hotaks444
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आज ज़िंदगी मे पहली बार उनकी आँखो मे मैने नमी देखी थी , ये ना समझना की पापा नशे मे है तो कुछ भी बोल रहे है मेरे बेटे हाँ पर इतना ज़रूर है कि अगर आज मे नशे मे ना होता तो शायद तुझसे कभी अपने मन की बात बोल भी नही पता वो कहने लगे बेटे – मेरी इन बातों का शायद तेरे लिए कोई मोल ना हो पर जिस दिन तेरी खुद की औलाद होगी ना उस दिन तू समझेगा कि बाप क्या बोलता था ले एक पेग ले ले मुझसे कैसी शरम , दारू अंदर जाएगी तो शायद तेरे अंदर भी हिम्मत हो जाए कि बाप से दो बात कर ले जब से आए है तुझे देखा कि बस दूर दूर बाहर है, अब शायद हमारी परवरिश मे ही कोई कमी कमी रह गयी होगी कि अपनी औलाद अपना खून ही देखो कैसे दूर दूर हो रहा है मेरी आँखो से जो इतने दिनो से गुबार जमा हुआ था मन मे वो सारी फीलिंग्स आँसू बन कर बहने लगी मैं पापा के गले लग गया और फुट फुट कर रोने लगा काफ़ी देर तक बस मैं रोता ही रहा रोता ही रहा अपने पापा की गले लग कर
वो बोले रोता क्यो है , अगर माँ बेटे के बीच कुछ शिकवा था भी तो क्या तू मेरे आने की वेट नही कर सकता था घर ही छोड़ कर चला आया ये तूने अच्छा नही किया मनीष , मेरे बेटे क्या तुझे अपने बाप पर ज़रा सा भी भरोसा नही था आख़िर ऐसा क्या हो गया था जो आपस मे बैठ कर सुलझाया नही जा सकता था तुझे तेरी पसंद की लड़की से शादी करनी थी ना तो कर ले किसने रोका तुझे ना मैने उस दिन मना किया ना आज करता हूँ पर बेटे माँ-बाप को यू रुसवा कर दिया तूने
उनकी कही हर एक बात मेरे कलेजे को चीरे जा रही थी , और सच ही तो था मैं कभी एक अच्छा बेटा बन ही नही पाया था , बस भागता ही तो रहा था मैं अपनी जिंदगी भर , कभी सोचा ही नही था उनके बारे मे बस निकला भी तो क्या मैं एक नालयक , वो बिल्कुल सही थे पर मैं एक कमीना इंसान था हालत ने ये कैसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था मुझे , महॉल बड़ा ही टेन्स हो गया था तो मामा जी ने मुझे कहा कि बेटे तुम अंदर जाओ और फिर वो पापा को संभालने लगे मैं बैठक से तो बाहर निकल आया पर उस एक पल मे ही सब कुछ बेगाना सा लगने लगा था मैं साला जाउ तो कहाँ जाउ इतनी बड़ी दुनिया मे कही ऐसी जगह नही जहाँ दो पल का सुकून मिल सके
जहा दो पल बैठ कर मैं हँस सकूँ , अपने आप को कह सकूँ कि मैं खुश हूँ इतनी बड़ी दुनिया मे मेरा कही कुछ नही बस मुसाफिर बनकर रह गये थे हालातों के मारे हम करे भी तो क्या अरे आँसू भी अपनी आँख का ही नमक
फिर बस खराब तबीयत का बहाना कर के बिस्तर पर लेट गया और अपने एमोशन्स को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगा ध्यान तब टूटा जब नीचे बनवारे के लिए बाजा बजने लगा मैं उठा और दो गिलास पानी पिया मैने सोचा कि अब मेरा यहाँ से चले जाना ही ठीक रहेगा वारना मैं तो दुखी रहूँगा ही मम्मी-पापा भी परेशान होंगे तो जब सारे लोग बनवारे मे नाचते गाते घरे से बाहर गली मे चले गये तो मैने चुपके से अपना बॅग पॅक किया और पिछली गली से बाहर निकल गया
रात के साए मे धुन्ध की चादर ओढ़े मैं गाँव से बाहर निकल आया और हताश कदमो से हाइवे की ओर चले जा रहा था जो की करीब 5 किमी दूर था ,,निकल तो आया था पर पता नही था कि जाना किधर है एक रास्ता जाता था देल्ही की तरफ जहाँ पर थी निशा मेरी प्यारी दोस्त और दूसरा जाता था जयपुर की तरफ जहाँ से मैं अजमेर जा सकता था यही सोचते सोचते मैं हाइवे तक पहुच ही गया
काफ़ी सर्द रात थी वो जॅकेट मे भी जबरदस्त सर्दी लग रही थी , हाइवे पर ही एक ठेका था तो मैने एक विश्की का हाफ ले लिया खीचने लगा मैने ठेके वाल से पूछा कि भाई इधर बस कहाँ मिलेगी तो वो बोला कि इधर तो नही मिलेगी थोड़ी आगे एक होटेल है उधर बस रुका करती हैं तो उधेर देख लो मैं जाके उस होटेल पर ही बैठ गया और इंतज़ार करने लगा
तभी फोन बज उठा,ये साला फोन भी अजीब चीज़ होता है कही भी बज जाता है तो मैने देखा कि अशोक भाई का फोन था वो बोले कहाँ है तू मैने कहा बस इधर ही हूँ वो बोले जल्दी से मेरे पास आ तो मैने कहा नही यार अब नही आ सकता मैं वापिस जा रहा हूँ तो वो बोले कहाँ जा रहा है तू , तू कही नही जाएगा अभी के अभी वापिस आ मैने कहा अब ना रोक भाई , जाने दे मुझे हम जैसों का कहाँ कोई घर हुआ करता है भाई
तू इस मुसाफिर को अब जाने दे , तो वो बोला यार ऐसा क्यो बोलता है क्या मेरा घर तेरा नही है और फिर जब भाई ही यूँ चला जाएगा तो फिर कैसी शादी होगी कब्से तो इतना चाव कर रहा था तू शादी का और अब तू ऐसे मूह छिपा कर जा रहा है मैने कहा भाई यार तू एमोशनल ना कर अभी तो वो बोला देख तुझे कसम है मेरी अगर तू गया तो चुपचाप घर आजा और सो जाना किसी को पता ही नही चलेगा
वो बोले रोता क्यो है , अगर माँ बेटे के बीच कुछ शिकवा था भी तो क्या तू मेरे आने की वेट नही कर सकता था घर ही छोड़ कर चला आया ये तूने अच्छा नही किया मनीष , मेरे बेटे क्या तुझे अपने बाप पर ज़रा सा भी भरोसा नही था आख़िर ऐसा क्या हो गया था जो आपस मे बैठ कर सुलझाया नही जा सकता था तुझे तेरी पसंद की लड़की से शादी करनी थी ना तो कर ले किसने रोका तुझे ना मैने उस दिन मना किया ना आज करता हूँ पर बेटे माँ-बाप को यू रुसवा कर दिया तूने
उनकी कही हर एक बात मेरे कलेजे को चीरे जा रही थी , और सच ही तो था मैं कभी एक अच्छा बेटा बन ही नही पाया था , बस भागता ही तो रहा था मैं अपनी जिंदगी भर , कभी सोचा ही नही था उनके बारे मे बस निकला भी तो क्या मैं एक नालयक , वो बिल्कुल सही थे पर मैं एक कमीना इंसान था हालत ने ये कैसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था मुझे , महॉल बड़ा ही टेन्स हो गया था तो मामा जी ने मुझे कहा कि बेटे तुम अंदर जाओ और फिर वो पापा को संभालने लगे मैं बैठक से तो बाहर निकल आया पर उस एक पल मे ही सब कुछ बेगाना सा लगने लगा था मैं साला जाउ तो कहाँ जाउ इतनी बड़ी दुनिया मे कही ऐसी जगह नही जहाँ दो पल का सुकून मिल सके
जहा दो पल बैठ कर मैं हँस सकूँ , अपने आप को कह सकूँ कि मैं खुश हूँ इतनी बड़ी दुनिया मे मेरा कही कुछ नही बस मुसाफिर बनकर रह गये थे हालातों के मारे हम करे भी तो क्या अरे आँसू भी अपनी आँख का ही नमक
फिर बस खराब तबीयत का बहाना कर के बिस्तर पर लेट गया और अपने एमोशन्स को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगा ध्यान तब टूटा जब नीचे बनवारे के लिए बाजा बजने लगा मैं उठा और दो गिलास पानी पिया मैने सोचा कि अब मेरा यहाँ से चले जाना ही ठीक रहेगा वारना मैं तो दुखी रहूँगा ही मम्मी-पापा भी परेशान होंगे तो जब सारे लोग बनवारे मे नाचते गाते घरे से बाहर गली मे चले गये तो मैने चुपके से अपना बॅग पॅक किया और पिछली गली से बाहर निकल गया
रात के साए मे धुन्ध की चादर ओढ़े मैं गाँव से बाहर निकल आया और हताश कदमो से हाइवे की ओर चले जा रहा था जो की करीब 5 किमी दूर था ,,निकल तो आया था पर पता नही था कि जाना किधर है एक रास्ता जाता था देल्ही की तरफ जहाँ पर थी निशा मेरी प्यारी दोस्त और दूसरा जाता था जयपुर की तरफ जहाँ से मैं अजमेर जा सकता था यही सोचते सोचते मैं हाइवे तक पहुच ही गया
काफ़ी सर्द रात थी वो जॅकेट मे भी जबरदस्त सर्दी लग रही थी , हाइवे पर ही एक ठेका था तो मैने एक विश्की का हाफ ले लिया खीचने लगा मैने ठेके वाल से पूछा कि भाई इधर बस कहाँ मिलेगी तो वो बोला कि इधर तो नही मिलेगी थोड़ी आगे एक होटेल है उधर बस रुका करती हैं तो उधेर देख लो मैं जाके उस होटेल पर ही बैठ गया और इंतज़ार करने लगा
तभी फोन बज उठा,ये साला फोन भी अजीब चीज़ होता है कही भी बज जाता है तो मैने देखा कि अशोक भाई का फोन था वो बोले कहाँ है तू मैने कहा बस इधर ही हूँ वो बोले जल्दी से मेरे पास आ तो मैने कहा नही यार अब नही आ सकता मैं वापिस जा रहा हूँ तो वो बोले कहाँ जा रहा है तू , तू कही नही जाएगा अभी के अभी वापिस आ मैने कहा अब ना रोक भाई , जाने दे मुझे हम जैसों का कहाँ कोई घर हुआ करता है भाई
तू इस मुसाफिर को अब जाने दे , तो वो बोला यार ऐसा क्यो बोलता है क्या मेरा घर तेरा नही है और फिर जब भाई ही यूँ चला जाएगा तो फिर कैसी शादी होगी कब्से तो इतना चाव कर रहा था तू शादी का और अब तू ऐसे मूह छिपा कर जा रहा है मैने कहा भाई यार तू एमोशनल ना कर अभी तो वो बोला देख तुझे कसम है मेरी अगर तू गया तो चुपचाप घर आजा और सो जाना किसी को पता ही नही चलेगा