आम तौर पर हमारे रात्रि चुंबन के समय मैं सोफे पर बैठा थोड़ा आगे को झुकता था और वो मेरे सामने खड़ी होकर नीचे झुक कर मेरे होंठो पर चुंबन देती थी मगर उस दिन वो उस जेगह होना था जहाँ कॉरिडर से वो अपने रूम में चली जाती और मैं अपने रूम में जो के मेरे बेडरूम के सामने होना था. हम दोनो मेरे बेडरूम के दरवाजे के आगे एक दूसरे को सुभरात्रि बोलने के लिए रुक गये. अब हमे वो चुंबन हम दोनो के एक दूसरे के सामने खड़े होकर करना था जिसमे कि उसे अपना चेहरा उपर को उठाना था जबके मुझे अपना चेहरा नीचे को झुकाना था.
उस चुंबन की आत्मीयता और गहराई पहले चुंबनो के मुक़ाबले खुद ब खुद बढ़ गयी थी, रात के अंधेरे की सरसराहट उसे रहास्यपूर्ण बना रही थी. हम इतने करीब थे कि मैं उसके मम्मो को अपनी छाती के नज़दीक महसूस कर सकता था, यह पहली वार था जब हम ऐसे इतने करीब थे. मुझे नही मालूम कि उसके मामए वाकाई मुझे छू रहे थे या नही मगर वो मेरी पसलियों के बहुत करीब थे, बहुत बहुत करीब! उसके माममे हैं ही इतने बड़े बड़े!
हम दोनो ने उस दिन काफ़ी वाक़त एकसाथ गुज़ारा था, खूब मज़ा किया था, एक दूसरे के साथ का बहुत आनंद मिला था. मन में आनंद की तरंगे फूट रही थी और जो अतम्ग्लानि मैने पिछले गीले चुंबनो को लेकर महसूस की थी वो पूरी तेरह से गायब हो चुकी थी. महॉल की रोमांचिकता में तब और भी इज़ाफा हो गया जब उसने अपना हाथ (असावधानी से) मेरे बाएँ बाजू पर सहारे के लिए रख दिया.
जब उसने उपर तक पहुँचने के लिए खुद को उपर की ओर उठाया तो मैने निश्चित तौर पे उसके भारी मम्मो को अपनी छाती से रगड़ते महसूस किया. मैने खुद को एकदम से उत्तेजित होते महसूस किया और फिर ना जाने कैसे, खुद बा खुद मेरी जीब बाहर निकली और मेरे होंठो को पूरा गीला कर दिया जब वो उसके होंठो को लगभग छूने वेल थे. वो मुझे इतने अंधेरे में होंठ गीले करते नही देख पाई होगी.
जैसे ही हमारे होंठ एक दूसरे से छुए, प्रतिकिरिया में खुद बा खुद उसका दूसरा हाथ मेरे दूसरे बाजू पर चला गया और इसे संकेत मान मेरे होंठो ने खुद बा खुद उसके होंठो पर हल्का सा दबाब बढ़ा दिया.
यह एक छोटा सा चुंबन था मगर लंबे समय तक अपना असर छोड़ने वाला था.
उसके होंठ भी नम थे. उसने उन्हे नम किया था जैसे मैने अपने होंठ नम किए थे. क्योंकि मैं उसके उपर झुका हुआ था, इसलिए जब हमारे होंठ आपस में मिले और उन्होने एक दूसरे पर हल्का सा दवाब डाला तो दोनो की नमी के कारण उसका उपर का होंठ मेरे होंठो की गहराई में फिसल गया जबकि मेरा नीचे वाला होंठ उसके होंठो की गहराई में फिसल गया. और सहजता से दोनो ने एक दूसरे के होंठो को अपने होंठो में समेटे रखा. मैने उसका मुखरस चखा और वो बहुत ही मीठा था. मुझे यकीन था उसने भी मेरा मुख रस चखा था.
जैसे ही उसको एहसास हुआ के हमारा शुभरात्रि का वो हल्का सा चुंबन एक असली चुंबन में तब्दील हो चुका है तो वो एकदम परेशान हो उठी. उसके हाथों ने मुझे धीरे से दूर किया और उसने अपना मुख मेरे मुख से दूर हटा लिया. हमारा चुंबन थोड़ा हड़बड़ी में ख़तम हुया, वो धीरे से गुडनाइट बुदबुदाई और जल्दी जल्दी अपने रूम को निकल गयी.
मैं कम से कम वहाँ दस मिनिट खड़ा रहा होऊँगा फिर थोड़ा होश आने पर खुद को घसीटता अपने बेडरूम में गया और जाकर अपने बेड पर लेट गया.
मेरे लिए यह स्वाभाविक ही था कि मैं अगले दिन कुछ बुरा महसूस करते हुए जागता. हम ने एक दूसरे को ऐसे चूमा था जैसा हमारे रिश्ते में बिल्कुल भी स्विकार्य नही था और फिर यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागते हुए गयी थी, से साबित होता था कि हम ने कुछ ग़लत किया था. मुझे समझ नही आ रहा था कि हम एक दूसरे का सामना कैसे करेंगे
हम इसे एक बुरा हादसा मान कर भूल सकते थे और अपनी ज़िंदगी की ओर लौट सकते थे, मगर असलियत में यह कोई हादशा नही था. हम ने इसे स्वैच्छा से किया था इसमे कोई शक नही था.
1. मैने वास्तव में अपनी सग़ी माँ को चूमा था और वो जानती थी कि मैने उसे जिस तरह चूमा था वैसे मैं उसे चूम नही सकता था. यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागती हुई गयी थी, साबित करती थी कि मेरा उसे चूमना ग़लत था और वो खुद यह जानती थी कि यह ग़लत है इसलिए उसने इस पर वहीं विराम लगा दिया इससे पहले के हम इस रास्ते पर और आगे बढ़ते.
मगर हम ने इस समस्या से निजात पाने का आसान तरीका चुना. हम ने ऐसे दिखावा किया जैसे कुछ हुआ ही नही था. वैसे भी ऐसा कुछ कैसे घट सकता था? वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा. कुछ ग़लत नही घट सकता था. जो भी पछतावा था जा शरम थी वो सिर्फ़ हमारी चंचलता और शरारत की वेजह से थी.
मुझे जल्द ही समझ में आ गया के इंसानी दिमाग़ की यही फ़ितरत होती है कि वो किसी ग़लती की वेजह से होने वाली आत्मग्लानी को यही कह कर टाल देता है कि ग़लती की वेजह अवशयन्भावि थी. हम ने एक सुखद, आत्मीयता से भरपूर शाम बिताई थी इसलिए यह स्वाभाविक ही था हम एक दूसरे को खुद के इतने नज़दीक महसूस कर रहे थे कि वो चुंबन स्वाभाविक ही था. इसके इलावा इतना गहरा अंधेरा था कि हमे कुछ दिखाई भी तो नही दे रहा था.
जब एक बार पछतावे की भावना दिल से निकल गयी और उस 'शरारत' को न्यायोचित ठहरा दिया गया तो मेरे लिए माँ को नयी रोशनी में देखना बहुत मुश्किल नही रह गया था. मैं वाकाई में माँ को एक नयी रोशनी में देख रहा था. मैं उसे ऐसे रूप में देख रहा था जिसकी ओर पहले कभी मेरा ध्यान ही नही गया था.
मैने ध्यान दिया कि वो नये और आधुनिक कपड़ों की तुलना में पुराने कपड़ों में कहीं ज़्यादा अच्छी लगती है. वो नयी और महँगी स्कर्ट्स की तुलना में अपनी पुरानी फीकी पड़ चुकी जीन्स में कहीं ज़यादा अच्छी दिखती थी. वो ब्लाउस के मुक़ाबले टी-शर्ट में ज़्यादा सुंदर लगती थी. उसके बाल चोटी में बँधे ज़्यादा अच्छे लगते थे ना कि जब वो हेर सलून से कोई स्टाइल बनवा कर आती थे. यहाँ जिस खास बिंदु की ओर मैं इशारा करना चाहता हूँ वो यह है कि वो मुझे वास्तव में बहुत सुंदर नज़र आने लगी थी-----एक सुंदर नारी की तरह.