Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - Page 2 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट

“क्‍यों जुआघर आबाद हैं ? जुए का शौक क्‍यों रखते हैं लोग बाग ? क्योंकि हर किसी को ईजी मनी की तलब है ! कोई पैसा कमाने के लिये मशक्‍कत नहीं करना चाहता, जांमारी नहीं करना चाहता । सबको रोकडे़ का पहाड़ चढ़ने के लिये शार्टकट मांगता है जो रॉलेट व्‍हील से, तीन पत्‍ती से, ब्लैकजैक से, सट्टे से, मटके से हो कर गुजरता है । राहजनी में राहगीर लुटते हैं क्‍योंकी महफूज नहीं होते लेकिन जो रा‍हगीर खुद लुटने को तड़प रहे हो, उनकी कौन हिफाजत कर सकता है ! मैग्‍नारो क्‍या करता है ! ऐसे भीङूओं को चैनेलाइज करता है, उनको रास्‍ता दिखाता है, कोई तोप तो नहीं तानता उन पर, हूल तो नहीं देता कि ‘कम्‍बख्‍तमारो, चलना पडे़गा मेरे बताये रास्‍ते पर’ !”

“तुम फिर उसके पीआरओ की तरह बोल रही हो !”
“और तुम क्‍या बला हो ! जाने अनजाने तुम भी उसी करप्ट सिस्‍टम का हिस्‍सा नहीं बने हुए जो तुम्‍हारी निेगाह में नाजायज है ?”
“मैं कोंसिका क्लब का एक मामूली मुलाजिम हूं ।”
“दिल को बहलाने के लिये गोखले, खयाल अच्छा है ।”
“इधर फिट हो ? कोई शि‍कायत नहीं कोई प्राब्लम नहीं ?”
“अरे, रिजक की तालिब लड़की को हर जगह प्राब्लम है, हर जगह शिकायत है । लेकिन क्या करें ! प्राब्लम से छुप कर तो नहीं बैठा जाता न ! मेरे जैसी नो स्पोर्ट, नो असैट्स लड़की का हाथ पांव हिलाये बिना पेट तो नहीं भरता न !”

“रोकडे़ के लिहाज से इधर ठीक है या पीछे पोंडा में ठीक था ?”
“मोटे तौर पर एक ही जैसा है । जिसने मेरे को ये जगह रिकमैंड की थी-जो अब मैंने बोल ही दिया कि रोनी डिसूजा था-उसने प्रास्पेक्ट्स के जो सब्ज बाग दिखाये थे, वो इधर नहीं देखने को मिले । उस लोकल मवाली से पंगा न पड़ता तो मैं पोंडा में ही टिकना प्रेफर करती ।”
“इधर कब तक का प्रोजेक्‍ट है ?”
“एक साल तो जैसे तैसे काटना ही है मेरे को इधर । बाद में...देखेंगे !”
“पैसा उड़ता तो खूब है इधर !”
“लेकिन पकड़ में खूब नहीं आता । ऐसा ही निजाम है इधर का । तुम भी निजाम का हिस्‍सा हो, तुम्‍हें मालूम होना चाहिए ।”

“हो रहा है धीरे धीरे । वैसे बाकी लड़कियां तो खुश हैं !”
“क्‍योंकि हुनरमंद हैं ।”
“बोले तो ?
“यासमीन को भूल गए ! पिकपॉकेटिंग हुनर ही तो है !”
“ओह ! लेकिन सभी तो यासमीन जैसी दक्ष जेबकतरी नहीं !”
“हैं एक दो और भी । लेकिन अपने हुनर में यासमीन जैसी परफेक्‍ट कोई नहीं । पकड़े जाने पर बहुत इंसल्‍ट होती है । तब पुजारा भी साथ नहीं देता ।”
“यासमीन कभी नहीं पकड़ी गयी ?”
“न ! अभी तक तो नहीं !”
“मैंने सुना है कमाई में इजाफा करने का इधर एक और भी जरिया आम है !”

“मैं तुम्‍हारा इशारा समझ रही हूं ।”
“क्‍या समझ रही हो ?”
“हारीजंटल कमाओ, वर्टीकल खाओ ।”
“ओह, नो ।”
“चलता है । लेकिन ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ में, ‘कोंसिका क्‍लब’ में नहीं ।”
“बिल्‍कुल भी नहीं ?”
उसने जवाब न दिया ।
नीलेश ने भी जिद न की ।
“एक बात बोलूं ?” - एकाएक वो बोली ।
“बोलो ।”
“तुम सवाल बहुत पूछते हो । कुछ ज्‍यादा ही । बोले तो खोद खोद कर ।”
“माई डियर, आई एम क्‍यूरियस बाई हैबिट । आदत ही ऐसी बन गयी है ।”
“खामखाह !”
“खामखाह की समझो ।”
“कैसे समझूं ? मुझे तो तुम बाई हैबिट नहीं, बाई प्रोफेशन क्‍यूरियस लगते हो ।”

नीलेश के दिल ने डुबकी मारी ।
“अरे, खामखाह !” - वो खोखली हंसी हंसा ।
उसके चेहरे पर एक रहस्‍यमयी मुस्‍कराहट उभरी ।
“मेरी निगाह” - फिर वो अपलक उसे देखती बोली - “बहुत दूर तक मार करती है, वो बातें भी मार्क करती है जो मेरे जैसी किसी दूसरी के खयाल में भी नहीं आतीं ।”
“बोले तो ?”
“तुम्‍हारे पास एक फैंसी कैमरा है जो मूवी मोड पर भी चलता है और जिसको तुम बहुत कुछ रिकार्ड करने के लिये इस्‍तेमाल करते हो । जैसे ‘कोंसिका क्‍लब’ । ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ । शरेआम मटका कलैक्‍ट करता हवलदार जगन खत्री...”

नीलेश का दिल जोर से लरजा ।
“खूबसूरत आइलैंड है” - फिर जबरन मुस्‍कराता बोला - “ग्रैंड टूरिस्‍ट रिजार्ट है । यादगार के तौर पर फोटुयें खींचने में कोई हर्ज है ?”
“फोटो क्लिक करके खींची जाती है, मूवी बनाने के लिये कैमरे को पैन करना पड़ता है । क्‍या !”
नीलेश को तत्‍काल जवाब न सूझा ।
“मैंने बोला न, मेरी निगाह बहुत दूर तक मार करती है !”
“अरे, भई, यादगार के तौर पर किसी मनोरम स्‍थल की मूवी बनाने में भी क्‍या हर्ज है ?”
“चोरी छुपे बनाने में शायद कोई हर्ज हो !”
“चोरी छुपे ?”

“बराबर ।”
“तुम्‍हें मुगालता है मेरे बारे में । मैंने ब्‍यूटीफुल प्‍लेस की ब्‍यूटी रिकार्ड करने की कोशिश की, बस । ऐसा मैं तुम्‍हे चोरी छुपे करता लगा तो गलत लगा ।”
“चलो, ऐसे ही सही ।”
“अपनी दूर तक मार करने वाली निगाह का रोब सखियों पर भी तो नहीं डाला ?”
“मैं समझी नहीं ।”
“जो मेरे को बोला, वो किसी और को भी बोला ?”
“नहीं । नहीं ।”
“पक्‍की बात ?”
“नीलेश, यू आर ए नाइस गाय । यू आलवेज बिहेव डीसेंटली विद मी । यू नो आई एम ए बार फ्लाई, यू स्टिल ट्रीट मी लाइक एक लेडी । मुझे इस बात का बड़ा मान है इसलिये यकीन जानो ये कैमरे वाली बात सिर्फ मेरे और तुम्‍हारे बीच में है ।”

“थैंक्‍यू । आई एप्रिशियेट दैट ।”
“फिर तुम कहते हो कुछ बात ही नहीं है तो समझो बात खत्‍म है ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“एक बात फिर भी बोलने का ।”
नीलेश की भवें उठीं ।
“तुम्‍हारा अच्‍छा बर्ताव इस बात की साफ चुगली करता है कि तुम्‍हारे संस्‍कार अच्‍छे हैं, तुम किसी अच्‍छे घर के हो । क्‍लब में क्या भीतर के क्‍या बाहर के, बारबालाओं पर सब लार टपकाते हैं लेकिन अकेले तुम हो जो कभी किसी के साथ-खासतौर से मेरे साथ-बेअदबी से, गैरअखलाकी ढण्‍ग से पेश नहीं आये, कभी किसी की बगलों में हाथ डालने की कोशिश नहीं की, कभी किसी को कूल्‍हे पर चिकोटी नहीं काटी, कभी किसी को साथ भींचने की कोशिश नहीं की । ये वो काम हैं जो क्लब में बारबालाओं के साथ हर कोई करता है । इन और कई बातों के मद्‌देनजर मैं तुम्‍हारा तसव्‍वुर बार के गिलास चमकाते शख्‍स के तौर पर करने में दिक्‍कत महसूस करती हूं ।”

“भई, जो प्रत्‍यक्ष है...”
“वो निगाह का धोखा है । किसी खास मकसद की पर्दादारी है, पुजारा बहुत सयाना है, बहुत घिसा हुआ है, उड़ते पंछी के पर पहचानता है लेकिन जो उसकी निगाह में नहीं आती ।”
“तुम्‍हारी में आती है” - नीलेश ने बात को हंसी में उडाने की कोशिश की - “क्‍योंकि तुम्‍हारी निगाह बहुत दूर तक मार करती है ! हा हा ।”
वो खामोश रही ।
“माई डियर, तुम्‍हारी सारी बातें ठीक हैं लेकिन उनकी तुम्‍हारी जो तर्जुमानी है, वो ठीक नहीं है । मैं कैमरे से तसवीरें खींचता हूं-चलो, मूवी बनाता हूं-लेकिन उसमें मेरा कोई खास, खुफिया, काबिलेऐतराज मकसद नहीं है । और जहां तक क्‍लब की नौकरी का सवाल है तो बुरा वक्‍त किसी का भी आ सकता है । राजा रामचंद्र को वन भटकना पड़ा था, राजा हरीश्‍चंद्र को मरघट का रखवाला बनना पड़ा था, पांण्‍डवों को अज्ञातवास में विप्र बनकर मुंह छुपाये फिरना पड़ा था, रिजक की तलाश गांधी जी को साउथ अफ्रीका लेकर गयी थी । विषम परिस्थितियों में कोई कर्म से मुंह तो नहीं मोड़ लेता ! और फिर कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता, सिर्फ करने वाले की सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है...”
 
“आई अंडरस्‍टैण्‍ड । प्‍लीज डोंट पुश इट ।”
“बाकी रही कैमरे की बात तो इस वक्‍त तो वो मेरे पास नहीं है लेकिन पहली फुर्सत में मैं वो तुम्‍हारे सुपुर्द कर दूंगा । तब खुद तसल्‍ली कर लेना कि क्‍या स्टिल, क्‍या मूवी, उसमें काबिलेऐतराज, काबिलेशुबह कुछ नहीं है ।”
“जरुरत नहीं । मुझे तुम्‍हारे पर विश्‍वास है...”
“थैंक्‍यू ।”
“…लेकिन अपने पर भी विश्‍वास है ।
“फिर वापिस वहीं पहुंच गयीं !”
“छोड़ो वो किस्‍सा ।” - वो उठ खड़ी हुई - “मैं डुबकी लगाने जा रही हूं । तुम्‍हारा क्‍या इरादा है ?”
“इरादा तो नेक है लेकिन मेरी इस एडवेंचर के लिये कोई तैयारी नहीं है । मैं इस इरादे से बीच पर नहीं आया था । मैं तो यूं ही टहलता हुआ इधर निकल पड़ा था...”

“आई अंडरस्‍टैण्‍ड । तो फिर...”
“यस । यू प्‍लीज गो अहेड ।”
वो समुद्र की ओर बढ़ गयी ।
नीलेश ने उससे विपरीत दिशा में उधर कदम उठाया जिधर बीच का बार-कम-रेस्‍टोरेंट सी-गल था ।
‘सी-गल’ ग्‍लास हाउस की तरह बना हुआ था इसलिये वहां कहीं भी बैठने से बाहर का दिलकश नजारा होता था ।
वो बीच की दिशा की एक टेबल की तरफ बढ़ा और दो कदम उठाते ही थमक पर खड़ा हुआ ।
कोने की एक टेबल पर श्‍यामला मोकाशी अकेली बैठी काफी चुसक रही थी ।
वो उसके करीब पहुंचा ।
“हल्‍लो !” - वो मधुर स्‍वर में बोला - “गुड मार्निंग !”

श्‍यामला ने सिर उठाया, उसे देख तत्‍काल उसके चेहरे पर शिनाख्‍त की मुस्‍कराहट आयी ।
“हल्‍लो युअरसैल्‍फ !” - वो बोली - “यहां कैसे ?”
“यही सवाल मैं तुमसे पूछूं तो ?”
“जरुर । जरुर । लेकिन पहले बैठ जाओ ।”
“थैंक्‍यू ।” - वो उसके सामने एक कुर्सी पर बैठा - “कल घर ठीक से पहुंच गयी थीं ?”
“हां ।” - वो लापरवाही से बोली - “क्‍या पियोगे ?”
वही जो तुम पी रही हो ?”
श्‍यामला ने उसके लिये काफी मंगवाई ।
नीलेश ने काफी चुसकी ।
“नाइस ।” - वो बोला ।
श्‍यामला ने सहमति में सिर हिलाया ।

“सो, हाउ इज ऐव‍रीथिंग ?”
“फाइन । आल वैल ।”
नीलेश को उम्‍मीद थी कि वो पिछली रात की बाबत कुछ उचरेगी लेकिन ऐसा न हुआ । शायद उस जिक्र से वो बचना चाहती थी ।
“इधर कैसे ?” - उसने पूछा ।
“यूं ही । कोई खास वजह नहीं । समझो, बीच की रौनक देखने निकल आयी ।”
“देखने ! रौनक मैं शामिल होने नहीं ?”
“क्‍या मतलब ?”
“स्विमिंग ।”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“क्‍यों ? पसंद नहीं ?”
“पसंद है - ये जगह ही ऐसी है कि स्विमिंग नापसंद होने का सवाल ही नहीं पैदा होता - आज मूड नहीं ।”

“आई सी ।”
“तुम इधर कैसे ?”
“तुम्‍हारे वाली ही वजह है ।”
“हूं । और सुनाओ ।”
“क्‍या ?”
“अरे, अपने बारे में बताओ कुछ ?”
“क्‍या बताऊं ? कुछ है ही नहीं बताने लायक । तनहा आदमी हूं । तकदीर ने इधर धकेल दिया ।”
“पहले क्‍या करते थे ?”
“वही करता था जो इधर करता हूं ।”
“कहां ?”
“मुम्‍बई में । बांद्रा के एक बार में । नाम पिकाडली ।”
“आई सी ।”
“मैं कल का कोई जिक्र नहीं छेड़ना चाहता, फिर भी एक सवाल है मेरे जेहन में ।”
“क्‍या ?”
“तुम्‍हारा पिता आइलैंड का मालिक है, कैसे इंस्‍पेक्‍टर महाबोले की वो सब करने की मजाल हुई जो रात उसने किया ?”

“सुनो । पहले तो ये ही बात गलत है कि मेरा पिता आइलैंड का मालिक है । पता नहीं क्‍यों लोगों ने ये बेपर की उड़ाई हुई है । पापा बिजनेसमैन हैं, यहां छोटा मोटा बिजनेस करते हैं । पब्लिक स्पिरिटिड हैं, इसलिये साथ में सोशल सर्विस करते हैं ।”
“म्‍यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट की हैसियत में ?”
“श्‍योर ! वाई नाट !”
“और ?”
“दूसरे, रात महाबोले ने जो किया, उसमें मजाल वाली कोई बात नहीं थी अपनी एसएचओ की हैसियत में वो आईलैंड के कायदे कानून को रखवाला है और मेरे पापा का दोस्‍त है । रात उसने जो किया, मेरे वैलफेयर के मद्‌देनजर किया ।”

“पर्दादारी है । उसकी लाज रख रही हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“गाल क्‍यों सेंक दिया ?”
“क्‍या !”
“ऐसा हवलदार के सामने किया या तब वो उस कमरे में नहीं था ?”
“अरे, क्‍या कह रहे हो ?”
“तुम्‍हें मालूम है क्‍या कह रहा हूं । जवाब नहीं देना चाहती हो तो...ठीक है ।”
“जो तुम सोच रहे हो, वो गलत है, निगाह का धोखा है, ऐसा कुछ नहीं हुआ था ।”
“तुम कहती हो तो ...”
“मैं कहती हूं ।”
“अगर वहां सब कुछ नार्मल था तो घर ले चलने को मेरे को क्‍यों बोला ?”

“क्‍योंकि महाबोले को स्‍टेशन हाउस में काम था । वो अभी टाइम लगाता ।”
“मुझे घर ले जाने भी तो नहीं दिया !”
“घर का रास्‍ता तो पकड़ाने दिया ! बाकी समझो कि जहमत से बचाया ।”
“तुम्‍हारे पास हर बात का जवाब है ।”
“छोड़ो वो किस्‍सा । और कोई बात करो ।”
“और क्‍या बात ?”
“कल की सोशल सर्विस की कोई शाबाशी चाहते हो तो बोलो ।”
“दोगी ?”
“क्‍यों नहीं ? तभी तो पूछा !”
“शाम को क्‍या कर रही हो ?”
“क्‍यों पूछ रहे हो ?”
“आज मेरी शार्ट शिफ्ट है । कोई मेजर इमरजेंसी न आन खड़ी हुई तो नौ बजे छुट्‌टी हो जायेगी । एक शाम खाकसार के नाम कर सको तो समझना शाबाशी से बडे़ हासिल से नवाजा ।”
 
वो हंसी ।
“फंदेबाज हो ।” - फिर बोली - “एक नम्‍बर के ।”
“तो फिर क्‍या जवाब है ?”
“ओके ।”
“कहां मिलेगी ?”
“घर पर आना । फाइव, नेलसन एवेन्‍यू । मालूम, किधर है ?”
“मालूम । तुम्‍हारे पापा ऐतराज नहीं करेंगे ?”
“देखना ।”
“देखना बोला ?”
“हां, भई । मिलवाऊंगी न उनसे, फिर देखना ऐतराज करते हैं या नहीं !”
“ओह !”
“माई फादर इज ए ग्रैंड गाय ।”
हर बेटी समझती है कि उसका बाप महान है, उस जैसा कोई नहीं ।
“मेरे से बहुत प्‍यार करते हैं - मां नहीं है इसलिये मां की कमी भी उन्‍होंने ही पूरी करनी होती है-मेरी आजादी में, मेरे लाइफ स्‍टाइल में कभी दखलअंदाज नहीं होते । एक ही हिदायत देते हैं । बी रिस्‍पांसिबल । एण्‍ड आई डू ऐग्‍जैक्‍टली दैट ।”

“ठीक है । आता हूं ।”
“वैलकम ।”
तभी नीलेश को ‘सी-गल’ में रोमिला कदम रखती दिखाई दी ।
उस घड़ी वो जींस और स्‍कीवी पहने थी और एक बड़ा सा बीच बैग सम्‍भाले थी । अपने बाल उसने पोनीटेल की सूरत में सिर के पीछे बांध लिये हुए थे ।
उसकी नीलेश से आंख मिली तो वो दृढ़ कदमों से उधर बढ़ी ।
“हल्‍लो, रोमिला !” - नीलेश जबरन मुस्‍कराता और लहजे में मिठास घोलता बोला - “श्‍यामला से मिलो ।”
“दोनों में औपचारिक ‘हाय’ आदान प्रदान हुआ ।
“श्‍यामला मोकाशी ।” - नीलेश आगे बढ़ा - “म्‍यूनीसिपैलिटी के...”

“मालूम ।”
“गुड । श्‍यामला, रोमिला कोंसिका क्‍लब में मेरी फैलो वर्कर है । कलीग है ।”
“फेस इज फैमिलियर ।” - श्‍यामला शुष्‍क स्‍वर में बोली और एकाएक उठ खड़ी हुई, जल्‍दी से उसने काफी के मग के नीचे एक सौ का नोट दबाया और नीलेश की तरफ घूमकर बोली - “आई एम सारी अबाउट दि ईवनिंग...”
“बोले तो ?” - नीलेश सकपकाया ।
“मुझे अभी याद आया कि शाम की मेरी कहीं और प्रीशिड्‌यूल्‍ड अप्‍वायंटमेंट है । बातों में बिल्‍कुल भूल गयी थी लेकिन अच्‍छा हुआ वक्‍त पर याद आ गयी । सो, बैटर लक नैक्‍स्‍ट टाइम । नो ?”

“यस ।”
लम्‍बे डग भरती वो वहां से रुखसत हो गयी ।
“चलता हूं थोड़ी देर हर इक राहरौ के साथ” - श्‍यामला भावहीन स्‍वर में बोली - “पहचानता नहीं हूं अपनी राहबर को मैं ।”
“मेरे से कह रही हो ?”
“नहीं बेध्‍यानी में बड़बड़ा रही थी ।”
“बैठो ।”
“क्‍योंकि सीट खाली हो गयी है ।”
“जली कटी भी सुनानी हैं तो बैठ के ये काम बेहतर तरीके से कर सकोगी ।”
वो धम्‍म से उसके सामने बैठी ।
“काफी ?” - नीलेश बोला ।
“उसी के लिये आयी थी, अब मूड नहीं है ।”
“क्‍यों ? क्‍या हुआ मूड को ?”

“हुआ कुछ । अपनी बोलो !”
“क्‍या ?”
“चिड़िया को चुग्‍गा डाल रहे थे ?”
“चिड़िया ?”
“जो उड़ गयी फुर्र करके । जो मेरे से भाव खा गयी । पहचान गयी मैं कोंसिका क्‍लब की बारबाला थी । बेचारी को बिलो स्टेटस ‘हल्‍लो’ बोलना पड़ गया । अप्‍वायंटमेंट ब्रेक कर दी । बारबाला को फ्रेंड बताने वाले के साथ काहे को अप्‍वायंटमेंट...”
“कलीग ! फैलो वर्कर !”
“तुम्‍हारे कहने से क्‍या होता है ? खुद वो क्‍या अंधी है ? रोटी को चोची कहती है ?”
“हम फ्रेंड कब हुए ?”
“नहीं हुए । लेकिन जैसी बेबाकी से तुमने उससे मेरा तआरुफ कराया, उससे उसने तो यही समझा !”

“औरतों की अक्‍ल !”
“सारी, नीलेश । मेरी वजह से तुम्‍हारा नुकसान हो गया । नोट गिनना शुरु करने से पहले ही गड्‌डी हाथ से निकल गयी ।”
“वाट द हैल !”
“यू टैल मी वाट द हैल ?”
“अरे, जो मेरे फ्रेंड को फ्रेंड न समझे, उसकी फ्रेंडशिप नहीं मांगता मेरे को ।”
“बढ़ि‍या ! मेल ट्रेन निकल गयी तो अब पैसेंजर ट्रेन को भाव दे रहे हो ।”
“तू पैसेंजर ट्रेन है ?”
“हूं तो नहीं ! लेकिन अभी के वाकये ने अहसास ऐसा ही दिलाया ।”
“अब छोड़ वो किस्‍सा ।”
“सब साले रंगे सियार हैं । मेरा इन एण्‍ड आउट एक तो है ! इन लोगों का एक तो हो ही नहीं सकता । साले भीतर से कुछ, बाहर से कुछ !”

“किन की बात कर रही है ?”
“जो आइलैंड पर कब्‍जा किये बैठे हैं । बारबाला को प्रास्टीच्‍यूट समझते हैं तो क्‍यों है बार वालों को बारबाला ऐंगेज करने की इजाजत ? काबिल एडमिनिस्‍ट्रेटर बने इस उंची नाक का बाप ! अंकुश लगाये इस लानत पर ! कैसे करेगा ? कैसे होगा ? उसको भी कभी तनहाई सताती है या रंगीनी लुभाती है तो किधर छोकरी वास्‍ते बोलता है ? कोंसिका क्‍लब ! इम्‍पीरियल रिट्रीट ! मनोरंजन पार्क !”
“वहां भी ?”
“बरोबर ! उधर भी ड्रग्‍स का कारोबर चलता है । चकला चलता है । सब त्रिमूर्ति के कंट्रोल में है ।”

“त्रिमूर्ति !”
“अभी जो भुनभुनाती यहां से गयी, उसका बाप-बाबूराव मोकाशी । इम्‍पीरियल रिट्रीट का बिग बॉस फ्रांसिस मैग्‍नारो । लोकल थाने का महाकरप्‍ट थानेदार अनिल महाबोले ।”
“ओह !”
“क्‍या ओह ! तुम्‍हें सब मालूम है । कौन सा गैरकानूनी काम है जो इन लोगों की प्रोटेक्‍शन में आइलैंड पर नहीं होता ? गेम्‍बलिंग, प्रास्‍टीच्‍यूशन, एक्‍साइज अनपेड लिकर, ड्रग्‍स । हर चीज बेट है जो टूरिस्‍ट्स को फंसाती है, उनकी जेबें हल्‍की-बल्कि खाली-कराती है और त्रिमूर्ति चांदी काटती है । मैग्‍नारो की छोड़ो, वो मवाली है, रैकेटियर है, महाबोले या मोकाशी में से एक भी कमर कस ले तो कैसे ये अराजकता चलती रह सकती है ? लेकिन कौन कस ले ? क्‍यों कस ले ? सब एक ही थैली के चट्‌टे बट्‌टे तो हैं !”
 
“ठीक !” - नीलेश एक क्षण ठिठका, फिर बोला - “मुझे एसएचओ अनिल महाबोले के बारे में कुछ और बताओ !”
“क्‍यों ? किताब लिखनी है ? उसकी बायोग्राफी तैयार करनी है ?”
“शायद ।”
“बोला शायद !”
नीलेश हंसा ।
“तुम मुंह पर पट्‌टी बांध के रखो, नीलेश गोखले, मैं भी जान के रहूंगी तुम यहां किस फिराक में हो !”
“उसी फिराक में हूं जिस में तुम हो ।”
“बोले तो ?”
“रिजक की फिराक में हूं । रोजगार की फिराक में हूं ।”
“बंडल !”
“तो और क्‍या मुझे बार के गिलास चमकाने का शौक है ?”

“कोई मिशन सामने हो तो उसकी खातिर इससे भी ज्‍यादा हेठे काम करने पड़ते हैं ।”
“मिशन कैसा ?”
“तुम बोलो ।”
“कोई नहीं ।”
“तो खास महाबोले की बाबत सवाल क्‍यों ?”
“कोई खास वजह नहीं । तुम न दो जवाब ।”
“सलाह का शुक्रिया । कबूल की मैंने ।”
एक झटके से वो कुर्सी पर से उठी और बिना नीलेश पर निगाह डाले लम्‍बे डग भरती वहां से रुखसत हो गयी ।
 
Chapter 2

नीलेश ने कोंसिका क्‍लब में कदम रखा ।
जहां कि शांति थी । काम का कोई रश नहीं था ।
वो बार के पीछे पहुंचा, उसने वहां मौजूद पुजारा का अभिवादन किया ।
“कैसा है ?” - पुजारा सहज भाव से बोला ।
“ठीक ।”
“रात को ज्‍यास्‍ती लेट हो गया !”
“वांदा नहीं ।”
“इधर सर्विस का कोई प्रेशर नहीं है । चाहे तो आफिस में चला जा और जा के रैस्‍ट कर ले । झपकी-वपकी मार ले ।”
“जरूरत नहीं ।”
“फिर भी...”
“ठीक है इधर ।”
“यानी मजबूत आदमी है ! हैल्‍थ चौकस है !”
“है तो ऐसीच ।”

“बढ़ि‍या । आगे भी चौकस रहे, इसके लिये कोई एहतियात बरतता है ?”
“बोले तो ?”
“अच्‍छी तंदरुस्‍ती बरकरार रखने के लिये टांग का खास खयाल रखना पड़ता है ।”
“अभी भी बोले तो ?”
“किसी के फटे में नहीं अड़नी चाहिये ।”
“अरे बॉस, क्‍या पहेलियां बुझा रहे हो ?”
“रोमिला बहुत डीसेंट लड़की है, उससे डीसेंटली पेश आने का । जंटलमैन का माफिक पेश आने का । क्‍या !”
“ओह ! तो टांग वाली मिसाल उसकी बाबत थी !”
“वो अपने काम से काम रखती है, मैं अपने काम से काम रखता हूं । इधर हर कोई अपने काम से काम रखता है । तेरे को ये बात फालो करने में कोई प्राब्‍लम ?”

“नहीं । काहे को होगी !”
“बढ़िया ।”
“रोमिला ने कोई शिकायत की है मेरी ?”
“नहीं, भई । मैंने एक जनरल बात की है । तुझे एक आम राय दी है जो तेरे काम आने वाली है । वैसे रोमिला की बात की है तो सुन । वो जिस धंधे मे है, उसमें उससे कोई दायें बायें के सवाल पूछना उसको परेशान करना है । वो बारबाला है, सबको एंटरटेन करना, सबसे हंस के बात करना उसका काम है, उसकी ड्‌यूटी है । तेरे को पसंद आ गयी है तो बोल उसको ऐसा । वो ते‍री, तेरी पसंद की, पूरी पूरी कद्र करेगी ।”

“मैंने कब कहा कि…”
“नहीं कहा तो अब तो कह के देख । मेरे को पक्‍की करके मालूम वो किसी से फिट नहीं है । तू बढ़िया भीङू है, उसे क्‍या ऐतराज होगा तेरे से फिट होने में !”
“लेकिन…”
“ऐसा हो तो जो बातें करनी हैं, खुशी से कर, जितनी मर्जी कर । उसमें ऐसा कोई इंटरेस्‍ट तेरा नहीं है तो उसे हलकान नहीं करने का आजू बाजू के गैरजरूरी सवाल पूछ पूछ कर, उसके फटे में टांग नहीं अड़ाने का, वर्ना…”
“वर्ना क्‍या ?”
“अंजाम बुरा होगा ।”
“किसका ?”
“सोच !”
तत्‍काल उसने नीलेश की तरफ से पीठ फेर ली और उससे परे हट गया । नीलेश के दिल की धड़कन बढ़ा कर । उसको एक नयी फिक्र लगा कर ।

***
इंस्‍पेक्‍टर महाबाले ने थाने में कदम रखा ।
हवलदार जगन खत्री उसे रिपोर्टिंग रूम में टेबल के पीछे बैठा मिला ।
महाबोले को देखते ही वो उछल कर खड़ा हुआ और उसने महाबोले को ठोक के सैल्यूट मारा ।
“क्‍या खबर है ?” - महाबोले बोला ।
“सब शांति है, सर जी । राक्‍सी सिनेमा वाली सड़क पर एक एक्‍सीडेंट की खबर थी । महाले जा के हैंडल किया ।”
“कैसा था एक्‍सीडेंट ?”
“मामूली निकला, सर जी । एक टैम्‍पो एक कार से टकरा गया था । किसी को कोई चोट नहीं आयी थी, खाली कार का अगला बम्‍फर उखड़ गया था । अपना महाले जा कर सब सैटल किया ।”

“और ?”
“और आइलैंड की पुलिस की दिलचस्‍पी के काबिल तो कोई खबर नहीं, सर जी, एक और टाइप की खबर है जिसमें शायद आप‍की कोई दिलचस्‍पी हो !”
“बोले तो ?”
“आपको वो भीङू याद है जो कल लेट नाइट में इधर आया और इधर से श्यामला को साथ ले के गया ?”
महाबोले तत्‍काल चौकन्‍ना हुआ ।
“हां ।” - वो बोला - “उसकी क्‍या बात है ?”
“मार्निग में बीच पर फिरता था । पहले रोमिला के साथ बतियाता था, फिर रेस्‍टोरेंट में श्‍यामला के साथ, फिर उधरीच दोनों के साथ ।”
“अच्‍छा !”
“बोले तो कुछ ज्‍यादा ही फास्‍ट वर्कर है भीङू ।”

“मैंने बोला था उस भीङू को चैक करने का था !”
“किया न, सर जी !”
“क्‍या जाना ?”
“मुम्‍बई से है । उधर भी यहीच जॉब क‍रता था जो इधर कोंसिका क्‍लब में करता है । बांद्रा में । ठीये का नाम पिकाडिली । उधर का फैंसी बार । ये भीङू उधर बाउंसर । ‘पिकाडिली’ के मैनेजर की सिफारिशी चिटठी लेकर इधर आया । अपने पुजारा को ऐसे एक भीङू की अर्जेंट करके जरूरत थी, उसने फौरन रख लिया ।”
“इधर ही क्‍यों आया ?”
“सर जी, जब जॉब में चेंज मांगता था तो किधर तो जाना था !”

“मुम्‍बई से पिच्‍चासी किलोमीटर दूर किस वास्‍ते ?”
“होगी कोई प्राब्‍लम उसे मुम्‍बई से ! किसी छोटी जगह पर सैटल होना
मांगता होगा !”
“छोटी जगहों का मुम्‍बई के करीब तोड़ा है ! इधर ही क्‍यों ?”
“अभी मैं क्‍या बोलेगा, बॉस !”
“मुझे वो भीङू पसंद नहीं । पता नहीं क्‍यों खटकता है मेरे को । कल उसकी इधर आमद की वजह से नहीं । वैसे ही खटकता है । मेरे इनसाइड में घंटी बजती है उस भीङू में कोई लोचा ।”
“क्‍या ?”
“आयेगा पकड़ में ।”
“सर जी, लोचा तो पुजारा को आर्डर दो निकाल बा‍हर करे । बल्कि आइलैंड पर आर्डर करो कि कोई भी दूसरा बार उसे ऐंगेज करने की कोशिश न करे । साला अपने आप ही इधर से नक्‍की करेगा ।”
 
“कोई गारंटी नहीं । इधर कोइ दूसरी जॉब न मिलने के बावजूद वो इधर टिका रह सकता है । इधर रिहायश के लिये किधर का भाड़ा भरा । माहीना भाड़ा भरा । क्‍या पता भाड़ा बरोबर करने के लिये ही इधर से न टले !”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“तो फिर ?”
“कुछ और करना होगा ।”
“क्‍या ?”
“सुन । उसको हड़काने का । ताकत बताने का । आज रात को रोनी डिसूजा को लेकर उधर जा । उधर तेरे को खाली वाच करने का-ताकि ये न लगे पुलिस ने हड़काया-जो करेगा रोनी डिसूजा करेगा । वो इन कामों में एक्‍सपर्ट है । उसका पढ़ाया लैसन जल्‍दी भीङू की समझ में आयेगा ।”

“ठोक देगा ?”
“देखना ! नीलेश को लालेश कर देगा, कालेश कर देगा ।”
“ओह !”
“डिसूजा को बोल के रखने का कोई हड्डी न टूटे, कोई खून बहने वाली चोट न लगे, इतना दम खम उसमें बराबर छोड़ दे कि वो खुद अपने पांव पांव चल कर आइलैंड से नक्‍की हो सके । क्‍या !”
“मै सब समझ गया, सर जी । पण बोले तो…”
“क्‍या क‍हना चाहता है ?”
“ये काम मैं भी तो कर सकता हूं ? ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ से भीङू बुलाने की क्‍या जरूरत है ?”
“है जरूरत । तू साला ठोकेगा तो पुलिस वालों की माफिक ठोकेगा । उसको स्‍ट्रेचर केस बना देगा । हास्‍पीटल केस बना देगा । मेरे को नहीं मांगता । मेरे को उस भीङू का जैसा हैंडलिंग मांगता है उसका तजुर्बा खाली डिसूजा को है । वही उस भीङू को पर्फेक्‍ट करके हैंडल करेगा । एण्‍ड दैट्स फाइनल ।”

“यस, बॉस ।”
“क्‍या टेम है उसके घर पहुंचने का ?”
“लेट ही पहुंचता है । एक तो आम बज जाता होगा ! पण मेरे को मालूम आज के दिन उसकी शार्ट डयूटी होती है । नौ बजे उधर से नक्‍की कर जाता है ।”
“उसका किराये का कॉटेज मालूम किधर है ? कौन सा है ?”
“मालूम ।”
“बढ़िया । उससे पहले उधर पहुंचने का और भीतर घुस के उसके समान को भी टटोलने का । क्‍या !”
“मै समझ गया, सर जी ।”
“कोई बात पूछनी हो तो बोल !”
“नहीं, सर जी ।”
“मै जाता हूं ।”

“इधर नही ठ‍हरने का अभी ?”
“नहीं ।”
“जरूरत पड़े तो किधर कांटैक्‍ट करें ?”
“मालूम है तेरे को । लेकिन खामखाह कांटैक्ट नहीं करना । कोई बड़ी इमरजेंसी आन खड़ी हो, तो ही कांटैक्ट करना । क्या !”
“बरोबर, सर जी ।”
***
साढ़े सात बाजे के करीब इंस्‍पेक्‍टर महाबोले उस होस्‍टलनुमा इमारत पर पहुंचा तो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस के नाम से जानी जाती थी और जिसके दूसरी मंजिल के एक कमरे में रोमिला सावंत की रिहायश थी ।
बाजू के रास्‍ते वो दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
अभी शाम ढ़ली ही थी इसलिये वो जानता था सामने के रास्‍ते पर बहुत आवाजाही स्‍वाभाविक थी ।

वो रोमिला के कमरे के बंद दरवाजे पर पहुंचा । उसने हैंडल ट्राई किया तो पाया कि वो मजबूती से बंद था ।
साली !
अपने गुस्‍से की तर्जुमानी करती मजबूत दस्तक उसने दरवाजे पर दी ।
भीतर से कोई आावाज न अयी, फिर ऐसा लगा जैसे भीतर कोई खुसर पुसर हुई हो, फिर खामोशी छा गयी ।
कुतरी भीतर कोई यार घुसाये बैठी थी ।
उसने फिर, पहले से ज्‍यादा गुस्‍से से, ज्‍यादा जोर से, दरवाजा खटखटाया । दरवाजा खुला, चौखट पर रोमिला प्रकट हुई ।
“ठहर के आना ।” - वो दबे कंठ से बोली - “प्‍लीज ! दस मिनट में ।”

“बाजू हट !” - दांत पीसता वो बोला ।
साथ ही उसने दरवाजे को जोर का धक्‍का दिया तो दरवाजे ने ही रोमिला को परे धकिया दिया ।
“बॉस, प्‍लीज ! प्‍लीज…”
उसकी फरियाद को पूरी तरह से नजरअंदाज करते महाबोले ने भीतर कदम डाला ।
बैड के बाजू में एक ड्रेसिंग टेबल थी जिसके सामने एक सूटधारी अधेड़ व्‍यक्ति खड़ा था जो शीशे में झांकता बड़ी हड़बड़ी में अपने बालों में कंघी फिरा रहा था ।
महाबोले उस शख्‍स से वाकिफ नहीं था लेकिन उसे उसकी सूरत पह‍चानी जान पड़ रही थी । उसने दिमाग पर जोर दिया तो वजह उसे सूझ गयी । दिन में जब वो जीप पर सवार मनोरंजन पार्क वाली सड़क से गुजर रहा था तो उसने पुल पर रोमिला को उस श्‍ख्‍स के साथ हंस हंस कर बतियाते देखा था ।

उसने घूम कर रोमिला की तरफ देखा ।
वो दरवाजा बंद कर चुकी थी और अब भयभीत सी उसके साथ पीठ लगाये खड़ी थी ।
महाबोले की निगाह उसके चे‍हरे पर से फिसली तो उसकी पोशाक पर फिरी ।
वो एक झीनी नाइटी पहने थी जो वो जरा हिलती थी तो इधर उधर हो जाती थी और उसका पुष्‍ट, सैक्‍सी जिस्‍म नुमायां होने लगा था ।
“इधर आ !” - वो फुम्फकारा ।
बड़ी मुश्किल से दरवाजा छोड़कर उसने दो कदम आगे बढ़ाये !
“कौन है ये ?”
“य-य-ये…ये…”
“यहां क्‍या कर रहा है ?”
“सदा” - वो अधेड़ व्‍यक्ति से सम्‍बोधित हुई - “तुम चलो ।”

उस व्‍यक्‍ति ने व्‍याकुल भाव से महाबोले की तरफ देखा ।
“मै सम्‍भालती हूं इधर ।”
वो व्‍यक्ति डरता झिझकता परे परे से दरवाजे की ओर बढ़ा ।
“नाम बोल !”
“स-सदा…सदानंद रावले ।”
“मेरे को जानता है ?”
उसका सिर जल्‍दी से सहमति में हिला ।
“वर्दी में नही हूं फिर भी पहचानता है ?”
उसका सिर पहले से ज्‍यादा तेजी से सहमति में हिला ।
“बाप” - साथ ही बोला - “मैं कुछ नहीं किया । मैं कोई पंगा नहीं मांगता ।”
“शादीशुदा है ?”
“हां, बाप । इसी वास्‍ते कोई पंगा नही मांगता ।”
“बॉस” - गिड़गिड़ाती सी रोमिला बोली - “इसको जाने दो न !”

“साला जोरूवाला है” - “महाबोले तिरस्‍कारपूर्ण स्‍वर में बला - “फिर भी इधर उधर मुंह मारता है । प्रास्‍टीच्यूशन को प्रोमोट करता है । अंदर करता हूं ।”
“बाप” - रावले गिड़गिड़ाया - “मेरे दो छोटे छोटे बच्‍चे हैं ।”
“लो ! बच्‍चे भी हैं ! नीडी हो तो कोई बात भी है, ये तो साला ग्रीडी है ! साला फुल नपेगा ।”
“इसको जाने दो ।” - इस बार रोमिला, गिड़गिड़ाने की जगह दृढ़ता से बोली ।”
महाबोले हड़बड़ाया
“तेरे कहने पर ?” - फिर उसे घूरता हआ बोला ।
“हां ।” - रोमीला ने दृढ़ता से उससे आंख मिलाई - “मेरे कहने पर ।”

“क्‍यों ? होशियारी आ रही है ?”
“हां । यही बात है ।”
महाबोले फिर हड़बड़ाया ।
रोमिला ने रावले को इशारा किया ।
मन मन के कदम उठाता, किसी भी क्षण वापीस घसीट लिये जाने कि उम्‍मीद करता, वो दरवाजे पर पहुंचा, उसने दरवाजा खोला और फिर बगूले की तरह वहां से बा‍हर निकल गया ।
उसके पीछे दरवाजा खुद ही झूल कर बंद हो गया ।
कुछ क्षण उसके धड़ धड़ सीढ़ियों पर पड़ते कदमों की आवाज वहां पहुंचती रही, फिर खामोशी छा गयी ।
पीछे कमरे में भी कुछ क्षण खामोशी छाई रही, जिसे आखिर महाबोले ने ही तोड़ा ।
 
“साली ! तेरी ये मजाल !”
“मेरी कोई मजाल न है” - रोमिला शांति से बोली - “न हो सकती है ।”
“तो फिर उस भीङू को…”
“तुम्‍हारा यहां क्‍या काम है ?”
“क्‍या बोला ?”
“जाओ, पीछे जा के पकड़ लो उसे । फिर जो इलजाम उस पर लगाओ, वो खुद पर भी लगाना ।”
“क्‍या !”
“वर्दी में नहीं हो । चोरों की तरह यहां पहुंचे हो । मेरे किरदार से बाखूबी वाफिक हो । अपने बारे में क्‍या जवाब दोगे ?”
महाबोले मुंह बाये उसे देखने लगा ।
“बोलोगे पहला नम्‍बर तुम्‍हारा था, वो लाइन तोड़कर आगे आ गया, इसलिये भड़के !”

“साली बहुत श्‍यानी हो गयी है ।”
“मैं किधर की श्‍यानी !” - रोमिला ने आह सी भरी - “मजबूर की श्‍यानपंती कहीं किसी काम आती है !”
“फिर भी की !”
“नहीं की ।”
“बराबर की । तेरे को मालूम मैं आने वाला था । ये भी मालूम जब मेरे आने की खबर हो तो दरवाजा लॉक नहीं करने का । फिर भी साला लॉक करके रखा । साथ में मेरे को हूल देने के वास्‍ते एक भीङू घुसा के रखा ।”
“बिल्‍कुल नहीं ।”
“तो क्या उस भीङू पर रौब गांठना मांगती थी कि आइलैंड का दारोगा तेरा…फ्रेंड था ?”

“कौन नहीं जानता कैसा दारोगा हो तुम ! तुम्‍हारे से दोस्‍ती रौब गांठने के काम की नहीं, छुपा के रखने के काम की है ।”
“कुतरी ! ये कैसी जुबान बोल रही है तू आज मेरे से ?”
“पुलिस वाले कालगर्ल्‍स से हफ्ता वसूल करते हैं । सब जगह हफ्ता वसूल करते हैं । लेकिन तुम्‍हें हफ्ता नहीं मांगता । फ्री राइड मांगता है । इसलिये जब जी चाहे चले आते हो ।”
“साली धीरे बोल !”
“क्या होगा धीरे बोलने से ! लैंडलेडी को पहले से मालूम है सब । लाख छुप के आओ, उसको तुम्‍हारी हर आमद की खबर । तुम्‍हारे नक्‍की करते ही इधर पहुंचती है और पूछती है - ‘थानेदार गया ?’ यकीन न आये तो जा के आओ । लौटोगे तो वो इधर ही मिलेगी ।”

“सच कह रही है ?”
“आजमा के देखो । जैसा मैं बोली, वैसा करके देखो ।”
“तो तू मेरे को पहले क्यों नहीं बोली ?”
“क्‍योंकि हर बार कहते हो, ‘बस ये आखरी बार’ । ‘बस ये आखिरी बार’ ।”
“हू !”
“कचरा कर दिया मेरा तुम्‍हारे आने ने ।”
“क्‍या बोला ?”
“जैसा तूम समझते हो कि मैंने उसको-सदानंद रावले को-इधर सैट करके रखा, वैसे वो भी तो समझ सकता है कि मैंने तुमको इधर सैट करके रखा ।”
“क्‍या मतलब ?”
“समझो ।”
“तू समझा ।”
“कोई मेरे साथ हो, उपर से थाने का थानेदार आ जाये, उसे हूल देने लगे, मुझे हूल देने लगे तो क्‍या कोई मेरे साथ को सेफ समझेगा ? ओवरनाइट में सारे आइलैंड की अडल्‍ट, मेल पापुलेशन को खबर लग जायेगी कि मेरे पास भी फटकने में लोचा । फिर कौन मेरे साथ का इच्‍छुक रह जायेगा ?”
 
“मैं एकाएक नहीं पहुंच गया था, कमीनी ! जब तेरे को मालूम था मैं आ रहा हूं तो…”
“खता हुई मेरे से । मैं भूल गयी तुम्‍हारी आमद की बाबत । मेरे से नादानी हुई तो तुम्‍हें तो दानाई से काम लेना चाहिये था ।”
“क्या करना चाहिये था ?”
“यहां दरवाजा हमेशा तुम्‍हें अनलॉक्‍ड मिलता था, आज लॉक्‍ड मिला तो हिंट लेना चाहिये था । नहीं भीतर आने पर जोर देना चाहिये था । ए‍क ही बार तो खता हुई !”
“क्‍या हिंट लेना चाहिये था ? तू भीतर ठुक रही है इसलिये मेरे को जा के आना चाहिये था ?”

“तुम वल्‍गर आदमी हो, इसलिये हर बात को वल्‍गर ढंग से कहने में अपनी शान समझते हो ।”
“ठहर जा, साली ! ऐसी दुम ठोकूंगा कि….”
“जालिम जुल्‍म ही कर सकता है । करे । मैं तैयार हूं सहने को ।”
दृढ़ता से उसकी तरफ बढ़ता वो थमक गया । उसने अपलक उसकी तरफ देखा ।
रोमिला ने निडरता से उससे आंख मिलाई ।
“तू बहुत बढ़ बढ़ के बोल रही है ।” - आखिर वो अपेक्षाकृत नम्र स्‍वर में बोला - “नहीं जानती कि दरिया में रह के मगर से बैर नहीं चलता ।”
“जानती हूं ।” - रोमिला बोली - “दरिया से बाहर की क्‍या पोजीशन है ?”

“बोले तो ?”
“मै तुम्‍हारे दरिया को नक्‍की बोलती हूं ।”
“नक्‍की बोलती है ! क्‍या करेगी तू ?”
“अभी करती हूं । देख के जाना ।”
सबसे पहले वो बाथरुम में गयी जहां से बाहर निकली तो नाइटी की जग‍ह जींस के साथ एक पूरी बांह की टी-शर्ट पहने थी । फिर वो वार्डरोब पर पहुंची जहां से उसने एक बड़ा सा सूटकेस निकाला और उसे बैड पर डाल कर खोला । सूटकेस खाली था जिसे वो वार्डरोब से निकाल निकाल कर कपड़ों से और अपने बाकी सामान से भरने लगी ।
“ये क्‍या कर रही है ?” - वो तीखे स्‍वर में बोला ।

“तुम्‍हारी बादशाहत, ये आइलैंड छोड़ कर जा रही हूं । हमेशा के लिये ।”
“साली, कुतरी ! जब तू जानती है कि ये मेरी बादशाहत है तो बादशाह के हुक्‍म के बिना तू ये कदम नहीं उठा सकती । मुलाजमत के लिये यहां जो कोई भी आता है, मेरी इजाजत से आता है इसलिये मेरी इजाजत से जाता है । साली, मै बोलूंगा तेरे को तू कब इधर से जा सकती है । अब आगे जुबान चलाई तो ले जा के हवालात में बंद कर दूंगा । ऐसा कचरा करूंगा कि नौजवानी की सारी हेंकड़ी भूल जायेगी । क्‍या !”

वो खामोश रही ।
“यहां तेरा सिफारिशी, तेरा हिमायती रोनी डिसूजा था, तू उसकी खाट थी लेकिन मैं क्‍या जनता नहीं कि वो अब तेरी सूरत से बेजार है ! उसका खिलौना अब कोई और ही है । अब कौन है यहां जो तेरे को महाबोले के कहर से बचायेगा ? गोपाल पुजारा ! जब उसे खबर लगेगी कि तूने मेरे से पंगा किया, मेरे से भाव खाया तो वो तेरी तरफ से पीठ फेर के खड़ा हो जायेगा । तो और कौन ? नाम ले किसी का जिसे तू समझती है कि तेरा मुहाफिज बन सकता है !”
वो बगलें झांकने लगी ।

“जिसका कोई नहीं होता ।” - फिर हिम्‍मत करके बोली - “उसका भी कोई होता है ।”
“यानी तेरा भी है ?”
“शायद हो ? ”
“नाम ले उसका ?”
“उसका मिजाज इधर वालों से मेल नहीं खाता । वो जुदा ही किस्‍म का है । वो इधर वालों जैसा नहीं है । मैं तो पहले ही दिन भांप गयी थी कि…”
“अरे, नाम ले उसका !”
“नीलेश गोखले !”
“वो नवां भीङू ! कोंसिका क्‍लब का बाउंसर !”
“सब निगाह का धोखा है । वो कोई सरकारी आदमी है । पुलिस आफिसर भी हो तो कोई बड़ी बात नहीं । वो बनेगा मेरा मुहाफिज तुम्‍हारे जुल्‍म के खिलाफ !”

“मगज में लोचा साली के । कहानियों से दिल बहला रही है अपना । और समझती है कि उस मामूली नवें भीङू के नाम का हौवा खड़ा करके मेरे को उल्‍लू बना लेगी । साली, इस बात पर तो मैं तेरी खास दुम ठोकूंगा ।”
आंखों में बड़े हिंसक भाव लिये महाबोले उसकी तरफ बढ़ा ।
रोमिला के प्राण कांप गये ।
एकाएक उसने दरवाजे की तरफ छलांग लगाई । महाबोले ने उसे हाथ फैलाकर थामने की कोशिश की तो वो डुबकी मार गयी और निर्विघ्‍न दरवाजे पर पहुंच गयी । एक झटके से उसने दरवाजा खोला और उसको पार करके, गलियारे में पहुंच के आगे सीढ़ियों की तरफ भागी ।

पीछे जब तक महाबोले सम्‍भला तब तक वो हवा से बातें करती एक मंजिल सीढ़िया उतर भी चुकी थी ।
महाबोले ने उसके पीछे जाने का खयाल छोड़ दिया । वो कमरे में उपलब्‍ध इकलौती कुर्सी पर बैठ गया और जेब से पैकेट निकाल कर एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
जाये साली जहां जाती थी । सब तामझाम तो उसका वहां पड़ा था-पोशाकें, जूते, सैंडलें, चप्‍पलें, छोटी मोटी ज्‍वेलरी, जो पता नहीं असली थी या नकली, सूटकेस, हैंडबैग, सब-तन के कपड़ों के अलावा क्‍या था उसके पास जिसके बूते वो आइलैंड से निकासी का खयाल करती !

उसने उसका हैण्‍डबैग उठा कर खोला और भीतर झांका ।
आम जनाना आइटम्‍स के अलावा उसमें कोई चौदह सौ रुपये मौजूद थे ।
उसने हैण्‍डबैग को बंद किया और उसे परे उस मेज की तरफ उछाला जिस पर टीवी पड़ा था । हैण्‍डबैग टीवी कैबिनेट के ऊपर जाकर गिरा और फिर वहां से सरक कर टीवी के पीछे कहीं गुम हो गया ।
कोई और रोकड़ा उसके पास था-होना तो लाजमी था-तो क्‍या पता कहां रखती थी !
जो ड्रेस पहन कर वो वहां से गयी थी, आनन फानन उसने उसमें नोट भी ठूंस लिये हों, ये मुमकिन नहीं जान पड़ता था । वैसे भी बाथरूम में नोटों का क्‍या काम !

कहीं नहीं जा सकती थी । जहाज का पंछी थी, साली । जहाज का पंछी उड़ता था तो जहाज ही लौट कर आता था । कुतरी रेंगती हुई लौटेगी और गिड़गिड़ा के माफी की भीख मांगेगी ।
उसने सिग्रेट का लम्‍बा कश लगाया ।
साली गोखले की हूल देती थी । पुलिस अफसर बताती थी बार के गिलास चमकाने वाले भीङू को !
पुलिस अफसर !
पुलिस की काफी नहीं, अफसर भी !
अफसर !
किसी हाल में वो गोखले की कल्‍पना एक पुलिस आफिसर के तौर पर न सका-बावजूद इसके कि उसका दिल गवाही देता था कि उस भीङु मे कुछ खास था, कुछ खुफिया था । तभी तो उसने उसकी पड़ताल का हुक्‍म जारी किया था ।

और ये भी साली का फट्‌टा था कि लैंडलैडी को उसकी हर आवाजाही की खबर थी । कैसे हो सकती थी ! लैंडलेडी को उसकी खबर लगती तो उसे भी तो लैंडलेडी की खबर लगनी चाहिए थी ! किधर लगी !
देखूंगा साली को ! - उसने जानबूझकर बचा हुआ सिग्रेट रोमिला की सबसे नयी, सबसे कीमती जान पड़ती ब्रा में मसला और उठ खड़ा हुआ-ऐसा सीधा करूंगा साली को कि उस घड़ी को याद करके विलाप करेगी जबकि उसने महाबोले से पंगा लिया था ।
अब किसी को इधर की निगरानी पर भी लगाना होगा ताकि रोमिला लौटे तो उसको फौरन खबर लगे ।

किसको ?
दयाराम भाटे ठीक रहेगा ।
वहां से रुखसत होने के लिये उसने बाजू का ही रास्‍ता अख्तियार किया । उसे बिल्‍कुल न लगा कि वो किसी भी क्षण किसी की निगाह में था । महाबोले से ब्‍लफ खेली साली कुतरी ! और समझा चल गया !
***
 
कोंसिका क्‍लब में गोपाल पुजारा की तवज्‍जो का मरकज उसकी खास बारबाला रोमिला सावंत थी ।
उसने आठ बजे वहां पहुंचना था और अब साढ़े आठ बज चुके थे, नहीं पहुंची थी ।mnयार घ्‍ुसासय आयी ”
कहां मर गयी साली ! ऐसी गैरजिम्‍मेदार थी तो न‍हीं !
पुजारा ने उसके बोर्डिंग हाउस में उसकी लैंडलेडी को फोन लगाया ।

पता लगा वो वहां नहीं थी, लैंडलेडी ने कोई आधा घंटा पहले उसे उधर से निकल कर जाते देखा था ।
निकल कर कहां गयी !
जहां पहुंचना था, वहां पहुंची नहीं !
पौने नौ बजे उसने फिर बोर्डिंग हाउस का फोन बजाया ।
पहले वाला ही जवाब फिर मिला ।
तभी उसकी निगाह प्रवेश द्वार की ओर उठी तो उसे हिचकिचाती हुई श्‍यामला मोकाशी क्‍लब में कदम रखती दिखाई दी ।
वो अकेली वहां पहुंची थी और खामोशी से जा कर प्रवेश द्वार के करीब के एक केबिन में बैठ गयी थी ।
पता नहीं किस फिराक में थी !

उसके ऐसा सोचने के पीछे वजह ये थी कि वो अकेली वहां बहुत कम आती थी ।
रोमिला के लिये फिक्रमंद होने की वजह से जल्‍दी ही उसकी तवज्‍जो श्‍यामला की तरफ से हट गयी ।
नीलेश सहज भाव से उसके केबिन के दरवाजे पर पहुंचा ।
श्‍यामला ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा और मुस्‍कराई ।
“हल्‍लो !” - वो बोली ।
जवाब में नीलेश स्‍टाफ वाले अदब से मुस्‍कराया और बोला - “मे आई हैव युअर आर्डर प्‍लीज !”
श्‍यामला हड़बड़ाई, उसने सकपकाये भाव से नीलेश की तरफ देखा ।
“यू मे हैव माई रिक्‍वेस्‍ट ।” - फिर बोली ।

“मैं समझा नहीं ।”
“समझाने ही आयी हूं ।”
“क्‍या ?”
“मैं सुबह वाले अपने बीच के व्‍यवहार से शर्मिंदा हूं ।”
“खामखाह ! शर्मिंदगी वाली तो कोई बात हुई ही नहीं थी !”
“मेरे तब के व्‍यवहार में शालीनता की कमी थी । मैं रुखाई से, बल्कि बद्तमीजी से पेश आयी थी ।”
“ऐसी कोई बात नहीं थी ।”
“आई एम सारी !”
“नैवर माइंड !”
“मैं तुम्‍हारी कलीग को भी सारी बोलना चाहती हूं । है वो यहां ?”
“नहीं । होना तो चाहिये था, आठ से पहले होना चाहिये था, पता नहीं क्‍या हुआ, अभी तक पहुंची नहीं ।”

“आई सी ।”
“तुम्‍हारी तो प्रीशिड्‍यूल्‍ड अप्‍वायंटमेंट थी ! जो कि अच्‍छा हुआ था तुम्‍हें वक्‍त पर याद आ गयी थी !”
“छोड़ो वो किस्‍सा ! तुम जानते हो क्‍यों मैंने उस अप्‍वायंटमेंट का जिक्र किया था । मैं खामखाह तुम्‍हारी कलीग से...क्‍या नाम था उसका ?”
“रोमिला ।”
“हां, रोमिला । मैं खामखाह उससे भाव खा गयी थी । तुम्‍हारी कलीग है, तुम्‍हारा उसका रोज का लम्‍बा वास्‍ता है, नतीजतन तुम्‍हारे उससे मधुर सम्‍बंध हैं तो मेरे को क्‍या प्राब्‍लम है ?”
नीलेश खामोश रहा ।
“मैंने अपने पापा से भी डिसकस किया…”
“क्‍या !” - नीलेश चौंका ।

“उनका भी यही खयाल है...आई एक्टिड रादर हरिड्ली । बारबाला होना कोई बुरी बात तो नहीं !”
“ये तुम्‍हारे पापा का खयाल है ?”
“हां ।”
“क्‍यों न हो ! उनसे बेहतर इन बातों को कौन जान समझ सकता है ! अंदर की जानकारी अंदर वालों को ही बेहतर होती है ।”
“खुद मेरा भी अब यही खयाल है ।”
“कोई बड़ी बात नहीं । ज्ञान की सरिता जब घर में ही बह रही हो तो...कोई बड़ी बात नहीं ।”
“उन्‍हीं ने मुझे समझाया” - नीलेश की बातों में निहित व्‍यंग्य को बिना समझे वो अपनी ही झोंक में कहती रही - “कि सुबह मुझे विशालहृदयता का परिचय देना चाहिये था । आई शुड हैव बिन ब्राडमाइंडिड ।”

“अपने पिता से बहुत मुतासिर हो !”
“है तो ऐसा ही ! जिसकी मां न हो, उसके पिता को मां की जगह भी लेकर दिखाना पड़ता है । मेरी मां मेरे बचपन में ही मर गयी थी, तब से मेरे पापा माता-पिता का डबल रोल निभाते चले आ रहे हैं । जिंदगी में दो ही चीजों में उनकी खास तवज्‍जो रही है-एक ये आइलैंड और दूसरी मैं-और तुम देख ही सकते हो दोनों को ही उन्‍होंने क्‍या खूब परवान चढ़ाया है !”
“ठीक !”
“अंदाजन कह रहे हो । मुझे उम्‍मीद नहीं कि सारा आइलैंड तुमने घूमा है ।”
“इतना तो टाइम लगा नहीं मेरे को ! बोले तो अभी बस कदम ही तो रखा है मैंने यहां !”

“मैं दिखाती हूं न !” - वो उत्‍साह से बोली - “तुम्‍हारी गाइड ।”
“बढ़िया । गाइड कब से ड्‍यूटी करेगा ?”
“आज ही से ।” - उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली - “अभी से ।”
“अभी से ?”
“भई, तुमने खुद बोला था आज नौ बजे इधर से फ्री हो जाओगे !”
“नौ बजने में अभी टाइम है ।”
“सात आठ मिनट बस ।” - वो उठ खड़ी हुई - “मैं बाहर इंतजार करूंगी तुम्‍हारा ?”
“बाहर नहीं ।”
श्‍यामला की भवें उठीं ।
“घर जाओ । नौ बजे मैं भी चेंज के लिये घर जाता हूं । फिर साढे़ नौ बजे तुम्‍हारे दौलतखाने पर पहुंचता हूं जहां मुमकिन है मुझे तुम्‍हारे पिता से मिलने का फख्र भी हासिल हो जाये ।”

“ठीक है । पता याद है ?”
“फाइव, नेलसन एवेन्‍यू ।”
“गुड । नाइन थर्टी एट माई प्‍लेस !”
“यस ।”
“नो हार्ड फीलिंग्‍स ?”
“नो हार्ड फीलिंग्स ।”
“वुई आर फ्रेंडस नाओ ?”
“इफ यू से सो ।”
“आइ से सो ।”
“दैन वुई आर ।”
“गुड । आई एम ग्‍लैड ।”
वो चली गयी ।
नौ बज कर पांच मिनट तक नीलेश वहां की वर्दी अपनी काली टाई और काले सूट को तिलांजलि दे चुका था और वहां से रवाना होने के लिये तैयार था ।
तभी पुजारा उसके करीब पहुंचा ।
“अरे !” - वो बोला - “तुम तो चल भी दिये !”
 
“बॉस” - नीलेश विनयशील स्‍वर में बोला - “तुम्‍हें मालूम, तुमने खुद सैटल किया, आज मेरी शार्ट ड्‍यूटी । आज मैं नौ बजे ऑफ !”
“ठीक ! ठी‍क ! पण कोई स्‍टाम्‍प पेपर पर लिख के तो नहीं दिया ! नोटरी से ठप्‍पा लगवाकर तो नहीं दिया !”
“क्‍या कहना चाहते हो ?”
“अनएक्‍सपैक्टिड रश हो गया है । रोमिला की वजह से भी शार्टहैंडिड हूं, एक दो घंटे लिये रुक जाते !”
“मैं क्‍लोजिंग टाइम तक बाखुशी रुक जाता, बॉस, लेकिन आज नहीं ।”
“आज क्‍या है ?”
“है कुछ ।”
“डेट ?”
“हो सकता है ।”
“बोलता है हो सकता है । मेरे को अंधा समझता है ।”

“जब जानते हो तो पूछते क्‍यों हो ?”
“’श्‍यामला !”
नीलेश हंसा ।
“लगता है दिन में मैं जो कुछ तेरे को बोला वो सब तेरे सिर के ऊपर से गुजर गया !”
“सब याद है । लेकिन जो बोला था, रोमिला को लेकर बोला था । मेरी डेट रोमिला नहीं है ।”
“जो बात एक जगह लागू हो, वो दो जगह भी लागू हो सकती है, चार जगह भी लागू हो सकती है, दस जगह भी लागू हो सकती है ।”
“बॉस” - नीलेश तनिक चिड़कर बोला - “ये कोनाकोना आइलैंड है या फॉरबिडन प्‍लेनेट है ?”
“बात का मतलब समझ । बाल की खाल न निकाल ।”

“क्‍या समझूं ?”
“अपनी औकात में रह । अपने लैवल पर एक्‍ट कर । टॉप शैल्‍फ पर हाथ डालने कोशिश न कर ।”
“बॉस, तुम्‍हारी बातें मेरी समझ से परे हैं...”
“तू सब समझता है ।”
“अगर तुम्‍हें कोई ऐतराज है...”
“मुझे नहीं है । उसके बाप को हो सकता है । उसको न हुआ तो महाबोले को हो सकता है । होगा । यकीनन । क्‍या फायदा नाहक पंगा लेने का ! ऐसा पंगा लेने का जो झेला न जाये ! क्‍या फायदा किसी के फटे में टांग देने का !”
“पहले भी बोला ऐसा । टांग मेरी है न !”

पुजारा हड़बड़ाया ।
“मैं नहीं समझता किसी को मेरी पर्सनल लाइफ को डिक्‍टेट करने का कोई हक पहुंचता है ।”
“ठीक । ठीक ।”
“नमस्‍ते । कल हाजिर होता हूं ।”
“हां । दोपहर से पहले आ जाना ।”
“दोपहर से पहले ! काहे को ?”
“भई, वो खाली वक्‍त होता है । तेरा फाइनल हिसाब किताब करने में मेरे को सहूलियत होगी ।”
“फाइनल हिसाब किताब ! क्‍या बात है ? डिसमिस कर रहे हो ?”
“अभी क्‍या बोले मैं !”
“हैरानी की बात है कि इतनी सी बात को डिसमिसल की वजह बना रहे हो कि मैं रुक नहीं सकता ।”

“अरे, ये बात नहीं है ।” - पुजारा खोखली हंसी हंसा - “ये बात तो इत्तफाक से उट खड़ी हुई । असल में मैं वैसे भी तेरे को जवाब देने ही वाला था । तू रुकता तो मैं क्‍लोजिंग टाइम पर तेरे को बोलता कि कल आकर हिसाब कर लेना । अभी बिजनेस है न ! सोचा था तीन चार घंटे की ड्‍यूटी तेरे से निचोड़ लूं । पण, वांदा नहीं । कल आ के फाइनल हिसाब करना ।”
“मेरे काम से कोई शिकायत हुई ?”
“अरे, नहीं रे ! काम तो तेरा ऐन फर्स्‍ट क्‍लास ।”
“तो फिर ?”

“एक भांजा है न मेरा ! साला मेरे को पता ही न चला कि जवान हो गया ! उसको जॉब मांगता है न ! बहन को कैसे ‘नो’ बोलेगा !”
“ओह !”
“फिर उसकी टांग भी तेरी जितनी लम्‍बी नहीं है ।”
“बॉस, आई कैन टेक ए हिंट । आई हैव टेकन दि हिंट । नाओ डोंट रब इट इन ।”
“ओके ! ओके ! डोंट गैट ऑफ दि हैंडल । हैव ए नाइस टाइम टुनाइट आई विश यू आल दि बैस्‍ट ।”
“थैंक्‍यू ।”
“गैट अलांग ।”
कोंसिका क्‍लब से बाहर निकल कर सिग्रेट के विचारपूर्ण कश लगाता नीलेश कई क्षण फुटपाथ पर ठिठका खड़ा रहा ।

उसकी निगाह स्‍वयंमेव ही सामने ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की ओर उठ गयी । वो वक्‍त दूसरी मंजिल पर स्थित कैसीनो में गेम्‍बलर्स का जमावड़ा बढ़ता जाने का था । वहां हाउसफुल हो जाने पर-जो कि वीकएण्‍ड्स पर तो जरूर ही होता था-ऐन्‍ट्री रिस्ट्रिक्‍ट कर दी जाती थी और दूसरी मंजिल की तमाम फालतू बत्तियां-खास तौर से बाहर सड़क पर से दिखाई देने वाली-बंद कर दी जाती थीं ।
उसने सड़क‍ पार की और ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ के बाजू की गली में दाखिल हुआ ।
वहां पिछवाड़े में ‘इम्‍पीरियल’ रिट्रीट’ का अपना प्राइवेट पायर था जहां कि फ्रांसिस मैग्‍नारो की अत्‍याधुनिक स्‍पीड बोट खड़ी होती थी । उस ने सुना था कि उससे ज्‍यादा रफ्तार पकड़ने वाली स्‍पीड बोट कस्‍टम वालों के पास भी नहीं थी, कोस्‍ट गार्ड्‍स के पास भी नहीं थी ।

वो पिछवाड़े की सड़क पर पहुंचा और दायें बाजू आगे बढ़ा ।
सड़क कदरन संकरी थी और उस पर सैलानियों की भरपूर आवाजाही थी । नौजवान लड़के लड़कियां बांहों में बांहें पिरोये वहां विचार रहे थे । कई सैलनियों के हाथ में बियर का कैन था या बकार्डी ब्रीजर की बोतल थी जिसका वो गाहेबगाहे घूंट लगाते चलते थे ।
उस सड़क पर कितने ही छोटे बड़े बार और कैफे थे, आगे बढ़ते नीलेश ने जिन में से हर एक में झांका लेकिन रोमिला उसे कहीं दिखाई न दी ।
कहां चली गयी !
वो सिग्रेट के कश लगाता आगे बढ़ता रहा ।

उस सड़क पर सबसे ज्‍यादा रौनक और शोरशराबे वाली जगह मनोरंजन पार्क ही थी । वहां भीतर और बाहर दोनों जगह बराबर भीड़ थी । वहां चालक समेत या चालक के बिना बोट किराये पर मिलती थी जिस पर विशाल झील की सैर करना सैलनियों का-खासतौर से नौजवान जोड़ों का-पसंदीदा शगल था ।
मनोरंजन क्‍लब के लोहे के पुल के करीब वो ठिठका । वहां एक पब्लिक फोन था जहां सं उसने रोमिला के बोर्डिंग हाउस में फोन लगाया ।
उसके पास मोबाइल था लेकिन उस रोज इत्तफाकन वो उसे अपने काटेज पर भूल आया था ।
तभी दूसरी ओर से फोन उठाया गया, उसे लैंडलेडी की रूखी ‘हल्‍लो’ सुनाई दी तो उसने रोमिला की बाबत सवाल किया ।

“नहीं है ।” - लैंडलेडी चिड़े स्‍वर में बोली - “कितने लोग पूछोगे ? कितनी बार पूछोगे ? बोला न, आठ बजे इधर से गई । मेरे को बोल के नहीं गयी किधर जाती थी या कब लौट के आने का था । बोले तो अभी कल मार्निंग में फोन करना ।”
भड़ाक !
उसने फोन वापिस हुक पर टांग दिया और वापिस सड़क पर पांव डाला । आगे सड़क झील के साथ साथ बायें घूम‍ती थी और मोड़ काटते ही दायें बाजू उसका किराये का कॉटेज था । उसका कॉटेज मेन रोड पर होने की जगह पिछवाड़े की एक गली में था जिस तक कॉटेजों के बीच से गुजरती, ऊपर को उठती एक संकरी सड़क जाती थी ।

वो अपनी मंजिल पर पहुंचा ।
गली से कॉटेज के मेन डोर तक पहुंचने के लिये पांच सीढि़यां चढ़नी पड़ती थीं जो कि उसने चढ़ीं । उसने जेब चाबी निकालकर की-होल में डाली और उसे घुमाने की कोशिश की तो पाया कि ताला पहले से खुला था ।
वजह ?
क्‍या वहां से अपनी रवानगी के वक्‍त वो ही दरवाजे को पीछे अनलॉक्‍ड छोड़ गया था ?
वो कोई फैसला न कर सका ।
ऐसी लापरवाही उससे पहले कभी नहीं हुई थी लेकिन आखिर कभी तो पहल होनी ही होती थी !
हिचकिचाते हुए उसने नॉब को घुमाया और हौले से दरवाजे को भीतर की तरफ धक्‍का दिया । दरवाजा धीरे धीरे भीतर को सरका । दरवाजा कोई फुट भर चौखट से अलग हो गया तो उसने भीतर के अंधेरे में निगाह दौड़ाई और कान खड़े करके कोई आहट लेने की कोशिश करने लगा ।

खामोशी !
 
Back
Top