non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 3 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

झरना- पर मम्मी, ये तो जान-पहचान वाला है, रिश्तेदार है।

मम्मी- “जान पहचान वाला है, रिश्तेदार है। मैं तो इसे नहीं जानती...”

झरना- “अरे माँ, ये अपना दमऊ भैया का दोस्त है, भाभी के साथ आया है.”


मम्मी- “अच्छा अच्छा... पर हे राम... इसका लण्ड तो देखो। झरना, इसे अपने अंदर ना डलवाना मेरी लाडो। वरना किसी और लण्ड के काबिल ना रह पाएगी?

झरना- “पर मम्मी, मैं तो चुदवा चुकी हूँ मम्मी...”

मम्मी- क्या? चुदवा चुकी है? हाय तेरी चूत का तो भोसड़ा बन गया होगा बेटी?

झरना- “अरे नहीं मम्मी, मुझे खूब मजा आया...”

मम्मी- सच में बेटी? कैसा लगा, बता ना?”

झरना- “सबसे शानदार... सबसे दमदार... सबसे रसदार...”

मम्मी- “सचमुच?” अब उसकी मम्मी भी मेरे नंगे बदन को घूर-चूर के देख रही थी- “हे बेटी, ऐसा शानदार लण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखा बेटी। तेरे पिताजी के गुजरने के बाद आज पहली बार मैं लण्ड देख रही हूँ...”

झरना- क्यों झूठ बोल रही हो मम्मी? पिछली बार ये आए थे, तब?

मम्मी - ये... ये कौन बेटी?

झरना- तुम भी ना मम्मी। ये मतलब... आपके जमाई राजा, मेरे पतिदेव। पिछली बार आपने उनका नहीं चखा था क्या? ये तो मुझे बता रहे थे की तुम्हारी मम्मी की बुर फूली हुई पावरोटी सरीखी है...”

मम्मी- “क्या पिछली बार वो जमाई राजा थे? तभी मुझे लग रहा था कि ये लण्ड कुछ अलग सा है... हे भगवान् बेटे के भरोसे जमाई से ही चुद गई...”

झरना- “क्या? क्या बोल रही हो मम्मी? आप अपने बेटे से? हे भगवान्... आपको शर्म नहीं आई मम्मी, अपने बेटे से चुदवाते हुए?”

मम्मी- “शर्म तो बहुत आई बेटी। बहुत ही शर्म आई... बेटी जब मैं एक रात को पानी पीने जा रही थी, और मैंने देखा की मेरा प्यारा बेटा मेरी प्यारी बेटी को चोद रहा था। बहुत ही शर्म आई बेटा...”
 
झरना- “मैं... मैं नहीं..."

मम्मी- “अच्छा बेटी, मुझसे झूठ..”

झरना- “सारी मम्मी...”

मम्मी- “ठीक है। उस दिन मुझे लगा कि अगर मेरी बेटी चुदवा सकती है मेरे बेटे से तो मैं क्यों नहीं? मेरी बेटी मौज उड़ावे और मैं घर में मस्त लण्ड होते हुए अपनी बुर में गाजर, मूली और बैगन पेलती रहूं...”

झरना- “अच्छा... मैं भी सोच रही थी की रोज-रोज किचेन में से गाजर, मूली एक-एक करके गायब होते जा रहे थे। तो मम्मी, आपने अपने बेटे को शीशे में कैसे उतारा?”

मम्मी- “एक दिन तू कालेज गई हुई थी। तेरे भैया की अभी शादी नहीं हुई थी। भैया आफिस से आए तो मैं उसे देखकर गरम होने लगी। मैंने सोच लिया था की आज तो इसके लण्ड को मेरी फुद्दी में हर हालत में घुसना ही है। बस... उसे पहले डराया, धमकाया, फिर समझाया, फिर बड़े प्यार से उसके लण्ड को अपनी फुद्दी में घुसवाया। और जब एक बार शुरू हो गया, तो आज तक खतम नहीं हुआ। मैंने लाख कोशिश की थी कि किसी को ये बातें मालूम ना हो। यहाँ तक की शादी के बाद मेरी बहू को आज तक ये पता नहीं है। तूने कैसे देख लिया भगवान जाने...”

झरना- “आप गलत सोच रही हो मम्मी। बिल्ली आँख बंद करके दूध पीते हुए ये सोचती है की उसे कोई देख नहीं रहा है। बिल्ली को अपनी ओर आता देखकर कबूतर ये सोचता है की बिल्ली को भी दिखाई नहीं दे रहा है।

मम्मी- तो... क्या मेरी बहू को भी पता है?

झरना- “हाँ... अच्छी तरह पता है। बल्कि उसी ने भैया को कहा था की ननद और सासू को भी जमकर चोदा करो। ताकी उनको लण्ड खाने के लिए बाहर इधर-उधर ना भटकना पड़े..."


मम्मी- हे राम... मैं कैसे मुँह दिखाऊँगी अपनी बहू को, जब वो मायके से आएगी?

झरना- “भाभी मायके से आ चुकी हैं और शर्माने की कोनो जरूरत नहीं है। बस एंजाय करते रहो...”

मम्मी- ठीक है बेटी। पर ये? इनको हमारी बातें जो पता चल गई हैं।

झरना- “कोई बात नहीं। ये भी घर के ही आदमी हैं। आप बिंदास होकर इनसे भी चुदवा सकती हो..”

मम्मी- सच में बेटी? ये भी मेरी बूढी हो चुकी बुर को पेलेगा?

झरना- हाँ हाँ मम्मी, क्यों नहीं पेलेगा?

मेरा तो माँ बेटी की बातों से बुरा हाल था। मैं तो पहले से ही नंगा था। मेरा लण्ड टनटना चुका था।

उसकी मम्मी मेरे करीब आकर मेरे लण्ड को हाथ से सहलाने लगी- “हे सच में बेटी, बहुत ही प्यारा है। मेरा तो कचूमर निकल जाएगा बेटी...”
झरना- “तो फिर ना चुदवा... मैं अकेले चुदवा लँगी...”

मम्मी- “क्यों? अकेली क्यों चुदवाएगी? बेटी चुदवाए और माँ तड़पती रहे। ये हो ही नहीं सकता बेटी..” कहकर सासूमाँ मेरे लण्ड को चुम्मा देती हुई चूसने लगी। बड़े ही मजेदार ढंग से चूस रही थीं।

मैंने भी उनकी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही दबाना चालू रखा।
 
मम्मी- “बस बस बेटा... एक तो तुम दोनों की चुदाई देखकर मेरी चूत ऐसे ही पानी छोड़ रही है। अब और ना तड़पा... बस एक बार घुसा दे..” सासूमाँ ने लहंगा समेटकर साड़ी को ऊपर किया और अपनी भोंस को मुझे दिखाते हुए पलंग पर लेट गई।

सासूमाँ की चूत एकदम सफाचट थी, फूली हुई पावरोटी की तरह। मैं अपने आपको रोक ना पाया और एक शानदार पप्पी दे डाली उसकी फुद्दी पे।।

सासूमाँ बुरी तरह लहरा गई- हे बेटे, क्या कर रहे हो?

मैंने जीभ से चाटना जारी रखा।

मम्मी- “हे बेटे, बहुत ही जानदार ढंग से चूस रहे हो। ऐसी बुर चाटी तो दमऊ ने भी नहीं की...”

झरना- “क्या मम्मी? आप दमऊ भैया से भी बुर चटवा चुकी हो?”

मम्मी- “हाँ री बेटी... जिस दिन दमऊ ने तुम्हें दिन में चोदा था ना... उसी रात को पहुँच गई थी चुपके से उसके कमरे में। अंधेरे में साले को मालूम ही नहीं पड़ा की बेटी है या बेटे की अम्मा चोदने के बाद जब उसने लाइट जलाई तो चौंका। मैं मलाई चाटने के बाद अपने होंठों पर जीभ फिरा रही थी...”

तब दमऊ ने कहा था- “मैं भी सोचूं कि झरना दीदी की बुर में रोंयेंदार बाल थे दिन में और अभी सफाचट है। वाह क्या बात है? सुबह नींबू सरीखी चूचियां थी अभी रसदार आम हैं। और सुबह से ज्यादा अभी मजे ले-लेकर चूतड़ उछलते हुए चुदवा रही है। मुझे क्या पता था की ये झरना दीदी नहीं आप हो। वैसे झरना दीदी से भी ज्यादा मजा दिया आपने...”

मैंने कहा- ऐसा क्या? फिर और एक बार चोदना चाहोगे मेरी बुर को?

दमऊ बोला- क्यों नहीं सासूमाँ?

मम्मी- “और बेटी, इस तरह दमऊ ने उस दिन रात भर में मुझे तीन बार चोदा...”

झरना- “ओह्ह मम्मी... तभी मैं भी सोचूँ की साले ने रात को आने का वायदा तो किया था, पर आया नहीं। मेरी भी दिन की चुदाई के कारण थकावट से नींद आ गई, वरना मुझे भी वो नजारे देखने को मिल जाते.”

ये सब बातें सुनकर मेरा लण्ड बुरी तरह खड़ा हो चुका था। मैंने झरना दीदी से कहा- “उस दिन नहीं देखा तो क्या हुआ झरना दीदी? आज आप देख लो अपनी प्यारी मम्मी को चुदवाते हुए। बल्कि मैं उन्हें चोदता हूँ और तुम उनसे अपनी फुद्दी भी चटवा सकती हो...”

झरना- “हाँ... ये बात सही रहेगी...”

मम्मी- “मैं? नहीं, छीः छीः... मुझे चूत चाटना अच्छा नहीं लगता...”

झरना- “अच्छा मम्मी, मेरा मुँह ना खुलवाओ... भाभी की बुर तो बड़े ही मजेदार ढंग से चूसती हो...”

मम्मी- तूने कब देखा झरना?
 
झरना- "भैया जब पंद्रह दिनों के लिए बाहर गये हुए थे। आप अपने कमरे में अपनी बुर में मूली पेल रही थी। एकाएक भाभी आपके कमरे आ गई। आपकी मखमली बुर देखकर वो अपने आपको रोक नहीं पाई और उन्होंने आपकी बुर चूसा था। उसके बाद आपने भी उनकी बुर चूसकर उन्हें भी उतना ही मज दिया था...”

मम्मी- “अच्छा अच्छा तब? बहुत दिन हो गये बेटी, अच्छा आ जा... मुझे भी बहुत दिन हो गये किसी की फुद्दी को चाटे... और बेटवा आप क्या सुन रहे हो? सुनने के साथ-साथ फुद्दी में लण्ड भी घुसाओ मेरे राजा... बहुत दिनों की प्यासी हूँ, मेरी प्यास बुझा दो। अरे बेटा, धीरे-धीरे घुआओ। बस बेटे उतना ही रहने दो... बस बेटा तकलीफ हो रही है, बस... हे राम... बेटी बचा ले मुझे।

झरना- “अरे भैया, आप मम्मी की बातों पर ध्यान मत दो। घुसेड़ दो पूरा का पूरा...”

मम्मी- “अरी छिनाल, तू तो जमाने भर का लण्ड खाती ही रहती है। मुझे तो कभी-कभी ही मौका मिलता है। प्लीज बेटे थोड़ा धीरे... अरे ये क्या? तूने तो पूरा जड़ तक घुसा दिया रे... हाय मैं मरी रे... आह... आह... बेटे, थोड़ा धीरे... हाँ, ऐसे ही लगे रहो और आगे-पीछे करते रहो। बहुत दिनों के बाद ऐसा जानदार लौड़ा मिला है मेरी फुद्दी को... बस ऐसे ही लगे रहो बेटा... थोड़ा जोर से बेटे... हाँ हाँ स्पीड बढ़ा। मैं भी नीचे से अपना चूतड़ उछाल रही हूँ.”

झरना- अरे माँ... ऐसे ही बक-बक करती रहेगी की मेरी फुद्दी को भी चाटेगी?

मम्मी- “चाट रही हूँ बेटी, साली महा-चुदक्कड़ हो गई है तू..."

झरना- “हाँ... चुदक्कड़ मम्मी की चुदक्कड़ बेटी। आप भी तो अपने जमाने की महान चुदक्कड़ थी। पड़ोस वाली काकी तो कहती थी कि मुहल्ले के किसी को नहीं छोड़ा था आपने?”

मम्मी- “और क्या करती मैं? तेरे बाबूजी महीने में दो-तीन दिन ही आते थे। शराब पीकर दो-तीन धक्का लगाकर बगल में सो जाते थे। हाँ... बेटे ऐसे ही लगे रहो... मस्त चुदाई करते हो बेटा.. बस ऐसे ही करते रहो। मैं बहुत ही खुश हूँ बेटा। तुम्हें रात को एक सप्टइज गिफ्ट देंगी बेटा। नई फुद्दी...”

झरना- “मम्मी... मम्मी...”

मम्मी- क्या है बेटा? चूस तो रही हूँ तेरी फुद्दी... बात तो करने दे?

झरना- मम्मी, मैं ये कह रही हूँ कि आप नई फुद्दी भैया को गिफ्ट देने वाले हो। क्या मायके से सूटकेस में फुद्दी पैक करवाकर लाई हो?
 
मम्मी- अरे नहीं बेटा... मैं तो अपनी बहू को खुश करने की सोच रही थी?

झरना- क्या बात कर रही हो मम्मी? आपको शर्म आनी चाहिए। एक भाई की अपनी बहन से चुदाई कारवाओगी
तुम?

मम्मी- अरे बेटी... ये कौन सा बहूरानी का सगा भाई है? और जब तुम अपने सगे भाई से चुदवा सकती हो... जब मैं अपने बेटे के साथ चुदवा सकती हैं तो ये बेचारा पीछे क्यों रहे? मिलेगी अवश्य मिलेगी बेटा।

झरना- अरे मम्मी, आप जिस नई फुद्दी की बात कर रही हो, भैया ने उसका उद्घाटन सारी रात बस में कर लिया है। सुबह जब भाभी आई तो उनकी चूत बुरी तरह सूज रखी थी। मैंने गरम पानी से सेंका तब जाकर कुछ आराम मिला था भाभी को।

मम्मी- “क्या? अरे बेटा तुम तो छुपे रुस्तम निकले। मेरी बहू का भी जवाब नहीं... एकदम मस्त लौंडे की बहन है। दमऊ का लण्ड भी तुम्हारे सामने कुछ नहीं है बेटा। अरे... मेरा पानी निकलने वाला है... अरे निकला बेटा... धक्का बंद नहीं करना बेटा... ऐसे ही लगे रह..”

मैंने धक्के की गति तेज कर दी। और थोड़े ही देर में मेरे अंडकोष भी भारी होने लगे, तो कहा- “सासूमाँ, मेरा भी निकलने वाला है, कहाँ गिराऊँ?

मम्मी- “अरे बेटा, मेरी फुद्दी में ही गिरा दे। मेरी माहवारी तो हो गई है बंद... और... वैसे भी मैंने अपना आपरेशन करवा रखा था। कौनो चिंता वाली बात ना है मेरे लाल... गिरा दे। हाँ... बहुत गरम है तेरा माल... ओ मेरे लाल। हाँ हाँ भर दे मेरी फुद्दी को...” सासूमाँ झरना की फुद्दी चाटती हुई बोली।


झरना- “हाँ मम्मी... आप भी मेरी फुद्दी में लगे रहो। हाँ मेरा भी छूटने वाला है। हाँ... निकला री... मेरी चुदक्कड़ मम्मी... निकला मेरा माल...”

हम तीनों ही पशीने-पशीने हो गये, और पलंग में मैं दोनों के बीच में लुढ़क गया। तीनों ही गहरी-गहरी सांसें लेने लगे। एकाएक किसी ने कमरे में प्रवेश किया तो हम तीनों ही चौंक गये।

दीदी- “अरे, झरना दीदी... आते ही शुरू हो गई, मेरे रामू भैया के साथ। हेहेहे... साथ में ये कौन है? अरे सासूमाँ आप?”

मैंने देखा कि ये तो मेरी प्यारी दीदी थी।
दीदी- “अरे सासूमाँ... आपको शर्म आनी चाहिए? अपने बेटे बराबर लड़के से चुदवा रहे हो?

मम्मी- “अरे बेटी, क्या हुआ? इतनी गुस्से में क्यों है? आ जा तू भी चुदवा ले अपने भैया से...”

दीदी- “अरे, राम राम... ये कैसी बातें कर रहीं है मम्मीजी आप? भला मैं अपने भाई के दोस्त से कैसे चुदवा सकती हूँ? कुछ तो शर्म करो...”

मम्मी- “अरी बहू, रात भर अपने भाई के साथ बस में एक ही स्लीपर में, एक ही कंबल के नीचे, नंगी होकर क्या भजन गा रहे थे दोनों?”

दीदी- अरे सासूमाँ, वो... ये आपसे किसने कहा?
 
मम्मी- “मुझे सब पता चल चुका है बेटी। खैर, मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ। बल्कि मैं तो शुक्रगुजार हूँ तुम्हारी की तुमने इसे यहां लाया, और मुझे सालों बाद लण्ड से चुदवाने को मौका मिला...”

दीदी- “सालों बाद? अरे मम्मीजी, 15 दिन पहले जब मैं मायके जा रही थी, तब तो चुदवाया था ना अपने बेटे के साथ..."

मम्मी - “अरे नहीं तो..."

दीदी- क्यों झूठ बोल रही हो मम्मीजी?

मम्मी- “अरे वो जल्दबाजी में इतना मजा नहीं आया री... अच्छा बहू, जा अपने भाई के लिए नाश्ता ले आ। थक गया है बेचारा, और रात को फिर से मेहनत और भी तो करनी है...”

मैं नाश्ता करके अपने कमरे में आकर पलंग पर आ गया। आँखें बंद करके सोचने लगा- “हे भगवान... तेरा लाखलाख शुक्र है जो तूने मुझे यहाँ भेजा। होटेल का भाड़ा भी बचा, खाने का खर्चा भी बचा, भोस चुदाई के खर्चे भी बचे... वाह भगवानजी वाह...”

मैं सोचने लगा- वो भगवान ने आज जो छप्पर फाड़कर... नहीं लहंगा उठाकर चूत की बरसात कर दी है। पहले मेरे गहरे दोस्त की शादीशुदा बहन, फिर उसकी ननद, उसके बाद उसकी सासूमाँ। पता नहीं आगे क्या-क्या होनेवाला है? मेरी तो यारों लाटरी खुल गई थी। मुझे पता था की लण्डखोर औरतें मुझे रात भर चैन से सोने नहीं देंगी। इसीलिए कुछ देर आराम करना जरूरी था। ये सब सोचते-सोचते मेरी नींद लग गई। और मैं सपनों की दुनियां में खो गया। सपने में कोई अप्सरा मेरे लण्ड से खेल रही थी, और फिर लण्ड चूसने लगी और मुझे भी बड़ा मजा आने लगा।


एकाएक मेरी नींद खुली तो क्या देखता हूँ कि कोई सचमुच में मेरी पैंट की चैन खोलकर मेरे लण्ड को चूस रही है। नहीं नहीं... ये तो लण्ड को चूस रहा है।

चूस रहा है? हाँ जी मेरे प्यारे पाठकों मैंने ध्यान से देखा तो वो और कोई नहीं, मेरे प्यारे जीजाजी थे।

मैंने कहा- जीजाजी, ये क्या कर रहे हो?

जीजाजी- “अरे यार, साले साहब.. सुबह से जब से तेरा लण्ड देखा था। चूसने को बड़ा मन कर रहा था। बड़ा अच्छा मौका हाथ लगा है। तेरी दीदी रसोई घर में है। मेरी दीदी अपने कमरे में है। माताश्री टीवी देख रही हैं। इतना शानदार मौका मैं तो हाथ से जाने नहीं देता साले साहब। बस चुपचाप बिना आवाज किए मजे लेते रहो, और मुझे मजे देते रहो...”

मैंने चुप रहना ही उचित समझा।

जीजाजी मेरे लण्ड को बड़े ही शानदार ढंग से चूसे जा रहे थे। मुझे भी बड़ा ही मजा आ रहा था। जीजाजी को लगता है लण्ड चूसने में महारत हासिल थी। मेरा लण्ड उनके मुँह में बड़े ही मुश्किल से जा रहा था। पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थे, लगे रहे। और तब तक लगे रहे, जब तक की मेरे लण्ड की आखिरी बूंद को अपने गले में उड़ेल नहीं लिया।
 
मैंने कहा- “वाह जीजाजी, आप तो बड़े शानदार ढंग से चूसते हो...”

जीजाजी- हाँ साले साहब। लण्ड चूसने में मैं हास्टल चैंपियन था।

इतने में ही सासूमाँ ने कमरे में प्रवेश किया और कहने लगी- “बेटा, उठकर फ्रेश हो जाओ। फिर रात भर खाटकबड्डी भी तो खेलनी है। अरे मेरा राजा बेटा भी है अपने साले साहब के साथ। अरे रे... बेटा ये क्या कर रहा है? बहूरानी के भाई के लण्ड को क्यों चूस रहा है बेटा? हे राम... तुझे शर्म नहीं आई क्या बेटा? ऐसी गंदी हरकत करता है..."

झरना- क्या बात है माँ?

मम्मी- “देख ना झरना बेटी, मेरा अपना बेटा बहूरानी के भाई के लण्ड को चूस रहा है... कितना गंदा है छी...


मैं- “क्या बात है सासूमाँ? क्या हुआ?”

मम्मी- “अरे बहूरानी, देख तेरे पति को। तेरे भाई के लण्ड को चूस रहा है छी... छी..”

झरना- “हे भैया, क्या कर रहे तुम? तुम्हें शर्म नहीं आई?"

दीदी- “हे राम... सच में... आप ये क्या कर रहे हैं जी? छी... छी... मेरे भाई के लण्ड को क्यों चूस रहे हैं आप?”

जीजाजी- “हाय री मेरे घर की सती सावित्री औरतें? हाय... मैं तो शर्म से पानी-पानी हो जा रहा हूँ। आप लोगों के यहां एकाएक आ जाने से। आप लोगों को यहाँ आने से पहले दरवाजा तो खटखटाना चाहिए था। देखो ना, तुम लोगों ने हमें इस अवस्था में देख लिया। हे राम... कितनी शर्म की बात है?”

झरना- “और नहीं तो क्या भैया? कितनी शर्म की बात है। आप अपने साले साहब का लण्ड चूसे जा रहे हैं...”

जीजाजी- और तू? जो दोपहर तीन बजे कर रही थी वो क्या था? मेरी प्यारी झरना बहन। उस टाइम क्या तुम हमारे साले साहब को राखी बाँध रही थी?

झरना- वो... वो भैया।

जीजाजी- क्या? वो... वो भैया।

मम्मी- “पर बेटा, साले का लण्ड चूसना...”

जीजाजी- पर क्या माँ? झरना की चुदाई के बाद तुम क्या अपनी बहूरानी के भाई के साथ भजन गा रही थी?

मम्मी- अरे रे... तुम्हें कैसे मालूम पड़ा बेटा?

जीजाजी- “वो सब छोड़ो मम्मी? और तू? तू मेरी डार्लिंग बीवी... बस में रात भर अपने भाई के साथ क्या भजन कीर्तन करते हुए आई थी...”

दीदी- “वो... जी, होते-होते हो गया...”

जीजाजी- “अच्छा जी... आप करो तो होते-होते हो गया। हम करें तो... कितना गंदा कम कर रहे हो? तुम करो तो रासलीला... हम करें तो कैरेक्टर ढीला...”

मम्मी - “अरे नहीं बेटा... हम सब तो मजाक कर रहे थे...”

जीजाजी- “हाँ हाँ... अब क्यों नहीं बोलोगी मम्मी...”

मम्मी- अरे सच में बेटा, जब रामू तुम्हारी बहन को चोद रहा था। तुम्हारी भाभी ने मुझे फोन करके बुला लिया था। हमने एक तरफ छुपकर देखा। दूसरी खिड़की से तुम अंदर झांक रहे थे। अपनी बहन को साले के साथ चुदवाते देखकर अपना ही लण्ड मुठिया रहे थे बेटा। फिर जब तेरी अम्मा चुदवा रही थी। तब भी तुम दूसरी बार स्खलित हो रहे थे बेटा। हमें सब पता है।


झरना- “हाँ भैया, मैंने भी आपको खिड़की से झाँकते हुए देख लिया था, और जोश के मारे चूतड़ उछाल-उछालकर चुदवा रही थी...”

मम्मी - और मैं भी बेटा।

दीदी- “सच में सासूमाँ? हमारा परिवार महान चुदक्कड़ परिवार है मम्मी...”

मम्मी - हाँ बहू... पर तेरे आने के बाद तो आनंद ही आनंद छा गया है बेटी।

मैंने चैन की साँस ली। उनकी बातें सुनकर मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। हम पाँचो ही झरना के किंग साइज बेड के ऊपर बैठ गये।


दीदी ने पूछा- “अच्छा मम्मीजी, आपकी शादी होने के बाद का कोई मजेदार वाकया सुनाइए ना?”
 
* * * * * * * * * * मम्मी फ्लैशबैक में

मम्मी- तो सुनो सब लोग... लण्डवाले लण्ड मुठियाते हुए सुनो... चूतवालियां चूत खुजलाती हुई सुनो।

झरना- क्यों मम्मी? एक काम करते हैं कि चूतवालियां लण्ड को सहलाये और लण्डवाले चूत को खुजलाएं तो कैसा रहे?

मम्मी- “गुड आइडिया मेरी चुदक्कड़ बेटी। वेरी गुड...” तो सुनो- “शादी के कुछ ही महीने बाद की बात है। मैं अक्सर परचून की दुकान में जाती थी सामान लेने के लिए। लालाजी मेरी तरफ हमेशा लचाई नजर से देखते थे। इधर मेरे पतिदेव मेरी गाण्ड के पीछे पड़े हुए थे की मुझे गाण्ड मारनी है। पहली बार में इतना दर्द हुआ की मैंने गाण्ड मराई से तौबा कर ली...”

मम्मी- हाँ... तो बात हो रही थी लालाजी की जो सामान देने के बहाने मेर हाथ को छू लेता था। कभी आँख मार देता था। मैं शर्माती कुछ कह नहीं पाती थी। इससे लालाजी का हौसला बढ़ने लगा। एक दिन तो हद हो गई। साले ने सामान पकड़ने के बहाने मेरी चूचियों को ही दबा दी। मैंने घर में आकर तेरे बापू को सब खबर सुनाई। उसने पहले तो गुस्सा किया। फिर हम दोनों ने मिलकर ये फैसला किया।

शाम के टाइम मैं फिर से लाला की दुकान में पहुँची। दुकान उस टाइम खाली थी। लालाजी तो मुझे देखते ही चहकने लगे। सामान देने के बहाने मेरी चूचियां दबाने लगे।

मैंने हिम्मत जुटाके कहा- लालाजी आज ये शहर गये हैं।

लालाजी- अच्छा तो हमारी बल्ले-बल्ले है।

मम्मी- हाँ लालाजी... मैं भी आपसे मिलना चाहती हूँ। आज अच्छा मौका है। आधी रात को हमारे घर में आ जाना।

लालाजी- पर वहाँ तुम्हारी सास ससुर?

मम्मी- अरे वो तो तीर्थ यात्रा पर गये हुए हैं।

लालाजी- फिर तो मैं पक्का आऊँगा।

मम्मी- आधी रात को... मेरा दिल घबरा रहा था। एकाएक किसी के आने की पदचाप से मेरा दिल और तेजी से धड़कने लगा। हाय आगे क्या होगा?


लालाजी कमरे में आ गये। और मुझसे लिपट गये। मैं भी तेजी के साथ उनकी धोती खोलने लगी।
जीजाजी- हे... हाय मम्मी, तो क्या तुम लालाजी से चुदवा ली उस रात को?

मम्मी- चुपकर साला बहनचोद।

जीजाजी- खाली बहनचोद नहीं मम्मी मैं मदरचोड़ भी हूँ।

मम्मी- ठीक है, ठीक है... बीच में मत टोक और सुन आगे क्या हुआ? जैसे ही मैंने लालाजी को पूरा नंगा कर दिया। प्लान के मुताबिक मैंने एक आह्ह... निकाली। दरवाजे के बाहर तेरे बापू इसी पल का इंतेजार कर रहे थे। उन्होंने फट से दरवाजा ठकठकाया- ठक्क... ठक्क... ठक्क...
 
हम दोनों घबराए। लालाजी का तो पेशाब निकल गया।

मम्मी- मैं घबराने का आक्टिंग कर रही थी। मैंने पूछा- कौन है?

बाहर से तेरे बापू की आवाज आई- भागवान... दरवाजा खोल, शहर से आ गया हूँ।

लालाजी को काटो तो खून नहीं।
मम्मी- मैंने उसे समझाया- “लालाजी गजब हो गया? शहर से मेरा पति आ गया। अब क्या होगा? वो तो बड़ा गुस्सैल है। हम दोनों को ही काट के फेंक देगा...”

लालाजी घबराते हुए बोले- अब क्या करें?

मम्मी- करना क्या है? मैं तुम्हारी धोती और कमीज को छुपा देती हूँ। तुम मेरा साया, साड़ी और ब्लाउज़ पहन लो।

लालाजी- “फिर क्या होगा?” लालाजी ने घबराते हुए पूछा।

मम्मी- यही एक तरीका है हम दोनों के बचने का।
लालाजी ने बचने के लिए फट से मेरा साया, साड़ी, ब्लाउज़ पहन लिया।

दीदी- और तुम मम्मी? तुम नंगी ही रही क्या?

मम्मी- अरे नहीं बहूरानी। मैंने तो साले को अपना जिश्म दिखाया ही नहीं था। पलंग के ऊपर प्लान के मुताबिक पहले से ही साया, साड़ी और ब्लाउज़ रखा हुआ था। लालाजी के मेरे कपड़े पहनते ही मैंने लंबे से पूँघट के नीचे उसका चेहरा छुपाया और... दरवाजे को खोला।

प्लान के मुताबिक मेरे पति गुस्से से उबल पड़े- “साली कुतिया अंदर किससे चुदवा रही थी? कहीं लाला तो नहीं है? गाँव वाले बोल रहे थे कि बड़ी लाइन मारता है तेरे ऊपर?

अंदर एक महिला को देखकर वो ठिठक गये- ये कौन है?

मम्मी- ये है मेरी सहेली पड़ोस की रामदीन की बीवी। आप शहर गये हुए थे। माँ पिता जी भी नहीं हैं। मुझे अकेले में डर लग रहा था। इसीलिए इसे बुला लिया।
 
बहुत ही अच्छा काम किया भागवान... वरना लाला जैसे और भी कितने मनचले हैं, जो तेरी चूत में लण्ड घुसाने को आतुर रहते हैं। वो तो मुझसे डरते हैं, नहीं तो कब का तेरी फुद्दी में अपना लण्ड पेल चुके होते।

मम्मी- छी छी... क्या बात करते हो जी? मेरी सहेली यहाँ बैठी है।

ओहो... मैं तो इससे भूल ही गया था। जा मेरे लिए गरम पानी करके ला, नहाना है।

मम्मी- मैं अंदर रसोई में गई और वापस आ गई। लेकिन कमरे के अंदर नहीं गई बाहर से अंदर झाँकने लगी।

अंदर मेरे पति बहू बनी लालाजी के पास पहुँच गये और पीछे से उसको अपनी बाहों में भर लिए- “रामदीन की बहू... बहुत दिनों से तेरे ऊपर मेरी नजर थी। बीवी के सामने बोल नहीं पाता था। आज शानदार मौका मिला है...” उनकी छाती सहलाते हुए बोले- “अरे तेरी छाती? ऐसी कैसे है? बिल्कुल भी चूचियां बड़ी नहीं हैं? लगता है। राम...दीन तेरी चूचियां ठीक से दबाता नहीं है। कोई बात नहीं... मेरे से रोज दबवाना। दस दिन में मेरी बीवी की जितनी बड़ी-बड़ी हो जाएंगी, तेरी चूचियां... फिर लाला सरीखे गाँव के मनचले तेरे आगे-पीछे घूमेंगे। इससे पहले की मेरी बीवी गरम पानी करके ले आए मैं आज तेरे जिश्म से अपनी भूख मिटा लेता हूँ..” ।

लालाजी सिर से लेकर पाँव तक काँप गये। पूँघट उठा नहीं सकते थे। कोई आवाज निकाल नहीं सकते थे। अब तो पकड़े जाना ही था। साया के उठाते ही मेरे पति को पता लग ही जाना था की लाला कोई औरत नहीं मर्द है। फिर क्या होगा? साला मार मारकर मुझे अधमरा कर देगा।

लालाजी ये सब सोच ही रहे थे की तेरे बाबूजी ने कहा- “साली, तू जब मटकमटक के चलती है ना। तेरे कूल्हे आपस में टकराते हैं। हाय... मैं तो तेरी गाण्ड का दीवाना हूँ। आज तेरी गाण्ड मासँग। तेरी सहेली याने की मेरी बीवी अपनी गाण्ड छूने ही नहीं देती। तेरी गाण्ड मारके मुझे शान्ती मिलेगी। फिर भी तेरी मर्जी है। चूत मरवानी है तो पलंग पे पीठ के बाल लेट जा। और मुझे गाण्ड का सुख देना चाहती हो तो फौरन से कुतिया बन जा...”

लालाजी का दिमाग तेज चलने लगा। लालाजी ने सोचा- “चूत तो है ही नहीं तो पीठ के बाल लेटकर क्या करूंगा? भगवान ने उसे आज बचा लिया जो साले को गाण्ड मारने की सूझी है। लालाजी फौरन कुतिया बनकर चौपाया हो गये।

तेरे बाबूजी ने थोड़ा सा उसके गाण्ड में थूका और थोड़ा सा थूक अपने लण्ड में लगाया- साली, तेरी गाण्ड से गंध आ रही है। ठीक से गाण्ड को धोती नहीं है क्या?

लालाजी और क्या बोलते... चुपचाप रहे, और एकाएक उनकी गाण्ड के छेद पे तेरे बाबूजी का लण्ड लगा और उन्होंने निशाना साधा और... एक करारा धक्का लगाया।
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लालाजी की चीख निकल गई- “हाय दर्द हो रहा है...”
 
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