Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 8 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

मैंने भी अंकल को बाहों में भींच लिया। अंकल मेरे उरोजों को दबाते हुये मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगे, तो मैंने उन्हें रोका- “अंकल, नीरव कभी भी आ सकता है...”
अंकल ने बटन खोलना छोड़कर मेरी साड़ी को कमर तक ऊपर कर दी और मेरी पैंटी को निकालकर साइड में रख दी और मेरी चूत को उनकी हथेली से मसलने लगे।

मैंने सिसकते हुये पूछा- “नाटक करने की क्या जरूरत थी अंकल, सीधा कहते तो मैं दोपहर को आ जाती ना... अभी तो नीरव का टेन्शन रहेगा...”

अंकल ने उनके पैंट की जिप खोली और उनका लण्ड निकाला और मेरे ऊपर आकर मेरी चूत पर लण्ड को रगड़ते हुये बोले- “थोड़ा थ्रिल के लिए, और साथ में तेरे पति को बेवफूक बनाने का मजा लेने के लिए...”

अंकल का लण्ड मैंने नीचे हाथ डालकर पकड़ा और मेरी चूत के द्वार पर लगाया। अंकल ने अपने चूतड़ों को। थोड़ा उठाकर धक्का दिया और उनका लण्ड मेरी चूत में दाखिल हो गया। वो थोड़ी देर ऐसे ही रुक गये और फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। मैंने अंकल को मेरी बाहों के घेरे में ले लिया था, और हम दोनों के होंठ एक दूसरे के होंठों से चिपके हुये थे। अंकल एक हाथ से मेरे उरोजों को कपड़ों के ऊपर से सहलाते हुये धक्के पर धक्के लगा रहे थे।

तभी दरवाजे को खटखटाने की आवाज आई और मैं इर गई की कौन आया होगा, नीरव या वो आदमी जो अपनी बहन को मिलने गया था या फिर कोई और? अंकल भी फटाफट मेरे ऊपर से खड़े होकर अपने कपड़े ठीक करने लगे।

मैं भी खड़ी होकर उनका अनुकरण करने लगी। मैंने कपड़ों को ठीक करके बालों में से हेयर पिन निकालकर बालों को उंगलियों से सवांरा और फिर से पिन को बालों में डाल दिया और अंकल को इशारे से धीरे ना मैं?”

अंकल भी पलंग पर बैठ गये थे और मेरी तरफ देखकर उन्होंने अपनी मुंडी हिलाकर 'हाँ' का इशारा किया। तब तक दरवाजे पर दूसरी बार खटखटाने की आवाज आई। मैं दरवाजे पर जाकर लाक खोल ही रही थी की तभी मेरी नजर मेरी पैंटी पर पड़ी। मैंने अंकल को उसे दिखाकर हाथ के इशारे से उसे लेने को कहा।

अंकल दौड़े और जल्दी से पैंटी लेकर फिर से पलंग पर बैठ गये।

मैंने दरवाजा खोला तो सामने नीरव था, उसे देखकर मेरा डर बढ़ गया की कहीं वो पूछ ना बैठे की इतनी देर क्यों लगाई दरवाजा खोलने में?

पर नीरव ने अंदर आकर थोड़ा अलग बोला- “अंकल यहां पास में ही एक शाप है, उससे बिनती की तो उसने भी लेस दे दिया अब वहीं से लाना.." नीरव ने अंकल को दवाई का बिल दिया तो अंकल ने अपने पाकेट में से पैसे निकाले और नीरव को देने लगे।

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नीरव ने पैसों को लेते हुये कहा- “बाद में दे देना अभी जरूरत हो तो रखिए..”

अंकल ने निराशा से कहा- “नहीं बेटा, पैसों की कोई प्राब्लम नहीं, पूरा इंतजाम है...”

नीरव शायद उनकी ये निराशा आंटी की बीमारी की वजह से समझ रहा होगा, पर सच तो मैं जानती थी की अंकल क्यों इतने निराश हो गये हैं। मैं अंकल के पैंट के ऊपर से दिख रहे उभरे भाग को देखकर मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।

मेरी मुश्कान देखकर अंकल अकड़ रहे थे। तभी नीरव बाथरूम में गया तो अंकल धीरे से फुसफुसाए- इतना क्यों हँस रही हो?

मैंने शरारत से कहा- “आज अंकल का प्लान फेल हो गया इसलिए...”

अंकल ने कहा- “तुम अंकल को नहीं जानती... मैं अभी भी तुझसे मेरी मूठ मरवा सकता हूँ...”

मैंने पूछा- “नीरव के सामने...”

अंकल- “हाँ, उसके सामने...”

मैं- “हो ही नहीं सकता...”

अंकल- “तुम मुझे चैलेंज करती हो?” अंकल इतना बोले थे कि नीरव बाहर आ गया तो अंकल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

नीरव आकर मेरे बाजू में बैठ गया और बोला- “वो भाई नहीं आए अब तक?”

अंकल ने कहा- “थोड़ी देर में आ जाएंगे फिर आप दोनों निकलो...” कहकर अंकल नीरव से हमारे बिजनेस के बारे में पूछने लगे और साथ में वो केयूर के बारे में भी बात करते रहे।

थोड़ी देर बाद अंकल खड़े हुये और बोले- “बिटिया तुम आई हो तो आंटी के कपड़े चेंज कर देते है...” आंटी को हास्पिटल से दिया हुवा गाउन पहनाया हुवा था।

वो देखकर मैं बोली- “अंकल इसे चेंज करने की क्या जरूरत है? और इसको तो नर्स ही चेंज कर देती होगी ना?” मैंने मन ही मन अंकल को चैलेंज दे दी थी और मुझे इसमें भी उनकी कोई साजिश नजर आ रही थी और मुझे इस नये खेल को ज्यादा रोचक बनाना था।
 
थोड़ी देर बाद अंकल खड़े हुये और बोले- “बिटिया तुम आई हो तो आंटी के कपड़े चेंज कर देते है...” आंटी को हास्पिटल से दिया हुवा गाउन पहनाया हुवा था।

वो देखकर मैं बोली- “अंकल इसे चेंज करने की क्या जरूरत है? और इसको तो नर्स ही चेंज कर देती होगी ना?” मैंने मन ही मन अंकल को चैलेंज दे दी थी और मुझे इसमें भी उनकी कोई साजिश नजर आ रही थी और मुझे इस नये खेल को ज्यादा रोचक बनाना था।

अंकल- “तुम्हारी बात सही है बिटिया, पर इस बूढ़े का पागलपन कहो या जो समझो आप लोग। मैं तुम्हारी आंटी को हमारी शादी का जोड़ा पहनाना चाहता हूँ, और उसके लिए मैंने डाक्टर से भी बात कर ली है...” अंकल ने बड़े भावुक लब्जों में कहा।

नीरव- “जाओ निशा आंटी के कपड़े चेंज करो। सच में अंकल प्यार करना तो आपसे सीखना चाहिए, इस उमर में भी आप बहुत प्यार करते हैं आंटी से..." नीरव ने कहा।

मैं खड़ी होकर आंटी के पास गई, अंकल भी खड़े हो गये ओर पास में पड़ी प्लास्टिक की बैग ले आए, उसमें रेड कलर के कपड़े थे। अंकल ने बैग में से वो कपड़े निकाले, वो कपड़े पेटीकोट, ब्लाउज और साड़ी थी।

अंकल- “बिटिया तेरी आंटी के कपड़े चेंज करने में मैं भी तुझे मदद करूंगा...” अंकल ने आंटी के गाउन को पैरों से ऊपर करते हुये कहा।

ये देखकर नीरव खड़ा हो गया और बाहर जाने लगा।

ये देखकर मैं अंकल का दांव समझ गई की वो नीरव को बाहर निकलकर मुझे... पर उन्होंने तो नीरव के सामने मूठ मारने की चैलेंज मारी थी ना, इसमें तो मैं जीत जाऊँगी। पर ये क्या?

अंकल ने नीरव को रोका- “बैठो बेटा, बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं..”

नीरव- “पर अंकल..." नीरव ने इतना कहा की अंकल ने उसकी तरफ हाथ करके आगे बोलने से रोक लिया और फिर वो रूम के बाहर चले गये।

मुझे अंकल की एक भी बात समझ में नहीं आ रही थी।

एकाध मिनट बाद अंकल अंदर आए तो उनके हाथ में ग्रीन कलर का बड़ा कपड़ा था, उन्होंने नीरव को वो कपड़ा पकड़ने को कहा। रूम के एक कोने की तरफ पलंग था और दूसरे कोने पे इंडियन साइटिंग था। जहां नीरव बैठा था वहां से वो आया। अंकल ने उसे एक हाथ में कपड़ा थमाया और आमने सामने दीवार की खिड़की पर बाँधने को कहा। कपड़ा बाँधते ही रूम के दो भाग हो गये, एक भाग में आंटी का पलंग और दूसरे भाग में गेस्ट की बैठने की जगह। लेकिन पर्दा इतना नीचा बाँधा था की हम एक भाग में खड़े होकर दूसरे भाग में खड़े लोगों का चेहरा देख सकते थे।

कपड़ा बाँधकर नीरव अपनी जगह पे जाकर बैठ गया और अंकल ने मेरी तरफ आँख मारते हुये कहा- “चल आ जा बिटिया कपड़े निकालते हैं...”

मैं मुश्कुराई, और मन में- “हरामी बूढा दो अर्थी भाषा में बोलता है...”

उस तरफ जाते ही मैंने आंटी का गाउन ऊपर किया तो अंकल ने उन्हें पकड़कर बिठाया और हम दोनों ने मिलकर आंटी का गाउन निकाल दिया। आंटी का बदन इस अवस्था में भी आकर्षक लग रहा था, सच में उन्होंने अपने फिगर को इस उमर में भी अच्छा मेंन किया हुवा था। मैंने हाथ में ब्लाउज लिया और मैं वो आंटी को पहनाने गई।

तब अंकल ने उसे खींच लिया और कहा- “ये मैं कर लूंगा, तुम नीचे देखो...”
 
मैंने नीचे देखा तो अंकल का लण्ड बाहर था, मैंने भी वैसे ही धीमी आवाज में उन्हें कहा- “क्या करूं मैं? हमारी शर्त तो नीरव के देखते करने की थी वो कहां हमें देख रहा है?”

अंकल- “वो सामने बैठा देख तो रहा है। कितना दिख रहा है और क्या देख रहा है उसमें मैं क्या करूं?”

मैंने नीरव की तरफ नजर डाली तो वो मोबाइल में गेम खेल रहा था।

अंकल- "नीरव बेटा, तुम शर्माते बहुत हो। हम लोग दिख रहे हैं उसमें तो तुझे कोई प्राब्लम नहीं है ना?" अंकल ने आवाज को ऊंची करके पूछा।

नीरव- “अरे अंकल, सिर्फ आप लोग दिख रहे हैं, आंटी नहीं दिख रही...” नीरव ने कहा।

अंकल- “बस अब खुश, उसने कहा ना की हम दिख रहे हैं, चल अब मुझे मूठ मार दे...” अंकल ने कहा।

मैं- “ओके बाबा...” कहकर मैंने अंकल का लण्ड पकड़ा और हाथ को गोल बनाकर मैं लण्ड को हिलाने लगी। सामने नीरव बैठा था और मेरे हाथ में अंकल का लण्ड था, जो मैं हिला रही थी। ये सब मुझे इतना ज्यादा रोमांचित (साथ में थोड़ा डर भी था) कर रहा था की मेरी चूत गीली हो गई थी।

अंकल का लण्ड ढीला था, शायद उनके लण्ड के अंदर की नशों में नरमाई आ गई थी। अंकल ने आंटी को ब्लाउज पहना दिया था और वो अब ब्लाउज के हुक बंद कर रहे थे।

तभी एकदम से नीरव खड़ा हुवा तो मैं डर गई, और मैंने अंकल के लण्ड को मेरे हाथों की गिरफ्त से छोड़ दिया। नीरव पर्दे के नजदीक आया। मैंने मेरी नजरें झुका दी, अंकल का लण्ड अभी भी बाहर ही लटक रहा था वो देखकर मेरा डर बढ़ गया।

नीरव- “अंकल, आप लोग अपना काम शांति से कीजिए, मैं बाहर बैठा हूँ...” कहकर नीरव दरवाजे की तरफ मुड़ गया।

अंकल- “अरे बैठो ना बेटा, ये पर्दा है ना... हमें तुमसे कोई परेशानी नहीं...” इतना कहकर अंकल ने मेरी तरफ देखा और बोले- “बोलो ना बिटिया नीरव को बैठने को, हम तो हमारा काम कर ही रहे हैं ना?”
 
तभी एकदम से नीरव खड़ा हुवा तो मैं डर गई, और मैंने अंकल के लण्ड को मेरे हाथों की गिरफ्त से छोड़ दिया। नीरव पर्दे के नजदीक आया। मैंने मेरी नजरें झुका दी, अंकल का लण्ड अभी भी बाहर ही लटक रहा था वो देखकर मेरा डर बढ़ गया।

नीरव- “अंकल, आप लोग अपना काम शांति से कीजिए, मैं बाहर बैठा हूँ...” कहकर नीरव दरवाजे की तरफ मुड़ गया।

अंकल- “अरे बैठो ना बेटा, ये पर्दा है ना... हमें तुमसे कोई परेशानी नहीं...” इतना कहकर अंकल ने मेरी तरफ देखा और बोले- “बोलो ना बिटिया नीरव को बैठने को, हम तो हमारा काम कर ही रहे हैं ना?”

अंकल की बात सुनकर नीरव ने मेरी तरफ देखा। मैंने मेरी नजरें तो ऊपर उठा ली थी पर मेरा इर इतना ज्यादा बढ़ गया था की, एसी रूम था फिर भी मैं पसीने से तर-बतर हो गई थी। मैंने मेरे गले से थूक नीचे उतारा और सिर्फ सिर हिलाकर हाँ कहा।

नीरव- “अंकल, निशा की हालत तो देखिए? कितनी गर्मी हो रही है उसे, इस पर्दे की वजह से हवा उस तरफ नहीं आ रही, एसी गेस्ट की बैठक की तरफ है...” इतना कहकर नीरव रूम से बाहर निकल गया।

नीरव के बाहर निकलते ही अंकल पर्दे के उस तरफ गये और दरवाजे को अंदर से बंद करके मेरी तरफ मुड़कर बोले- “आ जा बाहर, नीरव बोलकर गया है अपना काम शांति से करो...”

मैंने पर्दा उठाकर बाहर देखा तो अंकल का लण्ड पैंट के बाहर ही था, किसी घड़ी के डंके की तरह नीचे की तरफ झुका हुवा था। मैंने अंकल के लण्ड की तरफ इशारा करके पूछा- “ऐसे ही चले गये थे दरवाजा बंद करने, कोई सामने से आकर खोल देता तो?”

अंकल- “ऐसा हो ही नहीं सकता बेटा, तेरा पति बाहर जो खड़ा है हमारी चौकीदारी करने। मैं तो ये दरवाजा भी बंद ना करूं, पर तेरे डर की वजह से बंद किया है, बाकी जब तक नीरव बाहर खड़ा है, हमें कोई टेंशन करने की जरूरत नहीं..”

अंकल की बात तो सही थी, फिर भी मुझे पसंद नहीं आई। और मन ही मन बोल उठी- “हरामी बूढे..” और मैं पर्दे के इस तरफ आ गई। पर्दे के उस तरफ आते ही अंकल ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा, तो मैंने उनपर बनावटी गुस्सा करते हुये कहा- “थोड़ा धीरज रखिए अंकल, जल्दी क्या है?”

अंकल- “जल्दी तो होगी ही ना... तेरी जैसी हसीना के तो जवानी में सपने भी नहीं देखे थे...” कहते हुये अंकल मेरी गर्दन को चूमने लगे।

मैंने मेरे दोनों हाथों से उनके सिर के दबाया और धीरे-धीरे पीछे होने लगी।
जैसे-जैसे मैं अपने कदमों को पीछे लेती गई वैसे-वैसे अंकल भी मेरे साथ-साथ अपने कदम मिलाते गये। चलते-चलते भी अंकल मेरी गर्दन से लेकर मेरे खुले सीने को चूम और चाट रहे थे। दसेक कदम पीछे चलने के बाद मैं वहां आ गई जहां थोड़ी देर पहले नीरव बैठा हुवा था। मैं बैठ गई तो अंकल थोड़ा झुक गये पर उन्होंने अपना चूमना रोका नहीं। मैंने अंकल के सिर को छोड़ा और उनका चेहरा ऊपर उठाया। मेरी गर्दन उनके थूक से भीग चुकी थी और वहां से अजीब गंध आ रही थी। जिससे मुझे खुशबू भी नहीं आ रही थी तो वहां से मुझे बदबू भी नहीं आ रही थी।
 
अंकल ने मुझे खड़ा किया और फिर झुक के नीचे से मेरी साड़ी और पेटीकोट ऊपर उठाकर मेरी चूत पर उनके बायें हाथ का अंगूठा दबाया और फिर मुझे किस करते हुये कहा- “बैठ जाओ निशा रानी, आज तो तुझे बिठाकर तेरी चुदाई करूँगा...”

अंकल की बात सुनकर मैं बैठ गई, अंकल मेरे दोनों पैरों के बीच आ गये। उन्होंने मुझे मेरे पैर उठाकर उनकी कमर के चौतरफा लगाने को कहा। मैंने वही किया। अब अंकल अपने लण्ड को मेरी चूत के ऊपर घिसने लगे।

मैं मेरा हाथ वहां ले गई और उनके लण्ड को पकड़कर सहलाने लगी जिससे उनके लण्ड में ज्यादा कसाव आया और थोड़ा ज्यादा बड़ा होकर ठुमके मारने लगा, मैंने लण्ड को मेरी चूत के द्वार पर रखा और अंकल को कहाधक्का लगाइए अंकल...”

अंकल- “क्या? कहां धक्का मारूं?" अंकल ने अपने खास अंदाज में पूछा।

मैं- “मेरी चूत में..” मैंने भी शर्म और संकोच छोड़ दिया और मेरे बोलते ही अंकल ने फिर से झटका मारा।

अंकल- “किससे धक्का मारूं?” अंकल ने फिर पूछा।

मैं- “आपके लण्ड से..."

और मेरे इस जवाब ने तो अंकल के लण्ड पे झाडू कर दिया। उसने जोर से झटका लगाकर मेरी चूत को सलामी दी और फिर अंदर दाखिल हो गया। अंकल का लण्ड अंदर आते ही मेरे बदन में मीठी सी लहर आ गई। मेरी चूत ने भी उनके लण्ड को जकड़ लिया। थोड़ी देर रुक के अंकल ने अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके मेरी चुदाई चालू की।

मेरी टाँगें उनकी कमर पे थी और अंकल जब भी लण्ड को चूत के अंदर डालते थे तब मैं टांगों को कमर पे सख्ती से भींच देती थी और वो अंदर से बाहर खींचते थे तब मैं मेरी गिरफ्त को खोल देती थी। अंकल ने दोनों हाथों से बैठक को पकड़ा हुवा था, मेरी गाण्ड को मैंने सरका के बैठक के आगे की हुई थी। अंकल चोदते हुये। झुक के मेरी गर्दन को फिर से चूमने, चाटने लगे थे।
 
मेरी टाँगें उनकी कमर पे थी और अंकल जब भी लण्ड को चूत के अंदर डालते थे तब मैं टांगों को कमर पे सख्ती से भींच देती थी और वो अंदर से बाहर खींचते थे तब मैं मेरी गिरफ्त को खोल देती थी। अंकल ने दोनों हाथों से बैठक को पकड़ा हुवा था, मेरी गाण्ड को मैंने सरका के बैठक के आगे की हुई थी। अंकल चोदते हुये। झुक के मेरी गर्दन को फिर से चूमने, चाटने लगे थे।

मेरे और अंकल के मुँह से सिसकारियां गूंजने लगी थीं। तभी मुझे शरारत सूझी और मैंने मेरा हाथ नीचे किया और जैसे ही अंकल का लण्ड बाहर आया तो मैंने उसे पकड़ लिया तो अंकल रुक गये।

तब मैंने मादक आवाज में कहा- “चोदो ना अंकल...”

मेरे बोलते ही अंकल के लण्ड ने झटका मारा और ज्यादा सख्त हो गया। मैंने लण्ड छोड़ दिया और अंकल ने फिर से चुदाई चालू कर दी।

मुझे ज्यादा मजा आने लगा, मैंने अंकल का शर्ट ऊपर किया और उनकी पीठ सहलाने लगी और बोलने लगी

चोदो अंकल, जोर से चोदो...” बोलते हुये मेरी सांसें भारी होने लगी थी।

अंकल- “वाह बिटिया वाह... तुम तो बहुत काबिल बन गई चुदवाने में...” कहते हुये अंकल ने और स्पीड बढ़ाई।

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अंकल की भी आवाज मेरी तरह ही हो गई थी और मैं अंकल को उकसा रही थी अलग-अलग तरीकों से। धीरेधीरे मुझे मेरी मंजिल करीब दिखने लगी थी। अंकल की भारी सांसों की आवाज से लग रहा था शायद वो भी मेरी तरह मंजिल के करीब हैं। अंकल ने गर्दन चूमना बंद किया और अपना सिर ऊपर करके मेरे होंठों को उनके होंठों से चूसना चालू किया। अंकल मेरे ऊपर के होंठ चूस रहे थे और मैं उनके नीचे के होंठ चूस रही थी। आज अंकल जवान हो गये थे, और वो अपनी रफ़्तार बढ़ाते ही जा रहे थे।

थोड़ी देर ऐसे ही हम दोनों चुदाई करते-करते एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे, 3-4 मिनट निकल गये और मुझे लगा की मैं सातवें आसमान पर उड़ रही हूँ। मैं झड़ गई और मेरे साथ-साथ अंकल भी झड़ गये। झड़ते वक़्त अंकल ने अपनी जीभ बाहर निकाली, जो मैंने मेरे दोनों होंठों के बीच ले ली और उसे चूसने लगी। आज भी अंकल ने बहुत कम वीर्य मेरी चूत में छोड़ा।

झड़ने के आधे मिनट बाद अंकल तुरंत खड़े हो गये और बोले- “जल्दी करो निशा रानी, हमारे कपड़े पहनने के बाद हमें आंटी को भी तैयार करना पड़ेगा..."

अंकल की बात सुनकर मैं भी फटाफट खड़ी हो गई, और मेरे कपड़े और बालों को ठीक करने लगी।

फिर मैंने और अंकल ने आंटी के कपड़े बदले और रूम का दरवाजा खोल दिया। बाहर नीरव नहीं था। थोड़ी देर बाद नीरव और वो भाई दोनों एक साथ रूम में आए।

नीरव ने आकर अंकल को कहा- “हम निकलते हैं अंकल..” इतना कहकर नीरव ने मेरी तरफ देखकर कहा- “चलो निशा, निकलते हैं..."

मैंने सिर हिलाते हुये निकलने का इशारा किया और रूम के बाहर निकल गई, और मेरे पीछे नीरव भी बाहर निकल आया।

पीछे से अंकल की आवाज आई- “बिटिया हर रोज आया कर, हम आंटी के कपड़े बदलते रहेंगे...”
 
अंकल की बात सुनकर मेरा दिल धड़क उठा की नीरव कहीं समझ न जाय अंकल की बात। मुझे अंकल पे बहुत गुस्सा आया और मैं मन ही मन बड़बड़ा उठी- “हरामी बूढ़ा...”

रास्ते में मैंने नीरव से पूछा- कहां चले गये थे तुम?

नीरव- “भूख लगी थी, नाश्ता करने गया था..” नीरव ने कहा।

नीरव की बात सुनकर मैं सोच में पड़ गई की बात तो सही है नीरव की। भूख तो मिटानी ही पड़ती है इंसान को फिर चाहे वो कोई भी भूख हो... पेट की हो या जिम की? इंसान को अपनी भूख तो मिटानी ही पड़ती है। पर। इंसान को सिर्फ अपनी ही भूख के बारे में नहीं सोचना चाहिए। सामने वाले की भूख को भी पहचानना पड़ता है। मैं नीरव की पेट की भूख जानती हूँ, उसकी पसंद, नापसंद के बारे में जानती हूँ। उसे क्या भाता है वो मैं अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन मेरे जिश्म की भूख उसकी समझ में कब आएगी?

नीरव- “निशा गाड़ी से उतरो, घर आ गया। क्या सोच रही हो तुम?” नीरव की आवाज सुनकर मैं मेरी सोच में से बाहर आई और हड़बड़ा गई।

मैं- “नहीं नहीं कुछ भी तो नहीं, मैं क्या सोचूं?” मैंने पूछा।

नीरव- “कब से कह रहा हूँ, पर तुम तो सुन ही नहीं रही थी..” नीरव ने कहा।

मैं कोई जवाब दिए बगैर गाड़ी से उतर गई और नीरव गाड़ी पार्क करने गया। मैं लिफ्ट के पास गई और नीरव के आने की राह देखने लगी।

तभी सीढ़ियों से रामू आया और मेरे हाथ में फिल्म की सीडी देकर बोला- “मेमसाब अकेली हो तब देखना.." और वो फिर से सीढ़ियां चढ़ गया।

सीडी तो ले ली मैंने, पर मेरा पूरा मस्तिष्क हिल गया। मेरे दिमाग में ढेरों सवाल खड़े हो गये थे की सी.डी. में क्या होगा? तभी नीरव को आते देखकर मैंने जल्दी से सी.डी. पर्स में डाल दी।

 
मैं कोई जवाब दिए बगैर गाड़ी से उतर गई और नीरव गाड़ी पार्क करने गया। मैं लिफ्ट के पास गई और नीरव के आने की राह देखने लगी।

तभी सीढ़ियों से रामू आया और मेरे हाथ में फिल्म की सीडी देकर बोला- “मेमसाब अकेली हो तब देखना.." और वो फिर से सीढ़ियां चढ़ गया।

सीडी तो ले ली मैंने, पर मेरा पूरा मस्तिष्क हिल गया। मेरे दिमाग में ढेरों सवाल खड़े हो गये थे की सी.डी. में क्या होगा? तभी नीरव को आते देखकर मैंने जल्दी से सी.डी. पर्स में डाल दी।

घर के अंदर दाखिल होते ही मैं नहाने चली गई और सोचने लगी की रामू मुझे ये सी.डी. क्यों दे गया होगा? और उसके अंदर क्या होगा? तभी मेरे दिमाग में एक बात आई की आजकल एम.एम.एस. बहूत बन रहे हैं। लड़के लड़कियों की चुदाई करते वक़्त मोबाइल से वीडियो उतार लेते हैं और फिर बाद में उसे ब्लैकमेल करते हैं। कहीं रामू ने तो हमारी वीडियो नहीं बनाई होगी ना? पहले उसने मोबाइल में ले लिया होगा और फिर उसकी । सी.डी. तो नहीं बनाई होगी ना? रामू इतना कर सकता है क्या? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मेरा बदन डर के करण थरथराने लगा, मुझे रोना आ गया।

मैं आवाज निकाले बिना धीरे-धीरे रोती हुई नहाने लगी। थोड़ी देर ऐसे ही नहाने के बाद मेरा दिल थोड़ा हल्का । हुवा तो मैं खड़ी होकर मेरा बदन पोंछकर गाउन पहनकर बाहर निकली। बाहर आकर देखा तो नीरव सो गया था। नीरव को सोते देखकर मेरे दिल को थोड़ा सकून मिला। मैंने पर्स में से सी.डी. निकाली और धीमे कदमों से रूम के बाहर निकली और टीवी के पास आई। टीवी ओन करके आवाज मूट किया और फिर डी.वी.डी. प्लेयर चालू । किया और कंपकंपाते हाथों से सी.डी. को अंदर डाला। स्क्रीन पे अंधेरा दिख रहा था और मेरे दिमाग में भी। मेरा कदम डगमगा रहा था, मैं डरते हुये टीवी की स्क्रीन पे आँख गड़ाए खड़ी थी और सोच रही थी की अब क्या होगा?

मेरे बदन में आग लगी हुई थी, मैं मेरी चूत को उंगली से चोद रही थी, दूसरे हाथ से मैं मेरी चूचियों को दबा रही थी। मेरी आँखों के सामने थोड़ी देर पहले देखी हुई ब्लू-फिल्म के दृश्य चल रहे थे। मूवी इंग्लिश थी पर। उसका टाइटल हिन्दी में था, शायद उसके डायलोग भी हिन्दी में होगे। पर रात के 2:00 बजे तो टीवी की आवाज रखकर मैं नीरव को जगा नहीं सकती थी। टाइटल कितना अजीब था- ‘छोटा छेद, बड़ा इंडा'

सीडी चालू होते ही मेरा डर खतम हो गया था, क्योंकि रामू ने मुझे ब्लू-फिल्म की सी.डी. देखने को दी हुई थी। मैंने पहले भी ब्लू-फिल्में देखी थी पर आज देखने में मुझे ज्यादा इंटरेस्ट हुवा। शायद उसका करण ये भी था की आजकल सेक्स में मेरी दिलचस्पी बढ़ चुकी थी।

मैंने पहले जो फिल्में देखी थी उससे ये थोड़ी अलग किश्म की फिल्म थी। मैंने अब तक देखी हुई फिल्मों में । लड़के-लड़कियां सफेद ही देखे थे। पर इस फिल्म में सारे लड़के ब्लैक और लड़कियां सफेद थीं, साथ में लड़कियां कम उमर की और जीरो साइज के फिगर की थीं। लड़कों की उमर तो वोही थी, पर सब सुपरमैन जैसे थे। सारे लड़कों की बाडी किसी भारी भरकम मुक्केबाज जैसी थी। फिल्म के अंदर 5 कपल के अलग-अलग सेक्स दृश्य थे। अच्छे तो सभी थे पर एक सेक्स दृश्य मुझे बहुत ज्यादा पसंद आया था, क्योंकि उस दृश्य के माडल सबसे ज्यादा अच्छे थे।

उसके अंदर लड़की की चूत धनुष के आकर की थी, जिसे चाट-चटकार लड़का लड़की को चीख पड़ने पर मजबूर कर देता है (आवाज तो बंद थी पर देखने से भी मालूम पड़ रहा था) और बाद में लड़की भी लड़के का लण्ड चाटकर उससे चुदाई करवाती है। सारा नजारा याद करते हुये मैं न जाने कितनी देर तक उंगली को चूत के अंदर-बाहर करती रही और थोड़ी देर बाद झड़ गई। झड़ने के बाद मैं तुरन्त सो गई।

सुबह गोपाल चाचा के दूध देकर जाने के बाद मैं हर रोज की तरह फिर से सोई नहीं। मैं नहाने बैठ गई पर साथ में नीरव के शेविंग का सामान ले गई। आज से पहले तो मैं वैक्स करते वक़्त ही कांख भी करा देती थी जिसमें वो नीचे के बाल भी साफ कर देते थे।

 
नहाने से पहले मैंने ध्यान से मेरी चूत के बाल की सफाई कर दी। सफाई करने के बाद मैंने वहां हाथ लगाकर चेक करके देखा की कहीं कोई बाल तो नहीं रह गया ना... मेरी चूत इतनी चिकनी हो गई थी की हाथ सर्र से सरक जाता था।
हर रोज से थोड़ी ज्यादा देर नहाकर मैं बाहर आई तब तक 8:00 बज गये थे। मैंने गैस पे चाय बनाने को रखी और नीरव को जगाया। नीरव के जाने के बाद मैंने जल्दी-जल्दी खाना बनाया और टिफिन भर के मैंने बाहर रख दिया और मैं खाना खाने बैठ गई। खाना खाते हुये मैंने फिर से वो सी.डी. लगाई। मैंने फिर से हर दृश्य देखा और मेरे पसंदीदा दृश्य तो मैंने 3 बार देखे। डायलोग हिन्दी में ही थे पर कोई दमदार नहीं थे। उससे तो अच्छा इंग्लिश में होता तो ज्यादा मजा आता। देखते-देखते मैं फिर से गरम हो चुकी थी, तभी बेल बाजी और मैंने टीवी और डी.वी.डी. प्लेयर को आफ करके दरवाजा खोला तो सामने रामू था।
मैं दरवाजा खुला छोड़कर बेडरूम में चली गई।

आधे घंटे बाद रामू की आवाज आई- “जा रहा हूँ मेमसाब...”

मैं- “रामू 10 मिनट रुकना...” मैंने रामू को कहा।

थोड़ी देर बाद मैंने बेडरूम का दरवाजा खोला और रामू के सामने मैं मेरी कमर पे एक हाथ लगाकर खड़ी हो । गई। रामू फटी आँखों से मुझे देखने लगा। शायद उसे अपनी आँखों पर विस्वास नहीं हो रहा था, होता भी कैसे उसके सामने मैं आज हुश्न की परी बनकर खड़ी थी।

मैंने ब्लैक कलर की नाइटी पहनी हुई थी, जो मेरी मखमली जांघ के दीदार करा रही थी। साथ में नाइटी स्लीवलेश थी, जो मेरे कोमल हाथों को उजागर कर रही थी, और ऊपर के कट से मेरी आधी चूची बाहर दिख रही थी। मैंने हल्का सा मेकप किया था जो मेरी सुंदरता पे चार चाँद लगा रहा था। रूम में मैंने एसी ओन करके रूम स्प्रे कर दिया था, जिसकी मादक-मादक खुशबू तो शायद रामू ने आज तक ली नहीं होगी।

रामू- “मैं कहा हूँ मेमसाब? मरकर स्वर्ग में तो नहीं पहुँच गया ना?” रामू मदहोशी की हालत में इतना बोलकर चुप हो गया।
 
मैंने ब्लैक कलर की नाइटी पहनी हुई थी, जो मेरी मखमली जांघ के दीदार करा रही थी। साथ में नाइटी स्लीवलेश थी, जो मेरे कोमल हाथों को उजागर कर रही थी, और ऊपर के कट से मेरी आधी चूची बाहर दिख रही थी। मैंने हल्का सा मेकप किया था जो मेरी सुंदरता पे चार चाँद लगा रहा था। रूम में मैंने एसी ओन करके रूम स्प्रे कर दिया था, जिसकी मादक-मादक खुशबू तो शायद रामू ने आज तक ली नहीं होगी।

रामू- “मैं कहा हूँ मेमसाब? मरकर स्वर्ग में तो नहीं पहुँच गया ना?” रामू मदहोशी की हालत में इतना बोलकर चुप हो गया।

मैं धीरे-धीरे पीछे जाने लगी और बेड पर जाकर लेट गई। रामू मदहोशी के आलम में घिरा हुवा धीमे कदमों से बेड के पास आया, और मुझे निहारने लगा। शायद अब भी उसे अपनी किश्मत पे भरोसा नहीं हो रहा था।

उसने मेरी टांगों को पकड़ा और मुझे खींचकर बेड की किनारे पे ले लिया और मेरी नाइटी को ऊपर किया। नाइटी ऊपर होते ही रामू के मुँह से लार टपक पड़ी। वो मेरी सफाचट चूत को देखकर पागल हो गया। उसने उसके एक हाथ से 3-4 बार मेरी चूत को सहलाया और फिर मुझे बिठाकर मेरी नाइटी निकाल दी।

रामू के सामने पूरी नंगी मैं पहली बार हुई थी। वो फिर से एकटक मुझे निहारने लगा। मानो इस पल को वो हमेशा के लिये अपने दिलो-दिमाग में कैद कर लेना चाहता हो। फिर उसने झुक के मेरी चूत में उंगली डाली। मेरी चूत गीली तो हो ही गई थी, जिससे उसकी उंगली गीली हो गई। गीली उंगली मुँह में डालकर उसने चाटी और फिर मेरी चूत के नीचे के हिस्से पर उसने अपनी जबान लगाई।
मैं सिहर उठी।

रामू ने उसकी जबान से चूत नीचे के हिस्से को चाटना चालू किया और फिर वो जबान को ऊपर तक ले गया, और इस तरह उसने पूरी चूत के बाहरी हिस्से को चाटा तो मेरे न चाहते हुये भी दो मिनट के लिए मेरी आँखें बंद हो गई और मैं सिसकियां लेने लगी। रामू ने अब एक हाथ की दो उंगली से चूत को खींचा और चूत में दूसरे हाथ की उंगली डाल दी और वो उसे अंदर-बाहर करते हुये चूत के अंदर के हिस्से को चाटने लगा।

मैं मचलने लगी, रामू के बालों को सहलाने लगी।

थोड़ी देर बाद रामू ने उंगली से चोदना बंद कर दिया और सिर्फ अंदर तक जबान डालकर मेरी चूत की चुसाई। करने लगा। रूम के अंदर मेरी मादक सिसकारी गूंजने लगी। मैं अब मेरा धैर्य खो बैठी थी, और नागिन की तरह रेंगने लगी थी। मेरी सांसें भारी होती जा रही थी, मैं जोरों से लंबी-लंबी सिसकारियां लेते हुये मदहोश होती जा । रही थी। मेरे हाथों ने रामू के बालों को खींचना चालू कर दिया था, मुझे अब मालूम हो चुका था की मैं अब कभी झड़ सकती हूँ।

रामू ने अपने हाथ को ऊपर किया और मेरी चूचियां सहलाना शुरू कर दिया और कुछ पल के बाद मैं झड़ गई। झड़ते वक़्त मैंने रामू के बाल खींचकर उसे चूसना बंद करने को कहा पर उसने चूसना चालू रखा, और पूरी चूत चाटने के बाद वो उठा और बोला- “मेमसाब आपकी चूत का पानी तो अमृत जैसा है...”

रामू की बात सुनकर मेरे मन में खयाल आया की अगर मेरी चूत का पानी सच में अमृत है तो, आज वो देव की जगह दानव को मिला है। झड़ने के बाद, थोड़ी देर तक मैं मेरे दोनों हाथ ऊपर की तरफ करके आँखें बंद । करके पड़ी रही। दिन का उजाला, पूरी नंगी, मेरी कमर तक का बदन बेड पर और टाँगें जमीन पर लटकी हुई, हाथ ऊपर की तरफ किए हुये थी, जिससे मेरे उरोज भी ऊपर खिंच गये थे। इस पोज में तो आज तक नीरव ने भी कभी मुझे नहीं देखा था।

तभी मेरे उरोजों पर स्पर्श होते ही मैंने आँखें खोल दीं। रामू मेरे उरोजों को सहला रहा था उसकी रूखी और सख्त हथेलियां मेरे उरोजों को कहीं खरोंच न दें ऐसा डर मुझे लगने लगा।
 
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