hotaks444
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सुगना भी पल भर के लिए ठाकुर साहब के गुस्से से काँप सा गया. उसने आज से पहले ठाकुर साहब को इतने गुस्से में कभी नही देखा था. उसने नम्र होते हुए ठाकुर साहब से कहा - "मैं क्षमा चाहता हूँ ठाकुर साहब. मैं जानता हूँ मैने बहुत बड़ी बात कहने की जुर्रत की है. लेकिन मैं अपने घर से यहाँ यूँही आपकी भावनाओ से खेलने नही आया. बल्कि बरसो से मेरे सीने में एक सच दफ़न है जिसे मैं यहाँ खोलने आया हूँ. ठाकुर साहब, मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा, मेरी बातों में सच्चाई है.....जिसके दम पर ही मैं इतनी बड़ी बात कहने का साहस कर पाया हूँ. आपसे विनती है ठाकुर साहब....एक बार ठंडे दिल से मेरी बात सुन लें. फिर चाहें तो आप मुझे फाँसी पर लटका दीजिएगा. मैं विरोध नही करूँगा."
ठाकुर साहब सुगना के बिस्वास से भरे शब्दों को सुनकर थोड़े नर्म पड़े. - "सुगना....तुम जानते हो तुम क्या कह रहो हो? तुमने ऐसा कहकर ना केवल दीवान जी का अपमान किया है बल्कि हमारी घर आईं मेहमान कमला जी का भी अपमान किया है. अगर तुम्हारी बातों में रत्ती भर भी झूठ निकला तो हम तुम्हे इस गुस्ताख़ी के लिए माफ़ नही करेंगे. हम ये भी भूल जाएँगे कि तुम कंचन के पिता हो."
"उसी कंचन के लिए ही तो मैं यहाँ आया हूँ." सुगना ठाकुर साहब की धमकी की परवाह किए बिना आगे बोला - "ठाकुर साहब....सिर्फ़ मैं ही नही-आप भी कंचन के पिता हैं. मैने तो कंचन को सिर्फ़ पाला है. कंचन तो आपकी बेटी है. ठकुराइन की कोख से जन्मी आपकी अपनी बेटी है."
"क्या.....????" ठाकुर साहब के साथ-साथ कमला जी और दीवान जी भी एक झटके से अपने स्थान से ऐसे उच्छल पड़े....जैसे उन तीनो को एक साथ किसी ज़हरीले बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो.
दीवान जी के माथे पर पसीना छलक आया. जबकि कमला जी स्तब्ध सी उसे घुरे जा रही थी. किंतु ठाकुर साहब की दशा सबसे बुरी थी. वो पागलों की तरह सुगना को एक-टक घूरते जा रहे थे.
"क्या बकवास कर रहे हो सुगना? तुमने रास्ते में धतूरा तो नही सूंघ लिया?" दीवान तेज़ी से सुगना की तरफ बढ़ते हुए बोले.
"दीवान जी, किसी और ने ये बात कही होती तो बात मेरी समझ में आती. किंतु आप तो....आप तो इस षड्यंत्र के रचयिता हैं. क्या आप भी भूल गये? या फिर ठाकुर साहब के सामने सच बोलने से घबरा रहे हैं?" सुगना दीवान जी पर व्यंग भरी दृष्टि डालते हुए कहा.
"क.....क्या बकवास कर रहे हो? क्या मतलब है तुम्हारा?" दीवान जी हकलाते हुए बोले. उनकी चेहरे पर घबराहट तेज़ हो गयी थी.
ठाकुर साहब पागलों के से अंदाज़ में कभी सुगना को तो कभी दीवान जी को देखते जा रहे थे. उनके समझ में अभी तक कुच्छ भी नही आया था.
कमला जी भी मूर्खों की तरह उनकी बातें सुनने में खोई हुई थी.
"सरकार, ये आदमी पागल हो गया है." दीवान जी ठाकुर साहब की तरफ मुड़ते हुए बोले - "कंचन आपकी बेटी कैसे हो सकती है. मालकिन ने हॉस्पिटल में एक ही बच्ची को जन्म दिया था, जो कि निक्की के रूप में बरसों से आपके साथ है. चाहें तो इस बात की पुष्टि आप हॉस्पिटल के डॉक्टर्स और दूसरे कर्मचारियों से कर सकते हैं. ये आदमी अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए कंचन को आपकी बेटी बना रहा है. दर-असल ये चाहता है कि कंचन को आपकी बेटी घोषित करके उसका विवाह रवि से करा दे. लेकिन मैं ऐसा नही होने दूँगा. मैने आपका बरसों से नमक खाया है.....मैं आपकी बेटी निक्की के अधिकारों से इस आदमी को खलेने नही दूँगा."
"बस कीजिए दीवान जी." सुगना क्रोध से चीखा. - "अब और झूठ बोलकर अपने पापो को मत बढ़ाइए. निक्की आपकी बेटी है. इस सच को ठाकुर साहब के सामने उज़गार कीजिए."
ठाकुर साहब ने विस्मित नज़रों से सुगना की तरफ देखा.
"सुगना.....नमक हराम, तू बरसों तक मेरे टुकड़ों पर पलता रहा और अब तू उसी नमक के बदले में हवेली की खुशियाँ छीन लेना चाहता है?" दीवान जी किसी घायल शेर की तरह दहाड़े.
"नमक हरामी मैने नही आपने की है दीवान जी." सुगना दीवान जी के उत्तर में चीखा. फिर ठाकुर साहब की तरफ पलटकर बोला - "ठाकुर साहब, मेरे मन में कोई स्वार्थ नही है. हां ! स्वार्थ था....जो इतने दिनो तक कंचन को अपनी छाती से लगाए रखा. मैं पिता के मोह में बँधा कंचन को खुद से दूर नही करना चाहता था इसलिए अब तक आपको इस सच्चाई से परिचित नही कराया. किंतु अब सवाल उसकी पूरी ज़िंदगी की है उसके जीवन भर की खुशियों की है. अगर अब भी मैं चुप रहता तो कंचन के साथ बहुत बड़ा अन्याय करता. इसलिए मैं अपना मोह त्याग कर आपको सच बताने चला आया.
ठाकुर साहब अगर अब भी आपको मेरी बात पर यकीन नही हो रहा है तो कहिए दीवान जी से....कहिए कि वो निक्की के सर पर हाथ रखकर कसम खाएँ की निक्की इनकी बेटी नही."
ठाकुर साहब की नज़र दीवान जी की तरफ घूमी.
ठाकुर साहब की नज़र पड़ते ही दीवान जी सूखे पत्ते की तरह काँपे. उन्होने गले में अटके थूक को निगलते हुए कहा - "सरकार.....सुगना सरासर झूठ बोल रहा है. ये नमकहराम तो.....!"
"दीवान जी." ठाकुर साहब दीवान जी को बीच में टोकते हुए बोले. - "सच बोलिए दीवान जी. ईश्वर जानता है हमने कभी आपको अपना मुलाज़िम नही समझा. हमेशा आपको अपना मित्र समझा है. हम आपको वचन देते हैं, अगर आप हमसे सच कहेंगे तो हम आपको इस अपराध के लिए क्षमा कर देंगे. किंतु आज झूठ मत बोलिए. ईश्वर के लिए सच बोलिए. हम सच जान'ना चाहते हैं."
ठाकुर साहब की तड़प देखकर दीवान जी स्तब्ध रह गये. अपने बचाव के सारे रास्ते बंद देख उन्होने सच बोल देने में ही अपनी भलाई समझी. वे घुटनो के बल चलते हुए ठाकुर साहब के पास गये और हाथ जोड़कर बोले - "मुझसे भूल हो गयी सरकार, मुझे माफ़ कर दीजिए. उस घड़ी मैं बेटी के प्रेम में अँधा था. मैं सही ग़लत का निर्णय नही कर पाया. मैं निक्की के सुनहरे भविश्य की कल्पना करके ये अपराध कर बैठा. जिस दिन मालकिन सीढ़ियों से गिरी थी. और उन्हे हॉस्पिटल ले जाया गया था. उसके दो दिन पहले ही मेरी बीवी भी उसी हॉस्पिटल में भरती थी. ये बात मैने आपको बताया भी था. जब मालकिन ने कंचन को जन्म दिया तब आप हॉस्पिटल में नही थे. उसके कुच्छ ही देर बाद मेरी पत्नी ने भी निक्की को जन्म दिया. उसी क्षण मेरे मन में ये पापी विचार समा गया. और मैं ये अपराध कर बैठा. मैने कंचन की जगह निक्की को रख दिया. और कंचन को वहाँ से हटा दिया."
"दीवान जी आप मेरे साथ बिश्वास घात भी कर सकते हैं ये मैने कभी सपने में भी नही सोचा था" ठाकुर एक घृणा भरी दृष्टि दीवान जी पर डालते हुए बोले. - "किंतु मेरी समझ में ये बात नही आई कि दोनो बच्चियो को बदलने के बाद निक्की को हमारे पास और कंचन को आपके पास होना चाहिए फिर वो सुगना के पास कैसे पहुँच गयी?"
ठाकुर साहब के इस सवाल पर दीवान जी का सर शर्म से झुक गया. उनके मूह से कोई बोल ना फूटा.
"खामोशी तोड़िए दीवान जी और हमारे सवाल का जवाब दीजिए." ठाकुर साहब अधिरता के साथ बोले.
"इसका जवाब मैं देता हूँ ठाकुर साहब." सुगना दीवान जी को खामोश देख ठाकुर साहब से बोला - "ये कंचन को अपने पास रखना ही नही चाहते थे. ये नही चाहते थे कि कंचन जीवित रहे और आगे चलकर निक्की के अधिकारों को छीने. इसलिए इन्होने अपनी पत्नी को समझा बूझकर चुप करा दिया. फिर अपने एक आदमी को मेरे घर मुझे बुलाने भेज दिया.
मैं उन दिनो दीवान जी का सबसे ख़ास आदमी हुआ करता था. इनके इशारों पर कुच्छ भी कर जाता था. किसी के हाथ पैर तोड़ना तो मेरे लिए गिल्ली डंडा खेलने जैसा था. इनके इशारे पर मैने कयि बड़े बड़े अपराध भी किए. कई लोगों को मौत की नींद भी सुला दिया.
ठाकुर साहब सुगना के बिस्वास से भरे शब्दों को सुनकर थोड़े नर्म पड़े. - "सुगना....तुम जानते हो तुम क्या कह रहो हो? तुमने ऐसा कहकर ना केवल दीवान जी का अपमान किया है बल्कि हमारी घर आईं मेहमान कमला जी का भी अपमान किया है. अगर तुम्हारी बातों में रत्ती भर भी झूठ निकला तो हम तुम्हे इस गुस्ताख़ी के लिए माफ़ नही करेंगे. हम ये भी भूल जाएँगे कि तुम कंचन के पिता हो."
"उसी कंचन के लिए ही तो मैं यहाँ आया हूँ." सुगना ठाकुर साहब की धमकी की परवाह किए बिना आगे बोला - "ठाकुर साहब....सिर्फ़ मैं ही नही-आप भी कंचन के पिता हैं. मैने तो कंचन को सिर्फ़ पाला है. कंचन तो आपकी बेटी है. ठकुराइन की कोख से जन्मी आपकी अपनी बेटी है."
"क्या.....????" ठाकुर साहब के साथ-साथ कमला जी और दीवान जी भी एक झटके से अपने स्थान से ऐसे उच्छल पड़े....जैसे उन तीनो को एक साथ किसी ज़हरीले बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो.
दीवान जी के माथे पर पसीना छलक आया. जबकि कमला जी स्तब्ध सी उसे घुरे जा रही थी. किंतु ठाकुर साहब की दशा सबसे बुरी थी. वो पागलों की तरह सुगना को एक-टक घूरते जा रहे थे.
"क्या बकवास कर रहे हो सुगना? तुमने रास्ते में धतूरा तो नही सूंघ लिया?" दीवान तेज़ी से सुगना की तरफ बढ़ते हुए बोले.
"दीवान जी, किसी और ने ये बात कही होती तो बात मेरी समझ में आती. किंतु आप तो....आप तो इस षड्यंत्र के रचयिता हैं. क्या आप भी भूल गये? या फिर ठाकुर साहब के सामने सच बोलने से घबरा रहे हैं?" सुगना दीवान जी पर व्यंग भरी दृष्टि डालते हुए कहा.
"क.....क्या बकवास कर रहे हो? क्या मतलब है तुम्हारा?" दीवान जी हकलाते हुए बोले. उनकी चेहरे पर घबराहट तेज़ हो गयी थी.
ठाकुर साहब पागलों के से अंदाज़ में कभी सुगना को तो कभी दीवान जी को देखते जा रहे थे. उनके समझ में अभी तक कुच्छ भी नही आया था.
कमला जी भी मूर्खों की तरह उनकी बातें सुनने में खोई हुई थी.
"सरकार, ये आदमी पागल हो गया है." दीवान जी ठाकुर साहब की तरफ मुड़ते हुए बोले - "कंचन आपकी बेटी कैसे हो सकती है. मालकिन ने हॉस्पिटल में एक ही बच्ची को जन्म दिया था, जो कि निक्की के रूप में बरसों से आपके साथ है. चाहें तो इस बात की पुष्टि आप हॉस्पिटल के डॉक्टर्स और दूसरे कर्मचारियों से कर सकते हैं. ये आदमी अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए कंचन को आपकी बेटी बना रहा है. दर-असल ये चाहता है कि कंचन को आपकी बेटी घोषित करके उसका विवाह रवि से करा दे. लेकिन मैं ऐसा नही होने दूँगा. मैने आपका बरसों से नमक खाया है.....मैं आपकी बेटी निक्की के अधिकारों से इस आदमी को खलेने नही दूँगा."
"बस कीजिए दीवान जी." सुगना क्रोध से चीखा. - "अब और झूठ बोलकर अपने पापो को मत बढ़ाइए. निक्की आपकी बेटी है. इस सच को ठाकुर साहब के सामने उज़गार कीजिए."
ठाकुर साहब ने विस्मित नज़रों से सुगना की तरफ देखा.
"सुगना.....नमक हराम, तू बरसों तक मेरे टुकड़ों पर पलता रहा और अब तू उसी नमक के बदले में हवेली की खुशियाँ छीन लेना चाहता है?" दीवान जी किसी घायल शेर की तरह दहाड़े.
"नमक हरामी मैने नही आपने की है दीवान जी." सुगना दीवान जी के उत्तर में चीखा. फिर ठाकुर साहब की तरफ पलटकर बोला - "ठाकुर साहब, मेरे मन में कोई स्वार्थ नही है. हां ! स्वार्थ था....जो इतने दिनो तक कंचन को अपनी छाती से लगाए रखा. मैं पिता के मोह में बँधा कंचन को खुद से दूर नही करना चाहता था इसलिए अब तक आपको इस सच्चाई से परिचित नही कराया. किंतु अब सवाल उसकी पूरी ज़िंदगी की है उसके जीवन भर की खुशियों की है. अगर अब भी मैं चुप रहता तो कंचन के साथ बहुत बड़ा अन्याय करता. इसलिए मैं अपना मोह त्याग कर आपको सच बताने चला आया.
ठाकुर साहब अगर अब भी आपको मेरी बात पर यकीन नही हो रहा है तो कहिए दीवान जी से....कहिए कि वो निक्की के सर पर हाथ रखकर कसम खाएँ की निक्की इनकी बेटी नही."
ठाकुर साहब की नज़र दीवान जी की तरफ घूमी.
ठाकुर साहब की नज़र पड़ते ही दीवान जी सूखे पत्ते की तरह काँपे. उन्होने गले में अटके थूक को निगलते हुए कहा - "सरकार.....सुगना सरासर झूठ बोल रहा है. ये नमकहराम तो.....!"
"दीवान जी." ठाकुर साहब दीवान जी को बीच में टोकते हुए बोले. - "सच बोलिए दीवान जी. ईश्वर जानता है हमने कभी आपको अपना मुलाज़िम नही समझा. हमेशा आपको अपना मित्र समझा है. हम आपको वचन देते हैं, अगर आप हमसे सच कहेंगे तो हम आपको इस अपराध के लिए क्षमा कर देंगे. किंतु आज झूठ मत बोलिए. ईश्वर के लिए सच बोलिए. हम सच जान'ना चाहते हैं."
ठाकुर साहब की तड़प देखकर दीवान जी स्तब्ध रह गये. अपने बचाव के सारे रास्ते बंद देख उन्होने सच बोल देने में ही अपनी भलाई समझी. वे घुटनो के बल चलते हुए ठाकुर साहब के पास गये और हाथ जोड़कर बोले - "मुझसे भूल हो गयी सरकार, मुझे माफ़ कर दीजिए. उस घड़ी मैं बेटी के प्रेम में अँधा था. मैं सही ग़लत का निर्णय नही कर पाया. मैं निक्की के सुनहरे भविश्य की कल्पना करके ये अपराध कर बैठा. जिस दिन मालकिन सीढ़ियों से गिरी थी. और उन्हे हॉस्पिटल ले जाया गया था. उसके दो दिन पहले ही मेरी बीवी भी उसी हॉस्पिटल में भरती थी. ये बात मैने आपको बताया भी था. जब मालकिन ने कंचन को जन्म दिया तब आप हॉस्पिटल में नही थे. उसके कुच्छ ही देर बाद मेरी पत्नी ने भी निक्की को जन्म दिया. उसी क्षण मेरे मन में ये पापी विचार समा गया. और मैं ये अपराध कर बैठा. मैने कंचन की जगह निक्की को रख दिया. और कंचन को वहाँ से हटा दिया."
"दीवान जी आप मेरे साथ बिश्वास घात भी कर सकते हैं ये मैने कभी सपने में भी नही सोचा था" ठाकुर एक घृणा भरी दृष्टि दीवान जी पर डालते हुए बोले. - "किंतु मेरी समझ में ये बात नही आई कि दोनो बच्चियो को बदलने के बाद निक्की को हमारे पास और कंचन को आपके पास होना चाहिए फिर वो सुगना के पास कैसे पहुँच गयी?"
ठाकुर साहब के इस सवाल पर दीवान जी का सर शर्म से झुक गया. उनके मूह से कोई बोल ना फूटा.
"खामोशी तोड़िए दीवान जी और हमारे सवाल का जवाब दीजिए." ठाकुर साहब अधिरता के साथ बोले.
"इसका जवाब मैं देता हूँ ठाकुर साहब." सुगना दीवान जी को खामोश देख ठाकुर साहब से बोला - "ये कंचन को अपने पास रखना ही नही चाहते थे. ये नही चाहते थे कि कंचन जीवित रहे और आगे चलकर निक्की के अधिकारों को छीने. इसलिए इन्होने अपनी पत्नी को समझा बूझकर चुप करा दिया. फिर अपने एक आदमी को मेरे घर मुझे बुलाने भेज दिया.
मैं उन दिनो दीवान जी का सबसे ख़ास आदमी हुआ करता था. इनके इशारों पर कुच्छ भी कर जाता था. किसी के हाथ पैर तोड़ना तो मेरे लिए गिल्ली डंडा खेलने जैसा था. इनके इशारे पर मैने कयि बड़े बड़े अपराध भी किए. कई लोगों को मौत की नींद भी सुला दिया.