hotaks444
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हैविंग फन मॉम
फ्रेंड्स आपके लिए एक कहानी पेश कर रहा हूँ ये कहानी मैने नही लिखी है इसलिए इसका क्रेडिट इस कहानी के रायटर को जाना चाहिए
"हैविंग फन मॉम, हुंह!" वैशाली के कानों मे जब यह मर्दाना आवाज गूंजी, एकाएक उसका सम्पूर्ण शरीर सुन्न पड़ जाता है। जिस विशेष नाम से उसे पिछले बाईस सालों से पुकारा जा रहा था, वह मर्दाना आवाज उसके इकलौते बेटे के अलावा और किसकी हो सकती थी?
"इसका मतलब पापा फिर से टूर पर चले गए, हम्म! तभी स्वीट ममा मैस्टबेट करके अपना गुस्सा जता रही हैं, वह भी यूं खुलेआम" अपनी माँ को सम्बोधित करता अभिमन्यु का यह लगातार दूसरा अश्लील कथन था और अपने इस दूसरे कथन को कहकर फौरन वह अपनी आँखें वैशाली के चेहरे से हटाकर उसकी नंगी जांघों की जड़ से जोड़ देता है। उसकी माँ के बाएं हाथ की तीन उंगलियां उसकी झांटों से भरी चूत की गहराई मे भीतर तक घुसी हुई थीं और बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच उसकी माँ ने ब्लाउज के ऊपर से ही अपने दाहिने निप्पल को मरोड़ा हुआ था, जो कि साफ दर्शा रहा था कि ब्लाउज के अंदर उसने कोई ब्रा नही पहन रखी थी।
अपने जवान बेटे की आश्चर्य से फट पड़ी आंखों को अपने नंगे निचले धड़ से चिपके देख अकस्मात वैशाली होश मे आई और तत्काल अपने बाएं हाथ को अपने दाहिने निप्पल से हटाकर उसने सर्वप्रथम अपनी अधखुली साड़ी को पेटीकोट समेत नीचे खींचने का प्रयत्न किया मगर हड़बडी़ मे यह भूल गई कि उसके दाएं हाथ की तीनों उंगलियां अब भी उसकी चूत के भीतर घुसी हुई थीं।
"त ...तु ...तुम घर के अंदर कैसे आए? कॉलेज! क ...कॉलेज से इतने जल्दी" तीव्रता से अपने सिर को ऊपर उठाकर वैशाली अपने निचले धड़ की वर्तमान हालत पर गौर करते हुए हकलाई। अपने पहले ही प्रयत्न मे बिस्तर पर लेटी वह माँ अपने निचले नंगे धड़ को अपनी मांसल जाघों के अंत तक ढांकने मे सफल रही थी, साथ ही इसके उपरान्त उसने अपने उसी बाएं हाथ की मदद से अपना पल्लू भी अपने ब्लाउज पर रख लिया था।
"अचानक तुम इतनी घबरा क्यों गईं? अपनी माँ के प्रश्नों के जवाब ना देकर अभिमन्यु उलटा उसीसे सवाल पूछ लेता है, उसके चेहरे पर एक ऐसी दुष्ट हँसी पनप चुकी थी जिसे देखकर वैशाली शर्म से पानी-पानी हो जाती है। वह अपने जवान बेटे के समक्ष यूं खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ी गई थी और ऐसी शर्मनाक परिस्थिति मे भी जानबूझकर बेटे द्वारा माँ की घबराहट के विषय मे पूछना उसके लिए उस शर्मनाक परिस्थिति से भी कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला क्षण था। वह गूंगी हो गई थी, एक शब्द तक उसके मुंह से बाहर नही आ सका था।
"घबराने की कोई जरूरत नही माँ, वैसे भी यह पहली बार नही जो मैंने तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देखा है" अपनी माँ का हलक चिपकता महसूस कर अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत एक और विस्फोट कर दिया और हँसते हुए वह बिस्तर पर वैशाली की अधनंगी टांगों के समीप ही बैठ जाता है।
"कब देखा? नही! नही! ऐसा नही हो सकता। आज से पहले नही ...तुम झूठ बोल रहे हो मन्यु" बेटे के दूसरे विस्फोट पर वैशाली ने चौंकते हुए कहा और साथ ही वह उससे उसके पिछले कथन का स्पष्टीकरण भी मांगती है। हालत का खेल था जो महज एक गलती पर आज बेटा स्वयं अपनी माँ पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहा था, उसे प्रत्यक्ष शर्मिंदा कर रहा था मगर फिर भी वैशाली पूरी तरह से आश्वस्त थी कि अभिमन्यु साफ झूठ कह रहा है।
"घर-घर की यही कहानी है मम्मी! पति को पैसे कमाने से फुर्सत नही, बीवी उंगलियों से काम चला रही है और मजे कोई तीसरा शख्स आकर ले जाता है। खी ..खी ..खी ..खी" पुनः अपनी माँ के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय अभिमन्यु ने नया राग अलाप दिया, उसकी दुष्ट हँसी बिलकुल उसके अश्लील संवादों की ही परिचायक थी।
"बेशर्म! ऐसा कहीं नही होता, अपनी माँ के सामने इस तरह की गंदी बात कहते हुए तुम्हें ....." क्रोध से तिलमिते हुए वैशाली अपना यह कथन पूरा कर पाती, इससे पहले ही अभिमन्यु उसे टोक देता है।
"हाँ मॉम! लज्जा आज कॉलेज नही आई वर्ना उसे तुमसे मिलवाने आज मैं घर लाने वाला था। अम्म! ठीक ही हुआ जो वह ऐब्सन्ट थी, नही तो ...." हँसते हुए अपने दांए हाथ से उसने अपनी माँ की अस्त-व्यस्त हालत की ओर इशारा किया और कहीं ना कहीं उसका यह नटखटी संकेत वैशाली की समझ मे भी आ जाता है मगर इस बार उसके चेहरे पर ना ही क्रोध था और ना ही शर्म, वह हौले से मुस्कुरा उठी थी।
"हँसी तो फँसी! हे ..हे ..हे ..हे, खैर गुस्सा ना करो तो तुम्हारे पिछले सवाल का जवाब देता हूँ। मैं पहले भी कई बार तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देख चुका हूँ पर शायद आज की तरह उन बीते शोज़ को कभी अॉडियन्स का इंतजार नही रहा था" कहने को अभिमन्यु ने अपना यह कथन पूरा तो कर दिया था मगर साथ ही एकाएक उसके टट्टे भी कड़क हो गए थे। कुछ उत्तेजना कि उसके ठीक सामने बिस्तर पर लेटी उसकी माँ का दायां हाथ अब भी उसकी नंगी चूत से चिपका हुआ है या ऐसा भी हो सकता है कि उसकी तीनों उंगलियां अबतक ज्यों की त्यों उसकी चूत के भीतर घुसी हुई हों। कुछ स्वीकारने का भय कि वह छुप-छुपकर अपनी माँ को मुट्ठ मारते हुए देखता है और उसने उसपर पर यह इल्जाम भी लगा दिया कि उसकी माँ आज जानबूझकर यूं खुलेआम मुट्ठ मार रही थी ताकि अपने जवान बेटे के हाथों पकड़ी जा सके।
"चोर-उचक्के कहीं के! तुम मेरी जासूसी करते हो, अपनी माँ की जासूसी, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उस सगी माँ की जासूसी। उफ्फ! क्या करूँ मैं इस बेशर्म का। मन्यु! यू हर्ट मी, यू रियली हर्ट योर मदर" वैशाली जैसे बरस पड़ी, अपने बेटे को चमाट लगाने के लिए वह फौरन बिस्तर से उठना चाहती थी पर उसे यह भी ख्याल था कि उठकर बैठने से पूर्व उसे अपने दाहिने हाथ को उंगलियों समेत अपनी नंगी चूत की पहुंच से दूर करना पड़ेगा, यहां तक कि हाथ अपनी साड़ी से भी बाहर निकालना होगा। कहीं उसके ऐसा करने से उसके बेटे को यह आभास ना हो जाए कि उसकी माँ उसके साथ बातचीत जारी रहने के दौरान भी अपनी चूत से खेल रही है, उंगलियों के अलावा उसका पूरा दाहिना पंजा उसकी चूत से उमड़े कामरस से भीगा हुआ था और जो उसके हाथ के साड़ी से बाहर आने के उपरान्त निश्चित ही उसके समीप बैठे अभिमन्यु को नजर आ जाता।
"चलो यह जासूसी वाली बात तुमने खुद ही मान ली तो मैंने तुम्हें माफ किया मगर तुम मुझपर, अपनी माँ पर ऐसा दोष कैसे लगा सकते हो कि मैंने तुम्हें, अपने सगे बेटे को रिझाने के लिए अपने कपड़े उतार फेंके?" अभिमन्यु के चेहरे की हवाइयां उड़ी देख वैशाली अपना अगला कथन और उसमे शामिल प्रश्न बेहद शांत स्वर मे पूरा करती है।
अभिमन्यु भी उन्हीं अनगिनती जवान होते मर्दों मे शामिल था जिनसे विपरीत लिंग का आकर्षक जरा-सा भी नही झेला जाता, जिनके मन-मस्तिष्क मे जनाना अंगों के सिवाय कुछ अन्य घूमता ही नही है। एक पढ़ी-लिखी समझदार औरत होने के नाते वैशाली अपने बेटे के इस लाइलाज मर्ज को बहुत पहले ही समझ चुकी थी, उस माँ की चौकस व परिपक्व आँखों को अभिमन्यु की बेचैनी की मुख्य वजह दर्जनो बार सबूत सहित देखने मिली थी। न्यूड मैगजीन्स, इंटरनेट पॉर्न, रोलप्लेज़, सैक्स चैट यहां तक की कई बार उसने अपने बेटे की मौजूदगी को परदे के पीछे, बंद दरवाजे की निचली सांस और की-होल आदि से महसूस किया था और वह भी तब जब वह मुट्ठ मारने या नहाने-धोने जैसे एकांत कार्यों मे व्यस्त रहा करती थी।
"और सैक्स की जिन गंदी-गंदी कहानियों को पढ़कर कुछ देर पहले तुम अपनी माँ को अपने बहतरीन सामाजिक ज्ञान का एक बढ़िया--सा एक्जाम्पल दे रहे थे, तो बेटा जी! वह पति, उसकी बीवी और उस तीसरे शख्स को तुम्हें उन्हीं कहानियों मे जाकर दोबारा खोजना चहिए क्योंकि इस घर की कहनी तुम्हारे ज्ञान के मुताबिक कभी नही होगी" जब अभिमन्यु उस शर्मसार हालत मे पहुँच गया जिस हाल से कुछ वक्त पीछे उसकी माँ जूझ रही थी तब वैशाली अपने बाएं पैर के अंगूठे से उसकी कमर को गुदगुदाते हुए बोली।
"एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी, हम्म! तो तुम्हें बारे मे पूरी जानकारी है। सॉरी मम्मी! पर मैंने सोचा था कि लाइफ मे पहली बार मौका लगा है तो क्यों ना मैं भी तुमसे माफी मंगवा लूं" अभिमन्यु गुदगुदी के अहसास से बिस्तर पर लोट लगाते हुए बोला।
"कैसी माफी और किस बात की माफी?" बिस्तर पर लोट लगाते अभिमन्यु के चूतड़ के नीचे वैशाली की काली कच्छी दबी हुई थी और जिसपर नजर पड़ते ही यौवन से भरपूर उस अत्यंत कामुक माँ की रुकी हुई उत्तेजना मे एकाएक पुनः उबाल आ गया, एक ऐसा अमर्यादित क्षण कि सभ्य और संस्कारी वैशाली बिना कच्छी के अपने जवान बेटे के समक्ष विचरण कर रही है।
"तुम्हारी दोस्त मिसिज मेहता की झूठी शिकायत को शायद तुम भूल गई मॉम, जिसकी वजह से तुमने बेवजह मेरी पॉकेटमनी बंद कर दी और घर से बाहर जाना बंद किया सो अलग" अभिमन्यु ने उसे बीस दिनों पहले बीती घटना को याद दिलाते हुए कहा।
"झूठी वह नही तुम हो, वह तो शुक्र करो कि तुम्हारी गंदी करतूत तुम्हारे पापा तक नही पहुँची वर्ना हमेशा के लिए तुम्हें घर से बाहर निकाल देते" बोलते हुए वैशाली की नजर अब भी बेटे के चूतड़ के नीचे दबी अपनी कच्छी पर थी।
"तुम ऐसी गलत हरकत कैसे कर सकते हो मन्यु? हम बहुत पुराने दोस्त है, तुम्हारी माँ समान है वह" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा और इस पूरे घटनाक्रम मे पहली बार बेटे की मौजूदगी मे ही उसके दाएं हाथ की तीनों निर्जीव उंगलियां उसकी नंगी चूत के भीतर एकदम से सजीव हो उठती हैं।
"मैंने नही चुराई उनकी पेंटी, मैं पहले भी कई बार सफाई दे चुका हूँ" अभिमन्यु की तेज व उत्साहित मर्दाना आँखें तुरंत ताड़ जाती हैं कि साड़ी के भीतर घुसे उसकी माँ के दाहिने हाथ मे अचानक से हलचल होनी शुरू हो गई है, जिसके परिणाम स्वरूप वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपनी माँ के अधनंगे बाएं पैर को उठाकर उसे सीधे अपनी गोद के बीचोंबीच रख लेता है
"बिलकुल ठीक कहा तुमने, उसी सफाई के कारण ही तुम्हारी मेहरा आंटी की पेंटी आज मुझे तुम्हारे स्टडी ड्रॉअर मे मिल गई" वैशाली के कथन को सुन अभिमन्यु के पसीने छूट गए। अपने जिस तने हुए लंड की कठोरता का स्पर्श वह अपनी माँ के बाएं तलवे से करवाने का इच्छुक था, उसकी कठोरता शीघ्रता से घटने लगती है।
फ्रेंड्स आपके लिए एक कहानी पेश कर रहा हूँ ये कहानी मैने नही लिखी है इसलिए इसका क्रेडिट इस कहानी के रायटर को जाना चाहिए
"हैविंग फन मॉम, हुंह!" वैशाली के कानों मे जब यह मर्दाना आवाज गूंजी, एकाएक उसका सम्पूर्ण शरीर सुन्न पड़ जाता है। जिस विशेष नाम से उसे पिछले बाईस सालों से पुकारा जा रहा था, वह मर्दाना आवाज उसके इकलौते बेटे के अलावा और किसकी हो सकती थी?
"इसका मतलब पापा फिर से टूर पर चले गए, हम्म! तभी स्वीट ममा मैस्टबेट करके अपना गुस्सा जता रही हैं, वह भी यूं खुलेआम" अपनी माँ को सम्बोधित करता अभिमन्यु का यह लगातार दूसरा अश्लील कथन था और अपने इस दूसरे कथन को कहकर फौरन वह अपनी आँखें वैशाली के चेहरे से हटाकर उसकी नंगी जांघों की जड़ से जोड़ देता है। उसकी माँ के बाएं हाथ की तीन उंगलियां उसकी झांटों से भरी चूत की गहराई मे भीतर तक घुसी हुई थीं और बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच उसकी माँ ने ब्लाउज के ऊपर से ही अपने दाहिने निप्पल को मरोड़ा हुआ था, जो कि साफ दर्शा रहा था कि ब्लाउज के अंदर उसने कोई ब्रा नही पहन रखी थी।
अपने जवान बेटे की आश्चर्य से फट पड़ी आंखों को अपने नंगे निचले धड़ से चिपके देख अकस्मात वैशाली होश मे आई और तत्काल अपने बाएं हाथ को अपने दाहिने निप्पल से हटाकर उसने सर्वप्रथम अपनी अधखुली साड़ी को पेटीकोट समेत नीचे खींचने का प्रयत्न किया मगर हड़बडी़ मे यह भूल गई कि उसके दाएं हाथ की तीनों उंगलियां अब भी उसकी चूत के भीतर घुसी हुई थीं।
"त ...तु ...तुम घर के अंदर कैसे आए? कॉलेज! क ...कॉलेज से इतने जल्दी" तीव्रता से अपने सिर को ऊपर उठाकर वैशाली अपने निचले धड़ की वर्तमान हालत पर गौर करते हुए हकलाई। अपने पहले ही प्रयत्न मे बिस्तर पर लेटी वह माँ अपने निचले नंगे धड़ को अपनी मांसल जाघों के अंत तक ढांकने मे सफल रही थी, साथ ही इसके उपरान्त उसने अपने उसी बाएं हाथ की मदद से अपना पल्लू भी अपने ब्लाउज पर रख लिया था।
"अचानक तुम इतनी घबरा क्यों गईं? अपनी माँ के प्रश्नों के जवाब ना देकर अभिमन्यु उलटा उसीसे सवाल पूछ लेता है, उसके चेहरे पर एक ऐसी दुष्ट हँसी पनप चुकी थी जिसे देखकर वैशाली शर्म से पानी-पानी हो जाती है। वह अपने जवान बेटे के समक्ष यूं खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ी गई थी और ऐसी शर्मनाक परिस्थिति मे भी जानबूझकर बेटे द्वारा माँ की घबराहट के विषय मे पूछना उसके लिए उस शर्मनाक परिस्थिति से भी कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला क्षण था। वह गूंगी हो गई थी, एक शब्द तक उसके मुंह से बाहर नही आ सका था।
"घबराने की कोई जरूरत नही माँ, वैसे भी यह पहली बार नही जो मैंने तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देखा है" अपनी माँ का हलक चिपकता महसूस कर अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत एक और विस्फोट कर दिया और हँसते हुए वह बिस्तर पर वैशाली की अधनंगी टांगों के समीप ही बैठ जाता है।
"कब देखा? नही! नही! ऐसा नही हो सकता। आज से पहले नही ...तुम झूठ बोल रहे हो मन्यु" बेटे के दूसरे विस्फोट पर वैशाली ने चौंकते हुए कहा और साथ ही वह उससे उसके पिछले कथन का स्पष्टीकरण भी मांगती है। हालत का खेल था जो महज एक गलती पर आज बेटा स्वयं अपनी माँ पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहा था, उसे प्रत्यक्ष शर्मिंदा कर रहा था मगर फिर भी वैशाली पूरी तरह से आश्वस्त थी कि अभिमन्यु साफ झूठ कह रहा है।
"घर-घर की यही कहानी है मम्मी! पति को पैसे कमाने से फुर्सत नही, बीवी उंगलियों से काम चला रही है और मजे कोई तीसरा शख्स आकर ले जाता है। खी ..खी ..खी ..खी" पुनः अपनी माँ के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय अभिमन्यु ने नया राग अलाप दिया, उसकी दुष्ट हँसी बिलकुल उसके अश्लील संवादों की ही परिचायक थी।
"बेशर्म! ऐसा कहीं नही होता, अपनी माँ के सामने इस तरह की गंदी बात कहते हुए तुम्हें ....." क्रोध से तिलमिते हुए वैशाली अपना यह कथन पूरा कर पाती, इससे पहले ही अभिमन्यु उसे टोक देता है।
"हाँ मॉम! लज्जा आज कॉलेज नही आई वर्ना उसे तुमसे मिलवाने आज मैं घर लाने वाला था। अम्म! ठीक ही हुआ जो वह ऐब्सन्ट थी, नही तो ...." हँसते हुए अपने दांए हाथ से उसने अपनी माँ की अस्त-व्यस्त हालत की ओर इशारा किया और कहीं ना कहीं उसका यह नटखटी संकेत वैशाली की समझ मे भी आ जाता है मगर इस बार उसके चेहरे पर ना ही क्रोध था और ना ही शर्म, वह हौले से मुस्कुरा उठी थी।
"हँसी तो फँसी! हे ..हे ..हे ..हे, खैर गुस्सा ना करो तो तुम्हारे पिछले सवाल का जवाब देता हूँ। मैं पहले भी कई बार तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देख चुका हूँ पर शायद आज की तरह उन बीते शोज़ को कभी अॉडियन्स का इंतजार नही रहा था" कहने को अभिमन्यु ने अपना यह कथन पूरा तो कर दिया था मगर साथ ही एकाएक उसके टट्टे भी कड़क हो गए थे। कुछ उत्तेजना कि उसके ठीक सामने बिस्तर पर लेटी उसकी माँ का दायां हाथ अब भी उसकी नंगी चूत से चिपका हुआ है या ऐसा भी हो सकता है कि उसकी तीनों उंगलियां अबतक ज्यों की त्यों उसकी चूत के भीतर घुसी हुई हों। कुछ स्वीकारने का भय कि वह छुप-छुपकर अपनी माँ को मुट्ठ मारते हुए देखता है और उसने उसपर पर यह इल्जाम भी लगा दिया कि उसकी माँ आज जानबूझकर यूं खुलेआम मुट्ठ मार रही थी ताकि अपने जवान बेटे के हाथों पकड़ी जा सके।
"चोर-उचक्के कहीं के! तुम मेरी जासूसी करते हो, अपनी माँ की जासूसी, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उस सगी माँ की जासूसी। उफ्फ! क्या करूँ मैं इस बेशर्म का। मन्यु! यू हर्ट मी, यू रियली हर्ट योर मदर" वैशाली जैसे बरस पड़ी, अपने बेटे को चमाट लगाने के लिए वह फौरन बिस्तर से उठना चाहती थी पर उसे यह भी ख्याल था कि उठकर बैठने से पूर्व उसे अपने दाहिने हाथ को उंगलियों समेत अपनी नंगी चूत की पहुंच से दूर करना पड़ेगा, यहां तक कि हाथ अपनी साड़ी से भी बाहर निकालना होगा। कहीं उसके ऐसा करने से उसके बेटे को यह आभास ना हो जाए कि उसकी माँ उसके साथ बातचीत जारी रहने के दौरान भी अपनी चूत से खेल रही है, उंगलियों के अलावा उसका पूरा दाहिना पंजा उसकी चूत से उमड़े कामरस से भीगा हुआ था और जो उसके हाथ के साड़ी से बाहर आने के उपरान्त निश्चित ही उसके समीप बैठे अभिमन्यु को नजर आ जाता।
"चलो यह जासूसी वाली बात तुमने खुद ही मान ली तो मैंने तुम्हें माफ किया मगर तुम मुझपर, अपनी माँ पर ऐसा दोष कैसे लगा सकते हो कि मैंने तुम्हें, अपने सगे बेटे को रिझाने के लिए अपने कपड़े उतार फेंके?" अभिमन्यु के चेहरे की हवाइयां उड़ी देख वैशाली अपना अगला कथन और उसमे शामिल प्रश्न बेहद शांत स्वर मे पूरा करती है।
अभिमन्यु भी उन्हीं अनगिनती जवान होते मर्दों मे शामिल था जिनसे विपरीत लिंग का आकर्षक जरा-सा भी नही झेला जाता, जिनके मन-मस्तिष्क मे जनाना अंगों के सिवाय कुछ अन्य घूमता ही नही है। एक पढ़ी-लिखी समझदार औरत होने के नाते वैशाली अपने बेटे के इस लाइलाज मर्ज को बहुत पहले ही समझ चुकी थी, उस माँ की चौकस व परिपक्व आँखों को अभिमन्यु की बेचैनी की मुख्य वजह दर्जनो बार सबूत सहित देखने मिली थी। न्यूड मैगजीन्स, इंटरनेट पॉर्न, रोलप्लेज़, सैक्स चैट यहां तक की कई बार उसने अपने बेटे की मौजूदगी को परदे के पीछे, बंद दरवाजे की निचली सांस और की-होल आदि से महसूस किया था और वह भी तब जब वह मुट्ठ मारने या नहाने-धोने जैसे एकांत कार्यों मे व्यस्त रहा करती थी।
"और सैक्स की जिन गंदी-गंदी कहानियों को पढ़कर कुछ देर पहले तुम अपनी माँ को अपने बहतरीन सामाजिक ज्ञान का एक बढ़िया--सा एक्जाम्पल दे रहे थे, तो बेटा जी! वह पति, उसकी बीवी और उस तीसरे शख्स को तुम्हें उन्हीं कहानियों मे जाकर दोबारा खोजना चहिए क्योंकि इस घर की कहनी तुम्हारे ज्ञान के मुताबिक कभी नही होगी" जब अभिमन्यु उस शर्मसार हालत मे पहुँच गया जिस हाल से कुछ वक्त पीछे उसकी माँ जूझ रही थी तब वैशाली अपने बाएं पैर के अंगूठे से उसकी कमर को गुदगुदाते हुए बोली।
"एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी, हम्म! तो तुम्हें बारे मे पूरी जानकारी है। सॉरी मम्मी! पर मैंने सोचा था कि लाइफ मे पहली बार मौका लगा है तो क्यों ना मैं भी तुमसे माफी मंगवा लूं" अभिमन्यु गुदगुदी के अहसास से बिस्तर पर लोट लगाते हुए बोला।
"कैसी माफी और किस बात की माफी?" बिस्तर पर लोट लगाते अभिमन्यु के चूतड़ के नीचे वैशाली की काली कच्छी दबी हुई थी और जिसपर नजर पड़ते ही यौवन से भरपूर उस अत्यंत कामुक माँ की रुकी हुई उत्तेजना मे एकाएक पुनः उबाल आ गया, एक ऐसा अमर्यादित क्षण कि सभ्य और संस्कारी वैशाली बिना कच्छी के अपने जवान बेटे के समक्ष विचरण कर रही है।
"तुम्हारी दोस्त मिसिज मेहता की झूठी शिकायत को शायद तुम भूल गई मॉम, जिसकी वजह से तुमने बेवजह मेरी पॉकेटमनी बंद कर दी और घर से बाहर जाना बंद किया सो अलग" अभिमन्यु ने उसे बीस दिनों पहले बीती घटना को याद दिलाते हुए कहा।
"झूठी वह नही तुम हो, वह तो शुक्र करो कि तुम्हारी गंदी करतूत तुम्हारे पापा तक नही पहुँची वर्ना हमेशा के लिए तुम्हें घर से बाहर निकाल देते" बोलते हुए वैशाली की नजर अब भी बेटे के चूतड़ के नीचे दबी अपनी कच्छी पर थी।
"तुम ऐसी गलत हरकत कैसे कर सकते हो मन्यु? हम बहुत पुराने दोस्त है, तुम्हारी माँ समान है वह" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा और इस पूरे घटनाक्रम मे पहली बार बेटे की मौजूदगी मे ही उसके दाएं हाथ की तीनों निर्जीव उंगलियां उसकी नंगी चूत के भीतर एकदम से सजीव हो उठती हैं।
"मैंने नही चुराई उनकी पेंटी, मैं पहले भी कई बार सफाई दे चुका हूँ" अभिमन्यु की तेज व उत्साहित मर्दाना आँखें तुरंत ताड़ जाती हैं कि साड़ी के भीतर घुसे उसकी माँ के दाहिने हाथ मे अचानक से हलचल होनी शुरू हो गई है, जिसके परिणाम स्वरूप वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपनी माँ के अधनंगे बाएं पैर को उठाकर उसे सीधे अपनी गोद के बीचोंबीच रख लेता है
"बिलकुल ठीक कहा तुमने, उसी सफाई के कारण ही तुम्हारी मेहरा आंटी की पेंटी आज मुझे तुम्हारे स्टडी ड्रॉअर मे मिल गई" वैशाली के कथन को सुन अभिमन्यु के पसीने छूट गए। अपने जिस तने हुए लंड की कठोरता का स्पर्श वह अपनी माँ के बाएं तलवे से करवाने का इच्छुक था, उसकी कठोरता शीघ्रता से घटने लगती है।