hotaks444
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मा ने उसे लिपटा लिया और प्यार से स्तनपान करने लगी. शशिकला आँखे बंद
करके मा का स्तनगार चूसने मे मग्न थी, मानों किसी बच्चे को
मनपसंद चीज़ मिल गयी हो, अपनी जांघों मे उसने मा की एक टांग पकड़
ली थी और अपनी बुर उस पर घिस रही थी.
शायद वह बहुत देर चुसती पर मा अब बहुत कामतूर हो गयी थी, उसके
निपल मे से चुदासी की ऐसी मिठास निकलकर उसके सारे शरीर मे दौड़ रही थी
कि उसके मूह से एक आह निकल पड़ी. शशिकला तुरंत उठाकर मा की टाँगों के
बीच बैठ गयी और मा की पैंटी उतार दी. मा की घनी झान्टो पर उसकी नज़र
टिक गयी.
मा तोड़ा शरमा गयी "बहुत बाल है ना शशि? मैने कई बार सोचा कि निकाल
दूं पर वो मानता ही नही ...." और अचानक चुप हो गयी जब उसे ख़याल आया कि
वह मेरे बारे मे याने अपने बेटे के बारे मे कहने ही वाली थी.
"बहुत अच्छे बाल है दीदी, घने और घूंघरले, रेशमी, मुझे अच्छे लगते
है पर सिर्फ़ बड़ी उमर की औरतों मे. किसके बारे मे बोल रही थी दीदी तुम, किसे
झान्टे अच्छी लगती है तुम्हारी? बताओ ना? अरे ऐसे शरमा रही हो जैसे नयी
दुल्हन! खैर, बाद मे बता देना, उई & मा & कितनी गीली है दीदी तुम्हारी बुर,
इतनी मस्त हो गयी है मेरी दीदी मेरे पास आकर!" मा की बुर मे उंगली करते
हुए शशिकला ने कहा. उंगली निकालकर चाटी, मा की आँखों मे आँखे
डालकर शैतानी से आँखे बड़ी करके और गर्दन मटकाकर कहा कि लाजवाब
है और फिर झुक कर मा की बुर मे मूह डाल दिया.
मा की चूत पर शशि घंटे भर लगी रही, उससे खेला, खोल कर देखा,
चूमा, चाटा, मूह मे लेकर चूसा, उंगलियाँ अंदर बाहर की और जीभ अंदर
डाली, हर तरह से मा की बुर का स्वाद लिया. मा इतनी बार झड़ी की उसे याद ही नही
रहा. सुख के शिखरों पर वह चढ़ती रही, एक से एक उँचे वासना के
शिखर!
दर्जनों बार झड़कर आख़िर मा तड़प कर शशिकला को अपने से दूर करके
सिमट कर लेट गयी, उसे अब यह सहन नही हो रहा था. "बस कर शशि, मार
डालेगी क्या!" कहकर मा लस्त होकर पड़ी रही. शशिकला उसके पीछे लेटकर
उसकी ज़ुल्फों मे मूह छिपा कर उसके स्तनों को सहलाते हुए लेट गयी.
सम्हलने के बाद मा तृप्त थके स्वर मे बोली "तू जादूगरनी है मेरी बच्ची,
क्या करती है, पागल हो जाउन्गि मैं"
"अच्छा लगा दीदी अपनी छोटी का प्यार?"
"बहुत अच्छा लगा रानी, आ मेरे आगोश मे आ जा" कहकर मा ने पलटकर
शशिकला को बाहों मे ले लिया. मा और शशिकला की वह पहली रात एक
धुन्द कर देने वाली रति मे गुज़री. एक दूसरे के शरीर को उन्होने हर तरह से
भोगा, एक दूसरे के अंगों का स्वाद लिया और प्यार की बातें की. सोने मे रात के
तीन बज गये. फिर भी वे ठीक से नही सोई क्योंकि उनकी वासना धधक रही थी.
मा की नींद तड़के खुली तो देखा कि शशिकला उसकी बाहों से निकलकर फिर
उसकी जांघों के बीच मूह दिए पड़ी है "ओ मा तू शुरू हो गयी फिर से,
तेरी जीभ है या बिजली मेरी बच्ची, ओह ओह मत कर ना, चल शैतान, कम से कम
ऐसी सिकसती नैन मे तो आ जा, दीदी को भी ज़रा फिर से अपनी बुर का शहद
चखने दे" कहकर मा ने उसे पलटकर उसकी बुर से मूह लगा दिया. एक
दूसरे की बुर चूस कर दोनों औरतें फिर सो गयी.
करके मा का स्तनगार चूसने मे मग्न थी, मानों किसी बच्चे को
मनपसंद चीज़ मिल गयी हो, अपनी जांघों मे उसने मा की एक टांग पकड़
ली थी और अपनी बुर उस पर घिस रही थी.
शायद वह बहुत देर चुसती पर मा अब बहुत कामतूर हो गयी थी, उसके
निपल मे से चुदासी की ऐसी मिठास निकलकर उसके सारे शरीर मे दौड़ रही थी
कि उसके मूह से एक आह निकल पड़ी. शशिकला तुरंत उठाकर मा की टाँगों के
बीच बैठ गयी और मा की पैंटी उतार दी. मा की घनी झान्टो पर उसकी नज़र
टिक गयी.
मा तोड़ा शरमा गयी "बहुत बाल है ना शशि? मैने कई बार सोचा कि निकाल
दूं पर वो मानता ही नही ...." और अचानक चुप हो गयी जब उसे ख़याल आया कि
वह मेरे बारे मे याने अपने बेटे के बारे मे कहने ही वाली थी.
"बहुत अच्छे बाल है दीदी, घने और घूंघरले, रेशमी, मुझे अच्छे लगते
है पर सिर्फ़ बड़ी उमर की औरतों मे. किसके बारे मे बोल रही थी दीदी तुम, किसे
झान्टे अच्छी लगती है तुम्हारी? बताओ ना? अरे ऐसे शरमा रही हो जैसे नयी
दुल्हन! खैर, बाद मे बता देना, उई & मा & कितनी गीली है दीदी तुम्हारी बुर,
इतनी मस्त हो गयी है मेरी दीदी मेरे पास आकर!" मा की बुर मे उंगली करते
हुए शशिकला ने कहा. उंगली निकालकर चाटी, मा की आँखों मे आँखे
डालकर शैतानी से आँखे बड़ी करके और गर्दन मटकाकर कहा कि लाजवाब
है और फिर झुक कर मा की बुर मे मूह डाल दिया.
मा की चूत पर शशि घंटे भर लगी रही, उससे खेला, खोल कर देखा,
चूमा, चाटा, मूह मे लेकर चूसा, उंगलियाँ अंदर बाहर की और जीभ अंदर
डाली, हर तरह से मा की बुर का स्वाद लिया. मा इतनी बार झड़ी की उसे याद ही नही
रहा. सुख के शिखरों पर वह चढ़ती रही, एक से एक उँचे वासना के
शिखर!
दर्जनों बार झड़कर आख़िर मा तड़प कर शशिकला को अपने से दूर करके
सिमट कर लेट गयी, उसे अब यह सहन नही हो रहा था. "बस कर शशि, मार
डालेगी क्या!" कहकर मा लस्त होकर पड़ी रही. शशिकला उसके पीछे लेटकर
उसकी ज़ुल्फों मे मूह छिपा कर उसके स्तनों को सहलाते हुए लेट गयी.
सम्हलने के बाद मा तृप्त थके स्वर मे बोली "तू जादूगरनी है मेरी बच्ची,
क्या करती है, पागल हो जाउन्गि मैं"
"अच्छा लगा दीदी अपनी छोटी का प्यार?"
"बहुत अच्छा लगा रानी, आ मेरे आगोश मे आ जा" कहकर मा ने पलटकर
शशिकला को बाहों मे ले लिया. मा और शशिकला की वह पहली रात एक
धुन्द कर देने वाली रति मे गुज़री. एक दूसरे के शरीर को उन्होने हर तरह से
भोगा, एक दूसरे के अंगों का स्वाद लिया और प्यार की बातें की. सोने मे रात के
तीन बज गये. फिर भी वे ठीक से नही सोई क्योंकि उनकी वासना धधक रही थी.
मा की नींद तड़के खुली तो देखा कि शशिकला उसकी बाहों से निकलकर फिर
उसकी जांघों के बीच मूह दिए पड़ी है "ओ मा तू शुरू हो गयी फिर से,
तेरी जीभ है या बिजली मेरी बच्ची, ओह ओह मत कर ना, चल शैतान, कम से कम
ऐसी सिकसती नैन मे तो आ जा, दीदी को भी ज़रा फिर से अपनी बुर का शहद
चखने दे" कहकर मा ने उसे पलटकर उसकी बुर से मूह लगा दिया. एक
दूसरे की बुर चूस कर दोनों औरतें फिर सो गयी.