hotaks444
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स्नेहा को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया हो... और वो अपने हाथों से ज़ोर-ज़ोर से उसे उपर नीचे करने लगी... मनु अपना पूरा होश-हवास खो बैठा.... उसने स्नेहा के स्तन को दोनो हाथों से ज़ोर से दबाया. मनु बड़ी ही तेज़ी के साथ स्नेहा के उपर आ गया और नीचे हाथ ले जाकर स्नेहा के दोनो पाँव के बीच जगह बनाया.. और बेकाबू लिंग को.. जल रही योनि मे पूरे ज़ोर के साथ धक्का दिया....
स्नेहा ने मुत्ठियों मे चादर को भिंचे लंबी सिसकारी लेती अपनी छाती को उपर उठा ली, और अपने सिर दाएँ बाएँ घुमाती पूरे बालो को अपने चेहरे पर बिखेर ली ..... ऐसा मज़ा जो दोनो ने कभी पहले ना लिया हो...
हर धक्कों पर मज़ा बढ़ रहा था, सिसकारियाँ तेज और लंबी होती चली जा रही थी... मज़े से सिसकारी भरती स्नेहा ने अपने दोनो हाथों से मनु की पीठ को दबोच ली.....
मनु के धक्कों के उपर कोई कंट्रोल ना रहा ... वो तो बस ... "ओह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह" करता तेज-तेज धक्के लगा रहा था... स्नेहा का भी वही हाल था... उसकी कमर खुद व खुद तेज़ी से हिल रही थी... और वो भी बससस्स
"इस्शह..... आहह..... यसस्स्सस्स..... मानूनन्ञनननणणन्" करती मनु की पीठ को भींच रही थी....
दोनो अपने काम के चरम पर थे. स्नेहा का बदन तेज़ी से अकड़ गया... और उसकी मस्ती का उन्माद उसकी योनि से बहने लगा.... और जब ये हुआ... स्नेहा बिल्कुल निढाल पड़ गयी... उसके कुच्छ ही देर बाद ... मनु की भी एक तेज "आहह" निकली ... और उसकी भी चर्म सीमा पूरी हो गयी.... और अपने कम के निकलते ही पूरा हल्का होकर निढाल उसके उपर गिर गया.... दोनो एक दूसरे की बाहों मे एक प्यारी रात बिताए.... अगली सुबह प्यार भरी हसीन सुबह.....
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अगली सुबह.....
मनु बड़े प्यार से स्नेहा के बालों मे कंघी करते हुए उसकी चोटी बना रहा था. स्नेहा की हँसी रुक ही नही रही थी, और मनु लगा हुआ था....
स्नेहा.... हीहीहीए .... मनु तुम्हे ऑफीस नही जाना क्या जो यहाँ मेरे बाल बना रहे हो...
मनु..... काम कर तो रहा हूँ, अब एक काम ख़तम हो, तो ना दूसरे काम पर जाउ.
स्नेहा.... अच्छा बाबा समझ गयी. ये बताओ यहाँ चल क्या रहा है मनु, बहुत कुछ छिपाया जा रहा है मुझ से हां.... और तुम मानस भाई साब के साथ ऐसा कर कैसे सकते हो. उपर से जब मैं तुम से कई बार कह चुकी हूँ कि वंश सर बुरे नही हैं, फिर भी तुम ने उनके अगेन्स्ट आक्षन ले लिया... अब यहाँ चल क्या रहा है बताओगे....
मनु उसे सारी प्लॅनिंग समझाते हुए कहने लगा..... "बस एक आखरी खेल समझो, फिर हमे कोई परेशान करने वाला नही होगा"
स्नेहा.... मनु क्या ये खेल ज़रूरी है... छोड़ दो जाने दो. हम किस से लड़ रहे हैं, अपनो से ही. वो कुछ करे या हम उसका कुछ जबाव दे, इज़्ज़त तो हमारी ही उछलती है ना. क्या ये मसला प्यार से बात करते हुए हल नही हो सकता.
स्नेहा ने मुत्ठियों मे चादर को भिंचे लंबी सिसकारी लेती अपनी छाती को उपर उठा ली, और अपने सिर दाएँ बाएँ घुमाती पूरे बालो को अपने चेहरे पर बिखेर ली ..... ऐसा मज़ा जो दोनो ने कभी पहले ना लिया हो...
हर धक्कों पर मज़ा बढ़ रहा था, सिसकारियाँ तेज और लंबी होती चली जा रही थी... मज़े से सिसकारी भरती स्नेहा ने अपने दोनो हाथों से मनु की पीठ को दबोच ली.....
मनु के धक्कों के उपर कोई कंट्रोल ना रहा ... वो तो बस ... "ओह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह" करता तेज-तेज धक्के लगा रहा था... स्नेहा का भी वही हाल था... उसकी कमर खुद व खुद तेज़ी से हिल रही थी... और वो भी बससस्स
"इस्शह..... आहह..... यसस्स्सस्स..... मानूनन्ञनननणणन्" करती मनु की पीठ को भींच रही थी....
दोनो अपने काम के चरम पर थे. स्नेहा का बदन तेज़ी से अकड़ गया... और उसकी मस्ती का उन्माद उसकी योनि से बहने लगा.... और जब ये हुआ... स्नेहा बिल्कुल निढाल पड़ गयी... उसके कुच्छ ही देर बाद ... मनु की भी एक तेज "आहह" निकली ... और उसकी भी चर्म सीमा पूरी हो गयी.... और अपने कम के निकलते ही पूरा हल्का होकर निढाल उसके उपर गिर गया.... दोनो एक दूसरे की बाहों मे एक प्यारी रात बिताए.... अगली सुबह प्यार भरी हसीन सुबह.....
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अगली सुबह.....
मनु बड़े प्यार से स्नेहा के बालों मे कंघी करते हुए उसकी चोटी बना रहा था. स्नेहा की हँसी रुक ही नही रही थी, और मनु लगा हुआ था....
स्नेहा.... हीहीहीए .... मनु तुम्हे ऑफीस नही जाना क्या जो यहाँ मेरे बाल बना रहे हो...
मनु..... काम कर तो रहा हूँ, अब एक काम ख़तम हो, तो ना दूसरे काम पर जाउ.
स्नेहा.... अच्छा बाबा समझ गयी. ये बताओ यहाँ चल क्या रहा है मनु, बहुत कुछ छिपाया जा रहा है मुझ से हां.... और तुम मानस भाई साब के साथ ऐसा कर कैसे सकते हो. उपर से जब मैं तुम से कई बार कह चुकी हूँ कि वंश सर बुरे नही हैं, फिर भी तुम ने उनके अगेन्स्ट आक्षन ले लिया... अब यहाँ चल क्या रहा है बताओगे....
मनु उसे सारी प्लॅनिंग समझाते हुए कहने लगा..... "बस एक आखरी खेल समझो, फिर हमे कोई परेशान करने वाला नही होगा"
स्नेहा.... मनु क्या ये खेल ज़रूरी है... छोड़ दो जाने दो. हम किस से लड़ रहे हैं, अपनो से ही. वो कुछ करे या हम उसका कुछ जबाव दे, इज़्ज़त तो हमारी ही उछलती है ना. क्या ये मसला प्यार से बात करते हुए हल नही हो सकता.