Maa ki Chudai माँ का दुलारा - Page 5 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Maa ki Chudai माँ का दुलारा

मा की साँसें तेज चलने लगी. मैं भी बहुत उत्तेजित था, न जाने क्यों एक दूसरे
पुरुष के लंड को देखकर मुझे इतने उत्तेजना क्यों हुई! पर मैं खुश भी
था, मा के मतवाले शरीर को भोगने के लिए इससे अच्छे लंड की मैं कल्पना
भी नही कर सकता था. मा के सौंदर्य के लिए परफ़ेक्ट जोड़ था यह.
मा की अवस्था देखकर शशिकला गर्व से बोली "पसंद आया मा? मेरे डॅडी
लाखों मे एक है. पर तुम भी तो अपने इस खूबसूरत लाड़ले को नंगा करो,
मुझे देखना है कपड़े निकाल कर कैसा दिखता है? अंदर से भी क्या इतना
ही नाज़ुक है जितना वैसे दिखता है"

मा मेरे पास आई और मेरा चुंबन ले कर मेरे कपड़े उतारने लगी. वह
बेहद उत्तेजित थी. मुझे बार बार चूमते हुए उसने मेरे सब कपड़े उतार दिए.
बड़े शान से मुझे उसने शशिकला को दिखाया जैसे अपनी बनाई कोई कलाकृति
दिखा रही हो.

मुझे देखकर शशिकला ने सीटी बजा दी, एकदम मस्त सीटी. बड़ी चालू चीज़
थी. मैं शरमा गया पर अच्छा भी लगा "अरे क्या चीज़ है मा, एकदम गुड्डा
है, प्यारा खिलौने जैसा, कितना चिकना है, मुझे लगता है कि इससे चिकनी
तो लड़किया भी कम मिलेगी. और इसका यह लंड, मैं मर जाउ, एकदम रसीले
गाजर जैसा है, लगता है अभी खा जाउ, इसके पीछे लड़किया बहुत लगती
होंगी मा? मेरे ख़याल से तो मर्द भी लग जाएँ ऐसा शरीर है इसका."

मा भी बड़ी शान से बोली "तो? आख़िर मेरा बेटा है, मेरी आँखों का तारा, मुझे
इतना सुख दिया है इसने जो किसी बेटे ने अब तक अपनी मा को नही दिया. और मा
के बदन के रस मे ऐसा डूबा रहता है कि और कही देखने की फुरसत ही नही
है इसे."

शशिकला जाकर अपनी अलमारी से बहुत सी ब्रेसियार उठा लाई. तीन चार उसने मा
को दे दी. "मा, अपने लाड़ले को ज़रा कुर्सी मे आराम से बिताओ और ठीक से हाथ
पैर बाँध दो, मैं डॅडी की खबर लेती हू. ये मर्द बड़ी जल्दी मे होते है,
इनका कंट्रोल भी नही होता. इन्हें बाँधा नही तो आज की इस खूबसूरत रात का ये
कबाड़ा कर देंगे. कुछ नही तो जल्दी मे मूठ मार लेंगे"

"बहुत प्यारी ब्रसियर है तेरी शशि, उन्हें छूकर ही मेरा बेटा बेहाल हो
जाएगा." मा ने मुझे बिठाकर मेरे हाथ और पैर ब्रा से बाँधते हुए कहा.

मुझे रोमांच हो आया, शशिकला की ब्रसियर से मेरे हाथ पैर बँधे थे.

"और ये बड़ी ब्रेसियार किसकी है?" अशोक साहब बोले. उनकी आँखों मे असीम
वासना थी. मैं पहचान गया, शशिकला के हाथ मे मा की पुरानी ब्रेसियर
थी, मा शायद पहले ही उन्हें यहाँ ले आई थी.

"ठीक पहचाना अनिल, मैने मम्मी से पिछले हफ्ते ही मँगवा ली थी, डॅडी
के काम आएँगी मुझे मालूम था." शशिकला अशोकजी के लंड को प्यार से
चूमते हुए बोली. वे अब कुर्सी मे बँधे थे और हिल डुल भी नही सकते थे,
लंड को हाथ लगाने की बात तो दूर रही.

हमे बाँध कर मा और शशिकला एक दूसरे की ओर देखकर हँसी. "चलो, इन
दोनों शैतानों का इंतज़ाम तो हो गया, नही तो ये परेशान कर देते, अब आओ
मा, हफ़्ता हो गया तेरे आगोश मे आए. चलो, मुझे प्यार करो, इन दोनों को भी
देखने दो कि मा बेटी का प्यार कैसा होता है? रात भर इन्हें दिखाएँगे कि
दो औरतें आपस मे कितना मीठा और तीखा प्यार कर सकती है" शशिकला मा
के कपड़े उतारते हुए बोली.
 
मुझे गश आ गया. यहाँ अब इंद्रासभा होगी, इन दो खूबसूरत नारियों मे
बिना किसी सीमा की रति होगी और हमे मन मार कर उसे सिर्फ़ देखना पड़ेगा.
शशिकला शायद इसी का प्लान बता रही थी मा को फ़ोन पर. क्या दुष्ट लड़की
थी! मैने अशोकजी की ओर देखा, उनके चेहरे पर भी वही भाव थे पर साथ
मे एक मीठी मुस्कान भी थी, शायद उनके साथ यह पहले भी हो चुका था,
शशिकला और उसकी मा के बीच!

जब दोनों औरतें अर्धनग्न हो गयी तो रुक गयी. "डॅडी की आँखे देखो मा,
कैसी चौड़ी हो गयी है तेरा रूप देख कर" शशिकला मा को खींचकर
अशोकजी के सामने ले गयी और मा की कमर पकड़कर उसे घुमा घुमा कर
उसका शरीर चारों ओर से उन्हें दिखाने लगी, जैसे खरीददार को माल दिखा
रही हो. अशोकजी बेचारे गहरी साँसें लेते हुए तड़प कर बोले "शशि बेटी,
प्लीज़, ऐसे नही तरसाओ आज, रीमा जी तो अप्सरा है अप्सरा, तुम्हारी मा के
समान. आज तो इस अप्सरा का प्रसाद मुझे मिलने दो."

"मिल जाएगा डॅडी, ज़रा अप्सरा को देख तो लो पहले, बड़ी मुश्किल से ढूँढा है
मैने. आपको चखाने के पहले मैं फिर से चखुगी इनके प्रसाद को" मा
भी मज़े से हाथ उपर करके इस तरह घूम रही थी जैसे लिंगरी की माडल
फैशन शो मे दिखती है. इतनी बार मैने मा को ब्रा और पैंटी मे देखा था
फिर भी उसे देखकर मेरा दिल धड़कने लगा. आज परपुरुष के आगे ऐसे
अपने सुंदर जिस्म की नुमाइश करते हुए मा और भी नमकीन लग रही थी.
उसके उन उँचे हिल की संडलों पर वह ऐसे लचक लचक कर इधर उधर
चल रही थी कि अगर मेरे हाथ पैर न बँधे होते तो वही ज़मीन पर लेटकर मा
के पैर चूमने लगता.

शशिकला भी परी जैसी लग रही थी. छरहरा गोरा शरीर, एकदम स्लिम
जांघे, गुलाबी रंग की नाज़ुक है हिल सॅंडल और लाल रंग की लेस लगी ब्रा और
पैंटी. मा से मुझे एक पल के लिए ईर्ष्या हो गयी, इस सुंदरी के साथ मा ने
इतनी रातें बिताई, उसके सौंदर्य को तरह तरह से भोगा! फिर मन मे आया कि
शशिकला भी कोई कम भाग्यवान नही थी कि मेरी मा की तपती मादकता का
स्वाद उसे लेने का मौका मिला.

मा हमारे सामने पड़े सोफे मे बैठ गयी और खींच कर शशिकला को
अपनी गोद मे बिठा लिया. "आ बेटी, मा की गोद मे आ जा. इतने दिन हो गये अपनी
बेटी को प्यार भी नही कर पाई, आ एक किस दे प्यारा सा, तेरे होंठों का शहद
चखने को मैं तरस गयी." और शशिकला को चूमने लगी. शशिकला भी
बड़े लड़ से मा की गोदी मे बैठ कर मा के स्तन दबाती हुई मा के
चुंबनो का जवाब देने लगी. जल्द ही यह चूमा चाटी गरमा गयी.
एक दूसरे की जीभ से जीभ लड़ते हुए, मूह चुसते हुए वे एक दूसरे के शरीर को
टटोल कर, सहला कर और दबा कर वे आपस मे ऐसी लिपटी थी जैसे प्रेम मे डूबे
प्रेमी करते है, फरक यह था कि दोनों औरतें थी, वह भी कम ज़्यादा उमर
की!

हमे और कुछ देर अपने अर्धनग्न खेल से जान बूझकर तड़पा कर आख़िर
दोनों ने एक दूसरे की ब्रा और पैंटी उतार दी और वही पलंग पर लेटकर सीधे
सिक्सटी नाइन मे जुट गयी. शशिकला का पूरा नग्न रूप मुझे बस एक झलक दिखा
क्योंकि वह लेट कर मा की बाहों मे समा गयी थी. जल्द ही वे दोनों वासना की
आहें भरती हुई अपनी अपनी साथिन की चूत के रस को चाटने मे ऐसी मशगूल
हो गयी की हमे भूल गयी.

मेरा बुरा हाल था. मैने अशोकजी की ओर देखा. वे अब कसमसा रहे थे. उनका
लंड झंडे जैसा तन कर खड़ा था. मुझे देखकर बोले "अनिल, बुरा मत
मानना पर तुम्हारी मा का यह रूप सहन नही होता, अभी मेरे हाथ पैर खुल
जाएँ तो उन्हें दिखाऊ कि उनके इस रूप की पूजा मैं कैसे करूँगा."

"अशोक साहब, मैं बिलकुल बुरा नही मानता. बल्कि मा को आप जैसा चाहने
वाला मिल जाए तो मुझे अच्छा लगेगा, बेचारी ने बहुत दिन प्यासे गुज़ारे है"
मैने कहा "वैसे शशिकला जी को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी
उनके आगे घुटने टेक दूं और उनकी उस प्यारी चूत ... मेरा मतलब है ... सारी
अशोक साहब ... याने वहाँ मूह छुपा दूं"
 
"सारी की कोई बात नही, मेरी बेटी की चूत है ही इतनी रसीली, पर अनिल, तुम्हारी मा
की चूत ज़रूर पकवान होगी पकवान, शशि कैसे मूह मार रही है देखो. और
मुझे अंकल कहो बेटे, अब फारमलिटी का कोई मतलब नही है. शशिकला को तुम
दीदी कह सकते हो, अगर तुम्हारी मा उसे बेटी कहती है तो यही रिश्ता हुआ.
वैसे तुम्हारी इस दीदी की बुर चोदने मे, चूसने मे तुम्हें बहुत मज़ा आएगा"
उन्होने कहा

"अंकल आप का मा से क्या रिश्ता है इस हिसाब से?" मैने शैतानी से पूछा. अशोक
अंकल अपनी कुर्सी मे धीरे धीरे उपर नीचे होकर अपने लंड को मुठियाने की
कोशिश कर रहे थे. मेरी ओर देखकर बोले "मैं भी उन्हें मम्मी कहना
चाहता हू, उमर मे बड़ी औरतें मेरे लिए देवी माता जैसी है. वैसे उनकी
उमर मेरी दीदी जितनी है पर वे मानें तो मैं उन्हें मम्मी या आंटी कहना
ज़्यादा पसंद करूँगा. ओह ओह वहाँ देखो अनिल, मेरी बेटी कैसे तुम्हारी मा के
स्तन गूँध रही है और उनकी चूत से मूह लगाए पड़ी है. क्या लकी लड़की
है"

हम दोनों मा और शशिकला की रति क्रीड़ा देखने लगे. उनका सिक्सटी नाइन
पूरे निखार पर था. मा नीचे थी और शशिकला उसके उपर उलटी बाजू से
चढ़ि थी. मा के सिर को जांघों मे दबाकर मा के मूह को चोद रही थी,
साथ ही अपना मूह उसने मा की टाँगों के बीच डाल दिया था. मा अपनी टाँगे
हवा मे उठाकर हिला रही थी, शशिकला के सिर को फ़ुटबाल की तरह जकाड़कर
मसल रही थी.

आख़िर एक दो बार झड़कर मा और शशि सुसताने लगी. मैने मा से मिन्नत की
"मा, प्लीज़ हमे अब मत तरसाओ. खोल दो ना"

"क्यों रे क्या हो गया? मा का स्वाद तो इतनी बार लिया है, आज ज़रा सब्र कर"
शशिकला मुझे चिढ़कर बोली.

मैं न रुक सका "दीदी, मैं तो आपके बारे मे सोच रहा था, आपका स्वाद मैं कब
चख सकूँगा इसके बारे मे सोच सोच कर मैं पागल हो रहा हू"

शशिकला उठकर मेरे पास आई. सामने से उसका नग्न शरीर मैने पहली
बार ठीक से देखा. उसके स्तन मा से काफ़ी छोटे थे पर एकदम सेब जैसे गठे
हुए थे. निपल छोटे किसमिस के दानों जैसे थे. और जांघों के बीच का त्रिकोण
एकदम चिकना था. किसी बच्ची जैसी दिख रही वह फूली गोरी बुर ऐसी लग रही थी
कि लगता था कि चबा चबा कर खा डालु.

शशिकला ने मेरे लंड को पकड़कर हिलाया और मेरी आँखों मे आँखे डाल
कर बोली. "और एक दो घंटे रुकना पड़ेगा अनिल, मैं देखना चाहती हू कि
तुझमे पेशंस कितनी है, इस खेल मे पेशंस ज़रूरी है पूरा मज़ा लेने के लिए.
है ना डॅडी? मा तो डॅडी को रात रात भर सताती थी ऐसे ही"

उसके हाथ के कोमल स्पर्श से मेरा लंड उछलने लगा. वह हंस दी, दो
उंगलियों से सुपाडे को घेर कर दबाने लगी. मेरी आँखों मे देखते हुए
वह शैतानी से हंस रही थी.

"अरे शशि, न सता उसे बेटी, बेचारा वैसे ही परेशान है तेरे इस बदन को
देखकर" मा ने शशिकला को समझाया पर वह मुस्कराती हुई मुझे
तड़पाती ही रही. जब मैं झड्ने को आ गया तो हाथ हटाकर उठ खड़ा हुई.
अपने स्तन को मेरे गालों से एक बार लगाकर वह मा के पास चली गयी.

"बहुत मज़ा आता है दीदी मुझे तो, और झूठ मत बोलो, तुम्हे भी आता होगा. हर
औरत को आता है अपने गुलामों को ऐसे तड़पाने मे. जाओ मम्मी, तुम भी
डॅडी को थोडा परेशान करके आओ, बेचारे तब से तुम्हारे इस बदन को देख
देख कर पागल हुए जा रहे है" शशिकला मा की जांघों मे अपना हाथ
डालकर बोली.


मा मूड मे थी. उठाकर अशोक अंकल के पास गयी और उनके सामने खड़ी हो
गयी "सच है क्या अशोकजी? मैं सच मे आपको अच्छी लगती हू?" थोड़े
छेड़खानी के अंदाज मे मा ने कहा. अशोकजी पास से मा के रूप को एकटक
देख रहे थे. कभी वे नज़र उठाकर मा के उन विशाल स्तनों को देखते और
कभी उनकी नज़र नीची होकर मा के पेट के नीचे के बालों मे जा टिकती.

"रीमाजी आप परी है, बस अपने इस दस पर कृपा कीजिए, मैं सह नही पाउन्गा
ज़्यादा देर" अशोक अंकल तड़प कर बोले. उनका लंड अब फिर से उपर नीचे हो रहा
था, जैसा मुठियाते वक्त होता है.

"कितना प्यारा है, पर बहुत बड़ा है. बाप रे, किसी बच्चे के हाथ जैसा है
आपका यह हथियार. मुझे तो मार ही डालेगा." मा ने अपने होंठो पर जीभ
फेरकर अशोक अंकल के लंड को धीरे से मुठ्ठी मे ले लिया और सहलाने लगी.
"कैसा उछल रहा है, नाग की तरह फूफकार रहा है, काट खाएगा लगता है"
 
"आंटी, वह फूफकार नही रहा, मिन्नत कर रहा है अपनी मम्मी से, आंटी से की
इस मीठी अगन से छुटकारा दिलवो. प्लीज़ रीमाजी प्लीज़ ..." अशोक अंकल ने
वासना भरी आवाज़ मे कहा. मा उनका लंड सहलाती रही. लंड की नसों पर
उसकी उंगलियाँ ऐसी चल रही थी जैसे सितार के तारों पर वादक की उंगलियाँ.
अचानक झुक कर मा ने लंड को चूम लिया. अशोक अंकल ऐसे तड़पे जैसे
करेंट मार गया हो. मा मुस्कराती हुई उनके गाल को चूम कर बोली "बस एक दो
घंटे और. वैसे आप को इतना तरसाकर मैं खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी
मार रही हू, आप छूटने के बाद मेरी क्या हालत करेंगे ये मैं जानती हू"

"अब आओ भी दीदी, उनको छोड़ो, वे कहाँ जाते है बच के. ज़रा उन्हे तड़पने दो.
इस इंद्रासभा मे शामिल होने को अप्सराओं की, मेनका और उर्वशी की, मेरी और
तुम्हारी अनुमति ज़रूरी है, हम न कहे तब तक इन्हे तड़पना ही पड़ेगा. तुम अब
आओ और इसका स्वाद लो, तुम्हे मेरा हनी चखती हू फिर से. ज़रा स्वाद ले लेकर
चटाना, देखु कितना शहद निकाल पाती हों मेरी जांघों के बीच के शहद
के घड़े से" शशिकला गर्व से मा को चैलेज करती हुई बोली.

अगले आधे घंटे मे मा ने शशिकला का इतना शहद निकाला कि वह रोने को
आ गयी. मा ने उस गर्विलि लड़की की वो हालत की की मज़ा आ गया. उसे कुर्सी मे
बिठाकर उसके सामने नीचे बैठ गयी और उसे वास्ता दिया कि अगर सच मे खुद
को ऐसी रंगीली शेरनी समझती है तो अपने हाथ अलग रखे. फिर शशिकला की
जांघे फैलाकर हमे दिखा दिखा कर उसके उस रसीले गुप्ताँग का मा ने
भरपूर स्वाद लिया. बिना झड़ाए उसे इतना सताया कि आधे घंटे मे शशिकला
रोने को आ गयी. कभी उसकी बुर को पूरा चाटती, कभी उंगली से मूठ मारती
और रिसते शहद को चाट लेती, कभी क्लिट को दाँतों मे लेकर जुट जाती.


मैं और अशोक अंकल तो पागल होने को थे. मा खुद भी नही झड़ी थी, बस
अपनी जांघे आपस मे रगड़ रही थी. अंत मे जब वह खड़ी हुई तो मैने देखा
कि उसकी आँखे वासना से गुलाबी हो गयी थी. सिसकती शशिकला को उठाकर
चूमते हुए वह बोली "निकाला ना तेरा शहद? तुझे अब मेरा बेटा ही झड़ाएगा.
और तुम्हारे डॅडी मेरी सेवा करेंगे. देखती हू कि ये दोनों मर्द आख़िर
कितना प्यार करते है हमे, कितनी पूजा करते है हमारी! पर शशि, इनके ये
लंड तो देख, मूह मे पानी आ रहा है, इनमे इतना ज्यूस होगा अभी, और ये सब
हमे चोद कर हमारी चूत के अंदर बहा देंगे, सब वेस्ट हो जाएगा, इनका
स्वाद लिए बिना कैसे इन्हे छोड़ दे!"

शशिकला अब तक थोड़ी सम्भल गयी थी, अपनी झाड़ झाड़ कर लस्त हुई चूत को
सहला कर शांत कर रही थी. "मम्मी तुम कमाल करती हो, मुझे लगा था
कितनी सीधी साधी है मेरी मम्मी, तुम मेरी भी गुरु निकली."

फिर मेरे पास आकर मेरे लंड को मुठ्ठी मे पकड़कर शशिकला बोली "बात ठीक
है मम्मी, बहुत प्यारा है ये लंड, और इतनी ज़ोर का खड़ा है, कटोरी भर
मलाई होगी. चलो ऐसा करते है हम इन गन्नों को चूस लेते है, अभी ऐसे ही
बँधा रहने दो इन्हे, बाद मे छोड़ देंगे. मम्मी तुम डॅडी की ओर ध्यान
दो, आख़िर तुम्हारे गुलाम बन ही रहे है तो समझ ले कि गुलामों का क्या फ़र्ज़
है. मैं अनिल को देखती हू, इतना प्यारा चिकना लड़का है, इसे तो मैं चबा
चबा कर खा जाउन्गि. मम्मी, तुम भी डॅडी को ज़रा तड़पाओ. मज़ा ले लेकर
चूसो, एम डी साहब को ज़रा अपनी बेटी की सेक्रेटरी के आगे गिडगिडाने दो."
मम्मी बोली "बिलकुल चिंता न कर, तेरे डॅडी की मैं पूरी खबर लेती हू" मा
जाकर अशोक अंकल के पास खड़ी हो गयी. "कहिए अशोकजी, क्या सेवा करूँ आप
की?"
 
अशोक अंकल तारथराते स्वर मे बोले. "आंटी, आप के ये मम्मे चूसने का
मन हो रहा है. इतने फूले हुए मुलायम और गुदाज मम्मे मैने कभी नही
देखे, और ये निपल! इतने मोटे, जामुन जैसे और ये गोले, आप के मम्मे तो सिर्फ़
चूसने को बने है मम्मी."

मा अपनी छाती उनके मूह के पास ले आई. वे जब उसपर लपके की मूह मे लेकर
चूस सके तो मा खिलखीलाकर पीछे हो गयी. "अभी नही अशोकजी, पहले अपनी
मलाई खिलाइए हमे. मैं भी आपको शहद चखाउन्गि. बहुत अच्छा है, मैं
फालतू मे घमंड नही कर रही हू, मेरा बेटा और आपकी बेटी, दोनों दीवाने
है इसके." कहते हुई मा ने एक पैर उठाकर अशोक अंकल बैठे थे उस कुर्सी
के हत्थे पर रख दिया. अब उसकी चूत खुलकर साफ दिख रही थी. चूत ठीक
अशोक अंकल के मूह के पास थी.


घने काले बालों मे घिरी मा के वह लाल रिसति बुर देखकर उनका जो हाल
हुआ, वह देखते ही बनता था. बेचारे लपक कर मा की जांघों के बीच मूह
डालने की कोशिश करने लगे. मा हंस कर पीछे हो गयी, उनके बालों मे
उंगलियाँ चलाती हुई बोली. "रुक जाइए अशोकजी, मैं कही भाग थोड़े ही रही हू,

आपको बहुत सा शहद चखाना चाहती हू, अभी बन तो जाने दीजिए, आपकी
बेटी ने जितना था, सब ले लिया है, पर आपको मैं तरसाउन्गि नही, लीजिए, चख
लीजिए स्वाद कैसा है"

मा ज़रा सा आगे हुई, बस इतना की अशोक अंकल की जीभ उसकी बुर तक पहुँचे.
अशोक अंकल की जीभ की नोक मा की बुर से छूटे रस से लगी और वे आँखे बंद
करके लंबी साँसे लेते हुए उसे चखने लगे. मा ने बड़े प्यार से उनके सिर
को पकड़कर उन्हे कुछ देर बुर चटाई और फिर अलग हो गयी.

"मम्मी, दीदी .... प्लीज़, मत तरसाओ मुझे" अशोक अंकल बोले. मा कुछ नही
बोली, मुस्काराकर उनके सामने नीचे बैठ गयी. उसकी आँखे अब अशोक अंकल
के फनफनाते लंड पर टिकी थी. "कितना अच्छा और जानदार है. शशि तूने तो
बहुत मज़ा किया होगा अपने डॅडी के साथ, क्या करती थी इसके साथ? चुसती तो
ज़रूर होगी!"
 
"सब कुछ किया है मम्मी इस के साथ. अपने शरीर के हर भाग मे इसे लिया है.
इसकी मलाई खाओगि तो सब भूल जाओगी. वैसे अब डॅडी को ज़्यादा मत परेशान
करो, बेचारे रो देंगे. अनिल तो रोने को है, है ना मेरे राजा?" शशिकला मेरे
लंड को होंठों से चूमते हुए बोली. पिछले पाँच मिनटों मे उसने मेरी
वे हालत की थी कि मैं सच मे रोने को आ गया था. उसने अपनी चूत तो मुझे
नही दिखाई पर उसमे उंगली डालकर मुझे अपना रस चखाया. मा से अलग
रस था, मा की रज काफ़ी तेज स्वाद की और मसालेदार है, उमर के साथ अच्छी पक
गयी है, शशिकला की रज भीनी भीनी खुशबू की थी और मा से भी ज़्यादा
गाढ़ी थी.

मेरा लंड जब ज़ोर से उछलने लगा तो वह मेरे कान मे बोली "देखो अपनी प्यारी
मा को, कैसे मेरे डॅडी के लंड पर मर मिटी है, देखना अब ऐसे चुसेगी
जैसे ब्ल्यु फिल्म की वे स्लॅट करती है. तुम अपनी सीधी साधी मा के कारनामे
देखो, मैं तो अब तुम्हारे इस प्यारे गन्ने का रस पिए बिना नही रह सकती."

"दीदी, पहले मुझे तो अपना अमृत पिला दो प्लीज़" मैने शशिकला से मिन्नत
की. वह मुस्कर कर बोली "रात भर पिलाउन्गि, दो दिन पिलाउन्गि, तुझे प्यासा नही
रखुगी, पर अभी चुप रह मेरे छोटे से मुन्ना" मेरे सामने बैठकर उसने
मेरे लंड से खेलना शुरू कर दिया. उसे पकड़ा, हथेली मे लेकर गोल घुमाया,
उसका चुंबन लिया, अपने गालों और होंठों पर फिराया और फिर मूह मे
सुपाडा लेकर चूसने लगी. उपर देखती हुई वह मेरी आँखों मे आँखे डाल
कर आँखों आँखों मे मुझे छेड़ रही थी.

मैने कमर उचका कर भरपूर कोशिश की कि लंड उसके मूह मे और पेल
दूं, यह मीठी छेड़खानी सहना मेरे लिए असंभव था, पर वह बड़ी
चालाकी से अपना मूह दूर ले जाती जिससे बस सुपाडा ही उसके मूह मे रहता. वह
अब सुपाडे को अपनी जीभ से रगड़ रही थी, कभी अपनी जीभ की नोक मेरे सुपाडे
की नोक पर रखकर गुदगुदाने लगती. मैं क्या करता, तड़प्ता रहा.

शशिकला ने कनखियों से इशारा किया कि मा को तो देखो.
मा ने अशोक अंकल का इतना बड़ा लंड अब तक पूरा निगल लिया था. उसके होंठ
उनके पेट पर उनकी झान्टो मे जा छुपे थे.गाल फूल गये थे जैसे कोई बड़ी
चीज़ मूह मे हो, और अशोक अंकल के नौ इंच लंबे और अधाई इंच मोटे
लंड से ज़्यादा और बड़ा क्या हो सकता था. मैने मॅगज़ीन और ब्ल्यू फिल्मों मे
देखा था, बिलकुल वैसे ही कौशल से मा उनका लंड चूस रही थी.
अशोक अंकल भी कुर्सी मे हिल डुल कर कमर उठाकर मा का मूह चोदने की
कोशिश कर रहे थे. मा ने उन्हे वैसा करने दिया फिर अचानक लंड मूह से
निकाला और जीभ से निचला हिस्सा चाटने लगी. अशोक अंकल तिलमिला कर "ओह ओह ओह
दीदी प्लीज़" करने लगे. उनकी आँखे पथरा गयी थी. पर मैं समझ रहा था,
सुख के जिस सागर मे वे गोते लगे रहे थे वहाँ से उनका बचना मुश्किल था.
मा की उस कारीगरी को देखकर मुझे गर्व भी हुआ और ईर्ष्या भी हुई. क्या
गरम और सेक्सी थी मा मेरी, जो अशोक अंकल का ये हाल कर दिया. क्या मेरा लंड
कभी इतना बड़ा होगा? और मा को क्या मज़ा आ रहा होगा, कितना प्यारा लंड
है, ऐसे लंड को चूसने के लिए भी भाग्य चाहिए.

अचानक शशिकला ने मेरा लंड पूरा निगल लिया और जीभ से निचले भाग को
सहलाने लगी. मैं तुरंत झाड़ गया. "ओह दीदी ओह ओह मेरी मा &" बस इतना ही बोल
पाया. लंड के झाड़ते ही शशिकला ने लंड मूह से आधा निकालकर सुपाडा जीभ
पर लिया और बड़े चाव से चटखारे ले लेकर मेरा वीर्य खाने लगी. पूरा वीर्य
निगल कर भी वह बदमाश मेरे लंड को चुसती रही, मुझे सहन नही हुआ
पर वह हंस हंस कर जानबूझ कर मेरे लंड को सताती रही. मुझे तभी छोड़ा
जब मैं बिलकुल लस्त हो गया.
 
मा ने अशोक अंकल को इतना सस्ते मे नही छोड़ा , दस मिनिट उनसे खेलती
रही. एक बार पूरा लंड मूह से निकालकर खड़ी हो गयी और जाकर उनके सिर को
हाथों मे पकड़कर उनका किस लेने लगी. अशोक अंकल ने मा के होंठ ऐसे
चूसे जैसे जनम जनम के भूखे हों. मा ने अपनी जीभ जब उन्हे दी तो
मुझे ऐसा लगा कि वे उसे खा जाएँगे, इतनी उत्तेजना से उन्होने मा की जीभ को
मूह मे लेकर चूसा. मा ने फिर उनका सिर अपनी स्तनों पर दबा लिया. मा के
मोटे मोटे स्तनों मे सिर छुपाकर अशोक अंकल मानों एक बच्चे जैसे हो
गये, उसके निपल बारी बारी से चूसने लगे.


पाँच मिनिट उन्हे मस्त करके मा फिर उनके लंड पर जुट गयी. इस बार अपनी
हथेली उनके सुपाडे पर रखकर इधर उधर घुमा कर रगड़ने लगी. अशोक
अंकल कुर्सी मे ऐसे उछलने लगे जैसे कोई हलाल कर रहा हो. मुझे पता था
अंकल पर क्या बीत रही होगी, आज कल मा मुझे कई बार ऐसा करता था जब सताने
के मूड मे होती थी. जब उनकी हिचकियाँ निकलने लगी, तो मा ने उनके लंड
को अपने उरोजो के बीच दबा लिया और अपने स्तन उपर नीचे करके उनके लंड
को स्तनों से ही चोदने लगी. जब अंकल अपना सिर उधर उधर हिलाने लगे तो
मा ने फिर से उनका लंड मूह मे ले लिया.

अशोक अंकल जब झाडे तो उनके मूह से ऐसी ज़ोर सी हिचकी निकली जैसे जान निकल
गयी हो. तब मा का मूह खुला था और सुपाडा मा की जीभ पर टिका था. इतना
सफेद और गाढ़ा वीर्य मा की जीभ पर निकला जिसके बारे मे मैं सोच भी नही
सकता था कि कोई लंड इतना सारा वीर्य निकाल सकता है. बड़े बड़े सफेद मलाई
जैसे लौंदे मा की जीभ पर उगलने लगे. मा ने पूरा वीर्य मूह मे भर जाने
दिया. चुपचाप मूह खोले बैठी रही. जब लंड लस्त हुआ तब तक मा का मूह
पूरा सफेद मलाई से भर गया था जैसे किसीने कटोरी उडेल दी हो. मा फिर उसे
निगलने लगी. उसकी आँखों मे एक अजीब तृप्ति थी.


शशिकला तुरंत उठकर उसके पास गयी और उसके गाल चूमने लगी. मा ने
आधा वीर्य निगल कर शशिकला के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. काफ़ी वीर्य
उसने शशिकला के मूह मे दे दिया. बाकी का खुद निगल गयी. दोनों औरते एक
गहरे आलिंगन और चुंबन मे बँध गयी. दो मिनिट बाद जब वे अलग हुई तो
हँसते हुए शशिकला बोली "थैक्स मम्मी मलाई शेयर करने के लिए पर आज
वह पूरी तुम्हारे लिए निकली थी डॅडी, इतने दिन हो गये जब इतनी सारी मलाई
निकली है, तुम्हारे रूप का जादू चल गया है डॅडी पर लगता है"

मा अब भी चटखारे ले रही थी "हाँ शशि पर सोचा अब तो बहुत मलाई मिलेगी
मुझे, मेरी बेटी को क्यों तरसाऊ, तेरे प्यारे मीठे मूह का भी स्वाद ले लू ऐसा
लगा मुझे. तेरे डॅडी का लंड सचमे बहुत जानदार है. और मेरे बेटे ने
तुझे कुछ खिलाया या नही?"

"एकदम अमृत मम्मी, जवान लड़कपन का स्वाद लिए अमृत. अब इसे मैं ऐसा
निचोड़ूँगी की बस .... तुम कुछ कहना नही मम्मी."

"अरे नही, तेरा ही भाई है, कुछ भी कर, तेरा हक है, तू दीदी है उसकी." मा ने
शशिकला से कहा.

अशोक अंकल ने हाफते हुए कहा "रीमा जी आप जादूगरनी है, आप का जवाब नही,
मैं पागल हो जाउन्गा आप के साथ रहकर. पर मुझे मंजूर है"

"कैसी मम्मी चुनी है मैने डॅडी, मान गये ना? आख़िर मेरी चाइस है,
उसकी दाद देनी पड़ेगी" शशिकला ने इठलाते हुए कहा.

"अरे पर अब ज़रा मेरी भी सुनो प्लीज़, मुझे और अनिल को भी अपना रस
चखाओगि या नही, या प्यासा ही रखोगी?" अशोक अंकल अपनी बेटी से मिन्नत
करते हुए बोले.

"बस अब चलो, आप की ही बारी है. बस एक शर्त है डॅडी, आपके हाथ पैर हम
खोल देते है पर जैसा मम्मी कहेगी वैसा ही करना, वे जब तक नही कहे
उन्हे चोदने की कोशिश नही करना. आप के लंड को इसी लिए चूसा है कि अब तीन
चार घंटे बिना झाडे मम्मी की सेवा करे. और तूने भी सुना ना मुन्ना. अब ये
दीदी कहेगी तभी मुझपर चढ़ना. तब तक चुपचाप हमारी बुर रानी की
पूजा करना." शशिकला शोख अंदाज मे मुझसे बोली.

मेरे और अशोक अंकल के हाथ पैर खोल दिए गये. शशिकला और मा सोफे पर
एक दूसरे से चिपट कर बैठ गयी और अपनी टाँगे फैला दी "आ जाओ दोनों बच्चो,
आओ और अपनी देवियों की पूजा करो. उनका प्रसाद लो. देवियों ने देख लिया है
कि उनके बेचारे भक्त कितनी देर से तरस रहे है" मा ने खिलखीलाकर कहा.
 
मैं झट से शशिकला के आगे बैठ गया और उसकी टाँगों के बीच घुस गया.
मा ने जब से शशिकला की चिकनी बुर का वर्णन किया था, उसके दर्शन के
लिए मैं व्याकुल था. आज वह खूबसूरत चूत मेरे सामने थी. एकदम गोरी, एक
भी बाल नही, बालों की जड़े तक नही दिख रही थी. गोरी फूली बुर के बीच की गहरी
लकीर मे से चिपचिपा पानी बाहर आ रहा था. मैने उंगलियों से बुर खोली तो
मज़ा आ गया, उसकी बुर का छेद एकदम गुलाबी था, मखमल सा कोमल.
भगोश्ठ छोटे थे, मा से काफ़ी छोटे पर एकदम गोरे चिट्टे. और क्लिटॉरिस,
उसकी नाज़ुक बुर के हिसाब से उसका क्लिट अच्छा बड़ा था, मा से भी बड़ा. मा का
अनार के दाने जैसा था, शशिकला का क्लिट किसी रसीले अंगूर जैसा था.

"अनिल बेटे, देखता ही रहेगा या स्वाद भी लेगा? इधर देख, शशिकला के डॅडी
तो अंदर घुस गये है मेरे, ऐसे चूस रहे है जैसे कभी औरत का रस पिया न
हो" मा की मीठी झाड़ से मैं होश मे आया. बाजू मे झाका तो अशोकजी ने
अपना मूह मानों मा की बुर मे घुसेड दिया था. ज़ोर ज़ोर से चूसने की आवाज़
आ रही थी. मेरे देखते देखते उन्होने थोड़ा सिर पीछे किया, फिर जीभ से मा की
पूरी बुर उपर से नीचे तक चाटने लगे. उन्हे और कुछ नही सूझ रहा था. मेरी
ओर उन्होने क्षण भर देखा, आँखों मे मुझसे कहा कि यार क्या खजाना है
तेरी मा की चूत और फिर जुट गये.

शशिकला की बुर को चूम कर मैने कहा "मा, इतनी खूबसूरत है दीदी की यह
चूत, मुझे समझ मे ही नही आ रहा है कि कहाँ से चूसना शुरू करूँ"
मैने शशिकला की बर का एक चुम्मा लिया और फिर पपोते फैला कर चाटने
लगा. अंदर झलक रहे रस की एक एक बूँद मैने जीभ से टिप ली, फिर धीरे से उसके
क्लिट को चाटने लगा. शशिकला मस्ती मे "अया अया अया" कर उठी. अपनी
जांघे और फैला कर उसने मेरे सिर को पकड़ लिया. "अच्छा कर रहा है अनिल, और
कर ना"

मैने उसके क्लिट को जीभ से रगड़ा और फिर मूह मे अंगूर की तरह लेकर चूसने
लगा. शशिकला ने सिसक कर मेरे सिर को अपनी बुर पर दबा लिया और मा से
लिपटकर उसके स्तन को चूसने लगी. मा ने उसके बाल चूमते हुए अपनी
चूंची और उसके मूह मे दे दी. अशोक अंकल का सिर पकड़कर मा ने जांघों
मे दबा लिया और धीरे धीरे अपनी जांघे कैंची की तरह उपर नीचे करने
लगी. "चूसीए शशिकला के डॅडी, मेरा रस और चूसीए. आप को आज मैं खुश
कर दूँगी, मेरा बेटा तो दीवाना है इसका"

मैने अपनी जीभ शशिकला की बुर मे डाली और अंदर से चाटने लगा. मानों
चासनी बह रही थी उसमे से! उस मादक स्वाद के रस से मेरा लंड भी फिर से
खड़ा हो गया था. शशिकला ने भी अब मेरे सिर को अपनी जांघों मे भींच
लिया था.

आधे घंटे तक हम दोनों उन खूबसूरत औरतों की बुर के रस को पीते रहे. वे
कई बार झड़ी. लगातार हमारे सिर को अपनी बुर पर दबा दबा कर वे
हस्तमैन्थुन करती जाती और झाड़ झाड़ के अपनी बुर का पानी हमे पिलाती जाती. साथ
मे आपस मे लिपट कर एक दूसरे को प्यार करते हुए, एक दूसरे के मम्मे
चुसते हुए, चूमा चाटी करते हुए मज़ा लेती जाती. दोनों आख़िर झाड़ झाड़ कर
ढेर हो गयी और अपने पैर उठाकर वही सोफे पर एक दूसरे से लिपट कर हाफ़ती
हुई लेट गयी.
 
रा लंड फिर से खड़ा हो गया था, तन्ना कर उछल रहा था. बाजू मे देखा तो
अशोक अंकल भी अपने तनतनाए लंड को हाथ मे लेकर सहला रहे थे. मेरी
ओर देखकर प्यार से हंस दिए. "अनिल, तेरे जैसा लकी लड़का इस जग मे नही होगा,
अपनी इस अप्सरा जैसी मा के शरीर का, उसकी चूत के इस अमृत का तुझे रोज भोग
मिलता है. इतनी बला की खूबसूरत नारी मैने नही देखी आज तक"

मैने कहा "अशोकजी ...."


वे बोले "फिर कहा मुझे अशोकजी, प्लीज़, अब यह अशोकजी कहना छोड़ दो.
चाहे तो अंकल कह लो"

मैने कहा "अंकल, शशिकला कितनी सुंदर है, इतनी जवान और बला की हसीन,
आप भी तो इतने सालों से, जब से ये छोटी थी तब से इसके रूप को चख रहे
है"

वे बोले "हाँ, मेरी बेटी बहुत खूबसूरत है. मैं बात कर रहा था उमर मे बड़ी
पूरी तरह से परिपक्व मेस्योर औरतों की और तुम्हारी मा जैसी मेस्योर औरत
मिलना मुश्किल है. अब रहा नही जाता यार, इन्हे अगर अब चोदा नही तो मैं मर
जाउन्गा" कहकर वे मा के शरीर को चूमने लगे, कभी पीठ, कभी कमर
कभी जांघे! मैने भी शशिकला के जवान शरीर को सहलाना शुरू कर
दिया.
 
जब दोनों औरतों का हाफना बंद हुआ और उनकी सांस मे सांस आई तो वे भी
उठ बैठी. मा अंगड़ाई ले कर बोली "शशि बेटी, लगता है हमारा रस इन्हे
बहुत रास आया है, देखो दोनों, फिर तन कर तैयार है हमारी सेवा मे" अशोक
अंकल के लंड को पकड़कर मा बोली "क्यों अशोकजी ..."

अंकल तड़प कर बोले "प्लीज़ दीदी, मेरी इंसल्ट मत कीजिए, मैं आप का गुलाम हू,
उमर मे भी आप से बहुत छोटा हू, मुझे अशोक ही कहिए" अपने लंड पर मा
के हाथ के दबाव से वे बहुत गरमा गये थे. मा की चूंची पकड़कर दबा
रहे थे.

"अच्छा अशोक, अब क्या करना है बोलो? मेरा तो मन हो रहा है कि फिर चूस लू
इसे, कितना रसीला गन्ना है! क्यों शशि, तू क्या करती है इसके साथ? मेरा बस
चले तो इस जवान को बाँध कर रखू और बस खूब चुसू, सारी मलाई खा
जाउ."

शशि मेरे लंड को अपनी छातियों के बीच रगड़ती हुई बोली "अरे नही मम्मी,
ऐसा ज़ुल्म न करो डॅडी पर, वैसे तुम्हारा हक है, मेरी तो ये सुनते नही,
पटककर शुरू हो जाते है, अलत पलट कर मेरा रेकार्ड बजाते रहते है"

मुझे रोमाच हो आया. अलत पलट कर याने! इतने मोटे लंड से इस दुबली पतली
नाज़ुक कन्या की गांद भी मारते है अंकल? और शशिकला सह लेती है! मेरी
आँखों मे देखकर शशिकला बोली "तुझे क्यों अचरज हो रहा है? तुझे
भी तो शौक है अपनी मा का रेकार्ड दूसरी तरफ से बजाने मे! सब मर्दों का
यही शौक होता है. अच्छा चलो, आगे का काम करो. सब लोग पलंग पर चलो.
मम्मी हम दोनों ने बहुत मेहनत कर ली, अब इन्हे करने दो, आख़िर गुलाम
होते किस लिए है!"

हम सब उस बड़े पलंग पर आ गये. शशिकला ने मा को एक तरफ लिटाया और
उसके नितंबों के नीचे तकिया रखा. अपने डॅडी के लंड को पकड़कर
खींच कर उन्हे उसने मा की टाँगों के बीच बैठाया. "चलिए डॅडी, शुरू
हो जाइए. और ज़रा ठीक से मेरी मम्मी को चोदिये, मेरी इज़्ज़त का सवाल है, नही
तो आप धासद पसद बहुत करते है. जब तक रीमाजी बस न बोले, आप इन्हे
चोदेन्गे, बिना झाडे, ठीक है ना?"

अंकल तो रह ही देख रहे थे. कानों को पकड़कर बोले "कसम ख़ाता हू, मैं
तो गुलाम हू इनका, मालकिन जैसे कहेंगी मैं वैसा ही करूँगा"

मा ने शशिकला से कहा "तू नही चुदवायेगि अनिल से बेटी? लगे हाथ तू भी
इससे सेवा करवा ले. बहुत प्यारा बेटा है मेरा, तेरे उपर मर मिटेगा. मुझे
इतना प्यार करता है, देखो कितना खुश है अपनी मा की सेवा के लिए तैयार इस
भारी भरकम हथियार को देखकर" अशोक अंकल के लंड को पकड़कर मा
बोली.

शशिकला बोली "बिलकुल मम्मी, तुम्हारी और डॅडी की फिट करा दूं, फिर इसे
देखती हू. इसे मैं चोदुन्गि, छोटा है ना, मेरा हक है इसपर चढ़ने का.
अनिल, मज़ा आ रहा है? अपनी मा को चुदवाते देखना कितने बेटों को नसीब
होता है?"

मैने कहा "दीदी, आप सच कहती है, अशोक अंकल के लंड से अच्छा लंड हो ही
नही सकता मेरी मा को सुख देने के लिए"

अंकल मा की टाँगों के बीच बैठते हुए बोले "अनिल यार, चिंता मत करो,
तुम्हारी मा को मैं ऐसा चोदुन्गा कि इन्हे शिकायत का मौका नही मिलेगा"

शशिकला ने अपने डॅडी के लंड को मा की चूत पर रखा. प्यार से मा की
चूत अपनी उंगलियों से चौड़ी की और मा का चुंबन लेती हुई बोली "पेलिए
डॅडी, प्यार से, मम्मी को तकलीफ़ न हो. अब तक वह अनिल के लंड से चुदवाती
रही है, आपका तो डबल है उससे" और अपने मूह से उसने मा का मूह बंद
कर दिया.

अशोक अंकल लंड पेलने लगे. उनका मोटा मूसल मा की बुर मे घुसने लगा.
आधा लंड घुसने पर मा का शरीर कांप उठा. वह शशिकला से चिपट गयी
और अपने बंद मूह से एयेए एयेए करने लगी. अंकल रुक गये. शशिकला ने
इशारा किया कि रूको मत, पेल दो एक बार मे. अंकल ने फिर से ज़ोर लगाया और सट से
पूरा लंड मा की बुर मे उतर गया.

मा का शरीर कड़ा हो गया. वह पैर फटकारने लगी तो अंकल ने उसके पैर
पकड़ लिए. मुझे बोले "क्या चूत है तेरी मा के बेटे, इस उमर मे भी इतनी
मस्त टाइट है. और इतनी गीली और गरमागरम, मखमल से कोमल" शशिकला अब
मा के मूह को अपने मुँह से चुसते हुए धीरे धीरे उसके स्तन भी सहला
रही थी, उसके निपल उंगली मे लेकर रोल कर रही थी.

मा शांत हो गयी तो शशिकला ने मा का मूह छोड़ा "क्यों मम्मी, मज़ा
आया? दर्द हुआ क्या? वैसे मेरे डॅडी का ऐसा है कि अच्छी अच्छी खेली हुई
औरतों के छक्के छुड़ा दे. पर मैने सोचा बार बार के दर्द से अच्छा है कि
एक बार मे ले लो, फिर मज़े ही मज़े है"

मा सिसक कर बोली "हाँ बेटी, दर्द हुआ पर बड़ा मीठा दर्द था, मैं तो भूल ही
गयी थी सुहागरात के दर्द को, अशोक ने मुझे उसका आनंद दे दिया. सच मे
कितना बड़ा है अशोक का, ऐसा लगता है मेरे पेट मे घुस गया है. पर बहुत
अच्छा लग रहा है मेरी रानी"

शशिकला हट कर अशोक अंकल को बोली "चलिए डॅडी, शुरू कीजिए, मेरी बात
याद है ना!"

अशोक अंकल धीरे धीरे लंड मा की बर मे अंदर बाहर करने लगे. "ठीक है
ना रीमा जी? कि और धीरे करूँ"

मा को अब मज़ा आ रहा था. "नही नही, और ज़ोर से करो अशोक, ऐसे नही, आख़िर
चोद रहे हो, मालिश थोड़े कर रहे हो कि धीरे धीरे की जाए, कस के चोदो.
मेरे बेटे को भी देखने दो कि उसकी मा कैसे चुदति है ऐसे मतवाले लंड
से" और मा ने अपनी टाँगे उठाकर अशोक अंकल की कमर के इर्द गिर्द जाकड़ ली.
 
Back
Top