desiaks
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आधा घण्टे बाद ही चट्टान सिंह, डॉली को लेकर वहाँ आ गया ।
पुलिस स्टेशन में दाखिल होते ही डॉली की नजर राज की नाजुक हालत पर पड़ी ।
उसके तार-तार हुए कपड़े, गालों पर सुख चुके आंसू, बिखरे हुए बाल और चेहरे से टपकती मनहूसियत ।
वह सब बातें राज के साथ हुए जुल्म की चीख-चीखकर गवाही दे रही थीं ।
डॉली का दिल रो पड़ा ।
खुद राज भी तड़पकर रह गया था ।
उसे ऐसा लगा, मानो डॉली की आंसुओं से छलछलाई आंखें उससे कह रही हैं- “मैं तेरे से पहले ही कहती थी न राज, इस चक्कर में मत पड़, मत पड़ । फंस जायेगा । लेकिन नहीं, तब तो दौलत ने तेरी आंखों पर लालच की पट्टी बांध दी थी, तब तो तुझे अपनी किस्मत के बंद कपाट खुलते नजर आ रहे थे, तब तो तुझे ऐसा लग रहा था- मानो साक्षात् लक्ष्मी तेरे दरवाजे पर खड़ी दस्तक दे रही है ।”
राज सिसककर रह गया ।
उसके दिल ने चाहा, वह डॉली से चीख-चीखकर माफी मांगे ।
वह वाकई गलती पर था ।
उससे सचमुच भयंकर भूल हुई थी ।
लेकिन वो कैसे कहता ?
उसकी जबान को तो उस पल लकवा मार गया था ।
“तुम्हारा ही नाम डॉली है ?” तभी इंस्पेक्टर योगी, डॉली से सम्बोधित हुआ ।
“जी...जी हाँ ।”
“तुम्हें यह तो मालूम ही होगा ।” योगी शालीन शब्दों का प्रयोग करता हुआ बोला- “कि हमने राज को यहाँ किस अपराध में पकड़कर रखा है ? इसलिये उन सब बातों को दोहराने से कोई फायदा नहीं । दरअसल तुम्हें यहाँ इसलिये बुलाया गया है, क्योंकि इन सब-इंस्पेक्टर महोदय ने !” योगी ने फ्लाइंग स्क्वॉयड के सब-इंस्पेक्टर की तरफ इशारा किया- “बुधवार की रात राज की ऑटो रिक्शा को मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोका था । इन सब-इंस्पेक्टर महोदय का कहना है कि उस वक्त राज की ऑटो रिक्शा में एक लड़की भी थी, जिसे यह पेट से बता रहा था । तुम्हें सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है और सच-सच देना है, क्या वो लड़की तुम थीं ?”
डॉली ने सकपकायी-सी नजरों से राज की तरफ देखा ।
“तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ।” योगी बोला- “जो बात है, बेहिचक बताओ । हम तुम्हें सरकारी गवाह बना लेंगे ।”
राज ने आहिस्ता से डॉली की तरफ इंकार में गर्दन हिलाई ।
“साले !” बल्ले चिल्ला उठा- “लड़की को बहकाता है, उसे झूठ बोलने के लिए कहता है । तेरी तो... ।”
“गाली नहीं ।” योगी ने उसे बीच में ही घुड़क दिया- “गाली नहीं बल्ले- किसी भी लड़की के सामने गाली नहीं चलेगी ।”
“मगर यह लड़की को बहका रहा है साहब !” बल्ले धधकते स्वर में बोला- “आंखों-ही-आंखों में उसे मना करने के लिये बोल रहा है ।”
“मुझे सब मालूम है, सब दिख रहा है मुझे ।” योगी, राज को आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ फुंफकारा- “इसका मैं बाद में इंतजाम करूंगा, पहले लड़की से सवाल-जवाब कर लूं ।”
बल्ले तिलमिलाकर रह गया ।
“देखो डॉली !” योगी, डॉली के साथ पुनः बड़ी शालीनता से पेश आया- “मुझे सच-सच बताओ, बुधवार की रात तुम राज के साथ थीं या नहीं ? कुछ भी बोलने से पहले एक बात का खास ख्याल रखना, पुलिस से कोई भी बात छिपाना संगीन जुर्म होता है- जिसे कानून की जबान में ‘कंसीलमेंट ऑफ फैक्ट्स’ कहा जाता है, इस जुर्म को करने पर सख्त-से-सख्त सजा हो सकती है । इसलिये जो भी बात कहना, सोच-समझकर कहना । अब बताओ, तुम इसके साथ थीं या नहीं ?”
“मैं नहीं थी ।” डॉली बेहिचक बोली ।
“सच कह रही हो ?”
“मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ ।” डॉली की आवाज दृढ़ हो उठी ।
“एक बार फिर सोच लो । मैं तुम्हें फिर वार्निंग देता हूँ कि अगर तुम्हारा झूठ पकड़ा गया, तो कानून को गुमराह करने के ऐवज में तुम्हें बड़ी सख्त सजा दी जा सकती है ।”
“मुझे जो कहना था, मैंने कह दिया ।” डॉली थोड़ा झल्लाकर बोली- “मैं अगर बुधवार की रात राज के साथ नहीं थी, तो नहीं थी । दुनिया की कोई ताकत मुझसे जबरदस्ती कुछ भी नहीं कबूलवा सकती ।”
इंस्पेक्टर योगी हैरानी से डॉली को देखता रह गया ।
☐☐☐
फिर डॉली चली गयी ।
परन्तु वह रात राज के लिये कहर की रात साबित हुई ।
दिन भर तो योगी ने उससे कुछ भी न कहा, लेकिन रात होते ही वह उसके ऊपर वज्र की तरह टूट पड़ा ।
सारे दिन का भूखा-प्यासा था राज !
फिर ऊपर से वो भयानक प्रताड़ना ।
उसे टॉर्चर-रूम में उल्टा लटका दिया गया ।
लात-घूंसों से बेपनाह मारा ।
भारी-भरकम लोहे के रूलों से उसकी पिण्डलियों को रौंदा ।
राज चीखता रहा, चीखता रहा ।
लेकिन इंस्पेक्टर योगी उस रात अपनी मर्जी के मुताबिक उससे एक भी शब्द न कबूलवा सका, उस रात राज ने पहली बार अपनी दृढ़ता का परिचय दिया, इस बात का परिचय दिया कि एक आम आदमी भी फौलाद हो सकता है ।
उसकी हृदयविदारक चीखें पुलिस स्टेशन की दीवारों को दहलाती रहीं ।
वह हिचकियां ले-लेकर रोता रहा ।
न जाने कब तक इंस्पेक्टर योगी का कोप उस पर बरसा ।
कब तक कहर टूटा ।
यह खुद राज को भी मालूम न था ।
लेकिन हाँ, उसे सिर्फ इतना मालूम था कि जब इंस्पेक्टर योगी उसे मारते-मारते बुरी तरह थक गया, तो उसने आवेश में उसे दोनों बाजुओं में भरकर सिर से ऊपर उठा लिया तथा फिर उसे धड़ाम से नीचे पटक डाला ।
राज के कण्ठ से एक अत्यन्त कष्टदायक चीख निकली ।
फिर उसकी चेतना लुप्त होती चली गयी ।
अगला दिन बड़ा महत्वपूर्ण था- इंस्पेक्टर योगी ने एफ.आई.आर. (प्राथमिक सूचना रिपोर्ट) के आधार पर राज को लोअर कोर्ट में पेश कर दिया ।
☐☐☐
कोर्ट की दर्शक दीर्घा उस दिन दर्शकों से खचाखच भरी थी ।
राज विटनेस बॉक्स में खड़ा था ।
इंस्पेक्टर योगी ने रात भर उसकी ऐसी जमकर धुनाई की थी कि इस समय तो शक्ल-सूरत से ही कोई चोर-उचक्का मालूम दे रहा था । आंखों के पपोटे सूज-सूजकर मोटे हो गये थे, पूरे शरीर पर दर्जनों जगह खरोंच के निशान थे, शेव बढ़ी हुई, भूख और बेतहाशा कमजोरी के कारण आंखों के गिर्द काले गुंजान दायरे थिरकते हुए ।
टांगों में इतनी अधिक पीड़ा और कम्पन था कि खुद को विटनेस बॉक्स में खड़ा रखने की कोशिश में ही उसके मुँह से बार-बार कराह निकल रही थी ।
तभी एक बेहद रौबीली पर्सनेलिटी वाला जज अपने चैम्बर से निकलकर कुर्सी पर आकर बैठ गया, उसकी आयु चालीस-पैंतालीस के बीच थी ।
कुर्सी पर बैठते ही उसने एक भरपूर दृष्टि राज पर डाली, पहली नजर में ही उसे राज की तेज पीड़ा का अहसास हो गया ।
“मिस्टर राज !” शायद इसीलिये जज उससे थोड़ा सहानुभूतिपूर्वक पेश आया- “क्या तुमने कोर्ट में अपना डिफेंस (बचाव पक्ष) प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील किया है ?”
“न...नहीं मी लॉर्ड !” राज ने आहिस्ता से इंकार में गर्दन हिला दी ।
“अगर तुम अपना डिफेंस प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील चाहते हो ।” जज ने अपना ऐनक दुरुस्त किया- “तो सरकारी खर्चे पर तुम्हारे लिये डिफेंस काउंसल की व्यवस्था हो सकती है ।”
“न...नहीं ।” राज का कंपकंपाया स्वर- “म...मुझे ऐसी मेहरबानी की कोई जरूरत नहीं ।”
“ओ.के.- जैसी तुम्हारी इच्छा ।” जज ने अपने कंधे उचकाये, फिर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (सरकारी वकील) से सम्बोधित होकर बोला- “अटैन्ड टू स्टार्ट योअर वर्क मिस्टर प्रॉसीक्यूटर ।”
“थैंक्यू योअर ऑनर !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने जज के सामने सम्मानपूर्वक गर्दन झुकाई तथा फिर कोर्ट को बुधवार की रात से शुरू होने वाले उस बेहद सनसनीखेज घटनाक्रम के बारे में बताना शुरू किया ।
जिसमें हर पल नये-नये मोड़ आये थे, बेहद सनसनीखेज और चौंका देने वाले मोड़ ।
पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया ।
सनसनीखेज सन्नाटा ।
सब स्तब्ध-सी मुद्रा में बैठे शुरू से अंत तक घटे उस घटनाक्रम को सुनने लगे ।
पूरा घटनाक्रम इतना दिलचस्प और रोमांचकारी था कि लोग पलकें तक झपकाना भूल गये ।
दर्शक दीर्घा की प्रथम पंक्ति में इंस्पेक्टर योगी और बल्ले भी मौजूद थे, लेकिन डॉली कहीं नजर न आ रही थी ।
पूरा घटनाक्रम सुनाने के बाद पब्लिक प्रॉसीक्यूटर खामोश हो गया ।
परन्तु कोर्ट-रूम में अभी भी सन्नाटा था ।
सब मन्त्रमुग्ध से बैठे थे ।
“मिस्टर राज !” पूरा घटनाक्रम और उस पर लगाये गये सभी आरोप सुनने के पश्चात् जज ने राज की तरफ देखा- “क्या तुम अपना अपराध कबूल करते हो कि चीना पहलवान की हत्या तुम्हीं ने की ?”
“नहीं ।” दर्द से बुरी तरह कराहते होने के बावजूद राज ने जज के सवाल का जोरदार शब्दों में खण्डन किया- “चीना पहलवान की हत्या मैंने नहीं की । मैं बेगुनाह हूँ । निर्दोष हूँ ।”
“अगर तुम निर्दोष हो ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अपने चिर-परिचित अंदाज में गला फाड़कर चिल्लाया- “अगर तुमने सचमुच चीना पहलवान की हत्या नहीं की, तो तुम हादसे वाली रात यानि बुधवार की रात इंडिया गेट के इलाके में क्या कर रहे थे ? जहाँ फ्लाइंग स्क्वॉयड की तीन गश्तीदल गाड़ियों ने हड़ताल होने की वजह से तुम्हारी ऑटो का नम्बर नोट किया ? इसके अलावा एक सब-इंस्पेक्टर ने उस रात स्पीडिंग के अपराध में तुम्हारी ऑटो रिक्शा को रोका भी मिस्टर राज ! यह बात अलग है कि तुम उसे एक लड़की के पेट से होने का खूबसूरत धोखा देकर वहाँ से भाग निकलने में कामयाब हो गये । और क्या यह सच नहीं है कि जिस रहस्यमयी लड़की को तुम पेट से बता रहे थे, वह लड़की वास्तव में पेट से नहीं थी । सच्चाई ये है कि वो लड़की एक लाश पर लेटी थी और वह लाश !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने पूरी ताकत से अपना हलक फाड़ा- “चीना पहलवान की लाश थी मी लॉर्ड ! चीना पहलवान की लाश ।”
“यह सब झूठ है ।” विटनेस बॉक्स में खड़ा राज भी चिल्ला उठा- “झूठ है । मुझे जबरदस्ती चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में फंसाया जा रहा है ।”
“अगर हम तुम्हें चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में जबरदस्ती फंसा रहे हैं मिस्टर राज !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के होंठों पर कुटिल मुस्कान दौड़ी- “अगर हम सब झूठ बोल रहे हैं तो ठीक है, फिर तुम्हीं बताओ कि आखिर सच्चाई क्या है ? क्या है वो हकीकत, जिसे तुम अभी तक हम तमाम लोगों से छिपाये हुए हो ?”
“स...सच्चाई ये है ।” राज अपनी आवाज में यकीन पैदा करता हुआ बोला- “कि बुधवार की रात मेरी ऑटो रिक्शा में सचमुच गर्भ धारण किये हुए एक लड़की मौजूद थी ।”
“वो लड़की !” हंसा पब्लिक प्रॉसीक्यूटर- “जिसकी फौरन डिलीवरी होने वाली थी, जिसे तुम फौरन किसी हॉस्पिटल में भर्ती कराने के लिये ले जा रहे थे, लेकिन इंस्पेक्टर योगी- जो इस केस के आई.ओ. (इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर) हैं, उनकी इन्वेस्टीगेशन यह बताती है मी लार्ड !” वह पुनः गला फाड़कर चिल्लाया- “कि बुधवार की रात दिल्ली शहर के किसी भी हॉस्पिटल के किसी भी मेटरनिटी वार्ड में उस समय के आसपास डिलीवरी का कोई केस भर्ती ही नहीं हुआ । और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने गरजते हुए ही कहा- “कि मिस्टर राज कानून को उस लड़की का नाम बताने से भी परहेज कर रहे हैं, जो बुधवार की रात इनकी ऑटो रिक्शा में थी । क्या इसी एक प्वॉइंट से साबित नहीं हो जाता कि मिस्टर राज जो कुछ भी कह रहे हैं, वह सिर्फ झूठ का एक पुलिन्दा है, बकवास है । मिस्टर राज ने इस मनगगढ़ंत कहानी की रचना ही इसलिये की है, ताकि यह कानून को धोखा दे सकें, अदालत की आंखों में धूल झोक सकें । जबकि सच्चाई ये है मी लॉर्ड, मिस्टर राज इस बात को जानते हैं कि अगर इन्होंने उस लड़की का नाम अदालत को बता दिया, तो वह लड़की भरी हुई अदालत के सामने इतने बड़े झूठ को किसी भी हालत में कबूल नहीं करेगी कि उसके कोई बच्चा होने वाला था । क्योंकि लड़की चाहे कोई भी हो, किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित हो, लेकिन वो अपनी इज्जत पर कैसा भी कोई झूठा दाग लगना पसंद नहीं करेगी ।”
राज खामोश खड़ा सुनता रहा ।
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की जबान से निकला एक-एक शब्द उसके कानों में पिघले हुए सीसे की तरह गिर रहा था ।
“मिस्टर राज !” रौबदार पर्सनेलिटी वाला जज एक बार फिर राज से सम्बोधित हुआ- “अगर तुम किसी खास वजह से लड़की का नाम गुप्त रखना चाहते हो, तो तुम्हें कम-से-कम उस हॉस्पिटल का नाम तो जरूर ही अदालत को बताना पड़ेगा, जिसके मेटरनिटी वार्ड में तुमने उस रात लड़की को एडमिट कराया था ।”
“मैं उस हॉस्पिटल का नाम भी अदालत को नहीं बता सकता ।”
“मी लार्ड!” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अब क्रोध में चिल्ला उठा- “मुल्जिम जबरदस्ती इस केस को उलझाने की कोशिश कर रहा है, जबकि पूरा केस ओपन एण्ड शट केस है । इसलिये अदालत का मुल्जिम से यह पूछा जाना कि बुधवार की रात उसने लड़की को किस हॉस्पिटल में भर्ती कराया था, बिल्कुल बेतुका है, तर्कहीन है । क्योंकि मी लॉर्ड, दिल्ली पुलिस के बेहद काबिल इंस्पेक्टर मिस्टर योगी पहले ही इस बात की खूब जांच-पड़ताल कर चुके हैं कि बुधवार की रात मेटरनिटी वार्डों में उस समय के आसपास कहीं कोई भर्ती हुई ही नहीं थी । हॉस्पिटल का या उस लड़की का नाम न बताकर मुल्जिम खुद बार-बार यह कबूल रहा है कि वह झूठा है और उसके बयान में कोई जान नहीं ।”
जज ने खामोशी के साथ कुर्सी पर पहलू बदला ।
“मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर पुनः चिल्लाया था- “इंस्पेक्टर योगी की इन्वेस्टीगेशन की वजह से पूरा केस आइने की तरह साफ़ हो चुका है, इसलिये अब मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगा कि वो मुल्जिम के शब्द जाल में फंसकर अपना बहुमूल्य समय नष्ट करने की बजाय उन ढ़ेरों सवालों की तरफ ध्यान दे, जिनका अभी तक मुल्जिम ने कोई जवाब नहीं दिया है । जैसे सवाल नम्बर एक- चीना पहलवान ने जिससे रीगल सिनेमा के सामने ब्रीफकेस छीना, वह व्यक्ति कौन था ? सवाल नम्बर दो- उस ब्रीफकेस के अंदर क्या था ? सवाल नम्बर तीन- वह रहस्यमयी लड़की कौन थी, जो मण्डी हाउस के इलाके में मुल्जिम की ऑटो रिक्शा के अंदर देखी गयी और जिसे मुल्जिम ने पेट से बताया ?”
“मैं बताता हूँ कि वो रहस्यमयी लड़की कौन थी ।”
तभी कोर्ट-रूम में एक गरजती हुई आवाज गूंजी ।
बिल्कुल अजनबी आवाज ।
उस आवाज ने सबको चौंका दिया ।
सबकी निगाह खुद-ब-खुद गेट की तरफ चली गई ।
और अगला क्षण, एक और धमाके का क्षण था ।
सचमुच उस पूरे कथानक में एक के बाद एक चौंका देने वाली घटनाओं का जन्म हो रहा था ।
कोर्ट-रूम के दरवाजे पर उन सब लोगों ने जिस व्यक्ति को खड़े देखा, उसे देखकर सभी भौंचक्के रह गये ।
सबके शरीर का प्रत्येक अंग यूं फ्रीज हो गया, मानो उसे लकवा मार गया हो ।
☐☐☐
पुलिस स्टेशन में दाखिल होते ही डॉली की नजर राज की नाजुक हालत पर पड़ी ।
उसके तार-तार हुए कपड़े, गालों पर सुख चुके आंसू, बिखरे हुए बाल और चेहरे से टपकती मनहूसियत ।
वह सब बातें राज के साथ हुए जुल्म की चीख-चीखकर गवाही दे रही थीं ।
डॉली का दिल रो पड़ा ।
खुद राज भी तड़पकर रह गया था ।
उसे ऐसा लगा, मानो डॉली की आंसुओं से छलछलाई आंखें उससे कह रही हैं- “मैं तेरे से पहले ही कहती थी न राज, इस चक्कर में मत पड़, मत पड़ । फंस जायेगा । लेकिन नहीं, तब तो दौलत ने तेरी आंखों पर लालच की पट्टी बांध दी थी, तब तो तुझे अपनी किस्मत के बंद कपाट खुलते नजर आ रहे थे, तब तो तुझे ऐसा लग रहा था- मानो साक्षात् लक्ष्मी तेरे दरवाजे पर खड़ी दस्तक दे रही है ।”
राज सिसककर रह गया ।
उसके दिल ने चाहा, वह डॉली से चीख-चीखकर माफी मांगे ।
वह वाकई गलती पर था ।
उससे सचमुच भयंकर भूल हुई थी ।
लेकिन वो कैसे कहता ?
उसकी जबान को तो उस पल लकवा मार गया था ।
“तुम्हारा ही नाम डॉली है ?” तभी इंस्पेक्टर योगी, डॉली से सम्बोधित हुआ ।
“जी...जी हाँ ।”
“तुम्हें यह तो मालूम ही होगा ।” योगी शालीन शब्दों का प्रयोग करता हुआ बोला- “कि हमने राज को यहाँ किस अपराध में पकड़कर रखा है ? इसलिये उन सब बातों को दोहराने से कोई फायदा नहीं । दरअसल तुम्हें यहाँ इसलिये बुलाया गया है, क्योंकि इन सब-इंस्पेक्टर महोदय ने !” योगी ने फ्लाइंग स्क्वॉयड के सब-इंस्पेक्टर की तरफ इशारा किया- “बुधवार की रात राज की ऑटो रिक्शा को मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोका था । इन सब-इंस्पेक्टर महोदय का कहना है कि उस वक्त राज की ऑटो रिक्शा में एक लड़की भी थी, जिसे यह पेट से बता रहा था । तुम्हें सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है और सच-सच देना है, क्या वो लड़की तुम थीं ?”
डॉली ने सकपकायी-सी नजरों से राज की तरफ देखा ।
“तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ।” योगी बोला- “जो बात है, बेहिचक बताओ । हम तुम्हें सरकारी गवाह बना लेंगे ।”
राज ने आहिस्ता से डॉली की तरफ इंकार में गर्दन हिलाई ।
“साले !” बल्ले चिल्ला उठा- “लड़की को बहकाता है, उसे झूठ बोलने के लिए कहता है । तेरी तो... ।”
“गाली नहीं ।” योगी ने उसे बीच में ही घुड़क दिया- “गाली नहीं बल्ले- किसी भी लड़की के सामने गाली नहीं चलेगी ।”
“मगर यह लड़की को बहका रहा है साहब !” बल्ले धधकते स्वर में बोला- “आंखों-ही-आंखों में उसे मना करने के लिये बोल रहा है ।”
“मुझे सब मालूम है, सब दिख रहा है मुझे ।” योगी, राज को आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ फुंफकारा- “इसका मैं बाद में इंतजाम करूंगा, पहले लड़की से सवाल-जवाब कर लूं ।”
बल्ले तिलमिलाकर रह गया ।
“देखो डॉली !” योगी, डॉली के साथ पुनः बड़ी शालीनता से पेश आया- “मुझे सच-सच बताओ, बुधवार की रात तुम राज के साथ थीं या नहीं ? कुछ भी बोलने से पहले एक बात का खास ख्याल रखना, पुलिस से कोई भी बात छिपाना संगीन जुर्म होता है- जिसे कानून की जबान में ‘कंसीलमेंट ऑफ फैक्ट्स’ कहा जाता है, इस जुर्म को करने पर सख्त-से-सख्त सजा हो सकती है । इसलिये जो भी बात कहना, सोच-समझकर कहना । अब बताओ, तुम इसके साथ थीं या नहीं ?”
“मैं नहीं थी ।” डॉली बेहिचक बोली ।
“सच कह रही हो ?”
“मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ ।” डॉली की आवाज दृढ़ हो उठी ।
“एक बार फिर सोच लो । मैं तुम्हें फिर वार्निंग देता हूँ कि अगर तुम्हारा झूठ पकड़ा गया, तो कानून को गुमराह करने के ऐवज में तुम्हें बड़ी सख्त सजा दी जा सकती है ।”
“मुझे जो कहना था, मैंने कह दिया ।” डॉली थोड़ा झल्लाकर बोली- “मैं अगर बुधवार की रात राज के साथ नहीं थी, तो नहीं थी । दुनिया की कोई ताकत मुझसे जबरदस्ती कुछ भी नहीं कबूलवा सकती ।”
इंस्पेक्टर योगी हैरानी से डॉली को देखता रह गया ।
☐☐☐
फिर डॉली चली गयी ।
परन्तु वह रात राज के लिये कहर की रात साबित हुई ।
दिन भर तो योगी ने उससे कुछ भी न कहा, लेकिन रात होते ही वह उसके ऊपर वज्र की तरह टूट पड़ा ।
सारे दिन का भूखा-प्यासा था राज !
फिर ऊपर से वो भयानक प्रताड़ना ।
उसे टॉर्चर-रूम में उल्टा लटका दिया गया ।
लात-घूंसों से बेपनाह मारा ।
भारी-भरकम लोहे के रूलों से उसकी पिण्डलियों को रौंदा ।
राज चीखता रहा, चीखता रहा ।
लेकिन इंस्पेक्टर योगी उस रात अपनी मर्जी के मुताबिक उससे एक भी शब्द न कबूलवा सका, उस रात राज ने पहली बार अपनी दृढ़ता का परिचय दिया, इस बात का परिचय दिया कि एक आम आदमी भी फौलाद हो सकता है ।
उसकी हृदयविदारक चीखें पुलिस स्टेशन की दीवारों को दहलाती रहीं ।
वह हिचकियां ले-लेकर रोता रहा ।
न जाने कब तक इंस्पेक्टर योगी का कोप उस पर बरसा ।
कब तक कहर टूटा ।
यह खुद राज को भी मालूम न था ।
लेकिन हाँ, उसे सिर्फ इतना मालूम था कि जब इंस्पेक्टर योगी उसे मारते-मारते बुरी तरह थक गया, तो उसने आवेश में उसे दोनों बाजुओं में भरकर सिर से ऊपर उठा लिया तथा फिर उसे धड़ाम से नीचे पटक डाला ।
राज के कण्ठ से एक अत्यन्त कष्टदायक चीख निकली ।
फिर उसकी चेतना लुप्त होती चली गयी ।
अगला दिन बड़ा महत्वपूर्ण था- इंस्पेक्टर योगी ने एफ.आई.आर. (प्राथमिक सूचना रिपोर्ट) के आधार पर राज को लोअर कोर्ट में पेश कर दिया ।
☐☐☐
कोर्ट की दर्शक दीर्घा उस दिन दर्शकों से खचाखच भरी थी ।
राज विटनेस बॉक्स में खड़ा था ।
इंस्पेक्टर योगी ने रात भर उसकी ऐसी जमकर धुनाई की थी कि इस समय तो शक्ल-सूरत से ही कोई चोर-उचक्का मालूम दे रहा था । आंखों के पपोटे सूज-सूजकर मोटे हो गये थे, पूरे शरीर पर दर्जनों जगह खरोंच के निशान थे, शेव बढ़ी हुई, भूख और बेतहाशा कमजोरी के कारण आंखों के गिर्द काले गुंजान दायरे थिरकते हुए ।
टांगों में इतनी अधिक पीड़ा और कम्पन था कि खुद को विटनेस बॉक्स में खड़ा रखने की कोशिश में ही उसके मुँह से बार-बार कराह निकल रही थी ।
तभी एक बेहद रौबीली पर्सनेलिटी वाला जज अपने चैम्बर से निकलकर कुर्सी पर आकर बैठ गया, उसकी आयु चालीस-पैंतालीस के बीच थी ।
कुर्सी पर बैठते ही उसने एक भरपूर दृष्टि राज पर डाली, पहली नजर में ही उसे राज की तेज पीड़ा का अहसास हो गया ।
“मिस्टर राज !” शायद इसीलिये जज उससे थोड़ा सहानुभूतिपूर्वक पेश आया- “क्या तुमने कोर्ट में अपना डिफेंस (बचाव पक्ष) प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील किया है ?”
“न...नहीं मी लॉर्ड !” राज ने आहिस्ता से इंकार में गर्दन हिला दी ।
“अगर तुम अपना डिफेंस प्रस्तुत करने के लिये कोई वकील चाहते हो ।” जज ने अपना ऐनक दुरुस्त किया- “तो सरकारी खर्चे पर तुम्हारे लिये डिफेंस काउंसल की व्यवस्था हो सकती है ।”
“न...नहीं ।” राज का कंपकंपाया स्वर- “म...मुझे ऐसी मेहरबानी की कोई जरूरत नहीं ।”
“ओ.के.- जैसी तुम्हारी इच्छा ।” जज ने अपने कंधे उचकाये, फिर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (सरकारी वकील) से सम्बोधित होकर बोला- “अटैन्ड टू स्टार्ट योअर वर्क मिस्टर प्रॉसीक्यूटर ।”
“थैंक्यू योअर ऑनर !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने जज के सामने सम्मानपूर्वक गर्दन झुकाई तथा फिर कोर्ट को बुधवार की रात से शुरू होने वाले उस बेहद सनसनीखेज घटनाक्रम के बारे में बताना शुरू किया ।
जिसमें हर पल नये-नये मोड़ आये थे, बेहद सनसनीखेज और चौंका देने वाले मोड़ ।
पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया ।
सनसनीखेज सन्नाटा ।
सब स्तब्ध-सी मुद्रा में बैठे शुरू से अंत तक घटे उस घटनाक्रम को सुनने लगे ।
पूरा घटनाक्रम इतना दिलचस्प और रोमांचकारी था कि लोग पलकें तक झपकाना भूल गये ।
दर्शक दीर्घा की प्रथम पंक्ति में इंस्पेक्टर योगी और बल्ले भी मौजूद थे, लेकिन डॉली कहीं नजर न आ रही थी ।
पूरा घटनाक्रम सुनाने के बाद पब्लिक प्रॉसीक्यूटर खामोश हो गया ।
परन्तु कोर्ट-रूम में अभी भी सन्नाटा था ।
सब मन्त्रमुग्ध से बैठे थे ।
“मिस्टर राज !” पूरा घटनाक्रम और उस पर लगाये गये सभी आरोप सुनने के पश्चात् जज ने राज की तरफ देखा- “क्या तुम अपना अपराध कबूल करते हो कि चीना पहलवान की हत्या तुम्हीं ने की ?”
“नहीं ।” दर्द से बुरी तरह कराहते होने के बावजूद राज ने जज के सवाल का जोरदार शब्दों में खण्डन किया- “चीना पहलवान की हत्या मैंने नहीं की । मैं बेगुनाह हूँ । निर्दोष हूँ ।”
“अगर तुम निर्दोष हो ।” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अपने चिर-परिचित अंदाज में गला फाड़कर चिल्लाया- “अगर तुमने सचमुच चीना पहलवान की हत्या नहीं की, तो तुम हादसे वाली रात यानि बुधवार की रात इंडिया गेट के इलाके में क्या कर रहे थे ? जहाँ फ्लाइंग स्क्वॉयड की तीन गश्तीदल गाड़ियों ने हड़ताल होने की वजह से तुम्हारी ऑटो का नम्बर नोट किया ? इसके अलावा एक सब-इंस्पेक्टर ने उस रात स्पीडिंग के अपराध में तुम्हारी ऑटो रिक्शा को रोका भी मिस्टर राज ! यह बात अलग है कि तुम उसे एक लड़की के पेट से होने का खूबसूरत धोखा देकर वहाँ से भाग निकलने में कामयाब हो गये । और क्या यह सच नहीं है कि जिस रहस्यमयी लड़की को तुम पेट से बता रहे थे, वह लड़की वास्तव में पेट से नहीं थी । सच्चाई ये है कि वो लड़की एक लाश पर लेटी थी और वह लाश !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने पूरी ताकत से अपना हलक फाड़ा- “चीना पहलवान की लाश थी मी लॉर्ड ! चीना पहलवान की लाश ।”
“यह सब झूठ है ।” विटनेस बॉक्स में खड़ा राज भी चिल्ला उठा- “झूठ है । मुझे जबरदस्ती चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में फंसाया जा रहा है ।”
“अगर हम तुम्हें चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में जबरदस्ती फंसा रहे हैं मिस्टर राज !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के होंठों पर कुटिल मुस्कान दौड़ी- “अगर हम सब झूठ बोल रहे हैं तो ठीक है, फिर तुम्हीं बताओ कि आखिर सच्चाई क्या है ? क्या है वो हकीकत, जिसे तुम अभी तक हम तमाम लोगों से छिपाये हुए हो ?”
“स...सच्चाई ये है ।” राज अपनी आवाज में यकीन पैदा करता हुआ बोला- “कि बुधवार की रात मेरी ऑटो रिक्शा में सचमुच गर्भ धारण किये हुए एक लड़की मौजूद थी ।”
“वो लड़की !” हंसा पब्लिक प्रॉसीक्यूटर- “जिसकी फौरन डिलीवरी होने वाली थी, जिसे तुम फौरन किसी हॉस्पिटल में भर्ती कराने के लिये ले जा रहे थे, लेकिन इंस्पेक्टर योगी- जो इस केस के आई.ओ. (इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर) हैं, उनकी इन्वेस्टीगेशन यह बताती है मी लार्ड !” वह पुनः गला फाड़कर चिल्लाया- “कि बुधवार की रात दिल्ली शहर के किसी भी हॉस्पिटल के किसी भी मेटरनिटी वार्ड में उस समय के आसपास डिलीवरी का कोई केस भर्ती ही नहीं हुआ । और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने गरजते हुए ही कहा- “कि मिस्टर राज कानून को उस लड़की का नाम बताने से भी परहेज कर रहे हैं, जो बुधवार की रात इनकी ऑटो रिक्शा में थी । क्या इसी एक प्वॉइंट से साबित नहीं हो जाता कि मिस्टर राज जो कुछ भी कह रहे हैं, वह सिर्फ झूठ का एक पुलिन्दा है, बकवास है । मिस्टर राज ने इस मनगगढ़ंत कहानी की रचना ही इसलिये की है, ताकि यह कानून को धोखा दे सकें, अदालत की आंखों में धूल झोक सकें । जबकि सच्चाई ये है मी लॉर्ड, मिस्टर राज इस बात को जानते हैं कि अगर इन्होंने उस लड़की का नाम अदालत को बता दिया, तो वह लड़की भरी हुई अदालत के सामने इतने बड़े झूठ को किसी भी हालत में कबूल नहीं करेगी कि उसके कोई बच्चा होने वाला था । क्योंकि लड़की चाहे कोई भी हो, किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित हो, लेकिन वो अपनी इज्जत पर कैसा भी कोई झूठा दाग लगना पसंद नहीं करेगी ।”
राज खामोश खड़ा सुनता रहा ।
पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की जबान से निकला एक-एक शब्द उसके कानों में पिघले हुए सीसे की तरह गिर रहा था ।
“मिस्टर राज !” रौबदार पर्सनेलिटी वाला जज एक बार फिर राज से सम्बोधित हुआ- “अगर तुम किसी खास वजह से लड़की का नाम गुप्त रखना चाहते हो, तो तुम्हें कम-से-कम उस हॉस्पिटल का नाम तो जरूर ही अदालत को बताना पड़ेगा, जिसके मेटरनिटी वार्ड में तुमने उस रात लड़की को एडमिट कराया था ।”
“मैं उस हॉस्पिटल का नाम भी अदालत को नहीं बता सकता ।”
“मी लार्ड!” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अब क्रोध में चिल्ला उठा- “मुल्जिम जबरदस्ती इस केस को उलझाने की कोशिश कर रहा है, जबकि पूरा केस ओपन एण्ड शट केस है । इसलिये अदालत का मुल्जिम से यह पूछा जाना कि बुधवार की रात उसने लड़की को किस हॉस्पिटल में भर्ती कराया था, बिल्कुल बेतुका है, तर्कहीन है । क्योंकि मी लॉर्ड, दिल्ली पुलिस के बेहद काबिल इंस्पेक्टर मिस्टर योगी पहले ही इस बात की खूब जांच-पड़ताल कर चुके हैं कि बुधवार की रात मेटरनिटी वार्डों में उस समय के आसपास कहीं कोई भर्ती हुई ही नहीं थी । हॉस्पिटल का या उस लड़की का नाम न बताकर मुल्जिम खुद बार-बार यह कबूल रहा है कि वह झूठा है और उसके बयान में कोई जान नहीं ।”
जज ने खामोशी के साथ कुर्सी पर पहलू बदला ।
“मी लॉर्ड !” पब्लिक प्रॉसीक्यूटर पुनः चिल्लाया था- “इंस्पेक्टर योगी की इन्वेस्टीगेशन की वजह से पूरा केस आइने की तरह साफ़ हो चुका है, इसलिये अब मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगा कि वो मुल्जिम के शब्द जाल में फंसकर अपना बहुमूल्य समय नष्ट करने की बजाय उन ढ़ेरों सवालों की तरफ ध्यान दे, जिनका अभी तक मुल्जिम ने कोई जवाब नहीं दिया है । जैसे सवाल नम्बर एक- चीना पहलवान ने जिससे रीगल सिनेमा के सामने ब्रीफकेस छीना, वह व्यक्ति कौन था ? सवाल नम्बर दो- उस ब्रीफकेस के अंदर क्या था ? सवाल नम्बर तीन- वह रहस्यमयी लड़की कौन थी, जो मण्डी हाउस के इलाके में मुल्जिम की ऑटो रिक्शा के अंदर देखी गयी और जिसे मुल्जिम ने पेट से बताया ?”
“मैं बताता हूँ कि वो रहस्यमयी लड़की कौन थी ।”
तभी कोर्ट-रूम में एक गरजती हुई आवाज गूंजी ।
बिल्कुल अजनबी आवाज ।
उस आवाज ने सबको चौंका दिया ।
सबकी निगाह खुद-ब-खुद गेट की तरफ चली गई ।
और अगला क्षण, एक और धमाके का क्षण था ।
सचमुच उस पूरे कथानक में एक के बाद एक चौंका देने वाली घटनाओं का जन्म हो रहा था ।
कोर्ट-रूम के दरवाजे पर उन सब लोगों ने जिस व्यक्ति को खड़े देखा, उसे देखकर सभी भौंचक्के रह गये ।
सबके शरीर का प्रत्येक अंग यूं फ्रीज हो गया, मानो उसे लकवा मार गया हो ।
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