Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी - Page 6 - SexBaba
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Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी

हम दोनों को ही मिसमिसी छूट रही थी लेकिन खुद पे काबू किये हुए जैसे तैसे एक दूसरे की हथेलियों में हथेली फंसाए होंठों को चूस रहे थे.ये सब कोई आधा घंटा चलता रहा.
“पापा जी… अब नहीं रहा जाता, नहीं सहा जाता मुझसे… मेरी चूत में चीटियाँ सी रेंग रहीं है बहुत देर से!”“तो क्या करूं बता?” मैंने उसका गाल काटते हुए कहा.“अब तो आप मुझे जल्दी से चोद डालो पापा!”“अभी तो तू कह रही थी कि चुपचाप पड़े रहना है… अब क्या हुआ?”“पापा, मेरी चूत में बहुत तेज खुजली मच रही है… ये आपके लंड से ही मिट सकती है… फक मी हार्ड पापा डार्लिंग!” बहूरानी अधीरता से अपनी चूत ऊपर उचकाते हुए बोली.
लंड तो मेरा भी कब से तड़प रहा था उसकी चूत में उछलने के लिए तो मैंने पहले बहूरानी के निप्पल जो सख्त हो चुके थे, उन्हें मसल कर बारी बारी से चूसा, साथ में अपनी कमर को उसकी चूत के दाने पर घिसा.“हाय राजा… मार ही डालो आज तो!” बहू रानी के मुंह से आनन्द भरी किलकारी सी निकली.“ये लो मेरी रानी…” मैंने भी कहा और लंड को बाहर तक निकाल कर पूरी दम से पेल दिया चूत में!“हाय राजा जी… ऐसे ही चोदो अपनी बहूरानी को!” बहूरानी कामुक स्वर में बोली और मेरे धक्के का जवाब उसने अपनी चूत को उछाल कर दिया.
“हाय… कितनी मस्त कसी हुई टाइट चूत है मेरी अदिति बिटिया की!” मैंने जोश में बोला और फुल स्पीड से अपनी बहू को चोदने लगा.“हां पापा.‍ऽऽऽ… ऐसे ही… अपनी अदिति बिटिया की चूत बेदर्दी से चोदो, इस राजधानी से भी तेज तेज चोदिये… आःह! कितना मस्त लंड है आपका… पापा खोद डालो मेरी चूत… अब आप ही मालिक हो इस चूत के!” बहूरानी जी ऐसे ही वासना के नशे में बोलती चली जा रही थी.
मैं भी अपने पूरे दम से लंड चला रहा था बहूरानी की चूत में; उसकी चूत से आती चुदाई की आवाजें पूरे कूपे में गूँज रहीं थीं. चूत की फचफच और ट्रेन चलने की आवाज एक दूसरे में मिल कर मस्त समां बांध रहीं थीं.
“पापा जी अब डॉगी पोज में चोद दो मुझे अच्छे से!” बहूरानी ने फरमाइश की.“ओके बेटा जी… चल डॉगी बन जा जल्दी से!” मैं बोला और उसके ऊपर से हट गया.
बहूरानी ने बर्थ से उतर कर कूपे की लाइट जला दी; रोशनी में उसका किसी चुदासी औरत जैसा रूप लिए उसका हुस्न दमक उठा… कन्धों पर बिखरे बाल… गुलाबी प्यासी आँखें… तनी हुई चूचियाँ… चूचियों की घुन्डियाँ फूल कर अंगूर जैसी हो रहीं थीं और उसकी चूत से बहता रस जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक बह रहा था.
फिर बहूरानी शीशे के सामने जा खड़ी हुयी, कुछ पलों के लिये उसने खुद को शीशे में निहारा, फिर झुक गयीं और सामान रखने वाले काउंटर का सहारा लेकर डॉगी बन गयी. उसके गीले चमकते हुए गोल गुलाबी नितम्बों का जोड़ा मेरे सामने था जिनके बीच बसी चूत का छेद किसी अंधेरी गुफा के प्रवेश द्वार की तरह लग रहा था.
मैंने नेपकिन से अपने लंड को पौंछा, फिर उसकी चूत और जांघें पौंछ डाली और लंड को चूत के छेद पर टिका के सुपारा भीतर धकेल दिया. उसकी चूत अभी भी भीतर से बहुत गीली थी जिससे समूचा लंड एक ही बार में सरसराता हुआ घुस गया और मैंने नीचे हाथ ले जाकर दोनों मम्में पकड़ लिए और चूत में धक्के मारने लगा.
“लव यू पापा… यू फक सो वेल!” बहूरानी चुदाई से आनन्दित होती हुई चहकी.
“या अदिति बेटा… यू आर आल्सो ए रियल जेम… सच ए नाईस टाइट कंट यू हैव इन बिटवीन योर थाइस!” मैं भी मस्ती में था.“सब कुछ आपके लिए ही है पापा… आप जैसे चाहो वैसे भोगो मेरे जवान जिस्म को!” बहूरानी समर्पित भाव से बोली.
अब मैंने उसके सिर के बाल पकड़ कर अपने हाथों में लपेट कर खींच लिए जिससे उसका चेहरा ऊपर उठ गया और मैं इसी तरह उसकी चूत मारने लगा; बीच बीच में मैं उसके नितम्बों पर चांटे मारता हुआ उसे बेरहमी से चोदने लगा. बहूरानी भी पूरे आनन्द से अपनी चूत आगे पीछे करते हुए लंड का मजा लूटने लगी. हमारी जांघें आपस में टकरा टकरा के पट पट आवाजें करने लगी.
और चुदाई का यह सनातन खेल कोई दस बारह मिनट और चला और फिर मेरा लंड फूलने लगा झड़ने के करीब हो गया.“बहूरानी, अब मैं झड़ने वाला हूं तुम्हारी चूत में!”“झड़ जाइए पापा जी; मेरा तो दो बार हो भी चुका और तीसरी बार भी बस होने ही वाला है…”

फिर मैंने आखिरी पंद्रह बीस धक्के और मारे, फिर बहू की पीठ पर झुक गया और मम्मे थाम लिये. मेरे लंड से रस की फुहारें छूट छूट कर बहूरानी की चूत को तृप्त करने लगीं. उसकी चूत भी संकुचित हो हो कर मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी.अंत में मेरा लंड वीरगति को प्राप्त होता हुआ चूत से बाहर निकल आया और उसकी चूत से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण बह बह कर टपकने लगा.
जब हम अलग हुए हुए तो सवा बारह बजने ही वाले थे.“चल बेटा अब सोते हैं, छह बजे ट्रेन निजामुद्दीन पहुंच जायेगी. हमें पांच सवा पांच तक उठना पड़ेगा.”
“ओके पापा जी!” बहूरानी बोली और उसने अपनी ब्रा पैंटी पहन ली और बर्थ पर जा लेटी. मैं भी अपने पूरे कपड़े पहन कर बत्ती बुझा कर उसके बगल में जा पहुंचा.“गुड नाईट पापा जी!” बहूरानी मेरी तरफ करवट लेकर बोली और अपना एक पैर मेरे ऊपर रख लिया.“गुड नाईट बेटा जी!” मैंने भी कहा और उसका सिर अपने सीने से सटा लिया और उसे थपकी देने लगा जैसे किसी छोटे बच्चे को सुलाते हैं.
सुबह पांच बजकर दस मिनट पर हम उठ गये. तैयार होकर बहूरानी ने वही साड़ी पहन ली जो वो बंगलौर से पहन कर निकली थी और एक संस्कारवान बहू की तरह अपना सिर ढक आंचल से ढक लिया.
ट्रेन हजरत निजामुद्दीन समय से पहुंच गयी. बहूरानी के मायके वाले हमें रिसीव करने आये थे, सब लोगों से बड़ी आत्मीयता से हाय हेलो हुई और हम लोग अपने ठहरने की जगह की ओर निकल लिए.
 
मेरी पिछली कहानी में मैंने बताया था कि मैं और बहूरानी अदिति उसके चचेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच चुके थे; निजामुद्दीन स्टेशन पर ही अदिति के मायके वाले हमें रिसीव करने आ पहुंचे थे. हम मेहमानों के रुकने का इंतजाम एक धर्मशाला में किया गया था जो अच्छी, आधुनिक किस्म की सर्व सुविधाओं से युक्त होटल टाइप की धर्मशाला थी.
हम लोग धर्मशाला में पहुंचे तो अदिति को तो पहुँचते ही रिश्तेदारों ने घेर लिया और उनके हंसी ठहाके लगने लगे. शादी ब्याह में इन्ही छोरियों और नवयौवनाओं से ही तो रौनक होती है. वहां मुझे अन्य सीनियर लोगों के साथ एक बड़े से हाल में एडजस्ट होना पड़ा.जिस दिन हम लोग दिल्ली पहुंचे शादी उसके अगले दिन थी.
लड़की वालों ने अपना मैरिज गार्डन बुक किया हुआ था जो हमारी धर्मशाला से को डेढ़ दो किलोमीटर के फासले पर था.
धर्मशाला के सामने बगीचे में एक बड़ा सा पंडाल लगाया हुआ था जिसमें कुक, शेफ यानि हलवाई द्वारा चाय, काफी, नाश्ता, लंच, डिनर इत्यादि सब बनवाने की व्यवस्था थी. जिसे जो खाना हो उनसे बनवा लो और एन्जॉय करो. कुल मिलाकर बढ़िया व्यवस्था की गई थी.
मैंने पहुंच कर इन्हीं सब बातों का जायजा लिया और तैयार होकर बड़े हाल में जा बैठा. अब करने को तो कुछ था नहीं. सबसे मिलना जुलना और चाय नाश्ता चल रहा था, साथ में नयी उमर की लड़कियों, विवाहिताओं और नवयौवनाओं को देख देख के अपनी आंखें सेंकता जा रहा था, साथ में चक्षु चोदन भी चल रहा था.
सजी धजी परियां अपना अपना मोबाइल पकड़े हंसी मजाक कर रहीं थीं. मोबाइल से फोटो शूट और सेल्फी लेने की जैसे होड़ मची थी. कुछ लड़कियों के ग्रुप दूर कहीं कोने में किसी मोबाइल पर नजरें गड़ाये मजे ले रहे थे; हंसना मुस्कुराना, कोहनी मार के हंस देना … यह सब देख कर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता था कि उनके मोबाइल में क्या चल रहा होगा. अब इन खिलती कलियों और बबुओं के फोन में पोर्न वीडियो होना तो एक साधारण सी बात रह गयी है.
चूत लंड, मम्में, लंड चूसना, चूत चाटना, चुदाई … ये सब पोर्न फ़िल्में अब तो सहज ही सबको उपलब्ध हैं. आजकल की नयी पीढ़ी इन मामलों में बड़ी खुशकिस्मत है. इन्हें सेक्स मटीरियल भरपूर बेरोकटोक उपलब्ध है और आज वे बड़े आराम से आपसी सहमति से सेक्स सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं. लड़कियां शादी होने तक अपना कौमार्य बचाये रखना पुरानी और दकियानूसी सोच समझने लगीं हैं. यह सच भी है आज के युग के हिसाब से.आजकल लड़कियां ग्रेजुएशन के बाद कोई और प्रोफेशनल कोर्स जरूर करती हैं फिर जॉब और फिर इन सबके बाद शादी. इतना होते होते लड़की की उम्र सत्ताईस अट्ठाईस हो जाना मामूली से बात है और उतनी उम्र तक बिना चुदे रहना किसी तपस्या से कम नहीं. अब ऐसी तपस्या करना सबके बस का तो है नहीं तो बिंदास लाइफ आजकल का ट्रेंड बन चुकी है.
यूं तो आमतौर पर लड़की की पंद्रह वर्ष की उमर के बाद सोलहवां साल लगते ही उसकी चूत भीगने लगती है, उसमें सुरसुरी उठने लगती है और उसे सेक्स की चाह या चुदने की इच्छा सताने लगती है, उनकी चूत का दाना रह रह के करेन्ट मारने लगता है. यह तो प्राकृतिक नियम है जो सब पे समान रूप से लागू होता है. पहले के जमाने में लड़की रजस्वला या पीरियड्स के शुरू होने के बाद जल्द से जल्द उसकी शादी कर दी जाती थी और उसे लीगल चुदाई का सुख नियमित रूप से मिलने लगता था.
आज के जमाने में लड़की को प्राकृतिक रूप से वयस्क हो जाने के बाद और दस बारह वर्ष तक जब तक शादी न हो जाय अपनी चूत की खुजली पर कंट्रोल रखना पड़ता है. अब ऐसे में जिस्म की इस नैतिक डिमांड को दबाये रखना अपने ऊपर जुल्म करने जैसा ही तो है. अतः लड़कियां जैसे बने तैसे अपनी जवानी के मजे लूटने लगती हैं, इसमें कोई बुराई भी नहीं. जब शादी ब्याह जैसा उन्मुक्त माहौल मिले तो तमन्नाएं कुछ ज्यादा ही मचलने लगतीं हैं. तो ऐसे ही उन्मुक्त माहौल का मज़ा वो छोरे छोरियां उठा रहे थे.
एक हमारा ज़माना था अपनी वाली की सूरत देखने तक को तरस जाते थे. दिन में कई कई चक्कर महबूबा की गली के लगाने पड़ते थे तब कहीं जाकर उनकी एक झलक मिलती थी देखने को. तब न तो मोबाइल फोन थे न इन्टरनेट और न ही लड़कियां यूं कोचिंग जाती थीं. किसी लड़की को पटा लेना या दिल की बातें कर लेना आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा मुश्किल काम था और उसके साथ चुदाई कर लेना तो एवरेस्ट फतह से भी बढ़ कर कठिन हुआ करता था.
हमारे उन दिनों सेक्स मेटीरियल के नाम पर कोकशास्त्र ग्रन्थ हुआ करता था या वात्स्यायन का कामसूत्र था, इनके अलावा कुछ पत्रिकाएं जैसे आज़ाद लोक, अंगड़ाई और मस्तराम लिखित चुदाई की कहानियों की छोटी सी बुकलेट बाज़ार में मिलती थी जिसे दुकानदार बड़ी मिन्नतें करवा कर, मनमाने पैसे लेकर बेचता था और जिसे हम बड़े शान से दोस्तों के साथ कम्पनी बाग़ के किसी एकांत कोने में छुप कर पढ़ा करते थे और कभीकभी सामूहिक रूप से मुठ भी मार लिया करते थे.
फिर समय बीतने के साथ विदेशी पत्रिकाएं आने लगीं जिनमें चिकने कागज़ पर चुदाई की रंगीन तस्वीरें हुआ करती थीं. इसी दौर में ऑडियो कैसेट्स भी मिलते थे जिन्हें कैसेट प्लेयर में चला कर लड़की लड़के की चुदाई की आवाजें और बातचीत सुन लेते थे. इसके बाद सेक्स की वीडियो कैसेट का ज़माना आ गया और अब तो जो है सो सबके पास है.
 
चलिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. ज़माना तो हमेशा रंग बदलता ही रहता है.
शादी में आये मेहमानों की भीडभाड़ में टाइट जीन्स और टॉप पहने अपने अपने मम्मों की छटा बिखेरती चहचहातीं ये छोरियां हर किसी को लुभा रहीं थीं. लौंडे भी कम नहीं थे, सब के सब किसी न किसी हसीना को इम्प्रेस करने की फिराक में थे.आजकल की शादियों में ऐसे नज़ारे अब आम हो गये हैं. एक विशेष परिवर्तन जो मैंने नोट किया कि अब कुंवारी, अधपकी नादान लड़कियां भी लिपस्टिक लगाने लगीं हैं. शादीशुदा लेडीज का तो कहना ही क्या; जैसे अपने कपड़े जेवर और बदन दिखाने ही आयीं हों शादी में.बहरहाल कुल मिला कर सब अच्छा लग रहा था.
“पापा जी कुछ चाहिये तो नहीं न आपको?” अदिति बहूरानी की आवाज ने मुझे चौंकाया.वो मेरे बगल में आ खड़ी हुई पूछ रही थी.“नहीं बेटा, सब ठीक है.” मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और फिर बहूरानी की ओर देखा. पहली नज़र में तो वो पहचान में ही नहीं आई; घुमक्कड़ बंजारिनों जैसे कपड़े पहन रखे थे उसने… लहंगा चोली ओढ़नी और मैचिंग चूड़ियां वगैरह और उसके होंठो पर सजती वही मीठी मुस्कान. चोली में से उसके भरपूर, तने हुए मम्में, नीचे की ओर सपाट पेट और गहरा नाभि कूप और लहंगे में से आभास देता उसकी सुडौल जांघों का आकार. उसका लहंगा भी घुटनों से कुछ ही नीचे तक था जिससे उनकी गोरी गुदाज मांसल गुलाबी पिंडलियां जो बेहद सेक्सी लुक दे रहीं थीं और पैरों में बंजारिनों जैसे मोटे मोटे चांदी के कड़े.
मैं कुछ क्षणों तक मुंह बाए उसे देखता ही रह गया. मैंने बहूरानी को हर रूप में देखा था, हर रूप में हर तरह से चोदा था उसे … पर ये वाला रूपरंग पहली बार ही देख रहा था.“क्या हुआ पापा जी; ऐसे क्या देख रहे हो? आपकी अदिति बहू ही हूं मैं!” वो चहक कर बोली.“कुछ नहीं बेटा, तुझे इस रूप में आज पहली बार देखा तो नीयत खराब हो गयी.” मैंने धीमे से कहा.
“अच्छा? पापा जी, पिछले दो तीन दिनों में मुझे आप कई कई बार फक कर चुके हो ट्रेन में … फिर भी …?” वो भी धीमे से बोली.“हां बेटा … फिर भी दिल नहीं भरा. जी करता है तेरा लहंगा ऊपर उठा कर तुझे गोद में बैठा लूं अभी और …”“और क्या पापा?”“और तेरी पैंटी साइड में खिसका कर अपना ये पहना दूं तेरी पिंकी में … पैंटी पहन रखी है या नहीं?” मैंने पैंट के ऊपर से अपना लंड सहलाते हुए कहा.
“धत्त …” बहूरानी बोलीं और अंगूठा दिखा कर निकल लीं. वो तो यूं धत्त कह के निकल लीं, जाने से पहले एक बार मुस्कुरा के कातिल निगाहों से मुझपर एक भरपूर वार किया और कूल्हे मटकाते हुए चलीं गयीं और मैं उनके थिरकते नितम्ब ताकता रह गया. अपनी बहूरानी को राजस्थानी बंजारिन के भेष में देखकर उन्हें इसी रूप में चोदने को मन मचलने लगा.
आखिर ऐसा होता क्यों है? मेरी पिछली कहानियों से आप सब जानते हैं कि बंगलौर से दिल्ली ट्रेन से आते आते उन छत्तीस घंटों में मैंने अदिति बहूरानी को कई कई बार तरह तरह की आसन लगा के चोद चुका था फिर अभी कुछ ही घंटों बाद उन्हें फिर से भोग लेने की ये दीवानगी कैसी?
किसी पहुंचे हुए ने सच ही कहा है कि लड़की की चूत नहीं उसका नाम, उसका हुस्न, उसका रुतबा, उसका व्यक्तित्व, उसकी शख्सियत, उसका रूपरंग, उसमें बसी उस औरत को, उसके मान सम्मान को चोदा जाता है; चूत का तो बस नाम होता है. ये आपकी इच्छा पर निर्भर करता है कि उसकी चूत के नाम पर उसका क्या क्या चोदना चाहते हैं. तो मेरा मन तो बंजारिन को चोदने के लिए मचल उठा था वरना अदिति बहूरानी की चूत की गहराई तो मेरा लंड कई कई बार पहले ही नाप चुका था.
अब इस भीड़ भाड़ वाले माहौल में इस अल्हड़ बंजारिन को कैसे चोदा जा सकता है, मेरे मन में यही प्लानिंग चलने लगी थी.
टाइम देखा तो साढ़े ग्यारह हो रहे थे. नाश्ता वगैरह तो हो चुका था और सब लोग अपने अपने हिसाब से टाइम पास कर रहे थे. बहूरानी के जाने के बाद मेरा ध्यान फिर से उन छोरियों के झुण्ड की ओर चला गया जहां वे सब कुर्सियों का गोलचक्कर बना के बैठी किसी मोबाइल में आँखें गड़ाये चहचहा रहीं थीं.मेरा ध्यान उस थोड़ी सांवली सी लड़की ने खींचा जो सबसे अलग सी पर सबके साथ मिल के बैठी थी. एकदम गोल भोला सा चेहरा, सुन्दर झील सी आँखें जिनकी बनावट बादाम के आकार जैसी थी और उसका निचला होंठ रस से भरा भरा सा लगता था. क़रीब साढ़े पांच फुट का कद और घने काले बाल जिन्हें उसने चोटी से कस के बांध रखा था.
शहरी छोरियों से अलग वो किसी गाँव आयी हुई लगती थी; कपड़े भी उसके हालांकि नये से लगते थे पर आधुनिक फैशन के नहीं थे. सादा सिम्पल सा सलवार कुर्ता पहन रखा था उसने, सीने पर दुपट्टा डाल रखा था. उसका दुपट्टा काफी उभरा उभरा सा दिखता था जिससे अंदाज होता था दुपट्टे के नीचे कुर्ती और ब्रा में कैद उसके मम्में जरूर एक एक किलो के तो होंगे ही. उसकी बॉडी लैंग्वेज से यही लगता था कि वो किसी मध्यम वर्गीय ग्रामीण परिवार से आई है.
 
अब शादी ब्याह में तो सब तरह के रिश्तेदार आते ही हैं. अमीर गरीब, शहरी ग्रामीण, अलग अलग मिजाज वाले. तो वो छोरी भी उन लड़कियों के झुण्ड में चुपचाप सी शामिल थी. बोल भी न के बराबर रही थी. मैं उसकी मनःस्थिति को चुपचाप ताड़ रहा था; जरूर वो बेचारी हिंगलिश … आधी अंग्रेजी आधी हिंदी … में गिटपिट करती उन मॉडर्न तितलियों से तालमेल नहीं बैठा पा रही थी और शायद इसी कारण हीन भावना या इन्फीरियरटी काम्प्लेक्स से भी ग्रस्त दिखती थी. पर हां … उत्सुकतापूर्वक उन मॉडर्न छोरियों के हाव भाव उनके स्टाइल्स आत्मसात या सीखने की कोशिश में जरूर लगती थी.
एक बात और मैंने नोट की कि वो गाँव की बाला जवान लड़कों को मुस्करा मुस्करा के गहरी, अर्थपूर्ण नज़रों से देखती थी शायद किसी को खुद पर आशिक करवाने की फिराक में थी और अपना सबकुछ लुटा देने, किसी के साथ ‘सेट’ हो जाने की सोच कर ही शादी में आयी थी; पर उसे कोई भाव देता नज़र नहीं आ रहा था.गांव देहात की ऐसी बालाएं खूब मेहनत करती हैं; खेतों में, घर के कामकाज में … जिससे उनका बदन खूब कस जाता है; इनके ठोस मम्में और बेहद कसी हुई चूत लंड को निहाल कर देती है. मगर ये नयी उमर के छोरे तो उन रंगीन तितलियों को इम्प्रेस करने के फेर में थे. वे बेचारे क्या जानें कि जो मज़ा ये देहाती हुस्न देगा उसका मज़ा, उसकी लज्जत उसका जायका ही अलग होगा.
अब शादी ब्याह में तो ये सब चलता ही है और किसी की चुदाई भी हो जाय तो कोई बड़ी बात नहीं. कोई भी लडकी घर से निकल कर ज्यादा उन्मुक्त महसूस करती है और अपनी दबी छुपी तमन्नाओं इच्छाओं को पूरा कर गुजरना चाहती है.ज्यादातर लड़कियां अपनी चुदने की इच्छा यूं ही अपने गाँव शहर से बाहर शादी ब्याह में, छुट्टियों में नानी के यहां, किसी अन्य रिश्तेदारी में या किसी ऐसे ही सुरक्षित माहौल में पूरी कर लेती हैं. क्योंकि वे ऐसे में ज्यादा सिक्योर फील करती हैं; चुदवाने के लिए सुरक्षित स्थान और माहौल इनकी पहली प्राथमिकता होती है; किससे चुदना है वो बात सेकेंडरी हो जाती है. चूत को तो लंड मिलना चाहिये और किसी को कानों कान खबर भी न हो बस.
अचानक किसी के फोन की घंटी बजने की तेज आवाज हॉल में गूँज उठी. नोकिया फोन की तीखी टिपिकल रिंगटोन थी वो. घंटी बजते ही वो ग्रामीण बाला झट से उठी और हॉल के मेरी तरफ वाले कोने की ओर बढ़ने लगी; जरूर ये उसी का फोन बजा था. मेरी निगाहें अभी भी उसी पर जमीं थीं. मेरी तरफ चल के आने से उसके उन्नत उरोज और कदली गुदाज जंघाओं के उभार उसके सलवार कुर्ते से स्पष्ट झांक रहे थे और छिपाए नहीं छिप रहे थे.
फिर उसने अपने कुर्ते में सामने से हाथ घुसा के फोन निकाला और किसी से बतियाने लगी. मैंने स्पष्ट देखा उसका फोन बाबा आदम के जमाने का नोकिया कम्पनी का घिसा पिटा सा एक इंच स्क्रीन वाला फोन था और वो फोन को अपनी हथेली में छिपाए बात कर रही थी.
बात ख़त्म करके उसने फोन को वापिस अपने कुर्ते में धकेल दिया और वापिस उन्ही लड़कियों की तरफ जाने लगी. मैंने पीछे से देखा तो उसके कुर्ते से झांकती उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स और उसके ऊपर पहनी हुई शमीज का आकर साफ़ नज़र आ रहा था; कुर्ता नीचे की तरफ उसके गोल मटोल पुष्ट नितम्बों की दरार में फंसा हुआ था जिससे उसकी मादक चाल और भी मदमाती लगने लगी थी. उसके लम्बे बालों वाली चोटी क्रम से इस नितम्ब से उस नितम्ब पर उछल उछल कर दस्तक देती हुई लहरा रही थी.
ये सब देख कर न जाने क्यों मेरे जिस्म ने एक झुरझुरी से ली और मन में इस कामिनी की उफनती जवानी को रौंदने की, उसके जिस्म को भोगने की, उसे चोदने की चाह जग गयी.
वो कामिनी ऐसी ही मदमाती चाल से चलती हुई वापिस अपनी जगह पर बैठ गयी. इधर मैं उसकी रूपराशि निहारता हुआ, उससे अपनी आँखे सेंकता हुआ उसे ताकता रहा.अचानक उसकी नज़र मेरी तरफ उठी और मैंने भी उसे नज़र गड़ा कर, उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखा तो उसने फौरन सकपका कर अपना मुंह फौरन दूसरी ओर घुमा लिया.
ये लड़कियां या स्त्रियां मर्दों की वैसी चाहत वाली वाली नज़रों को खूब पहचानती हैं, क्षणभर में आदमी की चाहत और नीयत भांप लेती हैं. यह गुण इन्हें ईश्वरीय देन है जो इन्हें छोटी उमर से ही ज्ञान करा देता है. इस तरह हमारी नज़रें यूं ही दो चार बार टकरायीं, अंतिम बार उसने कोई पांच सात सेकेण्ड के लिए मेरी ओर एकटक देखा, शायद वो मेरे मन उमड़ रही चाहत को फिर से पढ़ना और कन्फर्म करना चाहती हो और फिर वो अपनी कुर्सी घुमा कर मेरी तरफ पीठ करके बैठ गयी.
इस लड़की में अब मेरी उत्सुकता न जाने क्यों बढ़ने लगी थी. अब शादी में आई थी तो रिश्तेदारी का लिंक मुझसे भी कहीं न कहीं से तो जुड़ेगा ही, मैंने सोचा. मेरी सोच इस देसी बाला की ओर गहराती गयी … गाँव से शादी में आई है; पुराने ढंग का पहनावा, बालों में कंघी करके कसी हुई चोटी, गुजरे जमाने का फोन लिए… बात करने का देहातीलहजा और वैसे ही हावभाव ये सब चिह्न उसके फॅमिली बैकग्राउंड को बखूबी दर्शा रहे थे. नौजवानों को रिझाने या सिड्यूस करने के उपक्रम करती ये बाला लगता था कि किसी से चुदने की ठान के ही घर से निकली थी.
“आह कितना मज़ा आयेगा इसे भोगने में… देखने से कम उमर की और कुंवारी सी दिखती है … हो सकता है अभी तक सील पैक हो इसकी चूत … या चुद चुकी होगी गाँव में … हावभाव से तो प्यासी सी लगती है, चुद भी चुकी होगी तो ज्यादा से ज्यादा पच्चीस तीस बार चुद ली होगी … इतने से चूत का कुछ बिगड़ता थोड़े ही है. बहुत हॉर्नी फील कर रही होगी तभी तो लड़कों को आंख में आंख डाल के मुस्कुरा के देखती है … इसे पूरी नंगी करके भोगने में कैसा सुख मिलेगा … ये कैसी कैसी कलाबाजियां खाते हुए ये लंड लीलेगी …” ऐसे ऐसे न जाने कितने विचार मुझे मथने लगे.
“संभल जा सतीश …” अपनी बहूरानी के साथ शादी में आये हो; अगर कोई ऊँच नीच हो गयी, तूने कुछ गलत किया और लड़की ने शिकायत कर दी तो पूरी बिरादरी में थू थू हो जायेगी, तेरा सोशल स्टेटस खत्म हो जाएगा और अदिति बहू भी नफरत करने लगेगी तुझ से … मेरे भीतर से चेतावनी सी उठी तो मुझे आत्मग्लानि सी हुई और मैं वहां से उठ कर चल दिया.
दोपहर का एक बज चुका था. भूख भी लग आयी थी, बाहर पंडाल में जाकर देखा तो मेजों पर खाना सजा दिया गया था. खाना खाते ही आलस्य आने लगा.
साढ़े चार बजे बहू ने मुझे चाय के लिए जगा दिया- उठ जाइए पापा जी, टी टाइम!बहूरानी मुझे हिला कर जगा रहीं थीं. मैंने अलसाई आँखों से देखा तो वो मेरे ऊपर झुकी हुईं मेरा कन्धा हिला हिला के मुझे जगा रही थी. वही बंजारिन की वेशभूषा में थीं; मेरे ऊपर झुके होने के कारण उनके मम्मों की गहरी घाटी मेरे मुंह से कुछ ही इंच के फासले पर थी. मैंने शैतानी की और झट से मुंह ऊपर कर के दोनों मम्मों को चोली के ऊपर से ही बारी बारी से चूम लिया.
“आपके तो पास आना ही अपनी आफत बुलाना है. कोई शर्म लिहाज तो है नहीं … इतने लोगों के बीच भी सब्र नहीं है आपको?” बहूरानी मुझे झिड़कती हुई बोली.“क्या करूं बेटा, बंजारिन के कपड़ों में तू इतनी हॉट लग रही है कि बस. मेरा बस चले तो …”“रहने दो पापा जी, यहां कोई बस वस नहीं चलने वाला आपका … बस तो बस स्टैंड से चलती है वहीं चले जाओ.” बहूरानी खनकती हुई हंसी हंस दीं.
 
साढ़े चार बजे बहू ने मुझे चाय के लिए जगा दिया- उठ जाइए पापा जी, टी टाइम!बहूरानी मुझे हिला कर जगा रहीं थीं. मैंने अलसाई आँखों से देखा तो वो मेरे ऊपर झुकी हुईं मेरा कन्धा हिला हिला के मुझे जगा रही थी. वही बंजारिन की वेशभूषा में थीं; मेरे ऊपर झुके होने के कारण उनके मम्मों की गहरी घाटी मेरे मुंह से कुछ ही इंच के फासले पर थी. मैंने शैतानी की और झट से मुंह ऊपर कर के दोनों मम्मों को चोली के ऊपर से ही बारी बारी से चूम लिया.
“आपके तो पास आना ही अपनी आफत बुलाना है. कोई शर्म लिहाज तो है नहीं … इतने लोगों के बीच भी सब्र नहीं है आपको?” बहूरानी मुझे झिड़कती हुई बोली.“क्या करूं बेटा, बंजारिन के कपड़ों में तू इतनी हॉट लग रही है कि बस. मेरा बस चले तो …”“रहने दो पापा जी, यहां कोई बस वस नहीं चलने वाला आपका … बस तो बस स्टैंड से चलती है वहीं चले जाओ.” बहूरानी खनकती हुई हंसी हंस दी.
“अच्छा उठो तो सही वर्ना चाय ठंडी हो जायेगी; कहो तो यहीं ला दूं?” वो बोलीं.“चल, चाय यहीं ले आ साथ में एक गिलास पानी भी लेटी आइयो!” मैं अलसाए स्वर से बोला.
कुछ ही देर में बहूरानी दो पेपर कप्स में चाय ले के आ गयी और कुर्सी डाल के मेरे पास ही बैठ के चाय सिप करने लगीं. चाय पीते हुए हमलोग शादी के सम्बन्ध में ही बातें करने लगे जैसे कि जनरल, घरेलू बातचीत होती ही है.
कुछ ही देर में अदिति बहू के अंकल जिनके बेटे की शादी थी आकर मेरे ही नजदीक बैठ गये. थोड़ी औपचारिक बातों के बाद वे अदिति से बोले- अदिति, जरा चल के एक बार शादी के गहने, कपड़े और बाकी सामान चेक कर लो कहीं कोई कमी न रह जाय. कुछ और लाना हो तो बताओ देख के; पूरा सामान उधर कोने वाले कमरे में रखा है. ये लो चाबियां और हां किसी को भी कमरे में मत आने देना, तू तो जानती है सब तरह के लोग आते हैं शादी में किसी का कोई भरोसा नहीं. इसलिए तुम कमरा भीतर से बंद कर लेना. और हां मैं और तुम्हारी आंटी बाजार जा रहें हैं शाम को आठ साढ़े आठ तक लौटेंगे. तुम सब चेक कर करा के कोई कमी हो तो बताना कल पूरी कर लेंगे. ध्यान रखना कोई भी कमरे में न आने पाये, बहू के चढ़ावे के गहने भी वहीं संदूक में रखे हैं.
“और हां भाई साब, आप भी कष्ट कर लेना एक नज़र सब देख लेना अदिति के साथ जा के!” अदिति के अंकल ऐसे मुझसे कहते हुए चाबियों का एक गुच्छा अदिति के हाथ में थमा कर चले गये.
अदिति ने चाबियां लेकर दो तीन बार उछाल उछाल कर मेरी ओर मुस्कुरा के अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा. इधर मेरे दिमाग की बत्ती भी भक्क से जल उठी; सामान वाले बंद कमरे में मैं और अदिति बहूरानी … मतलब बंजारिन को चोदने का पूरा इंतजाम खुद ब खुद हो गया था.“पापा जी, लाटरी निकल गयी आपकी तो, ये बंजारिन मिलने वाली है आपको. अब तो खुश हो न?” अदिति मेरी आँखों में आँखें डाल के बोली.
“अदिति बेटा, जब तेरे अंकल खुद तेरी चुदाई का इंतजाम कर के गये हैं तो उनका मान तो रखना ही पड़ेगा … आखिर सगे चाचा जी है तेरे!”“अब रहने भी दो पापा, सोचो कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया वर्ना इस बंजारिन को छूने के ही ख्वाब देखते रह जाते!” बहू थोड़ा इठला के बोली“हां हां चल ठीक है …चलो चलें सामान वाले रूम में. शुभ काम में देरी नहीं करते!” मैं खुश हो के बोला.
“अभी से? अभी तो पांच ही बजे हैं. सात बजे तक चलेंगे रूम में.” बहूरानी बोलीं और निकल ली.तो बहूरानी को चोदने का मौका मिलने ही वाला था. मैंने खुश होते हुए चाय ख़तम की और टहलने के लिए बाहर निकल गया.
मैं धर्मशाला से निकल यूं ही आसपास दिल्ली की सड़कों पर टहलता रहा. उफ्फ, बेशुमार ट्रैफिक और भीड़ जहां सांस लेना भी मुश्किल. बाजारों में काफी रौनक लग रही थी.यूं ही टाइम पास करते करते सात बजने को हो गये तो वापिस लौटा.
धर्मशाला में काफी कम लोग नज़र आ रहे थे. शादी तो अगले दिन थी और शाम का टाइम सो लोग घूमने फिरने निकल गये थे पर मेरी नज़रें तो बहूरानी को ढूँढ रहीं थीं. सब जगह देखने के बाद वो फर्स्ट फ्लोर पर एक रूम में किसी लड़की से बतिया रहीं थीं. नजदीक जाकर देखा तो वो उसी गाँव वाली छोरी से बातें कर रहीं थीं जिसे मैं दोपहर में ताड़ रहा था.
“अरे अदिति, तू यहां बैठी है? मैं तुझे सब जगह ढूंढता फिर रहा हूं. चल वो शादी का सब सामान चेक करना है न, जो तेरे अंकल कह कर गये थे.”
“पापा जी, बैठो तो सही अभी चलती हूं. मुझे पता है कि आपको बहुत चिंता हो रही है ‘वो वाला’ सामान चेक करने की!” बहूरानी द्वीअर्थी बात मुस्कुरा कर बोली.बहू ‘वो वाला सामान’ शब्द जोर देकर बोली और एक कुर्सी मेरे लिए खिसका दी.
“पापा जी, इनसे मिलो. ये मेरी भतीजी लगती हैं. मेरठ के पास के गाँव से आई हैं. कमलेश नाम है इनका वैसे सब इन्हें कम्मो नाम से बुलाते हैं. पापा जी, रिश्ते से तो कम्मो मेरी भतीजी हैं पर हम सहेलियां ज्यादा हैं.” बहूरानी ने उस गाँव की गोरी से मेरा परिचय कराया.
“कम्मो, ये मेरे ससुर जी हैं इन्हें पापा कहती हूं मैं. इन्हीं के संग बैंगलोर से आई थी मैं; तुझे बताया था न अभी!” बहूरानी कम्मो से बोलीं.यह सुनकर कम्मो उठी और मेरे पांव छूते हुए नमस्ते कहने लगी.“आशीर्वाद है कमलेश बिटिया. खुश रहो!” मैंने उसे आशीर्वाद दिया; वो मेरे सामने झुकी थी वो मेरा हाथ खुद ब खुद उसकी पीठ पर जा पहुंचा. उसकी नर्म गुदाज गर्म सी पीठ का मुझे स्पर्श हुआ और मेरी उंगलियाँ उसकी ब्रा के हुक पर जा कर अटक सीं गयीं. यौवनमयी जवान देह का स्पर्श पाते ही मेरे लंड ने जैसे ठुमका लगाया और एक मीठी सी तरंग मेरे पूरे बदन में तैर गयी. फिर वो सीधी हुई तो उसके खूब गहरे क्लीवेज की झलक मेरी आँखों में कौंधी और वो अपनी कुर्सी पर जा बैठी.
 
स्त्रियां या लड़कियां स्पर्श के मामले में ज्यादा सचेत होती हैं सो जो जैसा मुझे महसूस हुआ जरूर वैसा ही उसे जरूर हुआ होगा तभी उसका मुंह आरक्त हो गया, उसके चेहरे पर गहरी लाली छा गई और उसकी आँखें नशीलीं हो उठीं. वैसे भी जब मैं उसे दोपहर में ताड़ रहा था और उसे चोदने के ख़याल मात्र से आनंदित हो रहा था वो मेरी ओर अपनी पीठ करके बैठ ही गयी थी मतलब उसने मेरे मनोभावों को पढ़ लिया था. मैंने पहले कहा था कि स्त्रियों में यह गुण जन्मजात होता है कि वो पुरुष के मनोभाव क्षणमात्र में ही पढ़ लेती हैं.
“चलो अच्छा ही हुआ इस कम्मो से भी परिचय हो ही गया. आखिर जान पहिचान से ही बात आगे बढ़ती है.” मैंने खुश होते हुए सोचा. लेकिन मैं मन ही मन शर्मिंदा या गिल्टी कांशस भी फील कर रहा था कि वो बेचारी मेरे बारे में न जाने क्या क्या धारणा बना रही होगी.
कम्मो मेरे सामने ही बैठी थी. अबकी बार मैंने उसे नजर भर के निहारा. सुन्दर गोल सा चेहरा, उमड़ते यौवन से भरपूर मजबूत सुगठित बदन जो कि सिर्फ मेहनत करने वाली कामिनियों का ही होता है. खूब लम्बे काले घने केश जिनकी चोटी उसकी कमर तक आती थी और वो अपनी चोटी गोद में लिये यूं ही उँगलियों में लपेट रही थी. उमर के हिसाब से भी लगता था कि यही कोई उन्नीस साल के क़रीब होगी.
“कमलेश जी, आप की शिक्षा पूरी हो गयी या अभी भी जारी है?” मैंने ऐसे ही बात शुरू करने की नीयत से उससे सवाल किया.“आप मुझे जी कह कर क्यों बुलाते हैं. सबकी तरह कम्मो ही कहिये न!”“ओके कम्मो, चलो बताओ जो मैंने पूछा?”
“पहले आप ये बताओ कि मैं आपको क्या कहूं? आप अदिति आंटी के फादर इन ला हो तो मेरे दादा जी जैसे हुए रिश्ते के हिसाब से तो!”“कम्मो, जो तेरा जी चाहे कह ले मुझे!” मैंने मुस्कुरा के कहा.
“रिश्ते का क्या … ये मेरी अदिति आंटी हैं लेकिन फ्रेंड जैसी हैं. आप रिश्ते से दादा जी हो लेकिन देखने से वैसे दादाजी टाइप के लगते नहीं. मैं तो आपको अंकल जी कहूंगी, ठीक है न?” कम्मो भी मुस्करा के बोली.“ओके कम्मो … अब बताओ अपने बारे में?” मैंने फिर पूछा.
तो जो उस कम्मो ने मुझे बताया उसकी बातों का सारांश ये है कि वो हाई स्कूल पास कर चुकी है फर्स्ट डिविजन में पर घर वालों ने उसे आगे नहीं पढ़ने दिया और उसकी उमर अभी साढ़े उन्नीस की है, घर में और खेतों में काम करना पड़ता है और उसकी शादी भी तय है, गेहूं की फसल के बाद इसी मई जून में उसकी शादी हो जायेगी.
गांव देहात में लड़कियों को कम ही शिक्षा दिलवाते हैं और शादी भी बहुत जल्दी कर देते हैं. कम्मो भी उसी तरह से थी.
“पापा जी, कम्मो मुझसे नया मोबाइल खरीदवाने का कह रही थी. इसका पुराना नोकिया का मोबाइल तो बेकार हो गया अब. पैसे तो हैं इसके पास. अब मैं तो बाज़ार जाऊँगी नहीं. आप ही इसे कल मार्केट ले जाना और कोई अच्छा, सिम्पल सा स्मार्ट फोन इसे दिलवा देना जिसे ये अच्छे समझ सके!” अदिति बहूरानी मुझसे बोली.
“हां हां क्यों नहीं … कल दिलवा देंगे इसे जैसा ये चाहेगी. वैसे भी मुझे यहां कल कोई काम धाम तो है नहीं; चलो इसी के साथ टाइम पास हो जाएगा और इसी बहाने दिल्ली के बाज़ार की सैर भी हो जायेगी. ठीक हैं न कम्मो; चलेगी न मेरे साथ?” मैंने खुश होकर उससे पूछा.“हां क्यों नहीं. जरूर चलूंगी अंकल जी!” वो थोड़ा शर्माते हुए बोली. उसने पलकें उठा के मुझसे कहा फिर नज़रें झुका दीं.
मैंने घड़ी देखी तो साढ़े सात बजने ही वाले थे.“अदिति बेटा चलें फिर? वो सामान चेक करना है नहीं तो देर हो जायेगी फिर. तेरे अंकल आंटी आने वाले होंगे!” मैंने अधीरता से कहा.“चलो पापा जी!” बहूरानी बोली और खड़ी हो गयी.
“सुन कम्मो, हम लोग शादी का सामान चेक करके आते हैं अभी!” अदिति ने कम्मो से कहा.“ठीक है आंटी जी. मैं नीचे जा रही हूं. आप लोग भी वहीं आ जाना. डिनर साथ ही करेंगे.” वो बोली.
इस तरह कम्मो को समझा कर बहूरानी जी मेरे आगे आगे तेज कदमों से सामान वाले रूम की तरफ चल दीं. उनके पीछे पीछे मैं उनके थिरकते नितम्बों को निहारता हुआ चल पड़ा. बंजारिन के वेश में उनका मादक हुस्न, घुटनों तक के घाघरे में से झांकती उनकी सुडौल पिंडलियां, लगभग नंगी पीठ पर बंधी चोली की डोरियां और घाघरे के बीच से अनावृत उनकी कमर, पीठ और नाभि क्षेत्र … सब कुछ कहर ढा रहा था.
मित्रो, आप सब तो जानते ही हैं कि मैं अपनी इन बहूरानी के साथ कई कई बार संभोग कर चुका हूं; अभी तीन दिन पहले ही हम दोनों बैंगलोर से ऐ सी फर्स्ट क्लास के प्राइवेट कूपे में बैंगलोर से दिल्ली आते आते उन छत्तीस घंटों में मैंने अपनी कुलवधू को हर तरह से, हर एंगल से … न जाने कितने आसनों में अपनी शक्ति शेष रहते चोदा था; परन्तु अदिति बहूरानी मुझे कभी भी बासी या फीकी, उबाऊ नहीं लगीं. हर बार वे एक नये ताजे खिले पुष्प की भाँति ही मुझे समर्पित हुयीं.
 
पर आज उनका बंजारिन वाला रूप तो कहर ढा रहा था … उनकी अल्हड़, बेपरवाह जवानी देख के मुझे अपनी जवानी के दिन स्मरण हो रहे थे जब मैं उस जमाने की फिल्म्स की हेरोइनों को बंजारिन के वेश में देख कर मुठ मारा करता था … नीतू सिंह, आशा पारेख, वहीदा रहमान, रेखा, वैजयन्ती माला मुमताज, राखी, योगिता बाली, सायरा बानो … न जाने कितनी और को मैंने अपने ख्यालों में ला ला के अपने लंड से सताया था और आज बंजारिन का वही साकार रूप लिए मेरी एकलौती बहूरानी मुझसे चुदने की खातिर मेरे आगे आगे चल रही थी; घुटनों तक के घाघरे में से उनकी गोरी गुलाबी पिंडलियां बहुत सुन्दर लग रहीं थीं.‘अभी इन्हें कंधों पर रख कर …’ मैंने सोचा.
बहूरानी ने सामान वाले कमरे का ताला खोला और हम दोनों झट से कमरे में घुस गये और दरवाजा भीतर से लॉक कर लिया. सबसे पहले मैंने बहूरानी को पीछे से अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और उनके दोनों मम्में पकड़ के उनकी गर्दन और कान के नीचे चूमने लगा.“आह…पापा जी, थोड़ा सब्र तो करिये. फिर कर लेना जो जो करना हो. पहले ज्यादा जरूरी काम तो निपटा लें!” बहूरानी कसमसाती हुई बोली.“बेटा, तू इस घाघरे चोली में एकदम हॉट लग रही है; तुझ बंजारिन को चोदने को कब से मचल रहा हूं; पहले यही काम निपटा लें न!” मैंने उनकी चोली में हाथ घुसा के उसके अंगूर मसलते हुए कहा.
“नहीं पापा जी, पहले शादी का सामान देख लेते हैं. आप तो बहुत देर तक पेलोगे मुझे अगर चाचा जी आ गये तो सब गड़बड़ हो जायेगी.” अदिति मुझसे छूटती हुई बोली.
बहूरानी की बात भी ठीक थी तो मैंने उसे जाने दिया. फिर कमरे का जायजा लिया. पूरा कमरा शादी के सामान से भरा पड़ा था. होने वाली बहू के चढ़ावे के कपड़े जेवर एक अलग बॉक्स में रखे थे. कमरे में एक डबल बेड बिछा था जिस पर गिफ्ट में देने के कपड़े, पैंट शर्ट के पीस, साडियां, मिठाई के डिब्बे रखे थे. पलंग पर बैठने लायक भी जगह नहीं थी और सारा कमरा मिठाइयों की महक से महक रहा था.
बहूरानी ने सबसे पहले गहनों वाले बॉक्स का ताला खोल कर चेक किया. होने वाली बहू के सारे जेवर बहुत ही सुन्दर सुन्दर डिजाईन के थे और चढ़ावे के कपड़े, शादी का जोड़ा सब कुछ फर्स्ट क्लास लगा. बस हमें पायल पसंद नहीं आयी, तो अदिति ने अपने चाचाजी को फोन करके बता दिया- चाची जी, मैं भाभी का सामान देख रही हूँ, इसमें जो पायल है, वो बहुत हल्की है, पतली है, थोड़ी भारी वाली अच्छी लगेगी.
इतना करने के बाद मैंने पलंग पर पड़े कपड़े, मिठाई के डिब्बे एक के ऊपर एक रख के ढेर लगा दिया और अदिति के लेटने लायक जगह बनाई और उसे पलंग पर गिरा कर मैं उसके ऊपर सवार हो गया.बहूरानी भी बेकरार थी तो उसने भी अपनी बांहें मुझे पहना कर अपने ऊपर झुका लिया. मैं चुपचाप सा उनके भुजबंधन में बंधा हुआ उनके दिल की धकधक महसूस करता रहा. उसके जिस्म की तपन और वो नेह का आलिंगन मुझे आत्मिक सुख प्रदान कर रहा था.
बहूरानी के साथ मैंने बीसों बार संभोग किया था और हर बार हमें एक आत्मिक संतुष्टि और चरम सुख की अनुभूति ही हुई; कभी भी आत्मग्लानि या अपराधबोध से मन ग्रस्त नहीं हुआ. उनके नर्म गुदगुदे स्तन चोली में से उभरी हुई चोटियों की तरह मुझे आमंत्रित से कर रहे थे. मैंने उनके बीच अपना मुंह छुपा दिया और क्लीवेज को चूम चूम कर चाटने लगा.
बहूरानी के मुंह एक मादक आह निकल गई और उनका चेहरा ऊपर को उठ गया. मैंने चोली में नीचे से हाथ घुसा कर चोली को ऊपर खिसका दिया, ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, उसके नग्न उरोज बाहर निकल आये; मैंने दोनों मम्मों को दबोच लिया और हौले हौले उन्हें गूंथने लगा और उसकी गर्दन चूम कर कान की लौ को जीभ से छेड़ने लगा.
बस इतने से ही उसके निप्पल कड़क हो गये; जो किशमिश के जैसे थे फूल कर अंगूर से हो गये. मैं दायें वाले अंगूर को अपने मुंह में भर के चूसने लगा और बाएं वाले को चुटकी में भर के प्यार से धीरे धीरे निचोड़ने लगा जैसे नींबू निचोड़ते हैं.
“पापाऽऽ स्सस्सस्सस…आः ह…” बहूरानी के मुंह से धीमी सी कराह निकली और उसने मेरा चेहरा पकड़ कर अपने होंठ मेरे होंठों से जोड़ दिए और पूरी तन्मयता के साथ चूसने लगी. इधर मेरे बदन में खून की रफ़्तार तेज हो गयी मेरी कनपटियां तपने लगीं और लंड धीरे धीरे अकड़ने लगा. बहूरानी का निचला होंठ संतरे की छोटी फांक की तरह मोटाई लिए रसीला है जिसे चूसने में गजब का मज़ा आता है. तो मैं उसके दोनों मम्में पकड़ के होंठ चूसने लगा और बीच बीच में उनके गाल भी काटने लगा.अदिति बहू के गाल काटने में भी मस्त मज़ा आता है.
इसी बीच बहूरानी ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी और मैं उसे चूसने लगा; फिर मैंने अपनी जीभ बहू के मुंह में घुसा दी और वो भी मेरी जीभ अच्छे से चूसने लगी. हमारे होंठ और जीभ यूं ही काफी देर तक आपस में लड़ते रहे फिर बहूरानी नीचे हाथ लेजाकर जैसे कुछ टटोल के ढूँढने लगी.“पापा जी, कहां गया आपका वो?” वो अपना हाथ नीचे लेजाकर टटोलते हुए पूछने लगी.“वो क्या बेटा जी?” मैंने समझते हुए भी नासमझी का दिखावा किया और अपनी कमर ऊपर उठा दी ताकि वो उसकी पकड़ में न आये.“वो आपका छोटू!” वो धीमे से बोली.“छोटू?”“हां छोटू … लम्बू कह लो चाहे मोटू कह लो … वही!” बोल के बहूरानी ने मुझे चिकोटी काटी.
“पता नहीं मुझे … मेरे पास तो ऐसी कोई चीज नहीं!” मैंने कहा और उसके पेट को चूमते हुए नाभि में जीभ घुसा के गोल गोल घुमाने लगा. उसके दोनों मम्में अभी भी मेरे हाथों की गिरफ्त में थे.
“उफ्फ्फ़ पापा जी … आप भी न अब झूठ भी बोलने लग गये मुझसे. देखो ये तो रहा!” बहूरानी बोली और अपना पैर उठा कर मेरे लंड को छेड़ा, हिलाया.“अरे, तो ये कोई छोटू मोटू थोड़े ही है …ये तो मेरा लंड है लंड!” मैंने कहा और लंड को उसकी जांघों पर टकराने लगा.
“हां हां वही पापा … नाम कोई भी ले लो इसका. अब जल्दी से मिलवा दो इसे मेरी पिंकी से … टाइम कम है!”“अदिति मेरी जान, लंड को लंड ही कहो न और तुम्हारी पिंकी नहीं चूत कहते हैं इसे!”“धत्त, मैं नहीं कहती ऐसे गंदे शब्द!” बहू ने नखरे दिखाए.“प्लीज मान जा न मेरी गुड़िया रानी!” मैंने बहू के होंठ चूमते हुए कहा.“ऊं हूं” वो मुस्कुराते हुए गुनगुनाई.
“अच्छा ठीक है मत बोलो. मैं भी देखता हूं कैसी नहीं बोलती. अब तुम्हें ये लंड तभी मिलेगा जब तुम लंड लंड चिल्लाओगी और कहोगी कि पापा जी मेरी चूत मारो अपने लंड से!” मैंने बहू को चैलेन्ज दिया.“हां हां ठीक है देख लेंगे हम भी. मैं तो कभी न बोलूं ऐसी बात!” बहू भी पूरे आत्मविश्वास से बोली.
 
“हां हां वही पापा … नाम कोई भी ले लो इसका. अब जल्दी से मिलवा दो इसे मेरी पिंकी से … टाइम कम है!”“अदिति मेरी जान, लंड को लंड ही कहो न और तुम्हारी पिंकी नहीं चूत कहते हैं इसे!”“धत्त, मैं नहीं कहती ऐसे गंदे शब्द!” बहू ने नखरे दिखाए.“प्लीज मान जा न मेरी गुड़िया रानी!” मैंने बहू के होंठ चूमते हुए कहा.“ऊं हूं” वो मुस्कुराते हुए गुनगुनाई.
“अच्छा ठीक है मत बोलो. मैं भी देखता हूं कैसी नहीं बोलती. अब तुम्हें ये लंड तभी मिलेगा जब तुम लंड लंड चिल्लाओगी और कहोगी कि पापा जी मेरी चूत मारो अपने लंड से!” मैंने बहू को चैलेन्ज दिया.“हां हां ठीक है देख लेंगे हम भी. मैं तो कभी न बोलूं ऐसी बात!” बहू भी पूरे आत्मविश्वास से बोली.
तो मैंने बहू के मम्में फिर से पकड़ के उन्हें कस के दबाना शुरू किया और उनका पेट चूमता हुआ नाभि में जीभ घुमाने लगा. फिर मैं बैठ गया और बहू के तलवे चाटने लगा और पांव की उंगलियाँ अंगूठा सब चूसने लगा.बहू बेचैनी से अपना सिर दायें बाएं घुमाने लगी. कुछ देर यूं ही पांव चूमने के बाद मैंने उसकी पिंडलियां चूम डालीं और घाघरे को थोड़ा सा घुटनों के ऊपर कर, उनके दोनों चूचुक चिकोटी में भर कर उनकी चिकनी जांघें चाटने लगा.
बस यही मेरी बहूरानी का वीक पॉइंट है.चूचुक दबाते हुए उसकी जांघें चाटते ही बहू की कामाग्नि भड़क उठती है और उनकी चूत में रस की बाढ़ सी आ जाती है; यह राज मैंने उसे कई कई बार चोद कर जाना. अतः मैं उसकी दोनों नंगी जांघें किसी चटोरे की तरह लप लप करते हुए चाटने लगा.
जल्दी ही बहूरानी अधीर हो उठी और अपने पांव एक दूसरे पर लपेटने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैं जब उन्हें ऐसा करने दूं तब न!“मत सताइए पापा जी, तरस खाइए मुझ पर!” बहूरानी ने जैसे आर्तनाद किया.“तो फिर बोलो जो मैंने कहा था?”“न नहीं … बिल्कुल नहीं बोल सकती वो शब्द मैं!” वो कमजोर सी आवाज में बोली.
फिर मैंने उसका घाघरा सामने से उठा कर उसके पेट पर पलट दिया.ये क्या … बहू ने पैंटी तो पहनी ही नहीं थी तो उसकी रसीली नंगी चूत मेरे सामने थी. उसकी चूत नंगी करते ही बहूरानी का चेहरा लाज से लाल पड़ गया और उसने अपना मुंह अपनी हथेलियों से छिपा लिया. हां अपनी चूत छिपाने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की.
मैंने बहू की चूत को मुग्ध भाव से निहारा; बहूरानी की चूत के दर्शन मुझे सदा से ही अत्यंत प्रिय रहे हैं. मैंने भाव विभोर होकर उसकी चूत को चूम लिया और धीरे से चूत के पट खोल कर इसकी भगनासा और भगान्कुर को झुक कर चूम लिया और जीभ से छेड़ने लगा. बहूरानी की बुर की वो विशिष्ट गंध मेरे भीतर समा गयी और उनके मुंह से एक गहरी निःश्वास निकल गयी.
तीन चार दिन पहले जब हम लोग बैंगलोर से साथ चले थे तो बहू की चूत एकदम चकाचक सफाचट क्लीन शेव्ड थी पर आज चूत के चहुँ ओर नाखून के बराबर झांटें उग आयीं थीं. हल्की हल्की झांटों वाली चूत का भी एक विशिष्ट सौन्दर्य होता है जैसे हमारे सिर के केश हमारे चेहरे को सुन्दरता प्रदान करते हैं, ठीक वैसे ही छोटी छोटी झांटों वाली चूत भी मुझे अत्यंत मनोरम लगती है देखने और चोदने में.
अब मैंने पूरे जोश के साथ चूत को अच्छे से बाहर से चाटा, फिर इसकी फांकें खोल कर भीतर से चाटना शुरू किया साथ साथ अनारदाने को दांतों से हल्के हल्के चूसने और कुतरने लगा तो बहूरानी के जिस्म में जैसे भूकम्प आ गया, उसका पूरा बदन थरथरा उठा, उसने अपना एक पैर मोड़ कर मेरा सर अपनी चूत में कस के दबा दिया और मेरे सिर के बाल अपनी मुट्ठियों में भर लिए; चूतरस का नमकीन स्वाद मेरे मुंह में घुलने लगा. मैंने ऐसे ही कोई एक मिनट तक उसे चाटा होगा कि उसकी कमर किसी खिलौने की तरह अपने आप उछलने लगी जैसे उसे कोई दौरा पड़ा हो और उसके मुंह से अत्यंत कामुक और उत्तेजना पूर्ण कराहें निकलने लगी- पापाऽऽ जी ईऽऽ जल्दी जल्दी चाटो!
बस तभी मैं उनके ऊपर से हट गया.“नहींऽऽपापा जी …” बहूरानी के मुंह से निकला और वो मुझे फिर से अपने ऊपर लिपटाने लगी.लेकिन मैं उठ कर खड़ा हो गया और अपने सारे कपड़े उतार के फेंक दिये; मेरा लंड आजाद होकर बहू के सामने अपना सिर उठा के तन गया. बहूरानी झट से उठीं और मेरा लंड पकड़ कर अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी, इसकी चमड़ी पीछे कर फूला हुआ सुपारा निकाल कर जीभ से चाटने लगी और फिर उसे गप्प से मुंह में भर लिया और चाकलेट की तरह चूसने लगी.
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“पापा जी… अब जल्दी से कर दो प्लीज!” बहूरानी ने लंड मुंह से बाहर निकाल कर अपनी नजर ऊपर उठा कर कहा.
“क्या कर दूं मेरी गुड़िया रानी … बोलो?” मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा और अपना लंड फिर से उसके मुंह में दे दिया और दो तीन धक्के लगा दिए.“ओफ्फो … पापाजी … आप भी न, चलो मैं हारी और आप जीते. अच्छा अब आपका लंड मेरी चूत में घुसा दो और चोद डालो अपनी बहू रानी को. अब तो खुश न?” बहूरानी लंड मुंह से बाहर निकाल कर अत्यंत कामुक स्वर में बोलीं और पीछे हाथ लेजाकर अपनी चोली की डोरियों की गांठ खोल कर चोली उतार फेंकी और घाघरा भी निकाल दिया और मादरजात नंगी होकर मेरे सामने बिछ गयी, अपने दोनों पैर ऊपर की ओर मोड़ लिए और अपनी चूत की फांकें अपने हाथों से पूरी तरह से खोल दी.
 
बहू की साढ़े पांच फीट की गदराई नंगी जवानी मेरे सामने बिछी थी; उसने अपनी चूत की फांकें अपने दोनों हाथों की उंगलियों से खूब चौड़ी खोल रखीं थीं; उसके मम्में किसी सपोर्ट के बगैर तन के खड़े थे और निप्पल फूल कर छोटे बेर के जैसे हो रहे थे. उसके बाल खुल के बिखर गये थे और उसका सुन्दर गुलाबी मुख काले बालों के बीच जैसे पूनम का चन्द्रमा हो, उसकी भरी भरी पुष्ट जंघाओं के जोड़ पर मध्य में उसकी फूली हुई चूत जिसे वो दोनों हाथों से खोले हुए मेरी ओर लाज भरी आंखों से मन्द मन्द मुस्कान सहित देख रही थी.
मैं कुछ देर उनके इस अत्यंत कामुक रति-रूप का रसास्वादन करता रहा. मेरी आंखें बहूरानी की ऐसी रूपराशि के दर्शन कर शीतल हो गयीं, तृप्त हो गयीं. स्वर्ग में भी क्या ऐसा ही सुख और आनन्द मेनका, रम्भा, उर्वशी जैसी अप्सराएं रतिकाल में देती होंगी?
“क्या देख रहे हो पापा जी, पचासों बार तो देख चुके हो मुझे और इस चूत को पहले भी. आपकी इकलौती बहू आपके सामने पूरी नंगी होकर, अपनी चूत अपने हाथों से पसार कर बेशर्मी से लेटी है; अब आ भी जाओ और चोद और डालो अपनी अदिति डार्लिंग को … प्यास बुझा दो मेरी मेरे राजा!” बहूरानी तड़पती सी बोली. उसकी आंखें वासना और चुदास से सुर्ख गुलाबी हो चलीं थीं.
मैंने लंड को बहूरानी की चूत के मुहाने पर टिकाया और उनकी आंखों में झाँकने लगा.“अब और मत देर लगाओ पापा. मैंने आपकी बात मान ली न … देखो आठ बजने वाले हैं. कोई भी कभी भी आ सकता है!”बहूरानी जल्दबाजी से बोली.उसकी बात भी ठीक थी.
“अभी लो मेरी जान … मेरी प्यारी प्यारी गुड़िया. तेरे ही लिए तो खड़ा है ये!” मैं बोला और अपना फनफनाता लंड अपनी कुलवधू की चूत के मुहाने पर रख कर घिसने लगा. जिससे उनके लघु भगोष्ट स्वतः ही खुल गये और स्वर्ग का द्वार दिखने लगा.“पापा जीऽऽस्स्स्स स्स्स्स बस अब घुसेड़ भी दो ना, चोदो जल्दी ई …ऽऽ से मुझे!”“हां … ये लो बहू अपने ससुर का लंड अपनी चूत में … संभालो इसे!” मैंने कहा और अपने दांत भींच कर, पूरी ताकत से लंड को उनकी बुर में धकेल दिया. मेरा लंड उसकी चूत की मांसपेशियों के बंधन ढीले करता हुआ पूरी गहराई तक घुस गया और मेरी झांटें बहूरानी की झांटों से जा मिलीं.
“हाय रामजी, मर गयी रे … पापा… धीरे … आराम से क्यों नहीं घुसाते आप … आह… मम्मीं … ओ माँ ऽऽ.. मर गयी … बचा लो आज तो!” बहूरानी तड़प कर बोली और मुझे परे धकेलने लगी. पर मैंने उनकी दोनों कलाइयां कस के पकड़ीं और अपने लंड को जरा सा पीछे खींच के फिर से पूरे दम से बहू की चूत में पहना दिया.
इस बार उन्होंने अपना मंगलसूत्र अपने दांतों के बीच दबा लिया और बेड की चादर अपनी मुट्ठियों में कस के पकड़ ली और दांत भींच लिए. इस तरह बहू की चूत में अपने लंड को अच्छे से फिट करके मैं उसी के ऊपर लेट के सुस्ताने लगा.“अब कैसा लग रहा है बहू?” मैंने कुछ देर बाद बहूरानी के बालों में प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.
“मार डालो आप तो मुझे ऐसे ही पेल के आज … न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. सारी जान एक बार में ही निकाल लो आप तो!” वो रुआंसे स्वर में बोली.“अदिति बेटा, मेरा बांस तुम्हारी बांसुरी में हमेशा बजेगा जब तक दम में दम है; तू ऐसे क्यों बोलती है?” मैं उसे चूमते हुए पुचकारा.“रहने दो पापा, धीरे से नहीं घुसा सकते क्या? बस आपको तो जरूरी है एकदम से आक्रमण कर देना. चाहे कोई मरे या जिये आपकी बला से!”“ऐसे नहीं न कहते मेरी जान … अच्छा चलो मेरी सॉरी; आगे से बड़े प्यार से एंटर करूंगा. बस?” मैंने बहू को सांत्वना दी.“हम्म्म्म … ठीक है पापा जी. बट आगे से याद रखना अपनी ये वाली प्रॉमिस?”“ओके बेटा जी … पक्का याद रखूंगा” मैंने कहा.
आरएसएस के मेरे प्रिय पाठको और प्रशंसको, अभी देखा आपने कि मैंने अपनी बहूरानी की गीली रसीली चूत में अपना लंड एकदम से पेल दिया था तो बहूरानी जी कैसे कैसे एट्टीट्यूड दिखा रही थी, कितनी हाय तौबा मचा रही थी? जैसे आसमान टूट पड़ा हो उसपे; मुझे कसाई सिद्ध करने पर तुली थी. पर आप लोग अभी देखना बहू कैसे हंस हंस कर मजे मजे ले ले कर चुदतीहै इसी लंड से.
इन हसीनाओं की ये भोली अदाएं ही तो चुदाई का आनन्द दोगुना कर देतीं हैं; इनका ये रोना धोना, नखरे कर कर के चुदना, एक प्रकार का कॉम्प्लीमेंट, उत्साहवर्धक ही है हम चोदने वालों के लिये. सभी हसीनाओं की ये सांझी आदत होती है कि लंड को उनकी चूत के छेद से छुला भर दो और ये ‘धीरे से करना जी, ऊई माँ … हाय राम हाय राम … मार डाला … फट गयी …’ जपना शुरू कर देंगी… नहीं तो इनकी चूतों की कैपेसिटी कितनी और कैसी होती है वो तो हम सब जानते ही हैं. आप सबने ऐसी स्थिति को अनुभव तो किया ही होगा. मेरे अजीज पाठको और मेरी प्यारी पाठिकाओ मैंने सच कहा न?
चलिए अब स्टोरी आगे बढ़ाते हैं; आप सब भी अपने अपने हाथों से मेरे साथ साथ मजे लेना शुरू करो.
“ओके माय डार्लिंग बेबी … प्रॉमिस बाई यू!” मैंने बहू का गाल चूमते हुए उसे आश्वासन दिया और अपने लंड को अन्दर बाहर करने का हल्का सा प्रयास किया. उसकी चूत अब तक खूब रसीली हो उठी थी और लंड अब सटासट, निर्विघ्न चूत में अन्दर बाहर होने लगा था. फिर तो मैंने रेल चला दी. उधर बहू को भी चुदाई का जोश चढ़ने लगा और वो मुझसे लिपट लिपट के चूत देने लगी.
“पापा जी… नाउ ड्रिल मी डीप एंड फास्ट विद आल योर माईट!” बहूरानी भयंकर चुदासी होकर बोली और अपने नाखून मेरी पीठ में जोर से गड़ा दिए.
“या बेबी, हेअर आई कम मोर डीप इनटू यू!” मैंने कहा और उसके दोनों पैर और ऊपर उठा कर उसी के हाथों में पकड़ा दिए जिससे उसकी चूत खूब अच्छे से ऊँची होकर लंड के निशाने पर आ गयी. फिर मैंने पूरे दम से और बेरहमी से बहूरानी की चूत की चटनी बनाना शुरू की.
 
बहू की चूत से फचाफच फच्च फच्च फचाक जैसी आवाजें आने लगीं और ऐसी चुदाई से बहू पूरी तरह से मस्ता गयी.“आई लव यू पापा … मेरी जान … मेरे राजा … फाड़ के रख दो मेरी चूत अपने लंड से. बहुत ही ज्यादा तंग करती है मुझे ये!” बहूरानी मिसमिसा कर बोली.
“हां बेटा जी, अभी लो!” मैंने कहा और लंड को उनकी चूत से बाहर निकाल कर पास पड़े घाघरे से अच्छे से पौंछा और फिर उनकी चूत को भी बाहर भीतर से अच्छे से पौंछ दिया और फिर से उनकी दहकती बुर में धकेल दिया. चिकनाहट थोड़ी कम हो जाने से लंड अब टाइट जा रहा था चूत में.
बहूरानी ने अपने पैर सीधे कर लिए थे और अब एड़ियों पर से उचक उचक कर मेरा लंड अपने चूत में दम से लील रही थी और मेरे धक्कों के साथ ताल में ताल मिलाती हुई अपनी जवानी मुझ पर लुटा रही थी.
ऐसे कोई तीन चार मिनट तक मेरी बहू अपने ससुर से चुदाई का मज़ा लेती रही, फिर …“पापा जी, अब मैं आपके ऊपर आऊँगी. अपना मज़ा मैं अपने हिसाब से लूंगी और चुदाई का कंट्रोल मैं अपने पास रखूंगी आप तो चुपचाप लेटे रहना!” बहूरानी मुझे चूम कर बोली.“ठीक है मेरी गुड़िया बेटा … आजा अब मेरी सवारी कर तू!” मैंने कहा और बहू के ऊपर से उतर कर लेट गया और मिठाई का एक डिब्बा अपने सिर के नीचे तकिये की तरह लगा लिया.
बहूरानी मेरे ऊपर झट से सवार हो गयी और मेरे लंड को मेरे पेट पर लिटा कर अपनी चूत से दबा लिया और आगे पीछे होकर इस पर अपनी चूत घिसने लगी या यूं कह लो कि वो अपनी चूत से मेरे लंड की मालिश करने लगी; उसकी चूत से लगातार रस की नदिया बहे जा रही थी और मेरा लंड, झांटें, जांघें सब भीग रहे थे.
दो तीन मिनट ऐसे ही मजे लेने के बाद बहूरानी ने थोड़ा सा ऊपर उठ कर लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट किया और उसे भीतर लेते हुए मेरे ऊपर बैठ गयीं और उनकी चूत सट्ट से मेरा लंड निगल गयी.
फिर बहूरानी मेरे ऊपर झुक गयी; उसके खुले बाल मेरे मुंह पर आ गिरे जिसे उसने मेरे सिर के पीछे करके मेरे मुंह पर एक घरोंदा सा बना दिया और अपनी कमर चलाते हुए मुझसे आंख मिलाते हुए मुझे चोदने लगी. उसके मम्में मेरी छाती पर झूल रहे थे जिन्हें मैंने पकड़ कर झूलने से रोक दिया और उन्हें दबाते हुए बहू के धक्कों का आनन्द लेने लगा.
मेरे ऊपर चढ़ कर गजब की चुदाई की मेरी बहू ने … अपनी चूत से उसने आड़े तिरछे खड़े लम्बवत शॉट्स लगा लगा कर मेरे लंड को निहाल कर दिया.
ऐसे करते करते वे कुछ ही देर में थक गयी- पापाजी बस … अब नांय है मेरे बस का. मुझे अपने नीचे लिटा लो!वो उखड़ी सांसों से बोली.“आजा बेटा, बहुत मेहनत कर ली मेरी प्यारी बहू ने!” मैंने अदिति को चूमते हुए कहा और उसे अपने नीचे लिटा कर उस पर छा गया.
बहूरानी ने झट से अपने पैर ऊपर उठा लिये और अपनी चूत हवा में उठा दी. मैंने देखा कि उसकी चूत का छेद पांच रुपये के सिक्के के बराबर खुला हुआ दिख रहा था और उसके आगे अंधेरी गुफा की सुरंग सी दिख रही थी.मेरे ऐसे देखने से बहूरानी थोड़ा लजा गयी और उसने मेरा सिर अपने मम्मों पर दबा दिया और लंड पकड़ कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया.
मैंने भी लंड को धकेल दिया अन्दर की तरफ और ताबड़तोड़ शॉट्स लगाने लगा; बहूरानी भी किलकारियां निकालती हुयी चुदने लगी और जल्दी ही वो मेरी पीठ ऊपर से नीचे तक सहलाते हुए, मुझे अपने से लिपटाते हुए अपनी चूत मेरे लंड पर जोर जोर से मारने लगी; उसके इन संकेतों से मैं भलीभांति परिचित था; वो झड़ने की कगार पर आ चुकी थी.
“पापा, संभालो मुझे, कस के पकड़ लो मुझे. मैं तो आ गयी!” वो बोली और मुझसे जोंक की तरह लिपट गयी और अपने पैर मेरी कमर में लॉक कर दिए और उसकी चूत में बाढ़ जैसे हालात हो गये चूत से जैसे झरना बह निकला.इधर मैं भी चुक गया और मेरे लंड ने भी रस की पिचकारियां छोड़नी शुरू कर दीं.
 
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