hotaks444
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कम्मो तो मुझ पर अपना सब कुछ लुटाने, सबकुछ न्यौछावर करने को प्रस्तुत ही थी; कमी तो मेरी तरफ से थी कि मैं इतनी बड़ी दिल्ली में कोई एकांत कोना नहीं तलाश पा रहा था. ऐसी बेबसी का सामना मुझे पहले कभी नहीं करना पड़ा था. कम्मो मुझसे चिपकी हुई चुपचाप थी, वो बेचारी कहती भी तो क्या.
मैं उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.
“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.”
उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.
“देख कम्मो, मुझे तुम्हारे घर चलने में कोई आपत्ति नहीं, लेकिन तुम्हारी आंटी, मेरी बहूरानी अदिति को ये बात अजीब लगेगी कि मैं तुम्हारे गांव क्यों जा रहा हूं. वो जरूर मेरा तुम्हारा साथ जाना इस बात से जोड़ कर देखेगी कि तुम आज दिन भर मेरे साथ अकेली थीं. कम्मो, उसका दिमाग बहुत तेज है वो बात समझ जायेगी.” मैंने उसका दूध मसलते हुए कहा.
“हां अंकल, आपकी ये बात तो सही है आपकी” वो धीमे से बोली.
“तू दिल छोटा मत कर ,मैं बाद में आऊंगा तेरे घर. अब हम लोग व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर तो जुड़े ही रहेंगे न!” मैंने उसे दिलासा दी.
“अंकल जी, आओ तो जल्दी ही आना; क्योंकि डेढ़ दो महीने बाद मेरी शादी होने वाली है; उसके बाद कोई पक्का नहीं कि मैं मिल भी सकूंगी या नहीं; लड़की जात की मजबूरियां तो आप समझते ही होगे” वो अपनी एक अंगुली से मेरे सीने पर कुछ लिखती हुई सी बोली. मैंने देखा उसकी आंखें नम थी.
“हां कम्मो, मैं समझता हूं सब. मैं जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करूंगा.” मैंने कहा.
“अंकल जी, मेरा पास भाटइसएप और फेसबुक तो है ही नहीं. आप बना के जाना मेरे फोन में!” वो बोली.
“ठीक है कम्मो, मैं अभी चलकर सब बना दूंगा.” मैंने उसे चूमते हुए कहा और और उसका हाथ अपने लंड पर रख कर दबाने लगा. एक बार तो कम्मो ने अपना हाथ हटाने का प्रयास किया भी पर मैंने उसे सख्ती से अपने लंड पर दबा दिया. दिल तो कर रहा था कि मैं अपना लंड बाहर निकाल कर खड़ा लंड पकड़ा दूं कम्मो को; कम से कम यही सुख हासिल हो जाए मेरे लंड को; लेकिन टैक्सी में मैं इतनी हिम्मत नहीं जुटा सका. क्योंकि ड्राईवर मिरर में से कभी कभी हम पर नजर डाल रहा था. पर जितना सावधानी पूर्वक हम लोग मजा ले सकते थे वो तो लेते ही रहे और एक दूसरे के अंगों को छूते मसलते रहे.
साढ़े छः के क़रीब हम लोग वापिस धर्मशाला पहुंच गये. दुकानों की बत्तियां जल उठीं थीं. सर्दियों के मौसम में यूं भी शाम बहुत जल्दी होने लगती है. धर्मशाला पहुंचे तो देखा खूब चहल पहल हो रही थी. बहूरानी के चाचा जिनके लड़के का ब्याह था वो सबको तैयार होने का निर्देश दे रहे थे की जल्दी जल्दी तैयार होजाओ सब लोग कि साढ़े सात बजे बारात चढ़नी है क्योंकि रात दस बजे के बाद डी जे बजना मना था.
लेकिन जैसे कि होता है कोई भी उनकी बात पर ज्यादा ध्यान देता नज़र नहीं आ रहा था.
हमारे पहुँचते ही अदिति बहूरानी हमारे पास आ गयी और कम्मो के हाथ से बैग्स लेकर देखने लगी की क्या क्या लाये थे. कम्मो की वो दोनों ब्रा पैंटी तो मैंने अपने पास पैंट में छुपा रखीं थीं.
फोन और कम्मो के सूट बहूरानी को पसंद आये और उसने मेरी इस बात की तारीफ़ भी की कि मैंने कम्मो को कपड़े दिलवा दिए थे और अपना रिवाज निभा दिया था; अब वो बेचारी क्या जाने कि कम्मो की मचलती उफनती जवानी ने भी अपनी रीति निभा दी थी मेरे संग.
“अंकल जी फोन चला के तो देखो कैसा है?” कम्मो बोली और फोन का डिब्बा मुझे दे दिया.
मैंने फोन को बड़े प्यार से अनबॉक्स किया और बैटरी डाल कर ऑन कर दिया.
फोन अच्छे से चलने लगा तो मैंने फिर उसमें जरूरी सेटिंग्स भी कर दीं. फोन का स्क्रीन लॉक भी कम्मो के फिंगर प्रिंट्स लेकर सेट कर दिया; अब कम्मो का फोन कम्मो के सिवाय और कोई नहीं खोल सकता था.
इस सेटिंग से कम्मो बहुत खुश हुई कि उसकी मर्जी के बिना कोई उसका फोन देख नहीं सकता था; इसके बाद मैंने कम्मो को और जरूरी बातें भी समझा दीं और अपने सामने फोन खोलना बंद करना सब सिखा दिया.
फिर कम्मो का एक फोटो लिया मैंने और कम्मो को सेल्फी लेना भी सिखाया. फिर फोन में सिम कार्ड डाल दिया. सिम चालू हो चुकी थी तो मैंने कम्मो के पुराने फोन से उसके कॉन्टेक्ट्स भी सेव कर दिए और फोन को डायल करना, कॉल रिसीव करना वगैरह सब सिखा दिया. इसके बाद मैंने कम्मो का जीमेल अकाउंट बना कर फेसबुक, व्हाट्सएप्प भी बना दिया और उसे अपनी फ्रेंड बना लिया.
मैं उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.
“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.”
उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.
“देख कम्मो, मुझे तुम्हारे घर चलने में कोई आपत्ति नहीं, लेकिन तुम्हारी आंटी, मेरी बहूरानी अदिति को ये बात अजीब लगेगी कि मैं तुम्हारे गांव क्यों जा रहा हूं. वो जरूर मेरा तुम्हारा साथ जाना इस बात से जोड़ कर देखेगी कि तुम आज दिन भर मेरे साथ अकेली थीं. कम्मो, उसका दिमाग बहुत तेज है वो बात समझ जायेगी.” मैंने उसका दूध मसलते हुए कहा.
“हां अंकल, आपकी ये बात तो सही है आपकी” वो धीमे से बोली.
“तू दिल छोटा मत कर ,मैं बाद में आऊंगा तेरे घर. अब हम लोग व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर तो जुड़े ही रहेंगे न!” मैंने उसे दिलासा दी.
“अंकल जी, आओ तो जल्दी ही आना; क्योंकि डेढ़ दो महीने बाद मेरी शादी होने वाली है; उसके बाद कोई पक्का नहीं कि मैं मिल भी सकूंगी या नहीं; लड़की जात की मजबूरियां तो आप समझते ही होगे” वो अपनी एक अंगुली से मेरे सीने पर कुछ लिखती हुई सी बोली. मैंने देखा उसकी आंखें नम थी.
“हां कम्मो, मैं समझता हूं सब. मैं जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करूंगा.” मैंने कहा.
“अंकल जी, मेरा पास भाटइसएप और फेसबुक तो है ही नहीं. आप बना के जाना मेरे फोन में!” वो बोली.
“ठीक है कम्मो, मैं अभी चलकर सब बना दूंगा.” मैंने उसे चूमते हुए कहा और और उसका हाथ अपने लंड पर रख कर दबाने लगा. एक बार तो कम्मो ने अपना हाथ हटाने का प्रयास किया भी पर मैंने उसे सख्ती से अपने लंड पर दबा दिया. दिल तो कर रहा था कि मैं अपना लंड बाहर निकाल कर खड़ा लंड पकड़ा दूं कम्मो को; कम से कम यही सुख हासिल हो जाए मेरे लंड को; लेकिन टैक्सी में मैं इतनी हिम्मत नहीं जुटा सका. क्योंकि ड्राईवर मिरर में से कभी कभी हम पर नजर डाल रहा था. पर जितना सावधानी पूर्वक हम लोग मजा ले सकते थे वो तो लेते ही रहे और एक दूसरे के अंगों को छूते मसलते रहे.
साढ़े छः के क़रीब हम लोग वापिस धर्मशाला पहुंच गये. दुकानों की बत्तियां जल उठीं थीं. सर्दियों के मौसम में यूं भी शाम बहुत जल्दी होने लगती है. धर्मशाला पहुंचे तो देखा खूब चहल पहल हो रही थी. बहूरानी के चाचा जिनके लड़के का ब्याह था वो सबको तैयार होने का निर्देश दे रहे थे की जल्दी जल्दी तैयार होजाओ सब लोग कि साढ़े सात बजे बारात चढ़नी है क्योंकि रात दस बजे के बाद डी जे बजना मना था.
लेकिन जैसे कि होता है कोई भी उनकी बात पर ज्यादा ध्यान देता नज़र नहीं आ रहा था.
हमारे पहुँचते ही अदिति बहूरानी हमारे पास आ गयी और कम्मो के हाथ से बैग्स लेकर देखने लगी की क्या क्या लाये थे. कम्मो की वो दोनों ब्रा पैंटी तो मैंने अपने पास पैंट में छुपा रखीं थीं.
फोन और कम्मो के सूट बहूरानी को पसंद आये और उसने मेरी इस बात की तारीफ़ भी की कि मैंने कम्मो को कपड़े दिलवा दिए थे और अपना रिवाज निभा दिया था; अब वो बेचारी क्या जाने कि कम्मो की मचलती उफनती जवानी ने भी अपनी रीति निभा दी थी मेरे संग.
“अंकल जी फोन चला के तो देखो कैसा है?” कम्मो बोली और फोन का डिब्बा मुझे दे दिया.
मैंने फोन को बड़े प्यार से अनबॉक्स किया और बैटरी डाल कर ऑन कर दिया.
फोन अच्छे से चलने लगा तो मैंने फिर उसमें जरूरी सेटिंग्स भी कर दीं. फोन का स्क्रीन लॉक भी कम्मो के फिंगर प्रिंट्स लेकर सेट कर दिया; अब कम्मो का फोन कम्मो के सिवाय और कोई नहीं खोल सकता था.
इस सेटिंग से कम्मो बहुत खुश हुई कि उसकी मर्जी के बिना कोई उसका फोन देख नहीं सकता था; इसके बाद मैंने कम्मो को और जरूरी बातें भी समझा दीं और अपने सामने फोन खोलना बंद करना सब सिखा दिया.
फिर कम्मो का एक फोटो लिया मैंने और कम्मो को सेल्फी लेना भी सिखाया. फिर फोन में सिम कार्ड डाल दिया. सिम चालू हो चुकी थी तो मैंने कम्मो के पुराने फोन से उसके कॉन्टेक्ट्स भी सेव कर दिए और फोन को डायल करना, कॉल रिसीव करना वगैरह सब सिखा दिया. इसके बाद मैंने कम्मो का जीमेल अकाउंट बना कर फेसबुक, व्हाट्सएप्प भी बना दिया और उसे अपनी फ्रेंड बना लिया.