desiaks
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“क्यों जुआघर आबाद हैं ? जुए का शौक क्यों रखते हैं लोग बाग ? क्योंकि हर किसी को ईजी मनी की तलब है ! कोई पैसा कमाने के लिये मशक्कत नहीं करना चाहता, जांमारी नहीं करना चाहता । सबको रोकडे़ का पहाड़ चढ़ने के लिये शार्टकट मांगता है जो रॉलेट व्हील से, तीन पत्ती से, ब्लैकजैक से, सट्टे से, मटके से हो कर गुजरता है । राहजनी में राहगीर लुटते हैं क्योंकी महफूज नहीं होते लेकिन जो राहगीर खुद लुटने को तड़प रहे हो, उनकी कौन हिफाजत कर सकता है ! मैग्नारो क्या करता है ! ऐसे भीङूओं को चैनेलाइज करता है, उनको रास्ता दिखाता है, कोई तोप तो नहीं तानता उन पर, हूल तो नहीं देता कि ‘कम्बख्तमारो, चलना पडे़गा मेरे बताये रास्ते पर’ !”
“तुम फिर उसके पीआरओ की तरह बोल रही हो !”
“और तुम क्या बला हो ! जाने अनजाने तुम भी उसी करप्ट सिस्टम का हिस्सा नहीं बने हुए जो तुम्हारी निेगाह में नाजायज है ?”
“मैं कोंसिका क्लब का एक मामूली मुलाजिम हूं ।”
“दिल को बहलाने के लिये गोखले, खयाल अच्छा है ।”
“इधर फिट हो ? कोई शिकायत नहीं कोई प्राब्लम नहीं ?”
“अरे, रिजक की तालिब लड़की को हर जगह प्राब्लम है, हर जगह शिकायत है । लेकिन क्या करें ! प्राब्लम से छुप कर तो नहीं बैठा जाता न ! मेरे जैसी नो स्पोर्ट, नो असैट्स लड़की का हाथ पांव हिलाये बिना पेट तो नहीं भरता न !”
“रोकडे़ के लिहाज से इधर ठीक है या पीछे पोंडा में ठीक था ?”
“मोटे तौर पर एक ही जैसा है । जिसने मेरे को ये जगह रिकमैंड की थी-जो अब मैंने बोल ही दिया कि रोनी डिसूजा था-उसने प्रास्पेक्ट्स के जो सब्ज बाग दिखाये थे, वो इधर नहीं देखने को मिले । उस लोकल मवाली से पंगा न पड़ता तो मैं पोंडा में ही टिकना प्रेफर करती ।”
“इधर कब तक का प्रोजेक्ट है ?”
“एक साल तो जैसे तैसे काटना ही है मेरे को इधर । बाद में...देखेंगे !”
“पैसा उड़ता तो खूब है इधर !”
“लेकिन पकड़ में खूब नहीं आता । ऐसा ही निजाम है इधर का । तुम भी निजाम का हिस्सा हो, तुम्हें मालूम होना चाहिए ।”
“हो रहा है धीरे धीरे । वैसे बाकी लड़कियां तो खुश हैं !”
“क्योंकि हुनरमंद हैं ।”
“बोले तो ?
“यासमीन को भूल गए ! पिकपॉकेटिंग हुनर ही तो है !”
“ओह ! लेकिन सभी तो यासमीन जैसी दक्ष जेबकतरी नहीं !”
“हैं एक दो और भी । लेकिन अपने हुनर में यासमीन जैसी परफेक्ट कोई नहीं । पकड़े जाने पर बहुत इंसल्ट होती है । तब पुजारा भी साथ नहीं देता ।”
“यासमीन कभी नहीं पकड़ी गयी ?”
“न ! अभी तक तो नहीं !”
“मैंने सुना है कमाई में इजाफा करने का इधर एक और भी जरिया आम है !”
“मैं तुम्हारा इशारा समझ रही हूं ।”
“क्या समझ रही हो ?”
“हारीजंटल कमाओ, वर्टीकल खाओ ।”
“ओह, नो ।”
“चलता है । लेकिन ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ में, ‘कोंसिका क्लब’ में नहीं ।”
“बिल्कुल भी नहीं ?”
उसने जवाब न दिया ।
नीलेश ने भी जिद न की ।
“एक बात बोलूं ?” - एकाएक वो बोली ।
“बोलो ।”
“तुम सवाल बहुत पूछते हो । कुछ ज्यादा ही । बोले तो खोद खोद कर ।”
“माई डियर, आई एम क्यूरियस बाई हैबिट । आदत ही ऐसी बन गयी है ।”
“खामखाह !”
“खामखाह की समझो ।”
“कैसे समझूं ? मुझे तो तुम बाई हैबिट नहीं, बाई प्रोफेशन क्यूरियस लगते हो ।”
नीलेश के दिल ने डुबकी मारी ।
“अरे, खामखाह !” - वो खोखली हंसी हंसा ।
उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कराहट उभरी ।
“मेरी निगाह” - फिर वो अपलक उसे देखती बोली - “बहुत दूर तक मार करती है, वो बातें भी मार्क करती है जो मेरे जैसी किसी दूसरी के खयाल में भी नहीं आतीं ।”
“बोले तो ?”
“तुम्हारे पास एक फैंसी कैमरा है जो मूवी मोड पर भी चलता है और जिसको तुम बहुत कुछ रिकार्ड करने के लिये इस्तेमाल करते हो । जैसे ‘कोंसिका क्लब’ । ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ । शरेआम मटका कलैक्ट करता हवलदार जगन खत्री...”
नीलेश का दिल जोर से लरजा ।
“खूबसूरत आइलैंड है” - फिर जबरन मुस्कराता बोला - “ग्रैंड टूरिस्ट रिजार्ट है । यादगार के तौर पर फोटुयें खींचने में कोई हर्ज है ?”
“फोटो क्लिक करके खींची जाती है, मूवी बनाने के लिये कैमरे को पैन करना पड़ता है । क्या !”
नीलेश को तत्काल जवाब न सूझा ।
“मैंने बोला न, मेरी निगाह बहुत दूर तक मार करती है !”
“अरे, भई, यादगार के तौर पर किसी मनोरम स्थल की मूवी बनाने में भी क्या हर्ज है ?”
“चोरी छुपे बनाने में शायद कोई हर्ज हो !”
“चोरी छुपे ?”
“बराबर ।”
“तुम्हें मुगालता है मेरे बारे में । मैंने ब्यूटीफुल प्लेस की ब्यूटी रिकार्ड करने की कोशिश की, बस । ऐसा मैं तुम्हे चोरी छुपे करता लगा तो गलत लगा ।”
“चलो, ऐसे ही सही ।”
“अपनी दूर तक मार करने वाली निगाह का रोब सखियों पर भी तो नहीं डाला ?”
“मैं समझी नहीं ।”
“जो मेरे को बोला, वो किसी और को भी बोला ?”
“नहीं । नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“नीलेश, यू आर ए नाइस गाय । यू आलवेज बिहेव डीसेंटली विद मी । यू नो आई एम ए बार फ्लाई, यू स्टिल ट्रीट मी लाइक एक लेडी । मुझे इस बात का बड़ा मान है इसलिये यकीन जानो ये कैमरे वाली बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच में है ।”
“थैंक्यू । आई एप्रिशियेट दैट ।”
“फिर तुम कहते हो कुछ बात ही नहीं है तो समझो बात खत्म है ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“एक बात फिर भी बोलने का ।”
नीलेश की भवें उठीं ।
“तुम्हारा अच्छा बर्ताव इस बात की साफ चुगली करता है कि तुम्हारे संस्कार अच्छे हैं, तुम किसी अच्छे घर के हो । क्लब में क्या भीतर के क्या बाहर के, बारबालाओं पर सब लार टपकाते हैं लेकिन अकेले तुम हो जो कभी किसी के साथ-खासतौर से मेरे साथ-बेअदबी से, गैरअखलाकी ढण्ग से पेश नहीं आये, कभी किसी की बगलों में हाथ डालने की कोशिश नहीं की, कभी किसी को कूल्हे पर चिकोटी नहीं काटी, कभी किसी को साथ भींचने की कोशिश नहीं की । ये वो काम हैं जो क्लब में बारबालाओं के साथ हर कोई करता है । इन और कई बातों के मद्देनजर मैं तुम्हारा तसव्वुर बार के गिलास चमकाते शख्स के तौर पर करने में दिक्कत महसूस करती हूं ।”
“भई, जो प्रत्यक्ष है...”
“वो निगाह का धोखा है । किसी खास मकसद की पर्दादारी है, पुजारा बहुत सयाना है, बहुत घिसा हुआ है, उड़ते पंछी के पर पहचानता है लेकिन जो उसकी निगाह में नहीं आती ।”
“तुम्हारी में आती है” - नीलेश ने बात को हंसी में उडाने की कोशिश की - “क्योंकि तुम्हारी निगाह बहुत दूर तक मार करती है ! हा हा ।”
वो खामोश रही ।
“माई डियर, तुम्हारी सारी बातें ठीक हैं लेकिन उनकी तुम्हारी जो तर्जुमानी है, वो ठीक नहीं है । मैं कैमरे से तसवीरें खींचता हूं-चलो, मूवी बनाता हूं-लेकिन उसमें मेरा कोई खास, खुफिया, काबिलेऐतराज मकसद नहीं है । और जहां तक क्लब की नौकरी का सवाल है तो बुरा वक्त किसी का भी आ सकता है । राजा रामचंद्र को वन भटकना पड़ा था, राजा हरीश्चंद्र को मरघट का रखवाला बनना पड़ा था, पांण्डवों को अज्ञातवास में विप्र बनकर मुंह छुपाये फिरना पड़ा था, रिजक की तलाश गांधी जी को साउथ अफ्रीका लेकर गयी थी । विषम परिस्थितियों में कोई कर्म से मुंह तो नहीं मोड़ लेता ! और फिर कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता, सिर्फ करने वाले की सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है...”
“तुम फिर उसके पीआरओ की तरह बोल रही हो !”
“और तुम क्या बला हो ! जाने अनजाने तुम भी उसी करप्ट सिस्टम का हिस्सा नहीं बने हुए जो तुम्हारी निेगाह में नाजायज है ?”
“मैं कोंसिका क्लब का एक मामूली मुलाजिम हूं ।”
“दिल को बहलाने के लिये गोखले, खयाल अच्छा है ।”
“इधर फिट हो ? कोई शिकायत नहीं कोई प्राब्लम नहीं ?”
“अरे, रिजक की तालिब लड़की को हर जगह प्राब्लम है, हर जगह शिकायत है । लेकिन क्या करें ! प्राब्लम से छुप कर तो नहीं बैठा जाता न ! मेरे जैसी नो स्पोर्ट, नो असैट्स लड़की का हाथ पांव हिलाये बिना पेट तो नहीं भरता न !”
“रोकडे़ के लिहाज से इधर ठीक है या पीछे पोंडा में ठीक था ?”
“मोटे तौर पर एक ही जैसा है । जिसने मेरे को ये जगह रिकमैंड की थी-जो अब मैंने बोल ही दिया कि रोनी डिसूजा था-उसने प्रास्पेक्ट्स के जो सब्ज बाग दिखाये थे, वो इधर नहीं देखने को मिले । उस लोकल मवाली से पंगा न पड़ता तो मैं पोंडा में ही टिकना प्रेफर करती ।”
“इधर कब तक का प्रोजेक्ट है ?”
“एक साल तो जैसे तैसे काटना ही है मेरे को इधर । बाद में...देखेंगे !”
“पैसा उड़ता तो खूब है इधर !”
“लेकिन पकड़ में खूब नहीं आता । ऐसा ही निजाम है इधर का । तुम भी निजाम का हिस्सा हो, तुम्हें मालूम होना चाहिए ।”
“हो रहा है धीरे धीरे । वैसे बाकी लड़कियां तो खुश हैं !”
“क्योंकि हुनरमंद हैं ।”
“बोले तो ?
“यासमीन को भूल गए ! पिकपॉकेटिंग हुनर ही तो है !”
“ओह ! लेकिन सभी तो यासमीन जैसी दक्ष जेबकतरी नहीं !”
“हैं एक दो और भी । लेकिन अपने हुनर में यासमीन जैसी परफेक्ट कोई नहीं । पकड़े जाने पर बहुत इंसल्ट होती है । तब पुजारा भी साथ नहीं देता ।”
“यासमीन कभी नहीं पकड़ी गयी ?”
“न ! अभी तक तो नहीं !”
“मैंने सुना है कमाई में इजाफा करने का इधर एक और भी जरिया आम है !”
“मैं तुम्हारा इशारा समझ रही हूं ।”
“क्या समझ रही हो ?”
“हारीजंटल कमाओ, वर्टीकल खाओ ।”
“ओह, नो ।”
“चलता है । लेकिन ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ में, ‘कोंसिका क्लब’ में नहीं ।”
“बिल्कुल भी नहीं ?”
उसने जवाब न दिया ।
नीलेश ने भी जिद न की ।
“एक बात बोलूं ?” - एकाएक वो बोली ।
“बोलो ।”
“तुम सवाल बहुत पूछते हो । कुछ ज्यादा ही । बोले तो खोद खोद कर ।”
“माई डियर, आई एम क्यूरियस बाई हैबिट । आदत ही ऐसी बन गयी है ।”
“खामखाह !”
“खामखाह की समझो ।”
“कैसे समझूं ? मुझे तो तुम बाई हैबिट नहीं, बाई प्रोफेशन क्यूरियस लगते हो ।”
नीलेश के दिल ने डुबकी मारी ।
“अरे, खामखाह !” - वो खोखली हंसी हंसा ।
उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कराहट उभरी ।
“मेरी निगाह” - फिर वो अपलक उसे देखती बोली - “बहुत दूर तक मार करती है, वो बातें भी मार्क करती है जो मेरे जैसी किसी दूसरी के खयाल में भी नहीं आतीं ।”
“बोले तो ?”
“तुम्हारे पास एक फैंसी कैमरा है जो मूवी मोड पर भी चलता है और जिसको तुम बहुत कुछ रिकार्ड करने के लिये इस्तेमाल करते हो । जैसे ‘कोंसिका क्लब’ । ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ । शरेआम मटका कलैक्ट करता हवलदार जगन खत्री...”
नीलेश का दिल जोर से लरजा ।
“खूबसूरत आइलैंड है” - फिर जबरन मुस्कराता बोला - “ग्रैंड टूरिस्ट रिजार्ट है । यादगार के तौर पर फोटुयें खींचने में कोई हर्ज है ?”
“फोटो क्लिक करके खींची जाती है, मूवी बनाने के लिये कैमरे को पैन करना पड़ता है । क्या !”
नीलेश को तत्काल जवाब न सूझा ।
“मैंने बोला न, मेरी निगाह बहुत दूर तक मार करती है !”
“अरे, भई, यादगार के तौर पर किसी मनोरम स्थल की मूवी बनाने में भी क्या हर्ज है ?”
“चोरी छुपे बनाने में शायद कोई हर्ज हो !”
“चोरी छुपे ?”
“बराबर ।”
“तुम्हें मुगालता है मेरे बारे में । मैंने ब्यूटीफुल प्लेस की ब्यूटी रिकार्ड करने की कोशिश की, बस । ऐसा मैं तुम्हे चोरी छुपे करता लगा तो गलत लगा ।”
“चलो, ऐसे ही सही ।”
“अपनी दूर तक मार करने वाली निगाह का रोब सखियों पर भी तो नहीं डाला ?”
“मैं समझी नहीं ।”
“जो मेरे को बोला, वो किसी और को भी बोला ?”
“नहीं । नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“नीलेश, यू आर ए नाइस गाय । यू आलवेज बिहेव डीसेंटली विद मी । यू नो आई एम ए बार फ्लाई, यू स्टिल ट्रीट मी लाइक एक लेडी । मुझे इस बात का बड़ा मान है इसलिये यकीन जानो ये कैमरे वाली बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच में है ।”
“थैंक्यू । आई एप्रिशियेट दैट ।”
“फिर तुम कहते हो कुछ बात ही नहीं है तो समझो बात खत्म है ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“एक बात फिर भी बोलने का ।”
नीलेश की भवें उठीं ।
“तुम्हारा अच्छा बर्ताव इस बात की साफ चुगली करता है कि तुम्हारे संस्कार अच्छे हैं, तुम किसी अच्छे घर के हो । क्लब में क्या भीतर के क्या बाहर के, बारबालाओं पर सब लार टपकाते हैं लेकिन अकेले तुम हो जो कभी किसी के साथ-खासतौर से मेरे साथ-बेअदबी से, गैरअखलाकी ढण्ग से पेश नहीं आये, कभी किसी की बगलों में हाथ डालने की कोशिश नहीं की, कभी किसी को कूल्हे पर चिकोटी नहीं काटी, कभी किसी को साथ भींचने की कोशिश नहीं की । ये वो काम हैं जो क्लब में बारबालाओं के साथ हर कोई करता है । इन और कई बातों के मद्देनजर मैं तुम्हारा तसव्वुर बार के गिलास चमकाते शख्स के तौर पर करने में दिक्कत महसूस करती हूं ।”
“भई, जो प्रत्यक्ष है...”
“वो निगाह का धोखा है । किसी खास मकसद की पर्दादारी है, पुजारा बहुत सयाना है, बहुत घिसा हुआ है, उड़ते पंछी के पर पहचानता है लेकिन जो उसकी निगाह में नहीं आती ।”
“तुम्हारी में आती है” - नीलेश ने बात को हंसी में उडाने की कोशिश की - “क्योंकि तुम्हारी निगाह बहुत दूर तक मार करती है ! हा हा ।”
वो खामोश रही ।
“माई डियर, तुम्हारी सारी बातें ठीक हैं लेकिन उनकी तुम्हारी जो तर्जुमानी है, वो ठीक नहीं है । मैं कैमरे से तसवीरें खींचता हूं-चलो, मूवी बनाता हूं-लेकिन उसमें मेरा कोई खास, खुफिया, काबिलेऐतराज मकसद नहीं है । और जहां तक क्लब की नौकरी का सवाल है तो बुरा वक्त किसी का भी आ सकता है । राजा रामचंद्र को वन भटकना पड़ा था, राजा हरीश्चंद्र को मरघट का रखवाला बनना पड़ा था, पांण्डवों को अज्ञातवास में विप्र बनकर मुंह छुपाये फिरना पड़ा था, रिजक की तलाश गांधी जी को साउथ अफ्रीका लेकर गयी थी । विषम परिस्थितियों में कोई कर्म से मुंह तो नहीं मोड़ लेता ! और फिर कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता, सिर्फ करने वाले की सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है...”