Desi Porn Stories बीबी की चाहत - Page 6 - SexBaba
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Desi Porn Stories बीबी की चाहत

दुसरा तरिका है थ्रीसम। अगर पति पत्नी मिल कर तय करें की वह किसी गैर मर्द या औरत के साथ मिल कर सेक्स करें तो वह किसी गैर मर्द या औरत को पसंद करते हैं और उसके सामने अथवा उसके साथ भी सेक्स करते हैं। इसमें पति और एक गैर मर्द मिल कर बीबी के साथ सेक्स करते हैं। इसको एम् एम् एफ (मेल, मेल, फीमेल), यानी दो मर्द और एक औरत वाला सेक्स कहते हैं। अगर वह कोई औरत को सेक्स करने के लिए चुनते हैं तो उसे एफ एफ एम् (फीमेल, फीमेल, मेल) यानी दो औरत और एक मर्द वाला सेक्स कहते हैं।

अगर पति पत्नी तैयार हो तो दो मर्द एक औरत वाला सेक्स थोड़ा सा आसान होता है क्यूंकि बाहर का मर्द सेक्स करने के लिए तैयार हो जाता है। पर बाहर की औरत को ऐसे सेक्स के लिए पटाना थोड़ा मुश्किल होता है। यानी वह कपल किसी एक मर्द को सेक्स करने के लिए चुनते हैं और उसके साथ मिल कर सेक्स करते हैं।

एक साथ एक ही पलंग पर दो कपल मिल कर अपनी अपनी पत्नियों से सेक्स भी करते हैं। इसे सॉफ्ट स्वैप कहते हैं। इसमें एक दूसरे की पत्नी से थोड़ी छेड़ छाड़ तो करते हैं पर सेक्स सिर्फ अपनी पत्नी से ही करते हैं। और दुसरा है हार्ड स्वैप। मतलब बीबियों की सेक्स के लिए अदला बदली। इसमें एक ही पलंग पर कभी अपनी बीबी से तो कभी दूसरे की बीबी से सेक्स करते हैं। ऐसे पत्नियों की अदलाबदली द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में नवीनता और उत्तेजना लाते हैं। जैसा समय अथवा संजोग वैसे ही इसको व्यावहारिक रूप में अपनाया जा सकता है। परंतु इसमें सारे पति पत्नीयोँ की सहमति और एकदूसरे में पूरा विश्वास आवश्यक है।"

तरुण की यह कहानी सुनते ही मुझे अहसास हुआ की दीपा ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और उसे जोर से दबाने लगी थी। मैं असमंजस में था। दीपा ऐसा क्यों कर रही थी? क्या तरुण साथ कोई और शरारत तो नहीं कर रहा था? या फिर दीपा भी तरुण की बात सुनकर गरम हो गयी थी? मैंने अनायास ही मेरा हाथ थोड़ा ऊपर किया और मेरी पत्नी के कन्धों के उपरसे हो कर उस के स्तनों पर रखा और उसके स्तनों को मेरी हथेली में दबाने और सहलाने लगा।

मैंने महसूस किया की दीपा के दिल की धड़कन बहोत ज्यादा तेज हो रही थी। अचानक मुझे ना जाने ऐसा लगा की

मेरा हाथ मैंने मेरी बीबी के स्तनों पर रखा था वह तरुण के हाथसे टकराया और मेरे हाथ के छूते ही तरुण ने अपना हाथ वापस ले लिया। कहानी सुनाते सुनाते क्या वह भी दीपा के स्तनों को छूने की कोशिश कर रहा था? या मेरे से भी पहले से वह दीपा के स्तनों को सहलाए जा रहा था और मेरी बीबी कुछ भी नहीं बोल रही थी? मैं इस बात को पक्की तरह से नहीं कह सकता। मैं चुप रहा और आगे क्या होता है उसका इंतजार करने लगा।

तरुण बोल रहा था, "रमेश उस समय उन्हीं के घर में रुका हुआ था। उस रात को रमेश के दोस्त ने उसे अपने बैडरूम में ड्रिंक्स के लिए बुलाया। जब रमेश उनके बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की उसका दोस्त अपनी पत्नी को अपनी गोंद में बिठाकर उसके स्तनों से खेल रहा था। उसकी पत्नी के ब्लाउज के बटन खुले थे और वह अपने पति के प्यार को एन्जॉय कर रही थी। रमेश स्तब्ध सा रह गया और क्षमा मांगते हुए वापस जाने लगा।

तब रमेश के दोस्तने उसे अपने पास बुलाया और अपने पास बिठाया। रमेश की पत्नी ने रमेश के सर से अपना सर मिलाया और रमेश का दोस्त और दोस्त की पत्नी एक दूसरे से करीब आकर एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे और बाद में रमेश की पत्नी ने रमेश का हाथ थाम कर अपने एक स्तन पर रखा। दूसरे स्तन को रमेश का दोस्त सेहला रहा था। पत्नी ने फिर रमेश को अपने स्तनों को दबाकर उन्हें चूसने को कहा। ऐसा लग रहा था की रमेश की बात उन लोगों को जँच गयी थी रमेश को भी दोस्त की पत्नी के प्रति आकर्षण तो था ही। वह उससे सेक्स करने के लिए तैयार हो गया। उस रात रमेश और उसके दोस्त दोनों ने मिलकर दोस्त की पत्नी के साथ जमकर सेक्स किया।"

फिर तरुण थोड़ा रुक गया और दीपा की कर बोला, "भाभी, क्या मैं आपको एक बात बताऊँ? जो रमेश, उसका दोस्त और दोस्त की पत्नी ने मिल कर किया उसे क्या कहते हैं?"

दीपा ने एक अजीब निगाह से तरुण की और देखा। वह कुछ नहीं बोली। तब मैंने तरुण से पूछा, "बोलो ना तरुण, क्या कहते हैं उसे?"

तरुण ने भाई को टोकते हुए कहा, "भाई, भाभी को जवाब देने दो ना? भाभी आप बोलो क्या मैं बताऊँ?"

दीपा ने कहा, "बताओ ना। मैंने कहाँ रोका है।"

तरुण ने कहा, भाभी, उन तीनों ने मतलब रमेश, उसका दोस्त और पत्नी ने मिलकर थ्रीसम सेक्स एम. एम. एफ (मेल, मेल, फीमेल), यानी दो मर्द एक औरत जब सेक्स करते हैं तब उसे एम. एम. एफ (मेल, मेल, फीमेल) थ्रीसम सेक्स कहते हैं। उस कपल ने मेरे दोस्त रमेश को थ्रीसम सेक्स करने के लिए चुना था। भाभी यह थ्रीसम सेक्स ऐसे होता है।"

यह कह कर तरुण कुछ देर चुप रह कर दीपा की और एकटक देखने लगा जैसे वह दीपा से कुछ जवाब चाहता था। दीपा ने जब देखा की तरुण उसकी और एकटक देख रहा था तो दीपा ने शर्माते हुए तरुण से पूछा, "तरुण तुम ऐसे क्यों मेरी तरफ देख रहे हो?"

तरुण ने कहा, "कुछ नहीं भाभी, मैं यह जानना चाहता था की आप थ्रीसम का मतलब समझे की नहीं।"

दीपा ने उखड़े हुए अंदाज में कहा, "भाई मुझे क्यों इसका मतलब समझाते हो? किया तुम्हारे दोस्त ने उसके दोस्त और उस दोस्त की बीबी के साथ और मतलब मुझे समझाते हो?"

तरुण ने थोड़ा सा खिसियानी शकल बनाते हुए कहा, "नहीं भाभी बस मैं तो वैसे ही पूछ रहा था।"
 
तरुण की कहानी उसकी पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी। मैं तो काफी गरम हो ही रहा था, पर दीपा भी काफी उत्तेजित लग रही थी। दीपा पर तरुण की कहानी का गहरा असर मैं अनुभव कर रहा था, क्यूंकि वह अपनी सिट पर अपने कूल्हों को इधर उधर सरका रही थी। अँधेरे में यह कहना मुश्किल था की क्या वही कारण था या फिर तरुण की कोई और शरारत? जरूर तरुण स्वयं भी काफी गरम लग रहा था। उसकी आवाज में मैं कम्पन सा महसूस कर रहा था।

तब हम शहर के प्रकाशित क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे। दीपा का एक हाथ मेरे हाथ में था और तब मेरे देखते हुए तरुण ने भी दीपा का एक हाथ पकड़ा और अपने हाथ के नीचे अपनी एक जांघ पर रखा। दूसरे हाथ से वह ड्राइविंग कर रहा था। दीपा ने मेरी तरफ देखा। मैं मुस्काया और उसे शांत रहने के लिए इशारा किया। लाचार दीपा वापस अपनी सीट पर पीठ लगाकर बैठ कर तरुण से आगेकी कहानी सुनने लगी। दीपा ने अपना हाथ जो तरुण की जाँघ पर था उसे वहीँ रहने दिया।

तरुण ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, "रमेश की पत्नी अपने पति के प्रति बड़ी आभारी थी क्यूंकि उसके पति ने अपनी पत्नीको उसके मित्रके साथ सेक्स करनेको कहा। तब से उन पति पत्नी में खूब जमती है और वह कई बार रमेश के साथ थ्रीसम का आनंद ले चुके हैं। वैसे भी अब उन पति पत्नी को एक दूसरे के साथ सेक्स करने में भी बड़ा आनंद मिलता है, क्यूंकि उस समय वह अपने थ्रीसम के आनंद के बारेमें खुल कर बात करते हैं।" तरुण ने अपनी कहानी का समापन करते हुए एक जगह गाडी रोकी।

तरुण की कहानी सुनते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं खासा उत्तेजित हो रहा था। मैंने दीपा के हाथ में हाथ डाला तो उसने भी मेरा हाथ जोरों से दबाया। मुझे लगा की वह भी काफी उत्तेजित होगयी है। कार में भी अँधेरा था। मैंने उसका हाथ मेरी टांगों के बिच रख दिया। दीपा धीरे धीरे मेरे टांगों के बिच से मेरी पतलून की ज़िप पर हाथ फ़ैलाने लगी। मैंने भी दीपा की टांगो के बिच अपना हाथ डाल दिया। दीपा ने अपनी टाँगे कसके दबायी और मेरे हाथ को टांगो के बिच दबा दिया।

मेरी पतलून में मेरा लण्ड तरुण की बात सुनकर खड़ा हो गया था। दीपा के मेरी टाँगों के बिच में हाथ रखने पर मैंने मेरे लण्ड ऊपर दीपा का हाथ रख दिया। दीपा उत्तेजित स्थिति में मेरे लण्ड को मेरी जिप के ऊपर से ही सहलाती रही। मैंने भी महसूस किया की जब मैंने दीपा की टांगों के बिच में मेरा हाथ रखा तो दीपा ने उसे अपनी टाँगों के बिच में दबाया। मुझे लगा की मेरी बीबी की चूत तरुण की नशीली बातें सुनकर काफी गीली हो चुकी थी।

मैंने देखा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी भी तरुण की सेक्स से भरी कहानी सुनकर उत्तेजित हो गयी थी। तब तरुण ने पूछा, "दीपक, बताओ, क्या रमेश और उसके मित्र पति पत्नी ने जो किया वह सही था?"

मैंने कहा, "मैं क्या बताऊँ? भाई ऐसे मसले में पत्नी की राय सबसे ज्यादा आवश्यक है। दीपा से पूछो।"

तरुण ने दीपा की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए मुझे कहा, "मैं क्या कहूं? तुम दोनों के बिच में मुझे क्यों फँसाते हो?"

मैंने कहा, "आज तुम हम दोनों के बिच में फँसी हुई हो इसमें क्या तुम्हें कोई शक है?"

दीपा ने अपनी असहायता दिखाते हुए जो कहा वह तो मैंने सोचा भी नहीं था। दीपा ने कहा, "ठीक है भाई अगर तुम ज़िद कर रहे हो तो कहती हूँ की तरुण के दोस्त कपल ने सही किया या गलत, ये कहने वाले हम कौन होते हैं? अरे वह पति पत्नी ने अपने बारें में सब तरह सोच कर यदि ये फैसला लिया तो सही किया। अगर रमेश के दोस्त ने अपनी मर्जी से रमेश को अपनी बीबी के साथ सेक्स करने के लिए कहा और रमेश की बीबी अगर रमेश से सेक्स करने के लिए राजी थी और उसके साथ सेक्स किया तो उसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। वह थ्रीसम मतलब अगर दोनों मर्द मिलकर रमेश की बीबी के साथ सेक्स करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है? मर्द और औरत का सम्भोग यह भगवान की देन है। सेक्स करने में शर्म की कोई बात नहीं है।"

इतना कह कर दीपा रुक गयी और मेरी और देखने लगी। मेरी पत्नी की इतनी सरसरी बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने पूछा, "क्या इसका मतलब यह है की पति अथवा पत्नी जिस किसी के साथ भी चाहें सेक्स कर सकते हैं?"

दीपा ने कहा, "बिलकुल नहीं। हमारे समाज ने सोच समझ कर उसमें कुछ रोक लगाई है और कुछ मर्यादाएं स्थापित की हैं। वह पति और पत्नी दोनों के पालन के लिए हैं। जब पति पत्नी एक साथ हो तो जो उन दोनों को मंजूर हो वह ठीक है और बात तो गलत नहीं है। शादी के कुछ सालों बाद हम सब पति पत्नी में एक दूसरे से सेक्स करने की उत्सुकता, रस और उत्तेजना जो पहले थी वह नहीं रहती । इसका कारण यह है की सेक्स में जो नवीनता पहले थी वह नहीं रही। एक ही खाना, भले ही वह कितना ही स्वादिष्ट क्यों ना हो; रोज खा खा कर हम बोर नहीं जाते क्या? अगर कुछ और तरह से खाना बनाया जाए या कभी कबार बाहर खाना खाया जाए तो अच्छा तो लगेगा ही। इन हालात में रमेश के मित्र और उसकी पत्नी ने जो किया वह उनके लिए सही साबित हुआ, तो सही है। और फिर उसका फायदा भी तो मिला उनको। उनका वैवाहिक जीवन सुधर जो गया।"

क्यों दीपक, मैंने गलत तो नहीं कहा?" दीपा ने मेरी और देखा और कुछ मुस्करा कर मेरा हाथ थामा। मेरा क्या मत है यह जानने के लिए शायद दीपा उत्सुक थी। वह चिंतित थी की कहीं मैं उसकी बात का गलत मतलब तो नहीं निकालूंगा।

मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।
 
मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।

तरुण ने दोनों हाथों से तालियां बजायी और बोला, "माय गॉड दीपा भाभी, आप ने कितना सटीक और सही जवाब दिया। मैं आप के इस जवाब के लिए सलूट मारता हूँ।" तरुण की प्रशंषा सुनकर दीपा मुस्करायी और गर्व से मेरी और देखा, जैसे वह मुझे दिखाना चाहती थी की उसने कितनी समझदारी और अक्लमंदी से जवाब दिया।

तब हम कार्यक्रम वाले स्थान के करीब पहुँच चुके थे। तरुण ने एक ऐसी जगह कार रोकी जहां प्रकाश था। उसने पीछे मुड़कर कार की सीट पर चढ़कर पीछे की सीट पर रखा एक बक्शा खोला। मैंने देखा की उसमें उसने तीन बोतलें और कुछ गिलास रखे हुए थे। उसने तीन गिलास निकाले और उसमें एक बोतल में से व्हिस्की और सोडा डालना शुरू किया। दीपा ने एकदम विरोध करते हुए कहा की वह नहीं पीयेगी।

मैं भी जानता था की दीपा शराब नहीं पीती थी। सबके साथ वह कभी कभी जीन का एकाध घूंट जरूर ले लेती थी। शायद तरुण को भी यह पता था। उसने दीपा से कहा, "दीपा भाभी, आप निश्चिन्त रहो। मैं आपको व्हिस्की नहीं दूंगा। प्लीज आज हमें साथ देने के लिए थोडीसी जीन तो जरूर पीजिए। मैं बहुत थोड़ी ही डालूंगा। देखिये होली है। दीपा ने घबड़ाते हुए मेरी और देखा।

मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा, "अरे इसमें इतना घबड़ाने की क्या बात है? भई जीन तो वैसे ही हल्की है और तुम जीन तो कभी कभी पी लेती हो। अब शर्म मत करो, थोड़ी सी पी लो यार। तरुण इतने प्यार से जो कह रहा है।" मैंने फिर तरुण की और देखते हुए कहा, "देखो तरुण, बस एकदम थोड़ी ही डालना।"

तरुण ने मुस्काते हुए सीट पर पीछे मुड़कर सीट पर चढ़कर लंबा होकर दीपा के लिए जीन से गिलास को खासा भरा और फिर दिखावे के लिए उसमें थोड़ा सोडा डाल कर एक कटा हुआ निम्बू लाया था वह गिलास में निचोड़ कर गिलास दीपा के हाथ में पकड़ा दिया। जीन वैसे ही पानी की तरह पारदर्शक होती है। देखने से यह पता नहीं लग पाता की गिलास में जीन ज्यादा है या सोडा। तरुण ने दिखाया की उसमें सिर्फ सोडा ही था। जीन तो नाम मात्र ही थी। पर था उलटा।

मेरी भोली बीबी दीपा उसे पीने लग गयी। जीन का टेस्ट मीठा होता है। दीपा को अच्छा लगा। वह उसे देखते ही देखते पी गयी। जब हम सबने अपने ड्रिंक्स ख़तम किये तब तरुण कार को कार्यक्रम के स्थान पर ले आया। मैं जानता था की जीन भी तगड़ी किक मारती है।

जीन पीने के पश्चात दीपा काफी तनाव मुक्त लग रही थी। जो तनाव शुरू में तरुण की हरकतों की वजह से वह महसूस कर रही थी वह नहीं दिख रहा था। तरुण ने शुरू में जब यह कहा था की वह कुछ सेक्सुअल विषय के बारे में बताने जा रहा था, तो दीपा शायद डर रही थी की कहीं वह खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्द जैसे लण्ड, चूत, चोदना इत्यादि शब्दों का प्रयोग तो नहीं करेगा।

परन्तु तरुण का बड़े मर्यादित रूप में सारी सेक्सुअल बातों को बताना तथा खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना दीपा को अच्छा लगा। दीपा को लगा की हालाँकि तरुण उसे बार बार छेड़ता था पर साथ साथ वह उसकी बड़ी इज्जत भी करता था और ख्याल रखता था की दीपा की संवेदनशीलता किसी भी तरह से आहत ना हो। धीरे धीरे दीपा ने यह स्वीकार कर लिया था की तरुण का दीपा को बार बार छेड़ने का कारण तरुण का दीपा के प्रति एक तरह का अपनापन और साथ में बहुत जबरदस्त शारीरिक आकर्षण था जिस पर तरुण खुद भी कण्ट्रोल नहीं कर पाता, जब दीपा उसके पास होती थी। तरुण एक हट्टाकट्टा वीर्यवान मर्द था और दीपा की छेड़खानी करना शायद उसकी मर्दानगी की मज़बूरी थी। उसके उपरांत दीपा ने तरुण को वचन दिया था की उस होली की रात को वह तरुण के सौ गुनाहों को भी माफ़ कर देगी। शायद इसी कारणवश जब तरुण ने दीपा का हाथ थामा और अपनी जांघ पर रखा तो वह कुछ न बोली।

कार्यक्रम शुरू हो चुका था। मैदान लोगों से खचाखच भरा था। एक के बाद एक शायर, कभी लोगों पर, कभी राज नेताओं पर, कभी अमीरों पर यातो कभी मंच पर बैठे दूसरे कविओं पर जम कर तंज कसते हुए हास्य कविताएं एवं शायरी सुना रहे थे। लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे। तरुण ने कार को मंच से काफी दूर एक कोने में एक पेड़ के पीछे दीवार के पास खड़ी की। हम उसी तरह कार में ही बैठे रहे। बड़े लाउड स्पीकरो के कारण हमें दूर भी साफ़ सुनाई दे रहा था। बल्कि इतनी तेज आवाज थी की हम बात भी नहीं कर पा रहे थे। जहां हम रुके थे वहां काफी अँधेरा था। आते जाते कोई भी हमें बाहर से देख नहीं पाता था। कार के अंदर भी अँधेरा था। तरुण अब एक तरह से ̣दीपा का हाथ हमेशा के लिए अपनी जांघों पर रखे हुए था और अपना हाथ उसने दीपा के हाथ के ऊपर रखा हुआ था।

तब एक शायर ने महिलाओं की अक्ल, त्याग, हिम्मत, ताकत और काबिलियत के बखान करते हुए एक कविता सुनाई। यह सुन कर दीपा मेरी और मुड़ी और बोली, "देखा, मिस्टर दीपक, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बराबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।" मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।
 
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, "कविताओं में कहना एक और बात है पर हकीकत यह है की महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?" मैंने एक तीर मारा और दीपा के जवाब का इन्तेजार करने लगा।

दीपा ने तुरंत पलट कर कहा, "तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक कर भन्कस और हंगामा करना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपने आपको? क्या हम कमजोर हैं और तुम सुपरमैन हो?" दीपा ने तब तरुण की और देखा।

तरुण ने तुरंत कहा, "दीपक, दीपा भाभी बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।"

मैंने कहा, "चलो एक पल के लिए मान भी लिया जाए की दीपा या कोई भी महिला व्हिस्की भी पी सकती है। पर क्या दीपा या कोई भी भारतीय नारी पुरुषों की तरह खुल्लम खुल्ला सेक्स के बारे में बातचीत कर सकती है? अरे खुद बात भले ही ना करे पर, सुन तो सकती है की नहीं?"

दीपा ने मेरी बात का एकटुक जवाब देते हुए कहा, "क्यों नहीं सुन सकती? जब महिला पुरुष के साथ सेक्स कर सकती है तो फिर सेक्स के बारेमें सुन क्यों नहीं सकती? क्या मैंने अभी अभी सेक्स वाली बातें नहीं सुनीं? दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में तरुण से कहा, "यार तरुण, यह तुम्हारे भाई या दोस्त व्हाटएवर, मेरे जो हस्बैंड है ना, बड़े ही इर्रिटेटिंग है। बड़े बोर करते हैं। बेकार दाना पानी लेकर मेरे पीछे ही पड़ जाते हैं। तुम एक हो जो मुझे कुछ समझते हो।"

मैंने देखा की तरुण के सपोर्ट करने से दीपा खिल सी गयी थी। वह मुझ से थोड़ी उखड़ी हुई थी और तरुण की सहानुभूति से काफी प्रभावित भी हुई लग रही थी। दीपा की हिम्मत या यूँ कहिये की उच्छृंखलता शराब के नशे के कारण और मेरी स्त्री जाती को चुनौती देने के कारण बढ़ती ही जा रही थी। शायद अपनी हिम्मत मुझे दिखाने के लिए दीपाने मेरे देखते ही तरुण का हाथ पकड़ा और धड़ल्ले से उसे अपनी जांघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी प्यारी बीबी पूरा गिलास भरी शराब (जिन) की असर के कारण महिला की पुरुष के साथ बराबरी दिखाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि उतावली थी। तरुण को और क्या चाहिए था?

वैसे ही दीपा की साड़ी इतनी हलके वजन की और महिम थी की हल्का सा खींचने पर भी वह फिसल जाती थी। तरुण भी दीपा की बढ़ी हुई हिम्मत का फायदा उठाते हुए दीपा की साड़ी के ऊपर अपने हाथ फैला कर मेरे देखते हुए ही वह दीपा की जांघ को ऊपर से धीरे धीरे सहलाने लगा और मेरी और देख कर बोला, "भाई, भाभी की एहमियत आप को नहीं पता, क्यूंकि वह आपकी पत्नी हैं। मैं उनकी एहमियत समझता हूँ, क्यूंकि उनकी कंपनी मुझे भी कभी कभी मिलती है।"

मैंने अपना बचाव करते हुए कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं है। मैं भी जानता हूँ मेरी पत्नी किसी से कम नहीं।"

ऐसा कह कर जैसे ही मैंने मेरी बीबी का हाथ थामने की कोशिश की तो दीपा ने मेरा हाथ दूसरी और खिसका दिया और बोली, "अरे छोडो जी। झूठ मत बोलो। अब तक तो आप मुझे कमजोर, अबला, नाजुक कह रहे थे। अब जब तुम्हारे ही दोस्त ने मेरी कदर की तब समझ आयी अपनी बीबी की एहमियत की? देखो, मैं जैसा तुम समझ रहे हो ना, वैसी कमजोर और नाजुक नहीं हूँ। मैं भी तुम दोनों मर्दों से किसी भी मामले में मुकाबला कर सकती हूँ।"

तरुण दीपा की बात सुनते ही फ़ौरन मेरी बीबी की जाँघों को साडी के ऊपर से फुर्ती से सेहलाने और दबाने लगा। दीपा उसे महसूस कर रही थी, पर कुछ ना बोली; क्यूंकि अब उसे अपनी हिम्मत जो दिखानी थी। बल्कि खुद जैसे उसे प्रोत्साहन देती हो ऐसे तरुण के हाथ के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी।

वैसे भी अब दीपा को तरुण का शुशीलता और सभ्यता भरा रवैया अच्छा लग रहा था। और मैं चूँकि मेरी बीबी को चुनौती दे रहा था इस लिए वह मुझे दिखाना चाहती थी की वह एक हिम्मत वाली औरत है और किसी गैर मर्द (तरुण) की छेड़खानी से डरने वाली नहीं है।

मेरे रवैये से कुछ उखड़ी हुई मुझे चुनौती देते हुए वह बोली, "दीपक, तुम मुझे कम इस लिए समझ रहे हो क्यूंकि मैं तुम्हारी बीबी हूँ। पर दुनिया बहुत बड़ी है। तुम्हारा ये दोस्त तरुण को ही देखो। अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य, संस्कारी, शालीन और शुशील है? वह हम महिलाओं का सम्मान करना जानता है और हमारी महत्ता और महत्वकांक्षाओं को समझता है। उसे पूरी तरह ज्ञात है की स्त्रियों का पुरुष के जीवन में कितना महत्त्व पूर्ण और उच्चतम योगदान है।" बातें करते हुए दीपा की जीभ थरथरा रही थी और वह एकदम संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगी थी। दीपा गुस्से में अंग्रेजी और जब प्रशंषा अथवा तारीफ़ करनी हो तो संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगती थी।

मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।
 
मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।

मुझे शक हुआ के कहीं तरुण ने दीपा का हाथ अपनी टांगों के बिच लण्ड के ऊपर तो नहीं रख दिया था? पर अँधेरे के कारण मैं ठीक से देख नहीं पा रहा था। मेरी प्यारी पत्नी इतना कुछ होते हुए भी जैसे कविताएं सुनने में व्यस्त लग रही थी, या फिर तरुण की शरारत महसूस करते हुए भी ध्यान नहीं दे रही थी। उस रात तरुण या मैं अगर उसको छेड़ें तो विरोध नहीं करने का आखिर वादा भी तो किया था उसने?

मुझे उस समय यह नहीं पता था की मेरी बीबी ने उससे भी कहीं बड़ा वादा (तरुण से चुदवाने का) तरुण को कार मैं बैठने से पहले ही कर दिया था। दीपा की एक कमजोरी कहो अथवा अच्छी बात कहो वह यह थी की अगर उसने एक बार वादा किया अथवा वचन दे दिया तो वह वह कभी मुकरती नहीं थी।

हम और थोड़ी देर तक उसी जगह कार को खड़ी रख कविताएं सुनते रहे। आखिर जब बोरियत होने लगी, तब मैंने तरुण से कहा, "अरे तरुण, यार इस कार्यक्रम से तो तुम्हारी कहानी बेहतर थी। चलो कार को कहीं और ले लो। यहां बहुत शोर है।"

तरुण ने कार को मोड़ा और वहाँ से दूर मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर कार को एक जगह खड़ा किया। बाहर दूर दूर कहीं रौशनी दिखती थी, पर कार में तो अँधेरा ही था। आँखों पर जोर देनेसे थोड़ा बहुत दिखता था।

कार रुकने पर मैंने तरुण से कहा, "तरुण तुम्हारी कहानी सटीक तो थी, पर एक बात कहूँ? तुमने तो यार कहानी को बिलकुल फीका ही कर दिया। सारा मझा ही किरकिरा कर दिया। ना तो तुमने सेक्स कैसे हुआ यह बताया, ना तो सारी बातें स्पष्ट रूप से खुली की। रमेश का दोस्त और उसकी बीबी सेक्स करते थे, इसके बजाय चोदते थे ऐसा क्यों नहीं बोलते? रमेश की बीबी ने अपने पति के अंग को सहलाया, उसके बजाये यह क्यों नहीं कहा की लण्ड को सहलाया?"

मेरी बात सुनकर दीपा एकदम भड़क उठी। उसने मेरी तरफ देखा और बोली, "यह क्या है? तुम ऐसे गंदे शब्द क्यों बोल रहे हो?"

मैंने तुरंत तालियां बजाते हुए कहा, "देखा तरुण? मैं क्या कह रहा था? यह औरत कैसे भड़क गयी? क्यों? अब तुम मर्दों की बराबरी क्यों नहीं कर सकती? क्यों चूत लण्ड ऐसे शब्द नहीं सुन सकती? यह शब्द गंदे कैसे हो गए? सेक्स अथवा फक करना अच्छा शब्द है, पर चोदना गंदा शब्द है? पुरुष का लिंग अच्छा शब्द है, पर लण्ड गंदा शब्द है? देखा तरुण? मुझे पता है की मेरी पत्नी में इतनी हिम्मत नहीं है की वह भी हम पुरुषों के साथ बैठ के खुल्लम खुली सेक्सुअल बातें पुरुषों की तरह सुन सकती है। इसी लिए तो मैं कहता हूँ की औरत मर्द का मुकाबला नहीं कर सकती। क्यों डार्लिंग? क्या कहती हो अब?"

तब तरुण ने बड़ी सम्यता से कहा, "नहीं दीपक, हमें महिलाओं के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। मैं दीपा भाभी की बहुत इज्जत करता हूँ। मैं नहीं चाहता की दीपा भाभी के मन को मेरी बातों से कोई ठेस पहुंचे। मैंने उन्हें वैसे ही काफी दुःख पहुंचाए हैं। मैं उन्हें और कोई दुःख नहीं पहुंचाना चाहता।"

तरुण की इतनी सम्मान पूर्ण शालीन बात सुनकर दीपा भावुक हो गयी उसकी आँखें नम हो गयीं। दीपा तरुण को बड़े सम्मान और प्रेम भरी नजर से देख रही थी। दीपा ने तरुण के दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और उन्हें प्रेम से सहलाने और दबाने लगी। पर वह मेरे ताने को भूली नहीं थी।

दीपा ने मुझसे 'नाजुक' शब्द सूना था तो उसे तो जवाब देना ही था। मेरी बात सुनकर, दीपा आगबबूला हो गयी। वह कार में ही खड़ी होने की कोशिश करने लगी। फिर खड़ा ना हो पाने के कारण बैठ तो गयी पर मुझ पर बरस पड़ी। दीपा तरुण का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघों के बिच के हिस्से पर दबाते हुए जोश में आ कर और बोली, "नहीं तरुण, तुम जरूर वह कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला बेझिझक सुनाओ। हरेक स्त्री ऐसी छुईमुई नाजुक नहीं होती। मैं तो बिलकुल नहीं हूँ। मैं क्यों भला हिच किचाउंगी? क्या स्त्री पुरुष के साथ सेक्स नहीं करती? आखिर सेक्स भी तो हमारी ज़िंदगी का एक स्वाभाविक ऐसा हिस्सा है जिसको हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। तरुण तुम बेझिझक कहो। मेरी वजह से मत हिचकिचाओ। अगर पुरुष लोग सेक्स की बातें करते हैं और सुनते हैं तो भला स्त्रियां क्यों नहीं सुन सकती? मेरे पति को अगर उसे सुनना है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। उन के दिमाग पर तो हमेशा सेक्स ही छाया रहता है।" दीपा ने मुझ पर अपने गुस्से की झड़ी बरसा दी।

पर मैं कहाँ रुकने वाला था? मैंने दीपा को कहा, "देखा? पुरुष और स्त्री का अंतर तो तुम ने खुद ही साबित कर दिया। तुम सेक्स शब्द तो बोल सकती हो, पर यह नहीं बोल सकती की पुरुष और स्त्री की चुदाई की बात हो तो उसे तुम्हें आपत्ति नहीं होगी। अंग्रेजी में बोलो तो सभ्य, और हिंदी में बोलो तो गंवार?"
 
मेरी प्यारी बीबी का गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच रहा था। उसे अपनी हार कतई मंजूर नहीं थी। वह मुझ पर एकदम बरस ही पड़ी। अपने स्त्री सुलभ अहंकार को आहत होना उसे कतई मंजूर नहीं था। किसी भी तरह के शिष्टाचार की परवाह ना करते हुए मेरी बात से झुंझला कर गुस्से से तिलमिलाती हुई दीपा बोली," यु आर ए लिमिट यार। व्हाट डु यु थिंक ऑफ़ योर सेल्फ? डोंट हेसल मि। तुम तो यार पीछे ही पड़ गए? क्या तुम और मैं सेक्स करते समय, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते? तुम तरुण के सामने झूठ क्यों बोल रहे हो? क्या मैं सेक्स, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई में तुम्हारा पूरा साथ नहीं देती?"

मैं मेरी बीबी को हक्काबक्का हो कर देखता ही रहा। तरुण भी कुछ पलों के लिए स्तब्ध सा मेरी पत्नी को देखता ही रहा। दीपा क्या बोल रही थी? मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी बीबी इतनी खुल्लम खुल्ला किसी गैर मर्द के सामने इस तरह बात कर सकती है।

दीपा ने फिर मुड कर तरुण की और देखा और बोली, "तरुण आज मेरे पति ने तुम्हारे सामने मुझे नंगी ही कर दिया, मेरा मतलब है, आज मेरे पति ने मुझे तुम्हारे सामने जो शब्द नहीं बोलने चाहिए वह भी मुझसे बुलवा लिए। तुम अब बेझिझक मेरे पति जो सुनना चाहते हैं वह खुल्ले शब्दों से भरी तुम्हारे दोस्त की चुदाई की कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला सुनाओ। आज मैं मेरे पति को दिखा देना चाहती हूँ की वह मेरी स्त्री सुलभ सभ्यता को मेरी कमजोरी ना समझें। आई एम् ए स्ट्रॉन्ग वुमन नॉट ए ब्लडी डेलिकेट वुमन।"

तरुण तो जैसे दीपा की बात सुनकर उछल ही पड़ा। उसने सोचा नहीं था की एक तगड़े जिन के डोझ से ही भाभी इतनी जल्दी चौपट हो जायेगी। तरुण ने फ़ौरन दीपा का हाथ अपनी जांघों के बिच में रखकर दीपा की जाँघों को और फुर्ती से कामुक अंदाज से सेहलाते और अपने लण्ड पर दीपा का हाथ दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "दीपा भाभी, मुझे आपके सामने ऐसे खुल्लमखुल्ला बात करने में शर्म आती है और आपके गुस्से का डर भी लगता है। पर आज मुझे मेरी भाभी पर गर्व भी है की वह इतनी, शुशील और सभ्य महिला होते हुए भी मर्दों के साथ धड़ल्ले से सेक्स के बारे में खुल्लमखुल्ला बात करती है और इतनी तो छुईमुई नहीं है की मर्दों की छोटीमोटी हरकतों से पीछे हट जाए। भाई तुम तक़दीर वाले हो। ऐसी पत्नी तक़दीर वालों को ही मिलती है। भाभी क्या आप वास्तव में ऐसी स्पष्ट भाषा सुन सकोगी?"

दीपा अपने जिद भरे गुस्से में थी पर तरुण के सभ्यता भरे सवाल से कुछ गुस्से से और कुछ प्यार से बोली, " यार तरुण डोन्ट फील बेड। टुडे इट इस ए क्वेश्चन ऑफ़ थ्रु एंड थ्रु। तरुण, तुमको मैं किस भाषा में समझाऊं की आज आरपार की बात है? मेरे पति मुझे कमजोर, नाहिम्मत अबला समझते हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने मुझे इसी तरह कोमल, नाजुक, नरम आदि कह कर मुझे कमजोर समझा। वह सोचते हैं की मैं साफ़ साफ़ सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई की बातें नहीं सुन सकती। हाँ ऐसी बातें कहने और सुनने में मेरे पति की तरह मेरी जीभ 'लपलप' नहीं होती। पर मैं सुन जरूर सकती हूँ और बात भी जरूर कर सकती हूँ। तुम आगे बढ़ो और आज तो ज़रा भी घुमा फिरा के बात मत करो। आज तो होली है आज तो बस खुल्लमखुला ही चुदाई की बात करो। मैं मेरे पति को आज दिखा देना चाहती हूँ की मैं कोई छुईमुई नहीं हूँ की चूत, चुदाई, लण्ड ऐसे शब्दों से डर जाऊं। मेरे पति खुद मुझे आज तुम्हारे सामने नंगी करना चाहते हैं तो ठीक है। मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। अब मर्यादा की ऐसी की तैसी। देखते हैं कौन पीछे हटता है। सुनाओ यार, बिलकुल बेझिझक हो कर तुम भी खुल्लमखुल्ला बोलो!"

तरुण को और क्या चाहिए था? उसने वही कहानी अब खुल्लमखुल्ला भाषा में कहना शुरू किया।

तरुण ने कहा, "ठीक है, देखो भाई, मैं तो बस भाभी का लिहाज कर रहा था। अगर दीपा भाभी को एतराज नहीं है और तुम सुनना चाहते हो तो उनकी सारी आपबीती मैं अब खुल्लम्खुल्ले शब्दों में सुनाता हूँ।"

ऐसा कह कर तरुण ने वह कहानी का सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई वाला हिस्सा दुबारा खोल कर सुनाया। तरुण ने कहा, "दीपक, जब रमेश उस कपल के बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की बीबी अपने पति की गोद में बैठी पति के होँठों से अपने होँठ मिलाकर उनके होंठ चूस रही थी। दोनों पति पत्नी प्यार में इतने मशगूल थे की उन्हें ध्यान भी नहीं था की उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था। या हो सकता है उन्होंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ रखा हो।

सच तो यह था की रमेश का दोस्त, रमेश की बात सुनकर इतना प्रभावित हो गया था की अपनी बीबी को रमेश से चुदवाते हुए देखना चाहता था और वह भी रमेश के साथ मिलकर अपनी बीबी को चोदना चाहता था। शायद उसकी बीबी भी अपने पुराने दोस्त से बहोत आकर्षित थी और रमेश से वह कॉलेज में पढ़ते हुए चुदाई ना करवा सकी, शायद उसके मन में यह कसक कहीं ना कहीं रह गयी थी। तो तब वह शादी के इतने सालों के बाद रमेश से चुदाई करवाने के लिए तैयार हुई।

रमेश के कमरे में आते ही रमेश ने देखा की दोस्त की बीबी के ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और ब्रा भी खुली हुई थी। दोस्त की बीबी के आकर्षक और सेक्सी बॉल रमेश की नज़रों को उकसाने के लिये काफी थे। बीबी के स्तनों की निप्पलेँ उसकी उत्तेजना के कारण ऐसी फूली हुई और कड़क थीं की जैसी एक औरत की प्यार भरी चुदाई से हो जातीं हैं।"

जब दीपा ने यह सूना तो मैंने महसूस किया की दीपा के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उस शाम तक दीपा ने पहले कभी किसी गैर मर्द से ऐसी खुली सेक्सी भाषा नहीं सुनी थी। तरुण के मुंह से ऐसी बातें सुनकर उसने अपना एक हाथ अपनी चूँचियों पर रखा और दूसरे हाथ से मेरी जांघ को दबाया। जैसे वह चेक कर रही थी की कहीं उसकी अपनीं निप्पलेँ भी तो सख्त नहीं हो गयीं।

शायद तरुण ने भी यह देखा। वह मन ही मन मुस्कराता हुआ बोला, "रमेश के दोस्त के हाथ अपनी बीबी के बब्ले दबाने में और उनको मसलने में व्यस्त थे। शायद मैंने नहीं देखा... मेरा मतलब है, रमेश ने नहीं देखा पर उस समय मेरे दोस्त का... मेरा मतलब है रमेश के दोस्त का लण्ड भी उसकी धोती में खड़ा हो गया होगा और बीबी की सुडौल गाँड़ को निचे से टॉच रहा होगा।"

जब तरुण गलती से यह बोल पड़ा तो इसका मतलब मुझे साफ़ दिखा। मैंने तरुण को बीचमें टोकते हुए कहा, "तरुण, झूठ मत बोलना। कहीं तुम अपनी ही सच्ची कहानी अपना नाम छुपाकर तुम्हारे दोस्त रमेश का नाम लेकर तो नहीं सूना रहे हो? कहीं वह रमेश तुम ही तो नहीं हो?"

मेरी बात सुनकर तरुण खिसियाना सा कुछ देर तक सुन्न सा मेरी और देखता रहा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर अपनी कहानी जारी रखते हुए कहा, "पहले पूरी बात सुनलो।"

उसके बाद तरुण स्पष्ट रूप से रमेश के मित्र और उसकी पर्त्नी की चुदाई के बारे में विस्तार से बताने लगा। सबसे पहले रमेश ने उसके दोस्त की पत्नी के बूब्स को खोल कर पुरे आवेश के साथ चूसा। रमेश के चूसने से रमेश के दोस्त की पत्नी मचल उठी। उसकी निप्प्लें एकदम सख्त हो गयी। रमेश ने तरुण को बताया की उसने कैसे उसके मित्र की पत्नी की चूत को चाटा और कैसे उसकी चूत के झरते हुए पानी को चूसने लगा।

रमेश के मित्र की पत्नी ने अपने पति और रमेश दोनों के लण्ड अपने दोनों हाथोंमे लिए और उन्हें धीरे धीरे सहलाने और मालिश करने लगी। जैसे जैसे उसने दोनों मर्दों के लण्ड को थोड़ी देर हिलाया तो तरुण के दोस्त रमेश और उसके दोस्त के लण्ड लोहे की छड़ की तरह खड़े हो गए।"

जब तरुण थड़ी साँस लेने के लिए रुका तो मैंने तरुण से कहा, "यार तुझे तो कोई लेखक होना चाहिए था। तू सारी बातें इतनी बारीकी से बता रहा है, जैसे तू खुद ही वहाँ था। मुझे लग रहा है कही तू ही तो वह रमेश की जगह नहीं था? अगर ऐसा है तो तू साफ़ साफ़ क्यों नहीं बता रहा की तू ही वह रमेश है?, क्यों दीपा मैंने कुछ गलत कहा?"

दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए, कुछ शर्मा कर कहा, "हाँ, दीपक मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।" फिर तरुण की और मुड़कर दीपा ने कहा, "देखो तरुण, अगर तुम्ही थे जिसका नाम तुम रमेश बता रहे हो तो उसमें मुझे या मेरे पति दीपक को कोई आपत्ति नहीं है। मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? जब तुम्हारा दोस्त और उसकी बीबी को ही कोईआपत्ति नहीं है तो हमें क्या लेनादेना? पर जब हम खुल्लमखुल्ला बात कर रहे हैं तब तुम हम से छुपाछुप्पी मत खेलो। पर खैर छोडो इस बातको। हम तुम्हें कटघरे में खड़े करना नहीं चाहते।"

मैंने भी दीपा की बात में सहमति जताते हुए अपना सर हिला दिया। तरुण की खुल्लम खुली कहानी जिसमें तरुण के दोस्त की बीबी ने बारी बारी से दोनों मर्दों के लण्ड को चूसा यह सुन कर मैं तो उत्तेजित हो ही गया पर मैंने अनुभव किया की दीपा भी काफी गरम हो रही थी। मैं उसके हांथों में हो रहे कम्पन महसूस कर रहा था। तरुण की आवाज में भी रोमांच की थरथराहट महसूस हो रही थी। हम तीनों ही उत्तेजित हो उठे थे।

दीपा ने तरुण की और देख कर कहा, "तरुण, यार तुम बड़े ही चालु निकले। इधर किसी से प्यार तो उधर किसी और से? तुम एक साथ कितने चक्कर चलाते हो यार? मैं जानती हूँ की वह रमेश कोई और नहीं, वह तुम्ही थे और तुमने ही वह, क्या कहते हैं? हाँ एम.एम.एफ़. थ्रीसम बगैरह भी तुम्हारे दोस्त और उसकी बीबी के साथ किया। एक साथ इतने चक्कर चलाना, यह ठीक बात नहीं।" बात करते करते बिच बिच में दीपा की जबान थोड़ी सी लहरा जाती थी लड़खड़ा जाती थी।
 
जब तरुण ने यह सूना तो उसकी बोलती बंद हो गयी। उसने दीपा का हाथ पकड़ा और बोला, "भाभी, मैं आपकी कसम खा कर कहता हूँ की जो हो गया वह हो गया। अब मैं वह नहीं हूँ जो कभी हुआ करता था। मेरा यकीन करो। हाँ, आपको जब भी देखता हूँ तब मेरा मन मचल जाता है यह सच बात है। आज मैं भाई के सामने यह बात कह रहा हूँ की आप इतनी सभ्य, सुशिल, संस्कारी होते हुए भी आज आप इस ड्रेस में तो रम्भा, रति या मेनका से भी ज्यादा सेक्सी लग रही हो। आपको जब देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। वरना भाभी मानिये की मैं अब किसी और औरत की तरफ गलत नजर से देखता नहीं हूँ। भाई बहोत बहोत तकदीर वाले हैं की उन्हें आप जैसी बीबी मिली जो हमेशा उनकी मन की इच्छा पूरी करती है।"

दीपा तरुण की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "अच्छा? तो क्या? तुम चाहते हो की मैं तुम्हारे मन की भी इच्छा पूरी करूँ? क्या बात करते हो? तुम भी ना तुम्हारे भाई की तरह कभी कभी बहकी बहकी बातें करते हो। तुम कहते हो तुमने किसी और औरत को गलत नज़रों से नहीं देखा। मतलब क्या है? इसका मतलब तुमने मुझे गलत नज़रों से देखा है। है की नहीं? बोलो?"

मेरी बीबी की साफ़ साफ़ बात सुन कर मैं भी हैरान रह गया। मैंने भी तरुण से पूछा, "बोलो तरुण, दीपा की बात का जवाब दो?"

तरुण ने अपनी नजरें झुका कर कहा, "भाई और भाभी, आप ने जब मुझे साफ़ साफ़ पूछा है तो मैं झूठ नहीं बोलूंगा। आज मैं आप दोनों के सामने कबुल करता हूँ की मैंने भाभी को गलत नजर मतलब सेक्स की नजर से देखा है, यह हकीकत है। ना सिर्फ गलत नजर से देखा है बल्कि मैंने मेरी भाभी को हर जगह छुआ भी है और उनका बदन पाने की लालसा भी रखी है। भाई, मैंने यह बात आपसे छुपा कर नहीं रक्खी। मैंआपको बताता रहा हूँ की भाभी ऐसी सेक्सी हैं की मैं जब उन्हें देखता हूँ तो अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ। भाभी आप इसकी मुझे जो चाहो सजा दो वह मुझे मंजूर है। आप कहोगे तो मैं अभी इसी वक्त यहां से चला जाऊंगा। पर भाभी मैं आपसे और एक बात जरूर कहूंगा की मैं जब से आप के करीब आया हूँ तब से मैंने आप और टीना के अलावा किसी और औरत की तरफ गलत नज़रों से नहीं देखा।"

दीपा तरुण की बात सुनकर ठिठक गयी। मेरी और देख कर बोली, "अरे सूना तुमने? तुम क्या कहते हो? तरुण कह रहा है वह मुझे गलत नजर से देखता है। मैं तो तुम्हें पहले से कहती थी। पर तुम मेरी बात मानते ही नहीं थे।"

मैंने कहा, "दीपा यह तो कमाल है? मैं तुम्हें कहता था की तरुण तुम्हें लाइन मार रहा है तो तुम कहती थी ऐसा नहीं है तरुण शरीफ लगता है?"

तरुण ने देखा की हम मियाँ बीबी एक दूसरे से लड़ने लगे तब तरुण ने कहा, "भाई, हम यहां मजे करने के लिए आये हैं, लड़ने के लिए नहीं। अगर आप दोनों को लगता है की मेरा भाभी की और गलत नजर से देखना सही नहीं है तो मैं अभी आप दोनों को आपके घर पर छोड़ कर चला जाता हूँ। आगे से मैं आपको ना ही मिलूंगा नाही फ़ोन करूंगा। मैंने जो बोला वह सच बोला और आप से भी छुपाया नहीं। बोलो, भाई और भाभी, आप का क्या निर्णय है? क्या आप मुझ से सम्बन्ध रखेंगे या नहीं?"

तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ हड़बड़ाई सी हो गयी और मेरी और देखने लगी। मैंने देखा की उसकी आँखें कह रहीं थीं की तरुण को जाने ना दूँ, उसको रोकूं।

मैंने तरुण से कहा, "मैं भी आज तुम्हारे सामने एक सच बोलता हूँ और मैं कबुल करता हूँ की मैंने भी तुम्हारी बीबी टीना को गलत नज़रों से देखा है। देखो अभी अभी दीपा ने खुद ही कहा की अगर पति और पत्नी दोनों ही किसी बात पर सहमत हों तो उसमें कोई भी बात गलत नहीं होती। तुम मेरी बीबी को सेक्स की नजर से देखते हो या छेड़ते हो या मुझे संज्ञान में रखते हुए उससे और भी आगे बढ़ते हुए सेक्स भी करते हो तो उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बाकी दीपा क्या चाहती है वह दीपा जाने।" यह कह कर मैंने सारा ठीकरा दीपा के सर पर ही फोड़ दिया।

तरुण ने फ़ौरन दीपा की और देखा और दोनों हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कहा, "तरुण, आज तो कमाल हो गया। मेरा पति तुम्हारी पत्नी को लाइन मार रहा है और तुम तुम्हारे दोस्त की बीबी मतलब मुझ पर लाइन मार रहे हो। तुम दोनों ने मिलकर तो सारा हिसाब बराबर ही कर दिया। अब और क्या कहना बाकी रह गया है?"

दीपा की बात सुन कर तरुण चुपचाप एक गुनहगार की तरह दीपा की और देखता रहा। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था। हमें ऐसे हाल में देख कर दीपा की हंसी फुट पड़ी। वह तरुण के हाथ थाम कर बोली, "तुम्हें कहीं नहीं जाना। चलो तुमने यह सच तो बोला और कबुल किया की तुम मुझ पर लाइन मार रहे थे यह ही बड़ी बात है। मैं कोई इतनी ज्यादा रूढ़िवादी नहीं हूँ जितना मेरे पति मुझे मानते हैं। सच तो यह है की तुम अकेले ही नहीं हो जो मुझ पर लाइन मार रहे हो। मुझ पर लाइन मारने वाले पता नहीं कितने हैं। यह तो अच्छा हुआ की हम उस महामूर्ख सम्मलेन में कार से बाहर नहीं निकले, वरना इस ड्रेस में मुझे देख कर आज वहाँ लाइन लगाने वालों की लाइन लग जाती।

मेरे पति और मैं हम दोनों तुम्हें पसंद करते हैं। तुम में सच्चाई है यह तुम्हारी खूबी है। मुझे तो आईडिया हो ही गया था की तुम मुझ पर लाइन मार रहे हो और हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो। देखो उस दिन पार्क में टीना भी थी, फिर भी तुमने मुझे छेड़ दिया और मुझे इधर उधर छू लिया था। और फिर उस सुबह जब तुम मेरी मदद करने रसोई में आये थे तब तुमने मुझे बाथरूम में सब जगह छू ही नहीं लिया था और भी बहुत कुछ किया था। आज होली के दिन भी तुमने मेरे साथ क्या क्या नहीं किया? ... "

ऐसा कह कर दीपा तरुण को उसकी हरकतों के बारे में बोलती गयी और विस्तार से बताने लगी। मैं तो जानता ही था की दीपा एक बार शुरू हो गयी तो उसे रोकना मुश्किल था। मेरी बीबी वैसे ही बातूनी है और शराब का तड़का जब लगा तो वह कहाँ रुकने वाली थी? धीरे धीरे सारी बातें साफ़ हो रहीं थीं और सब के मन की बात बाहर आने लगी थीं।
 
दीपा तरुण से बातें करने में और तरुण की बातें सुनने में इतनी मग्न थी तब मैंने देखा की तरुण ने अपना बाँया हाथ धीरे से दीपा के बदन के पीछे दीपा की पीठ और कार की सीट की बैक के बिच में घुसेड़ दिया। पीछे मेरी बीबी का ब्लाउज सिर्फ दो डोर के सहारे टिका हुआ था। तरुण ने हलके से बड़ी चतुराई से दीपा को अपनी बातों में उलझाए रखते हुए पता नहीं कब वह दोनों डोर एक के बाद एक करके खोल दिए। मुझे भी पता नहीं चलता पर मैंने देखा की दीपा का ब्लाउज ढीला सा आगे की तरफ झुका हुआ था। दीपा को पता नहीं चला की कब उसके ब्लाउज को तरुण ने खोल दिया।

उसी दरम्यान जब मैंने दीपा को अपने कूल्हे बार बार सीट पर खिसकाते हुए देखा तो मैंने दीपा की पीठ पीछे देखा तो पाया की तरुण अपना हाथ दीपा के कूल्हे के निचे तक ले जाकर शायद दीपा की गाँड़ में साडी के तले से उंगली कर रहा था। पता नहीं क्यों मेरी बुद्धू बीबी अपने कूल्हे इधर उधर खिसका ने के अलावा इस का कोई प्रत्युत्तर नहीं दे रही थी। क्या उस को तरुण क्या कर रहा था यह समझ नहीं आ रहा था या फिर वह तरुण की शरारत को जानबूझ कर झेल रही थी, या क्या वह तरुण की शरारत को एन्जॉय कर रही थी?

दीपा की पतली महिम ब्रा ब्लाउज के खुल जाने से साफ़ दिख रही थी। वह ब्रा भी जाली वाली पार दर्शक सी ही थी। उस ब्रा के अंदर से मेरी बीबी की दूधिया सफ़ेद चूँचियों के बिच में कामुकता भरा चक्कर बनाये हुए चॉकलेटी एरोला के शिखर पर अपना सर खड़ा रखती हुई दीपा के स्तनोँ की निप्पलेँ अल्लड खड़ी हुई नजर आ रही थी। शायद तरुण की आँखें भी उस नज़ारे का रसास्वादन कर रही थीं।

उस समय तरुण रमेश और उसका दोस्त उस दोस्त की पत्नी की टांगें खोल कर उसका घाघरा चोली निकाल कर बीबी की चूत को बारी बारी से कैसे चाटने लगे थे उसका विवरण कर रहा था। हालांकि दीपा तरुण की कहानी पुरे ध्यान से सुन रही थी, पर ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे वह कार के बाहर कही दूर अँधेरे में कुछ देख रही हो और जैसे उसे कहानी में कोई ज्यादा दिलचस्पी ही ना हो।

दीपा को तरुण की हरकतों के बारे में शायद आइडिया हो की तरुण कुछ शरारत कर रहा था पर उसे टोक नहीं रही थी क्यूंकि एक तो वह थोड़ी उन्माद की स्थिति में थी और शायद वह दिखाना चाहती थी की वह तरुण की ऐसी वैसी हरकतों से पीछे हटने वाली नहीं थी। या फिर गुस्सा करके वह माहौल बिगाड़ना नहीं चाहती थी। मैं अपने मन में मेरी बीबी के मन में क्या चल रहा होगा उसकी कल्पना मात्र ही कर सकता था।

तरुण की उत्तेजना भरी कहानी सुनकर मैं तो पागल सा हो रहा था। शायद दीपा का भी वही हाल था। तब मैंने साफ़ देखा की तरुण ने मेरी बीबी के पीछे ब्रा के पट्टे का एक ही हल्का सा हुक था उसे खोल दिया। दीपा की ब्रा की पट्टी पीछे से खुल गयी। दीपा की ब्रा दीपा के कंधे पर लटक गयी और उसके अल्लड और उन्मत्त खड़े दोनों स्तन आधे खुले हुए दिखने लगे।

तरुण ने जैसे ही दीपा के स्तनों को आधे अधूरे खुले हुए देखा तो उसकी आँखें फटीं की फटीं रह गयीं। उस समय वह रमेश के दोस्त की बीबी रमेश और उसके दोस्त के लण्ड बारी बारी से हाथ में पकड़ कर कैसे चूस रही थी उसका वर्णन कर रहा था। पर तरुण ने जब दीपा के उद्दंड स्तनोँ को अधखुली दशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उसके मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गयी।

दीपा ने जब तरुण की और देखा और तरुण को अपने स्तनोँ की और एकटक देखते हुए पाया तो उसे समझ आया की उसके ब्लाउज के डोरे और ब्रा की पट्टी खुली हुई थीं। तब मैंने महसूस किया की दीपा के गुस्से का पारा चढ़ रहा था और जल्दी ही कुछ ना किया गया तो वह एक़दम सातवें आसमान को छू सकता था और वह तरुण की ऐसी की तैसी कर सकती थी। अगर ऐसा हुआ तो सारी शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा और दीपा एकदम वापस घर जाने की जिद पर उतर आएगी तो हमें मजबूरी में यह सारा प्रोग्राम कैंसिल करना पडेगा।
 
दीपा ने जब तरुण की और देखा और तरुण को अपने स्तनोँ की और एकटक देखते हुए पाया तो उसे समझ आया की उसके ब्लाउज के डोरे और ब्रा की पट्टी खुली हुई थीं। तब मैंने महसूस किया की दीपा के गुस्से का पारा चढ़ रहा था और जल्दी ही कुछ ना किया गया तो वह एक़दम सातवें आसमान को छू सकता था और वह तरुण की ऐसी की तैसी कर सकती थी। अगर ऐसा हुआ तो सारी शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा और दीपा एकदम वापस घर जाने की जिद पर उतर आएगी तो हमें मजबूरी में यह सारा प्रोग्राम कैंसिल करना पडेगा।

यह सोच कर मैं मेरी बीबी की और घूम गया। मैंने मेरी बीबी दीपा को ऊपर उठाया, अपनी और खींचा, सीट पर अपनी टाँगे लम्बीं कीं, और उसे अपनी बाहों में समेट मैंने दीपा की टांगें फैला कर उसको उठा कर मेरी गोद में ले लिया। उसे मेरी तरफ घुमा कर मेरी टांगों के ऊपर मेरी गोद में बैठना पड़ा।

मैं पीछे सरक कर कार के दरवाजे से अपनी पीठ टिका कर बैठ गया, जिससे मेरे पाँव सीट पर लम्बे हो सकें। पर ऐसा करने से दीपा के पाँव लम्बे नहीं हो सकते थे। दीपा को एक पाँव सीट के निचे लटकाना पड़ा और चूँकि मैं कार के दरवाजे से पीठ सटा कर बैठा हुआ था , दीपा का दुसरा पाँव घुटनों से मोड़ कर दीपा मेरी गोद में बैठी हुई थी। दीपा का घाघरा दीपा के घुटनों से भी ऊपर करीब करीब उसकी पैंटी के छोर तक चढ़ गया था। दीपा की करारी जाँघें लगभग नंगी हो चुकी थीं। हालांकि दीपा की पैंटी तरुण दीपा के पीछे होने से, और दीपा की चूत मेरे लण्ड से सटी होने के कारण तरुण को नहीं दिखाई पड़ती थी।

मेरी टांगें तरुण की जाँघों को छू रही थीं। दीपा की पीठ तरुण की तरफ थी। आगे की सीट की थोड़ी सी जगह में यह सब थोड़ा मुश्किल था। दीपा को मजबूरन अपना घाघरा फैलाकर मेरी कमर के दोनों तरफ अपनी दोनों टाँगों को करना पड़ा। दीपा का घाघरा (पेटीकोट) उसकी जाँघों के ऊपर तक चढ़ गया था। मैंने तरुण के हाथ दीपा के पीछे से हटा दिए और मैं ऐसे नाटक करने लगा जैसे मैंने ही उसके ब्लाउज की डोरी और ब्रा की पट्टी खोली हो। मेरी बीबी की गाँड़ तक अपने हाथ ले जा कर मैं उसकी गाँड़ के गालों को दबाने लगा।

बड़ी मुश्किल से मेरी पत्नी बोल पायी की "दीपक यह क्या कर रहे हो? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?"

मैंने कहा, "मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ तो तुम्हें परेशानी लगती है?" मैं यह कह कर मैं फिर से मेरी बीबी को मेरे बदन से दबा कर उसे चूमने और उसकी पीठ को प्यार से सहलाने लगा। मेरी बात सुनकर दीपा चुपचाप मुझसे अपने होँठ और जीभ चुस्वाति रही।

बाहर से देखने वाले को तो शायद ऐसा ही लगता जैसे दीपा मेरी गोद में बैठ कर मुझे चोद रही थी। मैंने दीपा को उसकी बाँहें मेरे गले में डालकर मुझे चुम्बन करने के लिए बाध्य किया। दीपा भी उकसाई हुई थी। वह भी अपनी बाँहों में मुझे लपेट कर मेरे होँठों से अपने होँठ भींच कर मुझे गहरा चुम्बन करने में जुट गयी।

ऐसा करते हुए मैंने तरुण की और देख कर एक आँख मटक कर कहा, "यार तरुण, तुम्हारी कहानी तो अच्छे अच्छों का लण्ड खड़ा कर देने वाली है। मेरा लण्ड भी कितना गरम हो कर खड़ा हो गया और फुंफकार रहा है।" मैंने फिर दीपा की और घूम कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक पागल की तरह मैं उन्हें चूमने और चूसने लगा।

दीपा भी तो उत्तेजित हो गयी थी। वह भी काफी गरम थी। वह अपनी खुली हुई चूँचियों भूल ही गयी। उसके गुस्से पर मैंने जैसे पानी फेर दिया। जब मैं दीपा को चुम रहा था तो दीपा मुझे रोक कर कुछ खिसियानी सी आवाज में बोल पड़ी, "अरे रुको। यह क्या कर रहे हो? कुछ शर्म है की नहीं? तरुण यहाँ बैठा हुआ है और सब देख रहा है।"

मैंने दीपा को कहा, "देखा? यही तो मैं कह रहा था की आज की रात जब मैं तुम्हें प्यार करूंगा तो तुम मुझे यह कह कर रोकेगी की तरुण है। तुमने मुझे वचन दिया था की तुम ऐसा नहीं कहोगी और मुझे प्यार करने दोगी। अब तुम वापस मुकर गयी ना? अरे तरुण की ऐसी की तैसी। मुझे प्यार करने दो ना यार!"
 
मैंने उसे पहले से हिदायत दी थी की तरुण आये या ना आये, मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा ही। तो दीपा मुझे मना नहीं कर सकती थी। उसने तो मुझे वचन जो दिया था। वैसे भी उसके लिए यह मुमकिन नहीं था की मेरे बाहुपाश से छूटकर अपनी चूँचियों को वह सम्हाल सके।

अपने वचन से बंधी हुई दीपा लाचारी में मुझे चूमने से रोक नहीं पायी और खुद भी इतनी गरम हो गयी थी की बिना तरुण की परवाह किये वह मेरे होंठों को चूसने लगी।

मैंने तरुण से कहा, "तरुण, सॉरी यार। मैं तुम्हारी गरमागरम कहानी सुनकर मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता। दीपा डार्लिंग, आज तुम्हें हमारे साथ बैठ कर खुल कर बातें करते हुए देख कर मुझे बहोत बहोत बहोत अच्छा लगा है। मजाक अलग है पर आज मुझे तुम पर वाकई में नाज है। आज मुझे ऐसा लगा है जैसे हम लोग हनीमून मना रहे हों।"

दीपा ने मेरी और मुस्करा कर देखा और कुछ दबी सी आवाज में मेरे कानों में बोली जिससे तरुण ना सुन सके, "अच्छा? हम क्या तरुण के साथ हनीमून मना रहे है?"

मैंने कहा, "तो क्या हुआ? तरुण अपना ही है, कोई पराया थोड़े ही है? पर फिलहाल तो तरुण की ऐसी की तैसी"

हम कभी हनीमून पर तो गए नहीं थे। पर मेरी हनीमून वाली बात सुनकर वह काफी खुश थी। उसका गुस्सा पिघल चुका था। मेरी बात सुनते ही बिना बोले दीपा मेरे साथ चुम्बन में जुट गयी। किस करते करते मैंने दीपा की साडी को उसकी जांघों से ऊपर खींचते हुए तरुण की और मुड़कर देखा और कहा, "तरुण, तुम्हारी कहानी ने मुझे इतना उत्तेजित कर दिया है की मैं अपने आप को कंट्रोल में रख नहीं पा रहा हूँ।"

दीपा भी उतनी उत्तेजित हो गयी थी की वह मुझसे लिपट कर जोश से चुम्बन करने लगी और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझसे अपनी जीभ चुसवाती रही। दीपा ने पीछे मुड़ कर हमारी और हैरानगी से देख रहे तरुण को देखा। फिर उसे हलकी सी मुस्कराहट देकर फिर वह मुझे किस करने लग गयी। दीपा के मेरी गोद में आ जाने से मैं उसकी और घूम गया था और उसे मेरी और घूमना पड़ा था, जिसके कारण उसकी नंगी पीठ तरुण की तरफ हो गयी थी। दीपा की ब्रा की पट्टी का हुक तो तरुण ने पहले से ही खोल दिया था।

दीपा की साडी की गाँठ भी दीपा के अपनी सीट पर बार बार सरकने से खुल गयी थी। मतलब के दीपा की पीठ उसकी गाँड़ तक नंगी थी। तरुण को उस समय दीपा की गाँड़ का कट भी नजर आ रहा था। हालांकि दीपा का घाघरा जरूर था, पर वह भी दीपा ने काफी निचे पहना हुआ था जिसके कारण तरुण को दीपा की गाँड़ का कट अपनी नज़रों के सामने दिख रहा था। मैं तरुण की नजर देख रहा था जो दीपा की गाँड़ पर टिकी हुई थी।

दीपा को उठा कर मेरी गोद में बिठाते हुए मैंने पाया की दीपा की साडी की गाँठ खुलने के कारण दीपा की साडी एक कपडे का ढेर बनकर दीपा की कमर के इर्दगिर्द लिपटी हुई थी। दीपा ने भी यह महसूस किया। दीपा की साडी की गाँठ अपने आप खुल गयी थी या तरुण का भी उसमें कोई योगदान था मुझे नहीं पता।

दीपा ने तरुण ना सुने इतनी धीमी आवाज में मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, "मैंने तुम्हें बोला था ना की यह साडी वजन में एकदम हलकी और फिसलन वाली है? देखो अब इसकी गाँठ खुल गयी। तुम तो मुझे सेक्सी कपडे पहनने के लिए कह रहे थे पर यहां तो मैं नंगी ही हो गयी ना? तुमने मेरी इज्जत का तो फालूदा करवा ही दिया ना?"

दीपा की बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने तो दीपा से यह साडी पहनने के लिए नहीं कहा था। पर खैर, मैंने उसे समझाते हुए कहा, "कोई बात नहीं। तरुण ने तुमको पहले आधी नंगी नहीं देखा क्या? तुम्हारी जाँघों को नहीं देखा क्या? तुम कार में ऐसे ही बैठी रहो। तुम चिंता मत करो। मैं तरुण को कार से बाहर जाने ले लिए कहूंगा। तब तुम साडी दोबारा पहन लेना। पर अभी तो मुझे तुम्हारे रसीले होंठों का रस पान करने दो ना?"

दीपा के होँठों से रस टपक रहा था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डाली तो दीपा उसे चाटने लग गयी। मैं और मेरी बीबी दीपा एक उत्कट आलिंगन में जकड़े हुए थे तब तरुण ने मेरी एक बाँह पकड़ी और बोला, "भाई कमाल है। आप दोनों तो गरम हो कर एक दूसरे से लिपट कर अपने बदन की आग बुझा सकते ही पर मेरा क्या? तुम मियाँ बीबी मुझ पर बड़ा जुल्म ढा रहे हो। मेरा कसूर यही है ना की मेरी बीबी मेरे साथ नहीं है?"

मैंने देखा की तरुण मेरी बीबी की नंगी करारी जाँघों को दीपा के कंधे से ऊपर सर उठा कर देखने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया तब उसने अपनी नजरें घुमा दीं।

तब मैंने तरुण को तपाक से जवाब देते हुए कहा, "यह सच है की तेरी बीबी इस वक्त नहीं है। पर दीपा और टीना एक दूसरे को बहन मानते हैं। तो दीपा तेरी साली तो है ना? साली तो आधी घरवाली ही होती है ना? क्यों दीपा, बोलती क्यों नहीं?"
 
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