Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 5 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

ये सब देखकर मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। कान्ता जिन शब्दों का उपयोग कर रही थी, उस । तरह के शब्दों को मैंने आज तक किसी भी औरत के मुँह से नहीं सुना था। मुझे ये सब सुनकर सिर्फ हैरानी ही नहीं हो रही थी, बल्की शर्म भी आ रही थी।

कान्ता- “अरे मेरे राजा वो कहां मेरा मर्द है? तू ही मेरा मर्द है, जोर से चोद मुझ जैसी छिनाल को, चोद जोरों से चोद...” कान्ता जोरों से बोलने लगी। उसकी आवाज से ऐसा लग रहा था की उसकी मंजिल शायद बहुत करीब है।

रामू- “लो मेमसाहेब लो मेरा लण्ड अपनी चूत में लो...” रामू की आवाज से भी लग रहा था की वो भी बहुत जल्द झड़ने वाला है।

पर मुझे ये समझ में नहीं आया की वो कान्ता को क्यों मेमसाहेब कह रहा है? तभी कान्ता की सिसकारी से रूम पूँज उठा, मुझे लगा शायद वो झड़ गई है।

रामू- “लो मेमसाहेब लो आपकी चूत में मेरा पानी लो..” कहते हुये रामू भी ढेर हो गया।

मालूम नहीं क्यों उस वक़्त मेरा हाथ मेरी नाभि पर चल गया। मेरे पैर की उंगलियां दुखने लगी थी इस तरह खड़े रहकर। मैं सीधी खड़ी हो गई।

तभी रामू की आवाज आई- “तू गुस्सा बहुत दिलाती हो मुझे..”

कान्ता- “तभी तो ज्यादा मजा आता है, ये मेमसाहेब कौन है तेरी?” कान्ता ने पूछा।

रामू- “हे छोड़ ना... फिर कभी बताऊँगा...”
 
मालूम नहीं क्यों उस वक़्त मेरा हाथ मेरी नाभि पर चल गया। मेरे पैर की उंगलियां दुखने लगी थी इस तरह खड़े रहकर। मैं सीधी खड़ी हो गई।

तभी रामू की आवाज आई- “तू गुस्सा बहुत दिलाती हो मुझे..”

कान्ता- “तभी तो ज्यादा मजा आता है, ये मेमसाहेब कौन है तेरी?” कान्ता ने पूछा।

रामू- “हे छोड़ ना... फिर कभी बताऊँगा...”

रामू की बात सुनकर मेरा शरीर थरथरा गया की वो शायद मेरी ही बात कर रहा है। मैं स्टूल से उतरी और पीछे मुड़े बिना कांप्लेक्स के बाहर निकल गई। शाम को मैं रसोई कर रही थी, पर मेरे दिमाग में दोपहर को देखा हुवा रामू और कान्ता का लाइव शो चल रहा था। ऐसा तो नहीं था की मैंने पहली बार किसी औरत और आदमी का खेल देखा था। मैं खुद शादीशुदा हूँ और मैं अब तो बहुत कुछ कर चुकी हूँ और मैंने मेरी माँ को भी अब्दुल के साथ देखा हुवा है।

पर वो बात अलग थी, वो देखकर मुझे सेक्स की तड़प नहीं हुई थी। क्योंकि उसमें मेरी माँ शामिल थी, साथ में उसकी मर्जी उसमें शामिल नहीं थी। वो देखकर मुझे तो मेरी माँ पर सहानुभूति हुई थी। और रामू के साथ मैं भी अनिच्छा से सोई हुई थी, और दोपहर को रामू शायद मुझे ही याद कर रहा था। दोपहर को कान्ता की आँखों में जो तृप्ति दिख रही थी वो तृप्ति मैंने भी पाई है। शुरुआत में नीरव करता था तब मैं ऐसे ही तृप्त होती थी, और उस दिन जीजू के साथ भी मैं पूर्ण संतुष्ट हुई थी।

पर थोड़े समय से न जाने क्यों मेरी जिंदगी में कुछ भी सही नहीं हो रहा था, और आज तो जो देखा वो देखकर मुझे ऐसा लगने लगा था की शायद मेरी जिंदगी का कोई कोना सूना है। मुझे भी किसी की बाहों में समा जाने का दिल करता था। मुझे अब किसी भी तरह नीरव का सेक्स में इंटरेस्ट जगाना जरूरी लग रहा था। नीरव के आने के बाद हम दोनों के साथ मिलकर डिनर लिया।

मैंने उसके आने से पहले बाथ लेकर हल्का सा मेकप किया और इत्र लगाकर नई नाइटी पहनी हुई थी। ये सब मैंने आज ही खरीदा था। नीरव ने घर में दाखिल होते ही ये सब नोटिस किया था और मुझे बाहों में लेकर किस करते हुये बोला था- “निशु डार्लिंग ऐसे ही बन-ठन के रहोगी तो मार ही डालोगी...”

लेकिन डिनर खतम होने के बाद मैं जल्दी-जल्दी में काम निपटाकर अंदर गई। तब तक तो नीरव सो भी गया था। मैंने उसे जगाने को सोचा, पर पूरा दिन काम से थक गया होगा ये सोचकर मैं भी नींद की गोली लेकर सो गई।

दूसरे दिन रामू जब काम पे आया तब मुझे उसका डर हर रोज से भी बढ़ गया। उसके आते ही मैं फटाफट बेडरूम में चली गई और उसने जाते वक़्त मुझे कहा की वो जा रहा है। तब मैं बेडरूम से बाहर आई और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।

3:00 बजे मुझे कल का नजारा याद आ गया। मुझे नीचे जाकर देखने की लालच हुई। पर मैंने अपने आपको रोका, नीचे देखते हुये कोई मुझे देख ले तो मुझे तो लेने के देने पड़ जायेंगे। शाम को मैं बाजार से वापिस आ रही थी और कान्ता मुझे दिखाई दी। कान्ता हमारी कालोनी के नजदीक झोपड़पट्टी है वहां रहती है। वो किसी आदमी के साथ झगड़ रही थी।

मेरी और उसकी आँखें एक हुई तो उसने मुझसे कहा- “देखिए ना बीवीजी, ये मेरा मर्द शराब के पैसे के लिए झगड़ रहा है, आपके पास 100 का नोट है तो दीजिए ना... मैं कल वापस कर जाऊँगी..."

मैंने उसे 100 दिया और निकल गई। आज मैंने कान्ता को थोड़ा ध्यान से देखा। वो तुलसी जैसी तो नहीं पर मनीबेन (मनीबेन.काम) जैसी जरूर दिखती थी। उसकी कमर स्मृती ईरानी की तरह 40+ इंच ही होगी और चूचियां तो शायद किसी के एक हाथ में नहीं आ सकती, और चूतड़ इतनी बड़ी की उसे पीछे से देखकर हाथी का बच्चा याद आ जाय और उसका पति किसी तिनके जैसा। कहीं कान्ता जोर से फूक मार दे तो उड़ जाये। और यहां रामू कान्ता से भी ज्यादा शरीर वाला। रामू और कान्ता की जोड़ी परफेक्ट थी। दोनों में फर्क था तो सिर्फ रंग का ही, कान्ता गोरी और रामू काला।

ये सब सोचते हुये मुझे कान्ता सही लगने लगी। अगर ऐसा पति हो तो औरत बेचारी क्या करे? अपनी जिम की भूख कहीं तो मिटाए?

रात को नीरव के आने से पहले मैंने कल की तरह पूरी तैयारी कर रखी थी। मैंने और नीरव ने बहुत मस्ती की। खूब एंजाय किया। वो जल्दी झड़ गया तो उसने मेरी योनि में उंगली डालकर मुझे संतुष्ट भी किया।

 
दोपहर के 3:00 बजे थे, मैं बेड पे लेटी हुई कान्ता और रामू के बारे में सोच रही थी। तभी मोबाइल की रिंग बज उठी, मैंने मोबाइल उठाकर देखा तो नीरव का फोन था।

मैं- “हाँ बोलो...” मैंने कहा।

वीरंग- “आप जल्दी से आफिस आइए..” फोन पर नीरव नहीं था, मेरे जेठ (वीरंग) थे।

मैं- “क्यों क्या हुवा? नीरव तो ठीक है ना?” उनकी बात सुनकर मैंने घबराहट से पूछा।

वीरंग- “बिल्कुल ठीक है, टेन्शन की कोई बात नहीं है। आप जल्दी से निकलिए...” मेरे जेठजी ने फोन काटते हुये कहा।

मैंने जल्दी से कपबोर्ड से साड़ी निकाली और फटाफट तैयार होकर मैं आफिस पहुँची। घर से आफिस का रास्ता 15 मिनट का ही है, पर मुझे 15 घंटे जैसा लगा। पियून ने मुझे मेरे ससुर की केबिन में जाने को बोला। मैं । केबिन में दाखिल हुई तो देखा की मेरे ससुर उनकी चेयर पर बैठे थे, नीरव और मेरे जेठ सोफे पर बैठे थे। मेरे अंदर दाखिल होते ही मेरे जेठ सोफे पर से उठकर चेयर पर बैठ गये और मुझे सोफे पर बैठने का इशारा किया। मैं सोफे पर जाकर बैठी। 2-3 मिनट तक कोई कुछ नहीं बोला मुझे उनकी चुपकी से बहुत डर लग रहा था।

ससुर- “कैसे हैं आपके पापा...” मेरे ससुर ने पूछा।

मैं- “ठीक हैं...” मैंने कहा।

ससुर- “नीरव तो कह रहा है की बीमार हैं..” मेरे ससुर को आज मेरे पापा की याद क्यों आ गई मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

मैं- “हाँ, आजकल ठीक नहीं रहता उन्हें..” मैंने धीरे से कहा।

ससुर- “तो फिर यहां ला दीजिए, आपके घर...” मेरे ससुर ने आपके घर बोलने पर इतना दबाव दिया की मैं समझ गई की वो मुझ पर व्यंग कर रहे हैं। मैं कोई जवाब दिए बगैर नीचे देखकर बैठी रही।

ससुर- “जवाब दीजिए हमें...” मेरे ससुर ने फिर पूछा।

मैं- “जी, वो नहीं आएंगे...” मैंने धीरे से कहा।

ससुर- “क्यों...”

मैं- “अच्छा नहीं लगेगा बेटी के घर पे रहना...” मैंने कहा।

ससुर- “बेटी से चोरी छुपे पैसे ले सकते हैं, पर रहने को नहीं आ सकते.."

उनकी बात सुनकर मैंने नीरव की तरफ देखा। मैंने कहा- “मेरे पापा ने माँगे नहीं थे...”

ससुर- “तो फिर क्यों दिया? आपके चाचा और जीजाजी भी तो हैं, उन लोगों ने नहीं दिए और आपको क्या जरूरत पड़ी उन्हें देने की?” मेरे ससुर की आवाज अब कड़क हो गई थी।

मेरी आँखों में पानी आ गया। मैं कुछ भी बोलने के होश में नहीं थी।

ससुर- “आपको मालूम है नीरव कहां से पैसे लाया?” मेरे ससुर ने पूछा।

मैं- “दोस्त से लाया है ऐसा कहते थे...” मैंने कहा।

ससुर- “झूठ बोला, नीरव ने आपसे। नीरव ने एक पार्टी के पेमेंट में से 20000 ले लिए और हमें कहा की वहां से पैसे कम आए हैं। हमारे बेटे ने चोरी की आपकी बदौलत...”

मेरे ससुर की बात सुनकर मैं रोने लगी।
 
मेरे ससुर की बात सुनकर मैं रोने लगी।

ससुर- “अब ये नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है, नीरव, वीरंग तुम दोनों बाहर जाओ...”

मेरे ससुर का आदेश सुनते ही दोनों भाई केबिन में से बाहर निकल गये।

मेरे ससुर खड़े होकर मेरे नजदीक आए और मेरे आँसू पोंछते हुये बोले- “दूसरी बार ऐसी गलती हुई ना तो बहुत बड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी...”

मैं चुपचाप बैठी रही।

थोड़ी देर तक ससुर मुझे देखते रहे और फिर बोले- “तुम जा सकती हो...”

उनकी बात सुनकर मैं जल्दी से उठी और बाहर निकल गई। घर पहुँचते ही मेरे संयम का बाँध टूट गया और मैं रोने लगी। जब से मेरे ससुर से बात हुई तब से मुझे नीरव पे गुस्सा आ रहा था। पहले उसने आफिस से गलत तरीके से पैसे लिए फिर मुझसे झूठ बोला और जब वो पकड़ा गया तो सारा दोष मुझ पर थोप दिया। वो चाहता तो कोई और बहाना निकाल सकता था। मेरे घर पैसे भेजे हैं, ऐसा कहने की क्या जरूरत थी? आज तक मेरे । सास-ससुर को मुझ पर शक था की मैं मेरे मायके पैसे भेजती हूँ। आज पहली बार मैंने भेजे और उनको मालूम पड़ गया तो उनका शक यकीन में बदल गया। आज के बाद शायद उनसे आँख मिलाने में भी मुझे शर्म आएगी। मैं सिर्फ उनकी नहीं खुद की नजारों में भी आज गिर चुकी थी।

शाम के 7:00 बजे तक मैं रोती रही। फिर उठकर खिचड़ी बनाई। मेरी तो भूख ही मर गई थी। सिर्फ नीरव के लिए ही बनाई। नीरव के आते ही मैंने उसे खाना पारोसा, उसने चुपचाप खाना खा लिया। नीरव ने मेरी रोती। सूरत देखकर मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं की। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। खाना खाकर नीरव बेडरूम में चला गया।

मैं काम खतम करके रूम में गई तो देखा की नीरव ने रूम को बहुत अच्छे तरीके से सजाया हुवा था। चारों तरफ अलग-अलग कलर के फूल रखे हुये थे, और बेड के ऊपर गुलाब से सारी लिखा हुवा था और नीरव मुर्गा बना हुवा था। रूम की सजावट देखकर ही मेरा आधा गुस्सा गायब हो गया और नीरव को देखकर मैं इतना हँसी की हँसते हुये मेरी आँखों में पानी आ गया।

नीरव- “सारी निशु, सुबह पापा का गुस्सा देखकर मुझे कुछ सूझा ही नहीं और मैंने सब सच-सच बता दिया...” नीरव ने मुझे बाहों में लेते हुये कहा।

मैंने उसके सीने पर सिर रखा और कहा- “मैं कितना रोई आज, तुम्हें मालूम है? मैंने अभी तक खाना भी नहीं खाया..."

नीरव- “मुझे मालूम है... देख इसीलिए तो मैं तेरे लिए पिज्जा लेकर आया हूँ..” कहते हुये नीरव मुझे बाहर ले। गया और तिपाई पर पड़ा पिज्जा का पार्सल दिखाया।

हम दोनों वहीं पर जमीन पे बैठ गये, नीरव ने पार्सल खोला और फिर हम दोनों ने साथ मिलकर पिज्जा खाया।

खाते हुये मैंने नीरव से पूछा- “तुम ये सब कब लाए?”
 
नीरव- “मैं ये सब साथ ही लाया था पर तुम्हारा ध्यान नहीं था...” नीरव ने कहा।

खाना खाकर मैं जल्दी से सो गई, क्योंकि आज के दिन की टेन्शन से मैं थक के चूर हो गई थी।

सुबह नीरव घर से निकला तब उसने मुझे कहा- “आज हम दूसरे शो (6 से 9) में मूवी देखने जाएंगे। तुम तैयार रहना।

शाम को 5:30 बजे मैं तैयार हो गई और 6:00 बजे नीरव का फोन आया- “निशु आज नहीं जा सकेंगे फिर कभी जाएंगे..."

मैं तैयार हो गई थी इसलिए मैंने नीरव से जिद की- “जाते हैं ना नीरव, प्लीज़...”

नीरव- “आज नहीं जा सकते निशु, भैया और भाभी भी वही मूवी देखने गये हैं...” नीरव ने कहा।

मैं- “वो देखने गये हैं तो हमें क्या?” मैंने कहा।

नीरव- “कुछ समझने की कोशिश करो निशा, कल इतना बड़ा हंगामा हुवा और आज हम मूवी में उनसे मिलें तो अच्छा नहीं लगेगा...” नीरव ने चिढ़ते हुये कहा।

नीरव की बात सुनकर मुझे कुछ समझ में नहीं आया, आया तो सिर्फ इतना समझ में आया की इस इंसान के साथ जब तक जियो अपनी हर इच्छा दबाकर जियो, और अपने मान-सम्मान को भूलकर जियो।।

थोड़ी देर बाद फिर से नीरव का फोन आया- “रसोई मत बनाना निशु, बाहर जाते हैं...”

मुझे आज नीरव पर इतना ज्यादा गुस्सा था की वो सामने होता तो मैं उससे लड़ पड़ती। मैंने चिढ़कर कहा नहीं जाना मुझे कहीं। मैं रसोई कर रही हूँ...”

नीरव ने मुझे मस्का लगाया- “निशु डार्लिंग, तुम्हें बाहर नहीं जाना तो कोई बात नहीं। पर रसोई मत बनाना मैं बाहर से खाना लेकर आता हूँ...” कहते हुये नीरव ने फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद नीरव खाना लेकर आया।

हम दोनों ने साथ मिलकर खाना खाया, खाना खाते हुये उसने मुझसे बहुत मस्ती की, खूब हँसाया और मेरे गुस्से को ठंडा कर दिया और फिर हर रोज की तरह हम सो गये।।
 
दूसरे दिन दोपहर को मैंने एक गलती कर दी। रामू घर का काम कर रहा था और मैं बेडरूम बंद करके अंदर सो रही थी। तभी रामू की आवाज आई- “काम खतम हो गया मेमसाब, मैं जा रहा हूँ..."

एकाध मिनट के बाद मैंने रूम का दरवाजा खोला और मैं दरवाजा बंद करने गई तो रामू अभी भी लिफ्ट की राह देखकर खड़ा था। रामू ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी उसके बाद मैं उसके साथ बात नहीं करती थी। लेकिन आज मैंने उसके साथ न जाने कैसे बात कर ली- “कान्ता ने दो दिन पहले मेरे पास से 100 लिए हैं, तुम ले लेना...”

मेरी बात सुनकर रामू मेरे सामने देखता रहा। उसकी नजरों से मुझे मेरी गलती का अहसास हो गया। मुझे उसकी नजरों की तपन सहन न हुई तो मैंने दरवाजा बंद कर दिया और चद्दर ओढ़कर सो गई। मैं समझ गई की शायद कान्ता का पति जान गया है की रामू और कान्ता के बीच अवैध संबध है। मैंने वहां ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं समझा तो मैं अंदर जाकर फिर से टीवी देखने लगी। सुबह के 12:00 बजे थे।

मैं खाना खाकर पानी पी रही थी, तभी मैंने आंटी की चीख सुनी। मैं दौड़ती हुई उनके घर गई तो आंटी के सिर से लहू निकल रहा था और वो बेहोश हो गई थी। अंदर के रूम में से गुप्ता अंकल भी बाहर आ गये थे और वो आंटी की हालत देखकर रो रहे थे। बाजू में स्टूल पड़ा हुवा था, शायद आंटी उसपर से गिर गई थी। मैंने अंकल को अम्बुलेन्स बुलाने को कहा, पर अंकल बहुत डरे हुये थे। उनकी हालत देखकर लग रहा था की शायद उनका ब्लड प्रेसर भी बढ़ चुका है। मैंने तुरंत नीरव को फोन करके अम्बुलेन्स भेजने को कहा। तब तक अपार्टमेंट के सारे लोग एकट्ठे हो गये थे।

अंकल की गंदी आदतों के करण अपार्टमेंट में कोई उनसे संबंध नहीं रखता था, पर संजोग को देखते सबने। मिलकर आंटी को नीचे ले लिया। मैंने दोनों घर को लाक कर दिया और नीचे उतरी। तब तक अम्बुलेन्स भी आ गई थी। कोई अंकल के साथ चलने को राजी नहीं था, तो मैं अंकल के साथ आंटी को लेकर अम्बुलेन्स में बैठ गई। हम हास्पिटल पहुँचे तब तक नीरव भी वहां आ गया था और फिर आंटी को एसी रूम में भरती कर दिया। सारे वक़्त अंकल डरे हुये थे क्योंकि उनका यहां कोई नहीं था और वो एक ही बात कर रहे थे- “कोकिला (आंटी का नाम) तुम्हें कुछ हो गया तो मैं भी नहीं जियूंगा...”
 
नीरव ने अमेरिका में रहते उनके बेटे से बात की तो वो आ नहीं सकता था, पर एक दिन के लिए हमें ध्यान रखने को कहा। दूसरे दिन वो उसके किसी फ्रेंड को भेजने वाला था। थोड़ी देर बाद आंटी को थोड़ा होश भी आया पर वो कुछ बोल नहीं पा रही थी, सिर्फ दर्द की वजह से बेचैन थी और ब्लड बहुत ज्यादा ही बह गया था, इसलिए उन्हें ब्लड की बोतल चढ़ रही थी। शाम के 6:00 बजे मैं घर गई और खाना बनाकर नीरव और अंकल के लिए लेकर आई। आंटी को जब से लगा था, तब से अंकल ने पानी तक मुँह में नहीं डाला था। अंकल के प्रति मेरे सारे गीले सिकने आज दूर हो गये थे, उनका आंटी के तरफ का प्यार देखकर।

मैंने और नीरव ने बहुत समझा बुझाकर उन्हें खाना खिलाया।

डाक्टर ने आकर बताया- “टेन्शन की कोई बात नहीं है...”

उसके बाद अंकल के चेहरे पर थोड़ी मुश्कुराहट आई। रात के 9:00 बजे मैं और नीरव ने घर जाने को सोचा। तभी अचानक आंटी फिर से बेहोश हो गई। ये देखकर अंकल फिर से रोने लगे। नीरव ने डाक्टर को बुलाया।

डाक्टर ने चेक करके कहा- “ज्यादा टेन्शन की कोई बात नहीं है पर ज्यादा उमर होने की वजह से ठीक होने में थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही और तबीयत में उतार चढ़ाव भी आएंगे...”

डाक्टर के जाने के बाद मैंने और नीरव ने हास्पिटल में ही सो जाने का फैसला किया, क्योंकि अंकल की हालत देखकर उनके भरोसे आंटी को अकेला छोड़कर जाना उचित नहीं लग रहा था। रात के 11:00 बजे के आसपास नर्स ने आंटी को बोतल चढ़ानी बंद कर दी, तो हम तीनों ने सो जाने का फैसला किया।

तभी नीरव के मोबाइल में रिंग बजी तो उसने बाहर जाकर बात की, और फिर अंदर आकर कहा- “निशु मुझे जाना पड़ेगा, एक जरूरी काम आ गया है। तुम यहीं पर सो जाओ। सारी अंकल मुझे काम है, मैं जा रहा हूँ। निशा खयाल रखना...” मैं या अंकल कुछ बोलें उससे पहले तो नीरव रूम छोड़कर चला भी गया।

नीरव के जाने के बाद मैं सोच में पड़ गई की ऐसा क्या काम आया होगा की नीरव को इस वक़्त जाना पड़ा। घर का तो कोई काम नहीं होगा, नहीं तो नीरव मुझे बता के जाता। रूम के अंदर दो पलंग थे एक पे तो आंटी थी, मैंने अंकल को दूसरे पलंग पे सोने को कहा।
 
नीरव के जाने के बाद मैं सोच में पड़ गई की ऐसा क्या काम आया होगा की नीरव को इस वक़्त जाना पड़ा। घर का तो कोई काम नहीं होगा, नहीं तो नीरव मुझे बता के जाता। रूम के अंदर दो पलंग थे एक पे तो आंटी थी, मैंने अंकल को दूसरे पलंग पे सोने को कहा।

अंकल ने मुझे वहां सोने को कहा। थोड़ी ‘हाँ ना' के बाद अंकल वहां सो गये। मैं लाइट बंद करके फर्श पर चादर डालकर सो गई। थोड़ी देर बाद अंकल खड़े हुये और लाइट जलाकर मेरे सामने की दीवार पे जाकर बैठ गये।। अंकल ने कहा- “मुझे नींद नहीं आ रही बिटिया, तुम्हें कोई प्राब्लम न हो तो बातें करते हैं...”

मैं- “उसमें क्या प्राब्लम है अंकल? वैसे भी पूरा दिन हमने आराम ही किया है...” मैंने भी बैठेते हुये कहा।

अंकल- “बिटिया तुम जानती हो मेरी और कोकिला की लव मैरेज़ है...” अंकल ने पूछा।

मैं- “क्या बात करते हैं अंकल, उस जमाने में आपने लोव मैरेज़ की थी?” मुझे अंकल की बातों में इंटरेस्ट हुवा।

अंकल- “हम दोनों आमने-सामने रहते थे, मैंने चिट्ठी लिखकर कोकिला से प्यार का इजहार किया था..." अंकल अपने भूतकाल में पहुँच गये थे।

मैं- “किया लिखा था आपने चिट्ठी में अंकल?” मैंने उत्सुकता से पूछा।

अंकल- “कोकिला ठीक होकर घर आए तब पूछना, मैंने वो पत्र जिस दिन दिया था, हर साल के उस दिन को मैं

आज भी कोकिला को पत्र देता हूँ..” अंकल ने कहा।

मैं- “वाउ अंकल... तो आंटी के पास बहुत पत्र जमा हो गये होंगे...” मैंने खुश होते हुये कहा।

अंकल- “52 साल हो गये हमारे प्यार के इजहार को, हम बूढ़े हो गये पर हमारा प्यार आज भी जवान है...”

मैं- “अंकल आप लोग चोरी छुपे भी मिलते होंगे ना?” मुझे अंकल की कहानी मजेदार लग रही थी।

अंकल- “एक बार मूवी देखने गये थे, मुगले-ए-आजम मेरी फेवरिट हीरोइन मधुबाला की मूवी..” अंकल ने कहा।

मैं- “मेरे पापा की भी फेवरिट हीरोइन मधुबाला ही हैं अंकल..” मैंने कहा।

अंकल- “बचपन में मैं जब मधुबाला की फिल्में देखता था, तब जानता नहीं था की बुढ़ापे में वो मेरे सामने रहने आने वाली है...” अंकल ने शरारत से कहा।

पहले तो मैं उनकी बात समझ नहीं पाई, बाद में मुझे समझ में आया की अंकल मेरी बात कर रहे हैं, तो मैं थोड़ा शर्माते हुये मुश्कुराई।

अंकल- “चलो अब सो जाते हैं बिटिया, यहीं पर सो जाऊँ मैं?” अंकल ने पूछा।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मैं सो गई, अंकल हमारे बीच एक हाथ जितनी जगह छोड़कर सो गये। थोड़ी देर में हम दोनों के बीच चुप्पी छा गई।

| न मानो तो..." अंकल ने हमारे बीच की मोम की दीवार तो

अंकल- “बिटिया एक बात कहा।

मैं- “कहिए...” मैंने धीरे से कहा। मैं थोड़ा बहुत तो जान ही गई थी की अंकल क्या कहने वाले हैं।

अंकल- “बिटिया तुमसे पहले मैंने तेरी जैसी खूबसूरत लड़की को देखा तक नहीं था, जब से तुम सामने रहने आई हो तब से एक ही लालशा रह गई है इस बूढ़े की जिंदगी में, एक बार तेरी बाहों में सोना। बिटिया मुझे तेरी बाहों में ले ले, मेरा मोक्ष हो जाएगा...”
 
अंकल बोलते-बोलते गिड़गिड़ाने लगे- “बिटिया, मुझे मोक्ष दिला दो...” अंकल ने फिर कहा।

मैं अंकल के तरफ सरकी। जैसे छोटे बच्चे डर के मारे अपनी माँ के सीने से चिपकते हैं, वैसे अंकल ने मेरे । उरोजों के बीच अपना मुँह चिपका दिया। अंकल के ऐसे चिपकने से मैं भावविभोर हो गई और मैंने एक हाथ से उनके सिर को दबाया और दूसरा हाथ मैंने उनकी पीठ पर रख दिया। थोड़ी देर हम ऐसे ही लेटे रहे। अंकल ने उनके सिर को हिलाया तो मैंने उनके सिर से मेरा हाथ हटा लिया। अंकल ने उनका चेहरा मेरे उरोजों के ऊपर से हटा लिया, और फिर वो मेरे ब्लाउज के हुक खोलने लगे। ब्लाउज खुलते ही अंकल को अंदर रेड ब्रा दिखी तो अंकल ने ब्रा को खींचकर ऐसे ही ऊपर कर दी और फिर नन्हे बच्चे के माफिक मेरी निप्पल को चूसने लगे।

मेरा सारा शरीर रोमांचित हो उठा। थोड़ी देर बाद मैंने उन्हें रोका, (रोकती नहीं तो शायद पूरी रात चूसते रहते) और अंकल को ऊपर खींचा। वो थोड़े ऊपर आए तो हमारे चेहरे आमने सामने आ गये। उन्होंने मेरे होंठों पर। उनके बूढ़े होंठ रख दिए। उनके मुँह के कम दांतों की वजह से उनके मुँह का थूक मेरे मुँह में आ रहा था। मैंने मेरे हाथ नीचे किए और मैं उनकी शर्ट के बटन खोलने लगी। मेरी नरम और चिकनी उंगलियां बटन खोलते। वक़्त उनके सीने को छू रही थीं। शर्ट के खुलते ही मैंने उसे निकाल दिया। अंकल के सीने के सफेद बालों को मैं उंगली में पकड़कर मरोड़ने लगी और उनके निप्पल से छेड़छाड़ करने लगी।

अंकल ने उनके हाथ को नीचे डालकर मेरी साड़ी और पेटीकोट एक साथ पकड़ लिया और धीरे-धीरे करके पैंटी तक ऊपर कर दिया। अंकल ने पैंटी की साइड में उंगली फँसाई और पैंटी निकालने लगे। पैंटी निकलते ही अंकल ने घुटनों के बल खड़े होकर उनकी पैंट नीचे कर दी। अंकल मेरी बाजू में सो गये और मेरे हाथ में अपना लिंग थमाकर मेरी योनि को सहलाने लगे। अंकल का लिंग अभी तक पूरी तरह से खड़ा नहीं हुवा था, तो मैं उसे सहलाने लगी।

थोड़ी देर सहलाने के बाद अंकल का लिंग पूर्ण रूप से खड़ा हो गया तो मेरी धड़कनें बढ़ गईं। पूर्ण रूप में आने के बाद मुझे अंकल का लिंग छोटा लग रहा था। अंकल के सहलाने से मेरी योनि भी बहुत ज्यादा गीली हो गई। थोड़ी देर ऐसे ही हम एक दूसरे के अंगों को सहलाते रहे और फिर अंकल मेरी टांगों के बीच आ गये। उन्होंने दोतीन बार मेरी योनि के ऊपर लिंग रखकर धक्का देने की कोशिश की। पर हर बार लिंग योनि पर से फिसल ही जाता था।

मैंने मेरे हाथ को नीचे किया और उनके लिंग को पकड़कर योनि पर रखा। अंकल ने दो धक्का दिए और उनका आधा लिंग मेरी योनि के अंदर चला गया। तब मैंने मेरा हाथ ऊपर लेकर उनकी पीठ पर रख दिया। फिर और दो धक्के के बाद अंकल का पूरा लिंग मेरी योनि में चला गया उसके बाद अंकल ने थोड़ी देर रुक के हिलाना चालू किया।

मैं भी मेरी चूतड़ उठाकर उन्हें पूरा साथ देने लगी। अंकल के बूढ़े शरीर से मैं पूरा आनंद ले रही थी। हम दोनों की सांसों की आवाज से रूम पूँज रहा था।
 
मैंने मेरे हाथ को नीचे किया और उनके लिंग को पकड़कर योनि पर रखा। अंकल ने दो धक्का दिए और उनका आधा लिंग मेरी योनि के अंदर चला गया। तब मैंने मेरा हाथ ऊपर लेकर उनकी पीठ पर रख दिया। फिर और दो धक्के के बाद अंकल का पूरा लिंग मेरी योनि में चला गया उसके बाद अंकल ने थोड़ी देर रुक के हिलाना चालू किया।

मैं भी मेरी चूतड़ उठाकर उन्हें पूरा साथ देने लगी। अंकल के बूढ़े शरीर से मैं पूरा आनंद ले रही थी। हम दोनों की सांसों की आवाज से रूम पूँज रहा था।

अंकल अपने होंठों से मेरी गर्दन को चूमते हुये धीरे-धीरे उनकी रफ़्तार बढ़ा रहे थे। मैं भी उन्हें पूरा सहयोद दे रही थी। बीच-बीच में अंकल मेरे होंठों पर चुंबन दे रहे थे। उमर के हिसाब से मुझे अंकल का स्टेमिना अच्छा। लग रहा था।

धीरे-धीरे हम दोनों की सांसें भारी होने लगी, और साथ में हमारी स्पीड भी बढ़ने लगी। और थोड़ी देर बाद मैं और अंकल एक साथ ही झड़ गये।

झड़ते वक़्त अंकल के लिंग से थोड़ा सा ही वीर्य निकला तो अंकल ने मेरे ऊपर से उठते हुये कहा- “ये मेरी उमर का साइड इफेक्ट है...”

अंकल की बात सुनकर मैं मुश्कुराई और बोली- “हरामी बूढे...”

4:00 बजे तक अंकल मुझे बाहों में भरकर लेटे रहे, फिर मुझे पेशाब लगी तो मैं बाथरूम में गई और बाहर निकलकर पलंग पर जाकर सो गई।

7:00 बजे नीरव का फोन आया की चाय नाश्ता लेकर आऊँ?

मैंने मेरे लिए ना कहकर अंकल के लिए लाने को कहा। मैं उठाकर थोड़ा फ्रेश हुई तब तक नीरव आ गया, और उसने अंकल को चाय-नाश्ता दिया। तभी अंकल को उनके बेटे का फोन आया। उसने बताया की थोड़ी ही देर में उसका दोस्त आ जाएगा, अंकल और आंटी की खबर रखने के लिए। नीरव ने मुझे घर जाने को बोला और वो अंकल के बेटे का दोस्त आए तब तक रुकने वाला था।

मैंने अंकल को दोपहर को टिफिन के लिए पूछा तो उन्होंने ना कहा, और यहीं कैंटीन में खा लेंगे ऐसा कहा।

हास्पिटल से निकलते हुये मुझे अंकल ने हसरत भरी नजरों से देखा तो मैं उनके सामने नीरव से नजर चुराकर मादकता से मुश्कुराई। घर पहुँचते ही मैंने बाथ लिया। तब तक नीरव भी आ गया। मैंने हम दोनों के लिए चायनाश्ता बनाया।

चाय पीते हुये नीरव ने बताया- “जो भाई साहब आए हैं वो अच्छे लगते हैं। पर आंटी की तबीयत में कोई शुधार नहीं है...”

तभी मुझे नीरव का, जो कल अचानक चला गया था वो याद आया तो मैंने पूछा- “कल कौन सा काम जरूरी आ गया था जो इतना जल्दी चले गये थे?”

नीरव- “वो जीतू (उनका दोस्त है) की शाप को कल 9:00 बजे 4 लोगों ने आकर लूट लिया, उसका फोन आया था..." नीरव ने कहा।

नीरव के सामने देखते हुये मेरे जेहन में एक विचार आ गया- “उसके बाद कल रात मेरी भी असमत लुट गई, बुलाओ सबको उसकी तरह इकट्ठा करो सबको, कब तक मेरे रूप को नजरअंदाज करते रहोगे। आँखें खोलो और देखो मेरे चारों तरफ सारे मर्द मेरे बदन की प्यास में घूम रहे हैं..”

नीरव- “क्या सोच रही हो, चाय ठंडी हो जाएगी...” नीरव ने मेरी विचारधारा को रोकते हुये कहा।
 
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