non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 4 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

कुछ नहीं साली... पहली बार में थोड़ा दर्द होगा, फिर मजा आएगा। देखना, एक बार मुझसे गाण्ड मरा लेगी ना तो फिर रोज आएगी यहाँ मुझसे गाण्ड मराने को...” कहते हुए तेरे बाबूजी ने दूसरा धक्का लगाया।

लालाजी की चीख उबल पड़ी- “हाय... मैं मरी...”
और फिर तेरे बाबूजी ने ताबड़तोड़ धक्का लगाना चालू जो किया तो फिर लण्ड से पानी निकलने के बाद ही उन्होंने छोड़ा।

लालाजी की चीख निकलती रही। लण्ड उसकी गाण्ड के अंदर-बाहर होता रहा। लालाजी की आँखों से आँसू निकल रहे थे, और फिर तेरे बाबूजी के लण्ड से फौव्वारा छूटा और लालाजी की गाण्ड तेरे बाबूजी के पानी से भर गई।

तेरे बाबूजी ने लालाजी के गालों को चूमते हुए कहा- “वाह... साली, मजा आ गया, आज तो। वायदा कर की कल फिर से आएगी। चल ठीक से बैठ जा। इससे पहले की मेरी बीवी आ जाए और हम दोनों को इस अवस्था में देख ले साड़ी ठीक कर ले। तू तो जानती ही है कि मैं तेरी इस गाण्ड का कितना बड़ा दीवाना हूँ... कहीं फिर से मूड ना हो जाये। अरे देख-देख मेरा लण्ड तो फिर से खड़ा होने लगा..."

लालाजी ने घबराते हुए अपनी साड़ी को फट से नीचे किया।

और मैं कमरे में दाखिल हुई- “हाँ जी... तो फिर मेरी सहेली का क्या करना है?

करना क्या है भागवान? यहीं इसी कमरे में सो जाएगी।

मम्मी- इसी कमरे में सो जाएगी? और मेरे सोने के बाद कहीं आपका उस पे मन चल गया तो?

मन चल गया तो क्या होगा भगवान? वही होगा जो हम दोनों के बीच में होता है। वैसे भी साली, आधी घरवाली होती है तो सो जाने दो। बल्कि मैं तो कहता हूँ कि मैं बीच में सो जाता हूँ। तुम दोनों मुझसे लिपटते हुए सो जाओ। पहले तेरी बजाता हूँ, या रहने दे। आज साली पहली बार आई है तो इसी का बजाता हूँ।

मम्मी- “पर जी आप तो मेरी सहेली के गाण्ड के दीवाने थे। आप तो कहते थे की मौका मिला तो रामदीन की बहू की गाण्ड जरूर से मारना चाहूँगा। आज मार लो इसकी गाण्ड..”

भागवान... मैं इस शानदार मौके को हाथ से थोड़े ही जाने देता। गाण्ड मार भी चुका हूँ।
 
मम्मी- “अच्छा- “कब? हाय मेरी लाजवंती... वैसे तो मुझसे कहती थी कि जीजाजी से लाज आवे है। अब मौका मिलते ही गाण्ड मरवा भी चुकी। तू तो यारा बड़ी चुदक्कड़ निकली...”

चल ठीक है भागवान। गाण्ड तो मरा ही चुकी है तेरी सहेली। अब तेरे सामने इसकी फुद्दी भी बजा ही देता हूँ।

लालाजी सिर से पाँव तक काँप गये।
हम दोनों मुश्कुरा रहे थे।

मम्मी- “हाँ हाँ मार लो जी, मेरी सहेली की फुददी को। वैसे भी मैं दिन भर केलाकर-करके थक चुकी हैं। मार लो मेरी साली की फुद्दी को...”

लालाजी मेरे पाँव में गिर गये।

मम्मी- मुझे रहम आ गया। मैंने कहा- “अजी रहने दो। अभी याद आया की ये महीना हो रखी है..”

महीना हो रखी है? पर कपड़ा तो ले ही नहीं रखा है इसने? देखें तो इसकी फुद्दी को?

मम्मी- “अजी रहने दो, फिर कभी चोद लेना। पहली बार ही शर्म आती है, अगली बार से देख लेना। चूतड़ उछाल-उछालकर चुदवाएगी आपसे। क्यों री बहना?”

लालाजी घबरा करके गर्दन हिलाने लगे।

ठीक है फिर मैं छोड़ के आ जाता हूँ इसके घर तक।

मम्मी- “अजी रहने दो। बगल में ही तो घर है, चली जाएगी...” तेरे बाबूजी ने दरवाजा खोला तो बंदूक से निकली गोली की तरह लालाजी अपने घर की ओर दौड़ लिए।


हम सब जीजाजी, दीदी, सासूमाँ, झरना दीदी, और मैं खिलखिलाकर हँस पड़े।

दीदी- फिर क्या हुआ सासूमाँ? क्या ससुरजी ने फिर फुद्दी की भी चुदाई की?

मम्मी- अरे नहीं रे.. लालाजी ने दूसरे दिन दुकान ही नहीं खोला।

मम्मी- तीन दिन के बाद अकेले देखकर मैं उनकी दुकान पहुँच गई। सामान लिया और आते वक्त कहालालाजी, मेरी सहेली को पतिदेव याद कर रहे थे। कह रहे थे कि बहुत मजा आया उस रात को। आज फिर से बुलाया है। तो आधी रात को आ जाना हमारे घर...”

लालाजी अपना गुस्सा पीते हुए बोले- “हमको कौनो गाण्ड मराने शौक थोड़े ही है कि तुमरे घर जाएं। साला चोदने को तो मिला ही नहीं, उल्टा गाण्ड मराके आना पड़ा। साला अभी तक गाण्ड में दर्द हो रहा है। जब-जब वो। वाकया याद करता हूँ तो गाण्ड में एक टीस सी उठ जाती है, साला खाया पिया कुछ नहीं और गिलास थोड़ा बारह आना..."
 
मम्मी- “तो ठीक है ना... गाण्ड की खुजली दूर कर देंगे। आप आओ तो सही...”

लालाजी- “मेरी बहन, मैं आपकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखूगा...”

दीदी- “तो सासूमाँ इस तरह से आपका लालाजी से पीछा चूत गया।

मम्मी- “हाँ... मेरी प्यारी बहू...” और उस समय जब लालाजी कह रहे थे न की हमें कोई गाण्ड मराने का शौक थोड़े ही है जो आपके घर जाऊँ। तो मेरे पीछे मेरी वही पड़ोसन खड़ी थी जो की मेरी प्यारी सहेली भी थी। उसने मुझे शाम को दिशा मैदान में पकड़ लिया और सब राम-कहानी सुन ली। और हँस-हँसकरके लोट-पोट होने लगी।

फिर मेरी सहेली ने कहा- देख मेरी प्यारी सहेली, मेरा नाम लेकर जीजाजी ने लालाजी की गाण्ड मारी है। तो मैं भी एक बार तो कम से कम उसने चुदवाऊँगी। ये तो मेरा हक बनता है।

दीदी- तो क्या मम्मीजी, वो बाबूजी से चुदवाई?

मम्मी- “अरे हाँ री... पर इस बार हमने तेरे बाबूजी को धोखा दिया। रात को सहेली को लेकर मैं तेरे बाबूजी के पास आ गई और कहने लगी- लो जी मेरी सहेली को... न जाने क्या मजा दिया तुमने की फिर से आज आ गई...”

तेरे बाबूजी तो उसे लालाजी ही समझ रहे थे- “ठीक है साली जी... पर आज पीछे का नहीं आगे का मजा लूंगा। चल पीठ के बल लेट जा..."

और मेरी सहेली पीठ के बल लेट गई।

तेरे बाबूजी ने आश्चर्य के साथ जब हाथ फेरा तो लण्ड की जगह चूत के बाल हाथ में आए तो वो काँप गये। और जब लालटेन के उजाले में उन्होंने देखा की ये तो सचमुच मेरी सहेली यानी उनकी मुँह बोली साली है तो फिर फूले ना समाए। उस रात रात भर मेरी सहेली की पुंगी बजाते रहे। सुबह मेरी सहेली की बुर सूज करके पाओ रोटी बन गई। मैंने गरम पानी से सेंका, तब जाकर उसे कुछ आराम आया।

मम्मी की सहेली- “छीः जीजाजी... हम चुदवाने आ गये, मतलब पूरा कचूमर ही निकल दोगे। अब फिर कभी आपसे चुदवाने नहीं आऊँगी...”

मम्मी- “फिर.. मुझे आश्चर्य तब लगा जब तीसरे ही दिन दिशा मैदान में उसने कहा की वो आज फिर से मेरे साथ रात गुजरने को तैयार है। फिर तो जब-जब उसका पति गाँव से बाहर होता। तब-तब वो मेरे साथ रात भर टाँगें फैलाकर मेरे पति के लण्ड को अपनी फुद्दी में पेलवाती रहती। खैर वो सब छोड़ो झरना बेटी, तुम्हारी जिंदगी की पहली चुदाई के बारे में बताओ...”\
 
झरना मुश्कुराते हुए बोली- ठीक है... टांगें फैलाकर सुनो। बात उन दिनों की है जब मुझपे नई-नई जवानी आ रही थी। नींबू जैसी चूचियों को आते जाते सब घूरते रहते थे। एक रात की बात है जब पानी पीने के लिए... (दोस्तों, सब कहानियों में ऐसे ही होता है। प्यास लगी, पानी पीने को किचेन में गये और... दिख गया कुछ) तो मैंने देखा बाबूजी के कमरे में।

मम्मी- बाबूजी के कमरे में? याने बेटी हमारे कमरे में?

झरना- “हाँ हाँ मम्मीजी... आपके कमरे में से आवाजें आ रही थीं। दरवाजे की झिरी में से देखा तो माँ तुम.. एकदम नंगी होकर एक आदमी का लण्ड चूस रही थी...”

मम्मी- “हे कौन था वो? मर जावां, जिसका लण्ड चूसते हुए तूने देख लिया बेटी। कहीं तेरे मामाजी तो नहीं थे?

झरना- “वो नहीं थे.. वाउ... क्या मम्मी आप मामाजी का लण्ड भी चूस चुकी हो?

मम्मी- “हाँ बेटी... जैसे एक बार खून मुँह में लग गया तो आदमखोर शेर इंशान का शिकार करना नहीं छोड़ता। वैसे ही लण्ड का शौक लगा गया तो फिर लण्ड है किसका? ये मुझसे और नहीं देखा जाता। तूने आज देखा नहीं कि कैसे मैंने बहूरानी के भाई के लण्ड से ही चुदवा लिया। खैर तू अपनी जीवन गाथा को आगे बढ़ा...”

झरना- जब वो इंसान नीचे झुका तो मैंने देखा?

मम्मी- कौन था? कहीं तेरा खुद का भाई तो नहीं था?

झरना- “नहीं...”

मम्मी- फिर तेरे नानाजी?

झरना- हे राम... मम्मी, आप नानाजी से भी चुदवा रखी हो?

मम्मी- मैंने कहा ना बेटी, लण्ड और चूत की चुदाई में रिश्तेदारी नहीं देखी जाती।

झरना- बैंक यू मम्मी... तो मैंने देखा कि वो मेरे प्यारे बाबूजी थे।

मम्मी- “ओह्ह... खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया। आखिर दूसरा कोई नहीं था और मैं तेरे बाबूजी का ही लण्ड चूस रही थी। और जोश में आकर मैंने खुद की पाल पट्टी खोल दी...”
 
झरना- कोई बात नहीं मम्मी, अबकी गर्मी की छुट्टियों में नानाजी के घर जाऊँगी तो नानाजी से पूछूगी, और मामाजी से भी की मेरी फुद्दी को पेलते हुए साल हो गये और अपने राज को मेरे सामने नहीं खोला...”

दीदी- “हे दीदी आप मेरे मामा-ससुर और नाना-ससुरजी से चुदवा रखी हो।।

झरना- “चुदवा रखे हो? अरे भाभी, जब तक नानाजी और मामाजी मुझे चोद नहीं लें। तब तक मेरा खाना हजम नहीं होता था। नानी अक्सर मामाजी से कहा करती थी कि जा बेटा एक बार पेल दे अपनी भांजी को। मुझे तो रोज ही करता है, मुझे कल पेल देना..."

दीदी- हे राम... क्या परिवार है? मामाजी नानीजी को चोदते हैं?

झरना- “हाँ भाभीजी... और नानाजी मामीजी को...”

हाँ तो खैर मैं उनकी चुदाई देख रही थे। माँ अपनी दोनों टाँगें फैलाकर कह रही थी- “अब तो चोद लो सनम। आम अंगूर सस्ते हो गये हैं अब तो चोद लो सनम। कुतिया को कुत्ता चोद रहा है। तुम भी चोद लो सनम..."

और बाबूजी... उनकी धमाकेदार चुदाई कर रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों थक गये और मैं भी अपनी चूचियों को मसलते हुए अपने कमरे में आ गई। अब तो रोज रात को मेरा यही प्रोग्राम था। कुछ दिनों के बाद मम्मी-पापा मामाजी के यहाँ गये। घर में सिर्फ भैया और मैं।

मेरा मन कुछ-कुछ करने को चाह रहा था। मैंने मोबाइल निकालकर अपने बायफ्रेंड गोलू को फोन किया। उसने भी हामी कर दी, रात के ग्यारह बजे का समय फिक्स हुआ। मेरा कमरा फर्स्ट फ्लोर पे था। मैंने उससे कह के रखा था की मैं मैं दरवाजे को ओढ़का के रचूँगी, बिना लाक किए। जब तुम नीचे आ जाओगे तो मुझे मिस काल करना। मैं भाई को और पोजीशन देखकर गली में एक सिक्का गिराऊँगी तब तुम ऊपर आ जाना। कमरे में अंधेरा होगा। चुपचाप मजे करेंगे। कोई आवाज नहीं। भैया बगल के कमरे में रहेंगे इसीलिए चुपचाप करना जो करना है। समझ गये? और काम खतम होते ही चले जाना। बाहर का मेनगेट आटोमटिक लाक है। तो मुझे नीचे उतरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
उस रात भैया खाना खाकर दस बजे ही सोने को चले गये।
 
मेरा दिल बल्ले-बल्ले करने लगा। रात के ग्यारह बजे गोलू का मिस काल आया। मैं उठकरके भाई के कमरे की तरफ गई। भाई चुपचाप सो रहा था। मैंने गली में एक सिक्का उछाला और कमरे में आकर सारे कपड़े निकाल दिया ताकी समय की बचत हो, और गोलू का इंतेजार करने लगी। बहुत देर हो गई, गोलू नहीं आया तो मुझे चिंता होने लगी। मैं उठने ही वाली थी की पदचाप सुनाई दी। मैं लेटी रही। गोलू कमरे में आ गया। कमरे में अंधेरा था। एकदूसरे का चेहरा देख नहीं पा रहे थे।

फिर भी मैं थोड़े नाराजगी के साथ फुसफुसाई- “साले गोलू के बच्चे... सिक्का उछालने के बाद आधे घंटे हो गये। नीचे क्या तेरी अम्मा कुत्तों से चुदवा रही थी? जो इतना वक्त लगा दिया..”

गोलू ने धीरे से कहा- “अरे नहीं पगली, मैं तो गली में सिक्का ढूंढ़ रहा था...”

मैं मुश्कुराती हुई बोली- “अरे पगले, मैं पक्की बनिया की लड़की हूँ। साले सिक्का गली में ढूँढ़ रहा था। मैंने सिक्का एक धागे से बाँध करके नीचे उछाला था। काम होने के बाद धागे को वापस खींच ली। फालतू में समय बरवाद किया ना। चल इससे पहले की भैया जाग जायें और कोई दूसरी गड़बड़ी हो जाये। चल शुरू हो जा। वैसे तेरी आवाज कुछ भारी-भारी कैसे लग रही है?”

गोलू- वो... थोड़ा गला बैठ गया है।

झरना- “कहीं तेरा लण्ड भी तो नहीं बैठ गया है ना। नहीं तो मुझे अपनी फुद्दी में गाजर बैगन ना घुसना पड़े।

गोलू- चिन्ता मत कर मेरी जान। ऐसी चुदाई करूंगा कि जिंदगी भर याद रखेगी।

झरना- “चल चल ज्यादा बातें ना बना। खोल दे अपने सारे कपड़े...” मैंने उसे झट से नंगा किया। और मम्मी जैसे आप बाबूजी के लण्ड को चूस रही थी वैसे ही शुरू हो गई...”

गोलू- “ये सब कहाँ से सीखा जानू? कहीं पहले से ही चुदी चुदाई तो नहीं हैं तेरी चूत?

झरना- चुपकर बे.. वो तो मैं मम्मी पाप की रोज चुदाई देखती हूँ बोलकर सीख गई, और तुझसे चुदवाने को तैयार हो गई...” मेरी फुद्दी भी पनियाने लगी थी।

गोलू ने भी मेरी फुद्दी चाटी। फिर मेरी दोनों टाँगों को फैलाते हुए चूत के मुहाने पर लण्ड को टिकाया और एक करारा धक्का लगाया।

झरना- हे राम... मेरी तो चीख निकल गई। फिर भैया के डर से जोर से चीख भी तो नहीं सकती थी। मैंने उससे कहा- “मुझे नहीं चुदवाना। जल्दी निकाल तेरा लण्ड...”

गोलू ने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और मेरी चूचियों को मसलने लगा। कुछ ही देर में मुझे जब मजा आने लगा तो दर्द भी कम हो गया।

झरना- अरे, ऐसे ही लण्ड डाले पड़े रहेगा या चोदेगा भी?

और फिर वो शुरू हो गया। ऐसा मजा आया मम्मी, की क्या बताऊँ। इस दौरान मैं दो बार झड़ चुकी थी। जब वो झड़ने के कगार पे पहुँच तो उसने पूछा- कहाँ डालूं?

मैंने कहा- “अंदर नहीं डालना, मेरे मुँह में डाल...”

गोलू ने पिचकारी सीधी मेरे मुँह में डाल दी।

फिर चुदाई के तुरंत बाद मैंने उसे कपड़े पहनाया और पप्पी देते हुए तुरंत बाहर भेजा। और कहा- “कल फिर मिस-काल करने पर आना..."

गोलू ने ठीक है कहा। और मुझे पप्पी देते हुए कमरे के बाहर निकल गया।

* * * * * * * * * *
 
दूसरे दिन स्कूल में गोलू को देखते ही मेरी फुद्दी में चींटियां सी रेंगने लगी। पर गोलू मेरे से थोड़ा कटा-कटा लगा। हाफ रिसेस में मैंने उसे पकड़ा और कहा- गोलू, ये सब क्या है?

गोलू- मुझे माफ कर दो झरना। मैं वादा करके भी तुमसे कल रात को मिल नहीं पाया। असल में मैं तुम्हारे घर के नीचे पहुँच भी गया था। पर एक एमर्जेन्सी आ गई। और मुझे घर जाना पड़ा।

झरना- मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था कि ये गोलू क्या कह रहा है? कल रात को ये नहीं आया था। तो फिर वो कौन था? जो मुझे कल रात तो दमदार चुदाई से प्रसन्न कर दिया था। कौन था वो जिसकी आवाज कुछ भारी-भारी लग रही थी? मैंने इससे पहले भी गोलू के लण्ड को पकड़ा था। पर कल रात को कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा लग रहता। उत्तेजना के कारण कल रात तो मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया पर... अब ये सब बातें एक-एक करके मुझे याद आने लगी। हे भगवान्... ये मैं किससे चुदवा बैठी हूँ? कौन है वो? जिसने मेरी कुँवारी फुद्दी को चोद-चोद के कली से फूल बना दिया।

इधर गोलू कह रहा था- तुम सुन रही हो ना झरना?

मैंने गुस्से में कहा- “मर गई झरना तेरे लिए, और आज से तू मेरे लिए मर गया। साले, मुझसे बात मत करना। जो वादा करके वादा ना निभाए मैं उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहती...”

गोलू माफी माँगते रह गया पर मैंने माफी नहीं दी।

मैं ये सोचती रह गई, की साला वो कौन खशनशीब हो सकता है जिसने मेरी कच्ची कुँवारी फुद्दी चोद दी? रात के 11:00 बजे होंगे। मैं हल्के-हल्के नींद में थी की मेरी नींद खुली। कोई मेरा जिश्म सहला रहा था। मैं चौंकी... ये तो कल रात वाला ही है।

मैंने भी मजा लेने की सोची और उससे लिपट गई। कुछ ही देर में दोनों नंगे हो गये और एक-दूसरे के अंगों को चाटने लगे, चूसने लगे, और फिर शुरू हो गई धमाकेदार चुदाई। दोनों ही पशीने-पशीने हो गये थे पर कोई भी हार नहीं मानना चाहता था। फिर दोनों ही एक साथ पस्त हो गये। वो मेरे बगल में लेट गया। मैं उसके लण्ड से खेलने लगी। लण्ड उसका धीरे-धीरे तनने लगा। और कुछ ही समय में हम दूसरे राउंड की तैयारी में लग गये। एकाएक मेरा हाथ बल्ब की स्विच की ओर बढ़ा... और कमरे में उजाला फैल गया।

किसी ने अपना मुँह ढक लिया। और जैसे ही मैंने उसका हाथ हटाया... तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसका गई। वो कोई और नहीं मेरा प्यारा राजदुलारा ये भाई था।


मम्मी- “हाँ बेटे? तूने... तूने मेरी बेटी की सील तोड़ी है? मैं मर ज... वां गुड़ खा के। मैं बहुत ही खुश हूँ बेटी की तूने अपने ही भाई से अपनी सील तुड़वाई। हाँ तो प्यारे बेटे... अब तुम शुरू हो जाओ...”

जीजाजी- कौन मम्मी? मैं?

मम्मी- और नहीं तो क्या? मैंने यहां अपनी बुर से दस पंद्रह बेटों को निकल रखा है?

जीजाजी- “नहीं वो बात नहीं है। तुम रामू को भी तो प्यार से बेटा बोलती हो ना...” मम्मी- “हाँ वो तो है... पर अभी तो मैं तुझसे कह रही हूँ..”

तभी दीदी बोली- हाँ हाँ... जरा हम भी तो सुनें कि कौन है वो खूबसूरत हसीना जिसे आपका कुँवारा लण्ड नसीब हुआ था? जैसा की झरना दीदी ने कहा है कि उनकी सील तो आपने तोड़ी थी। इसका मतलब है कि मुझे तो आपका लौड़ा चुदा चुदाया ही मिला था। पर मैं ये जरूर जानना चाहती हूँ की अपने किस फुद्दी में अपनी सील तोड़ी थी।

जीजाजी- बात तब की है, जब मैं मंजरी बुआ के यहाँ रहकरके स्कूल में पढ़ता था। जैसा की आप सबको पता है। की मजारी बुआ की एक लड़की है जो उमर में मुझसे पाँच साल बड़ी है। जिसे हम प्यार से कजरी दीदी कहते हैं।

मम्मी- हाँ हाँ बेटे... और जिसे अक्सर अब तुम उसी के भाई कालू के साथ रात रात भर जमकर पेलते हो।
 
झरना- “क्या भाई? आप कजरी दीदी को भी नहीं छोड़े हो, वो भी कालू भैया के साथ मिलकर। पर भैया कालू भैया का लण्ड तो एकदम पतला है...”

जीजाजी- हाँ... पर तुम्हें कैसे पता?

झरना- कैसे पता? अरे भैया, जैसे आप कजरी दीदी को पेलते हो। वैसे ही मैं जब उनके घर जाती हैं तो मैं भी कालू भैया से पेलवाती हूँ।

जीजाजी- बहुत खूब मेरी चुदक्कड़ बहन। ऐसे ही लण्ड खाने में लगी रह। हाँ तो मैं कहाँ था?

झरना- “भैया, आप कजरी दीदी के चूत में मुँह मार रहे थे...”

जीजाजी- “हाँ... हम सब बच्चे एक कमरे में नीचे बिस्तर लगाकर सोते थे। एक दिन मैंने रात को देखा की कालू भैया कजरी दीदी के ऊपर लेटे हुए नाइटी को उठाकर चूचियों को दबा रहे हैं। और अपनी कमर हिला रहे हैं।

कजरी दीदी ने कहा- “देख भैया, प्लीज... आज बीच धार में मत छोड़ देना, प्लीज... अरें रे... ये क्या कालू भैया? आज फिर आपका पानी निकल गया। हाय... अब मैं अपनी प्यास कैसे बुझाऊँ?

कालू ने कहा- “फिकर नोट दीदी, रात को एक बार फिर...”

कजरी- “ठीक है, पर मुझे डिस्टर्ब नहीं करना शुरू हो जाना...”

कालू- “ओके दीदी...”

जीजाजी- “मैंने सोचा कि मौका अच्छा है। आज कजरी दीदी की बुर में अपना लण्ड पेल ही देना चाहिए। मैंने थोड़ी देर के बाद उनकी नाइटी को कमर तक उठाकर चूतड़ सहलाने लगा। इतने में ही बाहर कुछ आहट हुई तो मैं सोने का नाटक करने लगा।

तभी बुआ ने कमरे में प्रवेश किया और दीदी की नाइटी को कमर के ऊपर देखकर सन्न रह गई। फिर उन्होंने लाइट जलाई और कजरी दीदी की फुद्दी को देखने लगी। फुद्दी में से कालू भैया के लण्ड का रस अभी भी चू रहा था...”

जीजाजी- मैं आँखें बंद करके चुपचाप लेटा हुआ था। अब बुआ ने कालू भैया की लुंगी के अंदर हाथ डाला और लण्ड के ऊपर चिपचिपा पानी देखकर और सन्न रह गई। फिर उन्होंने मेरी तरफ देखा, कुछ सोचा... मैंने डर के मारे अपनी आँखों को जोर से बंद किए रखा।

बुआ मेरे नजदीक आ गई और एकाएक उनका हाथ मेरी लुंगी में.. मेरा लण्ड तो पहले ही उत्तेजना के कारण फनफना रहा था। उनके मुँह से एक सिसकारी निकल गई। उन्होंने हाथ हटा लिया और थोड़ी देर के बाद मेरा नाम पुकारी पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया। अब उन्होंने लाइट बंद कर दिया और मेरे पास आकर बैठ गई, और लण्ड को हाथ में लेकर सहलाने लगी।
 
जीजाजी- मैंने भी अंधेरे का फायदा उठाकर अपनी आँखें खोल दी। अब वो एक हाथ से मेरा लण्ड सहला रही थी तो दूसरे हाथ से अपनी चूत को खुजला रही थीं। फिर वो मेरे लण्ड के ऊपर झुक करके लण्ड को अपने मुँह में ले ली। मैं उत्तेजना के मारे थोड़ा सा कॉंपा तो उन्होंने लण्ड को तुरंत अपने मुँह से निकाल दिया। फिर थोड़ी देर के पश्चात उन्होंने फिर से लण्ड को मुँह में लेकर चूसना जारी रखा।

अबकी बार उन्होंने लण्ड को नहीं छोड़ा। मेरे अंडकोष में गरमी बढ़ने लगी। मेरा शरीर छटपटाने लगा। पर उन्होंने लण्ड को नहीं छोड़ा। मेरे लण्ड ने पिचकारी छोड़ना शुरू किया तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। इधर मंजरी बुआ भी कहाँ हार मानने वाली थी। उन्होंने भी लण्ड से निकले आखिरी बूंद तक को अपने गले में उड़ेल लिया।

झरना- हेहेहे... भैया, आपको तो बहुत मजा आया होगा?

जीजाजी- “हाँ बहना मजा तो आया.. पर तेरे जितना नहीं...”

झरना- क्यों झूठ बोल रहे हो भैया? भला कोई अपनी पहली चुदाई भूल सकता है? अब मुझे ही लो, आपसे अंजाने में हुई चुदाई को मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती। आपसे भी ज्यादा मजा मेरे पति मुझे देते हैं। मेरे देवर, जेठ, ससुर, और नंदोई भी मस्त चुदाई करते हैं, आज की तारीख में।
रामू भैया ने आपसे भी ज्यादा सुख मुझे चुदाई का दिया हो, पर आपके साथ की वो पहली चुदाई, भैया मैं नहीं भूल सकती...” झरना भावुक हो उठी।

दीदी- “हाँ दीदी, अपनी पहली चुदाई को कोई भी लड़की भूल नहीं सकती...”

झरना- अच्छा भाभी, आपके सील किसने तोड़ी थी? क्या दमऊ भैया ने? या और किसी ने?

दीदी- “अभी उसमें टाइम है दीदी। अभी तो आपके भैया की आप बीती सुन रहे हैं. उसे सुनिए.” दीदी अपनी चूत को खुजलते हुए बोली।

मम्मी- “हाँ बेटे हाँ.. बहुत रसदार कहानी है तेरी तो बेटा। बस इस कहानी के बाद अपना खाट-कबड्डी का एक दौर चलेगा। फिर बाकी लोग अपनी-अपनी कहानी लेकर सुनाएंगे।

ठीक है?” सासूमाँ मेरे लण्ड को सहलाते हुए बोली।

सब लोग जीजजी की ओर देखने लगे।
 
जीजाजी ने अपने लण्ड को सहलाते हुए कहना शुरू किया- उस टाइम मैं जन्नत में था। बुआजी मेरे लण्ड के ऊपर से अपने होंठों को हटाने का नाम ही नहीं ले रही थीं। मेरा लण्ड दुबारा खड़ा होने लगा। अबकी बार बुआ ने उसे छोड़ा और मेरे कान में फुसफुसाया- “बेटा मैं जानती हूँ कि तुम जागे हुए हो। कोई भी लड़का इतनी गहरी । नींद में तो सो ही नहीं सकता की कोई औरत उसके लण्ड का सारा रस निचोड़ ले और उसे मालूम नहीं पड़े। चल मुझे लेटने की जगह दे और मेरी फुद्दी को चाटना शुरू कर.”

अब कोई बहाना नहीं चलने वाला था। मैं उठा तो बुआ ने मुझे अपने गले से लगाते हुए एक पप्पी दी। और कहा- “बेटा तेरा लण्ड। तेरे बाप से भी बड़ा है...”

जीजाजी- सच में बुआ?

मंजरी बुआ- “हाँ बेटा, और दिखा दे आज की तेरे लण्ड में चोदने की ताकत भी उस लण्ड से ज्यादा है...” जीजाजी- क्या मतलब बुआ? इसका मतलब आप बाबूजी से चुदवा रक्खी हो?

मंजरी बुआ- “अरे हाँ रे... बेटा, शादी से पहले जब तक एकबार मेरी फुद्दी को चाटकर रस निकाल ना दें। मेरे मुँह में एकबार अपने लण्डराज का रस छोड़ ना दें.. तब तक उन्हें नींद नहीं आती थी। इसीलिए पिताजी से चुदवाने के बाद मैं सीधे उनके कमरे में चुदवाने जाती थी।

जीजाजी- हे भगवान्... बुआजी, आप दादाजी से भी चुदवा रखी हो?

मंजरी बुआ- क्या करती बेटा? तेरी दादी गुजरने के बाद मुझसे उनका मूठ मारना देखा नहीं जाता था। इसीलिए चूत का दरवाजा उनके लिए खोल बैठी...”

जीजाजी- यू आर ग्रेट बुआ जी। कोई लड़की अपने दादाजी के लिए इतना बलिदान नहीं दे सकती। पर बुआजी। अब जब आपकी शादी हो गई है, तब दादा जी कैसे करते हैं?

मंजरी बुआ- अरे... एक दिन तेरी मम्मी ने मुझे पकड़ लिया उनके कमरे से चुदवाकर आते वक्त। फिर क्या? दूसरी रात चुपचाप उनके कमरे में पहुँच गई और चुदवा भी ली। पर एक गड़बड़ हो गई। मेरी फुद्दी एकदम सफाचट थी, और तेरी मम्मी की झांटों से भरी। चोदने के बाद तेरे दादाजी ने लाइट जला दी और सारी पोलपट्टी खुल गई। उस दिन से मैं और तेरी मम्मी दोनों बारी-बारी चुदवाने जाती थी।

जीजाजी- मैं बुआ के टाँगों को फैलाकर फुद्दी चाटने लगा।

बुआजी सिसकियां छोड़ने लगी- “बस-बस बेटा, अब और ना तड़पाओ। बस आ जाओ। भर दो इस लण्ड को मेरी फुद्दी में। फाड़ तो चूत को मेरी...”

जीजाजी- मैंने धक्का लगाया तो आधे से ज्यादा लण्ड उनकी फुद्दी में घुस चुका था।

बुआ चिल्ला रही थी- “बेटा, धीरे-धीरे क्या धक्का लगा रहे हो। आज खाना नहीं खाया है क्या? लग धक्के...”

जीजाजी- मैंने जोश में आकर ऐसा धक्का लगाया की बुआजी के चीख निकल गई।

कजरी दीदी और कालू भाई दोनों उठ चुके थे। मैंने दोनों को देख लिया था पर जो मजा आ रहा था उसे मैं छोड़ना भी नहीं चाहता था। मैंने ताबड़तोड़ धक्के लगाए और पूछा- “बताओ बुआ, कैस लग रहा है?

बुआ- “अरे बेटा मैं तो जन्नत में हैं। बस धक्का लगाते रह..” बुआ ने नीचे से चूतड़ उछालते हुए कहा- “बेटा, मेरी चूचियों को भी चूस... देख बेचारी दोनों कैसे मुँह को फुलाकर बैठी हैं?

जीजाजी- मैंने एक को दबया तो दूजे को चूसना चालू रखा।

बुआ का बदन इतने में ही अकड़ने लगा- “अरे बेटा मैं तो गई.. सच में बेटा ऐसी मस्त चुदाई तो तेरे बाप ने भी मेरे साथ नहीं की। तू आज तक का लण्ड का सिरमौर है..."

जीजाजी- “अरे बुआ, मेरा तो अभी तक नहीं निकला है.”

बुआ- “फिर लगे रह बेटा। तेरा निकलेगा उस समय तक तो मेरा एक बार और निकल जाएगा..” और सच में मेरा पानी निकलने के समय बुआ और एक बार झड़ रही थे। हम दोनों पस्त होकर एक-दूसरे से लिपटकर गहरीगहरी साँस ले ही रहे थे की कमरे की लाइट जली।

जीजाजी- मैंने घबरा कर चद्दर को लपेटना चाहा।
 
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