hotaks444
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प्रतिमा हवेली में ऊपरी हिस्से पर बने उस कमरे में पहुॅची जिस कमरे के बेड पर इस वक्त नैना औंधी पड़ी सिसकियाॅ ले लेकर रोये जा रही थी। प्रतिमा उसे इस तरह रोते देख उसके पास पहुॅची और बेड के एक साइड बैठ कर उसे उसके कंधों से पकड़ अपनी तरफ खींच कर पलटाया। नैना ने पलटने के बाद जैसे ही अपनी भाभी को देखा तो झटके से उठ कर उससे लिपट कर रोने लगी। प्रतिमा ने किसी तरह उसे चुप कराया।
"शान्त हो जाओ नैना।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"और मुझे बताओ कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से तुमने दामाद जी को तलाक दे दिया है? देखो पति पत्नी के बीच थोड़ी बहुत अनबन तो होती ही रहती है। इस लिए इसमें तलाक दे देना कोई समझदारी नहीं है। बल्कि हर बात को तसल्ली से और समझदारी से सुलझाना चाहिए।"
"भाभी इसमे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नहीं है।" नैना ने दुखी भाव से कहा__"मैं तो हमेशा ही आदित्य को दिलो जान से प्यार करती रही थी। सब कुछ ठीक ठाक ही था लेकिन पिछले छः महीने से हमारे बीच संबंध ठीक नहीं थे। इसकी वजह ये थी आदित्य किसी दूसरी लड़की से संबंध रखने लगे थे। जब मुझे इस बात का पता चला और मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वो मुझ पर भड़क गए। कहने लगे कि मैं बाॅझ हूँ इस लिए अब वो मुझसे कोई मतलब नहीं रखना चाहते हैं। मैने उनसे हज़ारो बार कहा कि अगर मैं बाॅझ हूँ तो मुझे एक बार डाक्टर को दिखा दीजिए। पर वो मेरी सुनने को तैयार ही नहीं थे। तब मैने खुद एक दिन डाक्टर से चेक अप करवाया। बाद में डाक्टर ने कहा कि मैं बिलकुल ठीक हूँ यानी बाॅझ नहीं हूँ। मैंने डाक्टर की वो रिपोर्ट लाकर उन्हें दिखाया और कहा कि मैं बाॅझ नहीं हूँ। बल्कि बच्चे पैदा कर सकती हूँ। इस लिए एक बार आप भी अपना चेक अप करवा लीजिए। मेरी इस बात से वो गुस्सा हो गए और मुझे गालियाॅ देने लगे। कहने लगे कि तू क्या कहना चाहती है कि मैं ही नामर्द हूँ? बस भाभी इसके बाद तो पिछले छः महीने से यही झगड़ा चलता रहा हमारे बीच। इस सबका पता जब मेरे सास ससुर को चला तो वो भी अपने बेटे के पक्ष में ही बोलने लगे और मुझे उल्टा सीधा बोलने लगे। अब आप ही बताइए भाभी मैं क्या करती? ऐसे पति और ससुराल वालों के पास मैं कैसे रह सकती थी? इस लिए जब मुझमें ज़ुल्म सहने की सहन शक्ति न रही तो तंग आकर एक दिन मैने उन्हें तलाक दे दिया।"
नैना की सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा भौचक्की सी उसे देखती रह गई। काफी देर तक कोई कुछ न बोला।
"ये तो सच में बहुत ही गंभीर बात हो गई नैना।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"तो क्या आदित्य ने तलाक के पेपर्स पर अपने साइन कर दिये?"
"पहले तो नहीं कर रहा था।" नैना ने अधीरता से कहा__"फिर जब मैंने ये कहा कि मेरे भइया भाभी खुद भी एक वकील हैं और वो जब आपको कोर्ट में घसीट कर ले जाएॅगे तब पता चलेगा उन्हें। कोर्ट में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊॅगी कि आदित्य सिंह नामर्द है और बच्चा पैदा नहीं कर सकता तब तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने फिर तलाक के पेपर्स पर अपने साइन किये थे।"
"लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इस बात का पता पहले क्यों नहीं चला कि आदित्य नामर्द है?" प्रतिमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्यों हुआ? क्या आदित्य का पेनिस बहुत छोटा है या फिर उसके पेनिस में इरेक्शन नहीं होता? आख़िर प्राब्लेम क्या है उसमें?"
"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नैना ने सिर झुकाते हुए कहा__"लेकिन मुझे लगता है कि उसके स्पर्म में कमी है। जिसकी वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा कि एक बार वो डाक्टर से चेक अप करवा लें लेकिन वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।"
"ओह, चलो कोई बात नहीं।" प्रतिमा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा__"अब तुम फ्रेश हो जाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना तैयार कर देती हूँ।"
नैना ने सिर को हिला कर हामी भरी। जबकि प्रतिमा उठ कर कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आते ही वह चौंकी क्योंकि अजय सिंह दरवाजे की बाहरी साइड दीवार से चिपका हुआ खड़ा था। प्रतिमा को देख कर वह अजीब ढंग से मुस्कुराया और फिर प्रतिमा के साथ ही नीचे चला गया।
गौरी को एक दम से चुप और कुछ सोचते हुए देख अभय सिंह से रहा न गया। उसके चेहरे पर बेचैनी और उत्सुकता प्रतिपल बढ़ती ही चली जा रही।
"आप चुप क्यों हो गईं भाभी?" अभय ने अधीरता से कहा__"बताइये न, मेरे मन में वो सब कुछ जानने की तीब्र उत्सुकता जाग उठी है। मैं जल्द से जल्द सब कुछ आपसे जानना चाहता हूँ।"
अभय की उत्सुकता और बेचैनी देख गौरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे तथा गुलाब की कोमल कोमल पंखुड़ियों जैसे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसने अभय की तरफ देखने के बाद अपने सामने कहीं शून्य में देखने लगी।
"तुम मेरे बच्चों की तरह ही हो।" गौरी शून्य में घूरते हुए ही बोली__"और कोई भी माॅ अपने बच्चों के सामने या फिर खुद बच्चों से ऐसी बातें नहीं कर सकती जिन्हें कहने के लिए रिश्ते और मर्यादा इसकी इज़ाज़त ही न दे। लेकिन फिर भी कहूँगी अभय। वक्त और हालात हमारे सामने कभी कभी ऐसा रूप लेकर आ जाते हैं कि हम फक़त बेबस से हो जाते हैं। हमें वो सब कुछ करना पड़ जाता है जिसे करने के बारे में हम कभी कल्पना भी नहीं करते। ख़ैर, अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूँ उसमें कई सारी बातें ऐसी भी हैं जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से तुम लोगों के सामने नहीं कह सकती, किन्तु हाँ तुम लोग उन बातों का अर्थ ज़रूर समझ सकते हो।"
इतना कह कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली और फिर से उसी तरह शून्य में घूरते हुए कहने लगी__"ये सब तब से शुरू हुआ था जब मैं ब्याह कर अपने पति यानी विजय सिंह जी के घर आई थी। उस समय हमारा घर घर जैसा ही था आज की तरह हवेली में तब्दील नहीं था। मैं एक ग़रीब घर की लड़की थी। मेरे माॅ बाप ग़रीब थे, खेती किसानी करते थे। अपने माता पिता की मैं अकेली ही संतान थी। मेरा ना तो कोई भाई था और ना ही कोई बहन। ईश्वर ने मेरे सिवा मेरे माॅ बाप को दूसरी कोई औलाद दी ही नहीं थी। इसके बाद भी मेरे माॅ बाप को भगवान से कोई शिकायत नहीं थी। वो मुझे दिलो जान से प्यार व स्नेह करते थे। जब मैं बड़ी हुई तो सभी बच्चों की तरह मुझे भी मेरे माॅ बाप ने गाॅव के स्कूल में पढ़ने के लिए मेरा दाखिला करा दिया। मैं खुशी खुशी स्कूल जाने लगी थी। किन्तु एक हप्ते बाद ही मेरा स्कूल में पढ़ना लिखना बंद हो गया। दरअसल मैं छोटी सी बच्ची ही तो थी। एक दिन मास्टर जी ने मुझसे क ख ग घ सुनाने को कहा तो मैं सुनाने लगी। लेकिन मुझे आता नहीं था इस लिए जैसे आता वैसे ही सुनाने लगी तो मास्टर जी मुझे ज़ोर से डाॅट दिया। उनकी डाॅट से मैं डर कर रोने लगी। मैं अपने माॅ बाप इकलौती लाडली बेटी थी। मेरे माॅ बाप ने कभी मुझे डाॅटा नहीं था शायद यही वजह थी कि जब मास्टर जी ने मुझे ज़ोर से डाॅटा तो मुझे बेहद दुख व अपमान सा महसूस हुआ और मैं रोने लगी थी। मुझे रोते देख मास्टर जी ने मुझे चुप कराने के लिए फिर से ज़ोर से डाॅटा। उनके द्वारा फिर से डाॅटे जाने से मैं और भी तेज़ तेज़ रोने लगी थी। मास्टर जी ने देखा कि मैं चुप नहीं हो रही हूँ तो उन्होंने मुझ पर छड़ी उठा दी। दो तीन छड़ी लगते ही मेरा रोना जैसे चीखों में बदल गया। पूरे स्कूल में मेरा रोना चिल्लाना गूॅजने लगा। मेरे इस तरह रोने और चिल्लाने से मास्टर जी बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए। उसी वक्त एक दूसरे मास्टर जी मेरा रोना और चिल्लाना सुन कर आ गए। दूसरे मास्टर जी को देख कर पहले वाले मास्टर जी रुक गए और इस बीच मैं रोते हुए ही स्कूल से भाग कर अपने घर आ गई। घर में उस वक्त मेरे पिता जी भोजन कर रहे थे। मुझे इस तरह रोता बिलखता देख वो चौंके। मैं रोते हुए आई और अपने पिता जी से लिपट गई। मेरे पिता मुझसे पूछने लगे कि किसने मुझे रुलाया है तो मैंने रोते रोते सब कुछ बता दिया। सारी बात सुन कर मेरे पिता जी बड़ा गुस्सा हुए लेकिन माॅ के समझाने पर शान्त हो गए। लेकिन इस सबसे हुआ ये कि मेरे पिता जी ने दूसरे दिन से मुझे स्कूल नहीं भेजा। उन्होंने साफ कह दिया था कि जिस स्कूल में मेरी बेटी मार कर रुलाया गया है उस स्कूल में मेरी बेटी अब कभी नहीं पढ़ेगी। बस इसके बाद मैं घर में ही पलती बढ़ती रही। उस समय मेरी उमर पन्द्रह साल थी जब एक दिन बाबू जी(गजेन्द्र सिंह बघेल) हमारे घर आए। बाबू जी को आस पास के सभी गाॅव वाले जानते थे। उन्हें कहीं से पता चला था कि इस गाॅव में हेमराज सिंह(पिता जी) की बेटी है जो बहुत ही सुंदर व सुशील है। बाबू जी अपने मॅझले बेटे विजय सिंह जी के लिए लड़की देखने आए थे। मेरे पिता जी ने बाबू जी को बड़े आदर व सम्मान के साथ बैठाया। घर में जो भी रुखे सूखे जल पान की ब्यवस्था उन्होंने वो सब बाबू जी के लिए किया। बाबू जी ने मेरे पिता जी का मान रखने के लिए थोड़ा बहुत जल पान किया उसके बाद उन्होने अपनी बात रखी। मेरे पिता ये जान कर बड़ा खुश हुए कि ठाकुर साहब अपने बेटे के लिए उनकी लड़की का हाँथ खुद ही माॅगने आए हैं। भला कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी इतने बड़े घर में न ब्याही जाए? और फिर रिश्ता जब खुद ही चलकर उनके द्वार पर आया था तो इंकार का सवाल ही नहीं था। किन्तु पिता जी की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी इस लिए लेने देने वाली बात से घबरा रहे थे। बाबू जी जानते थे इस बात को इस लिए उन्होंने साफ कह दिया था कि हेमराज हमें सिर्फ तुम्हारी लड़की चाहिए जिसे हम अपनी बेटी और बहू बना सकें। बस फिर क्या था। सब कुछ तय हो गया और एक अच्छे व शुभ मुहूर्त को मेरी शादी हो गई। मुझे नहीं पता था कि मैं किस तरह के घर में और किस तरह के लोगों के बीच आ गई हूँ? माॅ बाप ने बस यही सीख दी थी कि अपने पति को परमेश्वर मानना। अपने सास ससुर की मन से सेवा करना। बड़ों का आदर व सम्मान करना तथा छोटों को प्यार व स्नेह देना।
एक लड़की का नसीब कितना अजीब होता है कि बचपन से जवानी तक अपने माॅ बाप के पास हॅसी खुशी से रहती है और फिर शादी हो जाने के बाद वह एक नये घर में अपने पति के साथ एक नया संसार बनाने के लिए चली जाती है। अपने माॅ बाप के घर में उनका निश्छल प्यार और स्नेह पा कर पली बढ़ी वो लड़की एक दिन उन सबसे दूर चली जाती है।
शादी के बाद जब मैं इस घर में आई तो मेरे मन में डर व भय के सिवा कुछ न था। अपने माॅ बाप से यूॅ अचानक ही दूर हो जाने से हर पल बस रोना ही आ रहा था। पर ये सब तो हर लड़की की नियति होती है। हर लड़की के साथ एक दिन यही होता है। ख़ैर, रात हुई तो एक ऐसे इंसान से मिलना हुआ जो किसी फरिश्ते से कम न था। उन्होंने मुझे प्यार दिया इज्जत दी और इस क़ाबिल बनाया कि जब सुबह हुई तो मुझे लगा जैसे ये घर शदियों से मेरा ही था। मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं किसी दूसरे के घर में किसी अजनबी के पास आ गई हूँ। राज के पिता ऐसे थे कि उन्होने मुझे इतना बदल दिया था। मुझे उनसे प्रेम हो गया और मैं जानती थी कि उन्हें भी मुझसे उतना ही प्रेम हो गया था।
मेरी दोनो ननदें यानी सौम्या और नैना दिन भर मेरे पास ही जमी रहती थी। उन्होने ये एहसास ही नहीं होने दिया कि वो दोनो मेरे लिए अजनबी हैं। माॅ बाबू बड़ा खुश थे। आख़िर उनकी पसंद की लड़की उनकी बहू बन कर उस घर में आई थी। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। इन एक हप्तों में मेरे मन से पूरी तरह डर व झिझक जा चुकी थी। मुझे घर के सभी लोग अच्छे लगने लगे थे। विजय जी से इतना प्रेम हो गया था कि उनके बिना एक पल भी नहीं रहा जाता था। वो दिन भर खेतों पर काम में ब्यस्त रहते और शाम को ही घर आते। जब वो कमरे में मेरे पास आते तो मुझे रूठी हुई पाते। फिर वो मुझे मनाते। हर दिन मेरे लिए छुपा कर फूलों का गजरा खुद बना कर लाते और मेरे बालों में खुद ही लगाते। आईने के सामने ले जाकर मुझे खड़ा कर देते और मेरे पीछे खड़े होकर तथा आईने में देखते हुए मुझसे कहते "मैं सारे संसार के सामने चीख चीख कर ये कह सकता हूँ कि इस संसार में तुमसे खूबसूरत दूसरा कोई नहीं। मैं तो बेकार व निकम्मा था जाने किन पुन्य प्रतापों का ये फल था जो तुम मुझे मिली हो" उनकी इन बातों से मैं गदगद हो जाती। मुझे ध्यान ही न रहता कि मैं उनसे रूठी हुई थी। सब कुछ जैसे भूल जाती मैं।
"शान्त हो जाओ नैना।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"और मुझे बताओ कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से तुमने दामाद जी को तलाक दे दिया है? देखो पति पत्नी के बीच थोड़ी बहुत अनबन तो होती ही रहती है। इस लिए इसमें तलाक दे देना कोई समझदारी नहीं है। बल्कि हर बात को तसल्ली से और समझदारी से सुलझाना चाहिए।"
"भाभी इसमे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नहीं है।" नैना ने दुखी भाव से कहा__"मैं तो हमेशा ही आदित्य को दिलो जान से प्यार करती रही थी। सब कुछ ठीक ठाक ही था लेकिन पिछले छः महीने से हमारे बीच संबंध ठीक नहीं थे। इसकी वजह ये थी आदित्य किसी दूसरी लड़की से संबंध रखने लगे थे। जब मुझे इस बात का पता चला और मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वो मुझ पर भड़क गए। कहने लगे कि मैं बाॅझ हूँ इस लिए अब वो मुझसे कोई मतलब नहीं रखना चाहते हैं। मैने उनसे हज़ारो बार कहा कि अगर मैं बाॅझ हूँ तो मुझे एक बार डाक्टर को दिखा दीजिए। पर वो मेरी सुनने को तैयार ही नहीं थे। तब मैने खुद एक दिन डाक्टर से चेक अप करवाया। बाद में डाक्टर ने कहा कि मैं बिलकुल ठीक हूँ यानी बाॅझ नहीं हूँ। मैंने डाक्टर की वो रिपोर्ट लाकर उन्हें दिखाया और कहा कि मैं बाॅझ नहीं हूँ। बल्कि बच्चे पैदा कर सकती हूँ। इस लिए एक बार आप भी अपना चेक अप करवा लीजिए। मेरी इस बात से वो गुस्सा हो गए और मुझे गालियाॅ देने लगे। कहने लगे कि तू क्या कहना चाहती है कि मैं ही नामर्द हूँ? बस भाभी इसके बाद तो पिछले छः महीने से यही झगड़ा चलता रहा हमारे बीच। इस सबका पता जब मेरे सास ससुर को चला तो वो भी अपने बेटे के पक्ष में ही बोलने लगे और मुझे उल्टा सीधा बोलने लगे। अब आप ही बताइए भाभी मैं क्या करती? ऐसे पति और ससुराल वालों के पास मैं कैसे रह सकती थी? इस लिए जब मुझमें ज़ुल्म सहने की सहन शक्ति न रही तो तंग आकर एक दिन मैने उन्हें तलाक दे दिया।"
नैना की सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा भौचक्की सी उसे देखती रह गई। काफी देर तक कोई कुछ न बोला।
"ये तो सच में बहुत ही गंभीर बात हो गई नैना।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"तो क्या आदित्य ने तलाक के पेपर्स पर अपने साइन कर दिये?"
"पहले तो नहीं कर रहा था।" नैना ने अधीरता से कहा__"फिर जब मैंने ये कहा कि मेरे भइया भाभी खुद भी एक वकील हैं और वो जब आपको कोर्ट में घसीट कर ले जाएॅगे तब पता चलेगा उन्हें। कोर्ट में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊॅगी कि आदित्य सिंह नामर्द है और बच्चा पैदा नहीं कर सकता तब तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने फिर तलाक के पेपर्स पर अपने साइन किये थे।"
"लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इस बात का पता पहले क्यों नहीं चला कि आदित्य नामर्द है?" प्रतिमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्यों हुआ? क्या आदित्य का पेनिस बहुत छोटा है या फिर उसके पेनिस में इरेक्शन नहीं होता? आख़िर प्राब्लेम क्या है उसमें?"
"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नैना ने सिर झुकाते हुए कहा__"लेकिन मुझे लगता है कि उसके स्पर्म में कमी है। जिसकी वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा कि एक बार वो डाक्टर से चेक अप करवा लें लेकिन वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।"
"ओह, चलो कोई बात नहीं।" प्रतिमा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा__"अब तुम फ्रेश हो जाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना तैयार कर देती हूँ।"
नैना ने सिर को हिला कर हामी भरी। जबकि प्रतिमा उठ कर कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आते ही वह चौंकी क्योंकि अजय सिंह दरवाजे की बाहरी साइड दीवार से चिपका हुआ खड़ा था। प्रतिमा को देख कर वह अजीब ढंग से मुस्कुराया और फिर प्रतिमा के साथ ही नीचे चला गया।
गौरी को एक दम से चुप और कुछ सोचते हुए देख अभय सिंह से रहा न गया। उसके चेहरे पर बेचैनी और उत्सुकता प्रतिपल बढ़ती ही चली जा रही।
"आप चुप क्यों हो गईं भाभी?" अभय ने अधीरता से कहा__"बताइये न, मेरे मन में वो सब कुछ जानने की तीब्र उत्सुकता जाग उठी है। मैं जल्द से जल्द सब कुछ आपसे जानना चाहता हूँ।"
अभय की उत्सुकता और बेचैनी देख गौरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे तथा गुलाब की कोमल कोमल पंखुड़ियों जैसे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसने अभय की तरफ देखने के बाद अपने सामने कहीं शून्य में देखने लगी।
"तुम मेरे बच्चों की तरह ही हो।" गौरी शून्य में घूरते हुए ही बोली__"और कोई भी माॅ अपने बच्चों के सामने या फिर खुद बच्चों से ऐसी बातें नहीं कर सकती जिन्हें कहने के लिए रिश्ते और मर्यादा इसकी इज़ाज़त ही न दे। लेकिन फिर भी कहूँगी अभय। वक्त और हालात हमारे सामने कभी कभी ऐसा रूप लेकर आ जाते हैं कि हम फक़त बेबस से हो जाते हैं। हमें वो सब कुछ करना पड़ जाता है जिसे करने के बारे में हम कभी कल्पना भी नहीं करते। ख़ैर, अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूँ उसमें कई सारी बातें ऐसी भी हैं जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से तुम लोगों के सामने नहीं कह सकती, किन्तु हाँ तुम लोग उन बातों का अर्थ ज़रूर समझ सकते हो।"
इतना कह कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली और फिर से उसी तरह शून्य में घूरते हुए कहने लगी__"ये सब तब से शुरू हुआ था जब मैं ब्याह कर अपने पति यानी विजय सिंह जी के घर आई थी। उस समय हमारा घर घर जैसा ही था आज की तरह हवेली में तब्दील नहीं था। मैं एक ग़रीब घर की लड़की थी। मेरे माॅ बाप ग़रीब थे, खेती किसानी करते थे। अपने माता पिता की मैं अकेली ही संतान थी। मेरा ना तो कोई भाई था और ना ही कोई बहन। ईश्वर ने मेरे सिवा मेरे माॅ बाप को दूसरी कोई औलाद दी ही नहीं थी। इसके बाद भी मेरे माॅ बाप को भगवान से कोई शिकायत नहीं थी। वो मुझे दिलो जान से प्यार व स्नेह करते थे। जब मैं बड़ी हुई तो सभी बच्चों की तरह मुझे भी मेरे माॅ बाप ने गाॅव के स्कूल में पढ़ने के लिए मेरा दाखिला करा दिया। मैं खुशी खुशी स्कूल जाने लगी थी। किन्तु एक हप्ते बाद ही मेरा स्कूल में पढ़ना लिखना बंद हो गया। दरअसल मैं छोटी सी बच्ची ही तो थी। एक दिन मास्टर जी ने मुझसे क ख ग घ सुनाने को कहा तो मैं सुनाने लगी। लेकिन मुझे आता नहीं था इस लिए जैसे आता वैसे ही सुनाने लगी तो मास्टर जी मुझे ज़ोर से डाॅट दिया। उनकी डाॅट से मैं डर कर रोने लगी। मैं अपने माॅ बाप इकलौती लाडली बेटी थी। मेरे माॅ बाप ने कभी मुझे डाॅटा नहीं था शायद यही वजह थी कि जब मास्टर जी ने मुझे ज़ोर से डाॅटा तो मुझे बेहद दुख व अपमान सा महसूस हुआ और मैं रोने लगी थी। मुझे रोते देख मास्टर जी ने मुझे चुप कराने के लिए फिर से ज़ोर से डाॅटा। उनके द्वारा फिर से डाॅटे जाने से मैं और भी तेज़ तेज़ रोने लगी थी। मास्टर जी ने देखा कि मैं चुप नहीं हो रही हूँ तो उन्होंने मुझ पर छड़ी उठा दी। दो तीन छड़ी लगते ही मेरा रोना जैसे चीखों में बदल गया। पूरे स्कूल में मेरा रोना चिल्लाना गूॅजने लगा। मेरे इस तरह रोने और चिल्लाने से मास्टर जी बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए। उसी वक्त एक दूसरे मास्टर जी मेरा रोना और चिल्लाना सुन कर आ गए। दूसरे मास्टर जी को देख कर पहले वाले मास्टर जी रुक गए और इस बीच मैं रोते हुए ही स्कूल से भाग कर अपने घर आ गई। घर में उस वक्त मेरे पिता जी भोजन कर रहे थे। मुझे इस तरह रोता बिलखता देख वो चौंके। मैं रोते हुए आई और अपने पिता जी से लिपट गई। मेरे पिता मुझसे पूछने लगे कि किसने मुझे रुलाया है तो मैंने रोते रोते सब कुछ बता दिया। सारी बात सुन कर मेरे पिता जी बड़ा गुस्सा हुए लेकिन माॅ के समझाने पर शान्त हो गए। लेकिन इस सबसे हुआ ये कि मेरे पिता जी ने दूसरे दिन से मुझे स्कूल नहीं भेजा। उन्होंने साफ कह दिया था कि जिस स्कूल में मेरी बेटी मार कर रुलाया गया है उस स्कूल में मेरी बेटी अब कभी नहीं पढ़ेगी। बस इसके बाद मैं घर में ही पलती बढ़ती रही। उस समय मेरी उमर पन्द्रह साल थी जब एक दिन बाबू जी(गजेन्द्र सिंह बघेल) हमारे घर आए। बाबू जी को आस पास के सभी गाॅव वाले जानते थे। उन्हें कहीं से पता चला था कि इस गाॅव में हेमराज सिंह(पिता जी) की बेटी है जो बहुत ही सुंदर व सुशील है। बाबू जी अपने मॅझले बेटे विजय सिंह जी के लिए लड़की देखने आए थे। मेरे पिता जी ने बाबू जी को बड़े आदर व सम्मान के साथ बैठाया। घर में जो भी रुखे सूखे जल पान की ब्यवस्था उन्होंने वो सब बाबू जी के लिए किया। बाबू जी ने मेरे पिता जी का मान रखने के लिए थोड़ा बहुत जल पान किया उसके बाद उन्होने अपनी बात रखी। मेरे पिता ये जान कर बड़ा खुश हुए कि ठाकुर साहब अपने बेटे के लिए उनकी लड़की का हाँथ खुद ही माॅगने आए हैं। भला कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी इतने बड़े घर में न ब्याही जाए? और फिर रिश्ता जब खुद ही चलकर उनके द्वार पर आया था तो इंकार का सवाल ही नहीं था। किन्तु पिता जी की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी इस लिए लेने देने वाली बात से घबरा रहे थे। बाबू जी जानते थे इस बात को इस लिए उन्होंने साफ कह दिया था कि हेमराज हमें सिर्फ तुम्हारी लड़की चाहिए जिसे हम अपनी बेटी और बहू बना सकें। बस फिर क्या था। सब कुछ तय हो गया और एक अच्छे व शुभ मुहूर्त को मेरी शादी हो गई। मुझे नहीं पता था कि मैं किस तरह के घर में और किस तरह के लोगों के बीच आ गई हूँ? माॅ बाप ने बस यही सीख दी थी कि अपने पति को परमेश्वर मानना। अपने सास ससुर की मन से सेवा करना। बड़ों का आदर व सम्मान करना तथा छोटों को प्यार व स्नेह देना।
एक लड़की का नसीब कितना अजीब होता है कि बचपन से जवानी तक अपने माॅ बाप के पास हॅसी खुशी से रहती है और फिर शादी हो जाने के बाद वह एक नये घर में अपने पति के साथ एक नया संसार बनाने के लिए चली जाती है। अपने माॅ बाप के घर में उनका निश्छल प्यार और स्नेह पा कर पली बढ़ी वो लड़की एक दिन उन सबसे दूर चली जाती है।
शादी के बाद जब मैं इस घर में आई तो मेरे मन में डर व भय के सिवा कुछ न था। अपने माॅ बाप से यूॅ अचानक ही दूर हो जाने से हर पल बस रोना ही आ रहा था। पर ये सब तो हर लड़की की नियति होती है। हर लड़की के साथ एक दिन यही होता है। ख़ैर, रात हुई तो एक ऐसे इंसान से मिलना हुआ जो किसी फरिश्ते से कम न था। उन्होंने मुझे प्यार दिया इज्जत दी और इस क़ाबिल बनाया कि जब सुबह हुई तो मुझे लगा जैसे ये घर शदियों से मेरा ही था। मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं किसी दूसरे के घर में किसी अजनबी के पास आ गई हूँ। राज के पिता ऐसे थे कि उन्होने मुझे इतना बदल दिया था। मुझे उनसे प्रेम हो गया और मैं जानती थी कि उन्हें भी मुझसे उतना ही प्रेम हो गया था।
मेरी दोनो ननदें यानी सौम्या और नैना दिन भर मेरे पास ही जमी रहती थी। उन्होने ये एहसास ही नहीं होने दिया कि वो दोनो मेरे लिए अजनबी हैं। माॅ बाबू बड़ा खुश थे। आख़िर उनकी पसंद की लड़की उनकी बहू बन कर उस घर में आई थी। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। इन एक हप्तों में मेरे मन से पूरी तरह डर व झिझक जा चुकी थी। मुझे घर के सभी लोग अच्छे लगने लगे थे। विजय जी से इतना प्रेम हो गया था कि उनके बिना एक पल भी नहीं रहा जाता था। वो दिन भर खेतों पर काम में ब्यस्त रहते और शाम को ही घर आते। जब वो कमरे में मेरे पास आते तो मुझे रूठी हुई पाते। फिर वो मुझे मनाते। हर दिन मेरे लिए छुपा कर फूलों का गजरा खुद बना कर लाते और मेरे बालों में खुद ही लगाते। आईने के सामने ले जाकर मुझे खड़ा कर देते और मेरे पीछे खड़े होकर तथा आईने में देखते हुए मुझसे कहते "मैं सारे संसार के सामने चीख चीख कर ये कह सकता हूँ कि इस संसार में तुमसे खूबसूरत दूसरा कोई नहीं। मैं तो बेकार व निकम्मा था जाने किन पुन्य प्रतापों का ये फल था जो तुम मुझे मिली हो" उनकी इन बातों से मैं गदगद हो जाती। मुझे ध्यान ही न रहता कि मैं उनसे रूठी हुई थी। सब कुछ जैसे भूल जाती मैं।