Naukar Se Chudai नौकर से चुदाई - Page 2 - SexBaba
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Naukar Se Chudai नौकर से चुदाई

खटिया से उतर कर जाने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया..जाने दो
ना...अब क्या है.मैं धीरे से बोली.अभी मत जाओ ना बीबीजी..अभी मन
नही भरा. वा सरलता से बोला..सच कहे तो मन तो हमारा भी नही
भरा था. पर मुझे बाथरूम आ रही थी. उसका हाथ छुड़ा धीरे
से बोली.छोड़ो ना..मुझे पिशाब आ रही है.तो यही मोरी पर कर लो
ना..वही पानी भी रखा है..मैं समझ गयी कि अभी ये मुझे छोडने
को तैयार नही है. मैं अंधेरे मे टटोल टटोल कर कमरे मे ही एक
कोने पर बनी मोरी पे गयी. बैठते ही मेरा तो ऐसी ज़ोर से पेशाब
छूटा कि मैं खुद हैरान रह गयी. एक दम तेज सुर्राटी की आवाज़
निकली तो मैं खुद पर ही झेंप गयी.हरिया भी कमरे मे था.सुन रहा
होगा.वो क्या सोचेगा.पर क्या करतीमजबूरी थी.मेरे तो पेशाब ऐसे
ही जोरदार आवाज़ के साथ निकलता है. पेशाब करने के बाद मेने
बाल्टी से पानी ले कर अपनी चूत को धोया. और अंधेरे मे ही
लड़खड़ाती हुई वापस खटिया के पास आई तो हरिया ने पकड़ कर
फॉरन अपनी बगल मे लेटा लिया.. मुझे नंगे बदन उससे लिपट कर मज़ा
ही आ गया. उस के चौड़े सीने मे घुस कर मैं सारे जहा का सुख पा
गयी.उपर से वो पीठ और कमर पर हाथ फेरने लगा तो सोने मे
सुहागा हो गया. मेने खूब चिपक चिपक कर उसके स्पर्श का आनंद
लिया. जब मैं हरिया के साथ थोड़ी कंफर्टेबल हो गयी तो मेने ही
बात छेड़ी..हरिया..मुझे डर लगता है..-कैसा डर बीबीजी.- मैं
कुछ नही बोली,बस उस के चौड़े सीने मे नाक रगड़ दी..वह मेरे कूल्हे
पर हाथ ले गया.तपथपाया..डरने की क्या बात है बीबी जी,
औरत मरद का तो जोड़ा होता है.या मैं नौकर हू,इस लिए.. मैं एक दम
ज़ोर से उस से लिपट गयी..ऐसा ना कहो,हरियाआ..उसने मेरे कूल्हों पर
हाथ चलाया..फिर.क्या आपकी जिंदगी मे और कोई मर्द है ?.मैं
अंधेरे मे और ज़ोर से उस से लिपट गयी.. नही.धात...तुम भी तो हो
मेरे साथ दो साल से...होता तो क्या तुमको नही दिखता ? मैने उल्टा
सवाल किया.मुझे तो नही दिखा..मैं उस की बाहों मे कसमसाई..नही
है...मुझ विधवा को कौन पसंद करेगा रे..- आपको क्या पता
बीबीजी आप कितनी खूबसूरत हो.-मुझे तो बहुत डर लगता
है..हरियाआअ.मैं उस से चिपक गयी.क्यों डरती हो..बीबीजी.सब कोई
तो करते है यह काम.
 
उसने मेरा दांया कुल्हा पकड़ के दबाया..मेरा नरम मांसल कुल्हा..उस
का खुरदुरा कड़ा हाथ..काम्बीनेशन अच्छा था. पहले तो सिर्फ़
सहला रहा था,जब उस ने देखा कि मैं कोई विरोध नही कर रही हू तो
दबाने भी लगा. मेरे कुल्हों के माँस को दबा कर लाल कर दिया
कम्बख़्त ने.पर मुझे लग बहुत अच्छा रहा था. मैं अपनी बाँह उसके
गले मे डाल कर लिपट गयी. और अपने मम्मों को उस के सीने मे दब
जाने दिया..कही कुछ हो गया तो बड़ी बदनामी हो जाएगी रे...-कुछ
नही होगा बीबीजी.कहा तो था..आपरेशन करवा लिया हू.सुनते है
आपरेशन फेल भी तो हो जाता है...मेने अपने मन की शंका
बताई.तो...उसने मेरे जवान कूल्हे का मज़ा लिया.तो क्या..अरे बाबा
आपरेशन फेल हो गया तो मुझ विधवा का क्या होगा भला ?.उसने ज़ोर से
मुझे जाकड़ के मेरे कूल्हे का हलवा बना
डाला..बीबीजीईईईई...मेरे होते हुए आप काहे की विधवा.कहो तो
सुबह मंदिर मे शादी कर लेते है.. अब चौकने की बारी मेरी थी.
ये तो मेरे लिए सीरीयस है. इतना सीरीयस..शादी करना चाहता
है मुझ से.ऐसा अनोखा प्रापोज़ल मुझे अपनी सारी जिंदगी मे नही
मिला था. मेरे तो सुनकर ही रोए खड़े हो गये.पूरे बदन मे
अजीब सी खुशी का अहसास हो रहा था..तुम.तुम..तो शादी शुदा हो
ना.-तो क्या हुआ बीबीजी.एक मरद की दो औरते नही होती है क्या ?.ओ
मा..ये तो बड़े बुलुंद ख्याल का दिखाई पड़ता है. मैं मन मे
सोची.शायद देवी माता मेरी सहायता कर रही थी. मैं उस की बाहों
मे इठला कर बोल पड़ी..मुझ से शादी करोगे ? इतनी पसंद हू मैं
?बहुत...बहुत..आप बहुत ज़्यादा खूबसूरत हो बीबीजी. पता है यहा
पूरे मोहल्ले मे आप से ज़्यादा सुंदर कोई नही है..और उसने मेरे कूल्हे
को मसल डाला..हमारे गाँव मे तो आपके जैसी गोरी एक भी औरत
नही है.और वो तुम्हारी औरत ?..देवकी...? मुझे उस की गाँव वाली
औरत का नाम पता था.अरे..वो क्या खा कर आपका मुकाबला करेगी.वो
तो आपके पाँव की धूल भी नही है बीबीजी..अपनी तारीफ़ सुन कर
मुझे बहुत अच्छा लगा. उसी चक्कर मे मैं फिर से गरम हो गयी. और
उस से लिपटने लगी ज़ोर ज़ोर से साँस छोड़ने लगी. मेरी उत्तेजना की
ये हालत देख हरिया फॉरन मेरे उपर चढ़ आया. उस का लंड तो पता
नही कब का खड़ा हो चुका था. बस मेरे उपर सवार हो मेरी टांगे
उठा दी. अबकी बार तो मेने खुद भी सहयोग करते हुए अपनी टाँगों
को मोड़ा. तब उसने अंधेरे मे ही अपना खड़ा लंड मेरी बालों भरी
चूत से लगाते हुए कहा...बोलो फिर.क्या कहती हो.करनी है कल
शादी ?.एक तो चूत पर खड़े लंड की रगदन और उपर से शादी का
प्रापोज़ल..मेरे तो छक्के छूट गये. बस कह कुछ नही पाई.उसके दोनो
हाथों को अपने दोनो हाथों से पकड़ कर दबा लिया. वह कुछ ना बोला.
शायद मेरी हालत समझ रहा था. बस...धक्का लगा कर लंड मेरे
अंदर घुसा दिया.
भाई लोगो कहानी अभी बाकी है आगे की कहानी अगले भाग मे आपका
दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे.......

अंदर पहले का पानी भरा था. और मैं दुबारा गीली भी हो रही

थी.लंडराज ऐसे घुसे जैसे मक्खन मे छुरी. लेकिन छुरी तो छुरी

होती है. रोकते रोकते भी मेरे मुँह से सीत्कार निकल पड़ी. अंधेरा

बंद कमरा मेरी ज़ोर की सीत्कार से गूँज उठा..सीईईई.बदन कड़ा

पड़ गया. बिस्तर की चादर हाथों से पकड़ नोच ली. उसने तो एक ही

धक्के मे पूरा लंड जड़ तक अंदर घुसा दिया. जब घुस गया तो मेने

यह सोच कर कि यह कही अभी का अभी शुरू ना हो जाए-उसे अपने उपर

गिरा लिया.और उस के गले मे बाहे डाल दी. और और अचानक मुझे ना

जाने क्या हुआ कि मैं रो पड़ी. सूबक सूबक कर रो पड़ी. रात के

अंधेरे मे...हरिया की खटिया पर..एकदम मादरजात नंगी.हरिया का

मोटा लंड अपनी चूत मे फुल घुसवाए हुए.मैं ज़ोर ज़ोर से रो रही

थी बेचारा हरिया तो हक्का बक्का रह गया..उसने अपना लंड तो नही

निकाला-पर लंड को चूत मे स्थिर कर बार बार पूछने लगा.क्या हुआ

बीबीजी. मैं बहुत देर तक रोती रही.वह चुपचाप लंड घुसेडे मेरे

बालों मे उंगलीया फिराता रहा. जब मैं थोड़ा नारमल हुई तो

सुबकि भर उस से बोली..मुझे छोड़ के मत जाना हरिया...-मेरा

तुम्हारे सिवा कोई नही है...आप बिल्कुल मत डरो बीबीजी..मैं आपको

क्यों छोड़ूँगा.मुझे आपके जैसी सुंदर औरत कहा मिलेगी.मुझ पर

भरोसा करो बीबीजी..और जानते है क्या हुआ..?.हरिया ने खचाक से

अपना लंड मेरी चूत से खीच लिया. उठा. खाट से उतरा. मुझे हाथ

पकड़ कर उठाया. खीच के मुझे दीवार की तरफ ले गया.

और.खत..आवाज़ के साथ कमरे की ट्यूब लाईट जल उठी. अजीब

द्रश्य था. मैं और वो दोनो मादरजात नंगे थे. उस का मोटा सा

काला लंड अभी भी तन कर खड़ा था.मेरे आगे लकड़ी के डंडे जैसा

झूल रहा था..एक दम काला मोटा लंबा.उसमे तीनों ही खूबीया थी.इत्ता

बड़ा लंड मेने तो जिंदगी मे पहली बार देखा था. मेरी तो साँस ही

थम गयी. लज्जा के मारे मेरा बुरा हाल था. वह मुझे खीच कर

भगवान के आलिए के पास ले गया. और मैं कुछ समझ पाती इस के

पहले ही उस ने वाहा से सिंदूर ले कर मेरी माँग भर दी. ओह्ह्ह्ह्ह माँ यह

क्या किया रे मुझ विधवा की माँग मे सिंदूर !!!!!!!!! मैं तो

गणगना कर वही ज़मीन पर बैठ गयी. हरिया ने पकड़ कर मुझे

उठाया और खटिया पर ले गया. वा मेरी बगल मे लेटने लगा तो मैं

कुनमूनाई..ला..ई..ट. वह मूँछों मे मुस्कराया..अब लाईट तो रहने

दो बीबीजी..कम से कम मैं तुम्हे देख तो सकूँ. और वह भी मेरे पास

आ लेटा.
 
मैं रोशनी मे शरमाती हुई बोली..-यह क्या किया ? मेरी माँग

भर दिए ? और उसके सीने मे मुँह छुपा लिया..उसने मुझे अपनी बाहों

मे भर लिया..आप नाराज़ तो नही हो ना ? उसका हाथ मेरी पीठ पर

था. मुझसे शरम के मारे कुछ बोलते नही बना.बताओ ना

बीबीजी..अपने मन की बात खुल कर कहो. मैं तब भी कुछ ना बोली.बस

अपनी बाहे उसके गले मे पिरो कर अपने मम्मे उसके सीने से दबा

दिए..मेरे मम्मों का मधुर दबाव महसूस कर वह अपना जवाब पा गया.

और बस अगले ही क्षण वह मेरे उपर था. मैं अपनी टाँगों को खुद ही

मोड़ कर उस के लिए जगह बनाते हुए सोच रही थी कि ये आख़िर चीज़

क्या है.कितनी देर हो गयी अभी तक अपना लंड खड़ा ही किए हुए

है.पहले मेरी मे घुसा चुका था-फिर निकाल के, उठा कर ले

गयामांग मे सिंदूर भरा-फिर खटिया पर आ कर घुसाने को तैयार

है.कब से खड़ा है इसका दूसरे का होता तो अभी तक कभी का ढीला

हो जाता. और मेने टांगे मोडी ही थी कि मेरे प्यारे नौकर ने अपना

लंड पकड़ कर मेरी चूत से लगा दिया. वह धक्का दे उसे अंदर करता

उस के पहले ही मैं उसका हाथ पकड़ कह उठी..हा..री..याआअ

धी..रे...-वह मुस्करा दिया..

अब कमरे मे ट्यूब लाईट का उजाला था,इस वजह से मुझे अपने नौकर
के आगे बहुत शरम आ रही थी.मेने उसे मुस्कराता पा शरमा कर
अपना हाथ कुहनी से मोड़ कर आँखों पर,चेहरे पर रख लिया. उसने
धक्का दिया तो लंड प्रवेश की पीड़ा से मैं एक बारगी तड़प उठी. पर
मुँह को कस के बंद किए रही..बीबीजी..दर्द हो रहा है क्या ? मैने
कहा तो कुछ नही,पर दर्द महसूस ज़रूर कर रही थी.बहुत मोटा और
कड़ा लंड था साले का.ज़्यादा दर्द हो रहा हो तो निकाल लू ? उसने मुझे
छेड़ा..मैं काट के रह गयी. 35 साल की मेरी उमर एक बच्चे की माँ
यह ठीक है कि मेने सात साल बाद लिया था पर यह तो संसार का
आठवा आसचर्या होता कि दर्द की वजह से उसे लंड निकालना पड़
जाता. मैने कनखियों से उसे देखा. मालकिन की चूत मे लंड घुसा
बड़ा खुश नज़र आ रहा था..बीबी जी.(उसने थोड़ा सा लंड बाहर की
तरफ खीचा.)उम...(मैं गणगना कर कमर हिलाई)बोला करो...(उसने
झट से पूरा अंदर कर दिया) मुझे शरम आती है ना.(मैं धक्के से
हिल उठी)अरे इसमे कैसी शरम.यह तो सब कोई करते है.(उसने मेरे
घुटने पकड़ चौड़े कर दिए)बताओकरते है कि नही.(और एक मझोला
धक्का मारा) का..का..करते..है..(मैं आनंद से विहल हो
उठी.)औरत मरद का तो जोड़ा होता है बीबीजी..इसमे कैसी शरम.(उसने
लंड अंदर किया).( मैं मोटे लंड की मार से व्याकुल हो तकिये पर
उपर खिसक पड़ी) बीबीजी.देखो..शरम करोगी तो मज़ा नही
आएगा...(उसने अपने लंड राम को इतना बाहर निकाला लिया कि अंदर
बस सुपारा ही बचा)..(मैं चुप्पी मारे चेहरे पर कुहनी मोडेपडी
रही.)बीबीजी. (उसने मेरी टाँगो को भरपूर उँचा उठा कर लंड
घुसाया.)..(मैं सात साल बाद मर्द का मज़ा ले रही थी.जवाब नही
दिया.बस चुप पड़ी रही )बीबीजी...बोलो ना..अपने मन की भावना को
प्रगट करो..ऐसे चुप ना रहो...मुझे चूत खोल कर पड़ी रहने वाली
औरते पसंद नही है..(और गचाक से लंड घुसेड़ा).

हम बोल तो रहे
हैं.(मैने कुनमूना के उसके धक्के का मज़ा लिया.)बोलोज्यादा दर्द तो नही
है अंदर.(उसने मेरे घुटने को सहलाया)ज़्यादा नही है...(मैं
शरमा के कही)निकाल लू ?धात..-फिर.(वह हंसा)मैं क्या
जानूँ.(मेरे गाल लाल हो गये)चोदु...(वह गपाक से अंदर
किया)हामाआ.(मस्ती के मारे मेरे मुँह से हा निकल पड़ी)मज़ा पा रही
हो ना.(वह बाहर खीचा)हामाआ..(मुझे लगा कि मई जन्नत मे
हू.)ज़ोर से चोदु ?... (वह मेरी जाँघ पर हाथ फेरा)नही...(मैं
उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रही थी.)फिर..(वह पूरा का पूरा लंड
अंदर कर दिया.) धीरे..हाय..धीरे सीई रीई..(मैं दर्द से कराह
उठी).वह धीरे से निकाला.धीरे से घुसाया..ऐसे ? ( मेरी तरफ
देख मुस्कराया)हाँ...आईसीई ईईईईई..(मैं धक्कों के ज़ोर से
उचक पड़ी)मज़ा आया ?(उसे मालकिन की चूत पर कब्जा करने की अपार
खुशी थी)सीईईई..(मैं ज़ोर से सीत्कार उठी.पर उस का जवाब नही
दिया)बोलो..(वह अपना कड़क लंड मेरी चूत मे जड़ तक पेल दिया.)क्या..
(मैं धक्के के ज़ोर से तकिये पर उपर की तरफ खिसक गयी.)कैसा लग
रहा है...
 
(वह जल्दी वाला धक्का मारा )सीईईईईई...हरिय्ाआआ..मर
जाउम्गीईईईइ..(मैने चेहरे से हाथ हटा उसका हाथ पकड़ लिया.).वह
तो तेश मे आ गया और तीन चार धक्के दिए. मैं झरने के कगार पर
पहुँच गयी. उत्तेजना की चरम सीमा पर पहुँच मेरी सारी शरम
पता नही कहा घुस गयी. मेने अपने नौकर का हाथ पकड़ उसे अपने
उपर गिरा लिया और दोनो हाथोंदोनो पाओंसे उसे बुरी तरह जकड़ते
हुआ ज़ोर से सिसकारी सी भरी..ओ हर्र्रियाअ रहह..मेरा शरीर
रोमांच से भर उठा. मैं हरिया के नीचे एकदम पत्ते की तरह कंपकपाने
लगी. जैसे कोई जुड़ी ताप बुखार चढ़ा हो. मेरे मुँह से बस
ईईईईईईईईईईईईईईई की आवाज़ निकल रही थी. चतुर
हरिया समझ गया कि मेरा डिस्चार्ज हुआ है. उसने उसीमे कस के तीन
चार धक्के मार दिए. और लो उसका भी हो गया..लंड मेरे अंदर तुनक
तुनक के अपना माल गिराने लगा. मैं अपने नौकर की क्रीड़ा पर
निहाल हो गयी..दोनो एक दूसरे को ऐसे जाकड़ लिए कि अब कभी जुदा ही
नही होना है...----.औरत की जिंदगी मे मर्द के पहले
चुबन की बहुत ज़्यादा अहमियत रहती है. शायद मर्द को भी
रहती हो. आप को यह जानकर ताज्जुब होगा कि मैं पिछले दिनों अपने
नौकर हरिया द्वारा चोदि तो गयी थी..पर ना तो उसने मेरा मम्मा
दबाया था और ना ही मुझे चूमा था. पता नही उसके यहा इन बातों
का रिवाज भी था या नही. पर उसके मेरी माँग भर कर चोदने के
तरीके से मैं बहुत थ्रील्ड थी. हालाकी मैने कई बार मर्द के साथ
कल्पना मे चुदाई की थी. पर हरिया का ख़याल उसके नौकर होने की
वजह से कभी नही आया था. एक ऐसे व्यक्ति से चुदाई करवाने का
मज़ा कुछ और ही होता है जिसके बारे मे आपने पहले कभी सोचा ही
नही हो. मेने तो कभी कल्पना ही नही की थी कि किसी दिन अपने नौकर
हरिया से चुदवाउंगी. हालाकी वह मेरे साथ पिछले दो साल से
है..तो मैं बात कर रही थी पहले चुंबन की. मुझे हरिया से
पहला चुंबन आज शाम को मिला. जब मैं स्कूल से आई तो दरवाजा
खोलनेवाला हरिया था. मैं अंदर आई तो उसने फॉरन दरवाजा बंद
कर मुझे बाहों मे भर लिया. एक दम दिन दहाड़े उसकी इस हरकत से
मैं घबरा सी गयी. उसकी बाहों से निकलने की कोशिश की.
छटपताई..छोड़ो ना..-क्या करते हो..-कोई देख लेगा ना.. मैं
छटपटा कर उसकी बाहों से आज़ाद होने की कोशिश करती रही. पर
मेरा यह प्रयास व्यर्थ था. मर्द के आलिंगन से छूटना हम औरतों
के लिए इतना आसान नही होता है. और फिर अगर मर्द हरिया के जैसा
कड़ियल हो तो बिलकुल भी नही. उल्टे इस चक्कर मे मेरे ब्लाओज मे कसे
उरोज उसके चौड़े सीने से रगड़ रगड़ उठे. और तब उसने मुझे चूमा.
एक चुंबन..मेरा पहला चुंबन.मेरे दाएँ वाले गाल पर..हरिया
सावला रंग हमेशा धोती और बंदी पहनता है. 30-35 की उमर
पहाड़ी मर्द कसरती देह फॉलादी बाँहे तेज बीड़ी की महक मेरे
नथुनो मे घुसती चली गयी. बड़ी बड़ी झाओ मुच्छे मेरे गोरे गोरे
गाल पर गढ़ उठी.

शरम के मारे मेरे तो गाल ही गुलाबी हो उठे. मैं चुंबन खा ज़ोर
लगा कर उस से छूट गयी और वाहा से भाग के अपने कमरे मे घुस
गयी. जब मैं अपनी साड़ी से अपना गाल पोन्छा तो उस पल का अहसास
करते ही मेरे गोरे गाल फिर से गुलाबी हो उठे..थोड़ी देर बाद जब
वह खाना बना रहा था तो मैं किसी काम से किचन मे गयी. उसने मोका
नही छोड़ा. मुझे फॉरन से कमर मे हाथ डाल लिपटा लिया..क्या करते
हो.-छोड़ो..-कोई देख लेगा...उसने ज़ोर से आलिंगन मे बाँध लिया. एक बार
फिर मेरे सुपुष्ट उभार उसके सीने से रगड़ उठे..यहा कोई नही है
बीबीजी.-मुन्ना.मैं किसी तरह शरमाई सी बोली.साथ ही कुछ
जानबूझकर कर ही अपने मम्मे उसके सीने से रगड़ी.वो तो बाहर
खेल रहा है..मैं चुप रही तो उसने मुझे भिच लिया..बीबीजी...उसके
हाथ मेरी पीठ पर सख़्त हो गये.हुमुऊ..मैने चिपक कर जवाब
दिया.
 
नाराज़ तो नही हो ना..उसने पूछा..दर असल वह डर रहा था. वह
नौकर मैं मालकिन दोनो के स्तर मे बड़ा फ़र्क था. उसने मुझे स्कूल से
आते ही चूम लिया था.इस कारण अब डर रहा था कि कही मालकिन
नाराज़ हो जाए और उसकी नौकरी चली जाए. पर क्या आप भी
समझते है कि उसकी नौकरी जाने वाली थी ? नही भाई नही अरे
उसका तो प्रमोशन होने वाला था. वह तो नौकर से मेरा हसबेंड
बनने वाला था. मेरा प्राईवेट हसबेंड. प्राईवेट हसबेंड
यानी समाज की नज़रो मे मेरा नौकर परंतु घर मे मेरा वो..हा हा हा
हा हा हा दोस्तो कहानी अभी बाकी है आगे क्या हुआ जानने के लिए
पढ़ते रहे नौकर से चुदाई . आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे....... 
मैने कोई जवाब ना दिया तो वह डरते डरते फिर से 
बोला..बीबीजी.नाराज़ हो मुझ से. तब उस का डर मिटाने के लिए 
जानते है मेने क्या किया ? खड़े खड़े वही किचन मे हरिया के गले 
मे अपनी बाहों की माला पहना दी. और उस के चौड़े सीने पर अपने 
उरजों का मधुर दबाव दे कहा.उहह..हुम्ह..क.और मैने अपनी नाक उसकी 
गर्दन पर रगड़ दी. मेरी इस प्रतिक्रिया पर तो वह खुश हो उठा और 
मेरा कूल्हा साड़ी पर से ही मसल बोला..बीबीजी..आप बड़ी अच्छी हो.. 
और तदाक से एक बार इधर का गाल चूम लियाएक बार उधर का. मैं तो 
शरम से लाल हो गयी और अपने आप को छुड़ा कर वाहा से भाग खड़ी 
हुई..पर क्या मर्द से भागना इतना आसान होता है ? और भागना 
चाहता भी कौन था ? 

यहा तो मन मे हरदम यही इच्छा रहती थी कि कोई हो...अपना भी 
कोई हो. सात साल के तरसने के बाद तो अब देवी मा ने मौका दिया है. 
मैं इसे छोड़ने वाली नही थी. रात को खाने के बाद उसने मेरा 
हाथ पकड़ कर जब कहा रात को आओगी ना बीबीजी...तो सच मानिए 
मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा. पर हा शरम से गाल ज़रूर गुलाबी 
हो उठे..और रात.मुन्ना के सो जाने के साथ मेरा सो जाने का कोई 
इरादा नही था. आखों मे नींद ही ना थी. कल रात उसके द्वारा दो 
बार चोदे जाने की मीठी याद अभी बाकी थी. आज कितनी बार होगा ? 
कैसे करेगा ? मन मे बार बार यही ख़याल आ रहा था..मुन्ना जब सो 
गया तो मैं धीरे से उठी. अपने कपड़े ठीक किए. मैं साड़ी ब्लाओज 
पहने थी. अंदर ब्रा थी. पर पेँटी ना थी.वो तो मेने अपनी आदत के 
मुताबिक स्कूल से आते ही उतार दी थी. बालों मे कंघी की. थोड़ा सा 
पाउदर भी चेहरे और मम्मों पर लगा लिया. दिल धड़कना शुरू हो 
गया था. यह तो साला काम ही ऐसा है. और मेने कुंडी खोली. ये लो 
वो तो सामने खड़ा था. ओ मा मेरी तो शरम के मारे पलकें ही झुक 
गयी..तुम यहा ?.मेरे स्वर मे आस्चर्य था.मैं उसके यहा होने की 
कतई उम्मीद नही कर रही थी..मुझे मालूम था बीबीजी..आप ज़रूर 
आओगी.उसने अपना पेटेंट वाक्य दोहराया. मुझे कुछ भी कहने का 
मोका दिए बगेर हाथ पकड़ खीचता हुआ अपने कमरे की और ले 
चला. और मैं विधवा अपने नौकर का मज़ा लेने उसके साथ घिसटाती 
सी चली गयी..हरिया का कमरा मेरा सुहाग कक्ष साफ सुथरा 
कमरा एक ओर खटिया दूसरी ओर आलिए मे भगवान तीसरी ओर कोने मे 
मोरी जहा पानी की भरी बाल्टी भी मोजूद थी. मालूम है कमरे मे 
अगरबत्ती महक रही थी. ट्यूब लाईट का प्रकाश था. और बिस्तर की 
चादर नयी थी. सब मिलकर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे..
 
आज मेरे 
बिना कहे ही हरिया ने जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मेरा 
दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. पास आ कर जब हरिया ने मेरी कमर मे 
हाथ डाला तो मैं धीरे से कुनमूनाई..ला..ला..लाईट..बंद कर दो.. 
उसने मुझे अपने से चिपका लिया..बीबीजी.अंधेरे मे मज़ा नही आएगा 
जी..उसका हाथ मेरी पीठ पर पहुँच गया था..हमको शरम आती 
है ना... मैं अपना चेहरा उसकी चौड़ी छाती मे छुपाटी हुई बोली. 
तब उसने मुझे खड़े खड़े ही लेक्चर पिला दिया..देखो बीबीजी...मज़ा 
लेना है तो शरमाने से काम नही चलेगा.अरे इसमे क्या है.यह तो 
सब कोई करते है.दुनिया के सब मर्द चोदते है और दुनिया की सब 
औरतें चुदवाति है.दुनिया से शरमाओ पर खाली एक मर्द से नही 
शरमाने का क्या ? अपने मर्द से. समझी ना.मेरे को चुपचाप खोल 
के पड़ जाने वाली औरतें पसंद नही.औरत को भी आगे बढ़ कर 
हिस्सा लेना चाहिए.मज़ा लेने का काम तो दोनो तरफ से होना चाहिए 
ना...अब मैं क्या कहती. मुझे तो साली शरम ही बहुत आ रही थी. 
जीभ तो जैसे सूख ही गयी थी. तब उसने मेरा चेहरा थोडी पकड़ 
उपर उठाया. मर्द की निगाहों से भरपूर देखते हुए बोला..आप 
बहुत खूबसूरत हो बीबीजी..अपनी तारीफ सुनकर मैं और शरमा 
उठी.बीबीजी बिंदी नही लगाई ? मैं उसकी बाहों मे सिमट सी 
गयी.उहूँ.लगाया करो..आप पर बहुत अच्छी लगेगी. वह मेरी पीठ से 
होते हुए कूल्हों तक पहुँच गया.माँग मे सिंदूर लगाया करोबिंदी 
लगाया करो.चूड़ी पहना करो.मैं ला कर दूँगा. 

मैं चुपचाप उसके सीने मे मुँह घुसाए खड़ी रही..पहनोगि ना 
?.उसने बड़े प्यार से पूछा. मैने मुँह से तो कुछ ना कहा पर हा मे 
गर्दन ज़रूर हिला दी. मुझे तो खुद यही सब चीज़े पहनाने वाला 
व्यक्ति चाहिए था. तब वह मुझे पकड़ कर खीचता हुआ भगवान 
के आलिए के पास ले गया और कल की तरह सिंदूर ले कर मेरी माँग भर 
दी. मैं उस के इस तरह के प्यार करने के तरीके पर निहाल हो 
उठी. तब वही भगवान के सामने ही उसने मेरा चियर हरण करना 
शुरू कर दिया. ट्यूब लाईट के प्रकाश मेअकेले बंद कमरे मेजब उसने 
मेरे वस्त्र खीचना चालू किए तो बस मैं ना ना ही कहती रह 
गयी.कभी ना कहती,कभी उसका हाथ पकड़ती तो कभी अपने कपड़े 
पकड़ती.पर उसके आगे मेरी एक ना चली. मेरा एक एक कपड़ा 
सिलसिलेवार उतरता चला 

गया..1..साड़ी.2..ब्लाओज.3..पेटीकोट.4..और सब से आख़िर मे 
ब्रा..अगले ही पल मैं अपने नौकर के आगे मदरजात नंगी खड़ी 
थी..घबरा रही थी शरमा रही थी..कभी हथेली से अपने मम्मे 
छुपा रही थी. तो कभी चूत पर हाथ फेला कर लगा रही थी. और 
सामने खड़ा वो कुदरत की बनाई कारिगिरी को आखे फाड़ फाड़ कर 
देख रहा था. उसे तो वाहा गाँव मे ऐसी सुंदर औरत मिलना मुश्किल 
थी. मेरी शरम का जो हाल था वो तब और दस गुना बढ़ गया जब उसने 
भी अपने कपड़े खोल डाले. 1..बंदी 2..धोती वह बस दो ही तो कपड़े 
पहने था. धोती के अंदर चड्डी तक नही थी कम्बख़्त के. बस धोती 
के उतरते ही जो सामने आया वो अनोखा नज़ारा था. मेने अपनी 
जिंदगी मे बस दो ही लंड देखे थे..1..अपने पति का..(उनका ढीले 
मे करीबा 3 उंगल का और खड़े मे करीब 5 उंगल का था.).2..स्कूल के 
चपरासी का..(जो एक बार पेशाब कर रहा था और मैं वाहा से गुज़री 
तो दिखा था.वह करीब दो उंगल का होगा.).बस लंड के मामले मे मेरा 
एक्सपीरीएन्स इतना ही था.
 
अब यूँ तो मैने अपने मुन्ना का भी देखा 
है पर वो तो बच्चे का है, बहुत ही छोटा है.मेरी छोटी उंगली से 
भी छोटा. उसकी तुलना मे यह हरिया का लंड वास्तव मे बहुत ही बड़ा 
था. करीब सात इंच तो होगा लंबाई मे. और मोटा भी बहुत था. 
रंग-एक दम काला. बड़े बड़े बाल. एक दम सीधा खड़ा-90 डिग्री के 
एंगल पर. सामने की और तना हुआ नीचे बड़े बड़े अंदू लटक रहे 
थे. ख़ास बात यह कि लंड की सुपादि पर चमड़ी चढ़ि हुई थी.पता 
नही इस की चमड़ी उतरती भी है या नही.मेरे पति की तो उतरती 
थी. फिर मेरा ध्यान पूरे ही हरिया पर गया. सामने नंगा खड़ा 
था. सावला रंग बालिश्ट देह भरी हुई मछलीया कसरती बदन 
चौड़ा चकला सीना 5-8 का कद मे तो उस की गर्दन तक पहुँचती हू. 
कुल मिला कर यह कि वह मुझे काम देव का अवतार लग रहा था..मैं 
उसे नज़र भर देख ही रही थी कि वह मेरे पास आया और मेरी नंगी 
कमर मे हाथ डाल मुझे खीचता हुआ बिस्तर पर ले गया. खटिया 
पर मैं नही लेटी बल्कि उसी ने मुझे धक्का दे कर पटक दिया और खुद 
मेरी बगल मे हो कर मुझे बाहों मे भर लिया. नंगे हरिया से नंगी 
हो कर लिपटने मे जो आनंद मिला रहा था उसे मैं शब्दों मे बयान 
नही कर सकती. यह कहना ग़लत ना होगा कि हम दोनो ही एक दूसरे से 
गूँथ गये. वह मुझ मे और मैं उसमे घुसे जा रहे थे. उसके नंगे 
जिसम से अपना नंगा जिसम रगड़ना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. 

उसने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए जब मेरे गाल को चूमा तो मैं 
लाज से लाल हो उठी. मूँछे तो गढ़ी ही बीड़ी की बास से नाक 
गंधा गयी. गोरे गाल पर थूक लग गया सो अलग. पर यह सब मुझे 
लग बहुत अच्छा रहा था.ज़रा सा भी बुरा नही लगा. जाने क्यों ? 
शायद उत्तेजना की वजह से मेरे शरीर से जो हारमोन छूट रहे थे 
उन के कारण. मैं तो खुद भी यही सब चाह रही थी. उस समय मेरी 
पूरी कोशिश यही थी कि मैं हरिया मे ही घुस जाउ. लेकिन मैं तो 
औरत थी मैं हरिया मे कैसे घुस सकती थी ? घुसना तो उसे ही था 
मेरे अंदर. यह जल्दी ही हुआ. उसने चिपका चिपकी के बीच अपना एक 
हाथ मेरी जाँघो के मध्य डाल दिया. वाहा मेरी चूत तो अब तक की 
क्रियाओं से इतनी उत्तेजित हो उठी थी कि वाहा से पानी निकलने लगा 
था. पानी निकल कर मेरी जाँघ तक को गीला बना रहा था. हरिया की 
उंगली मे वही पानी लगा तो उसने एक पल की भी देरी नही की. फ़ौरन 
मेरे उपर चढ़ता चला गया. अब मैं नीचे थी और वो उपर वह मेरी 
टागो को चीरता हुआ पुकारा.बीबीजी.मैं चुप्पी साधे 
रही..बीबीजी..कर दम अंदर..मैं दम साधे पड़ी रही.अंदर करवाने 
को ही तो उस के पास आई थी,पर कहते ना बना..वह पास खिसक कर 
अपना खड़ा लंड मेरी झातदार चूत से थेल्ते हुए कहा..बीबीजी.बोला 
करो.शरमाया मत करो..देखो आपको मेरे सर की कसम है..अब ऐसी 
कसम सुन कर तो मैं काप उठी. फ़ौरन खटिया मे उठ बैठी. उस का 
हाथ पकड़ बोली..हाय कसम क्यों देते हो जी.. यह भावना का सवाल 
था. उस वक्त हरिया मेरा सब से प्रिय व्यक्ति था. उस से जो मेरा लंड 
चूत का संबंध बन रहा था उस के लिए मैं पिछले सात साल से 
तरस रही थे. उस के सर की कसम का सुनते ही मेरी सारी शरम 
जाने कहा उड़नचू हो गयी. मेने उसे ठीक वैसे ही जी कह कर 
संबोधित किया जैसे कि एक स्त्री अपने पति को करती है..बीबी 
जी...मेरे सर की कसम है जो शरमाई तो.खूब बाते 
करो..बोलो..अपने मन की बात करो..मेरा मन तो औरत की सोहबत को 
बरसो से तरस रहा है.बहुत मन करता है कि किसी के साथ खूब 
गंदी गंदी बातें करूँ..आप के पास भी कोई नही है...मेरा साथ दो 
बीबीजी..मैं तुम्हारे साथ हाँ हरीयाहह. मैं बैठे बैठे उसके 
गले मे हाथ डाल चिपक गयी. और उसके खुरदुरे गाल से अपना नर्म 
मुलायम गाल रगड़ते हुए बोली.क्या तुम मुझे बेशरम बनाना चाहते 
हो ? उसने मेरा गाल चूम लिया..हा..बीबीजी..तभी मज़ा आएगा. उसने और 
गाल चूमा. उस से अपना गाल चूमवाना मुझे बड़ा अच्छा लग रहा 
था. गाल पर लगे जा रहे थूक कि मुझे ज़रा भी परवाह नही थी. 
मैं उस से चिपक कह उठी..मैं कोशिश करूँगी कि जो तुम्हे पसंद हो 
वही करूँ.-यह हुई ना बात... वह खुश हो मेरे गाल की बोटी को अपने 
मुँह मे ले कर चूस ही डाला. मैं नखरे से सीत्कार 
उठी..सीईईई...क्या करते हो. उसने भोले पन से 
पूछा..क्यों..क्यों..क्या हुआ... मैने नज़र उठा के उस कामदेव के 
अवतार को देखा.फिर कही..निश्शान पड़ जाएगा नाह... 
क्रमशः......... 
 
गतान्क से आगे....... 
वह मेरे इस तरह बोलने से खुश हो पूछा..तो क्या हुआ ? पड़ जाने दो. 
मैं बदले मे उसके गले मे बाँह डाल चिपक सी गयी..और जो किसी ने 
देख लिया तो...-तो क्या. उसने मेरे दूसरे गाल को भी चूस 
लिया..हाय..बदनामी हो जाएगी ना.. मैं क्रत्रिम रोष से उसे ढका के 
हटाती हुई बोली..बस वो क्या हटा धक्का दे मुझे ही खटिया पर गिरा 
दिया. और दूसरे ही पल वो मेरे उपर था. बाकी काम आटोमेटिक ही हुआ. 
मेरी टांगे अपने आप उँची हुई चौड़ी हुई उस का मोटा लंड ना जाने कहा 
से आ कर मेरी चूत पर टिक गया. वह बहुत गरम था. उस का कडापन 
मैं साफ साफ महसूस कर रही थी. उसने तो अपने आप खुद ही 
अपना ठिकाना ढूँढ लिया. मेरे छिद्र पर टीका दबाव पड़ा और अगले 
ही पल फाटक खोल अंदर घुस चला. घुसा तो घुसता ही चला गया. 
अंदर और अंदर वह मेरे चेहरे को ताबाद तोड़ चूमता हुआ 
बड़बड़ाया.बीबीजी बोलो.बोलती रहो..चुप मत रहना..आप को मेरी 
कसम है... मुझे तो उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत अंदर 
से चौड़ी हो रही है. दर्द किसी चीज़ के खुलने का दर्द किसी चीज़ के 
फेलने का दर्द चौड़ा होने का दर्द एक ऐसी सुरंग मे घुसवाने का 
दर्द जहाँ पिछले सात साल से कोई गया ही नही था. अब ऐसे समय मे मैं 
क्या बोलती..बस मूह से सीत्कार ही निकल सकी. मैं अपने उपर सवार 
हरिया को पकड़ ज़ोर की आवाज़ मे सीत्कार 
उठी..-सीईईईई...माआआ.. उपर चढ़े हरिया का हाथ पकड़ 
ली..-हरियाआआअ..धीरेरेरेरे... वह अपने दोनो हाथों से मेरा 
चेहरा पकड़ लिया और दाया गाल चूम कर बोला..बस...बस..हो गया 
बीबीजी... और फिर रुका नही. शुरू हो गया. मेरे चेहरे के चुंबन 
लेते हुए धीरे धीरे शाट मारने लगा. मैं पहले सोच रही थी कि 
पता नही इस के यहा चुम्मे लेने का रिवाज है कि नही. पिछली 
चुदाइयो मे ना तो इसने चुम्मे लिए थे, ना ही मम्मे दबाए थे. मैं 
सोची थी कि क्या पता इसे मुझे मेरे हिसाब से सिखाना पड़ेगा. 
दर-असल जब मेने चुदवाना शुरू ही कर दिया था तो मैं ठीक से ही 
चुदाई का मज़ा लेना चाहती थी. एक संपूर्ण मज़ा. पर मेरी सोच 
इसने ग़लत साबित कर दी. उसे आता तो सब था पर वह हमारे बीच 
नौकर मालकिन का रिश्ता होने से डर रहा था.धीरे धीरे कदम उठा 
रहा था. इस बार तो उसने मुझे चुदाई के पूरे समय ही चूमा. अपने 
दोनो हाथों मे मेरा चेहरा भरे रहा. मैने अपनी गरदन दाए 
घुमाई तो दाए गाल पर चूम लिया..पुच्च. उधर उचक कर नीचे से 
धक्का भी मार दिया..सी..धक्का खा मैं सीतकारी. अपनी गरदन 
बाए घुमाई..पुच्च. वा मेरा बया गाल चूम लिया. और नीचे से 
धक्का मारा. मैं करी..सीईई. बस इसी तरह का क्रम चल पड़ा. 
चुंबन धक्का और मेरा सिसकारना. शुरू मे मैं झिझक रही थी. पर 
जब मेने देखा कि इसे मेरा सिसकीया भरना अच्छा लग रहा है तो 
मेने भी उत्साह से सीत्कारना शुरू कर 
दिया..
 
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