Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

desiaks

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अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

तेज रफ्तार से दौड़ती फीएट की ड्राइविंग सीट पर मौजूद राज की निगाहें सामने हाईवे पर जमी थीं।
अचानक वह चौंका। एक्सीलेटर से पैर उठ गया और ब्रेक पैडल दबता चला गया।

सड़क से नीचे खाई में घुटनों के बल उठता एक आदमी बाँह ऊपर उठाए कार रोकने का इशारा कर रहा था। चेहरा पीला था और मुँह सर्कस के जोकर की भाँति लाल। उसका संतुलन अचानक बिगड़ा और वह औंधे मुँह गिर गया।

राज कार रोककर नीचे उतरा।

डेनिम की जीन्स और शर्ट पहने निश्चल पड़े उस आदमी की साँसों के साथ गले से खरखराती सी आवाज निकल रही थी। वह बेहोश था।

राज ने सावधानीपूर्वक उसे पीठ के बल उलट दिया। उसके मुँह से खून के छोटे-छोटे बुलबुले उबल रहे थे। खून से भीगी कमीज में छाती पर बने गोल सुराख से भी खून रिस रहा था।

गले से अपना मफलर निकाल कर राज ने उसकी छाती पर कसकर बांध दिया।

घायल के शरीर में हल्की सी हरकत हुई। मुँह से कराह निकली। पलकें हिलीं। बुझी सी आँखों की पुतलियाँ चढ़ने लगीं। स्पष्टत: तीसेक वर्षीय वह स्वस्थ युवक मरणासन्न हालत में था।

राज ने सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाईं। दूर-दूर तक न तो कोई वाहन नजर आया और न ही कोई मकान। सूरज डूब चुका था। आस-पास के पहाड़ी इलाके में अजीब सी बोझिल निस्तब्धता व्याप्त थी।

राज ने उसे बाँहों में उठा लिया। कार के पास पहुँचकर उसे पिछली सीट पर लिटाया। उसका सर अपने बैग पर रखकर अपना ओवरकोट उसके ऊपर डाल दिया।

ड्राइविंग सीट पर बैठकर पुनः कार दौड़ानी आरंभ कर दी। रीयर व्यु मिरर इस ढंग से घुमा लिया की उसे देखता रह सके।

दो-तीन मील तक घायल उसी स्थिति में रहा। फिर उसका सर एक तरफ लुढ़क गया।

सामने हाईवे के साथ-साथ दूर तक तारों की ऊँची फैंस बनी नजर आ रही थी। उसके पीछे पुरानी सड़कों हैंगरों, जगह-जगह लगे बोर्डों वगैरा से जाहिर था बरसों पहले उस स्थान को एयरफोर्स के कैम्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा था।
 
बीस-पच्चीस मिनट पश्चात एक शहर की रोशनियाँ नजर आनी शुरू हो गईं।

शहर का नाम था- अलीगढ़।

पहली ही इमारत पर लगे नियोन साइन से बने अक्षर चमक रहे थे-सैनी डीलक्स मोटल। प्रवेश द्वार और लॉबी में दिन की भाँति प्रकाश फैला था।

ठीक सामने कार पार्क करके राज भीतर दाखिल हुआ।

रिसेप्शन डेस्क पर मौजूद सुंदर स्त्री ने सर से पाँव तक उसे देखा।

-“फरमाइए?” थकी सी आवाज में बोली।

-“मेरी कार में एक आदमी को मदद की सख्त जरूरत है।” राज ने कहा- “मैं उसे अंदर ले आता हूँ। आप डाक्टर को बुला दीजिये।”

स्त्री की आँखों में चिंता झलकने लगी।

-“बीमार है?”

-“उसे गोली लगी है।”

-“वह जल्दी से उठी और पीछे बना दरवाजा खोला।

-“सतीश, जरा बाहर आओ।”

-“उसे डाक्टर की जरूरत है।” राज ने कहा- “बातें करने का वक्त यह नहीं है।”

गवरडीन का सूट पहने एक लंबा-चौड़ा आदमी दरवाजे में प्रगट हुआ।

-“अब क्या हुआ? खुद कुछ भी नहीं संभाल सकतीं ?”

स्त्री की मुट्ठियाँ भींच गईं।

-“मेरे साथ तुम इस ढंग से पेश नहीं आ सकते।”

आदमी तनिक मुस्कराया। उसका चेहरा सुर्ख था।
-“मैं अपने घर में जो चाहूँ कर सकता हूँ।”

-“तुम नशे में हो सतीश।”

-“बको मत।”

डेस्क के पीछे थोड़ी सी जगह में वे दोनों एक-दूसरे के सामने तने खड़े थे।

-“देखिये बाहर एक आदमी को खून बह रहा है। उसकी हालत बहुत नाज़ुक है।” राज बोला- “अगर आप उसे अंदर नहीं लाने देना चाहते तो कम से कम एंबुलेंस ही बुला दीजिये।”

आदमी उसकी ओर पलटा।
-“कौन है वह?”

-“पता नहीं। साफ-साफ बताइए, आप लोग मदद करेंगे या नहीं?”

-“जरूर करेंगे।” स्त्री ने कहा।

आदमी दरवाजा बंद करके बाहर निकल गया।

स्त्री डेस्क पर रखे टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल कर चुकी थी।
 
-“सैनी डीलक्स मोटल।” वह बोली- “मैं मिसेज सैनी बोल रही हूँ। यहाँ एक घायल आदमी लाया गया है... नहीं, उसे गोली लगी है... हाँ, सीरियस है... यस एन एमरजेंसी।” रिसीवर यथास्थान रखकर बोली- “हास्पिटल से एंबुलेंस आ रही है।” फिर उसका स्वर धीमा हो गया- “मुझे खेद है। हमारी गलती से बेकार वक्त बर्बाद हुआ।”

-“इससे फर्क नहीं पड़ता।”

-“मुझे पड़ता है। आयम रीयली सॉरी। मैं कुछ और कर सकती हूँ?

पुलिस को सूचित कर दूँ।”

-“हास्पिटल वाले कर देंगे। मदद करने के लिए धन्यवाद, मिसेज सैनी।”

राज प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया।

स्त्री भी उसके साथ चल दी।

-“आप पर तो बहुत बुरी गुजर रही होगी। वह आपका दोस्त है?”

-“नहीं। मेरा कोई नहीं है। मुझे हाईवे पर पड़ा मिला था।”

अचानक स्त्री चौंकी और उसकी निगाहें राज के सीने पर केन्द्रित हो गईं जहां कमीज पर लगा दाग सूख गया था।

-“आपको भी चोट आई है?”

-“नहीं।” राज ने कहा-” यह उसी के खून का दाग है।” और बाहर निकल गया।
 
कार का पिछला दरवाजा खोले अंदर झुका सैनी कदमों की आहट सुनकर फौरन सीधा खड़ा हो गया।

आगंतुक राज था।

-“इसकी सांस चल रही है।” उसने पूछा।

शराब के प्रभाववंश सैनी के चेहरे पर उत्पन्न तमतमाहट खत्म हो चुकी थी।

-“हाँ, सांस चल रही है।” वह बोला- मेरे ख्याल से इसे अंदर नहीं ले जाना चाहिए। लेकीन अगर तुम कहते हो तो अंदर ले जाएंगे।”

-“सोच लीजिए, आप का कारपेट गंदा हो जाएगा।”

सैनी उसके पास आ गया। उसकी आँखें कठोर थीं।

-“बेकार की बातें मत करो। यह तुम्हें कहाँ मिला था?”

-“एयरफोर्स कैम्प से दक्षिण में कोई दो मील दूर खाई में।”

-“तुम इसे मेरे दरवाजे पर ही क्यों लाए?”

-“इसलिए कि मुझे यही पहली इमारत नजर आई थी।” राज शुष्क स्वर में बोला- “अगली बार ऐसी नौबत आने पर यहाँ रुकने की बजाय आगे चला जाऊंगा।”

-“मेरा यह मतलब नहीं था।”

-“फिर क्या था?”

-“मैं सोच रहा था, क्या यह महज इत्तिफाक है।”

-“क्यों? तुम इसे जानते हो?”

-“हाँ। यह मनोहर लाल है। बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक ड्राइवर।”

-“अच्छी तरह जानते हो?”

-“नहीं। शहर के ज़्यादातर लोगों को जानना मेरे धंधे का हिस्सा है लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवरों को मुँह मैं नहीं लगाता।”

-“अच्छा करते हो। इसे किसने शूट किया हो सकता है?”

-“तुम किस हक से सवाल कर रहे हो?”

-“यूँ ही।”

-“तुमने बताया नहीं तुम कौन हो?”

-“नहीं बताया।”

-“ऐसा तो नहीं है कि किसी वजह से तुमने ही इसे शूट कर दिया था?”

-“तुम बहुत होशियार हो। मैंने ही इसे शूट किया था और इसे यहाँ लाकर इस तरह भागने की कोशिश कर रहा हूँ।”

-“तुम्हारी शर्ट पर खून लगा देख कर मैंने यूँ पूछ लिया था।”

उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट देखकर राज के जी में आया उसके दाँत तोड़ दे लेकिन अपनी इस इच्छा को दबाकर वह कार की दूसरी साइड में चला गया। डोम लाइट का स्विच ऑन कर दिया।

घायल मनोहर लाल के मुँह से अभी भी खून के छोटे-छोटे बुलबुले बाहर आ रहे थे। आँखें बंद थीं और सांसें धीमी।

एंबुलेंस आ पहुँची। मनोहर लाल को स्ट्रेचर पर डाल कर उसमें डाल दिया गया।

मात्र उत्सुकतावश राज अपनी कार में रहकर एंबुलेंस का पीछा करने लगा।
 
हास्पिटल में।

राज अपने बैग से साफ कमीज निकालकर बदलने के बाद एमरजेंसी वार्ड में पहुँचा।

मनोहर लाल एक ट्राली पर पड़ा था। चेहरा पीला था, आँखें बंद और होंठ खुले। उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थीं।

एक डाक्टर उसका मुआयना करके पीछे हटा तो राज से टकरा गया।

-“आप मरीज हैं?”

-“नहीं। मैं ही इसे लेकर आया था।”

-“इसे जल्दी लाना चाहिए था।”

-“यह बच जाएगा, डाक्टर?”

-“यह मर चुका है। लगता है, काफी देर तक खून बहता रहा था।”

-“गोली लगने की वजह से?”

-“हाँ। यह आपका दोस्त था?”

-“नहीं। आपने पुलिस को इत्तला कर दी है?”

-“हाँ। पुलिस आपसे पूछताछ करना चाहेगी। यहीं रहना।”

-“ठीक है।”

मनोहर लाल की लाश को सफ़ेद चादर से ढँक दिया गया। राज वरांडे में बैंच पर बैठ कर इंतजार करने लगा।
 
पुलिस इंसपैक्टर चालीसेक वर्षीय, ऊंचे कद और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। उसके साथ बावर्दी एस. आई. भी था।

लाश का मुआयना करके दोनों बाहर निकले।

-“किसी औरत का चक्कर लगता है, सर।” एस. आई. कह रहा था- “आप तो जानते हैं मनोहर कैसा आदमी था।”

-“जानता हूँ।” इन्सपैक्टर बोला।

दोनों राज के पास आ गए।

-“तुम ही उसे यहाँ लाए थे?” इन्सपैक्टर ने पूछा।

राज खड़ा हो गया।

-“हाँ।”

-“तुम अलीगढ़ में ही रहते हो?”

-“नहीं विराट नगर में।”

-“आई सी।” इन्सपैक्टर ने सर हिलाया- “तुम्हारा नाम और पता?”

-“राज कुमार, 4C, पार्क स्ट्रीट, विराट नगर।”

एस. आई. ने नोट कर लिया।

-“मैं इन्सपैक्टर ब्रजेश्वर चौधरी हूँ। यह एस. आई. दिनेश जोशी है।” इन्सपैक्टर ने परिचय देकर पूछा- “तुम काम क्या करते हो?”

-“प्रेस रिपोर्टर हूँ।”

-“किस पेपर में?”

-“पंजाब केसरी।”

-“हाईवे पर क्या कर रहे थे?”

-“ड्राइविंग। अपनी कार में विशालगढ़ से विराट नगर लौट रहा था।”

-“लेकिन अब तुम्हें यहीं रुकना होगा। आजकल परोपकार करना महंगा पड़ता है। इस केस की इनक्वेस्ट में हमें तुम्हारी जरूरत पड़ेगी।”

-“जानता हूँ।”

-“क्या तुम दो-एक रोज यहाँ रुक सकते हो? आज वीरवार है.... शनिवार तक रुकोगे?”

-“अगर रुकना पड़ा तो रुकूँगा।”

-“गुड। अब यह बताओ, उस तक तुम कैसे पहुंचे?”
 
-“वह एयरफोर्स की उस बेस से कोई दो मील दूर सड़क के नीचे खाई में पड़ा था। वह घुटनों के बल उठा और हाथ हिलाकर मुझे कार रोकने का इशारा किया।”

-“यानि तब तक वह होश में था?”

-“ऐसा ही लगता है,”

-“उसने कुछ कहा था?”

-“नहीं। जब तक मैं कार से उतर कर उसके पास पहुँचा वह बेहोश हो चुका था। उसकी हालत को देखते हुए उसे वहाँ से उठाना तो मैं नहीं चाहता था लेकिन फोन करने या किसी को मदद के लिए बुलाने का कोई साधन वहाँ नहीं था। इसलिए उसे उठा कर अपनी कार की पिछली सीट पर डाला और पहली इमारत के पास पहुँचते ही एंबुलेंस के लिए फोन करा दिया।”

-“किस जगह से?”

-“सैनी डीलक्स मोटल से। सैनी पर इस की अजीब सी प्रतिक्रिया हुई। लगता है वह मनोहर लाल को जानता तो था लेकिन उसके जीने या मरने से कोई मतलब उसे नहीं था। एंबुलेंस के लिए उसकी पत्नि ने फोन किया था।”

-“मिसेज सैनी वहाँ क्या कर रही थी?”

-“रिसेप्शनिस्ट की तरह डेस्क पर मौजूद थी।”

-“सैनी की मैनेजर वहाँ नहीं थी?”

-“वह कौन है?”

-“मिस बवेजा।”

-“अगर वह वहाँ थी भी तो मैंने उसे नहीं देखा। क्या उससे कोई फर्क पड़ता है?”

-“नहीं।” इन्सपैक्टर अचानक तीव्र हो गए अपने स्वर को सामान्य बनाता हुआ बोला- “यह पहला मौका है- मैंने रजनी सैनी को वहाँ काम करती सुना है।”

एस. आई. ने अपनी नोट बुक से सर ऊपर उठाया।

-“इस हफ्ते वह रोज वहाँ काम करती रही है, सर।”

इन्सपैक्टर के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं और आँखों में विचारपूर्ण भाव झाँकने लगे।

-“सैनी थोड़ा नशे की झोंक में था शायद इसीलिए वह कड़ाई से पेश आया था। उसने मुझसे पूछा मैंने ही तो उस आदमी को शूट नहीं कर दिया था।” राज ने कहा।

-“तुमने क्या जवाब दिया?”

-“यही की मैंने तो पहले कभी उसे देखा तक नहीं था। अगर उसने दोबारा ऐसी बकवास की तो मैं इसे अपने बयान में जोड़ दूँगा।”

-“हालात को देखते हुए आइडिया बुरा नहीं है।” इन्सपैक्टर ने कहकर पूछा- “क्या तुम साथ चल कर वो जगह दिखा सकते हो जहां महोहर लाल को पड़ा पाया था?”

-“जरूर?”

-“लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेन्स और प्रेस कार्ड देखना चाहूँगा। तुम्हें एतराज तो नहीं है?”

-“नहीं।”

राज ने जेब से दोनों चीजें निकालकर उसे दे दीं।

इन्सपैक्टर ने देखकर वापस लौटा दीं।
 
पुलिस दल सहित राज उस स्थान पर पहुँचा।

पुलिश कारों की हैडलाइट्स और टार्चों की रोशनी में खाई का निरीक्षण किया गया। वहाँ सूखा खून फैला होने और एक मानव शरीर के पड़ा रहा होने के स्पष्ट चिन्ह मौजूद थे।

एक और पुलिस कार आ पहुँची।

भारी कंधों, मजबूत जिस्म और कठोर चेहरे वाले एक एस. आई. ने नीचे उतरकर इन्सपैक्टर को सैल्यूट मारा।

-“बवेजा से बात हो गई, सर। मनोहर लाल ड्यूटी पर था। लेकिन जिस ट्रक को वह चला रहा था वो गायब है।

-“ट्रक में क्या था?” इन्सपैक्टर ने पूछा।

-“यह बवेजा ने नहीं बताया। इस बारे में आपसे बाते करना चाहता है।” एस. आई. का कठोर चेहरा एकाएक और ज्यादा कठोर हो गया- “जिस हरामजादे ने यह किया है जब वह मेरे हाथ पड़ जाएगा....” और उसकी निगाहें राज पर जम गईं।

इन्सपैक्टर ने एस. आई. के कंधे पर हाथ रखा।

-“शांत हो जाओ, सतीश। मैं जानता हूँ, तुम लोग रिश्तों को बहुत ज्यादा मानते हो। मनोहर लाल तुम्हारा कजिन था न?”

-“हाँ। मौसी का लड़का।”

-“हम उसके हत्यारे को जरूर पकड़ लेंगे।”

एस. आई. की निगाहें पूर्ववत राज पर जमी थीं।

-“यह आदमी...।”

-“इसका मनोहर की मौत से कोई वास्ता नहीं है। मनोहर इसे यहाँ पड़ा मिला था। यह उसे उठाकर ले गया और हास्पिटल पहुंचवा दिया।”

-“यह इसने कहा है?”

-“इसी ने बताया है।” इन्सपैक्टर ने कहा फिर उसका स्वर अधिकारपूर्ण हो गया- “बवेचा अब कहाँ है?”

-“अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी में।”

-“तुम पुलिस स्टेशन जाओ और ट्रक के बारे में जानकारी हासिल करो। बवेजा से कहना मैं बाद में आकर मिलूंगा। ट्रक के बारे में सभी थानों और चैक पोस्टों को सतर्क कर दो। यहाँ से बाहर जाने वाली तमाम सड़कें ब्लॉक करा दो। समझ गए?”

-“यस, सर।”

एस. आई. सतीश अपनी कार की ओर दौड़ गया।

इन्सपैक्टर और उसके शेष आदमी बारीकी से खाई की जाँच करने लगे।
 
एस. आई. दिनेश जोशी ने राज के जूते की छाप लेकर उसे खाई में मौजूद पद चिन्हों से मिलाया। राज के अलावा किसी और के पैरों के निशान वहाँ नहीं मिले। खाई के सिरे के आसपास किसी वाहन के टायरों के निशान भी नहीं थे।

-“ऐसा लगता है, मनोहर को किसी कार या उसके ट्रक से ही नीचे धकेल दिया गया था।” इन्सपैक्टर चौधरी बोला- “वाहन जो भी रहा था सड़क से नीचे वो नहीं उतरा।”

उसने राज की ओर गरदन घुमाई- “तुमने कोई कार या ट्रक देखा था?”

-“नहीं।”

-“कुछ भी नहीं।”

-“नहीं।”

-“मुमकिन है, जिस वाहन से मनोहर को धकेला गया था वो रुका ही नहीं।” उन लोगों ने उसे नीचे गिराया और मरने के लिए छोड़ दिया। और मनोहर खुद ही रेंगकर खाई में पहुँच गया।”

-“आपका अनुमान सही है सर।” सड़क की साइड में खड़ा दिनेश जोशी बोला- “यहाँ खून के धब्बे मौजूद हैं जो खाई तक गए हुए हैं।”

इन्सपैक्टर अपने मातहतों सहित कुछ देर और जांच करता रहा। लेकिन कोई क्लू या नई बात पता नहीं लग सकी।

-“तुम सतीश सैनी से मिल चुके हो न?” अंत में उसने पूछा।

-“हाँ।” राज ने जवाब दिया।

-“दोबारा उससे मिलना चाहोगे?”

-“जरूर।”
*********
 
राज द्वारा मोटल के सामने इन्सपैक्टर की कार के पीछे कार रोकी जाते ही सतीश सैनी लॉबी से बाहर आ गया। स्पष्ट था वह सड़क पर निगाहें जमाए ही अंदर बैठा था।

-“हलो कौशल। कैसे हो?”

-“बढ़िया।”

उन्होंने हाथ मिलाए।

राज ने नोट किया दोनों बातें करते वक्त एक-दूसरे को उन दो प्रतिद्वद्वंदियों की भांति देख रहे थे जो पहले भी आपस में शतरंज या उससे ज्यादा खतरनाक कोई और खेल खेल चुके थे।

सैनी ने बताया वह नहीं जानता था मनोहर के साथ क्या हुआ था और क्यों हुआ। उसने न तो कोई गलत बात देखी, न सुनी और न ही की थी। इस पूरे मामले से उसका ताल्लुक सिर्फ इतना था की मनोहर को कार में लाने वाले आदमी ने वहाँ आकर टेलीफोन करने के बारे में कहा था।

राज को घूरकर वह खामोश हो गया।

इन्सपैक्टर चौधरी ने नो वेकेंसी के प्रकाशित साइन बोर्ड पर निगाह डाली।

-“तुम्हारा धंधा बड़िया चल रहा है?”

-“नहीं।” सैनी मुँह बनाकर बोला- “बहुत मंदा है।”

-“तो फिर यह नो वेकेंसी का बोर्ड क्यों लगा रखा है?”

-“रजनी की वजह से। वह रिसेप्शन डेस्क पर बैठ कर ड्यूटी नहीं दे सकती।”

-“क्यों? मीना छुट्टी पर है?”

-“ऐसा ही समझ लो।”

-“मतलब? उसने नौकरी छोड़ दी?”

सैनी ने अपने भारी कंधे उचकाए।

-“पता नहीं। मैं तुमसे पूछने वाला था।”

इन्सपैक्टर चौधरी की भवें सिकुड़ गईं।

-“मुझसे क्यों?”

-“क्योंकि तुम उसके रिश्तेदार हो । वह इस हफ्ते काम पर नहीं आई है और मैं कहीं भी उसे कांटेक्ट नहीं कर पाया।

-“अपने फ्लैट में नहीं है?”

-“नहीं।”

-“तुम वहाँ गए थे?”

-“नहीं।” लेकिन फोन करने पर वहाँ सिर्फ घंटी बजती रही है। सैनी इन्सपैक्टर की आँखों में झाँकता हुआ बोला- “तुम भी उससे नहीं मिले?”

-“इस हफ्ते नहीं।” इन्सपैक्टरर ने जवाब दिया फिर संक्षिप्त मोन के पश्चात बोला- “हम अब मीना से ज्यादा नहीं मिलते।”

-“अजीब बात है। मैं तो उसे तुम्हारे ही परिवार का हिस्सा समझता था।”
 
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