non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 15 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

झरना- अच्छा, चम्पारानी... आज तो बड़ी मेहरबान हो रही हैं हम पर। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ? आज क्या खास बात है?

दीदी- खास बात ये है झरना दीदी की कल आ रहे हैं हमरे जीजाजी... याने की आपके प्यारे पतिदेव और अभी आपके ऊपर ये मेहरबान होगी तभी तो कल आप भी उसके ऊपर मेहरबान होकर अपने पति को कहोगे की- ओ जी तनिक इस बेचारी चम्पारानी की चूत की भी कुछ सेवा कर दीजिए।

चम्पारानी- हाँ नहीं तो और क्या? आप लोग नये-नये लण्ड से चुदवाओ और हम वहाँ किचेन में अकेले अपनी चूत में उंगली करते रहें।

सासूमाँ- हाँ... तो चम्पारानी शुरू हो जा। लेकर एक गरमा-गरम कहानी। जिससे की हमें बिना चोदे ही चोदन-सुख मिले।

चम्पा- हाँ हाँ... अम्माजी... अभी तो आप बोलोगी ही की बिना चोदे ही चोदन-सुख मिले। एक बार रामू भैया से
और एक बार अपने खुद के बेटे से बुर में लौड़ा पेलवा करके बुर की खुजली जो मिटा चुकी हो आप। कहती हैं। बिना चुदाई के चोदन-सुख मिले। अरे बिना चुदाई के चोदन-सुख मिले तो कैसे मिले।

असली लण्ड ही बुझाए चूत की प्यास, गाजर, मूली, बैगन सब कुछ है बकवास।

दीदी- सही कहा चम्पारानी। पर तू भी इनके बेटे के लौड़े का रस अपनी चूत में डलवा के खुजली मिटा चुकी हो। बस अब शुरू हो जाओ, और हमें ये बताओ की तुमरे पति के लौड़े के साथ कैसी हुई तुम्हारी चुदाई।

चम्पा- जैसा की आप सभी जानते हैं कि मैं कम पढ़ी-लिखी थी फिर भी मेरे पति ने मुझे पसंद किया था। शादी के तीसरे ही दिन वो शहर नौकरी जाय्न करने चले गये।

झरना- और तुमरी चूत की खुजली बढ़ती ही गई... बढ़ती ही गई।

चम्पारानी- हाँ... झरना दीदी।
 
दीदी- तो फिर चम्पारानी। तूने अपनी चूत की खुजली मिटाने का बंदोबस्त कैसे किया? क्या अपने कामरू भैया को अपने पास बुला लिया या फिर तुम खुद ही उसके पास चली गई?


चम्पारानी- चाहती तो मैं भी यही थी भाभीजी की मैं दिन रात अपने कामरू भैया के मस्ताना लण्ड को अपनी प्यारी सी मखमली चूत में घुसाए रखें। पर लोक लाज के कारण ऐसा संभव नहीं था। उनके लण्ड का रस चखने का मौका भी मुझे तभी मिलता जब कमलावती भाभी अपने मैके जा रखी हो। तब कामरू भैया मुझे अपने साथ गाँव ले जाते और फिर दिन रात... दिन रात मेरी चूत में ऐसा लण्ड घुसाके पेलते की मेरी सारी खुजली ही दूर हो जाती। जब बहुत दिनों तक ऐसा मौका ना मिलता तो फिर मैं भैया को किसी ना किसी बहाने से अपने पास एक दिन के लिए ही सही, बुला लेती और फिर उस रात को मौका देखकर भैया मेरी चूत के मैदान में अपने लण्ड से चौका छक्का मार ही देते थे। पर ससुराल में मुझे बड़ा डर लगता था कि कहीं पकड़ी गई तो मुफ़्त में बदनामी हो जाएगी- “खाया पिया कुछ नहीं। और गिलास तोड़ा बारा आना” यही कहावत मुझपर लागू होती।

दीदी- फिर तो तुझे अपनी चूत की खुजली मिटने की जगह बढ़ती ही जाती होगी। फिर तूने क्या सहारा लिया? किसी पड़ोसी को अपनी चूत दिखाई... या अपने ससुर को तेल मालिश करते हुए उनके लण्ड की मालिश भी कर ली... और उनके लण्ड से अपनी चूत की मालिश भी करवा ली।

चम्पा- अरे, वाह भाभीजी... आप तो अंधेरे में बढ़िया तीर मार लेती हो।

दीदी- पर ये भी तो बता की मेरा तीर निशाने पर लगा की नहीं?

चम्पारानी- एक तीर निशाने पर नहीं लगा पर दूसरा सटीक लगा है।

दीदी- इसका मतलब?

चम्पारानी- इसका मतलब आई भौजी की मैंने किसी पड़ोसी को घास नहीं डाली। पर हाँ ससुरजी की मालिश जरूर की है।

झरना- वाउ... इसका मतलब अपने ससुरजी के लण्ड को चख ही लिया।

चम्पारानी- नहीं झरना दीदी, ससुरजी एकदम बूढ़े और अपने बाप सरीखे हैं।

दीदी- तो फिर?

चम्पारानी- तो फिर क्या भौजी... आप मेरी बात के बीच में अपनी चूत की झाँट जरूर डाल देते हो।

दीदी- ठीक है चम्पारानी, मैं चूत की झाँट का रोआं तेरी कहानी के आगे नहीं डालूंगी।

झरना- और भाभीजी, आप अगर चाहें तब भी नहीं डाल सकोगी।

दीदी- क्या?

झरना- चम्पारानी की कहानी के बीच में अपनी चूत की झांटों का रोआं।

दीदी- वो कैसे? भला, क्यों नहीं डाल सकती?

झरना- वो ऐसे भाभीजी की आपकी चूत पे तो गिनने के लिए भी एक भी झाँट नहीं है। आपकी चूत का मैदान तो झाँटरहित सफाचट है। क्यों कैसी कही?

दीदी- आप भी ना झरना दीदी... बड़ी वो हैं।

झरना- हमरी चोदो भाभी और चम्पारानी की सुनो... और तुम चम्पारानी, शुरू हो जाओ।

चम्पारानी- तो बात चल रही थी मेरी चूत में मच रही खुजली की जिसे मैं मिटा नहीं पा रही थी। और मेरी चूत की खुजली दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी। मेरे पतिदेव इधर हर रविवार को घर आते थे। रात को खाना खाकर वो कमरे में आते ही मुझे दबोच लेते थे।
 
झरना- और तुमरी चूत में अपना लण्ड पेल देते थे?

चम्पारानी- गलत... एकदम गलत।

दीदी- क्या गलत है इसमें चम्पा? चूत में तो लौड़ा पेलते ही थे तुमरे पति।

चम्पा- झरना दीदी तो गलत बोल ही रही थी पर आप... आप भाभीजी एकदम गलत हो।

झरना- क्या गलत हैं हम दोनों? बता? अरे पति अपनी पत्नी की चूत या बुर में अपना लण्ड या लौड़ा जो भी आप बोलते हो। उसे तो पेलता ही है, और चोदन-सुख देता ही है। इसमें गलत कहाँ हैं हम दोनों? बता... बता... बता। टेल... टेल... टेल।।

चम्पारानी- आपने कहा झरना दीदी की मेरे पति मुझे दबोच के मेरी चूत में लण्ड पेलते हैं। पर उनके पास लण्ड है कहाँ? और भाभीजी, आपने कहा की मेरी चूत में मेरे पति अपना लौड़ा पेलते हैं। पर उनके पास जब लण्ड ही नहीं है तो लौड़ा कहाँ से आई?

दीदी- क्या मतलब? तुमरे पति के पास लण्ड.. मेरा मतलब है कि लौड़ा नहीं है? क्या वो हिजड़े हैं?

चम्पारानी- नहीं भौजी, वो हिजड़े नहीं हैं... पर लण्ड और लौड़ा में फर्क क्या है ये आपको अभी तक नहीं मालूम?

दीदी- अरे चम्पारानी, जैसे तेरी ये फुद्दी है। कोई इसे फुद्दी कहता है, तो कोई चूत, तो कोई बुर कहता है, अँग्रेजी में इसे कंट या वेजाइना कहते हैं। वैसे ही मर्द के लण्ड को कोई लण्ड, तो कोई लिंग, तो कोई लौड़ा, तो कोई इंडा, तो कोई हथौड़ा और अँग्रेजी में इसे पोल, तो कभी पेनिस कहा जाता है।

चम्पारानी- पर भाभीजी, मैं तो एक बात जानती हूँ। जैसा लिंग आपके पति का, झरना दीदी के पति का है। उसे हम लण्ड कहते हैं। और जैसा की मेरे भाई कामरू का है, और इधर रामू भैया का है... उसे मैं लौड़ा कहती हूँ। समझ गई आप?

दीदी- ऊओ... ऊओ... अब समझी... पर तुमरे पति का ना लण्ड है ना लौड़ा तो फिर उनका क्या है?

चम्पारानी- अरे उनका लिंग ना लण्ड है ना लौड़ा। बल्की उनका तो मूंगफली है... मूंगफली। इतने जल्दी भूल गई। आप दोनों।

दीदी, सासूमाँ, जीजाजी, झरना, रामू भैया सब लोग ताली बजाके हँसने लगे।

दीदी- अरे भाई चम्पारानी, तुस्सी ग्रेट हो... छा गई यारा... क्या डायलाग मारा है तूने। मूंगफली है मूंगफली।
 
चम्पारानी- हाँ..भाई। वही तो मैं कह रही थी की मेरे पति हर रविवार को रात को मुझे दबोच लेते थे और मेरी कमसिन जवान बुर में अपनी मूंगफली घुसाके अंदर-बाहर करते थे।

दीदी- ये कह ना चम्पारानी की चूत में मूंगफली डालकर बुर चोदन करते थे।

चम्पारानी- आप फिर गलत हो... चूत में मूंगफली डालकर बुर चोदन नहीं होता है भौजी। केवल अंदर-बाहर, अंदरबाहर होता है। और फिर दो-तीन मिनट में ही वो खल्लास हो जाते थे मेरी चूत के अंदर और मेरी चूत की खुजली थी की मिटने के वजाय और भी बढ़ती ही जाती थी... बढ़ती ही जाती थी।

दीदी- अरे भाई चम्पा, फिर तूने क्या किया?

चम्पा- और मैं कर भी क्या सकती थी भाभी। कुछ दिन तो मैंने सबर किया। जब मैके गई तो कामरू भैया से खुजली पूरी तरह मिटाके ही आई। पर यहाँ ससुराल आते ही फिर वही खुजली।

दीदी- अच्छा... फिर तूने खुजली मिटाने का क्या उपाय सोचा चम्पा?

चम्पा- और फिर एक रात जब उन्होंने अंदर-बाहर, अंदर-बाहर वाला कार्यक्रम समाप्त किया और सोने की तैयारी करने लगे तो मैंने उनका सिर पकड़ा और उनके मुँह को अपनी दोनों जांघों के बीच में दबोच लिया। और फिर मेरे पतिदेव भी मेरी हालत को समझते हुए मेरी फुद्दी में उंगली करते हुए जीभ से चाटने लगे।

फिर मेरा जब पानी निकला तो उनका पूरा का पूरा मुँह उसमें भीग गया, और मैं बिस्तर पर शांत हो गई। और हमें जीने की एक राह मिल गई। अब जब भी रविवार को मेरे पति आते और चूत में अपनी मूंगफली का अंदरबाहर का प्रोग्राम खतम करके चूत चुसाई का कार्यक्रम भी जरूर से बिना नागा पूरा करते थे। और इसी तरह से हमरी जीवन की गाड़ी पटरी पर ठीक से चल ही रही थी की एक दिन।

दीदी- एक दिन? एक दिन क्या हुआ? चम्पारानी, जल्दी बताओ। हमारे दिल की धड़कन बढ़ती ही जा रही है। और चूत में खुजली होती ही जा रही है। बस कहानी को ऐसे बीच में मत चोदो और बताओ की आगे क्या हुआ?

चम्पारानी- बता रही हूँ भाभी। साँस तो लेने दो। हाँ तो... जैसे की मैं कह रही थी की मेरे पति हर रविवार को शहर से गाँव मेरे पास आते थे। चूत में अपनी मूंगफली डालकर अंदर-बाहर करते हुए, मेरी फुद्दी को चाटके मुझे शांत भी कर देते थे। और अगले सट दिन के लिए मुझे तड़पता छोड़कर सोमवार को सुबह-सुबह ही शहर चले। जाते थे। घर में मेरे सास, ससुर और नया-नया जवानी में कदम रखता मेरा छोटा सा प्यारा सा मासूम सा देवर भी था। जो मुझसे पूरा ही हिल मिल गया था।
 
सास-ससुर बाहर वाले कमरे में सोते थे। मैं एक कमरे में और उसके बगल के कमरे में मेरा देवर सोता था। मेरे सास-ससुर चार धाम की यात्रा पर गये हुए थे। सोमवार का दिन था। याने मेरे पति अगले रविवार तक नहीं आने वाले थे। घर में सिर्फ मैं और मेरा छोटा सा देवर थे।

तो बात सोमवार दोपहर की हो रही थी। मैं छत के ऊपर कपड़े सुखा रही थी की तभी मेरी नजर गली में पेशाब कर रहे मेरे देवर के ऊपर पड़ी। और जैसे ही मेरी नजर उसके लौड़े के ऊपर पड़ी... हाय... क्या बताऊँ भौजी... मैं सिर से लेकर पाँव तक काँप गई। हाय... क्या लौड़ा था उसका झरना दीदी। एकदम कड़क... अपने कामरू भैया से भी कुछ बड़ा और मोटा सा था। मेरी चूत में खुजली होने लगी। मैं साड़ी के ऊपर से ही चूत के ऊपर हाथ फेर। कर उसे शांत करने की, समझाने की नाकाम कोशिश करने लगी। पर हाय री चूत की खुजली... जब से देवर का लण्ड देख ली इसमें खुजली बढ़ती ही जा रही है।

हाय राम रे... क्या करूं? क्या ना करूं? कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। मन कह रहा था कि जा देवर से लिपट जा। पर मेरे भीतर से एक और आवाज आई- नहीं नहीं ये गलत है।

फिर से मन ने कहा- अच्छा... देवर से चुदाना गलत है? और जो तू शादी से पहले ही अपनी चूतवा में अपने सगे भाई कामरू का मस्ताना लण्ड पेलवाती रही उसका क्या?

भीतर से फिर से आवाज आई- उसी की कीमत तो अभी चुका रही हैं। अपने पति के मूंगफली से संतुष्ट नहीं हैं। फिर भी आज तक किसी पराए मर्द पर गंदी नजर नहीं डाली।

मन ने कहा- फिर मायके जाकर शादी के बाद भी अपने कामरू भैया से क्यों चुदवाती है?

भीतर से आवाज आई- वो तो मेरे भैया हैं। कोई बाहर वाला थोड़ी है। घर की इज्ज़त घर में ही है।

मन ने फिर कहा- तो ये तेरा प्यारा सा देवर कौन सा बाहर वाला है। ए भी घरवाला ही है। इससे चुदवा लोगी तो ये कौन सा बैंड-बाजा लेकर सारे गाँव में कहता फिरेगा की लो जी मैंने अपनी चम्पा भाभी की चूत में लण्ड घुसाकर कस्स-कस्स के चोद के उसकी चूत के सारे कस-बल ढीले कर दिए।

भीतर से आवाज आई- वो तो है... पर एकदम मासूम है मेरा देवर।

मन ने फिर कहा- हाँ... देख कितना बिशाल है, कितना मोटा है, तेरे कामरू भैया से भी तगड़ा है इसका लण्ड। पहली चुदाई की याद फिर से ताजा हो जाएगी... हाँ नहीं तो... अरे पटा के चुदवा ले, देर ना कर...
दो-तीन साल में इसकी शादी हो जयगी, फिर तुझे ये घास भी नहीं डालेगा। नया-नया जवान हुआ है, इससे पहले की कोई लड़की इसे पताके चुदवा ले... तोड़ दे इसका कुँवारापन्न... कर ले अपनी मुट्ठी में।

भीतर से दिल की आवाज आई- पर किसी को कुछ पता चल गया तो?

मन ने फिर से समझाया- किसी को कैसे पता चलेगा? कौन बताएगा? ये तेरा मासूम सा प्यारा सा देवर तो। किसी को बताने से रहा की मैंने अपनी भाभी चोद दी है। और तू? तू इतनी पागल तो है नहीं की हर किसी के सामने कहती फिरे की लो जी हमने भी चुदवा लिया है अपने देवर के मुस्टंडे लण्ड से। देखो, दर्द के मारे फुद्दी सूज गई है।
 
दिल ने कहा- चुप कर रे मन... किसी ने सुन लिया तो?

मन ने कहा- कौन सुनेगा अपने मन की आवाज? कोई स्पीकर तो लगा नहीं है की सबको सुनाई दे। चल जाकर दरवाजा खोल और पटाले देवर को।

इतने में देवर ने दरवाजा खटखटाया और मैंने मुश्कुराते हुए दरवाजा खोला।

मैं (चम्पारानी)- अरे देवरजी आप? बड़ी देर लगा दी कालेज से आते-आते। क्या बात है?

देवर- मेरी बात छोड़िए... भाभीजी, पहले आप बताइए कि आपने क्यों बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलते-खोलते?

मैं- अरे... देवरजी, आपके लिए तो मैं कब से खोलकर खड़ी हूँ आप ही हैं की घुसाते ही नहीं हो।

देवर- छीः छीः छीः भाभीजी कितनी गंदी हो आप? क्या बोल रही हो? किससे बोल रही हो? अरे मैं भैया नहीं हैं। आपका देवर हूँ। और मुझसे ऐसी बातें क्यों कार रही हो आप?

मैं- अरे देवर राजा। देवर भाभी में तो सब कुछ चलता है। और मैंने ऐसा क्या गंदा बोल दिया की आपको छीः छीः छीः कहना पड़ा।

देवर- जैसे आपको पता ही नहीं है। आपने कहा की अरे देवरजी मैं तो आपके लिए कब से खोलकर खड़ी हूँ, आप ही हैं की घुसाते ही नहीं हो... ऐसा नहीं कहा आपने?

मैं- कान में तेल डाला करो देवरजी... तेल। मैं क्या कह रही हूँ और आप सुन क्या रहे हो। हे... मैंने तो ये कहा था की कब से खोलकर खड़ी हैं। इसका मतलब है कि मैं कब से दरवाजा खोलकर खड़ी हूँ, अपने कपड़े नहीं।

देवर- अच्छा तो अब आप ये भी कहोगी की आप ही घुसाते नहीं हो।

मैं- मैंने कहा ना देवरजी कि कान में तेल डाला करो ताकी आपको साफ-साफ सुनाई दे। मैंने कहा था की मैं तो कब से खोलकर खड़ी हूँ। आप ही घुस आते नहीं हो।

पहले वाले भाग का मतलब आपको समझा चुकी हूँ की कब से दरवाजा खोलकर खड़ी हूँ। आप ही घुस आते नहीं हो अंदर। और आपने समझ लिया की घुसाते नहीं हो। छीः छीः छीः देवरजी कितनी गंदी सोच है आपकी। वैसे आपने क्या सोचा था की क्या घुसाते नहीं हो अंदर? हाय राम रे... देवरजी।

देवर- अब जाने भी दो भाभी, घुसने दो अंदर।

भाभी- क्या कहा देवरजी? घुसाने दें अंदर। क्या घुसाने दें अंदर मैं? आपको शर्म नहीं आती अपनी भाभी से ऐसी बातें करते हुए।

देवर- अरे भाभीजी, आपकी ही भाषा में कान में डाला करिए।

मैं- हाय... कान में डाल लँ? अंदर जाएगा कान में? दर्द नहीं होगा?

देवर- बिल्कुल भी नहीं... मैं ऐसे डालूंगा की बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा।
 
मैं- छीः छीः देवरजी आपको शर्म आनी चाहिए... कहाँ डालने वाली चीज को कान में डालने की बात करते हो।

देवर- हाँ भाभी, पर सब लोग डालते हैं कान में।

मैं- पर आपका इतना मोटा, इतना बड़ा है। कान में कैसे जाएगा?

देवर- अरे भाभीजी, आप चिंता मत करो। मैं ऐसा डालूंगा की आपको पता भी नहीं चलेगा... और अंदर घुसकर ये अपना काम भी तुरंत ही चालू कर देगा। और आपको तुरंत आराम मिलेगा।

मैं- लेकिन... आपका इतना बड़ा, इतना मोटा... नहीं नहीं, मैं कान में तो हारगिज नहीं घुसवाऊँगी। कहीं दूसरी जगह की बात करो तो हिम्मत भी कर लँ।।

देवर- अरे भाभी, आपके कान में तेल डालने की बात कर रहा हूँ बोतल नहीं? जो नहीं घुसेगा।

मैं- क्या? तेल की बोतल? आपका दिमाग खराब हो गया है। मेरा कान सही है। मुझे अच्छा सुनाई देता है। वो तो मैं कुछ और ही समझी थी। वैसे आपने ये कैसे कहा की घुसाने दो अंदर? आपका क्या घुसाने दूं मेरे अंदर? और कहाँ घुसाने ?

देवर- अरे भाभी, इसीलिए तो मैं कह रहा था की तेल डाला करो कान में। मैं तो ये कह रहा था की घुस आने दो अंदर। मतलब मुझे कमरे के अंदर घुस आने दो।

मैं- अरे देवरजी तो घुसिए ना... वैसे आपने बताया नहीं की आपने आज कालेज से आने में देर क्यों की?
देवर- और आपने भी तो ये नहीं बताया की आपने दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों कर दी?

मैं- मैं तो वो... ऊपर कपड़ा सूखाने गई थी।

देवर- और मैं भी कालेज में एक्सट्रा क्लास करके आ रहा हूँ। मेडम ने आज एक्सट्रा क्लास ली है। कैसा होता है। चुदना।

मैं- है देवरजी.. ऐसी गंदी-गंदी बातें सिखाती हैं कालेज में? और वो भी एक मेडम बताती हैं कि कैसा होता है। चुदाना? एक लड़की होकर कैसे पढ़ाती है वो मेडम? उसे शर्म नहीं आती?

देवर- अरे भाभी, इसमें काहे की शर्म? और आजकल ऐसा कौन सा काम है जो लड़की नहीं कर सकती और एक लड़का कर सकता है?

मैं- अरे देवरजी ऐसे बहुत से काम हैं, जो एक लड़का कर सकता है, और एक लड़की नहीं कर सकती।
देवर- जैसे?

मैं- जैसे की सड़क पर दीवार के किनारे खड़े होकर पैंट की जिप खोलकर सू-सू को दीवार पर उछालना।

देवर- छीः छीः छीः भाभी।
 
मैं- क्यों सही कहा तो मिचें लग गई? हाँ कुछ काम ऐसे भी है जो हम औरतें कर सकती हैं, जो एक मर्द नहीं कर सकता। हमारे पास एक ऐसी मशीन है जो फुल्ली आटोमेटिक है, बिना फ्युयेल के ही चलती है। नट बोल्ट और लुब्रिकेंटस की कोई जरूरत नहीं पड़ती है। हर तरह के पिस्टन इसमें अड्जस्ट हो सकते हैं। बिना चाभी के सिर्फ एक उंगली से भी स्टार्ट हो जाती है। महीने में एक बार आटोमटिक ओवरहालिंग होकर फिर एक माह के लिए तैयार हो जाती है।

देवर- अच्छा... भाभीजी, बताइए ना कि ऐसी कौन सी मशीन है आपके पास? और हमारे पास अलग-अलग साइज का पिस्टन कैसे होता है।

मैं- मुन्ना, वो सब जानने के लिए आपकी अभी उमर नहीं हुई।

देवर- अरे भाभीजी, आपका देवर अभी दूध पीता बच्चा नहीं रहा वो अभी बड़ा हो गया है।

मैं- हाँ.. वो तो मैंने छत के ऊपर से देखा था। आप सचमुच जवान हो गये हो।

देवर- तो आपने छत के ऊपर से क्या देखा भाभीजी?

मैं (चम्पारानी) वो सब बाद में देवरजी... कालेज से थके हारे आये हो, फ्रेश हो आओ। तब तक मैं आपके लिए चाय और नाश्ता बना देती हूँ।

देवर- ठीक है भाभी। पर आपको बताना ही होगा की आपने छत के ऊपर से क्या देखा? और देवर बाथरूम में घुस गया।

मैं अगले प्लान की सोचने लगी की आगे मुझे क्या करना होगा की मेरी चूत की खुजली भी मिट जाए और देवर की ट्रेनिंग भी हो जाए, तो दोनों का ही काम बन जाये। दूर से देखा था देवर का लौड़ा, पर मुझे पक्का यकीन था की उनका चूत फाडू लौड़ा है, मेरे भाई कामरू से भी बड़ा और मोटा है। इस चूत की खुजली कैसे मिटाऊँ? अब तो देवर का लौड़ा घुसेगा इस मुई चूत में तभी जाकर इसकी खुजली मिटेगी हाँ नहीं तो।।


इतने में देवर फ्रेश होकर आ गया। और मैंने चाय नाश्ता टेबल पे रख दिया। दोनों ही चाय की चुस्की लेने लगे। देवर मुझे एकटक देख रहा था और मैं देवर को।

देवर- तो भाभी?

मैं- क्या देवरजी?

देवर- कोई बहाना नहीं चलेगा? आपको बताना ही होगा की आपने छत से क्या देखा?

मैं- मुझे कहते हुए शर्म सी आ रही है।

देवर- इसमें शर्म की क्या बात है भाभी? देवर भाभी में कैसी शर्म? ये आपका ही कहना है ना?

मैं- हाँ... पर देवर ने आज जो किया है। वो भी तो बताने लायक नहीं है ना।

देवर- मैंने ऐसा क्या कर दिया जो बताने लायक नहीं है?

मैं- आपने... देवरजी आपने जो किया है। मुझे तो आश्चर्य हो रहा है की जो देवर अपनी भाभी के सामने ऊंची नजर से नहीं देखता... वो ऐसा कैसे कर सकता है।

देवर- अरे भाभी, मैंने ऐसा क्या कर दिया?
 
मैं- मैंने छत के ऊपर से देखा की आपने इधर-उधर देखा। एक लड़की चौक की तरफ जा रही थी और आपने उसको अनदेखाकर अपनी पैंट की जिप खोली और अपना सामान निकाला और... हाय... मुझे तो कहते हुए भी शर्म आ रही है। आपने अपना सामान निकाला और दीवार पे नकशा बनाने लगे। अभी थोड़ी देर पहले मैंने कहा था ना की ये काम हम लड़कियां नहीं कर सकतीं। तो आप दीवार पर अपने सामान से नकशा बना रहे थे। और वो लड़की पास आती जा रही थी... पास आती जा रही थी।

और फिर उसने आपके पास आकर कहा- ए लड़के... ये क्या कर रहे हो?

और उसकी धमकी भरी बात सुनकर आपने उसकी ओर मुड़कर देखा तो उस लड़की का मुँह खुला का खुला रह गया। वो एकटक आपके खड़े हुए सामान की तरफ ही देख रही थी... ना उसके मुँह से कोई आवाज निकली ना आपके मुँह से।

और फिर लड़की ने अपने आपको संभाला और कहा- हे भगवान्... क्या है ये?

फिर आपने कहा- कभी सामान नहीं देखा क्या?

तो उसने इधर-उधर देखा। सड़क एकदम सुनसान थी। वो लड़की बोली- “सामान तो बहुत ही देखा पर तेरे जैसे मोटा और लंबा नहीं देखा...” लड़की ने फिर आपको डांटा और कहा- तुमको दिखाई नहीं देता दीवार पर क्या लिखा है?
और तुमरी नजर उस दीवार पे गई, उहां लिखा था- गधों और कुतों का पेशाब घर।

फिर तुमने कहा- इहां पर लिखा है- “गधों और कुत्तों का पेशाब घर...”

लड़की ने कहा- कुत्ते तो तुम हो नहीं। गधे जैसे लण्ड के मालिक होने से कोई गधा नहीं बन जाता।

तब तुमने कहा- मैं इंसान हूँ।

उस लड़की ने कहा- तो फिर इस गधों और कुत्तों के पेशाब घर में क्यों पेशाब कर रहे हो?

तब तुमने कहा- अरे, मैं इंसान हूँ। इहां पर गधे और कुत्ते पेशाब कार सकते हैं तो क्या मैं इंसान होकर इहां पर पेशाब भी नहीं कार सकता? क्या हम इंसान इनसे भी गये गुजरे हो गये हैं?

तब उस लड़की ने कहा- जब तुमने पेशाब कर लिया है इहां पर तो दूसरा काम भी कर दो जो गधे और कुत्ते कहीं भी कभी भी शुरू कर देते हैं।

उसने तुरंत इधर-उधर देखा और किसी को नहीं आता देखकर तुरंत ही अपनी सलवार को नीचे किया और अपनी चूत दिखाते हुए कहा- इसमें इसे घुसाएगा?

तो फिर आपने उसकी फुद्दी की तरफ आश्चर्य से देखा और कहा- हे भगवान्... तुम्हारी नूनी कहाँ गई?
 
लड़की ने हँसते हुए कहा- मेरी वाली टूट गई। क्या मैं तेरी वाली नूनी पकड़ सकती हूँ?

तो फिर आपने उसे डांटते हुए कहा- नहीं... अपना वाला तो तोड़ दिया तूने अब मेरा वाला भी तोड़ेगी क्या? मुझे नहीं तुड़वानी अपनी नूनी।

देवर- तो इसमें मैंने गलत क्या कहा भाभीजी? साली लड़की ने खेलते खेलते अपनी नूनी तो तोड़ दी। और मेरी नूनी को अपने छेद में घुसा के तुड़वाने को उतारू थी। बड़ी मुश्किल से मैं वहाँ से भागकरके अपने दरवाजे पे आया और दरवाजा खटखटाने लगा। पर आप हैं की कपड़े सुखाने के चक्कर में दरवाजा खोलने में बड़ी देर कर दी। वो लड़की तो आज सचमुच ही मेरी नूनी को तोड़ ही देती।

मैं (चम्पारानी)- ऐसे कैसे तोड़ देती आपकी नूनी को? साली की बुर में भूसा नहीं भरवा देती।

देवर- तोड़ने के बाद आप भरवाती रहती भूसा उसकी फुद्दी में। वैसे ये फुद्दी किसको कहते हैं भाभीजी?

मैं- क्या? देवरजी, आपको फुद्दी नहीं मालूम? अरे देवरजी जैसे आपकी नूनी है ना... हम लड़कियों की वैसी नूनी नहीं होती है। उसकी जगह एक प्यारा सा, गुलाबी रंग का मुलायम छेद होता है। उसे हम बड़े प्यार से पुत्ती, फुद्दी, चूत, बुर ऐसे कहते है।

देवर- ओह... तो इसीलिए आप कह रही थी की हम लड़कियां दीवार के ऊपर सू-सू से नकशा नहीं बना सकती।

मैं- हाँ... देवरजी। वैसे आपका लौड़ा है बड़ा जानदार।


देवर- ये तो गलत बात है भाभीजी। आपने हमारा देख लिया और अपना वाला दिखाया भी नहीं। मुझे लड़कियों का नूनी... ओहह... सारी, फुद्दी देखनी है।

मैं- क्या? सचमुच में आपने किसी औरत की फुद्दी नहीं देखी है देवरजी?

देवर- हाँ... भाभी, प्लीज दिखाईए ना।

मैं- खैर, मैं तो दिखाऊँगी ही... पर आप झूठ बोल रहे हैं की आपने आज से पहले कभी किसी की फुद्दी नहीं देखी।

देवर- नहीं भाभी नहीं.. मैंने सचमुच में किसी लड़की की फुद्दी नहीं देखी है।

मैं- अच्छा... जब मैं रोज नहाने जाती हैं। तो दरवाजे की झिरी में से झाँक-झाँक कर कौन अंदर का नजारा देखते रहता है।

देवर- “वो... वो... भाभी...”

मैं- क्या वो... वो... लगा रखा है? बताइए ना आपने किसी की फुद्दी देखी है की नहीं?

देवर- अच्छा भाभी, देखी है पर दूर से देखी है। मुझे पास से देखना है।

मैं- पर... मैं आपको अपनी फुद्दी क्यों दिखाऊँ?

देवर- “अरे भाभी, प्लीज... दिखा दो ना... अपने प्यारे देवर के लिए इतना भी नहीं कर सकती? प्लीज...”

मैं- ठीक है। पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?

देवर- आप जो कहोगी मुझे मंजूर होगा।
 
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