non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 5 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

कजरी दीदी ने कहा- “कोई फायदा नहीं है भैया। हम दोनों ने आप दोनों की चुदाई देख ली है। आने दो पिताजी को... आप दोनों की रंगरेलियां उनको बताऊँगी...” कजरी दीदी ने नाइटी के ऊपर से चूत को खुजलाते हुए कहा।

बुआ- “हाँ हाँ आने दे बेटी? आने दे तेर पिताजी को। उनको कालू और तेरी चुदाई का क्या जवाब देगी बेटा?

कजरी- क्या मतलब है मम्मी आपका?

बुआ- “मतलब ये है बेटी की रोज रात को जो तुम कालू के साथ चुदाई करती हो मैं सब जानती हूँ...”

कजरी ने अपना सिर झुका लिया। पर कनखियों से मेरे खड़े लण्ड को देख रही थी।

बुआ ने कहा- “तो दो में दो मिलने से चार बात ये हुई की आप हमारी बातें किसी को नहीं बताएंगी। और हम आपकी बातें किसी को नहीं बताएंगी। बस हो गया ना फैसला, फाइनली?


कजरी- फाइनली कहाँ हुआ मम्मी? कजरी मेरी ओर बढ़ते हुए कहने लगी।

बुआ- क्या मतलब अब और क्या रह गया?

कजरी- “अब ये रह गया...” कालू को बुआ की तरफ धक्का देते हुए कजरी ने कहा- “कालू भैया... तेरी इच्छा थी ना माँ को चोदने की? जा शुरू हो जा। मैं भैया के लण्ड से चुदवा के अपनी फुद्दी की प्यास बुझाती हूँ...”

बुआ- “तुम दोनों पागल हो गये हो क्या? कालू मेरा सगा बेटा है...”

कजरी- तो क्या हुआ मम्मी। मैं भी अपने सगे भैया से चुदवाती हूँ। आप भी तो मामाजी से, नानाजी से, चुदवा रखी हो तो फिर कालू क्यों नहीं... कालू तू क्या देखता है साले शुरू हो जा...”

बुआ मना करती रही पर कालू उनकी फुद्दी को चाटने लगा। थोड़े ही देर में उनकी चुदाई चालू हो गई। इधर कजरी दीदी ने मेरे ऊपर चढ़कर लण्ड को चूसना शुरू कर दिया। मैंने भी उसकी चूचियां दबाई। फिर उसे नीचे पटकते हुए उसकी टाँगों को फैलाया और धीमा सा एक धक्का लगाया की लण्ड का सुपाड़ा अटक गया। दूसरे धक्के में उसका बदन अकड़ा तो तीसरे में चीख ही निकल गई।

कजरी- “अरी मम्मी, मरी रे... नहीं चुदवाना है भैया, आपके गधे लण्ड से। मेरी फुद्दी के लिये तो कालू भैया का पतला लण्ड ही काफी है...”

जीजाजी- “मैंने उसका सुना अनसुना करते हुए चूची चुसना जारी रखा और धक्के देना भी...”

थोड़े ही देर में कजरी बोली- “क्या भैया? लण्ड में ताकत नहीं है क्या? इतने धीर-धीरे करने से काम कैसे चलेगा?

जीजाजी ने कहा- मेरे धक्के स्पीड बढ़ने लगी।

कजरी- “हाँ भैया... बस ऐसे ही। हाँ हाँ... मेरा निकला भैया... भैया... ओहह... भैया...”

मैंने कहा- “कजरी दीदी, मेरा कहाँ निकालूं?

कजरी- “मेरे मुँह में निकल ना भैया...” उसने अपना मुँह खोला।
 
मैंने अपना लण्ड उसके मुँह में ढूंस दिया। वो मुँह को नीचे ऊपर करने लगी और मेरी पिचकारी चूत गई। कजरी ने सारा माल गटक लिया। चुदाई से थक कर हम नंगे ही बिस्तर पर लेट गये। और कब सो गये। हमें पता ही नहीं चला।

सुबह नींद खुली तो कालू बुआजी के ऊपर चढ़कर उन्हें चोद रहा था। और कजरी मेरे ऊपर चढ़कर मुझे चोद रही थी। और इसी तरह हमारी चुदाई का कार्यक्रम रात दिन चलते रहा, चलते रहा।
इधर कमरे में वासना की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी।

सासूमाँ ने कहा- “बस बस... अब रहने दो। ये सब बातें सुनकर मेरी तो चूत में आग लगी हुई है, पहले इसे बुझाना जरूरी है...”

झरना- “हाँ मम्मी, मेरी भी चूत में चिींटियां रेंग रही हैं..."

दीदी- “और मम्मीजी मेरी चूत में भी खुजली हो रही है...”

मम्मी- “अच्छा... हम तीन औरतें हैं, और लौड़ा सिर्फ दो। बहुत ना-इंसाफी है ये तो। किसी एक को तो अपनी ही उंगली से काम चलाना ही पड़ेगा...”

तभी मेरी दीदी बोली- “मैं तो उंगली से काम चला नहीं सकती मम्मीजी... कहे देती हैं कि मेरी चूत में जोरों की खुजली हो रही है। इस खुजली को कोई मस्ताना लण्ड ही मिटा सकता है। कमरे में मेरे पास दो-दो लण्ड मौजूद हैं, और मैं क्यों अपनी चूत में उंगली घुसाऊँगी? एक मेरे भाई का है, दूसरा मेरे पति का है... बल्कि मैं तो कहती हूँ, मैं बारी-बारी से दोनों से चुदवाऊँगी।

झरना- “और मैं भाभी? मैं क्यों उंगली घुसाऊँगी अपनी चूत में... मेरे पास भी तो यहाँ पे दो-दो लण्ड हैं घुसवाने के लिए... एक मेरे भाई का है तो दूसरा मेरे भाभी के भाई का है..”

मम्मी- “और मैं साली बुर मरानियों? बाकी बची मैं... दोनों ही एक-एक लण्ड ले जाओगी तो क्या मैं उंगली घुसाऊँगी अपनी बुर में? साले डूब मरो चुल्लू भर पानी में... एक जवान बेटा लण्ड लिए खड़ा है। उसका कोई फर्ज़ नहीं बनता अपनी माँ के जिश्म की भूख मिटाने की। शादी से पहले तो मेरी बुर के पीछे ही पड़ा रहता था। कहता था की माँ तेरी बुर दुनिया की सबसे मस्त बुर है। कजरी... मंजरी... झरना... इन सबकी बुर तेरी बुर के आगे पानी भरती हैं। और आज देखो, उसी बुर की आग बुझाने के लिए मुझे उंगली की सहायता लेनी पड़ेगी। दूसरा बहू का भाई है... उसका भी ये तो फर्ज बनता ही है की दीदी की सास को अगर कोई तकलीफ है तो उसे मिटाये। साले के पास इतना मस्त लौड़ा है की एक साथ हम तीनों को रात भर चोद-चोदकर बुर को फाड़ सकता है। बुर को फाड़ तो नहीं सकता, क्योंकी पहले से फटी फटाई है। हाँ... सुजा तो सकता है... देखो तो कितने बेशर्म हैं दोनों के दोनों... अरे सालों कुछ तो बोलो? अरे बोल दो की मैं बूढ़ी हो गई हूँ। मेरी फुद्दी अब तुम्हारे लण्ड के लायक नहीं रही... मेरी फुद्दी में अब वो आकर्षण नहीं रहा की तुम्हारा लण्ड मेरे लिए खड़ा हो। अरे बोलो... कुछ तो बोलो नामुरादों..”
 
मैंने गला खंखारते हुए कहा- “अरे सासूमाँ, नाराज क्यों होती हो? बात की शुरुआत तो अपने ही की कि फुद्दी तीन और लौड़ा दो। अब आप ही हमपे नाराज हो रही हैं.. चिंता मत करो सासूमाँ। पहली चुदाई आपकी ही होगी, और ऐसी चुदाई होगी की आप इस चुदाई को जिंदगी भर ना भूल सकें।

मम्मी- “वही तो बेटा... मैं भी तो यही चाहती हूँ की तू आज मेरी ऐसी चुदाई करे की मैं हमेशा इसे याद करूँ..”

और हमारा क्या होगा?” मेरी दीदी और झरना ने एक साथ कहा और हँस पड़ी।

मम्मी- “अरे बेटी और बहू... तुम्हारे चुदने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है..."

दीदी- “अच्छा सासूमाँ, आप चुदाई करें और हम यहाँ पर खरताल बजायें...”

मैंने बीच बचाव किया- सब लोग ध्यान से सुनें... पहली चुदाई मैं सासूमाँ की करूंगा। पीछे से उनकी गाण्ड में अपना लण्ड जीजाजी घुसेड़ेंगे, इस तरह सासूमाँ की चुदाई होगी।

मम्मी- “वाह बेटे... तूने तो मेरे वर्षों के सपनों को साकार करने की सोची है। दुआकरती हूँ भगवान से कि तुझे नई-नई चूत चोदने को मिले...”

दीदी- “अच्छा कमरे में तीन औरतें... दो मर्द। और वो साले भी एक ही औरत के आगे और पीछे... और हम दोनों उनको देखकर एक दूसरे की चूत में उंगली करेंगे...”

मैं- नहीं दीदी, उससे भी सही उपाय है... मैं नीचे रहूँगा। सासूमाँ आप मेरे ऊपर आ जाओ।

पलंग पर मेरे लेटते ही सासूमाँ फटाक से मेरे ऊपर चढ़ गई, इस डर से की कहीं और कोई मेरे लण्ड पर नहीं चढ़ जाए... सासूमाँ ने एक झटके से मेरे आधे लण्ड को अपनी फुद्दी में समेट लिया। मैंने भी नीचे से धक्का मारा तो सासूमाँ की चीख निकल गई- बेटा रे, दर्द हो रहा है?


तभी झरना ने पूछा- दर्द हो रहा है क्या मम्मी?

मम्मी- “हाँ बेटी दर्द हो रहा है। साले इस रामू का लण्ड है भी मोटा और तगड़ा...”

झरना- “तो एक काम करो ना मम्मी..”

मम्मी- क्या बेटी?
 
झरना- “आप इनके ऊपर से उठ जाओ, मैं सवारी कर लेती हैं। इस तरह आपका दर्द भी कम हो जाएगा, और दर्द जो होना है मुझे होगा... देखो मम्मी मुझसे आपका ये दर्द देखा नहीं जा रहा है। मुझे अपनी बेटी का फर्ज़ निभाने दो...” ।

मम्मी- “चल परे हट, लण्डखोर कहीं की। अरे बेटी मैं इसी दर्द को तो कई सालों से ढूँढ़ रही थी। पर आज सही लण्ड मिला है जो मुझे और मेरी फुद्दी को दर्द के साथ-साथ मजा भी दे रहा है। हाँ बेटे, मैं ऊपर से धक्का लगा रही हूँ। तू भी नीचे से धक्का लगा...”

मैंने जीजाजी से कहा- “जीजाजी आप पीछे से सासूमाँ की गाण्ड में अपना लण्ड घुसायें..”

तभी मेरी दीदी ने उनका लण्ड पकड़ते हुए कहा- “नहीं मेरे सैंया, पहले मेरी चूत की खुजली दूर करो...”

मैंने कहा- “दीदी, आप मुझपे विश्वास तो करो..”

दीदी ने उनका लण्ड को छोड़ते हुए कहा- “चलो ठीक है, मुझे तुझपे विश्वास है...”

जीजाजी ने सासूमाँ की गाण्ड में लण्ड घुसाने की कोशिश की पर नाकाम रहे। मैंने हँसते हुए कहा- आप भी जीजाजी सही गान्डू हैं। गाण्ड मरवाना तो अच्छी तरह जानते हैं। पर गाण्ड कभी नहीं मारी क्या?

जीजाजी- अरे तेरी दीदी कभी मारने दे तब ना?

दीदी- छीः भैया... गाण्ड भी कोई मारने की चीज है?

जीजाजी ने अपने गाण्ड को खुजलाते हुये कहा- “अरे रानी, तू क्या जाने गाण्ड मरवाने में कितना मजा आता है?”

मैं- “जीजाजी थोड़ी सी क्रीम लगा दो अपने मम्मी की गाण्ड में...”

जीजाजी- “अरे हाँ रे... साले साहब, मैं तो भूल ही गया था। पहले जब हास्टल में मेरी गाण्ड का उद्घाटन हुआ था तो वैसेलीन लगाकर हुआ था... अभी लाता हूँ."
 
झरना दीदी ने उन्हें क्रीम पकड़ाते हुए कहा- “ये लो भैया...” फिर बोली- “भाभी, ये दोनों तो मम्मी के आगे-पीछे लग गये। लगता है किसी एक को नहीं हम दोनों को ही अपनी-अपनी बुर में उंगली डाल के सोना पड़ेगा। अच्छा भाभी मैं किचेन में देखकर आऊँ क्या? कल बाजार से जो लंबा बैगन आया था उसमें से एक को मैंने छुपा के रखा है..."

दीदी- “अरे... उसे तो अपनी नौकरानी चम्पा ले गई...”

झरना- चम्पा ले गई? हे भगवान्... कितनी मुश्किल से लंबा सा बैगन बाजार से लेकर आई थी, अपनी बुर में घुसाने के लिए और आपने सब्जी बनाने के लिए चम्पा को दे दिया।

दीदी- “सब्जी बनाने के लिए नहीं पगली...”

झरना- और क्या भाभी, उसका वो अचार बनायेगी?

दीदी- “अरे... तू जैसे अपनी बुर की खुजली मिटाती है ना, कभी बैगन, कभी गाजर, कभी मूली से, उसी तरह वो भी..."

झरना- क्या? वो भी?

इधर हम दोनों जीजा साले लगे हुए थे सासूमाँ के ऊपर। सासूमाँ की गाण्ड और बुर दोनों में ही लण्ड अटके पड़े थे।

दीदी- हाँ... चम्पा भी आखिर औरत है, उसकी भी कुछ चाहत है। जब से उसका मर्द उसे छोड़ के गया है। बेचारी और क्या करे?

झरना दीदी ने कहा- “हाँ, अब तो भैया भी नहीं चोदते उसे...”

दीदी- क्या तुम्हारे भैया उसे भी चोदते थे?

झरना- हाँ... क्या आपको भैया ने कभी नहीं बताया?

दीदी- नहीं तो... तेरे भैया भी ना। एक नंबर के... छोड़... फिर चोदना क्यों बंद कर दिया?

झरना- “अरे, तुम्हारी शादी से पहले की बात है। उसके मर्द को गये साल भर हो चुका था। चम्पा गाभिन हो। गई... बड़ी मुश्किल से मम्मी ने दवाई दिलवाई, और भैया को पता भी ना चलने दिया। पर चम्पा को खबरदार कर दिया गया की भैया की तरफ आँख उठाकर भी ना देखे। उस दिन का दिन और आज का दिन... चम्पा पूरी तरह से सुधर गई है।

तभी जीजाजी ने अपनी मम्मी की गाण्ड में धक्का लगाते हुए कहा- तभी मैं सोचू साली इतना भाव क्यों खा रही है
 
सासूमाँ गाण्ड उछालते हुए बोली- और नहीं तो क्या? बेटे, चुदाई का इतना ही शौक है तो अपनी बीवी की चुदाई कर ना... इधर-उधर मुँह मारने की क्या जरूरत है? और तेरी बीवी तो तुझे कभी मना भी नहीं करती।

दीदी- हाँ मम्मीजी, ये सही कहा आपने। मैं चुदाई के लिए कभी मना नहीं करती। चाहे कभी भी, कहीं भी, कोई भी मेरा मतलब है इनसे याने आपके बेटे से चुदवाने के लिए मैं हमेशा तैयार रहती हूँ... क्यों जी?

जीजाजी ने कहा- “ये बात सही है मम्मी। पर बदलाव के लिए कभी-कभी दूसरी चूत...”

मम्मी- “अरे बेटा उसके लिए मैं हूँ... और जब तक झरना यहां है उसकी भी ले सकता है। झरना ने तो कभी मना नहीं किया...”

झरना- हाँ भैया, बोलो कब मैंने आपको मना किया?

जीजाजी- “क्यों? उस दिन मना किया तो था। जिस दिन आई थी...”

झरना- अरे भैया आपको बता तो दिया था की उस दिन मेरा तीसरा दिन था तो कैसे चुदवाती बोलो? और भैया, आप मम्मी की गाण्ड में धक्के लगाते हुए सुनो- “तो मैं कह रही थी की मैंने आपको क्यों मना किया? और फिर उसके दूसरे दिन मैंने आपसे तीन बार चुदवाया तो था...”

जीजाजी- “अरे.. तो मैं तीन दिन से प्यासा भी तो था.. तेरी भाभी मायके गई थी.. मेरी सेक्रेटरी की फुददी भी लाल पानी फेंक रही थी...”

मेरी दीदी- “अरे.. आप उस बूढ़ी सेक्रेटरी को भी नहीं छोड़े?

जीजाजी- क्या करता रानी? लण्ड को कैसे समझाता?

दीदी- “चोदो-चोदो, अभी तो अपनी माँ की गाण्ड के मजे लो...”

मैं उनकी बातों को केवल सुन रहा था, कुछ बोल नहीं रहा था... नीचे से हुमच-हुमच कर धक्का लगा रहा था। मेरा लण्ड सासूमाँ की बुर में अंदर-बाहर हो रहा था। जब मैं नीचे से धक्का लगाता तो जीजाजी रुक जाते। मैं लण्ड को बाहर निकाल लेता तो जीजाजी पीछे से धक्का लगाते, इस तरह से हमारी चुदाई चल रही थी।

मैंने दीदी से कहा- “दीदी आप एक कम करो कि सासूमाँ के पास आ जाओ...”

दीदी सासूमाँ के पास आ गई।

मैंने कहा- “दीदी सासूमाँ के मुँह के पास अपनी बुर को फैलाओ...”

दीदी- “क्यों? क्या सासूमाँ के मुँह के पास बुर रखने से सासूमाँ के मुँह से कोई लण्ड प्रगट हो जाएगा और मेरी बुर में घुसेगा? बात करते हो भैया... तड़पाओ तड़पाओ अपनी दीदी को खूब तड़पाओ। और तुम? तुम भी लगे रहो। अपनी मम्मी के गाण्ड में..."

जीजाजी- “अरे रानी, मैं तो वही कर रहा हूँ जो तेरे भाई ने कहा है...”

दीदी- “भाई ने कहा है? अरे भाई तो मजे लूट रहा है। आने के टाइम बस में अपनी बहन को नहीं छोड़ा। वो। अलग बात है की मैं भी अपने सगे भाई दमऊ से चुदवा रखी हूँ। और जब-जब मायके जाती हूँ जमके चुदवाती हूँ... पर मैंने इस रामू भैया से चुदवाने का सपने में भी नहीं सोचा था की इनसे चुदवा सकेंगी। क्योंकी ये मुझे उस नजर से देखते ही नहीं थे...”

मैं उसे अपनी बहन ही मानता... था हर साल रखी भी बांधता था। और इस साल मैंने रखी बंधवाने का फर्ज़ भी निभा दिया था

दीदी- “हाँ तो... जी, मैं ये कह रही थी की आप मेरे इस रामू भैया की बातों पे आकर अपनी माँ की गाण्ड में लण्ड डाल बैठे। मेरे भाई रामू की तो पाँचो उंगलियां घी में है और इनका सिर कड़ाही में..."
 
तभी झरना ने अपनी भाभी की चूत को सहलाते हुए कहा- “सही बोल रही हो भाभी आप... पहले इसने आपको चोदा... फिर मुझको याने झरना को। फिर उसने मेरी मम्मी को चोदा। फिर इसने अपने भाई को भी नहीं छोड़ा...”

दीदी- भाई को भी नहीं छोड़ा? क्या मतलब है झरना?

झरना- “तुमने देखा नहीं भाभी? भैया कैसे मजे ले लेकर रामू भैया का लण्ड चूस रहे थे, और अभी फिर से मम्मी की बुर में लण्ड पेले जा रहे हैं... पेले जा रहे हैं."

उधर सासूमाँ मजे ले लेकर चुदवा रही थीं- “हाँ हाँ बेटे इसी तरह चोदते रहो... लगे रहो। एक आगे एक पीछे... गाण्ड मराये दुनियां सारी... भर दो मेरी चूत में लण्ड और फाड़ दो गाण्ड हमारी। बस बेटे और सहन नहीं हो रहा। हाँ मेरा पानी निकलने ही वाला है... हाँ हाँ...”

तभी सासूमाँ का पानी छूटा और वो चिल्लाने लगी- बस करो मरदूदों... क्या मुझे मार ही डालोगे क्या?

दीदी- नहीं और चुदवा लो सासूमाँ। अभी तो रात बाकी है... अभी तो बात बाकी है। अभी तो आपके बेटे ने आपकी गाण्ड मारी है और भैया ने चूत फाड़ी हैअभी एक काम करो अपने बेटे से चूत फड़वा लो और... मेरे भाई के लण्ड से गाण्ड फड़वा लो।

सासूमाँ- “बस कर बेटी। अभी मेरी बारी गई, अभी तेरी बारी आई है। इन्होने वियाग्रा खाया है। सोच लो हम तीनों की बुर की शामत आई है...”

झरना- क्या सच में माँ?

सासूमाँ- “हाँ बेटी, हाँ...”

मैं- “पर सासूमाँ, हमने तो वियाग्रा नहीं खाया है...”

सासूमाँ- “खाया है बेटे... तुम दोनों के खाने में मैंने वियाग्रा की गोली मिला दी थी...”

झरना- लेकिन मम्मी, आपके पास कहाँ से आई गोली?

सासूमाँ- “अरे, मैं अभी-अभी मायके से आ रही हैं। तेरे नानाजी का इसके बगैर काम नहीं चलता और मेरा उनके लण्ड के बगैर काम नहीं चलता तो रखनी पड़ती है बेटी। समझा कर..."

झरना- “ठीक है मम्मी... अबकी मैं नानाजी के यहां जाऊँगी तो साथ में लेकर जाऊँगी...”

सासूमाँ- ये हुई ना समझदारी वाली बात? अब मेरी बेटी रामू से चुदवाएगी और मेरा बेटा अपनी बीवी को चोदेगा।

दीदी- क्यों मम्मी? मैं तो अपने भाई से चुदवाऊँगी।
 
सासूमॉ- अरे तुम ही तो सुबह कह रही थी की मैं आज रात भर अपने सैंया से चुदवाऊँगी।

दीदी- हाँ... पर आपको कैसे पता चला?

सासूमाँ- भूल गई, मेरी जासूस वहाँ मौजूद थी।

झरना- हाँ... मैंने मम्मी को बता दिया था।

दीदी- बदमाश... खैर एक बार चुदवा ले। मैं भी इतना अपने सैंया से चुदवाती हूँ। सासूमाँ, तब तक आप क्या करेंगी?

सासूमाँ- मैं थोड़ा आराम कर लेती हूँ। थक गई हूँ। आज पहली बार मेरे दोनों छेद एक साथ चुदे हैं।

मैंने झरना की बुर में अपना लण्ड पेल दिया तो जीजाजी ने दीदी की बुर में। कमरे में केवल धक्कों की आवाजें ही नहीं आ रही थीं... उसके साथ में आह्ह... उन्ह... फछ... फछ... की आवाजें भी आ रही थीं। लग रहा था की जीजाजी और मुझमें चुदाई की प्रतियोगिता हो रही थी। दोनों ही हुमच-हुमच कर धक्के लगा रहे थे। हमारी दोनों पार्टनर भी चूतड़ उछाल-उछालकर हम लोगों का साथ दे रही थीं।

मैं- जीजाजी, क्या सोच रहे हो?

जीजाजी दीदी की बुर में लण्ड पेलते हुए- बस साले साहब तुम्हें मेरी दीदी को चोदते देखकर कुछ जलन सी हो। रही है।

मैं- जीजाजी, जलन हो रही है? आप भी तो मेरी दीदी को चोद रहे हो। मैं तो जल नहीं रहा हूँ।

जीजजी- “अरे साले साहब, वो तेरी बहन के साथ-साथ मेरी बीवी भी तो है। और बीवी की चूत चुदाई नहीं करूँ तो क्या इससे राखी बंधवा हूँ और ये गाना गाये... भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना...”

मैं- “तो आपकी बहन होती तो भी आप कहाँ छोड़ने वाले थे। अपनी सगी बहन को तो अपने छोड़ा नहीं। शादी से पहले ही चूत का बाजा बजा दिया। उनके पति को चुदी चुदाई चूत चोदने को मिली। मेरी दीदी अगर आपकी बहन होती तो गाना गातीभैया मेरे राखी के बंधन को निभाना, रात को सबके सोने के बाद आ जाना। अपने लौड़े को चूत में घुसाना, मेरी चूत की खुजली को मिटाना। अपने रस को फुद्दी में भर जाना, भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना।

झरना नीचे से अपना चूतड़ उछालती हुई बोली- “वो रामू भैया, इससे कहते हैं असली भाई बहन का असली प्यार... दुनियां खाए आम अचार... हम तो भैया से चुदवायेंगे मेरे यार... तुम मना कर लो चाहे एक हजार... हम चुदवायेंगे बार-बार...”

मैं- एक काम करते है जीजाजी?

जीजाजी- क्या बोलो साले साहब?

मैं- अपन जोड़ी बदल लेते हैं।

जीजाजी कुछ कहते इससे पहले दीदी ने ऐसा चूतड़ उछाला की जीजाजी एक तरफ हो गये।

दीदी बोली- "ये हुई ना अकलमंदी की बात मैं अपने भाई से चुदवा के खुश, झरना अपने भाई से चुदवा के खुश। आप अपनी दीदी को चोदकर खुश तो मेरे ये बलमा अपनी बहन की फुद्दी में अपना लण्ड डालकर खुश। क्यों बलमा, सही कहा ना मैंने?
 
मैं- “हाँ मेरी रानी... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकती। आखिर सत्यवादी राजा हरीशचंद्र के खानदान से जो हो...”

झरना- हाँ भैया बहुत मजा आएगा.. एक ही चुदाई में दो-दो लण्ड से चुदवाना... बड़ा अच्छा लगता है।

मैं- बड़ा अच्छा लगता है। इसका मतलब? झरना, तुम्हारे साथ पहले भी ऐसी नौबत आ चुकी है?

झरना- आ चुकी है का क्या मतलब है भैया? मेरे ये... याने तुम्हारे जीजाजी और मेरे देवर अपनी शादी होने तक रोज रात को मेरे कमरे में बारी-बारी से चोदते थे। पहले तेरे जीजाजी चोदते थे। फिर उनके सोने के बाद मेरे देवर पहुँच जाते थे। बगल में पति सोए रहते और मैं चूतड़ उछाल-उछालकर अपने देवर से चुदवाती थी।

मैं- पर झरना, जीजाजी को पता नहीं चलता था?

झरना- “अरे वो सोने का नाटक करते थे। देवर के जाने के बाद फिर से एक बार मेरी चुदाई करते थे तब जाकर उन्हें असली नींद आती थी। देवर की शादी के बाद ये सिलसिला टूट गया...”

जीजाजी- क्यों?

झरना- “अरे उसकी बीवी साली महा चालू है। मेरे पति के साथ तो मस्ती ले लेती है। पर मैं जब देवर के साथ चुदवाना चाहूं तो नखरा दिखाने लगती है... साली लण्डखोर...”

जीजाजी- फिर तुम कैसे करती हो?

इन्हीं सब बातों के बीच में दीदी मेरे लण्ड को अपनी चूत में समेट चुकी थी और मैंने धक्का लगाना चालू कर दिया। इधर जीजाजी ने भी अपनी बहन की बुर में अपना लौड़ा घुसाकर धक्का मारना चालू कर दिया।

जीजाजी- हाँ तो झरना, तुम कैसे करती हो?

झरना- “करना क्या है भैया? अपने पति का लण्ड तो है ही ना.. और उस साली के सोने के बाद देवरजी आ जाते हैं मुझसे मजा लेने...”

जीजाजी- तो बात क्या रही फिर?

झरना- तुम समझे नहीं भैया? अभी जैसे आप मुझे चोद रहे हो, रामू भैया दीदी को चोद रहे है। थोड़ी देर पहले तो उल्टा था ना... मैं उनसे चुदवा रही थी और आप भाभी की बुर में लौड़ा पेल रहे थे। वैसे ही मैं चाहती थी की एक ही कमरे में मैं... तेरे जीजा... देवर और देवरानी एक साथ चुदाई का दौर चलायें और जोड़ी बदलते रहें। पर देवरानी साली तो मानती ही नहीं है... पर रामू भैया के आने से मेरा ये सपना पूरा हुआ... मैं दिल से दुआकरती हूँ। कि रामू भैया को नई-नई चूत मिले चुदाई करने को। भैया का लण्ड भी तो जैसे गधे का उखाड़ कर लगा लिया ऐसा है। जो लड़की एक बार चुदवा ले, उसे और किसी दूसरे लण्ड में मजा ही नहीं आएगा...”
 
जीजाजी- क्यों झरना, मेरे लण्ड से मजा नहीं आ रहा है?

झरना- “ऐसी बात नहीं है भैया... आपसे मुझे भरपूर मजा आ रहा है। पर रामू भैया का लण्ड तो भरपूर से कहीं ज्यादा है और हद से ज्यादा मजा देता है...”

जीजाजी- हाँ... वो तो सच में गजब का है। साले के लण्ड का स्वाद भी गजब का है।

दीदी- “अच्छा... रामू भैया, पानी को अंदर मत गिराना, मुझे आपका रस पीना है। मैं भी तो देखें कि कितना स्वादिष्ट है? और कहते हैं की हर चुदाई के बाद कुछ नमकीन हो जाए। वैसे भी कहते हैं कि वीर्य में सब विटामिन होती हैं। अस्सी बूंद खून से एक बूंद वीर्य का बनता है...”

झरना- क्या सचमुच भाभी? वैसे भी बीच में डाक्टर ने कहा था कि मुझमें खून की कमी है। आज तो मैं भी भैया के रस की एक बूंद को भी जाया नहीं करूंगी। भैया, चलो जोर लगाओ... उधर देख नहीं रहे कि भैया कैसे पेल रहे हैं... रेलगाड़ी के पिस्टन की तरह भाभी की बुर में पेले जा रहे हैं... पेले जा रहे हैं...”

जीजाजी- “अरे पेल रहा हूँ, बहना पेल रहा हूँ। साले इस रामू का लण्ड खाकर तू भी ना... महा-चुदक्कड़ बन गई है। पहले मेरे लण्ड की दीवानी थी अब उसकी हो गई है...”

झरना- “दीवानी तो आपके लण्ड की अब भी हूँ भैया। और रामू भैया के लण्ड की महा-दीवानी। बस-बस, धक्का लगाते रहो। मैं भी तो नीचे से चूतड़ उछाल-उछालकर हर धक्के का जवाब दे रही हूँ...”

इधर दीदी भी मेरे हर धक्के का माकूल जवाब दे रही थी। पलंग चूऊँ-चूऊँ करके चरमराने लगा।

सासूमाँ को हम भूल गये थे। आवाज से उनकी नींद खुल गई। सासूमाँ चिल्लाई- “अरे बचाओ-बचाओ... भूकंप आ गया, भूकंप आ गया...”

दीदी- “अरे माताजी जी, भूकंप नहीं है। ये तो रामू भैया मेरी फुद्दी में लण्ड पेल रहे हैं। और ये... ये आपके सुपुत्र को देखो तो शर्म नहीं आ रही है... अपनी सगी बहन की बुर में लण्ड पेल रहे हैं, किसी भुक्खड़ की तरह... जैसे महीनों बाद चूत चोदने को मिली हो। इसी वजह से पलंग चरमरा के चूऊँ-चूऊँ की आवाजें निकाल रहा है...”

सासूमॉ- “अच्छा अच्छा... मैं अपने कमरे में सोने जा रही हूँ। तुम लोगों से कल सुबह मिलूंगी... हे राम... रे... साले दोनों ने जमकर गाण्ड और चूत में अपना-अपना लण्ड पेला है। कल सुबह चम्पा से तेल लगवा करके गरम सेंक लगवाऊँगी, तब जाकर आराम मिलेगा...”

दीदी- “और उस चम्पा से बुर भी चटवा लेना...”

सासूमाँ- अरे, तुझे ये राज भी पता चल गया?

दीदी- और नहीं तो क्या? जिस दिन ये नहीं रहते थे तो आपकी बुर चाटने के बाद, आपकी वो चम्पा-कली सीधे मेरे कमरे में आती थी... और रात भर हम दोनों एक-दूसरे की बुर में जीभ घुसेड़-घुसेड़ के मजा लेते थे।
 
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