hotaks444
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ड्रॉयिंग रूम में बाबूजी, राखी, सखी और सुजीत 3नो बच्चों के साथ बैठे हुए थे. सखी हल्के हल्के सूबक रही थी. राखी उसे समझाने की कोशिस कर रही थी. जब वो चुप नही हुई तो राखी ने कहना शुरू किया.
''सखी देख मेरी बहना.....तू रोना बंद कर और मेरी बात ध्यान से सुन. प्यार से सुनेगी तो सब साफ साफ दिखेगा और समझ आएगा. बोल सुनेगी ना....??'' जब सखी ने आँसू पोंछ के सिर हां में हिलाया तो राखी ने बात आगे की.
''देख तुझे शुरू से ही बाबूजी ने बताया कि उनके सरला जी, कंचन बुआ और फूफा जी के कैसे संबंध रहे. तुझे उसपे कभी कोई ऐतराज नही हुआ. अब जब आंटी यहाँ आ गई तो वो शारीरिक सुख जो उन्हे कभी कभी मिलता था मिलना बंद हो गया.
अब उस दिन माल में ड्रेसिंग रूम में जो हुआ मैने तुझे बताया था. उनको देख के मैं भी भड़क गई थी और फिर मुझे देख के वो. अब उसी दिन सुजीत के साथ वो अकेली आई सो मुझे यकीन है कि शुरुआत उसी दिन हुई. और जहाँ तक मुझे याद है तू भी मंन ही मंन यही चाहती थी कि कुच्छ हो ऐसा उस दिन तुझे अपनी मा की जवानी को लहनगा चोली में देख के एहसास हुआ था कि उनकी भी कुच्छ ज़रूरतें हैं.
अब इन सब में मुझे आंटी और सुजीत का कोई दोष नही दिखता, अब बात रही संजय की....तो मुझे नही पता कि इतना चुप रहने वाला इंसान ऐसा क्यों हुआ पर इसमे भी शायद कोई हालात रहे होंगे. वैसे जो भी रहा होगा......मुझे इतना पता है कि अगर मैं तुम और मिन्नी भाभी बाबूजी का अंदर ले सकती हैं तो आंटी ने संजय का लिया ...इसमे तो कुच्छ ग़लत नही है...बाकी संजय क्या कहता है वो मैं ज़रूर सुनना चाहूँगी.'' ये कह के राखी चुप हो गई. सखी जो कि ध्यान से उसको देख रही थी उसके चेहरे पे अब हल्की सी मुस्कान थी. शायड बाबूजी को याद करके........
उधर कमरे में सरला को होश आ गया था. मिन्नी ने उसे पानी दिया और फिर इंतेज़ार करने लगी. जब वो स्टेबल हुई तो उसने संजय और राजू को बाहर भेज दिया. सरला एक बार फिर फूट फूट के रोने लगी. मिन्नी ने उन्हे अपने सीने से लगाया और चुप्प करने लगी. सरला अपने आप को कोस रही थी. तब मिन्नी ने उसे अपनी आँखों देखी बताई.
''आंटी आप क्यों रोते हो....आपकी क्या ग़लती है...मैने देखा सब ...जो हुआ अचानक हुआ. आपने आगे बढ़ के कुच्छ नही किया. मैं जानती हूँ कि उस रात संजय ने पी थी और उसने आपको और सुजीत को देखा. मैं संजय को जानती हूँ कि शराब पी के वो और रंगीन हो जाता है. उसने आपको सिड्यूस किया. आप तो पहले से ही सुजीत के साथ थी और उसका काम आसान हो गया. पर इसमे आपकी क्या ग़लती.....आपकी जगह कोई भी होती तो यही होता..............
चलो अब आँसू पोंच्छो और बाहर चलो...और हां आप सखी की चिंता ना करो....जब वो बाबूजी को अपने अंदर जगह दे सकती है तो संजय आपकी जवानी से वंचित क्यों रहे.....??? बताओ आप मुझे इसमे ग़लत क्या है. सब लोग समझदार है और ये सब बातें समझते हैं....आप चलो मेरे साथ...'' कहते कहते मिन्नी सरला को पकड़ के ले गई. अब तक सखी काफ़ी संभाल चुकी थी. उसने अपनी मा को आते हुए देखा और उठ कर उनके गले लग गई.
""माआ आप चिंता ना करो...सब ठीक है...कोई दिक्कत नही. आज से आप यहीं रुकोगी इसी परिवार में और जैसे हम सब एक साथ प्यार से प्यार करते हुए रहते हैं वैसे ही रहेंगे. मुझे आपसे कोई शिकायत नही. शिकायत है तो संजय और सुजीत भैया से जिन्होने बाबूजी को नही बताया. अगर बता देते तो ये सब नही होता. सब प्यार से बैठ के निपट जाता. आप और संजय समाज में हमेशा सास दामाद रहेंगे वैसे ही जैसे की हम 3नो बाबूजी की बहुएँ हैं. इस घर की चार दीवारो में कौन कब किससे कहाँ प्यार करता है वो बस मर्द और औरत का खेल है. तब कोई सास नही ससुर नही बहू नही दामाद नही....बस लंड और चूत.........जैसे कि आज ये शाम सॅटर्डे....जो कि कितने दिन बाद आया है......जिसे मनाने के लिए हम 3नो बहुओं ने कितना सब्र किया है....आओ मा...आज से तुम इस घर में एंट्री लो उस तरीके से जिस तरीके से होनी चाहिए थी..............राजू भैया बस आप ही बचे हैं...आइए और ले लीजिए इनकी.....वो....प्लीज़.....बाबूजी गुस्सा उतार दीजिए ..नही तो मैं रूठ जाउन्गि और जिस जीभ का आपके लोहे को इंतेज़ार है वो नही मिलेगी.....''
''सखी देख मेरी बहना.....तू रोना बंद कर और मेरी बात ध्यान से सुन. प्यार से सुनेगी तो सब साफ साफ दिखेगा और समझ आएगा. बोल सुनेगी ना....??'' जब सखी ने आँसू पोंछ के सिर हां में हिलाया तो राखी ने बात आगे की.
''देख तुझे शुरू से ही बाबूजी ने बताया कि उनके सरला जी, कंचन बुआ और फूफा जी के कैसे संबंध रहे. तुझे उसपे कभी कोई ऐतराज नही हुआ. अब जब आंटी यहाँ आ गई तो वो शारीरिक सुख जो उन्हे कभी कभी मिलता था मिलना बंद हो गया.
अब उस दिन माल में ड्रेसिंग रूम में जो हुआ मैने तुझे बताया था. उनको देख के मैं भी भड़क गई थी और फिर मुझे देख के वो. अब उसी दिन सुजीत के साथ वो अकेली आई सो मुझे यकीन है कि शुरुआत उसी दिन हुई. और जहाँ तक मुझे याद है तू भी मंन ही मंन यही चाहती थी कि कुच्छ हो ऐसा उस दिन तुझे अपनी मा की जवानी को लहनगा चोली में देख के एहसास हुआ था कि उनकी भी कुच्छ ज़रूरतें हैं.
अब इन सब में मुझे आंटी और सुजीत का कोई दोष नही दिखता, अब बात रही संजय की....तो मुझे नही पता कि इतना चुप रहने वाला इंसान ऐसा क्यों हुआ पर इसमे भी शायद कोई हालात रहे होंगे. वैसे जो भी रहा होगा......मुझे इतना पता है कि अगर मैं तुम और मिन्नी भाभी बाबूजी का अंदर ले सकती हैं तो आंटी ने संजय का लिया ...इसमे तो कुच्छ ग़लत नही है...बाकी संजय क्या कहता है वो मैं ज़रूर सुनना चाहूँगी.'' ये कह के राखी चुप हो गई. सखी जो कि ध्यान से उसको देख रही थी उसके चेहरे पे अब हल्की सी मुस्कान थी. शायड बाबूजी को याद करके........
उधर कमरे में सरला को होश आ गया था. मिन्नी ने उसे पानी दिया और फिर इंतेज़ार करने लगी. जब वो स्टेबल हुई तो उसने संजय और राजू को बाहर भेज दिया. सरला एक बार फिर फूट फूट के रोने लगी. मिन्नी ने उन्हे अपने सीने से लगाया और चुप्प करने लगी. सरला अपने आप को कोस रही थी. तब मिन्नी ने उसे अपनी आँखों देखी बताई.
''आंटी आप क्यों रोते हो....आपकी क्या ग़लती है...मैने देखा सब ...जो हुआ अचानक हुआ. आपने आगे बढ़ के कुच्छ नही किया. मैं जानती हूँ कि उस रात संजय ने पी थी और उसने आपको और सुजीत को देखा. मैं संजय को जानती हूँ कि शराब पी के वो और रंगीन हो जाता है. उसने आपको सिड्यूस किया. आप तो पहले से ही सुजीत के साथ थी और उसका काम आसान हो गया. पर इसमे आपकी क्या ग़लती.....आपकी जगह कोई भी होती तो यही होता..............
चलो अब आँसू पोंच्छो और बाहर चलो...और हां आप सखी की चिंता ना करो....जब वो बाबूजी को अपने अंदर जगह दे सकती है तो संजय आपकी जवानी से वंचित क्यों रहे.....??? बताओ आप मुझे इसमे ग़लत क्या है. सब लोग समझदार है और ये सब बातें समझते हैं....आप चलो मेरे साथ...'' कहते कहते मिन्नी सरला को पकड़ के ले गई. अब तक सखी काफ़ी संभाल चुकी थी. उसने अपनी मा को आते हुए देखा और उठ कर उनके गले लग गई.
""माआ आप चिंता ना करो...सब ठीक है...कोई दिक्कत नही. आज से आप यहीं रुकोगी इसी परिवार में और जैसे हम सब एक साथ प्यार से प्यार करते हुए रहते हैं वैसे ही रहेंगे. मुझे आपसे कोई शिकायत नही. शिकायत है तो संजय और सुजीत भैया से जिन्होने बाबूजी को नही बताया. अगर बता देते तो ये सब नही होता. सब प्यार से बैठ के निपट जाता. आप और संजय समाज में हमेशा सास दामाद रहेंगे वैसे ही जैसे की हम 3नो बाबूजी की बहुएँ हैं. इस घर की चार दीवारो में कौन कब किससे कहाँ प्यार करता है वो बस मर्द और औरत का खेल है. तब कोई सास नही ससुर नही बहू नही दामाद नही....बस लंड और चूत.........जैसे कि आज ये शाम सॅटर्डे....जो कि कितने दिन बाद आया है......जिसे मनाने के लिए हम 3नो बहुओं ने कितना सब्र किया है....आओ मा...आज से तुम इस घर में एंट्री लो उस तरीके से जिस तरीके से होनी चाहिए थी..............राजू भैया बस आप ही बचे हैं...आइए और ले लीजिए इनकी.....वो....प्लीज़.....बाबूजी गुस्सा उतार दीजिए ..नही तो मैं रूठ जाउन्गि और जिस जीभ का आपके लोहे को इंतेज़ार है वो नही मिलेगी.....''