- Joined
- Dec 5, 2013
- Messages
- 11,318
शांता ने लाख प्रयास किए कि वह अपने दिमाग़ में आते बिरजू के विचारों को झटक दे. पर बिरजू उसके मस्तिष्क पर हावी होता जा रहा था.
शांता ने अपनी भारी होती पलकों को खोलकर सुंदरी पर निगाह डाली. वो हौले हौले मुस्कुरा रही थी.
"क्या हुआ बहिन, तू एकदम से चुप क्यों हो गयी." सुंदरी शांता के चेहरे पर बदलते भाव को देखती हुई बोली.
"कुच्छ नही भाभी." शांता धीरे से बोली और काँपते पैरों से नदी की ओर बढ़ गयी.
सुंदरी भी उसके बराबर चलती हुई नदी की ओर बढ़ती रही. कुच्छ ही देर में दोनो नदी पहुँच गयी. रास्ते भर सुंदरी शांता से उसी संबंध में बाते करती रही, और उसके सोए अरमान जगाती रही. किंतु नदी तक पहुँचते ही उसे चुप हो जाना पड़ा. क्योंकि नदी में पहले से कुच्छ औरतें मौजूद थी. और वो नही चाहती थी कि उसकी बातें कोई और भी सुने.
सुंदरी तो चुप हो गयी पर शांता के दिल में तूफान जगा गयी. जिस आग को शांता 10 सालों से दबा रखी थी, आज उसे सुंदरी ने हवा दे दी थी. शांता का मन अशांत हो चुका था. वो नहाते वक़्त भी सुंदरी की बातों पर विचार करती रही.
*****
ठाकुर जगत सिंग अपने कमरे में बैठे दीवान जी की राह देख रहे थे. उन्होने 5 मिनिट पहले मंगलू को उनके निवास पर बुलाने हेतु भेजा था. उनके चेहरे से बेचैनी झलक रही थी पर चिंता नाम मात्र की भी नही थी. वो कुर्सी से उठे और सिगार जलाकर खिड़की के पास खड़े हो गये और बाहर का नज़ारा देखने लगे.
उन्होने अभी सिगार का एक लंबा कस लिया ही था कि दरवाज़े से दीवान जी अंदर परविष्ट हुए. कदमों की आहट से ठाकुर साहब पलटे. दीवान जी पर नज़र पड़ी तो वापस अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गये.
दीवान जी अभी भी खड़े थे. ठाकुर साहब के कुर्सी पर बैठते ही दीवान जी उनसे बोले - "कोई चिंता सरकार?"
"नही दीवान जी. ईश्वर की कृपा से जब से रवि आया है तब से सब कुच्छ ठीक होता रहा है. हम एक अच्छे और महत्वपूर्ण विषय पर आपके साथ बात करना चाहते हैं."
दीवान जी खड़े खड़े सवालिया नज़रों से ठाकुर साहब को देखते रहे. उनके समझ में कुच्छ भी ना आया था.
"आप बैठ जाइए." ठाकुर साहब दीवान जी को कुर्सी की ओर इशारा करके बैठने को बोले.
दीवान जी पास पड़ी कुर्सी को अपनी ओर खींचकर बैठ गये. - "आगे बोलिए सरकार. मेरे लायक जो भी सेवा हो आदेश दीजिए."
"आदेश नही दीवान जी हम आपकी राई जान'ना चाहते हैं." ठाकुर साहब सिगार का अंतिम कश लेकर उसे स्ट्रॉ में बुझाते हुए बोले - "आपको रवि कैसा लगता है?"
"रवि." दीवान जी चौंककर बोले - "आप किस संबंध में पुच्छ रहे हैं?"
"निक्की के संबंध में." ठाकुर साहब अपने मन की बात दीवान जी के सामने प्रकट किए - "हमारी निक्की के लिए रवि कैसा रहेगा? हमें उसके घर संपाति से कोई लेना देना नही, वो डॉक्टर है और अच्छे विचार रखता है. हमारे लिए यही काफ़ी है."
"सरकार, आप तो मेरे मन की बात ताड़ गये." दीवान जी खुशी से चहक कर बोले - "मुझे तो रवि उसी दिन भा गया था जब मैं उनसे देल्ही में मिला था. निकी और रवि की जोड़ी तो लाखों में एक रहेगी. बिल्कुल देर ना करें. आज ही इस संबंध में रवि से बात कर लें."
"ठीक है आज शाम को ही रवि और निक्की को बिठाकर दोनो की मर्ज़ी जान लेते हैं." ठाकुर साहब फिर से सिगार की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोले.
"जो आग्या." दीवान जी उठते हुए बोले.
फिर ठाकुर साहब से इज़ाज़त लेकर दरवाज़े बाहर निकले. दरवाज़े से बाहर कदम रखते ही उनकी नज़र निक्की से टकराई. वो दरवाज़े के बाहर खड़ी दीवान जी और ठाकुर साहब की बातें सुन रही थी.
वो किसी काम से ठाकुर साहब के पास आ रही थी जब दरवाज़े के बाहर से अपने और रवि के संबंध में ठाकुर साहब के मूह से कुच्छ कहते सुनकर दरवाज़े के बाहर ठिठक गयी थी. फिर कुच्छ देर उसी अवस्था में रहकर उसने सारी बातें सुन ली थी. अब जब दीवान जी ने उसे खड़े देख लिया था तो वो एकदम से शर्मा गयी और तेज़ी से अपने कमरे की ओर भाग गयी.
दीवान जी को ये समझते देर नही लगी कि निक्की इस रिश्ते के लिए राज़ी है. वो मुस्कुराते हुए अपने रास्ते बढ़ गये.
*****
शांता ने अपनी भारी होती पलकों को खोलकर सुंदरी पर निगाह डाली. वो हौले हौले मुस्कुरा रही थी.
"क्या हुआ बहिन, तू एकदम से चुप क्यों हो गयी." सुंदरी शांता के चेहरे पर बदलते भाव को देखती हुई बोली.
"कुच्छ नही भाभी." शांता धीरे से बोली और काँपते पैरों से नदी की ओर बढ़ गयी.
सुंदरी भी उसके बराबर चलती हुई नदी की ओर बढ़ती रही. कुच्छ ही देर में दोनो नदी पहुँच गयी. रास्ते भर सुंदरी शांता से उसी संबंध में बाते करती रही, और उसके सोए अरमान जगाती रही. किंतु नदी तक पहुँचते ही उसे चुप हो जाना पड़ा. क्योंकि नदी में पहले से कुच्छ औरतें मौजूद थी. और वो नही चाहती थी कि उसकी बातें कोई और भी सुने.
सुंदरी तो चुप हो गयी पर शांता के दिल में तूफान जगा गयी. जिस आग को शांता 10 सालों से दबा रखी थी, आज उसे सुंदरी ने हवा दे दी थी. शांता का मन अशांत हो चुका था. वो नहाते वक़्त भी सुंदरी की बातों पर विचार करती रही.
*****
ठाकुर जगत सिंग अपने कमरे में बैठे दीवान जी की राह देख रहे थे. उन्होने 5 मिनिट पहले मंगलू को उनके निवास पर बुलाने हेतु भेजा था. उनके चेहरे से बेचैनी झलक रही थी पर चिंता नाम मात्र की भी नही थी. वो कुर्सी से उठे और सिगार जलाकर खिड़की के पास खड़े हो गये और बाहर का नज़ारा देखने लगे.
उन्होने अभी सिगार का एक लंबा कस लिया ही था कि दरवाज़े से दीवान जी अंदर परविष्ट हुए. कदमों की आहट से ठाकुर साहब पलटे. दीवान जी पर नज़र पड़ी तो वापस अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गये.
दीवान जी अभी भी खड़े थे. ठाकुर साहब के कुर्सी पर बैठते ही दीवान जी उनसे बोले - "कोई चिंता सरकार?"
"नही दीवान जी. ईश्वर की कृपा से जब से रवि आया है तब से सब कुच्छ ठीक होता रहा है. हम एक अच्छे और महत्वपूर्ण विषय पर आपके साथ बात करना चाहते हैं."
दीवान जी खड़े खड़े सवालिया नज़रों से ठाकुर साहब को देखते रहे. उनके समझ में कुच्छ भी ना आया था.
"आप बैठ जाइए." ठाकुर साहब दीवान जी को कुर्सी की ओर इशारा करके बैठने को बोले.
दीवान जी पास पड़ी कुर्सी को अपनी ओर खींचकर बैठ गये. - "आगे बोलिए सरकार. मेरे लायक जो भी सेवा हो आदेश दीजिए."
"आदेश नही दीवान जी हम आपकी राई जान'ना चाहते हैं." ठाकुर साहब सिगार का अंतिम कश लेकर उसे स्ट्रॉ में बुझाते हुए बोले - "आपको रवि कैसा लगता है?"
"रवि." दीवान जी चौंककर बोले - "आप किस संबंध में पुच्छ रहे हैं?"
"निक्की के संबंध में." ठाकुर साहब अपने मन की बात दीवान जी के सामने प्रकट किए - "हमारी निक्की के लिए रवि कैसा रहेगा? हमें उसके घर संपाति से कोई लेना देना नही, वो डॉक्टर है और अच्छे विचार रखता है. हमारे लिए यही काफ़ी है."
"सरकार, आप तो मेरे मन की बात ताड़ गये." दीवान जी खुशी से चहक कर बोले - "मुझे तो रवि उसी दिन भा गया था जब मैं उनसे देल्ही में मिला था. निकी और रवि की जोड़ी तो लाखों में एक रहेगी. बिल्कुल देर ना करें. आज ही इस संबंध में रवि से बात कर लें."
"ठीक है आज शाम को ही रवि और निक्की को बिठाकर दोनो की मर्ज़ी जान लेते हैं." ठाकुर साहब फिर से सिगार की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोले.
"जो आग्या." दीवान जी उठते हुए बोले.
फिर ठाकुर साहब से इज़ाज़त लेकर दरवाज़े बाहर निकले. दरवाज़े से बाहर कदम रखते ही उनकी नज़र निक्की से टकराई. वो दरवाज़े के बाहर खड़ी दीवान जी और ठाकुर साहब की बातें सुन रही थी.
वो किसी काम से ठाकुर साहब के पास आ रही थी जब दरवाज़े के बाहर से अपने और रवि के संबंध में ठाकुर साहब के मूह से कुच्छ कहते सुनकर दरवाज़े के बाहर ठिठक गयी थी. फिर कुच्छ देर उसी अवस्था में रहकर उसने सारी बातें सुन ली थी. अब जब दीवान जी ने उसे खड़े देख लिया था तो वो एकदम से शर्मा गयी और तेज़ी से अपने कमरे की ओर भाग गयी.
दीवान जी को ये समझते देर नही लगी कि निक्की इस रिश्ते के लिए राज़ी है. वो मुस्कुराते हुए अपने रास्ते बढ़ गये.
*****