Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी - Page 7 - SexBaba
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Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी

हम ससुर बहू यूं ही झड़ते हुए एक दूजे की बांहों में कुछ देर समाये रहे. उसकी चूत संकुचन कर कर के मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी. कितना सुखद अनुभव होता है ये जब चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ती और रिलीज करती हैं. ऐसा लगता है जैसे चूत लंड को दुह रही हो.
दीन दुनिया से बेखबर हम दोनों यूं ही कुछ देर और पड़े रहे.
फिर बहूरानी अचानक मुझसे खुद को छुडाने लगी- पापाजी … देखो आठ चालीस हो गये, चाचा जी आने वाले ही होंगे. हटो जल्दी से कपड़े पहनो!
बहूरानी बेसब्री से बोलीं और बेड से उतर कर खड़ी हो गयी, उसकी चूत से मेरे वीर्य और उनके रज का मिश्रण उनकी जांघों पर से बह निकला जिसे उसने जल्दी से अपने घाघरे से पौंछ डाला और अपना घाघरा चोली पहनने लगी. ब्रा पैंटी तो उसने पहले भी नहीं पहन रखी थी, एक मिनट से भी कम टाइम में उसने वही बंजारिन वाली ड्रेस पहन ली.
मैंने टाइम देखा सच में आठ चालीस ही हो रहे थे. मतलब हमें इस कमरे में एक सवा घंटा हो गया था. मैंने फटाफट अपने कपड़े पहने. फिर हमने पलंग का सारा सामान … कपड़े, मिठाई के डिब्बे जैसे रखे थे वैसे ही रख दिए. गहनों वाले संदूक में ताला बंद किया और बाहर आकर रूम को भी लॉक कर दिया.
मैं खुश था कि शादी के इस भीडभाड़ वाले माहौल में भी मुझे अपनी बंजारिन बहू को चोदने का परम सुख मिल गया था.चुदने के बाद बहूरानी पता नहीं कहां गायब हो गयी और मैं वापिस हाल में जाकर बैठ गया.
कोई नौ बजे के क़रीब अदिति बहू के चाचा और चाची मार्केट से आते दिखे. आते ही मेरे पास बैठ गये और शादी, चढ़ावे के सामन वगैरह की बातें करने लगे. अदिति ने उन्हें फोन कर दिया था तो वे होने वाली बहू की पायल दूसरी खरीद लाये थे.
कुछ ही देर बाद अदिति और कम्मो भी आकर वहीं बैठ गयी. मैंने देखा बहूरानी खिली खिली सी प्रसन्न लग रही थी, यह तो होना ही था. औरत जब चुदाई से पूर्णतः तृप्त हो जाती है तो उसका बदन उसे फूल की तरह हल्का फुल्का और चित्त प्रसन्न लगने लगता है.
“चलो सब लोग अब डिनर कर लेते हैं. सवा नौ हो गये. मुझे तो जोर से भूख लगी है अब!” अदिति बोली.“हां हां अदिति क्यों नहीं. चलिए आप सब भी!” अदिति के चाचा जी बोले.
फिर हम लोग बाहर पंडाल में डिनर करने लगे. मैं थोड़ा सा खाना लेकर भीड़ से हट के कुर्सी पर बैठ कर खाने लगा.“अंकल जी दही बड़े लाऊं आपके लिए?” मैंने देखा कम्मो मेरे पास खड़ी मुझसे पूछ रही थी.“हां हां ले आ कम्मो!” मैं बोला.
इसके बाद कम्मो ने मुझे रसगुल्ले भी लाकर दिए. मैंने देखा कि कम्मो अब मुझमें विशेष रूचि ले रही थी. उसकी आंखों में कोई चाहत झिलमिला रही थी. कल उसे मार्केट ले जाकर नया मोबाइल जो दिलवाना था, शायद इसलिए…
तो आरएसएस के मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको. यह कहानी बस यहीं तक.
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि इस कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएं. आपके सुझाव और कमेंट्स मुझे व सभी रचनाकारों को और अच्छा लिखने को प्रेरित करते हैं. आपके विचारों को जानने की प्रतीक्षा रहेगी.
अरे हां … एक बात और. आप सबको लग रहा होगा कि कम्मो का क्या हुआ उसे मोबाइल दिलवाया कि नहीं. तो मित्रो कम्मो की कथा भी आपको पढ़ने को मिलेगी.जल्दी से जल्दी; बस थोड़े से इन्तजार के बाद.
 
मैंने बताया था कि मैं और बहूरानी उनके चचेरे भाई की शादी में दिल्ली पहुंचे हुए थे जहां मैं अपनी अदिति बहूरानी को बंजारन के वेश में देखकर उस पर मोहित हो गया था और येन केन प्रकारेण उसकी मचलती नंगी जवानी को भोगने में कामयाब भी हो गया था.
उसी शादी में मुझे कमलेश नाम की ग्रामीण बाला भी मिली थी जो कि रिश्ते में मेरी बहूरानी की भतीजी लगती थी यानि मैं एक तरह से उसका दादाजी लगता था. कमलेश के बारे में मैंने पिछली कहानी में बड़े विस्तार से लिखा था जिसमें मैंने उसके व्यवहार और रूप रंग और उसकी कामुक चेष्टाओं का विशद वर्णन किया था. कमलेश को सब लोग कम्मो नाम से ही बुलाते हैं तो अब मैं भी उसे इस कहानी में कम्मो नाम से ही संबोधित करूंगा.

तो पिछली कथा में बात यहां तक पहुंची थी कि बहूरानी ने मुझे कहा था कि मैं कम्मो को मार्केट ले जाऊं और उसे नया स्मार्टफोन दिलवा दूं; पैसे तो कम्मो के पास हैं.

तो मित्रो, पिछली कहानी से आपको याद होगा कि पिछली रात हम सब लोग साथ में डिनर कर रहे थे और कम्मो मुझे बड़े प्यार और अनुराग से सर्व कर रही थी … कभी दही बड़े, कभी रसगुल्ला कभी कुछ कभी कुछ. कहने का मतलब यह कि मुझे अपनी जगह पर से उठाना नहीं पड़ा और कम्मो ने काउन्टर से खाना ला ला कर भरपेट से कुछ ज्यादा ही खिला दिया था. उसके इस चाहत भरे खुशामदी व्यवहार को मैं समझ रहा था कि उसे कल मेरे साथ मार्केट जा के नया फोन जो लेना था.

अब नया फोन लेने की उमंग तरंग क्या कैसी होती है उसका तो हम सबको अनुभव है ही … पर गाँव की कोई लड़की जो अभी तक नोकिया का बाबा आदम के जमाने का टू जी फोन इस्तेमाल कर रही थी, उसका मन कैसे ललचाता होगा स्मार्टफोन की स्क्रीन पर उंगली फेरने को या व्हाट्सएप, फेसबुक पर अपना खुद का अकाउंट खोलने को और सबसे चैट करने को; क्योंकि अब तो ये सब एप्प्स गांव गांव में मशहूर हैं और जब वो दिन आ ही जाए कि बस अपना नया फोन मिलने ही वाला है तब दिल कैसे खुश और बेकरार रहता है, इस अनुभव से हम सब गुजरे हैं कभी न कभी; वही हाल कम्मो का भी था.

तो अगले दिन सवेरे क़रीब नौ बजे मैं और कम्मो मार्केट जाने के लिए तैयार थे. कम्मो सजधज ली थी अपने हिसाब से; वो जितना खुद को सजा सकती थी, उसने सजा लिया था. अच्छे से बाल संवार कर चोटी गूंथ ली, आँखों में काजल डाल लिया और नया सलवार कुर्ता और दुपट्टा, मेहंदी तो उसके हाथों में पहले ही लगी थी; कहने का लब्बो लुआब यह कि वो खुद को जितना टिपटॉप कर सकती थी, उसने कर लिया था. वैसे खूब सुन्दर लग रही थी वो.

“चलें कम्मो?” मैंने कहा.
“अंकल जी एक मिनट, पैसे लेना तो मैं भूल ही गयी.” वो बोली और भागती हुई किसी कमरे में गयी. वापिस लौटी तो उसके हाथ में रूमाल की पोटली सी थी जिसमें उसके पैसे बंधे हुए थे.
“लो अंकल जी. पैसे आप रख लो. बहुत दिनों से जोड़ रही थी मैं फोन के लिए!” वो बोली और रूमाल मुझे दे दिया.

मैंने रूमाल खोला तो उसमें तरह तरह के नोट बेतरतीब ढंग से उल्टे सीधे मुड़ेतुड़े हुए रखे थे; दस, बीस, पचास, सौ … सब तरह के नोट थे. चार छह नोट पांच पांच सौ के भी थे. अब ये लोग तो ऐसे ही पैसे जोड़ के रखते हैं; जब कभी रुपये हाथ आये तो तह करके रूमाल में बांध लिए. मैंने सारे नोट ठीक ढंग से सेट किये और गिने तो कोई आठ हजार चार सौ कुछ निकले. अब ऐसे चिल्लर नोट ले के फोन खरीदने जाना मुझे बड़ा अटपटा सा लग रहा था तो मैंने अपनी बहूरानी अदिति को बुला कर वो नोट उसे दे दिए और कम्मो को समझा दिया कि ऐसे छोटे छोटे नोट लेकर कुछ खरीदने जाना अच्छा नहीं लगता और उसके फोन का पेमेंट मैं कर दूंगा अपने अकाउंट से.

“पापा जी, कम्मो कह रही थी कि इसे लालकिला भी देखना है. तो इसे आप वहां भी घुमा देना पहले, फिर चांदनी चौक या करोलबाग से फोन खरीद देना.” बहूरानी बोली.
“ठीक है बहू. तो तू पहले कोई टैक्सी बुक कर दे लालकिले के लिये” मैंने बहू से कहा तो उसने अपने फोन से ऊबर की कैब बुक कर दी.

कैब शायद कहीं पास में ही थी, तीन चार मिनट में ही आ गयी. मैंने कैब का दरवाजा खोल कर पहले कम्मो को बैठने दिया फिर खुद जा बैठा और हम चल दिए लाल किले की ओर.

तो दोस्तो, इस तरह मैं और कम्मो तैयार होकर धर्मशाला से निकल लिए.

शादी तो रात में ही होनी थी, लौटने की कोई जल्दी भी नहीं थी. मैंने सब कुछ पहले ही प्लान कर रखा था कि पहले थोड़ा घूम फिर कर किसी रेस्टोरेंट में लंच करेंगे उसके बाद फोन खरीद कर दिल्ली के नज़ारे देखते हुए शाम तक वापिस लौटेंगे.
 
मेरे संग टैक्सी में बैठी हुई कम्मो बहुत उत्साहित थी. वो सबकुछ बड़े अचरज से देख रही थी जो कि स्वाभाविक भी था. गाँव की बाला जिसने अभी तक अपने खेत खलिहान ही देखे थे या आसपास कहीं किसी कस्बे में कभी कभार जाना हुआ होगा. दिल्ली की भीड़, ट्रैफिक, गगनचुम्बी इमारतें और सजे धजे बाज़ार ये सबकुछ अचंभित कर रहा था उसे.

“अंकल जी कितने ऊंचे ऊंचे मकान हैं न यहाँ पर?” वो आश्चर्य से भर कर बोल पड़ी.
“हां कम्मो, दिल्ली में और बड़े शहरों में ऐसे ही ऊंची ऊंची बिल्डिंग्स बनने लगी हैं अब. जगह की कमी है न सो कम जगह में कई मंजिला बिल्डिंग में बहुत से परिवार रह सकते हैं.” मैंने उसे समझाया.

टैक्सी में पिछली सीट पर कम्मो मेरे दायीं तरफ निकट ही बैठी थी, सट के तो नहीं पर हां काफी नजदीक थी कि उसके बदन से उठती हल्की हल्की सी आंच या तपिश मुझे महसूस होने लगी थी. सहारे के लिए कम्मो ने अपना बायां हाथ अगली सीट पर रख रखा था जिससे उसका मेरी साइड वाला स्तन अपने कहर ढाने वाले अंदाज में लुभाने लगा था. उसका उभार उसकी उठान मुझे आमंत्रित सी करती लगती कि दबोच लो, मसल दो या छू ही दो या अपनी कोहनी मार के छेड़ ही दो, हिला दो मुझे.

कम्मो मेरे मन में उठ रहे इन विचारों से अनजान सी बाहर के दृश्य देखने में मगन थी. मैंने जैसे तैसे खुद पर काबू पाया और अपना फोन निकाल कर यूं ही टाइम पास करने लगा. लालकिला तक पहुँचने में कम से कम एक सवा घंटा तो लगना ही था; फिर जैसे ट्रैफिक मिले उस पर भी निर्भर था.

थोड़ी देर यूं ही चलते हुए कैब रेड लाइट पर रुक गयी.
“अंकल जी वो देखो गोलगप्पे वाला, हम यहां रुक कर गोलगप्पे खा सकते हैं न?” कम्मो ने उंगली से इशारा करते हुए मुझसे कहा.
मैंने कम्मो की जांघ पर एक हाथ रखकर आगे झुक कर टैक्सी से बाहर देखने का उपक्रम किया. कुंवारी जवान लड़की की जांघ पर हाथ धरते ही उत्तेजना की लहर मेरे पूरे जिस्म में बिजली की तरह दौड़ गयी; मैंने देखा कि परली तरफ वाली पटरी पर कोई गोलगप्पे का ठेला लगाए था.

“कम्मो ऐसे नहीं रुक सकते यहां, गोलगप्पे भी खा लेंगे अभी बाद में!” मैंने कहा.
“ठीक है अंकल जी!” वो संक्षिप्त स्वर में बोली. मेरा हाथ अभी भी उसकी जांघ पर रखा हुआ था जिसे हटाने का उसने कोई प्रयास नहीं किया.

“कम्मो, और बता तुझे क्या क्या पसंद है खाने में. आज तेरी हर फरमाइश पूरी होगी?” मैंने कहा और उसकी जांघ को हौले से सहलाया. बस इतने से ही मेरे लंड में तनाव भर गया.
“अंकल जी, जो जो आप खिला दोगे, मैं तो सब खा लूंगी आज. बहुत भूखी हूं मैं!” उसने मेरी ओर कनखियों से देखते हुए हंस कर जवाब दिया और अपना सिर सामने वाली सीट से टिका दिया. छोरी कम नहीं थी … इतना समझ आ गया मुझे! और अब मुझे कम्मो को चोद पाने की अपार संभावनाएं नजर आने लगीं थीं.

कम्मो की चूत के बारे में सोचते ही मेरा लंड हिनहिनाया. मैंने देखा कि कम्मो ने अब अपने पैर खोल लिए थे और अगली सीट से सिर टिकाये झुकी हुयी नज़रों से अपने पैरों की तरफ देख रही थी. तो कम्मो का यूं अपनी टाँगें चौड़ी कर देना क्या मेरे लिए आमंत्रण था या वो सिर्फ अपने कम्फर्ट के लिए पैर ऐसे किये बैठी थी?
यह सोचते हुए मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया. मेरी कोई भी हरकत या ओवर एक्टिंग मुझे महंगी भी पड़ सकती थी. यही सोच कर मैंने अपने कदम फूंक फूंक कर रखने का फैसला किया.

“कम्मो बताओ न लंच में क्या क्या खाने का मन है तेरा?” मैंने अपने हाथ का दबाव उसकी जांघ पर बढ़ाते हुए पूछा.
“हम्म्म … अच्छा सोच के बताती हूं.” वो बोली और फिर थोड़ी सीधी होकर सीट से टिक कर बैठ गयी और अपना सिर ऊपर करके सीट की पिछले हिस्से पर टिका लिया और आँखें बंद कर लीं जैसे गहरे सोच में हो.
इधर मेरी उंगलियां फड़क रहीं थीं कि मैं उसकी चूत को सलवार के ऊपर से थोड़ा सा छू कर ही देख लूं. लेकिन मैंने ऐसा करने की हिम्मत या हिमाकत फिलहाल मैंने नहीं की.

“अंकल जी. मैं इडली डोसा वगैरह खाऊंगी. कई साल हो गये एक शादी में खाया था. तब से नहीं मिला खाने को. हमारे गांव में तो कोई बनाता नहीं ऐसी चीजें!” वो सोचकर बोली.
“वैरी गुड. कम्मो … मेरा भी यही सब खाने का मन था.” मैंने उसकी हां में हां मिलाई. कम्मो ने मुझे मुस्कुरा कर देखा और मेरा हाथ अपनी जांघ पर से उठा कर धीरे से मेरी गोद में रख दिया और उसकी उंगलियां मेरे अलसाए से लंड को कुछ पलों तक टच करती रहीं.
 
ऐसा कम्मो ने जानबूझ कर किया था या यूं ही उसका हाथ मेरे लंड पर पड़ गया था, मैं कुछ समझ नहीं पाया. पर मेरे मन में खलबली जरूर मच गयी थी. मैं कम्मो को कल से वाच कर रहा था जब वो उन लड़के लड़कियों के साथ मस्ती कर रही थी और ऐसा लगता था कि उसकी उमड़ती भरपूर जवानी उसे चैन नहीं लेने दे रही है और उसकी चूत चीख चीख कर लंड मांग रही है. छोरियों की ये कमसिन उमर होती ही ऐसी है न इन्हें उठते चैन न बैठते चैन और इनके बूब्स में हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द हमेशा बना रहता है जिसे किसी मर्द के हाथ ही दूर कर सकते हैं और इनकी चूत का दाना पैंटी से रगड़ रगड़ कर चूत में खुजली किये रहता है और इन्हें चैन नहीं लेने देता.

इस बार मैंने थोड़ी हिम्मत करने की सोची और …
“अच्छा कम्मो चलो अब जरूरी काम की बात करते हैं; ये बताओ तुम्हें फोन कौन सा चाहिये?” मैंने पूछा और उसकी पीठ पर हाथ रख कर अपना मुंह उसके मुंह के पास ले जा कर मध्यम स्वर में पूछा.
“अंकल, अच्छा वाला लूंगी मैं तो!” वो थोड़ा इठला कर बोली.

“अरे अच्छे से अच्छा ही दिलवाएंगे तुझे, मेरे कहने का मतलब तेरे फोन में तुझे क्या क्या देखना है?” ऐसा कहते हुए मैंने अपने हाथ की उँगलियों से उसकी पीठ पर हारमोनियम सी बजाई. बदले में वो स्ट्रेट हो कर बैठ गयी और मेरा हाथ अपनी पीठ से हटा दिया.
“अंकल जी ऐसे गुदगुदी मत करो मुझे बस!” वो थोड़ा रोष से बोली.

“अरे तो क्या हो गया, तू मेरी प्यारी प्यारी छोटी नन्ही मुन्नी सी गुड़िया है न. मेरा हक़ है तुझपे, अरे जब तू इत्ती सी थी न, तब तू पूरी नंगी मेरी गोद में खेला करती थी. याद है न?” मैंने सरासर झूठ बोलते हुए इत्ती सी कह के अपने हाथों से इशारा करके उसे बताया.
“मुझे कुछ याद नहीं अंकल जी … आप मुझे बना तो नहीं रहे न?” कम्मो ने असमंजस से मेरी तरह देखा. वो खुद श्योर नहीं थी कि मैं सच कह रहा था या झूठ.
“अरे बेटा, मैं काहे को झूठ बोलूंगा. तुझे न मानना हो तो मत मान!” मैंने थोड़ी रोनी सी सूरत बना के कहा.

“अच्छा अच्छा ठीक है अंकल जी. मुझे विश्वास है आपकी बात पर!” वो जल्दी से बोली. जाहिर था मेरी रोनी सी सूरत देख के वो मुझपर भरोसा कर गई थी.
“तो फिर तू पहले की तरह बैठ न मेरे बिल्कुल पास, इतने सालों बाद मिली है आज!” मैंने कहा और उसकी कमर में हाथ लपेट कर उसे अपने से चिपका लिया. उसका मेरी तरफ वाला मम्मा मुझसे आ लगा. नर्म गर्म मुलायम बूब के स्पर्श से मुझे रोमांच सा हो आया. जवान लड़की के नाजुक अंगों का किसी मर्द से स्पर्श लड़की को भी बेचैन कर ही डालता है सो वही अनुभूति कम्मो को भी जरूर हुई होगी तभी वो मुझसे एक मिनट बाद ही दूर खिसक गयी.

“अंकल जी, ये सब बाते लालकिले में करेंगे. अभी तो आप फोन की बात कर रहे थे न वही बताओ?”
“हां, अच्छा ये बता कि तुझे अपने फोन में क्या क्या चाहिये?” मैंने पूछा.
“अंकल, गाने बजना चाहिये और वो फेसबुक और भाटइसएप भी चाहिये मुझे. गाँव में मेरी कई सहेलियों के फोन में भाटइसएप है और वो सब अपनी फोटू खींच खींच कर सबको भेजती हैं.” वो बड़ी मासूमियत से बोली.

“अरे भाटइसएप नहीं पगली, वहाट्सएप्प कहते हैं उसे!” मैंने उसे समझाया.
“हां हां मतलब वही. वो तो जरूर चाहिये मुझे!”
“हां हां व्हाट्सएप्प भी होगा तेरे फोन में. तुझे चलाना तो आता है न?”
“हां आता है न अंकल जी. गांव में मेरी सहेलियों के फोन से मैंने भाटइसएप खूब चलाया है. आपके फोन में भी होगा न आप दिखाओ मुझे अच्छा?” कम्मो बोली.
मैंने अपना फोन निकाला और उसे अनलॉक करके कम्मो को दे दिया. कम्मो फोन की स्क्रीन देखने लगी. व्हाट्सएप्प का आइकॉन सामने ही था.
“देखो अंकल जी ये हरा वाला गोला जिसमें फोन का निशान है यही है न भाटइसएप?” वो खुश होकर बोली.
“हां कम्मो यही है, तू तो बड़ी होशियार है री!” मैंने हंस कर कहा.
“और ये रहा फेसबुक!” उसने मुझे दिखाया.
“अरे तू तो सब जानती है. चल तुझे इससे भी बढ़िया फोन दिला देता हूं.” मैंने कहा.

“ठीक है अंकल जी. मैं आपका फोन देखूं थोड़ी देर?” उसने पूछा.
“हां हां देख ले. इसमें पूछना क्या?” मैंने उसे कहा.

“ठीक है अंकल जी मैं तो भाटइसएप चला कर देखूंगी अभी!” वो बोली और उसने व्हाट्सएप्प पर टच करके उसे ओपन कर दिया और मेरे कॉन्टेक्ट्स के कन्टेन्ट्स देखने लगी.

मैं टैक्सी की खिड़की की तरफ खिसक गया और बाहर देखने लगा पर मेरा ध्यान फोन पर भी था क्योंकि मैं अपने कुछ दोस्तों से एडल्ट कंटेंट्स भी शेयर करता था. लड़कियों के नंगे फोटो, वीडियो, अश्लील जोक्स वगैरह. मैं यही चाह रहा था कि कम्मो वो सब देख ले तो मेरा मिशन और आसान हो जाएगा.

और कम्मो ने वही किया. उसने मेरे एक ऐसे ही दोस्त का मैसेज खोल दिया. फोन की स्क्रीन पर देसी नंगी जवान लड़की अपने पैर खोले एक हाथ में फुट भर लम्बा काला मोटा डिल्डो लिए चूस रही थी और दूसरे हाथ की उँगलियों से उसने अपनी चिकनी चूत खोल रखी थी.
वो फोटो खुलते ही कम्मो थोड़ी घबरा सी गयी और उसने फोन की स्क्रीन को अपने हाथ से छुपा लिया. इधर मैंने जानबूझ कर बाहर देखना चालू रखा, जैसे मुझे पता ही न हो कि कम्मो क्या देख रही है.

कम्मो भी टैक्सी की दूसरी ओर की खिड़की के पास खिसक गयी और मजे से वो सब क्सक्सक्स नंगे फोटो और चुदाई के वीडियो देखती रही. कोई तीन चार मिनट बाद ही कम्मो ने अपनी पैर अच्छी तरह से खोल दिये जिससे उसकी जांघें खूब चौड़ी हो गयीं फिर उसने मेरी तरफ कनखियों से देखा कि कहीं मैं उसे वाच तो नहीं कर रहा. फिर उसने मेरे मोबाइल में देखते हुए अपनी टांगों के बीच हाथ ले जाकर जल्दी जल्दी कहीं खुजाया और कुछ देर अपना हाथ वहीं रखे रही; मैं समझ गया कि वो अपनी चूत का दाना मसल रही थी या चूत से खेल रही थी.

मैं टैक्सी के बाहर देख जरूर रहा था पर मेरा ध्यान कम्मो पर ही था कि वो क्या क्या कर रही है.

कोई पंद्रह बीस मिनट तक हो यूं ही मेरा फोन खंगालती रही. फिर उसने फोन वहीं सीट पर रख दिया और सामने वाली सीट से सिर टिका कर आँखें मूंद कर गहरी गहरी सांसें लेने लगी. सांस के उतार चढ़ाव के साथ उसके बूब्स भी जैसे उठ बैठ रहे थे. उसकी चूत भी जरूर पक्का गीली हो चुकी होगी.
मैंने जानबूझ कर उससे कोई बात नहीं की. मैं चाहता था कि वो सामान्य महसूस करने लगे तब उससे कुछ कहूं.

फिर थोड़ी देर बाद …
 
देसी गर्ल कम्मो मजे से वो सब नंगे फोटो और चुदाई के वीडियो देखती रही. फिर उसने मेरे मोबाइल में देखते हुए अपनी टांगों के बीच हाथ ले जाकर जल्दी जल्दी कहीं खुजाया और कुछ देर अपना हाथ वहीं रखे रही; मैं समझ गया कि वो अपनी चूत का दाना मसल रही थी.
कोई पंद्रह मिनट तक हो यूं ही मेरा फोन खंगालती रही. फिर उसने फोन वहीं सीट पर रख दिया और सामने वाली सीट से सिर टिका कर आँखें मूंद कर गहरी गहरी सांसें लेने लगी. सांस के उतार चढ़ाव के साथ उसके बूब्स भी जैसे उठ बैठ रहे थे. उसकी चूत भी जरूर पक्का गीली हो चुकी होगी.

फिर थोड़ी देर बाद …
“क्या हुआ कम्मो नींद आ रही है तुझे?” मैंने उसे कहा.
“नहीं तो. मैं बस ऐसे ही ऊंघ रही थी.” वो बोली और सीधी बैठ गयी.

मैंने देखा उसका गुलाबी चेहरा और भी गहरा गुलाबी हो उठा था. उसकी आँखों में लाली तैर रही थी जैसे नशे में हो और चेहरे पर जैसे हवाइयां सीं उड़ रहीं थीं. ये सब लक्षण इस बात के परिचायक थे कि उसकी गीली चूत बुरी तरह फड़क रही थी, वो वासना की आग में झुलस रही थी. चुदवाने की लालसा उसके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी. मैं जैसा चाहता था ठीक वैसा ही असर हुआ था उस पर. मैं जिस मुकाम पर उसे लाना चाहता था वो आ चुकी थी. आग लग चुकी थी उसकी टांगों के बीच में. अब आगे के हालात मुझे बड़े चातुर्य से सम्भालने थे. अनजान शहर में किसी भी परिचित जवान लड़की या महिला की पैंटी उतरवा कर उसकी टाँगें उठवा देना इतना आसान भी नहीं होता चाहे वो कितनी भी चुदासी लंड की प्यासी और चुदने को पूरी तरह तैयार ही क्यों न हो.

हर लड़की या औरत पहले सुरक्षित माहौल चाहती है. अतः मैंने सोच लिया कि मुझे बहुत ही सावधानी से आगे बढ़ना है. एक तो दिल्ली जैसा अनजाना शहर, राजधानी है देश की; जहां कदम कदम पर सी सी टीवी कैमरे लगे हैं. कोई लफड़ा हो गया तो कौन संभालेगा. और मान लो अगर कम्मो चुदने को राजी है भी तो मैं उसे चोदूंगा कहां?

किसी होटल में जाना भी खतरे से खाली नहीं है. एक तो देसी गर्ल कम्मो की वेश भूषा उसका बोल चाल, उसकी बॉडी लैंग्वेज … बात करने का तरीका एकदम देहाती स्टाइल वाला है तो ऐसी लड़की का मेरे साथ होटल में जाना लोगों को अटपटा लगेगा और खटकेगा ही, फिर सबसे बड़ी बात हमारे पास कोई सूटकेस या अन्य कोई सामान भी नहीं है. यूं खाली हाथ मुंह उठाये किसी होटल में चेक इन करना अपनी मुसीबत बुलाने जैसा ही है, अगर बात बिगड़ गयी तो मैं तो कुछ कर नहीं पाऊंगा और कई लोग मिल कर कम्मो को जरूर नोंच डालेंगे. हो सकता है पुलिस केस भी बन जाए और शाम की ब्रेकिंग न्यूज़ में मैं सुर्ख़ियों में आ जाऊं; दिल्ली तो वैसे ही देह शोषणकर्ताओं से भरी पड़ी है.

नहीं नहीं … मैं कम्मो पर कोई आंच आने नहीं दे सकता. लड़की जात है, सफ़ेद बेदाग़ कोरी चादर जैसी होती है जरा सा दाग लग जाए तो फिर जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ता.
ऐसे सोचते सोचते मुझे उस निर्भया का केस याद हो आया और मुझे पसीना आ गया. फिर सोचा कि दिल्ली में ऐसे होटल भी जरूर होंगे जहां लोग लड़की लेके जाते होंगे घंटे दो घंटे के लिए पर मुझे वो सब नहीं पता था. मतलब होटल में जाने का ऑप्शन किसी काम का नहीं.

तो फिर ऐसे में और क्या ऑप्शन हो सकता है? सबसे बड़ी बात कि मेरे पास और रुकने का टाइम भी नहीं है, आज रात में शादी है और कल शाम को मेरा वापिस घर अकेले जाने का तय था, ट्रेन की कन्फर्म टिकट जो थी. मेरी बहूरानी अदिति को तो अभी कुछ दिन रुक कर अपनी नयी भाभी के साथ कुछ दिन बिता कर बाद में फ्लाइट से वापिस बंगलौर जाना था.

तो क्या मैं अपना जाना कैंसिल करके अदिति बहूरानी की हेल्प लूं कम्मो को चोदने में? वही कोई जुगाड़ फिट कर सकती थी धर्मशाला में … पर क्या बहूरानी तैयार होगी इसके लिए?
नहीं, वो कभी नहीं राजी होगी ऐसा काम करवाने के लिए. मैं खूब समझता हूं अपनी बहू के नेचर को. हमारे बीच जो अनैतिक सम्बन्ध परिस्थितिवश बने वो अलग बात है पर मैं अच्छे से जानता हूं मेरी बहू कोई बिगड़ी या बदचलन नहीं है जो मुझे कोई लड़की पटा के सौंप दे और चुदाई की व्यवस्था भी बना दे.

और मैं किस मुंह से बहू से कहूंगा कि मुझे उसकी भतीजी कम्मो की चूत मारनी है तू जगह का इंतजाम कर दे? नहीं … मैं ऐसी ओछी और घटिया बात अपने मुंह से कभी नहीं निकाल सकता; अगर कह भी दिया तो एक तो बहू कभी मानने वाली नहीं है दूसरे मैं उसकी नज़रों से और हमेशा के लिए गिर जाऊंगा और जो उसकी चूत का सहारा अभी है वो भी छिन जाएगा मुझसे.

अब या तो जो कुछ करना है अपने बलबूते पर करना है या नहीं … और फिर अभी कम्मो ही कौन से तैयार हो गयी है चुदने के लिए!
ऐसी ऐसी बातें सोचते सोचते मेरा दिमाग भन्ना गया. अन्त में तय किया कि कम्मो की चुदाई कैंसिल. मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता. हां इतना जरूर करूंगा कि कहीं कोई मौका देख कर चूमा चाटी हो जाय और कम्मोके मम्में दबाने सहलाने को मिल जायें बस. वो कहते हैं न कि भागते भूत की लंगोटी भी बहुत होती है.
 
“अंकल जी, कहां खोये हुए हो इतनी देर से?” कम्मो ने बोलते हुए मुझे कंधे से हिलाया.
“हें … अरे कुछ नहीं. ऐसे ही घर के बारे में सोच रहा था. तेरी दादी वहां अकेली है न!” मैंने कहा.

“क्या अंकल जी आप भी … उन्हें दादी मत कहिये. रिश्ते से दादी होंगी पर अभी ऐसी उमर नहीं आप लोगों की. मैं तो आंटी कह के बुलाऊंगी उन्हें!” वो चहक कर बोली.
“अच्छा जैसी तेरी मर्जी. तू तो प्यारी प्यारी गुड़िया है न मेरी!” मैंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और वो मेरे कंधे से आ लगी और अपने हाथ से मेरी छाती सहलाने लगी. प्रत्युत्तर में मैं उसकी पीठ सहलाने लगा और उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स से खेलने लगा. उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया.

हमारी टैक्सी लाल किले के निकट पहुंच रही थी; किले की गुम्बदें साफ़ दिखाई देने लगीं थीं इधर कम्मो की जांघों के बीच छुपा लालकिला भी मुझे ही पुकार रहा था जिस पर मुझे चढ़ाई करके जीतना था पर सुरक्षित जगह की वजह से पता नहीं जीत भी पाऊंगा या नहीं.

टैक्सी से उतर कर हम लाल किले के सामने जा खड़े हुए. कम्मो तो अवाक् सी उसे देखती रह गयी.
“हाय दैय्या … अंकल जी ये तो बहुत बड़ा है.” कम्मो बालसुलभ आश्चर्य से बोली.
“हां कम्मो बेटा … चलो देखते हैं भीतर से!” मैंने कहा.

लाल किले पहुंच कर हमने पूरा किला घूम डाला. घूमते घूमते थकावट भी होने लगी थी. वहां एक बड़े से हाल में, जिसे शायद दीवाने आम या दीवाने ख़ास कहते होंगे, एक बड़ा से तख़्त जिस पर पीतल की नक्काशी थी उसे देख कर कम्मो उसी पर जा बैठी.
“अंकल जी, थक गयी मैं तो. दो मिनट बैठ लूं फिर चलते हैं.” कम्मो बोली और अपनी चप्पल उतार कर पांव ऊपर कर के पालथी मार के बैठ गयी.

“अरे, ये शाहजहाँ का तख़्त है. उस पर बैठना मना है; अरे मत बैठो अभी कोई टोक देगा आकर!” मैंने कम्मो को मना किया.

“अंकल जी तखत खाली ही तो पड़ा है, जब शाहजहाँ जी आयेंगे तो मैं उठ जाऊँगी पक्का, चलते चलते पांव दुःख गये मेरे तो अभी दो मिनट आराम कर लूं बस!” वो बड़ी मासूमियत से बोली.
उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गयी. सोचा कि ये कौन सी किसी शहजादी से कम है.

लाकिला देखने वालों की काफी भीड़ थी उस दिन. देसी विदेशी सब तरह के लोगों के झुंड के झुंड इस प्राचीन धरोहर को निहार रहे थे. तभी एक विदेशी लड़की हमारी ओर आती दिखी. देखने में 25-26 की लगती थी, उसका टॉप इतना ढीला था की उसकी पूरी छातियां दिख रहीं थीं; उसके मम्मों के चूचुक जैसे तैसे छुपे हुए थे बस और उसका स्किन कलर का लोअर बेहद पतले कपड़े का था जो उसके जिस्म से चिपका हुआ था और उसमें से उसकी जांघों के बीच फूला फूला सा वो त्रिभुज और बीच की लकीर जिसे पोर्न की भाषा में कैमल-टो कहते हैं, कहर ढाने वाले अंदाज़ में दिख रही थी. अगर गौर से देखो तो उसकी चूत का दाना भी उसकी खुली दरार से नज़र आ ही जाता. इन पश्चिमी देशों के ठन्डे देशों की औरतों की चूत वैसे भी काफी लम्बी, मोटी और खूब गहरी होती है जैसा हमने पोर्न फिल्मों में देखा ही है. पर वो इन सबसे बेखबर अपनी ही धुन में मगन चलती हुई निकल गयी.

मैंने देखा कम्मो की नज़र भी उसकी विदेशी बाला की चूत पर ही जमीं थी. मैंने उसकी ओर देखा तो उसने हंस कर अपना मुंह उस तरफ फेर लिया.
“क्या हुआ री कम्मो, तू हंस क्यों रही है उस बेचारी को देख के?”
“अच्छा बड़ी बेचारी लग रही है वो आपको; मैं तो न देख रही थी उसे. मैं तो जे देख री थी की आप कैसे लट्टू हुए जा रहे हो उसे देख देख के!” कम्मो ने मुझे उलाहना सा दिया.
“अरे मैं क्यों लट्टू होऊंगा उसे देख के. तू जो है मेरे साथ!” मैंने हिम्मत करके कह दिया. मेरी बात का अर्थ समझ के कम्मो का मुंह शर्म से लाल पड़ गया उसने अपना निचला होंठ दांतों से दबा कर हंसती हुई आँखों से मुझे देखा पर कहा कुछ नहीं.
मेरे लिए यह अच्छा संकेत था कि मैं सही जा रहा था.

वहां से निकल कर हम लोग मीना बाज़ार की रौनक देखने लगे. मीना बाज़ार तो एक तरह से इन छोरियों के मतलब का ही है, इन्हीं के साज सिंगार का सामान बिकता है वहां.
कम्मो का वहां खूब मन लगा. उसने कुछ खरीदारी भी की और खुश हो गयी.

लालकिले से बाहर आये तो एक बज चुका था और हमें हल्की हल्की भूख भी लग आई थी.
“चलो कम्मो अब खाना खा लेते हैं, बताओ क्या खाओगी?”
“अंकल जी, मैंने कहा था न अभी आपसे कि मुझे तो डोसा इडली खाने का मन है. यहां कहीं मिले तो वही खाना है मुझे!”

“ठीक है गुड़िया, चलो चांदनी चौक चलते हैं वहीं खायेंगे” मैंने कहा और हम लोग चल पड़े.
 
डोसा इडली वगैरह साउथ इंडियन फ़ूड खाने की मेरी पसंदीदा जगह तो वैसे इंडियन कॉफ़ी हाउस है; क्योंकि वहां जैसा स्वाद कहीं और मिलता ही नहीं है. कारण है कि जिसके देस का खाना हो उसी के हाथ का बना अच्छा लगता है. यूं तो उत्तर भारत में साउथ इंडियन खाने के तमाम रेस्टोरेंट्स हैं पर वो स्वाद आ ही नहीं पाता. लगभग हर बड़े शहर में इंडियन कॉफ़ी हाउस की शाखाएं हैं. यहां दिल्ली में भी कई ब्रांचेज होंगी पर वो सब देखने ढूँढने का समय नहीं था हमारे पास.

“अंकल जी, एक बात कहूं?” कम्मो चलते चलते बोली.
“हां हां कहो बेटा क्या बात है?”
“अंकल जी, पहले हम लोग फोन खरीद लेते हैं. खाना उसके बाद खा लेंगे” कम्मो थोड़ी व्यग्रता से बोली. मैं कम्मो के मन की व्यग्रता और चाह समझ रहा था. उसका मन तो फोन में ही अटका था. सही भी था वो अपने फोन लेने, देखने, छूने, महसूस करने की जल्दबाजी स्वाभाविक भी थी.
“ठीक है कम्मो. चलो पहले फोन ही लेते हैं” मैंने कहा.

मैंने वहीं पास की दूकान से फोन की दुकानों की जानकारी ले ली; पास में ही कई दुकानें थीं.
वहीं एक मोबाइल स्टोर में हमलोग जा पहुंचे. उनके शो केस में तमाम फोन लगे थे.

मैंने कम्मो से कह दिया कि कोई भी फोन पसंद कर ले.
“अंकल जी, फोन बाहर से देखने से क्या; इनके अन्दर क्या अच्छा है क्या बुरा है, कौन सा लेना ठीक रहेगा ये तो आप ही समझ सकते हो.” वो बोली.

बात तो सही थी कम्मो की. फोन्स की टेक्निकल बातें वो क्या जाने. मैंने इस बारे में दुकानदार से बात की तो उसने लेटेस्ट फोन्स के रिव्यू मुझे नेट पर पढ़ने की सलाह दी. तो मैंने वहीं बैठ कर अपने फोन से तमाम फोन्स के रिव्यू चेक किये. मैंने दो तीन फोन सिलेक्ट करके उन्हें नेट पर कम्पेयर करके देखा. कम्मो के हिसाब से मुझे रेडमी का नोट 5 प्रो ज्यादा अच्छा लगा, तेरह हजार के क़रीब कीमत थी. मैंने दुकानदार से वही दिखाने को कहा. दुकानदार ने रेडमी नोट 5 प्रो का सेट शो केस से निकाल कर हमें दे दिया.

“देख कम्मो ये वाला ले ले अच्छा रहेगा तेरे लिए!” मैंने कहा. तो कम्मो ने मेरे हाथ से फोन ले लिया और उस पर हाथ फिरा कर उलट पलट कर देखा.
“अंकल जी कितने का है ये?” कम्मो ने पूछा.
“तेरह हजार के आस पास है. लेकिन तू पैसे की चिंता मत कर!” मैंने कहा
“नहीं अंकल जी. मुझे तो जो फोन मेरे आठ हजार में आ जाए वही दिलवा दो आप तो!” वो जोर देकर बोली.
“अरे बेटा फोन तो दो हजार में भी मिल जाएगा. पर तू पैसों की मत सोच. मैं भी तो तेरा कुछ लगता हूं कि नहीं?” मैंने उसे ऐसे तरह तरह से समझाया.

अन्त में कम्मो झिझकते हुए मान गयी और उसने डार्क ब्राउन कलर का फोन सेलेक्ट कर लिया. मैंने दुकानदार से फोन का सील्ड पैकेट मांगा तो उसने भीतर से लाकर दे दिया. मैंने अपने फोन से पेमेंट कर दिया और बिल कमलेश के नाम से बनवा दिया. इसके बाद वहीं पास के जियो सेंटर से मैंने जियो की नयी सिम भी अपने आधार कार्ड से ले कर एक्टिवेट करवा कर ले ली. उम्मीद थी की थोड़ी देर में सिम चालू हो जायेगी.

“अंकल जी, चलो अब खाना खाते हैं. जोरों की भूख लग गयी अब तो!” कम्मो बोली.
“ओके बेटा चलो!” मैंने कहा.
हम लोग आगे चांदनी चौक में चल रहे थे. रास्ते में किसी से मैंने पूछा तो उन्होंने मुझे साउथ इंडियन फ़ूड के एक अच्छे रेस्तरां का रास्ता समझा दिया.
वहां पहुंच कर हम दोनों एक फॅमिली केबिन में जा बैठे और मीनू कार्ड देखकर, कम्मो से पूछ पूछ कर खाने का आर्डर कर दिया.

“सर बीस पच्चीस मिनट लगेंगे आर्डर लाने में!” वेटर बोला.
“ओके ठीक है!” मैंने कहा.

वेटर के जाते ही मैंने केबिन का मुआयना किया. वहां एक अच्छे किस्म का सोफा डला हुआ था सामने कांच की सुन्दर मेज थी जिस पर प्लास्टिक के फूलों से सजा गुलदस्ता रखा था. रौशनी की लिए अच्छे डेकोरेटिव वाल लैम्प्स लगे थे जो पर्याप्त रोशनी बिखेर रहे थे. मैंने खूब बारीकी से चेक किया केबिन में कोई भी सीसीटीवी कैमरा नहीं था; केबिन का दरवाजा भी ठीक ठाक था; कहने का मतलब वहां पूरी प्राइवेसी थी. एसी की कूलिंग भी बढ़िया थी. हम लोग धूप में चल कर आये थे तो एसी कुछ ज्यादा ही सुखद लग रहा था.

अब मैं और देसी गर्ल कम्मो अगल बगल में सट कर बैठे थे. फोन लेकर कम्मो बहुत खुश नजर आ रही थी.
“अब तो खुश न?” मैंने उससे कहा.
“हां अंकल जी. थैंक यू” वो हंस कर बोली.
“सिर्फ थैंक यू? कंजूस कहीं की!” मैंने कहा.
“फिर?”
“अरे एक चुम्मी ही दे देतीं कम से कम!” मैंने तपाक से कहा.
 
फोन लेकर कम्मो बहुत खुश नजर आ रही थी. हम रेस्तरां के केबिन में बैठे थे.
“अब तो खुश न?” मैंने उससे कहा.
“हां अंकल जी. थैंक यू” वो हंस कर बोली.
“सिर्फ थैंक यू? कंजूस कहीं की!” मैंने कहा.
“फिर?”
“अरे एक चुम्मी ही दे देतीं कम से कम!” मैंने तपाक से कहा.
“अच्छा लो अंकल जी ले लो!” कम्मो ने कहा और अपना मुंह मेरी तरफ बढ़ा दिया.
मैंने कम्मो की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका लिया और उसका माथा गाल कई कई बार चूम डाले. फिर तो मुझ पर जैसे दीवानगी सी सवार हो गयी. मैं कम्मो को सब जगह चूमता चला गया उसके गाल, गला गर्दन और फिर हमारे होंठ कब एक दूसरे के होंठों से जुड़ गये पता ही न चला.
‘कुंवारी कन्या के अधरों का प्रथम रसपान का स्वाद कितना अलौकिक कितना मधुर होता है.’ ये मैंने उस दिन जाना.

कम्मो कोई विरोध नहीं कर रही थी वरन वो भी मेरे संग बहती सी चली जा रही थी की जहां नियति ले जाये वहीं चले चलें जैसी मनःस्थिति थी हम दोनों की.
जो कुछ हो रहा था वो जैसे स्वयं ही, बिना हमारे कुछ किये ही हो रहा था. मैंने कब कम्मो के उरोज दबोच लिए और उन्हें कब मसलने लगा मुझे खुद याद नहीं.

“अंकल जी धीरे … इत्त्ति जोर से नहीं; दुखते हैं.” कम्मो कांपती सी आवाज में बोली. मुझे होश सा आया तो मैंने देखा कि मेरा हाथ कम्मो के कुर्ते के अन्दर उसकी ब्रा के भीतर उसके नग्न स्तनों को मसल रहा था … गूंथ रहा था …मसल रहा था. उसके फूल से कोमल स्तन मेरी सख्त मुट्ठी में जैसे कराह से रहे थे. मुझे अपनी स्थिति का भान हुआ तो मैंने अपना हाथ उसकी ब्रा से बाहर निकाल लिया.

मैंने देखा तो कम्मो की नज़रें झुकी हुयीं थीं. मैंने उसे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और उसका निचला होंठ चूसने लगा. साथ में मेरा एक हाथ उसकी जांघों को सहलाए जा रहा था.
अब कम्मो भी चुम्बन में मेरा साथ देने लगी थी और उसकी पैर स्वयमेव खुल से गये थे. मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ पर जा पहुंचा और अपनी मंजिल को सलवार के ऊपर से ही छू लिया और धीरे से मसल दिया.

पुरुष के हाथों की छुअन का असर, उसकी तासीर लड़की के जिस्म पर जादू के जैसा असर दिखाती है. विशेष तौर पर अगर उसके स्तनों या चूत को छेड़ दिया जाए तो.
कम्मो की चूत पर मेरा हाथ लगते ही वो मोम की तरह पिघल गयी और कम्मो ने चुम्बन तोड़ कर अपना सिर मेज पर झुका दिया. मेरी उंगलियाँ सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत से खेलती रहीं, मसलती रहीं, चूत की दरार में घुसने का प्रयास करती रहीं पर सलवार के ऊपर से ऐसा हो पाना संभव ही नहीं था. हां कम्मो की झांटों का झुरमुट मुझे अच्छी तरह से महसूस हो रहा था.

लेकिन सिर्फ इतने भर से ही मुझे संतोष होने वाला नहीं था, पता नहीं कम्मो लंड से चोदने को मिले न मिले क्योंकि जगह की समस्या बनी हुई थी; पर मैं उसकी नंगी चूत से तो खेल ही सकता था. इसी धुन में मैंने उसकी कुर्ती पेट के ऊपर से ऊपर की तरफ सरका दी इससे उसका पेट अनावृत हो गया. उफ्फ क्या मखमली जिस्म पाया था कम्मो ने!

मैंने उसके पेट को सहलाया और फिर उसकी नाभि में उंगली रख के हिलाया; इतने से ही कम्मो हिल गयी और उसकी हंसी छूट गयी- अंकल जी गुदगुदी मत करो ऐसे!
वो अपने मुंह पर हाथ रख कर खिलखिलाते हुए बोली.

लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए अपना हाथ झटके से उसकी सलवार में घुसा दिया और इससे पहले कि कम्मो कुछ समझ पाती या संभल पाती मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक के नीचे से उंगलियां अन्दर सरका दीं और उसकी नंगी झांटों भरी चूत मेरी मुट्ठी में कैद हो गयी; मुझे लगा जैसी कोई ताजा मुलायम नर्म गर्म पाव मैंने पकड़ रखा हो. मेरी हसरत पूरी हो चुकी थी. कम्मो की इज्जत मेरी मुट्ठी में कैद थी.
उसका लालकिला मेरे अधिकार में आ चुका था बस अब उसमें प्रवेश करके उसे भोगना, उस पर राज करना, उसकी प्राचीर की सवारी करना भर शेष रह गया था.

मैंने अपनी मुट्ठी खोल के हथेली उसकी चूत से चिपका दी और झांटों को सहलाता, खींचता हुआ उसकी चूत से खेलने लगा; बीच बीच में मैं उसकी झांटें हौले से खींच लेता तो वो चिहुंक पड़ती. उसकी गद्देदार नंगी चूत को यूं सहलाने का आनन्द ही अलग आ रहा था. चूत की फांकें आपस में चिपकी हुईं थीं मैंने दरार में उंगली ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक फिरा दी.
कम्मो ने मेरा कन्धा पकड़ कर जोर से अपने नाखून मेरे कंधे में गड़ा दिए, शायद उत्तेजना वश उसने ऐसा किया होगा.

अब मैं उसकी चूत को मुट्ठी में भर कर दबाने, मसलने के साथ साथ दरार में कुरेदने लगा; उसकी चूत के रस से मेरा हाथ चिपचिपा हो गया. फिर मैंने अपने अंगूठे को चूतरस से गीला करके उसकी चूत का दाना टटोलने लगा, अंगूठे से अनारदाने को छेड़ने लगा.
लड़की की क्लिट को छेड़ो और वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. कम्मो ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए इससे उसकी चूत और खुल गयी और मुझे उससे खेलने के लिए ज्यादा स्थान मिलने लगा.
 
लड़की की क्लिट को छेड़ो और वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. कम्मो ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए इससे उसकी चूत और खुल गयी और मुझे उससे खेलने के लिए ज्यादा स्थान मिलने लगा.

ऐसा कोई एक डेढ़ मिनट ही चला होगा कि वो मेरा हाथ अपनी चूत पर से हटाने का प्रयास करने लगी. वो मेरा हाथ अपनी चूत से हटाने का भरपूर प्रयास करती लग रही थी. लेकिन उसके हाथ में शक्ति नहीं बस एक तरह की रस्म अदायगी सी लगी मुझे. कि कहीं मैं उसे इतना बेशर्म, इतनी चीप न समझ लूं कि मैं उसकी चूत को छेड़ रहा था और वो चुपचाप बिना कोई प्रतिवाद किये अपनी चूत में उंगली करवाते हुए चुपचाप मजा लेती रही थी.

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“बस भी करो अंकल जी, कोई देख लेगा. वो नौकर खाना लेकर भी आता होगा!” कम्मो ने मुझे अपने से दूर हटाया और खुद दूर खिसक कर बैठ गयी.
मैं भी जैसे होश में आ गया; कुछ समय के लिए मैं भूल ही बैठा था कि हम लोग किसी होटल के फॅमिली केबिन में बैठे हैं. मैंने कम्मो की ओर देखा तो ऐसा लगा जैसे वो मीलों दौड़ के आई हो. मेरा भी यही हाल था.

मैंने जो कभी बिल्कुल भी नहीं सोचा था, न प्लान किया था कम्मो के संग वही कर बैठा था मैं. मेरी कनपटियां तप रहीं थीं और लंड भी तनाव में आ चुका था; पैंट के नीचे दबे होने से लंड बुरी तरह अकड़ गया था और उसमें हल्का हल्का दर्द सा भी होने लगा था.

मैंने कम्मो का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो उसने इन्कार में सिर हिलाया फिर मैंने जोर से खींचा तो वो मुझसे आ लगी और मैंने उसे फिर से चूम लिया.
“कम्मो, मेरी बात का बुरा तो नहीं लगा न?” पता नहीं अचानक मुझे वो क्या हो गया था. मैंने उसकी बगल में हाथ ले जा कर उसका दायां वाला स्तन सहलाते हुए पूछा.
वो चुप रही, कुछ नहीं बोली और न ही कोई प्रतिवाद किया.
“बता न कम्मो” मैंने थोड़ा जोर देकर पूछा और उसका बूब कस के मसल दिया.
“अंकल जी, यहां कुछ मत करो कोई देख लेगा तो गड़बड़ हो जायेगी.” वो धीमे से बोली.

उसके कहने का मतलब साफ़ था कि उसे इस छेड़छाड़ से कोई आपत्ति नहीं थी. बस किसी के देखे जाने का डर था. मतलब मेरे लिए ग्रीन सिग्नल था कि कम्मो चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी.

“हाथ हटा लो अपना प्लीज!” वो बोली.
मैंने उसका बूब छोड़ दिया. वो भी थोड़ा हट के बैठ गयी. इतने में वेटर भी खाना ले आया और उसने मेज पर सजा दिया.

इडली, मसाला डोसा, सांभर, नारियल की चटनी, वड़ा सब कुछ सामने मेज पर सजा था और साथ में छुरी और कांटे भी. कम्मो ने छुरी कांटो को असमंजस से देखा तो मैं उसका मतलब समझ गया.

“कम्मो, चल हाथ से खाते हैं. ये कांटे वांटे हटा दे एक तरफ!” मैंने कहा और खाना शुरू किया.
“अंकल जी, हाथ तो धो लेते कम से कम!” कम्मो ने मुझे टोका.
“क्यों हाथ में क्या हुआ?” मैंने पूछा.
“अच्छा! अभी मेरे वहां हाथ नहीं लगाया आपने उस गन्दी जगह में!” वो सिर झुका कर बोली.
“अरे जाने दे यार. वो कोई गन्दी नहीं होती. चूत का रस तो बहुत हेल्दी होता है, अभी तो तेरी चूत चाटनी भी है मुझे!” मैंने खाते खाते कहा.
“छीः कितने गंदे हो न अंकल आप!” वो मुझे झिड़कते हुए बोली.

मैं हंस के रह गया और खाने पर ध्यान लगाया. वो भी कुछ नहीं बोली और मजे से खाना खाती रही. खाने के बाद मैंने रसगुल्ले और आइसक्रीम भी आर्डर कर दिया.
इस तरह खा पी कर हम लोग तृप्त हो गये. कम्मो भी खूब खुश लग रही थी.

रेस्टोरेंट से निकल कर हम लोग चांदनी चौक का बाज़ार घूमने लगे. अब मैं और कम्मो एक दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे थे; किसी भी तरह की शर्म झिझक हमारे बीच नहीं रह गयी थी. वो रिश्तेदारी वाला रिश्ता हम भूल चुके थे और स्त्री पुरुष वाले रिश्ते में हम बंध चुके थे. सो कम्मो भी अब किसी बिंदास प्रेमिका की तरह मेरे साथ निभा रही थी.

इस मस्त छोरी की अल्हड़ जवानी और जिस्म का मालिक बन मैं भी ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. बस बेचैनी और इन्तजार इस बात का था कि कैसे भी जगह का जुगाड़ हो जाये तो मेरा लंड भी इस कामिनी की कुंवारी चूत का भोग लगा के तृप्त हो ले और मैं भी इसकी चूत के रस का पान करके धन्य हो जाऊं. पर ऐसा हो पाने की कोई संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती थी.

यूं ही घूमते घूमते एक मॉल दिखा तो हम लोग उसमें चले गये. ऐसे सजे धजे बाजार देख कर कम्मो तो देखती ही रह गयी. क़रीब एक सवा घंटा हमलोग मॉल में घूमते रहे.
वहीं से मैंने कम्मो को दो सलवार सूट भी दिलवा दिए. उसने थोड़ी ना नुकुर तो की पर ले लिए.

वैसे भी मुझे अपनी बहूरानी को दिखाने के लिए कम्मो को कपड़े दिलवाने ही थे नहीं तो वो जरूर टोकती कि अपनी नातिन को फोन दिलाने ले गये थे तो उसे अपने पैसे से कपड़े तो दिला ही देते कम से कम. रिश्तेदारी के इस तरह के फर्ज निभाना भी जरूरी था मैंने वो भी पूरा कर दिया था.
 
मैंने तो कम्मो से ये भी कहा था कि अपनी पसंद की ब्रा पैंटी भी ले ले पर उसने हंस के मना कर दिया था कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा कि अंकल जी के साथ ये कैसे खरीदीं? लेकिन मैंने जबरदस्ती करके उसे उसके साइज़ 34B की डिजाइनर ब्रा और पैंटी के दो सेट दिलवा ही दिए और उसे समझा दिया कि ये ब्रा पैंटी मैं अपनी जेब में रखे रहूँगा और बाद में उसे सबसे छुपा के चुपके से दे दूंगा और वो चुपचाप इसे अपने कपड़ों के साथ बैग में रख लेगी.
मेरी यह बात कम्मो ने भी मान ली थी.

फिर हम लोग मॉल से निकल कर बाहर आये तो मुझे याद आया कि अभी कम्मो को गोलगप्पे खिलवाना तो रह ही गया. गोलगप्पे वाला तलाश करके मैंने कम्मो की ये फरमाइश भी पूरी कर दी. कम्मो ने पूरे मजे ले ले कर गोलगप्पे खाए; उसका मुंह पूरा खुलता और गोलगप्पा गप्प से खा जाती इधर मेरे मन में ये ख़याल आता की काश मेरा वाला गोलगप्पा भी ये मुंह में ले लेती, चूस डालती, चाट देती अच्छे से. पर ये सब दिवा स्वप्न ही तो थे.

इतना सब निपटने के बाद पांच बजने को थे अब हमें वापिस धर्मशाला जाने का था. आज रात में ही शादी थी, बरात के लिए तैयार भी होना था सो मैंने ओला की कैब बुक कर ली और चल दिए.

फोन का कैरी बैग और सामान के बैग कम्मो ने पिछली सीट पर रख दिए और मुझसे सट कर बैठ गयी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया. कुछ ही घंटों में कम्मो के व्यवहार में कितना परिवर्तन आ चुका था उसकी शर्म हया लाज सब गायब हो चुके थे और उसकी जगह अपनत्व और अधिकार ने ले ली थी. हमारे यहां की लड़कियों की ये विशेषता है कि उनके साथ इस तरह के इंटिमेट सम्बन्ध बनते ही इनके व्यव्हार, बोलचाल में अधिकार झलकने लगता है. अपने पुरुष साथी पर अपना हक़, अपना एकाधिकार, ‘सिर्फ मेरा’ वाली भावनाएं स्वतः ही आ जाती हैं; दरअसल यह भी उनके प्रेम का अन्य रूप ही होता है.

“क्या सोचने लगे अंकल जी?” वो मुझे चिकोटी काट कर बोली
“कम्मो मैं सोच रहा था कि अब आगे हमारा रिश्ता और मजबूत कैसे होगा?” मैंने चुदाई की बात स्पष्ट न कह कर यूं दूसरे ढंग से कहीं.
“अंकल जी, अब मैं क्या बता सकती हूं इस बारे में. मैं तो आपके साथ ही हूं. मेरी तो हर बात में हां है; अब जो सोचना जो करना है वो आप जानो; मैं तो हर जगह आपके संग हूं.” वो मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर समर्पित भाव से बोली और मेरी छाती सहलाने लगी.

“कम्मो, देखो जो मैं चाहता हूं, वही तुम भी चाहती हो अब. लेकिन हमारे मिलन के लिए कोई सुरक्षित जगह हो चाहिये ही न; मैं तुम्हे किसी ऐसी वैसी जगह लेके तो नहीं जा सकता न. इसलिए मुझे लगता है कि हम वो सब कर नहीं पायेंगे, हमारे सारे अरमान यूं ही धरे के धरे रह जायेंगे. देखो अभी हम लोग धर्मशाला पहुंच जायेंगे, फिर बारात की तैयारी; रात भर शादी में रुकना पड़ेगा. फिर कल मुझे वापिस जाना है. हम लोग मिल के भी नहीं मिल सके इसका अफ़सोस तो हमेशा रहेगा मुझे!” मैंने अत्यंत भावुक होकर कहा.

कम्मो चुप रही. वो बेचारी कहती भी क्या. वो तो मुझ पर अपना सब कुछ लुटाने, सबकुछ न्यौछावर करने को प्रस्तुत ही थी; कमी तो मेरी तरफ से थी कि मैं इतनी बड़ी दिल्ली में कोई एकांत कोना नहीं तलाश पा रहा था. ऐसी बेबसी का सामना मुझे पहले कभी नहीं करना पड़ा था. कम्मो मुझसे चिपकी हुई चुपचाप थी, वो बेचारी कहती भी तो क्या.

“अंकल जी, आप एक दिन और रुक नहीं सकते क्या?” वो जैसे तैसे बोली.
“कम्मो, चलो मैं एक दिन और रुक भी जाऊं तो उससे क्या होगा, जगह की समस्या तो हल होगी नहीं. हमलोग शादी में आये हैं. कल सुबह तक आधे लोग रह जायेंगे; शाम तक धर्मशाला खाली करनी पड़ेगी. फिर तुझे भी तो जाना होगा न!”

“हां अंकल जी, मुझे भी कल ही वापिस घर जाना है. मुझे तो मजबूरी में आना पड़ा अकेले. पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी न और न ही मेरी मम्मी आने को तैयार थी. मैं भी कल दोपहर में किसी ट्रेन से मेरठ चली जाऊँगी वहां से एक घंटे का बस का सफ़र है शाम होने से पहले ही पहुंच जाउंगी अपने घर, रुक तो मैं भी नहीं सकती.” वो भी हताश स्वर में बोली.

मैं चुप रहा और उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.

“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.”
उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.
 
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