desiaks
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90 यौवन का संचार
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, रजनी जी अपने कंठ के भीतर ही भीतर किसी लाचार घायल प्राणी के जैसे कराह और बिलबिला रही थीं, जैसे जय उनकी कुलबुलाती काँपती योनि को चूसता और चाटता जाता था, वे इस रीति में सिसक-सिसक कर अपने दैहिक आनन्द की अभिव्यक्ति कर रही थीं।
ओहहह, मजा आ गया !”, वे चिल्लायिं, ... बड़वे की जीभ से चटकर मजा आ गया! चूस मुझे माँ के बड़वे ! : : चाट मुझे, जय! मेरी भीगी लिसलिसी चूत को चाट मादरचोद :: :: ऊ ऊ ऊ ऊ, शाबाश , चाट ले .. चोंचले को भी चाट ::: अपने बाप का लन्ड समझ कर चूस मेरे चोंचले कोः : ' या ऊपर वाले! और अंदर घुसा माँ के बड़वे! ::: मुझे चोद अपनी जीब से, बेटा! ... आँह ... ऊहह ऊपर वाले तेरे लन्ड को बरकत दे ... बेटा तेरी माँ के बदन पर ग्राहक खूब पैसे लुटायें! अँह ::: ऊँह :: अँह अँह अँहहह” जब जय के होठों ने उनके चोंचले को अपने बीच में लपेटकर उसके चूसते गरम मुँह में चूस कर खींचा, तो रजनी जी की सम्पूर्ण देह स्पंदित होकर थरथराने लगी।
“ओह, ऊपर वाले! • चः ‘चोद! :: शाबाश, मेरा चोंचला, बेटा! : चूस इस हराम की जड़ को! शाबाश ऐसे ही! माँ के बड़वे, चोंचले को ऐसे चूस रहा है, जैसे तेरी माँ के ग्राहक का लौड़ा हो, ..• अँहहह ... ऊँह ::: अँह :: अँह अँह अँहहह ... बोल साले , ' अँह ... चुदने के बाद तेरी माँ तुझसे अपने ग्राहकों का लन्ड इसी तरह से चुसवाकर फिर खड़ा करवाती है ?? आँह • आँह मादरचोद !”
रजनी जी कामोन्माद में बेसुध होकर इस अपनी अति विकृत मनोवृत्ति से पनपी हुई ऐसी अने बातें कहे जा रही थीं! नवयुवक जय के मैथुन कौशल होंठ और जिह्वा उन्हें पागल करे देते थे' :: अपनी कामोत्तेजित योनि पर उसका मुख मैथुन इतना प्रभावकारी था, कि अब उन्हें किसी भी सैकन्ड चरम यौनानन्द प्राप्त होने वाला था।
“या ऊपर वाले, जय! ::: मैं झड़ने वाली हूँ जानेमन! ::: मैं तेरे मादरचोद मुँह में झड़ने वाली हूँ! अँहहहह! तू आँटी को अपने मुँह में झड़ाना चाहता है, है ना बेटा, बोल ?”
रजनी जी उसके सर के ऊपर ऐसा तीव्र दबाव डाल रही थीं, कि जय लाख चेष्टा करता तो भी अपने मुख को उनके पेड़ में से मुक्त करा कर उनके प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में नहीं था। उसने स्वीकृति के रूप में केवल अपना सर भर हिलाया। उसने अपने मुंह को रजनी जी के मोटे-मोटे रोमयुक्त योनि कोपलों पर अब भी कस के चिपटा रखा था।
“चल मेरे पट्ठे, तैयार होजा पहलवान !”, वे चीखीं, “आ आँहह! दम लगाकर चूस, जय! आँटी की चूत को पूरा जोर लगाकर चूस! चूस मेरी चूत को अपने मुंह में, बेटा, और फिर देख मेरी चूत तुझे कैसे जन्नत का मजा चखाती है ! | रजनी जी ने अपने पेड़ को उसके चेहरे पर फुदका - फुदका कर दबाया और जय अपने खुले होठों को उनकी योनि पर चिपकाये हुए चूसता रहा, अपनी जिह्वा द्वारा उनके चोंचले पर क्रमवार दंश करता रहा, और अन्त में उसके टटोलते सिरे को उनकी टाइट भीगी योनि की गहनता में भोंक डाला।
रजनी जी को उसी क्षण परम यौनानन्द की प्राप्ति हो गयी! । “ओहहह! ऊपर वाले! ::: अहहह, अहहह, अहहहहह! :: : ऊपर वाले, शाबाश ! ::: ऊँह ऊ ऊहहह! मैं झड़ रही हूँ जय! :: : चूस इसे , माँ के बड़वे ! :: : चूस निकाल मेरी चूत से! ::: एक एक बून्द को चाट कर पी जा! :: आहहहह आँहह आँहहह ::: आँहहह ::: अपनी माँ के चूत चाटने वाले मादरचोद बड़वे !”
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, रजनी जी अपने कंठ के भीतर ही भीतर किसी लाचार घायल प्राणी के जैसे कराह और बिलबिला रही थीं, जैसे जय उनकी कुलबुलाती काँपती योनि को चूसता और चाटता जाता था, वे इस रीति में सिसक-सिसक कर अपने दैहिक आनन्द की अभिव्यक्ति कर रही थीं।
ओहहह, मजा आ गया !”, वे चिल्लायिं, ... बड़वे की जीभ से चटकर मजा आ गया! चूस मुझे माँ के बड़वे ! : : चाट मुझे, जय! मेरी भीगी लिसलिसी चूत को चाट मादरचोद :: :: ऊ ऊ ऊ ऊ, शाबाश , चाट ले .. चोंचले को भी चाट ::: अपने बाप का लन्ड समझ कर चूस मेरे चोंचले कोः : ' या ऊपर वाले! और अंदर घुसा माँ के बड़वे! ::: मुझे चोद अपनी जीब से, बेटा! ... आँह ... ऊहह ऊपर वाले तेरे लन्ड को बरकत दे ... बेटा तेरी माँ के बदन पर ग्राहक खूब पैसे लुटायें! अँह ::: ऊँह :: अँह अँह अँहहह” जब जय के होठों ने उनके चोंचले को अपने बीच में लपेटकर उसके चूसते गरम मुँह में चूस कर खींचा, तो रजनी जी की सम्पूर्ण देह स्पंदित होकर थरथराने लगी।
“ओह, ऊपर वाले! • चः ‘चोद! :: शाबाश, मेरा चोंचला, बेटा! : चूस इस हराम की जड़ को! शाबाश ऐसे ही! माँ के बड़वे, चोंचले को ऐसे चूस रहा है, जैसे तेरी माँ के ग्राहक का लौड़ा हो, ..• अँहहह ... ऊँह ::: अँह :: अँह अँह अँहहह ... बोल साले , ' अँह ... चुदने के बाद तेरी माँ तुझसे अपने ग्राहकों का लन्ड इसी तरह से चुसवाकर फिर खड़ा करवाती है ?? आँह • आँह मादरचोद !”
रजनी जी कामोन्माद में बेसुध होकर इस अपनी अति विकृत मनोवृत्ति से पनपी हुई ऐसी अने बातें कहे जा रही थीं! नवयुवक जय के मैथुन कौशल होंठ और जिह्वा उन्हें पागल करे देते थे' :: अपनी कामोत्तेजित योनि पर उसका मुख मैथुन इतना प्रभावकारी था, कि अब उन्हें किसी भी सैकन्ड चरम यौनानन्द प्राप्त होने वाला था।
“या ऊपर वाले, जय! ::: मैं झड़ने वाली हूँ जानेमन! ::: मैं तेरे मादरचोद मुँह में झड़ने वाली हूँ! अँहहहह! तू आँटी को अपने मुँह में झड़ाना चाहता है, है ना बेटा, बोल ?”
रजनी जी उसके सर के ऊपर ऐसा तीव्र दबाव डाल रही थीं, कि जय लाख चेष्टा करता तो भी अपने मुख को उनके पेड़ में से मुक्त करा कर उनके प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में नहीं था। उसने स्वीकृति के रूप में केवल अपना सर भर हिलाया। उसने अपने मुंह को रजनी जी के मोटे-मोटे रोमयुक्त योनि कोपलों पर अब भी कस के चिपटा रखा था।
“चल मेरे पट्ठे, तैयार होजा पहलवान !”, वे चीखीं, “आ आँहह! दम लगाकर चूस, जय! आँटी की चूत को पूरा जोर लगाकर चूस! चूस मेरी चूत को अपने मुंह में, बेटा, और फिर देख मेरी चूत तुझे कैसे जन्नत का मजा चखाती है ! | रजनी जी ने अपने पेड़ को उसके चेहरे पर फुदका - फुदका कर दबाया और जय अपने खुले होठों को उनकी योनि पर चिपकाये हुए चूसता रहा, अपनी जिह्वा द्वारा उनके चोंचले पर क्रमवार दंश करता रहा, और अन्त में उसके टटोलते सिरे को उनकी टाइट भीगी योनि की गहनता में भोंक डाला।
रजनी जी को उसी क्षण परम यौनानन्द की प्राप्ति हो गयी! । “ओहहह! ऊपर वाले! ::: अहहह, अहहह, अहहहहह! :: : ऊपर वाले, शाबाश ! ::: ऊँह ऊ ऊहहह! मैं झड़ रही हूँ जय! :: : चूस इसे , माँ के बड़वे ! :: : चूस निकाल मेरी चूत से! ::: एक एक बून्द को चाट कर पी जा! :: आहहहह आँहह आँहहह ::: आँहहह ::: अपनी माँ के चूत चाटने वाले मादरचोद बड़वे !”