- Joined
- Dec 5, 2013
- Messages
- 11,318
कंचन के साथ-साथ दिनेश जी भी हत-प्रत से सुगना को जाते हुए देखते रहे. शांता और सुगना की बातें उन दोनो को ही समझ में नही आया था. पर सुगना की बातों से कंचन के आँसू ज़रूर थम गये थे. वह सवालिया नज़रों से बुआ को देखने लगी.
*****
ठाकुर साहब और दीवान जी हॉल में बैठे बातें कर रहे थे. उनकी बातों का केन्द्र निक्की थी. ठाकुर साहब अभी तक रवि और कंचन के प्रेम-प्रसंग से अंजान थे. उन्होने दीवान जी से पुछा -"दीवान जी आपको क्या लगता है, कमला जी हमारी निक्की के लिए मान जाएँगी?"
"हमारी निक्की में कमी ही क्या है मालिक, जो कमला जी इनकार करेंगी?" दीवान जी ने उन्हे ढाढ़स बँधाया. - "आप निश्चिंत रहें, उनसे मैं बात करूँगा....किंतु आपसे एक इज़ाज़त चाहूँगा. अगर आप मंज़ूरी दें तो?"
"कहिए दीवान जी......आपको इज़ाज़त की क्या ज़रूरत है?" ठाकुर सवालिया नज़रों से देखते हुए बोले.
"मालिक, मैं कमला जी से इस संबंध में अकेले में बात करना चाहता हूँ."
"अकेले में?" ठाकुर साहब चौंकते हुए बोले - "किंतु उससे क्या होगा दीवान जी?"
"सरकार किसी के दिल का हाल कौन जाने. क्या पता कमला जी क्या चाहती हों. उनका इनकार कहीं आपको दुखी ना कर जाए. इसलिए मैं उनसे अकेले में ही बात करना चाहता हूँ." दीवान जी ने अपनी शंका ज़ाहिर की. किंतु ये उनका ढोंग था. दीवान जी नही चाहते थे कि कमला जी के मूह से रवि और कंचन के प्रेम संबंधो का पता उन्हे चले.
"आप जो उचित समझे, कीजिए दीवान जी. हमारी तो सोच ही सिमटकर रह गयी है. किंतु कोशिश कीजिएगा कि वो मान जायें. हमें तो रवि बहुत पसंद है. उसके जैसा लड़का ढूढ़ने से भी नही मिलेगा."
"आप चिंता ना करे सरकार, ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक ही होगा. रवि मुझे भी बहुत पसंद है." दीवान जी ने उन्हे हौसला दिया.
अभी इनकी बातों का क्रम जारी ही था कि तभी हवेली के मुख्य द्वार से कमला जी दाखिल हुई. उनके चेहरे पर विशेष प्रकार का हर्ष फैला हुआ था. ऐसा लगता था जैसे उन्हे कोई मनचाहा वरदान मिल गया हो.
कमला जी धीरे से चलती हुई उनके पास आई और नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.
ठाकुर साहब और दीवान जी भी खड़े होकर उनके नमस्ते का जवाब मुस्कुराकर दिए.
ठाकुर साहब ने कमला जी को बैठने का इशारा किया और खुद भी बैठ गये.
"बेहन जी, कहाँ से आ रही हैं आप? इतना खुश तो आपको पहले कभी नही देखा....क्या कोई खास बात है आज?" सवाल दीवान जी ने पुछा था, किंतु उत्तर की आस लिए ठाकुर साहब भी कमला जी की सूरत देखने लगे.
"मंदिर से होकर आ रही हूँ दीवान जी. और कोई बात नही." कमला जी ने उत्तर दिया.
"माता से क्या माँगा आपने?" इस बार ठाकुर साहब ने पुछा.
"इस हवेली के लिए खुशियाँ. और अपने लिए एक सुंदर सी बहू." कमला जी मुस्कुराकर बोली.
"वास्तव में इस हवेली को आप जैसे देवी की दुआओं की ज़रूरत है. ईश्वर से तो हमारा जन्म का बैर है. हमारी तो वो कभी सुनता नही. शायद आपकी सुन लें." ठाकुर साहब निराशापूर्ण लहजे में बोले.
"आप निराश मत होइए ठाकुर साहब. ईश्वर का दिया तो सब कुछ है आपके पास. और क्या चाहिए आपको?" कमला जी ठाकुर साहब से बोली - "दुश्चिन्ताओं को छोड़िए ठाकुर साहब, ईश्वर के घर देर है अंधेर नही. आप निक्की के बारे में सोचिए.....उसके विवाह के बारे में सोचिए. आपने उसके लिए कोई लड़का देखा है या नही?"
"हमने लड़का देखा तो है पर....ईश्वर जाने ये रिश्ता संभव हो पाएगा भी या नही."
"यदि ऐसा है तो फिर उसकी ज़िम्मेदारी मुझपर छोड़ दीजिए. अगर आप को ऐतराज़ ना हो तो आपकी बेटी आज से मेरी हुई." कमला जी असली बात को करीब लाती हुई बोली.
कमला जी की बात सुनते ही ठाकुर साहब और दीवान जी के चेहरे खिल गये. उनकी चमकती हुई नज़रें एक दूसरे की सूरत देखने लगे.
"बेहन जी क्या आपने इस समबन्ध में रवि बाबू से बात की? कहीं उनकी मर्ज़ी........?" दीवान जी डरते डरते पुच्छ बैठे.
"आप रवि की चिंता मत कीजिए दीवान जी. रवि वही करेगा जो मैं कहूँगी." कमला जी बिस्वास भरे स्वर में दीवान जी से बोली. फिर ठाकुर साहब से मुखातिब हुई - "ठाकुर साहब, मैं आपको वचन देती हूँ. आप ही की बेटी मेरे घर की बहू बनेगी. आप निक्की की चिंता छोड़ दीजिए. मैं आज ही रवि से इस समबन्ध में स्पस्ट बात करूँगी."
"बेहन जी आपने तो हमारा सारा बोझ हल्का कर दिया. हमने तो रवि को उसी दिन पसंद कर लिया था जिस दिन वो हवेली में कदम रखा था. आज आपकी स्वीकृति भी मिल गयी. अब हमें ईश्वर से कोई शिकायत नही रही." ठाकुर साहब भाव-विभोर होकर बोले. कमला जी की बात सुनकर खुशी से उनकी आँखें झिलमिला गयी थी.
"सच में आज का दिन बड़ा ही शुभ है." दीवान जी बोले - "आज बरसो बाद हवेली में खुशियाँ लौटकर आई है."
दीवान जी की बात पूरी हुई ही थी कि हवेली के मुख्य द्वार से सुगना ने भीतर कदम रखा.. उसपर नज़र पड़ते ही दीवान जी के चेहरे पर से सारी खुशियाँ गायब हो गयी.
कमला जी भी खुश नही लग रही थी. सुगना का ऐसे वक़्त यहाँ आना उन्हे परेशान कर गया था.
किंतु ठाकुर साहब के चेहरे पर ऐसा कोई भाव नही था. वे बस पसीने से लथ-पथ, मैले कुचेले कपड़ों में खड़े सुगना को आश्चर्य से देखने लगे थे.
सुगना उनके करीब आया और हाथ जोड़कर सभी को प्रणाम किया.
"क्या बात है सुगना? इस तरह भागे हुए क्यों आए हो? सब कुशल तो है.?" ठाकुर साहब उसकी दशा का अनुमान लगाकर बोले.
"ठाकुर साहब मैं आपसे एक ज़रूरी बात करने आया हूँ. किंतु वो बात इतनी आवश्यक है कि सब के सामने नही कह सकता. मैं आपसे अकेले में बात करने की इज़ाज़त चाहता हूँ" सुगना विनम्र स्वर में बोला.
"यहाँ सब अपने ही हैं सुगना, तुम कहों जो भी कहना चाहते हो." ठाकुर साहब एक नज़र कमला जी और दीवान जी की तरफ देखकर फिर सुगना से बोले.
"इसी बात का तो दुख है ठाकुर साहब की यहाँ सब अपने नही हैं."
"सुगना !" ठाकुर साहब क्रोध से चीखे. उनकी दहाड़ ऐसी थी कि बंद कमरो के अंदर लेटे रवि और निक्की के कानो तक उनकी आवाज़ पहुँच गयी. वे दोनो अपने अपने कमरे से बाहर निकल आए. और सीढ़ियों के पास खड़े होकर हॉल की तरफ देखने लगे. घर के बाकी नौकर चाकर भी इकट्ठे हो गये थे.
*****
ठाकुर साहब और दीवान जी हॉल में बैठे बातें कर रहे थे. उनकी बातों का केन्द्र निक्की थी. ठाकुर साहब अभी तक रवि और कंचन के प्रेम-प्रसंग से अंजान थे. उन्होने दीवान जी से पुछा -"दीवान जी आपको क्या लगता है, कमला जी हमारी निक्की के लिए मान जाएँगी?"
"हमारी निक्की में कमी ही क्या है मालिक, जो कमला जी इनकार करेंगी?" दीवान जी ने उन्हे ढाढ़स बँधाया. - "आप निश्चिंत रहें, उनसे मैं बात करूँगा....किंतु आपसे एक इज़ाज़त चाहूँगा. अगर आप मंज़ूरी दें तो?"
"कहिए दीवान जी......आपको इज़ाज़त की क्या ज़रूरत है?" ठाकुर सवालिया नज़रों से देखते हुए बोले.
"मालिक, मैं कमला जी से इस संबंध में अकेले में बात करना चाहता हूँ."
"अकेले में?" ठाकुर साहब चौंकते हुए बोले - "किंतु उससे क्या होगा दीवान जी?"
"सरकार किसी के दिल का हाल कौन जाने. क्या पता कमला जी क्या चाहती हों. उनका इनकार कहीं आपको दुखी ना कर जाए. इसलिए मैं उनसे अकेले में ही बात करना चाहता हूँ." दीवान जी ने अपनी शंका ज़ाहिर की. किंतु ये उनका ढोंग था. दीवान जी नही चाहते थे कि कमला जी के मूह से रवि और कंचन के प्रेम संबंधो का पता उन्हे चले.
"आप जो उचित समझे, कीजिए दीवान जी. हमारी तो सोच ही सिमटकर रह गयी है. किंतु कोशिश कीजिएगा कि वो मान जायें. हमें तो रवि बहुत पसंद है. उसके जैसा लड़का ढूढ़ने से भी नही मिलेगा."
"आप चिंता ना करे सरकार, ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक ही होगा. रवि मुझे भी बहुत पसंद है." दीवान जी ने उन्हे हौसला दिया.
अभी इनकी बातों का क्रम जारी ही था कि तभी हवेली के मुख्य द्वार से कमला जी दाखिल हुई. उनके चेहरे पर विशेष प्रकार का हर्ष फैला हुआ था. ऐसा लगता था जैसे उन्हे कोई मनचाहा वरदान मिल गया हो.
कमला जी धीरे से चलती हुई उनके पास आई और नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.
ठाकुर साहब और दीवान जी भी खड़े होकर उनके नमस्ते का जवाब मुस्कुराकर दिए.
ठाकुर साहब ने कमला जी को बैठने का इशारा किया और खुद भी बैठ गये.
"बेहन जी, कहाँ से आ रही हैं आप? इतना खुश तो आपको पहले कभी नही देखा....क्या कोई खास बात है आज?" सवाल दीवान जी ने पुछा था, किंतु उत्तर की आस लिए ठाकुर साहब भी कमला जी की सूरत देखने लगे.
"मंदिर से होकर आ रही हूँ दीवान जी. और कोई बात नही." कमला जी ने उत्तर दिया.
"माता से क्या माँगा आपने?" इस बार ठाकुर साहब ने पुछा.
"इस हवेली के लिए खुशियाँ. और अपने लिए एक सुंदर सी बहू." कमला जी मुस्कुराकर बोली.
"वास्तव में इस हवेली को आप जैसे देवी की दुआओं की ज़रूरत है. ईश्वर से तो हमारा जन्म का बैर है. हमारी तो वो कभी सुनता नही. शायद आपकी सुन लें." ठाकुर साहब निराशापूर्ण लहजे में बोले.
"आप निराश मत होइए ठाकुर साहब. ईश्वर का दिया तो सब कुछ है आपके पास. और क्या चाहिए आपको?" कमला जी ठाकुर साहब से बोली - "दुश्चिन्ताओं को छोड़िए ठाकुर साहब, ईश्वर के घर देर है अंधेर नही. आप निक्की के बारे में सोचिए.....उसके विवाह के बारे में सोचिए. आपने उसके लिए कोई लड़का देखा है या नही?"
"हमने लड़का देखा तो है पर....ईश्वर जाने ये रिश्ता संभव हो पाएगा भी या नही."
"यदि ऐसा है तो फिर उसकी ज़िम्मेदारी मुझपर छोड़ दीजिए. अगर आप को ऐतराज़ ना हो तो आपकी बेटी आज से मेरी हुई." कमला जी असली बात को करीब लाती हुई बोली.
कमला जी की बात सुनते ही ठाकुर साहब और दीवान जी के चेहरे खिल गये. उनकी चमकती हुई नज़रें एक दूसरे की सूरत देखने लगे.
"बेहन जी क्या आपने इस समबन्ध में रवि बाबू से बात की? कहीं उनकी मर्ज़ी........?" दीवान जी डरते डरते पुच्छ बैठे.
"आप रवि की चिंता मत कीजिए दीवान जी. रवि वही करेगा जो मैं कहूँगी." कमला जी बिस्वास भरे स्वर में दीवान जी से बोली. फिर ठाकुर साहब से मुखातिब हुई - "ठाकुर साहब, मैं आपको वचन देती हूँ. आप ही की बेटी मेरे घर की बहू बनेगी. आप निक्की की चिंता छोड़ दीजिए. मैं आज ही रवि से इस समबन्ध में स्पस्ट बात करूँगी."
"बेहन जी आपने तो हमारा सारा बोझ हल्का कर दिया. हमने तो रवि को उसी दिन पसंद कर लिया था जिस दिन वो हवेली में कदम रखा था. आज आपकी स्वीकृति भी मिल गयी. अब हमें ईश्वर से कोई शिकायत नही रही." ठाकुर साहब भाव-विभोर होकर बोले. कमला जी की बात सुनकर खुशी से उनकी आँखें झिलमिला गयी थी.
"सच में आज का दिन बड़ा ही शुभ है." दीवान जी बोले - "आज बरसो बाद हवेली में खुशियाँ लौटकर आई है."
दीवान जी की बात पूरी हुई ही थी कि हवेली के मुख्य द्वार से सुगना ने भीतर कदम रखा.. उसपर नज़र पड़ते ही दीवान जी के चेहरे पर से सारी खुशियाँ गायब हो गयी.
कमला जी भी खुश नही लग रही थी. सुगना का ऐसे वक़्त यहाँ आना उन्हे परेशान कर गया था.
किंतु ठाकुर साहब के चेहरे पर ऐसा कोई भाव नही था. वे बस पसीने से लथ-पथ, मैले कुचेले कपड़ों में खड़े सुगना को आश्चर्य से देखने लगे थे.
सुगना उनके करीब आया और हाथ जोड़कर सभी को प्रणाम किया.
"क्या बात है सुगना? इस तरह भागे हुए क्यों आए हो? सब कुशल तो है.?" ठाकुर साहब उसकी दशा का अनुमान लगाकर बोले.
"ठाकुर साहब मैं आपसे एक ज़रूरी बात करने आया हूँ. किंतु वो बात इतनी आवश्यक है कि सब के सामने नही कह सकता. मैं आपसे अकेले में बात करने की इज़ाज़त चाहता हूँ" सुगना विनम्र स्वर में बोला.
"यहाँ सब अपने ही हैं सुगना, तुम कहों जो भी कहना चाहते हो." ठाकुर साहब एक नज़र कमला जी और दीवान जी की तरफ देखकर फिर सुगना से बोले.
"इसी बात का तो दुख है ठाकुर साहब की यहाँ सब अपने नही हैं."
"सुगना !" ठाकुर साहब क्रोध से चीखे. उनकी दहाड़ ऐसी थी कि बंद कमरो के अंदर लेटे रवि और निक्की के कानो तक उनकी आवाज़ पहुँच गयी. वे दोनो अपने अपने कमरे से बाहर निकल आए. और सीढ़ियों के पास खड़े होकर हॉल की तरफ देखने लगे. घर के बाकी नौकर चाकर भी इकट्ठे हो गये थे.