hotaks444
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कजरी दीदी ने कहा- “कोई फायदा नहीं है भैया। हम दोनों ने आप दोनों की चुदाई देख ली है। आने दो पिताजी को... आप दोनों की रंगरेलियां उनको बताऊँगी...” कजरी दीदी ने नाइटी के ऊपर से चूत को खुजलाते हुए कहा।
बुआ- “हाँ हाँ आने दे बेटी? आने दे तेर पिताजी को। उनको कालू और तेरी चुदाई का क्या जवाब देगी बेटा?
कजरी- क्या मतलब है मम्मी आपका?
बुआ- “मतलब ये है बेटी की रोज रात को जो तुम कालू के साथ चुदाई करती हो मैं सब जानती हूँ...”
कजरी ने अपना सिर झुका लिया। पर कनखियों से मेरे खड़े लण्ड को देख रही थी।
बुआ ने कहा- “तो दो में दो मिलने से चार बात ये हुई की आप हमारी बातें किसी को नहीं बताएंगी। और हम आपकी बातें किसी को नहीं बताएंगी। बस हो गया ना फैसला, फाइनली?
कजरी- फाइनली कहाँ हुआ मम्मी? कजरी मेरी ओर बढ़ते हुए कहने लगी।
बुआ- क्या मतलब अब और क्या रह गया?
कजरी- “अब ये रह गया...” कालू को बुआ की तरफ धक्का देते हुए कजरी ने कहा- “कालू भैया... तेरी इच्छा थी ना माँ को चोदने की? जा शुरू हो जा। मैं भैया के लण्ड से चुदवा के अपनी फुद्दी की प्यास बुझाती हूँ...”
बुआ- “तुम दोनों पागल हो गये हो क्या? कालू मेरा सगा बेटा है...”
कजरी- तो क्या हुआ मम्मी। मैं भी अपने सगे भैया से चुदवाती हूँ। आप भी तो मामाजी से, नानाजी से, चुदवा रखी हो तो फिर कालू क्यों नहीं... कालू तू क्या देखता है साले शुरू हो जा...”
बुआ मना करती रही पर कालू उनकी फुद्दी को चाटने लगा। थोड़े ही देर में उनकी चुदाई चालू हो गई। इधर कजरी दीदी ने मेरे ऊपर चढ़कर लण्ड को चूसना शुरू कर दिया। मैंने भी उसकी चूचियां दबाई। फिर उसे नीचे पटकते हुए उसकी टाँगों को फैलाया और धीमा सा एक धक्का लगाया की लण्ड का सुपाड़ा अटक गया। दूसरे धक्के में उसका बदन अकड़ा तो तीसरे में चीख ही निकल गई।
कजरी- “अरी मम्मी, मरी रे... नहीं चुदवाना है भैया, आपके गधे लण्ड से। मेरी फुद्दी के लिये तो कालू भैया का पतला लण्ड ही काफी है...”
जीजाजी- “मैंने उसका सुना अनसुना करते हुए चूची चुसना जारी रखा और धक्के देना भी...”
थोड़े ही देर में कजरी बोली- “क्या भैया? लण्ड में ताकत नहीं है क्या? इतने धीर-धीरे करने से काम कैसे चलेगा?
जीजाजी ने कहा- मेरे धक्के स्पीड बढ़ने लगी।
कजरी- “हाँ भैया... बस ऐसे ही। हाँ हाँ... मेरा निकला भैया... भैया... ओहह... भैया...”
मैंने कहा- “कजरी दीदी, मेरा कहाँ निकालूं?
कजरी- “मेरे मुँह में निकल ना भैया...” उसने अपना मुँह खोला।
बुआ- “हाँ हाँ आने दे बेटी? आने दे तेर पिताजी को। उनको कालू और तेरी चुदाई का क्या जवाब देगी बेटा?
कजरी- क्या मतलब है मम्मी आपका?
बुआ- “मतलब ये है बेटी की रोज रात को जो तुम कालू के साथ चुदाई करती हो मैं सब जानती हूँ...”
कजरी ने अपना सिर झुका लिया। पर कनखियों से मेरे खड़े लण्ड को देख रही थी।
बुआ ने कहा- “तो दो में दो मिलने से चार बात ये हुई की आप हमारी बातें किसी को नहीं बताएंगी। और हम आपकी बातें किसी को नहीं बताएंगी। बस हो गया ना फैसला, फाइनली?
कजरी- फाइनली कहाँ हुआ मम्मी? कजरी मेरी ओर बढ़ते हुए कहने लगी।
बुआ- क्या मतलब अब और क्या रह गया?
कजरी- “अब ये रह गया...” कालू को बुआ की तरफ धक्का देते हुए कजरी ने कहा- “कालू भैया... तेरी इच्छा थी ना माँ को चोदने की? जा शुरू हो जा। मैं भैया के लण्ड से चुदवा के अपनी फुद्दी की प्यास बुझाती हूँ...”
बुआ- “तुम दोनों पागल हो गये हो क्या? कालू मेरा सगा बेटा है...”
कजरी- तो क्या हुआ मम्मी। मैं भी अपने सगे भैया से चुदवाती हूँ। आप भी तो मामाजी से, नानाजी से, चुदवा रखी हो तो फिर कालू क्यों नहीं... कालू तू क्या देखता है साले शुरू हो जा...”
बुआ मना करती रही पर कालू उनकी फुद्दी को चाटने लगा। थोड़े ही देर में उनकी चुदाई चालू हो गई। इधर कजरी दीदी ने मेरे ऊपर चढ़कर लण्ड को चूसना शुरू कर दिया। मैंने भी उसकी चूचियां दबाई। फिर उसे नीचे पटकते हुए उसकी टाँगों को फैलाया और धीमा सा एक धक्का लगाया की लण्ड का सुपाड़ा अटक गया। दूसरे धक्के में उसका बदन अकड़ा तो तीसरे में चीख ही निकल गई।
कजरी- “अरी मम्मी, मरी रे... नहीं चुदवाना है भैया, आपके गधे लण्ड से। मेरी फुद्दी के लिये तो कालू भैया का पतला लण्ड ही काफी है...”
जीजाजी- “मैंने उसका सुना अनसुना करते हुए चूची चुसना जारी रखा और धक्के देना भी...”
थोड़े ही देर में कजरी बोली- “क्या भैया? लण्ड में ताकत नहीं है क्या? इतने धीर-धीरे करने से काम कैसे चलेगा?
जीजाजी ने कहा- मेरे धक्के स्पीड बढ़ने लगी।
कजरी- “हाँ भैया... बस ऐसे ही। हाँ हाँ... मेरा निकला भैया... भैया... ओहह... भैया...”
मैंने कहा- “कजरी दीदी, मेरा कहाँ निकालूं?
कजरी- “मेरे मुँह में निकल ना भैया...” उसने अपना मुँह खोला।