ गयी और मेरे लंड को बाहर धकेल दिया.पास पड़ी नेपकिन से रानी ने मेरा लंड अच्छे से पौंछ दिया और फिर अपनी चूत में घुसा कर उसे साफ़ करने लगी.
“हां, अब बता, अदिति क्या कह रही थी?” मैंने पूछा.“अरे वो उसके चचेरे भाई की शादी है न दिल्ली में. उसमें आपको जाना है उसी की बारे में बात करनी है उसे!”“ठीक है, मैं कल बात कर लूंगा बहूरानी से” मैंने कहा और सोने की कोशिश करने लगा.
प्रिय मित्रो, कहानी आगे बढ़ाने से पहले कुछ बातें मेरी पिछली कहानी “बहूरानी की प्रेमकहानी”.इस कहानी में आपने पढ़ा था कि मेरे बेटे को दस दिन की ट्रेनिंग पर बाहर जाना था और बहूरानी को अकेली न रहना पड़े इसलिए मुझे उसके पास दस दिनों के लिए जाना पड़ा था. उन दस दिनों में हम ससुर बहू ने क्या क्या गुल खिलाये कैसी कैसी चुदाई हुई, वो सब आप पिछली कहानी में पढ़ चुके हैं. उस बात को डेढ़ साल से कुछ ऊपर ही हो चुका है.
इन डेढ़ सालों में मैंने अपनी बहूरानी को देखा नहीं है और न ही कभी फोन पर बातें कीं और न ही कोई वीडियो चैट की; वैसे बहूरानी का फोन तो लगभग रोज ही आता है लेकिन अपनी सास के पास. लेकिन मुझसे कोई बात नहीं होती; बस सास बहू आपस में ही बतियाती रहतीं हैं.
अब मेरे बेटे का ट्रान्सफर बंगलौर हो गया है, कंपनी की तरफ से फ़्लैट भी मिला है तो बेटा बहू बंगलौर में ही रहते हैं अब.
एक बात और… अभी हफ्ते भर पहले अदिति बहूरानी के चाचा जी हमारे यहां आये थे उनके इकलौते बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए. वे लोग दिल्ली में रहते हैं लड़की भी वहीँ की है तो शादी में किसी न किसी को दिल्ली तो जाना ही था. इस बारे में मैंने अपने बेटे से बात की तो उसने मना कर दिया कि उसे छुट्टी नहीं मिल रही. अब ऐसी स्थिति में मुझे ही जाना था शादी में.हालांकि अब शादी ब्याह में जाना मुझे अखरने लगा है लेकिन जब कोई खुद आ के निमंत्रण दे के जाए और रिश्ता भी ख़ास हो तो फिर जाना जरूरी हो ही जाता है.
इन्ही सब बातों को सोचते सोचते नींद ने कब मुझे घेर लिया पता ही न चला.
अगले दिन कोई साढ़े ग्यारह बजे श्रीमती जी ने मुझे फिर याद दिलाया कि अदिति से बात करनी है.“ठीक है तू अपने फोन से बात करा दे मेरी!” मैंने कहा.
 
अगले दिन कोई साढ़े ग्यारह बजे श्रीमती जी ने मुझे फिर याद दिलाया कि अदिति से बात करनी है.“ठीक है तू अपने फोन से बात करा दे मेरी!” मैंने कहा.
रानी ने नंबर डायल करके फोन मुझे दिया और खुद किचन में चली गयी लंच की तैयारी के लिए. मैं फोन कान से लगाये चेयर पर बैठा था, घंटी जा रही थी. कोई आधे मिनट बाद अदिति ने फोन लिया.“हेलो मम्मी जी, नमस्ते!” अदिति की सुरीली आवाज मेरे कानों में गूंजी.मैं डेढ़ साल बाद इस आवाज को सुन रहा था.
“हेल्लो मम्मी जी??” उधर से फिर वो बोली.“हां, अदिति बेटा, मैं हूं. रानी तो किचन में है खाना बना रही है.” मैं बोला.“पापाजी नमस्ते, कैसे हैं आप?”“आशीर्वाद, मैं बिल्कुल ठीक हूं अदिति बेटा, तू कैसी है?”“मैं भी ठीक से हूं पापा जी!”
“बेटा, रानी कह रही थी कि तुझे मुझसे कोई बात करनी है?” मैंने कहा.“हां, पापाजी, वो मेरे भाई की शादी है न दिल्ली में. उसी के बारे में बात करनी थी.”“बोलो बेटा क्या बात है?”“पापाजी मैं भी चलूंगी शादी में… एक ही तो भाई है मेरा!”“ठीक है बेटा, तू फ्लाइट से दिल्ली आ जाना, मैं यहाँ से ट्रेन से पहुंच जाऊँगा.” मैंने कहा.
“नहीं पापा जी, आप पहले बंगलौर आओ. फिर हम दोनों साथ ट्रेन से ही दिल्ली चलेंगे.”“यह क्या कह रही है तू बहू? मुझे ट्रेन से बंगलौर आने में पच्चीस छब्बीस घंटे लगेंगे और फिर हम दोनों बंगलौर से दिल्ली जायेंगे ट्रेन से. तुझे पता है बंगलौर से दिल्ली जाने में कम से कम पैंतीस छत्तीस घंटे लगते हैं सुपरफास्ट ट्रेन से? बेटा तू तो वैसे ही फूल सी नाजुक है ट्रेन के सफ़र में तेरी हालत खराब हो जायेगी और मैं भी थक जाऊंगा” मैंने बहू को समझाया.
“पापाजी, मैंने ये सब पहले ही सोच रखा है. पहले आप यहां आओ तो सही फिर साथ चलेंगे.” बहूरानी ने जैसे जिद की.“ये क्या जिद है बेटा, तू फ्लाइट से आजा मैं यहां से ट्रेन से आ जाता हूं; इसमें क्या प्रॉब्लम है?”“पापा जी, हम दोनों साथ में और छत्तीस घंटे का सफ़र… जरा फिर से सोचो तो सही आप?”“हां हां, पता है छत्तीस घंटे लगते हैं ट्रेन में इसमें सोचना क्या. ट्रेन की खटर पटर में पूरी दो रातें और एक पूरा दिन निकालना किसी सजा से कम नहीं होगा. अदिति बेटा तेरे बदन की पोर पोर दुखने लगेगी और बुरी तरह थक जायेगी तू और मेरी तो कमर ही अकड़ जायेगी उठते बैठते. इसलिए बेकार की जिद मत कर और तू प्लेन से ही चली जा दिल्ली; मैं यहां से ट्रेन से आ ही जाऊंगा.”
“पापाजी, वही तो मैं चाहती हूं कि मैं थक जाऊं आपके साथ इन छत्तीस घंटों में और आप अच्छे से थका देना मुझे जिससे मेरे बदन की पोर पोर दुखने लगे, मेरे अंग अंग में मीठा मीठा दर्द होने लगे!” बहूरानी जी बेहद मीठी आवाज में बोली.“क्या क्या क्या… मैं समझा नहीं बेटा?” मैंने कहा.
लेकिन बहूरानी की बातों का अर्थ समझ कर मेरे दिमाग की बत्ती झक्क से जल उठी.
“पापा जी, आप भी ना कितने भोले हो… आप जरा गहराई से सोचो तो सही. मेरा मतलब है हम दोनों राजधानी एक्सप्रेस के ऐ सी फर्स्ट क्लास के प्राइवेट कूपे में जिसमें सिर्फ दो ही बर्थ होती हैं और जिसे हम भीतर से लॉक कर सकते हैं… फिर हम चाहे जो भी करें… कोई हमें डिस्टर्ब करने वाला नहीं; वो भी पूरी दो रातें और एक पूरा दिन तक लगातार. फुल स्पीड से दौड़ती राजधानीएक्सप्रेस में वो सब बेफिक्र हो कर करना कितना मजेदार और नया अनुभव होगा न और आपकी कमर जब ऊपर नीचे होती रहेगी तो अकड़ेगी कैसे पापा? ऐसे सोचो न पापा जी. वैसे भी हमें मिले हुए डेढ़ साल से ऊपर ही हो गया. मेरा तो बहुत मन कर रहा है आपसे मिलने को!”
“अच्छा अच्छा… अब समझा. तू जीनियस है अदिति बेटा और मैं कितना बुद्धू हूं.” मैंने कहा और खुद को जोर से चिकोटी काट के सजा दी कि यह बात मुझे पहले क्यों नहीं सूझी कि बहूरानी मुझे ट्रेन से ही चलने के लिए क्यों जोर दे रही है.
“तो ठीक है पापा जी, मैं बंगलौर-निजामुद्दीन राजधानी में ऐ सी फर्स्ट क्लास का दो बर्थ वाला कूपा रिज़र्व करवा लेती हूं आप छह तारीख को यहाँ आ जाना. हम लोग अगले दिन सात तारीख को दिल्ली चलेंगे. शादी तो दस दिसम्बर की है न!”“अदिति बेटा, कोई ऐसी ट्रेन देख न जिसमें छप्पन घंटे लगते हों दिल्ली पहुँचने में!” मैंने कहा.
“अब रहने दो पापाजी, अभी तो आप बात समझ ही नहीं रहे थे; अब मन में लड्डू फूट रहे हैं आपके. अब तो मैं फ्लाइट से ही जाऊँगी दिल्ली और आप आते रहना पैसेंजर ट्रेन से!” बहूरानी खनकती हंसी हंसते हुए बोली.“अरे रे रे… अदिति बेटा, ऐसा जुल्म मत करना अपने पापा पे… तू तो मेरी एकलौती प्यारी प्यारी बहूरानी है न!”“हम्म!” उधर से बहूरानी की आवाज आई.
“ठीक है बहूरानी. ट्रेन में तो मैंने भी कभी चुदाई नहीं की पहले. अब तेरी खैर नहीं. राजधानी से भी तेज स्पीड से चोदूँगा तुझे पूरी दो रातों तक; तेरी तंग चूत का भोसड़ा न बन जाए तो कहना!” मैंने कहा.उधर से बहूरानी की खनकती हंसी सुनाई दी और उसने फोन काट दिया.
मैंने फोन को चूमा और किचिन में जा के रानी को दे दिया और उसे अपना बंगलौर और दिल्ली जाने का प्रोग्राम बता दिया.
तो मित्रो, जिस दिन बहूरानी से ये सब बातें हुयीं, उस दिन पिछले साल नवम्बर की 20 तारीख थी और अगले महीने दिसम्बर की तीन तारीख को मुझे बंगलौर रवाना होना था ताकि मैं छह की सुबह बैंगलोर पहुंच सकूं; फिर अगले दिन सात को दिल्ली के लिए निकलना था वहां से. मतलब मेरे पास बारह तेरह दिन ही शेष थे. यह मेरा फर्स्ट चांस था कि मुझे किसी राजधानी एक्सप्रेस के ऐ सी फर्स्ट क्लास में, वो भी दो बर्थ वाले कूपे में ट्रेवल करने का अवसर मिल रहा था. सुन रखा था कि ऐ सी फर्स्ट क्लास का किराया हवाई जहाज जितना ही होता है..
खैर जो भी हो, मुझे कोई ख़ास तैयारी तो करनी थी नहीं, बस यह पता था कि दिसम्बर में दिल्ली में भयंकर सर्दी होती है तो उसी के हिसाब से मैंने अपने सूट टाई वगैरह सब ड्राई क्लीन करवा के रख लिए.हां, मेरी बहूरानी को बिना झांटों वाला चिकना लंड पसन्द है ताकि वो उसे आराम से चूस चाट सके; अब ये काम तो मैं जाने के दिन ही करने वाला था.
मेरी बीवी रानी को झांटों वाला लंड ज्यादा पसन्द है क्योंकि वो कभी इसे मुंह में नहीं लेती बस चुदवाते टाइम उसे अपनी कमर उठा उठा के अपनी चूत का दाना मेरी झांटों से रगड़ने में बहुत मज़ा आता है और वो ऐसे करते हुए अच्छे से झड़ जाती है.सास बहू की पसन्द हमेशा अलग अलग ही होती है न; इन चूत वालियों की माया ही निराली है; किसी को कुछ तो किसी को कुछ और ही पसन्द आता है.
इस तरह हमारा प्रोग्राम सेट हो गया और मैं छह दिसम्बर की सुबह बैंगलोर जा पहुंचा. स्टेशन पर मेरा बेटा अपनी गाड़ी से मुझे रिसीव करने आया हुआ था; स्टेशन से घर पहुँचने में कोई पैंतीस चालीस मिनट लगे. मैं गाड़ी से उतर गया और बेटा गाड़ी को पार्क करने लगा.
 
Back
Top