Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई - Page 4 - SexBaba
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Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई

अंजली विशाल के कदमो की आहट सुनती है तो उसके होंठो पर फिर से मुस्कुराहट फैल जाती है. उसका चेहरा और सुर्ख़ हो उठता है, वो अपने जिस्म की नस नस में छायी उस उत्तेजना से सिहरन सी महसूस करती है. उत्तेजना का ऐसा आवेश उसने शायद जिन्दगी में पहली बार महसूस किया था. उत्तेजना का वो आवेश और भी तीव्र हो जाता है जब माँ महसूस करती है के उसका बेटा उसे किचन के दरवाजे में खड़ा घूर रहा है. 

विशाल रसोई की चौखट पर हाथ रखे अपने सामने उस औरत को घूर रहा था जिसे उसने जिन्दगी में हज़ारों बार देखा था. अपने जिन्दगी के हर दिन देखा था. कभी एक आम घरेलु गृहणी की तरह तोह कभी एक पतिव्रता पत्नी की तरह अपनी सेवा करते हुए तो कभी ममता का सुख बरसाते हुए एक स्नेहल, प्यारी माँ की तरह. जिन्दगी के विविध क़िरदारों को निभाती वो औरत हमेशा एक परदे में होती थी. वो पर्दा सिर्फ कपडे का नहीं होता था बल्कि उसमे लाज, शरम, समाज और धरम की मान मर्यादा का पर्दा भी सामील था, मगर आज वो औरत बेपरदा थी. शायद एक गृहणी का, एक पत्नी का बेपर्दा होना इतनी बड़ी बात नहीं होती मगर एक माँ का नंगी होना बहुत बड़ी बात थी. और बेटा अपनी नंगी माँ की ख़ूबसूरती में खो सा गया था. महज खूबसूरत कह देना शायद अंजलि के जानलेवा हुस्न का अपमान होता. उसका तोह अंग अंग तराशा हुआ था. विशाल की ऑंखे माँ के जिस्म के हर उतार चढाव, हर कटाव पर फ़िसलती जा रही थी. उसकी सांसो की रफ़्तार उसकी दिल की धड़कनों की तरह तेज़ होती जा रही थी. उसे खुद पर अस्चर्य हो रहा था के उसका ध्यान अपनी माँ की ख़ूबसूरती पर पहले क्यों नहीं गया.

"अब अंदर भी आओगे या वही खड़े खड़े मुझे घूरते ही रहोगे" अंजलि डाइनिंग टेबल पर प्लेट रखती हुयी कहती है और फिर कप्स में चाय ड़ालने लगती है. विशाल के चेहरे से, उसकी फ़ैली आँखों से, उसके झटके मारते कठोर लंड से साफ़ साफ़ पता चलता था की वो अपनी माँ की कामुक जवानी का दीवाना हो गया था.

"मैं तोह देख रहा था मेरी माँ कितनी सुन्दर है" विशाल अंजलि की तरफ बढ़ते हुए कहता है.

"ज्यादा बाते न बना...मुझे अच्छी तरह से मालूम है में कैसी दीखती हु...." अंजलि टेबल पर चाय रखकर सीधी होती है तोह विशाल उसके पीछे खडा होकर उससे चिपक जाता है. विशाल अपनी माँ की कमर पर बाहें लपेटता उससे सट जाता है. त्वचा से त्वचा का स्पर्श होते ही माँ बेटे के जिस्म में झुरझुरी सी दौड जाती है. 

"उम्म्म क्या करते हो...छोड़ो ना......" विशाल के लंड को अपने नितम्बो में घुसते महसूस कर अंजलि के मुंह से सिसकारी निकल जाती है.

"मा तुम सच में बहुत सुन्दर हो.....मुझे हैरानी हो रही है आज तक मेंरा ध्यान क्यों नहीं गया की मेरी माँ इतनी खूबसूरत है" विशाल अंजलि के पेट पर हाथ बांध अपने तपते होंठ उसके कंधे से सटा देता है. उधऱ उसका बेचैन लंड अंजली के दोनों नितम्बो के बिच झटके खा रहा था. विशाल अपनी कमर को थोड़ा सा दबाता है तो लंड का सुपडा छेद पर हल्का सा दवाब देता है. अंजलि फिर से सिसक उठती है.

"उनननहहः.......तुम आजकल के छोकरे भी ना, बहुत चालक बनते हो......सोचते होगे थोड़ी सी झूठी तारीफ करके माँ को पटा लोगे.......मगर यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलने वालि" अंजलि अपने पेट पर कसी हुयी विशाल की बाँहों को सहलाती उलाहना देती है और अपना सर पीछे की तरफ मोड़ती है. विशाल तुरंत अपने होंठ अपनी माँ के गालो पर जमा देता है और ज़ोरदार चुम्बन लेता है.

"उम्म्माँणह्ह्हह्ह्......अब बस भी करो" अंजलि बिखरती सांसो के बिच कहती है. विशाल, अंजलि के कन्धो को पकड़ उसे अपनी तरफ घुमाता है. अंजलि के घूमते ही विशाल उसकी पतली कमर को थाम उसकी आँखों में देखता है. 

"मैंने झूठ नहीं कहा था माँ...तुम लाखों में एक हो.....तुम्हे इस रूप में देखकर तो कोई जोगी भी भोगी बन जाए" विशाल नज़र निची करके अंजलि के भारी मम्मो को देखता कहता है जो उसकी तेज़ सांसो के साथ ऊपर निचे हो रहे थे. अंजलि के गाल और और भी सुर्ख़ हो जाते है. दोनों के जिस्मो में नाम मात्र का फरक था. अंजलि के निप्पल्स लगभग उसके बेटे की छाती को छू रहे थे. 

"चलो अब नाश्ता करते है....कितनी...." अंजलि से वो कामोउत्तेजना बर्दाशत नहीं हो रही थी. उसने बेटे को टालना चाहा तोह विशाल ने उसकी बात को बिच में ही काट दिया. विशाल ने आगे बढ़कर अपने और अपनी माँ के बिच की रही सही दूरी भी ख़तम कर दि. अंजलि की पीठ पर बाहें कस कर उसने उसे ज़ोर से अपने बदन से भिंच लिया. अंजलि का पूरा वजूद कांप उठा. उसके मम्मो के निप्पल बेटे की छाती को रगडने लगे और उधर विशाल का लोहे की तरह कठोर लंड सीधा अपनी माँ की चुत से जा टकराया.
 
"उऊंह्....बेटा......हाईइ......विशालल......" अंजलि ने ऐतराज जताना चाहा तो विशाल ने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दीये. विशाल किसी प्यासे भँवरे की तरह अपनी माँ के होंठो के फूलो को चुस रहा था. अंजलि कांप रही थी. चुत पूरी गिली हो गयी थी. उस मोठे तगड़े लंड की रगढ ने उसकी कमोत्तेजना को कई गुणा बढा दिया था. विशाल अपने लंड का दवाब माँ की चुत पर लगातार बढता जा रहा था. वो बुरी तरह से अंजलि के होंठो को अपने होंठो में भर कर निचोड़ रहा था. उसका खुद पर क़ाबू लगभग ख़तम हो चुका था और अंजलि ने इस बात को महसूस कर लिया के अगर वो कुछ देर और बेटे से होंठ चुस्वाति वहीँ उसकी बाँहों में खड़ी रही तो कुछ पलों बाद उसके बेटे का लंड उसकी चुत में घुस जाना तैय था. या तोह वो अभी चुदवाना नहीं चाहती थी या फिर पहली बार वो किचन में यूँ खड़े खड़े बेटे से चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी. वजह कुछ भी हो उसने ज़ोर लगा कर विशाल के चेहरे को अपने चेहरे से हटाया और लम्बी सांस ली. विशाल ने फिर से अपना मुंह आगे बढाकर अंजलि के होंठो को दबोचने की कोशिश की मगर अंजलि उसकी गिरफ्त से निकल गयी. 

"चलो नाश्ता करो........चाय ठण्डी हो रही है" अंजलि ने विशाल की नाराज़गी को दरकिनार करते हुए कहा. वो डाइनिंग टेबल की कुरसी खींच बैठ गयी और विशाल को भी अपनी पास वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

"मुझे चाय नहीं पीनि......." विशाल माँ को बनावटी ग़ुस्से से देखता हुआ कहता है. 

"हूँह्......तो क्या पीना है मेरे लाल को.....बताना....अभी बना देती हु......" अंजलि बेटे के चेहरे को प्यार से सहलाती इस अंदाज़ में कहती है जैसे वो कोई छोटा सा बच्चा हो.

"मुझे दूध पीना है......" विशाल भी कम नहीं था. वो अंजलि के गोल मटोल, मोठे मोठे मम्मो को घूरता होंठो पर जीभ फेरता है....."मम्मी मुझे दूध पीना है...पिलाओ ना मम्मी..." अंजलि की हँसी छूट जाती है. 

"ख़ाना खाओ और अभी चाय पीकर काम चलओ.....दूध की बाद में सोचते है" अंजलि बेटे की तरफ थाली और चाय का कप बढाती कहती है.

"देखिये....अभी अभी प्रॉमिस करके मुकर गयी......माँ तुम कितनी बुरी हो" विशाल ने बच्चे की तरह ज़िद करते हुए कहा.

"दूध पीना है तो पहले घर के काम में हाथ बटाओ......" अंजलि चाय की चुस्किया लेती कहती है.

"बाद में तुम मुकर जाओगी.........मुझे मालूम है.......पिछले तीन दिनों से तुम कह रही थी के फंक्शन निपट जाने दो फिर तुम मुझे नहीं रोकोगी......कल रात को भी तुमने प्रॉमिस किया था याद है ना....सूबह को अपने पापा को काम पर जाने देना, फिर जैसा तुम्हारा दिल चाहे मुझे प्यार करना....अब देखो......झूठि" विशाल मुंह बनाता है.

"उम्म्माँणहः......अभी इतने समय से मुझसे चिपके क्या कर रहे थे......" अंजलि आँखों को नचाती बेटे से पूछती है. 

"वो कोई प्यार था......तुमने तोह कुछ करने ही नहीं दिया" 

"बाते न बनाओ....नाश्ता ख़तम करो...... काम शुरू करना है.......जीतनी जल्दी काम ख़तम होगा उतनी जल्दी तुम्हे मौका मिलेंगा.......फिर दूध पीना या जो तुम्हारे दिल में आये वो करना....." 

"मैं जो चाहे करुँगा.....तुम नहीं रोकोगी..." विशाल जानता था उसे आज उसे उसकी माँ रोक्ने वाली नहीं है मगर माँ के साथ वो मासूम सा खेल खेलने में भी एक अलग ही मज़ा था.

"जो तुम चाहौ....जैसे तुम चाहौ...जीतनी बार तुम चाहौ" अंजलि विशाल को आंख मारती कहती है.

विशाल बचे हुए खाने के दो तीन निवाले बना जल्दी जल्दी ख़तम करता है और ठण्डी चाय को एक ही घूँट में ख़तम कर उठ कर खडा हो जाता है. वो अंजलि के पीछे जाकर उसके कंधे थाम कुरसी से उठाता है.

"चलो माँ...बहुत काम पढ़ा है.......पहले घर का काम ख़तम कर लू फिर तुम्हारा काम करता हु...बताओ कहाँ से शुरु करना है" विशाल हँसता हुआ कहता है. अंजलि भी हंस पड़ती है. 

"बहुत जल्दी है मेरा काम करने की.......चलो पहले किचन से ही शुरुआत करते है" कहते हुए अंजलि टेबल पर रखी प्लेट और कप्स को उठाने के लिए झुकति है तोह उसके गोल गोल उभरे हुए नितम्ब और भी उभर उठते है. विशाल एक नितम्ब को सहलाता है तो दूसरे पर हलके से चपट लगता है. 

"बदमाश......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.
 
“बदमाश”......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.

अंजलि झूठे बर्तन उठा उठा कर सिंक में भरने लगती है. मेहमानो के यूज़ के लिए उन्होनो स्टोर से काफी सारे बर्तन निकाले थे जिनका किचन के एक कोने में अम्बार सा लगा था. सभी बर्तन एक साथ सिंक में समां नहीं सकते थे इसलिए अंजलि ने तीन भाग बनाकर बर्तन धोने का निश्चय किया. सिंक में से कप्स, गिलास और प्लेट्स को विशाल गीला करके अंजलि को पकडाने लगा और वो डिशवाशर लिक्विड लगा लगा कर वापस सिंक में रखने लगी. माँ बेटे के बिच अजब तालमेल था. बिना कुछ भी बोले दोनों माँ बेटा एक दूसरे के मन की बात समज जाते थे. दोनों बेहद्द उत्साहित और जोश में थे. माँ बेटे के बिच इस अनोखे समन्वय के कारन काम बेहद्द तेज़ी से होने लगा. और काम की रफ़्तार के साथ साथ विशाल की शरारतें भी रफ़्तार पकडने लगी. 

अंजलि और विशाल दोनों सिंक के सामने खड़े थे और दोनों के जिस्म साइड से जुड़े हुए थे. विशाल जब भी मौका मिलता अपने जिस्म को ज़ोर से अंजलि के जिस्म के साथ दबा देता. कभी वो अपने पैरो से माँ के पैरों को दबाता तोह कभी पंजे की उँगलियों से बेहद उत्तेजक तरीके से अंजलि की गोरी मुलायम टांग को सहलाता. उसके पैरो की उँगलियाँ अपनी माँ के घुटने से लेकर एड़ी तक फिसलती. मख्खन सी मुलायम त्वचा पर विशाल का खुरदरा पैर अंजलि के जिसम में अलग ही सनसनी भर देता. जब अंजलि का ध्यान थोड़ा हट जाता तो वो शरारती बेटा अपनी कुहनी से अंजलि के गोल मटोल भारी मम्मे को टोहता. एक बार ऐसे ही जब अंजलि धुले हुए बर्तन उठाकर एक तरफ रख रही थी तो विशाल ने कुहनी से माँ के मम्मे को अंदर उसके निप्पल के ऊपर दबाया.

"मा देखो ना यह गिलास साफ़ नहीं हो रहा. इसकी तली में कुछ काला सा लगा हुआ है...." विशाल अंजलि के मम्मे को ज़ोर से दबाता गिलास के अंदर झाँकता यूँ दिखावा करता है जैसे उसे खबर ही नहीं थी के वो अपनी माँ के मम्मे को दबा रहा है.

"अन्दर तक घूसा कर रगड़ो बेटा. ऐसे नहीं साफ़ होगा यह......" अंजलि भी कहाँ कम थी वो अपने हाथ से विशाल के पेट को सहलाती है. अंजलि के हाथ और विशाल के लंड में नाममात्र का फरक था. माँ के हाथ का स्पर्श पाकर विशाल अपनी कमर को कुछ ऊँचा उठाता है मगर अंजलि पूरा ध्यान रखती है की विशाल का लंड उसके हाथ को टच न करे. "पूरा अंदर ड़ालना पडेगा.....जड़ तक पहुंचा कर आच्छे से रगडना पड़ेगा तभी काम बनेगा" अंजलि विशाल के कानो में सिसकारती हुयी बोलती है. अंजलि की हरकत के कारन विशाल का लंड कुछ और सख्त हो गया था.

एक घंटे से भी पहले सभी बर्तन धोये जा चुके थे. अंजलि किचन में जरूरी बर्तनो को रखकर बाकि सभी स्टोर में रखवा देती है. काउंटर और फर्श को साफ़ करके अंजलि सिंक पर हाथ धोती है तोह विशाल भी उसके पास आ जाता है. 

"लो किचन का काम तोह खतम. अब फर्नीचर को वापस सही जगह रखकर पूरे घर का झाड़ पोंछा करना है. और लास्ट में कपडे धोने है" हाथ धोने के पश्चात सिंक से कुल्हे लगाए अंजलि अपने हाथ पोंछती है जबकी विशाल हाथ धो रहा था. 

"चलो माँ, देर किस बात की" विशाल हाथों में पाणी भरता है.

"इतनी भी क्या जल्दी है" अंजलि विशाल को आंख मारकर कहती है.

"जल्दी तो है ना माँ. घर का काम करना है फिर तेरा काम भी करना है”......... “और तेरा काम करने के लिए तोह खूब टाइम चहिये" विशाल भी अंजलि को आंख मारकर निचे अपने लंड की और इशारा करता है. अंजलि कोई जवाब नहीं देती और हँसति हुयी किचन के दरवाजे की और बढ़ती है के तभी विशाल पीछे से दोनों हाथों में पाणी भर कर सीधा अंजलि के नितम्बो पर फ़ेंकता है. गर्मी की भरी दोपहर में ठण्डा पाणी गण्ड पर पढते ही अंजलि चिहुंक पड़ती है.

"बेदमाश.."अंजली विशाल को मारने के लिए वापस मूडती है और उसकी और बढ़ती है कि तभी विशाल फिर से दोनों हाथो में पाणी भरकर सीधा अंजलि के सीने पर मारता है. अंजलि के मोठे दूधिया मम्मे पाणी से नहा उठते है.

" लुच्चा कहीं का.....कमिना....." गलियां देती अंजलि घूमकर किचन से बाहर की और भागति है. विशाल ज़ोर से हँसता हुआ अपनी माँ के पीछे लिविंग रूम में आता है. अंजलि के चेहरे पर गुस्सा देखकर विशाल की हँसी और भी तेज़ हो जाती है.

"ज्यादा दांत मत निकालो........अभी काम की जल्दी नहीं है" अंजलि भी बेटे की शरारतों का खूब आनंद ले रही थी. बल्कि वो खुद कोशिश कर रही थी के किस तरह वह विशाल को उकसाएं, उसे अपने नज़्दीक आने के लिए बेबस करदे. मगर हक़ीक़त यह थी के अंजलि को कुछ करने की जरूरत ही नहीं थी. उसका नंगा जिस्म उसके बेटे को वासना की आग में जला रहा था. उसके भीगे हुए मम्मो से पाणी की धाराये निचे बहति हुयी उसकी चुत तक्क पहुँच गयी थी. चुत के ऊपर बेहद्द छोटे छोटे रेश्मी बाल भिगने से चमक उठे थे अंजलि के सीधी खड़ी होने के कारन विशाल केवल उसकी चुत का उपरी हिस्सा ही ही देख सकता था. चुत के उपरी हिस्से पर उभरे हुए मोठे होंठ आपस में भिंचे हुए थे और फिर निचे को दोनों जांघो के बिच की और घूमते हुए नज़रो से ओझिल हो रहे थे.
 
"अब घूरते ही रहोगे या कुछ करोगे भी" कुछ पल तक्क विशाल को घूरते रहने देणे के पश्चात अंजलि एकदम से बोल उठि.

"ओह मा.....कया कहा तुमने" विशाल तोह जैसे माँ की चुत में खो गया था.

"मैंने कहा अब मेरा काम करने की जल्दी नहीं है क्या" अंजलि अपने दोनों हाथो से मम्मो को पोंछती हुयी विशाल को कहती है. उसकी उंगलिया निप्पलों को खींचती है तोह विशाल का लंड एक करारा झटका मारता है. 

"तेरा काम करने के लिए ही तोह इतनी दूर से आया हू. कहाँ से शुरु करू......" विशाल की नज़र आंजली के मम्मो से उसकी चुत तक्क ऊपर निचे हो रही थी.

"ऐसा करो पहले फर्नीचर सेट कर लेते हैं फिर मोप मारते है" अंजलि अपनी चुत के अंदर हो रही सनसनाहट को दबाने का प्रयत्न करते कहती है. 

"हुँ चलो माँ, पहले फर्नीचर ही सेट करते है. फर्नीचर ठीक जगह होगा तो तुम्हारा काम भी ठीक तरीके से होगा........... इस कुरसी से शुरु करते हैं माँ........" विशाल एक कुरसी को उठाता है तो अंजलि उसे इशारा करती है के कुरसी कोने में रखणी है. विशाल कुरसी को कोने में रखकर उसके हाथो पर दोनों हाथ टीका थोड़ा झुकता है और फिर अपनी माँ की और देखता है "देखो माँ एकदम परफेक्ट है.......जरा कल्पना करके देखो........" विशाल अंजलि को आंख मारता है. 

"कुर्सी बैठने के लिए होती है बरखुरदार तुम इस तरह इस्सपे झुककर क्या करोगे"

"सहि कहा माँ.....में झुक कर क्या करुँगा......लकिन तुम झुकोगी तोह में जरूर कुछ कर सकता हु.....है ना माँ"

"बिल्ली को ख्वाब में भी छितड़े नज़र आते है" अंजलि अपनी गांड मटकाती सोफ़े की और बढ़ती है. 

छोटे सोफ़े को दोनों माँ बेटा उठाते हैं हालांकि विशाल अकेला सोफा उठाने में सक्षम था मगर फिर वो अपने सामने झुकने के कारन माँ के लटकते हुए मम्मो को कैसे देखता. उस नज़ारे के लिए तोह वो क्या ना करता. जब बडे सोफे को उठाने की बारी आई तोह अंजलि ने हाथ खड़े कर दिये. विशाल खीँचकर सोफ़े को उसकी जगह लेकर गया और फिर अंजलि को इशारा किया की वो उसे इधर उधर करने में मदद करे. विशाल ने अपना कोना सही जगह पर रखा मगर अंजलि से वो सोफा न हिला या फिर उसने जान बूझकर नहीं हिलाया. विशाल मौका देखकर तरुंत सोफ़े के दूसरे कोने पर गया और इससे पहले की अंजलि वहां से हट जाती उसे अपने और सोफ़े के बिच दबा कर सोफ़े को सही करने का नाटक करने लगा. वो सोफ़े को कम हिला रहा था अपनी कमर को ज्यादा हिला रहा था और इस प्रक्रिया में वो अपना लंड माँ के कोमल मुलायम नितम्बो के बिच घूसा कर रगढ रहा था. कुछ देर बाद अंजलि भी अपनी कमर हिलाने लगी.

"उऊंणहह माँ क्या कर रही हो......सोफा ठीक करने दो ना......" विशाल अपने कुल्हे हिलाता अपने लंड का दबाव अंजलि की गांड के छेद पर देता है.

"उनंनहह सोफा ऐसे ठीक करते हैं क्या....." अंजलि अपनी गांड गोल गोल घूमते हुए विशाल को और तड़पाती है. वो अपने कुल्हे भींच कर लंड को दबाती है तो विशाल सिसक उठता है. "अपना यह खूँटा क्यों मेरे अंदर घुसाते जा रहे हो" अंजलि हाथ पीछे लेजाकर पहली बार बेटे के लंड को अपने हाथ में जकड़ लेती है.
 
अपना यह खूंटा क्यों मेरे अंदर घुसते जा रहे हो" अंजलि हाथ पीछे लेजाकर पहली बार बेटे के लंड को अपने हाथ में जकड़ लेती है.

"येह खूँटा है माँ?" विशाल अंजलि का नितम्ब सहलता कहता है.

"और कया है?" अंजलि बेटे के लंड को जड से सुपाडे तक्क मसलती हुयी बोली.

"तुम्हेँ नहीं मालूम?" विशाल अपनी माँ की तांग उठकर सोफ़े पर रख देता है.

"नहि......"अंजली अपने अँगूठे को सुपाडे के ऊपर गोल गोल घुमाति है. सुपाडे से निकालता हल्का सा रस अँगूठे को चिकना कर देता है.

" इसे लंड कहते हैं माँ.......तुमने सुना तोह होगा" विशाल अपनी कमर हिलाकर लंड को माँ की मुट्ठि में आगे पीछे करता है तोह अंजलि भी लंड पर हाथ की पकड़ थोड़ी ढीली करके उसे मदद करती है.

"उऊंह्हह्ह्..........शायद सुना हो........याद नहीं आ रह......" अंजलि बेटे के लंड को सेहलती पीछे को मुंह घुमाति है तोह विशाल जीभ निकाल उसका गाल चाटने लगता है. "वैसे तुम्हारा यह खुंटा....कया नाम लिया था तुमने इसका....हाहहां लंड.......तुमहारा यह लंड खूब लम्बा मोटा है.......मोटा तोह कुछ ज्यादा ही है........उफफ्फ्फ़ देखो तोह मेरे हाथ में बड़ी मुश्किल से समां रहा है" अपनी माँ के मुंह से 'लंड' शब्द सुनकर विशाल का लंड कुछ और अकड गया था.

"तुम्हेँ कैसा पसंद है माँ......" विशाल एक हाथ से अंजलि का चेहरा और घुमाता है और अपने होंठ उसके होंठो पर रख देता है और दूसरे हाथ से अंजलि का हाथ अपने लंड से हटा कर अपना लंड पीछे से सीधा अपनी माँ की चुत पर फिट कर देता है.

"मैं नहीं बताउंगी......" अंजलि आगे को झुक जाती है और सोफ़े पर रखी अपनी तांग और दूर को फैला देती है जिससे उसकी गांड पीछे को उभार जाती है और विशाल का लंड आराम से उसकी चुत तक्क पहुँचने लगता है.

"क्यों माँ....क्यों नहीं बताओगी....." विशाल माँ के होंठ चूसता उसकी चुत पर लंड को ज़ोर से दबाता है तोह लंड का टोपा चुत के मोठे होंठो को फ़ैलाता डेन को रगडता है. 

"उमममहह.....मुझे.....मुझे शर्म आती है बेटा......." अंजलि भी सोफ़े पर दोनों हाथ टीका घोड़ी बन जाती है.

"इसमे शरमाने की कोनसी बात है माँ.......अभी से इतना शरमाओगी तोह असली खेल कैसे खेलोगी.

"उऊंम्मम्हठ्ठ...को..कोंन सा खेल बेटा..."वीशाल के हाथ माँ के मम्मो की तरफ बढ्ने लगते है. माँ बेटे के जिसम वासना की आग में जल रहे थे

"चोदा चोदी का खेल माँ.........देखना तुम्हे कितना मज़ा आएगा इस खेल में" 

"मुझे नहीं खेलना तुम्हारा यह चोदा चोदी का खेल.........ऊँणग्घह...ओह्ह्ह्ह माआ..." अंजलि के मम्मे विशाल के हाथों में समाते ही उसके मुंह से ज़ोरदार सिसकि निकल जाती है.

"ख़ेलना ही पड़ेगा माँ.......बिना चोदा चोदी के न्यूड डे बेकार है......एक बार खेल के तोह देखो माँ तुम्हे भी बहुत मज़ा आएगा....." विशाल अंजलि के निप्पलों को मसलता जीभ माँ के मुंह में घुसेड देता है.

"ऊऊफफफफ.......में तोह फंस गयी इस नुड डे के चक्कर में.......थीक है तू कहता है तोह तेरे साथ चोदा चोदी भी खेल लुंगी....अब तोह खुश है" 

विशाल जवाब देणे की बजाये कुछ देर अंजलि की जीभ अपने होंठो में भर कर चूसता रहता है और उसके हाथ कुछ ज्यादा ही कठोरता से उसकी माँ के मम्मो को मसल रहे थे. अंजलि बेटे से जीभ चुसवाते बुरी तरह सिसक रही थी. उसकी कमर एक दम स्थिर हो गयी थी और विशाल बहुत धीरे धीरे से अपना लंड एकदम चुत के दाने पर रगढ रहा था.

"तुने मेरी बात का जवाब नहीं दिया माँ........" विशाल अपने होंठ माँ के होंठो से हटाता कहता है. अंजलि गहरी गहरी साँसे भरती सीधे विशाल की आँखों में देख रही थी. उसका गोरा चेहरा तमतमा रहा था. आंखे काम वासना में जलती हुयी लाल हो चुकी थी. "तुझे कैसा लंड पसंद है माँ.......पतला या मोटा" 

"मोटा....." कहकर अंजलि ऑंखे बंद कर लेती है. विशाल फिर से माँ के होंठ चूमता उसके निप्पलों को प्यार से सहलाता है.

" मोटा? जैसे मेरा है माँ"

"हनण...हनन ....बेटा बिलकुल तेरे लंड जैसा मोटा लंड पसंद है तेरी माँ को" अंजलि भी बेटे के होंठो को चूमती है.

"फिर तोह माँ तुझे मेरे साथ चोदा चोदी खेलने में बहुत मज़ा आएगा........" 

"सच मैं!!!!! मेरा भी बहुत दिल कर रहा है तेरा साथ चोदा चोदी खेल्ने के लिये......." अंजलि अपनी चुत को घिस रहे बेटे के लंड पर अपना हाथ रख उसे ज़ोर से अपनी चुत पर दबाती है और ऑंखे खोल विशाल की आँखों में देखति है.

"फिर सुरु करें मा.........में कितने दिनों से तड़प रहा हुन तेरे साथ चोदा चोदी खेल्ने के लिये"

"उऊंह्ह्......अभी.....अभी सफायी का आधा काम पढ़ा है......." 

"ओहहहह म....पुरा दिन पढ़ा है....बाद में सफायी कर लेंगे....." विशाल माँ को सीधा करता है और उसे खींच कर खुद से चिपका लेता है. अब विशाल का लंड अंजलि की रस टपकती चुत पर सामने से आ रहा था.
 
"एक बार चोदा चोदी सुरु हो गयी फिर कुछ काम नहीं होगा.........ना तेरा दिल करेगा न मेरा......फिर तोह तेरे पीता आने तक चुदाई ही होगी" अंजलि का स्वर उत्तेजना और कामुकता से भरपूर था. उन अति अस्लील शब्दों को अपनी प्यारी पतिव्रता माँ के मुंह से सुनना कितना कामोत्तेजित था यह सिर्फ विशाल ही बता सकता था. ऊपर से अंजलि की मध भरी सिसकती आवाज़ उन शब्दो के असर को और गहरायी दे रही थी.

विशाल झुक कर फिर से अपने होंठ अंजलि के होंठो पर रख देता है. दोनों एक बेहद्द लम्बे, गहरे चुम्बन में दुब जाते है. जब होंट अलग होते हैं तोह दोनों माँ बेटे की साँस फूलि हुयी थी. "तुम सच कह रही हो माँ.....एक बार चुदाई सुरु हो गयी तोह फिर कुछ काम नहीं होगा......इसलिए.....पहले काम ख़तम कर लेना चहिये" विशाल की बात से अंजलि को झटका सा लगता है. वो इतनी गरम हो चुकी थी और इतनी बेचैन हो चुकी थी के उस समय वो सिर्फ और सिर्फ बेटे से चुदवाना चाहती थी और वो पहली बार बेटे का लंड अपनी चुत में लेने के लिए पूरी तय्यर भी थी मगर विशाल ने उसे हैरत में दाल दिया था, उसने विशाल से उम्मीद नहीं की थी के उसका खुद पर इतना कण्ट्रोल होगा. 

"तो चलो फिर देर किस बात की" दोनों माँ बेटा मुस्कराते हैं और फिर दोबारा से घर का काम सुरु होता है. इस बार काम का तरीका पहले से बिलकुल अलग था. अब न तोह विशाल और न ही अंजलि कुछ बोल रही थी अगर दोनों में से कुछ बोलता तोह सिर्फ काम के मुतालिक. दोनों माँ बेटे का पूरा ध्यान काम पर था. विशाल भाग भाग कर माँ की मदद कर रहा था. काम इस कदर तेज़ी से हो रहा था जैसे माँ बेटे की जिन्दगी उस समय घर की सफायी पर निर्भर थी. दो घंटे से थोड़ा सा ज्यादा वक्त लगा होगा के पूरा घर चमचमा रहा था. पूरे घर की सफायी हो चुकी थी, फर्नीचर वापस अपनी पहली वाली जगह पर सेट हो चुका था. फालतू का अपना स्टोर में रखा जा चुका था. पूरा घर फंक्शन से पहले की स्थिति में था अलबता ज्यादा साफ़ था. बस अब सिर्फ कपडे और कुछ बेड शीट्स वगेरह धोनी बाकि थी. ढ़ोने वाले सारे कपडे विशाल घर के पिछवाड़े में बाथरूम के पास रख आया था यहाँ वाशिंग मशीन रखी हुयी थी. जब विशाल वापस ड्राइंग रूम में आया तोह उसने अंजलि को एक चुनरी से बदन से पसिना पोंछते देखा. दोनों के बदन गर्मी की दोपहर में पसीने से नहा उठे थे. इतनी तेज़ रफ़्तार से काम करने के कारन दोनों की साँसे भी कुछ फूलि हुयी थी. 

विशाल माँ के पास जाकर उसके हाथ से चुनरी ले लेता है और खुद उसके बदन से पसिना पोंछने लगता है. अंजलि खड़ी मुस्कराने लगती है. विशाल अंजलि की पीठ से पसिना पोंछता निचे की और बढ़ता है. माँ के दोनों कुल्हो को प्यार से सेहलता वो पोंछता है. बड़ी ही कौशलता से धीरे धीरे दोनों नितम्बो में चुनरी दबाता है और पोंछने के बाद बड़ी ही कोमलता से दोनों नितम्बो को बारी बारी चूमता है. अंजलि की हँसी छूट जाती है. विशाल उठ कर अंजलि को अपनी तरफ घुमाता है और फिर उसी सोफ़े के पास ले जाता है जिसे पकड़ कर थोड़ी देर पहले वो घोड़ी बनी हुयी थी. विशाल माँ को सोफ़े पर बैठने के लिए इशारा करता है तोह अंजलि सोफ़े के कार्नर में बैठ जाती है. विशाल अपनी माँ के पास घुटनो के बल बैठ कर उसी प्यार से उसके सीने से पसिना पोंछता है. दोनों मम्मो को पोंछने के पश्चात वो उसी प्यार और नाज़ुकता से दोनों आकड़े हुए गहरे गुलाबी निप्पलों को चूमता है. अंजलि गहरी सिसकरी लेती है. उसकी चुत फिर से रस से सरोबार होने लगी थी. विशाल के हाथ अब पेट से होते हुए अंजलि की गोरी मुलायम जांघो को पोंछने लगा. चुत को विशाल ने टच नहीं किया था सीधा पेट से जांघो पर पहुँच गया था जिससे अंजलि को थोड़ी हैरानी के साथ साथ निराशा भी हुयी थी. विशाल टांगो को साफ़ करने के बाद जांघो को चूमता आखिरकार चुनरी से चुत को पोंछता है. अंजलि एक तीखी गहरी सांस लेती है. विशाल का लंड फिर से पूरे जोश में आ चुका था. कांपते हाथो से माँ की चुत को पोंछते हुए अपनी नज़र ऊपर करता है तोह उसकी नज़र सीधी अंजलि की नज़र से टकराती है. अंजलि बेटे को असीम प्यार और स्नेह से देखति उसके बालों में हाथ फेरती है. विशाल चुनरी छोड़ अपने होंठ माँ की चुत की तरफ बढाता है. अभी बेटे के होंठ चुत तक्क पहुंचे भी नहीं थे के माँ की ऑंखे बंद हो जाती है. अपनी ऑंखे कस्स कर बंद किये अंजलि बड़ी बेचैनी से होंठ काटती बेटे के होंठो का इंतज़ार करती है. विशाल लगातार माँ के चेहरे पर नज़र गड़ाये अपने होंठ उसकी चुत की और बढाता रहता है और जैसे ही उसके होंठ चुत को स्पर्श करते हैं;

"बेटा......उउउउउनंनहहः......बेटाआ........"अंजली ज़ोर से सिसक पड़ती है
 
बेटा......उउउउउनंनहहः......बेटाआ........"अंजली ज़ोर से सिसक पड़ती है.

विशाल के होंठ अंजलि की चुत पर चुम्बनों की वर्षा करते जा रहे थे और अंजलि वासना में जलती, सिसकती सोफ़े के कवर को मुट्ठियों में भींच रही थी. आंखे बंद वो कमर उछाल अपनी चुत बेटे के मुंह पर दबा रही थी. वासना का ऐसा आवेश उसने जिन्दगी में शायद पहली बार महसूस किया था. विशाल की भी हालत पल पल बुरी होती जा रही थी. सुबह से उसका लंड बुरी तरह से आकड़ा हुआ था. सुबह से उसकी माँ उसकी आँखों के सामने पूरी नंगी घूम रही थी और उसके जानलेवा हुस्न ने उसके लंड को एक पल के लिए भी चैन नहीं लेने दिया था. विशाल का पूरा जिस्म कामोन्माद में तप रहा था और अपने अंदर उबल रहे उस लावे को वो जल्द से जल्द निकाल देना चाहता था. और अब जब उसकी आँखों के बिलकुल सामने उसकी माँ की गुलाबी चुत थी और उससे उठने वाली मादक सुगंध उसे बता रही थी के उसकी माँ अब चुदवाने के लिए एकदम तय्यार है तो विशाल के लिए अब सब्र करना नामुमकिन सा हो गया. विशाल अपनी जीभ निकाल चुत के रसिले, भीगे होंठो के बिच घुसाता है तोह अंजलि तडफ उठती है. अखिरकार माँ बेटे के सब्र का बांध टूट जाता है.

अंजलि बेटे के सर को थाम उसे ऊपर उठाती है, दोनों के होंठ अगले ही पल जुड़ जाते है. अंजलि बेटे की जीभ अपने होंठो में भर चुसने लगती है. वासना के चरम में वो नारी की स्वाभाविक लाज शर्म छोड़ पूरी तरह आक्रामक रुख धारण कर लेती है. बेटे के सर को अपने चेहरे पर दबाती उसकी जीभ चुस्ती उसके मुखरस को पीती वो उस वर्जित रेखा को पार करने के लिए आतुर हो उठि थी. विशाल भी माँ की आतुरता देख सब शर्म संकोच त्याग सब हद पार करने के लिए तय्यार हो जाता है. माँ के जीव्हा से अपनी जीव्हा लड़ाता वो सोफ़े से निचे लटक रही उसकी टांगो को उठता है और उन्हें मोढ़ कर उसके मम्मो पर दबाता है. अंजलि पहले से ही सोफ़े पर पीछे को अधलेटी सी हालत में थी और अब विशाल ने जब उसकी टांगे उठकर उसके मम्मो पर दबायी तोह उसकी गांड सोफ़े से थोड़ी उठ गयी. विशाल ने खुद अपनी एक तांग उठकर सोफ़े पर रखी और आगे झुककर अपना लंड माँ की चुत के मुहाने पर रख दिया.

अंजलि अपनी चुत पर बेटे के लंड का टोपा महसूस करते ही अपनी बाहें बेटे के गले में दाल उसे और भी ज़ोर से अपनी तरफ खींचती है. अब वो अपने सगे बेटे से चुदवाने जा रही थी, किसी भी पल बेटे का लंड उसकी चुत के अंदर घुस जाने वाला था और अब वो रुकने वाली नहीं थी. अगर पूरी दुनिया उसे रोकती अगर भगवन भी वहां आ जाता तोह भी वो रुकने वाली नहीं थी. 

विशाल अपने कुल्हे आगे धकेल लंड का दवाब बढाता है. लंड का मोटा सुपाडा चुत के होंठो को फ़ैलाता अंदर की और बढ़ता है. अंजलि बेटे के होंठ काटती उसे अपनी जीभ पूरी उसके मुंह में दाल उसके मुख को अंदर से चुसने चाटने का प्रयत्न करती है. वासना में जलती तड़फती वो चाहती थी के जल्द से जल्द उसके बेटे का लंड उसकी चुत में घुस जाये वहीँ उसे यह भी एहसास हो रहा था के बेटे का लंड उसकी सँकरी चुत के मुकाबले कहीं अधिक मोटा है और वो इतनी आसानी से अंदर घूसने वाला नहीं था. 

इस बात को विशाल भी भाँप चुका था की उसकी माँ की चुत बहुत टाइट है और इस बात से उसे बेहद्द ख़ुशी हो रही थी. आजतक उसने विदेश में गोरियों की ढीली चुत ही मारी थी ऐसी टाइट चुत उसे जिन्दगी में चोड़ने के लिए पहली बार मिली थी और वो भी अपनी ही माँ की.

विशाल अपना पूरा ध्यान लंड पर केन्द्रीत कर अधिक और अधिक ज़ोर लगाता है तोह उसका लंड चुत के मोठे होंठो को फ़ैलाता जबरदस्ती अंदर घूसने लगता है जैसे ही गेन्द जैसा मोटा सुपाडा चुत को बुरी तरफ फ़ैलाता अंदर घुसता है, अंजलि बेटे के मुंह से मुंह हटा लेती है. वो अपना सर पीछे को सोफ़े पर पटकती है और विशाल के कन्धो को ज़ोर से अपने हाथो से दबाती अपनी आंखे भींचने लगती है. उसे दर्द तोह इतना नहीं हो रहा था मगर लंड के इतने मोठे होने के कारन उसकी चुत बुरी तरह से खिंचति महसूस हो रही थी और विशाल जिस तरह दवाब दाल रहा था और लंड इंच इंच अंदर घुसते जा रहा था उससे उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हो रही थी.

विशाल को अंजलि के चेहरे से मालूम चल रहा था के वो असहज है मगर चुत का कोमल, मखमली स्पर्श उसे इतना अधिक आनन्दमयी लगा और वो कामोन्माद में इस कदर पागल हो चुका था के बिना रुके लंड को अंदर और अंदर पहुँचाता जा रहा था. ऊपर से चुत इतनी गीली थी, इतनी गरम थी की वो चाहकर भी रुक नहीं सकता था. अखिरकार उसने एक करारा झटका मारा और पूरा लंड जड़ तक अंदर ठोंक दिया.
 
विशाल को अंजलि के चेहरे से मालूम चल रहा था के वो असहज है मगर चुत का कोमल, मखमली स्पर्श उसे इतना अधिक आनन्दमयी लगा और वो कामोन्माद में इस कदर पागल हो चुका था के बिना रुके लंड को अंदर और अंदर पहुँचाता जा रहा था. ऊपर से चुत इतनी गीली थी, इतनी गरम थी की वो चाहकर भी रुक नहीं सकता था. अखिरकार उसने एक करारा झटका मारा और पूरा लंड जड़ तक अंदर ठोंक दिया. 

"वूःहहहहहह बेत्ततत्तआ.........ओह्ह्ह मम्माआ......आआह्ह्ह्ह" अंजलि उस अखिरी झटके से चीख़ ही पढ़ी थी. 

मगर अंजलि की चीख़ ने विशाल की आग में घी का काम किया और उसने तुरंत बिना एक पल की देरी किये अपना लंड बाहर खींच फिर से अंदर ठोंक दिया.

"बेटा...आआह्ह्ह्हह्ह्....धीररेरे........धीरेईई.........ऊफफफ्फ्फ्क" मगर बेटा अब कहाँ धीरे होने वाला था. माँ की चुत इतनी गरम हो, इतनी टाइट हो और बेटा पहली बार उसे चोद रहा हो तोह वो धीरे कैसे चोदेगा. कोई नामरद ही ऐसा कर सकता था और विशाल तोह भरपूर मरद था. वो घस्से पर घस्से मारने लगा. तेज़ तेज़ झटको से वो अपनी माँ को ठोकने लगा.

"उऊंणग्ग्घहहः........है भगवान......ओह मेरे भगवान... ओह ह ह..........बेटा आ........हाय ओ ओ.........आह बेटा." हर घस्से के साथ साथ अंजलि के मुंह से निकलने वाली सिसकियाँ गहरी और गहरी होता जा रही थी और साथ ही साथ विशाल के घस्से भी गहरे होते जा रहे थे, तेज़ होते जा रहे थे. अब चुत में उसका लंड थोड़ा आसानी से अंदर बाहर होने लगा था और इससे विशाल को अपनी रफ़्तार तेज़ करने में आसानी होने लगी. अंजलि की चुत अंदर इतनी दहक रही थी के विशाल का लंड जल रहा था. उसी आग की तपीश से विशाल को एहसास हुआ की उसकी माँ चुदवाने के लिए कितनी तडफ रही थी. मगर अब वो अपनी माँ को और तडफने नहीं देगा वो चोद चोद कर अपनी माँ की पूरी गर्मी निकालने वाला था. विशाल और भी खींच खींच कर झटके मारने लगा. 

"उऊउउउउइइइइ..........हहहायीईइ बेटा बेटा ओह हहहह... आअह्हह्ह्....मार ही डालेगा क्या" विशाल ने जवाब देणे की बजाये अपनी माँ के हाथ अपने कन्धो से हटाये और उसके घुटनो के निचे रख दिये. अंजलि ने इशारा समज अपनी टांगे थाम ली और विशाल ने अपने हाथ माँ के मम्मो पर रख दिए जो उसके घस्सो के कारन बुरी तरह से उछाल रहे थे.

"जरा आराम आराम से करो ना.....में कहाँ भागि जा रही हु ..क्या.......उउउफफ इतनी ज़ोर से झटके मार रहे हो जैसे फिर माँ चुदने के लिए नहीं मिलेगी.....जितना चाहे चोद मगर प्यार से....." विशाल ने अपनी माँ की बात पूरी नहीं होने दी और उसके मम्मो को अपने हाथो में भींच एक करारा झटका मारा और लंड पूरा जड़ तक माँ की चुत में ठोंक दिया.

"ऊऊऊफफफफफफ...जान ही निकाल देगा..........ऊआह्ह्ह्हह.....हहहायियी........हाययी...." अंजलि अब की सिसकियाँ पूरे रूम में गूँज रही थी और वो हर झटके के साथ ऊँची होती जा रही थी. मगर अब उसकी सिसकियाँ पहले के तरह तकलीफ़देह नहीं थी अब वो सिसकियाँ आनंद के मारे सीत्कार रही उस माँ की थी जो पहली बार बेटे से चुदवाते हुए परमानन्द महसूस कर रही थी. उसकी सिसकियाँ क्या उसकी चुत से रिस्ते उस कामरस से पता चल रहा था की वो कितने आनंद में थी. उसके चुतरस से दोनों की जांघे गिली हो गयी थी और लंड बेहद्द तेज़ी और आसानी से अंदर बाहर हो रहा था. फक फक फक की तेज़ आवाज़ कमरे में गूंज रही थी.

"मा मज़ा आ रहा है ना.........बता माँ .....मजा आ रहा है ना..बेटे से चुड़वाने में" विशाल सांड की तरह अपनी माँ को ठोके जा रहा था अब तो तुम्हे दिन रात चोदूँगा मा बोल चुदेंगी ना माँ अपने बेटे से बोल ना माँ हा बेटा जब तू चाहे जहाँ तू चाहे मैं तो अब तुझसे ही चुदूँगी मेरे लाल मेरे साथ अमेरिका चलेगी ना माँ वहाँ सिर्फ हैम दोनो ही होंगे फिर तो जैसे चाहेंगे वैसे चोदा चोदी करेंगे करेगी ना माँ मेरे साथ चलेगी ना माँ हा चलूंगी मेरे लाल अब तेरे सिवा मैं कैसे रहूंगी मेरे बेटे मेरे लाल वह तो बाद कि बात है पहले मुझे चोद जोर से चोद मेरे लाल….मेरे …..बेटे….. आह ….आह …..ओह……

"ऊऊफफफफ पूछ मत्त...बस चोदे जा मेरे लाल......उउउफफग...चोदे जा.......ऐसा मज़ा ज़िन्दगी में पहले. ...उठहहहः...पहले..कभी नहीं आया.....बस तू ...चोद...मेरे लालल......उउउइइइइइमा.....चोद बेटा.......अपनी माँ चोद.......चोद मुझे....." अंजलि के उन अति अश्लील लफ़्ज़ों ने विशाल का काम कर दिया. वो मम्मो को बुरी तरह खींचता, दबाता, निचोड़ता पूरा लंड निकाल निकाल कर जितना सम्भव था, ज़ोर से झटके मारने लगा दोनों माँ बेटा एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे. विशाल माँ की आँखों में देखता पूरे ज़ोर से घस्सा मारता तोह अंजलि बेटे की आँखों में ऑंखे दाल ज़ोर से कराहती. तूफ़ान अपने चरम पर पहुच चुका था. दोनों के बदन पसीने से नहा चुके थे. उफनती सांसो के शोर के बिच चुदाई की मादक सिसकिया गूंज रही थी. जलद ही विशाल को एहसास हो गया के वो अब ज्यादा देर नहीं ठहरने वाला. उसके अंडकोषों में वीर्य उबल रहा था. 

"मा अब बस्स.....बस मेरा छूटने वाला है..माँ...." विशाल के मुंह से वो अलफ़ाज़ निकले ही थे के उसे अपने अंडकोषों से वीर्य लंड के सुपाडे की और बहता महसूस हुआ.

"मेरे अंदर.....अंदर....डाल...भर दे मेरी चुत......." अंजलि अपनी टाँगे छोड़ विशाल के गले को अपनी बाँहों के घेरे में ले लेती है. 

"मा....उहठ्ठ......माँ.......ऊआह्ह्ह्हह्ह्" विशाल के लंड से वीर्य की फुहारे निकलने लगती है. मगर विशाल रुकता नहि, वो लगातार घस्से मारता रहता है. वीर्य की तेज़ धारियों की छींटे अंजलि अपनी चुत में अच्छे से महसूस कर सकती थी. वो अपनी टाँगे उठा विशाल की कमर पर बांध उसे कसती जाती है. वो इतने ज़ोर से विशाल को अपनी बाँहों और टांगो में भींच रही थी के विशाल के झटके मंद पढ़ने लगे. अंजलि की पकड़ और मज़बूत होती गयी और इससे पहले वो महसूस करती उसका बदन ऐंठने लगा. चुत में सँकुचन होने लगा. वो झड रही थी. दोनी माँ बेटा झड रहे थे. अंजलि का पूरा जिस्म तड़फड़ा रहा था. विशाल माँ को अपनी बाँहों में समेट लेता है.
फिर तो हर दिन जब उसके पिता ऑफिस चले जाते उसके बाद माँ बेटा पूरे दिन घर मे नंगे ही रहते जब चाहा जहा चाहा शुरू हो जाते विशाल की छुट्टियां खतम हो गई अब उसे अमेरिका वापस जाना था पर वह अकेला नही जाना चाहता था इसलिए इसने अपने पापा से बात की तब उसके पापा ने कहा कि वह तो अपनी नोकरी की वजह से नही आ सकते वह चाहे तो अपनी माँ को अपने साथ ले जा सकता है वह यहां अकेले मैनेज कर लेंगे इस बात पर दोनों माँ बेटे एक दुसरे की की तरफ देख के मंद मंद हस रहे थे कि अब वह अमेरिका में जैसा चाहे वैसा रह सकते है


दोस्तो यह कहानी यही समाप्त होती है यह कहानी आपको कैसे लगी इस बारे में अपनी अनमोल कमेंट जरूर दे
 
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