hotaks444
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हम ससुर बहू यूं ही झड़ते हुए एक दूजे की बांहों में कुछ देर समाये रहे. उसकी चूत संकुचन कर कर के मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी. कितना सुखद अनुभव होता है ये जब चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ती और रिलीज करती हैं. ऐसा लगता है जैसे चूत लंड को दुह रही हो.
दीन दुनिया से बेखबर हम दोनों यूं ही कुछ देर और पड़े रहे.
फिर बहूरानी अचानक मुझसे खुद को छुडाने लगी- पापाजी … देखो आठ चालीस हो गये, चाचा जी आने वाले ही होंगे. हटो जल्दी से कपड़े पहनो!
बहूरानी बेसब्री से बोलीं और बेड से उतर कर खड़ी हो गयी, उसकी चूत से मेरे वीर्य और उनके रज का मिश्रण उनकी जांघों पर से बह निकला जिसे उसने जल्दी से अपने घाघरे से पौंछ डाला और अपना घाघरा चोली पहनने लगी. ब्रा पैंटी तो उसने पहले भी नहीं पहन रखी थी, एक मिनट से भी कम टाइम में उसने वही बंजारिन वाली ड्रेस पहन ली.
मैंने टाइम देखा सच में आठ चालीस ही हो रहे थे. मतलब हमें इस कमरे में एक सवा घंटा हो गया था. मैंने फटाफट अपने कपड़े पहने. फिर हमने पलंग का सारा सामान … कपड़े, मिठाई के डिब्बे जैसे रखे थे वैसे ही रख दिए. गहनों वाले संदूक में ताला बंद किया और बाहर आकर रूम को भी लॉक कर दिया.
मैं खुश था कि शादी के इस भीडभाड़ वाले माहौल में भी मुझे अपनी बंजारिन बहू को चोदने का परम सुख मिल गया था.चुदने के बाद बहूरानी पता नहीं कहां गायब हो गयी और मैं वापिस हाल में जाकर बैठ गया.
कोई नौ बजे के क़रीब अदिति बहू के चाचा और चाची मार्केट से आते दिखे. आते ही मेरे पास बैठ गये और शादी, चढ़ावे के सामन वगैरह की बातें करने लगे. अदिति ने उन्हें फोन कर दिया था तो वे होने वाली बहू की पायल दूसरी खरीद लाये थे.
कुछ ही देर बाद अदिति और कम्मो भी आकर वहीं बैठ गयी. मैंने देखा बहूरानी खिली खिली सी प्रसन्न लग रही थी, यह तो होना ही था. औरत जब चुदाई से पूर्णतः तृप्त हो जाती है तो उसका बदन उसे फूल की तरह हल्का फुल्का और चित्त प्रसन्न लगने लगता है.
“चलो सब लोग अब डिनर कर लेते हैं. सवा नौ हो गये. मुझे तो जोर से भूख लगी है अब!” अदिति बोली.“हां हां अदिति क्यों नहीं. चलिए आप सब भी!” अदिति के चाचा जी बोले.
फिर हम लोग बाहर पंडाल में डिनर करने लगे. मैं थोड़ा सा खाना लेकर भीड़ से हट के कुर्सी पर बैठ कर खाने लगा.“अंकल जी दही बड़े लाऊं आपके लिए?” मैंने देखा कम्मो मेरे पास खड़ी मुझसे पूछ रही थी.“हां हां ले आ कम्मो!” मैं बोला.
इसके बाद कम्मो ने मुझे रसगुल्ले भी लाकर दिए. मैंने देखा कि कम्मो अब मुझमें विशेष रूचि ले रही थी. उसकी आंखों में कोई चाहत झिलमिला रही थी. कल उसे मार्केट ले जाकर नया मोबाइल जो दिलवाना था, शायद इसलिए…
तो आरएसएस के मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको. यह कहानी बस यहीं तक.
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि इस कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएं. आपके सुझाव और कमेंट्स मुझे व सभी रचनाकारों को और अच्छा लिखने को प्रेरित करते हैं. आपके विचारों को जानने की प्रतीक्षा रहेगी.
अरे हां … एक बात और. आप सबको लग रहा होगा कि कम्मो का क्या हुआ उसे मोबाइल दिलवाया कि नहीं. तो मित्रो कम्मो की कथा भी आपको पढ़ने को मिलेगी.जल्दी से जल्दी; बस थोड़े से इन्तजार के बाद.
दीन दुनिया से बेखबर हम दोनों यूं ही कुछ देर और पड़े रहे.
फिर बहूरानी अचानक मुझसे खुद को छुडाने लगी- पापाजी … देखो आठ चालीस हो गये, चाचा जी आने वाले ही होंगे. हटो जल्दी से कपड़े पहनो!
बहूरानी बेसब्री से बोलीं और बेड से उतर कर खड़ी हो गयी, उसकी चूत से मेरे वीर्य और उनके रज का मिश्रण उनकी जांघों पर से बह निकला जिसे उसने जल्दी से अपने घाघरे से पौंछ डाला और अपना घाघरा चोली पहनने लगी. ब्रा पैंटी तो उसने पहले भी नहीं पहन रखी थी, एक मिनट से भी कम टाइम में उसने वही बंजारिन वाली ड्रेस पहन ली.
मैंने टाइम देखा सच में आठ चालीस ही हो रहे थे. मतलब हमें इस कमरे में एक सवा घंटा हो गया था. मैंने फटाफट अपने कपड़े पहने. फिर हमने पलंग का सारा सामान … कपड़े, मिठाई के डिब्बे जैसे रखे थे वैसे ही रख दिए. गहनों वाले संदूक में ताला बंद किया और बाहर आकर रूम को भी लॉक कर दिया.
मैं खुश था कि शादी के इस भीडभाड़ वाले माहौल में भी मुझे अपनी बंजारिन बहू को चोदने का परम सुख मिल गया था.चुदने के बाद बहूरानी पता नहीं कहां गायब हो गयी और मैं वापिस हाल में जाकर बैठ गया.
कोई नौ बजे के क़रीब अदिति बहू के चाचा और चाची मार्केट से आते दिखे. आते ही मेरे पास बैठ गये और शादी, चढ़ावे के सामन वगैरह की बातें करने लगे. अदिति ने उन्हें फोन कर दिया था तो वे होने वाली बहू की पायल दूसरी खरीद लाये थे.
कुछ ही देर बाद अदिति और कम्मो भी आकर वहीं बैठ गयी. मैंने देखा बहूरानी खिली खिली सी प्रसन्न लग रही थी, यह तो होना ही था. औरत जब चुदाई से पूर्णतः तृप्त हो जाती है तो उसका बदन उसे फूल की तरह हल्का फुल्का और चित्त प्रसन्न लगने लगता है.
“चलो सब लोग अब डिनर कर लेते हैं. सवा नौ हो गये. मुझे तो जोर से भूख लगी है अब!” अदिति बोली.“हां हां अदिति क्यों नहीं. चलिए आप सब भी!” अदिति के चाचा जी बोले.
फिर हम लोग बाहर पंडाल में डिनर करने लगे. मैं थोड़ा सा खाना लेकर भीड़ से हट के कुर्सी पर बैठ कर खाने लगा.“अंकल जी दही बड़े लाऊं आपके लिए?” मैंने देखा कम्मो मेरे पास खड़ी मुझसे पूछ रही थी.“हां हां ले आ कम्मो!” मैं बोला.
इसके बाद कम्मो ने मुझे रसगुल्ले भी लाकर दिए. मैंने देखा कि कम्मो अब मुझमें विशेष रूचि ले रही थी. उसकी आंखों में कोई चाहत झिलमिला रही थी. कल उसे मार्केट ले जाकर नया मोबाइल जो दिलवाना था, शायद इसलिए…
तो आरएसएस के मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको. यह कहानी बस यहीं तक.
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि इस कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएं. आपके सुझाव और कमेंट्स मुझे व सभी रचनाकारों को और अच्छा लिखने को प्रेरित करते हैं. आपके विचारों को जानने की प्रतीक्षा रहेगी.
अरे हां … एक बात और. आप सबको लग रहा होगा कि कम्मो का क्या हुआ उसे मोबाइल दिलवाया कि नहीं. तो मित्रो कम्मो की कथा भी आपको पढ़ने को मिलेगी.जल्दी से जल्दी; बस थोड़े से इन्तजार के बाद.