hotaks444
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बहुत ही कस-म-कस का वक़्त था. चलते हुए अचनाक ही अमृता चिल्लाई..... "गाड़ी रोको, गाड़ी रोको"....
मानस..... क्या हुआ मोम गाड़ी क्यों रोकनी है...
अमृता.... पहली बार बहू से मिलने जा रहे हैं, खाली हाथ थोड़े ना जाएँगे. रोड के दूसरी ओर की जेवल्लरी शॉप पर गाड़ी ले ले.
मानस.... बहू ??? पर वो तो अभी....
अमृता..... चुप कर, पता नही तुझे क्या हुआ है, हर बात पर ऐसे रिक्ट कर रहा जैसे मैने कोई बॉम्ब फोड़ा हो. गाड़ी दूसरी ओर ले.
मानस, चुप-चाप गाड़ी जेवल्लरी शॉप की ओर ले लिया. जल्दी-जल्दी जेवल्लारी का एक सेट खरीदने के बाद गाड़ी एक बार फिर साड़ी शॉप
मे रुकी जहाँ से अमृता ने ड्रस्टी के लिए साड़ी की शॉप्पिग किया. तकरीबन 12पीयेम बजे तक सब नताली के घर पहुचे.
घर मे ड्रस्टी अकेली थी, और वंश लंबी छुट्टी पर यानी की तीर्थ पर गया हुआ था. दरवाजे पर दस्तक हुई और ड्रस्टी ने दरवाजा खोला. सामने
मानस के साथ अमृता और हर्षवर्धन को देख कर वो थोड़ी हैरान रह गयी. फिर से अपने माथे पर चुन्नी लेती, हाथ उठा कर सलाम की.
उसकी तहज़ीब देख कर अमृता, हर्ष का चेहरा देखने लगी. खैर सब अंदर आए, तब तक ड्रस्टी किचन मे घुस चुकी थी और सब के लिए चाय बना कर लेती आई. ड्रस्टी झुक कर जब अमृता को चाय दे रही थी, अमृता उस के सिर पर हाथ फेरती.... "तू बैठ मेरे पास"
अजीब सी उलझन के साथ ड्रस्टी, अमृता के पास बैठी. अमृता उसे सगुन देती हुई कहने लगे..... "मुझे बहुत प्यारी लगी तुम, पर क्या तुम्हारे
घर वालों को इसका पता है"
ड्रस्टी, अमृता की बात पर कुछ नही बोल पाई, बस मानस की ओर देखती रह गयी....... मानस, ड्रस्टी की ओर से जबाव देते हुए कहा.....
"नही ड्रस्टी के घर वालों को नही पता. इस रिश्ते की सब से बड़ी उलझन मे हम फसे हैं"
अमृता.... कमाल है, दोनो की इतनी प्यारी जोड़ी है और दोनो इतने मायूस. कोई चिंता करने की ज़रूरत नही, मैं वादा करती हूँ मैं तुम दोनो
की शादी करवाउन्गी... अब चलो जाओ दोनो घूमो-फ़िरो और सारी चिंता हम पर छोड़ दो. क्यों हर्ष, तुम भी तो कुछ बोलो...
हर्ष... हन-हन दोनो जाओ घूमो-फ़िरो, बाकी सारी चिंताएँ हम पर छोड़ दो.
मानस.... पर मोम-डॅड, मुझे अभी ऑफीस जाना है. अभी ही टेंडर खुला है, बहुत सारे काम है ऑफीस मे. उपर से मैं पहले से लेट हूँ.....
हर्ष, आखें दिखाते..... नताली है ना वो संभाल लेगी सब. जितना कहा उतना करो और कोई ज़िद नही.
मानस.... पर आप लोग कैसे जाएँगे... चलो मैं ड्रॉप तो कर दूं आप को.
अमृता.... उस की कोई ज़रूरत नही. घर से हम कार बुलवा लेंगे. अब जाओ भी....
ना माने दोनो, और उन दोनो को बाहर भेज कर ही दम लिए....... जाते जाते ड्रस्टी हँसती हुई अमृता के गले लग गयी.......
मानस..... क्या हुआ मोम गाड़ी क्यों रोकनी है...
अमृता.... पहली बार बहू से मिलने जा रहे हैं, खाली हाथ थोड़े ना जाएँगे. रोड के दूसरी ओर की जेवल्लरी शॉप पर गाड़ी ले ले.
मानस.... बहू ??? पर वो तो अभी....
अमृता..... चुप कर, पता नही तुझे क्या हुआ है, हर बात पर ऐसे रिक्ट कर रहा जैसे मैने कोई बॉम्ब फोड़ा हो. गाड़ी दूसरी ओर ले.
मानस, चुप-चाप गाड़ी जेवल्लरी शॉप की ओर ले लिया. जल्दी-जल्दी जेवल्लारी का एक सेट खरीदने के बाद गाड़ी एक बार फिर साड़ी शॉप
मे रुकी जहाँ से अमृता ने ड्रस्टी के लिए साड़ी की शॉप्पिग किया. तकरीबन 12पीयेम बजे तक सब नताली के घर पहुचे.
घर मे ड्रस्टी अकेली थी, और वंश लंबी छुट्टी पर यानी की तीर्थ पर गया हुआ था. दरवाजे पर दस्तक हुई और ड्रस्टी ने दरवाजा खोला. सामने
मानस के साथ अमृता और हर्षवर्धन को देख कर वो थोड़ी हैरान रह गयी. फिर से अपने माथे पर चुन्नी लेती, हाथ उठा कर सलाम की.
उसकी तहज़ीब देख कर अमृता, हर्ष का चेहरा देखने लगी. खैर सब अंदर आए, तब तक ड्रस्टी किचन मे घुस चुकी थी और सब के लिए चाय बना कर लेती आई. ड्रस्टी झुक कर जब अमृता को चाय दे रही थी, अमृता उस के सिर पर हाथ फेरती.... "तू बैठ मेरे पास"
अजीब सी उलझन के साथ ड्रस्टी, अमृता के पास बैठी. अमृता उसे सगुन देती हुई कहने लगे..... "मुझे बहुत प्यारी लगी तुम, पर क्या तुम्हारे
घर वालों को इसका पता है"
ड्रस्टी, अमृता की बात पर कुछ नही बोल पाई, बस मानस की ओर देखती रह गयी....... मानस, ड्रस्टी की ओर से जबाव देते हुए कहा.....
"नही ड्रस्टी के घर वालों को नही पता. इस रिश्ते की सब से बड़ी उलझन मे हम फसे हैं"
अमृता.... कमाल है, दोनो की इतनी प्यारी जोड़ी है और दोनो इतने मायूस. कोई चिंता करने की ज़रूरत नही, मैं वादा करती हूँ मैं तुम दोनो
की शादी करवाउन्गी... अब चलो जाओ दोनो घूमो-फ़िरो और सारी चिंता हम पर छोड़ दो. क्यों हर्ष, तुम भी तो कुछ बोलो...
हर्ष... हन-हन दोनो जाओ घूमो-फ़िरो, बाकी सारी चिंताएँ हम पर छोड़ दो.
मानस.... पर मोम-डॅड, मुझे अभी ऑफीस जाना है. अभी ही टेंडर खुला है, बहुत सारे काम है ऑफीस मे. उपर से मैं पहले से लेट हूँ.....
हर्ष, आखें दिखाते..... नताली है ना वो संभाल लेगी सब. जितना कहा उतना करो और कोई ज़िद नही.
मानस.... पर आप लोग कैसे जाएँगे... चलो मैं ड्रॉप तो कर दूं आप को.
अमृता.... उस की कोई ज़रूरत नही. घर से हम कार बुलवा लेंगे. अब जाओ भी....
ना माने दोनो, और उन दोनो को बाहर भेज कर ही दम लिए....... जाते जाते ड्रस्टी हँसती हुई अमृता के गले लग गयी.......