desiaks
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#36
पिताजी तो चले गए थे पर मैं ये नहीं जानता था की आज का दिन बेहद मुश्किल होने वाला था मेरे लिए, क्योंकि उनके जाने के बाद एक और गाड़ी आ रुकी मेरे दर पर जिसकी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी .
एक गाड़ी , उसके बाद एक और उसके बाद एक और तीन गाडियों में लोग भरे हुए थे,
पहली गाड़ी से सुमेर के दोस्त लोग उतरे, सबके हाथो में हथियार थे, मेरे माथे पर बल पड़ गए. मेरा बाप सही चेता के गया था मुझे ,
“तुझे तेरे किये की सजा मिलेगी ” उनमे से एक चिल्लाते हुए बोला
“मैंने नहीं मारा उस को ” मैंने कहा
पर इन्सान की आँखों पर जब नफरत और क्रोध का पर्दा पड़ा हो तो उसे कहा कुछ दिखाई देता है, उनके दिल में बस मुझसे बदला लेना लिखा था .
“मारो साले को, ” उसने अपने साथियों से कहा और मार पिटाई शुरू हो गयी, मैं उन चुतियो को समझाना चाहता था पर उन को तो पड़ी लकड़ी उठानी थी. मुझे भी गुस्सा चढ़ आया था , मार पिटाई में मेरे हाथ भी हथियार लग गया मैं भी पूरी कोशिश करने लगा, पर ये कोई फिल्म तो थी नहीं की सारे गुंडों को पेल दे , और न मैं कोई हीरो, कितना प्रतिरोध कर पाता दर्जन भर लोगो का , मेरे घुटने टिकने लगे थे,
शरीर पर चारो तरफ से मार पड़ रही थी और फिर वो पल भी आया जब पैर लडखडा गए, मैं धरती पर गिर गया.
“उठ साले, उठ अभी तो तुझे और दर्द देना है, हमारे भाई को हमसे छीना है तूने , उसकी चिता ठंडी होने से पहले तेरी चिता जला देंगे हम उठ ” उनमे से एक ने मेरे पेट पर लात मारते हुए कहा .
पसलियों पर पड़ी लात से मैं बुरी तरह बिलबिला उठा . और संभलने का मौका मिलता उस से पहले ही एक के बाद एक लाते पड़ने लगी मेरे जिस्म पर, होंठो से, मुहसे , खून निकलने लगा, आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा. मदद की बहुत जरुरत थी पर दूर दूर तक कोई नहीं था, और वो हरामजादे कहाँ रुकने वाले थे,
धरती मेरे खून से लाल होने लगी थी, अपने बदन में कुछ टूटते हुए मैं महसूस कर रहा था , आँखे बंद हो रही थी सांस जैसे टूटने लगी थी, वो क्या कह रहे थे मुझे कुछ पता नहीं , कुछ खबर नहीं और फिर धीरे धीरे सब शांत हो गया. सन्नाटा छा गया.
दूर कहीं-
मेघा एक ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ पर वो पहले कभी नहीं आई थी ,
“सच कहता है कबीर इस जंगल ने न जाने क्या क्या छुपाया हुआ है,” मेघा ने कहा
उसने कुल्हाड़ी से बीच में आई टहनियों को काटा और उन सीढियों पर चढ़ती गयी, टूटी फूटी सीढियों पर चढ़ते हुए आखिर वो छोर पर जा पहुंची और एक पल को उसका सर चकरा गया , ये एक चोकोर घेरा था , बीच में एक गड्ढा था , चारो तरफ पक्की चिनाई , मेघा आंकलन करने में जुटी थी इस जगह की उस बेचारी को तो भान भी नहीं था की वो खुद नहीं बल्कि तकदीर उसे आज उस जगह पर ले आई है .......................
उस सुनसान जगह में एक अद्भुद आकर्षन था जिसने खींच लिया था मेघा को , कभी वो इधर घुमे कभी उधर, पागलो की तरह वो टहनी, झाड़ियो को काट रही थी , फिर उसे कुछ और सीढिया दिखी जो निचे को उतरती थी मेघा ने अपने पैर उधर बढाए, कुछ सीढिया उतरी वो निचे, हर तरफ काई जमी थी, बरसो से कोई नहीं आया था शायद इस तरफ,
पर वो ज्यादा निचे उतर नहीं पायी, एक सरसराहट ने उसका ध्यान खींच लिया और वो वापिस उपर की तरफ आ गयी,
“कोई जानवर होगा, ” अपने आप से बोली
“पर ये जगह क्या है , एक मिनट एक मिनट , ऐसी ही तो किसी जगह की तलाश थी मुझे, जहाँ मैं और कबीर मिल सके , मुझे कबीर को बताना होगा ” मेघा ने कहा
पर उस बेचारी को ये कहाँ मालूम था की कबीर पर क्या बीत रही थी .
मेघा को एक कमरा दिखाई थी, बस कहने को ही कमरा था बाकि खंडहर कहू तो ज्यादा ठीक रहेगा . मेघा ने टूटे दीमक खाए दरवाजे को देखा और उसे हल्का सा धक्का दिया पर वो जरा भी नहीं हिला. मेघा को आश्चर्य हुआ , उसने फिर से धक्का दिया पर दरवाजा टस से मस नहीं नहीं हुआ
“शायद जाम हुआ है ” उसने कहा और वहां से हट गयी पर कमरे के अन्दर देखने की लालसा थी उसके अन्दर, पर वो दरवाजे पर उकेरे गए उन नामो को नहीं देख पायी, जिन पर वक्त की धुल ने कब्ज़ा कर लिया था.
रतनगढ़ में शोक पसरा था, गाँव ने अपने एक बेटे को खोया था, सारे लोग दुखी थे पर वो नहीं जानते थे की रतनगढ़ के लिए आज क़यामत का दिन था, भरी दोपहर में वो पायल की आवाज उस सन्नाटे को बहुत जोर से चीर रही थी ,नंगे पाँव अपनी मस्ती में चूर वो गाँव की तरफ चले जा रही थी .
हवाओ ने उसके आगे सर झुका था, हवा थम गयी थी, पेड़ कुम्हला गए थे गर्मी से, हाथो में बड़ी सी पोटली थामे , जब लोगो की नजरे उस पर पड़ी तो बस नजरे थम सी गयी, उसके काले स्याह कपडे रक्त से लाल सने थे, पूरा बदन उसका खून से सना था ,
ये एक ऐसा वीभत्स द्रश्य था जिसे देख कर अच्छे अच्छे मूत दे, उसके नंगे पैरो के रक्त से सने निशाँ धरती पर अपनी छाप छोड़ गए थे , वो ठीक गाँव के बीच चौपाल पर पहुंची एक नजर उसने गाँव वालो पर डाली और फिर पोटली को खोल दी .
“नहीईईईईईईई , नहीईईईईईईई ”
पोटली का खुलना था की चारो तरफ चीख पुकार मच गयी, बहुत सारे सर थे उस पोटली में, एक लाश को तो रो लिया था रतनगढ़ , विलाप तो उसे अब करना था .
“उठा लो अपने अपनों के सर ” उसने उन्माद भरे स्वर में कहा
“दुबारा किसी ने उस लड़के की तरफ आँख उठा कर भी देखा तो ऐसा दरिया बहा दूंगी खून का , नसले पैदा होने से मना कर देगी तुम्हारी, जितना भी लहू नसों में बह रहा है सुखा दूंगी, अगर उसके बदन पर एक खराश भी आई कसम है मुझे,यहाँ रोने वाला कोई नहीं बचेगा ” किसी शेरनी की दहाड़ थी ये, बहुत से लोगो की धोती गीली हो चली
एक सर को ठोकर मारी उसने और हँसते हुए वापिस मुड ली, पायल की आवाज फिर से सन्नाटे को चिढाने लगी.
पिताजी तो चले गए थे पर मैं ये नहीं जानता था की आज का दिन बेहद मुश्किल होने वाला था मेरे लिए, क्योंकि उनके जाने के बाद एक और गाड़ी आ रुकी मेरे दर पर जिसकी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी .
एक गाड़ी , उसके बाद एक और उसके बाद एक और तीन गाडियों में लोग भरे हुए थे,
पहली गाड़ी से सुमेर के दोस्त लोग उतरे, सबके हाथो में हथियार थे, मेरे माथे पर बल पड़ गए. मेरा बाप सही चेता के गया था मुझे ,
“तुझे तेरे किये की सजा मिलेगी ” उनमे से एक चिल्लाते हुए बोला
“मैंने नहीं मारा उस को ” मैंने कहा
पर इन्सान की आँखों पर जब नफरत और क्रोध का पर्दा पड़ा हो तो उसे कहा कुछ दिखाई देता है, उनके दिल में बस मुझसे बदला लेना लिखा था .
“मारो साले को, ” उसने अपने साथियों से कहा और मार पिटाई शुरू हो गयी, मैं उन चुतियो को समझाना चाहता था पर उन को तो पड़ी लकड़ी उठानी थी. मुझे भी गुस्सा चढ़ आया था , मार पिटाई में मेरे हाथ भी हथियार लग गया मैं भी पूरी कोशिश करने लगा, पर ये कोई फिल्म तो थी नहीं की सारे गुंडों को पेल दे , और न मैं कोई हीरो, कितना प्रतिरोध कर पाता दर्जन भर लोगो का , मेरे घुटने टिकने लगे थे,
शरीर पर चारो तरफ से मार पड़ रही थी और फिर वो पल भी आया जब पैर लडखडा गए, मैं धरती पर गिर गया.
“उठ साले, उठ अभी तो तुझे और दर्द देना है, हमारे भाई को हमसे छीना है तूने , उसकी चिता ठंडी होने से पहले तेरी चिता जला देंगे हम उठ ” उनमे से एक ने मेरे पेट पर लात मारते हुए कहा .
पसलियों पर पड़ी लात से मैं बुरी तरह बिलबिला उठा . और संभलने का मौका मिलता उस से पहले ही एक के बाद एक लाते पड़ने लगी मेरे जिस्म पर, होंठो से, मुहसे , खून निकलने लगा, आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा. मदद की बहुत जरुरत थी पर दूर दूर तक कोई नहीं था, और वो हरामजादे कहाँ रुकने वाले थे,
धरती मेरे खून से लाल होने लगी थी, अपने बदन में कुछ टूटते हुए मैं महसूस कर रहा था , आँखे बंद हो रही थी सांस जैसे टूटने लगी थी, वो क्या कह रहे थे मुझे कुछ पता नहीं , कुछ खबर नहीं और फिर धीरे धीरे सब शांत हो गया. सन्नाटा छा गया.
दूर कहीं-
मेघा एक ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ पर वो पहले कभी नहीं आई थी ,
“सच कहता है कबीर इस जंगल ने न जाने क्या क्या छुपाया हुआ है,” मेघा ने कहा
उसने कुल्हाड़ी से बीच में आई टहनियों को काटा और उन सीढियों पर चढ़ती गयी, टूटी फूटी सीढियों पर चढ़ते हुए आखिर वो छोर पर जा पहुंची और एक पल को उसका सर चकरा गया , ये एक चोकोर घेरा था , बीच में एक गड्ढा था , चारो तरफ पक्की चिनाई , मेघा आंकलन करने में जुटी थी इस जगह की उस बेचारी को तो भान भी नहीं था की वो खुद नहीं बल्कि तकदीर उसे आज उस जगह पर ले आई है .......................
उस सुनसान जगह में एक अद्भुद आकर्षन था जिसने खींच लिया था मेघा को , कभी वो इधर घुमे कभी उधर, पागलो की तरह वो टहनी, झाड़ियो को काट रही थी , फिर उसे कुछ और सीढिया दिखी जो निचे को उतरती थी मेघा ने अपने पैर उधर बढाए, कुछ सीढिया उतरी वो निचे, हर तरफ काई जमी थी, बरसो से कोई नहीं आया था शायद इस तरफ,
पर वो ज्यादा निचे उतर नहीं पायी, एक सरसराहट ने उसका ध्यान खींच लिया और वो वापिस उपर की तरफ आ गयी,
“कोई जानवर होगा, ” अपने आप से बोली
“पर ये जगह क्या है , एक मिनट एक मिनट , ऐसी ही तो किसी जगह की तलाश थी मुझे, जहाँ मैं और कबीर मिल सके , मुझे कबीर को बताना होगा ” मेघा ने कहा
पर उस बेचारी को ये कहाँ मालूम था की कबीर पर क्या बीत रही थी .
मेघा को एक कमरा दिखाई थी, बस कहने को ही कमरा था बाकि खंडहर कहू तो ज्यादा ठीक रहेगा . मेघा ने टूटे दीमक खाए दरवाजे को देखा और उसे हल्का सा धक्का दिया पर वो जरा भी नहीं हिला. मेघा को आश्चर्य हुआ , उसने फिर से धक्का दिया पर दरवाजा टस से मस नहीं नहीं हुआ
“शायद जाम हुआ है ” उसने कहा और वहां से हट गयी पर कमरे के अन्दर देखने की लालसा थी उसके अन्दर, पर वो दरवाजे पर उकेरे गए उन नामो को नहीं देख पायी, जिन पर वक्त की धुल ने कब्ज़ा कर लिया था.
रतनगढ़ में शोक पसरा था, गाँव ने अपने एक बेटे को खोया था, सारे लोग दुखी थे पर वो नहीं जानते थे की रतनगढ़ के लिए आज क़यामत का दिन था, भरी दोपहर में वो पायल की आवाज उस सन्नाटे को बहुत जोर से चीर रही थी ,नंगे पाँव अपनी मस्ती में चूर वो गाँव की तरफ चले जा रही थी .
हवाओ ने उसके आगे सर झुका था, हवा थम गयी थी, पेड़ कुम्हला गए थे गर्मी से, हाथो में बड़ी सी पोटली थामे , जब लोगो की नजरे उस पर पड़ी तो बस नजरे थम सी गयी, उसके काले स्याह कपडे रक्त से लाल सने थे, पूरा बदन उसका खून से सना था ,
ये एक ऐसा वीभत्स द्रश्य था जिसे देख कर अच्छे अच्छे मूत दे, उसके नंगे पैरो के रक्त से सने निशाँ धरती पर अपनी छाप छोड़ गए थे , वो ठीक गाँव के बीच चौपाल पर पहुंची एक नजर उसने गाँव वालो पर डाली और फिर पोटली को खोल दी .
“नहीईईईईईईई , नहीईईईईईईई ”
पोटली का खुलना था की चारो तरफ चीख पुकार मच गयी, बहुत सारे सर थे उस पोटली में, एक लाश को तो रो लिया था रतनगढ़ , विलाप तो उसे अब करना था .
“उठा लो अपने अपनों के सर ” उसने उन्माद भरे स्वर में कहा
“दुबारा किसी ने उस लड़के की तरफ आँख उठा कर भी देखा तो ऐसा दरिया बहा दूंगी खून का , नसले पैदा होने से मना कर देगी तुम्हारी, जितना भी लहू नसों में बह रहा है सुखा दूंगी, अगर उसके बदन पर एक खराश भी आई कसम है मुझे,यहाँ रोने वाला कोई नहीं बचेगा ” किसी शेरनी की दहाड़ थी ये, बहुत से लोगो की धोती गीली हो चली
एक सर को ठोकर मारी उसने और हँसते हुए वापिस मुड ली, पायल की आवाज फिर से सन्नाटे को चिढाने लगी.