Desi Porn Stories बीबी की चाहत - Page 7 - SexBaba
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Desi Porn Stories बीबी की चाहत

दीपा ने आँख टेढ़ी करके मेरी और देखा और कटाक्ष में बोल पड़ी, "क्यों नहीं? भड़काओ अपने दोस्त को। और दोनों मिल कर मेरी बैंड बजा दो। क्यों भाई? क्या मैं तरुण की साली हूँ? तरुण तो मुझे भाभी कह रहा है, तो तरुण मेरा देवर हुआ की नहीं? अब यह मत कहिये की देवर आधा घरवाला होता है, या भाभी भी आधी घरवाली होती है।"

तरुण और मैं दीपा की बात सुनकर हंस पड़े। तरुण ने कहा, "भाभी, मैं ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ। बस मैं तो अपनी तक़दीर को कोस रहा था और भाई की तक़दीर की तारीफ़ कर रहा था की उन्हें आप जैसी कंधे से कंधा मिला कर पूरा साथ देने वाली अक्लमंद, हिम्मतवाली, खूबसूरत और सेक्सी साथीदार पत्नी के रूप में मिली है।"

दीपा मेरी गोद मैं मेरी टाँगों के ऊपर बैठी हुई थी। उसका मुंह मेरी और था और पीठ तरुण की और। दीपा थोड़ी घूमी और उसने अपना एक हाथ तरुण की और लम्बाया और बोली, "अरे तुम मेरे दीपक पर क्यों जल रहे हो? अगर मैं दीपक की साथीदार हूँ तो क्या मैं तुम्हारी साथीदार नहीं हूँ? अगर टीना नहीं है तो दुखी मत होना। मैं तो हूँ ना?" ऐसा कह कर दीपा ने तरुण को अपनी दाँहिनी बाँह में लिया। कुछ पलों के लिए दीपा को ध्यान नहीं रहा की उसका ब्लाउज और ब्रा खुले हुए थे। अगर तरुण उसकी बाँहों में आया तो तरुण का हाथ और अगर वह झुक गया तो उसका मुंह दीपा की चूँचियों को जरूर छुएगा।

तरुण ने मौक़ा पाकर दीपा के एक बॉल को एक हाथ में पकड़ा और उसे सहलाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ उसके स्तन को छूते ही दीपा मचल उठी।दीपा के पुरे बदन में एक झनझनाहट फ़ैल गयी जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो। वह एकदम भड़क गयी जब उसे ध्यान आया की उसकी चोली और ब्रा खुले हुए थे। दीपा सावधान हो गयी। दीपा ने तरुण को एक हाथ से धक्का मारकर हटाया और अपनी ब्रा और ब्लाउज ठीक करने में जुट गयी।

दीपा ने तरुण पर दहाड़ते हुए कहा, "तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे। मैं आप लोगों के साथ इतना कोआपरेट कर रही हूँ फिर भी तुम मुझे सताने पर क्यों तुले हुए हो?"

दीपा की जब तगड़ी डाँट पड़ी तब घबड़ा कर तरुण फ़ौरन दरवाजा खोल कर कार से बाहर निकला। वह घूम कर मैं जिस तरफ बैठा था उस दरवाजे के पास आ गया। कार का मेरी तरफ वाला दरवाजा खोलते ही मैं तरुण की सीट (ड्राइवर सीट की ) और थोड़ा सरक गया। दीपा ने तब कुछ राहत अनुभव करते हुए अपनी टांगें सीट पर लम्बी कर दीं। दीपा की टाँगें दरवाजे के बाहर निकल पड़ीं। उस समय दीपा मेरी गोद में मेरी पतलून में छिपे हुए मेरे लण्ड से उसकी साडी, घाघरा और पैंटी में छिपी हुई अपनी चूत सटाकर मेरी जाँघों पर अपने कूल्हों को टिका कर बैठी थी। मेरी कमर की दोनों और उसकी टाँगें फैली हुई थीं। मैं दीपा की और घुमा हुआ था। दीपा का घाघरा उसकी जाँघों को नंगा करता हुआ काफी ऊपर लगभग दीपा की पैंटी तक चढ़ा हुआ था।

कार के दरवाजे को खोलते ही जब तरुण की आँखो को मेरी बीबी की नंगीं जाँघों के दर्शन हुए तो वह पागल सा होगया। वह झुक कर दीपा के पाँव के तलेटी के सोल को चूमने और चाटने लगा। तरुण दीपा के पाँव पकड़ कर बोला, "भाभीजी मुझे माफ़ कीजिये। मैंने कहा नहीं, की मैं एक बन्दर हूँ। भाभी सच मानिये मैं आपकी बहोत रीस्पेक्ट करता हूँ। पर मैं जब आपका सेक्सी बदन देखता हूँ ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मैं अपने आपको कण्ट्रोल ही नहीं कर पाता हूँ। आप तो जानते ही हो।" फिर अपने दोनों अंगूठों को दोनों कान पर रख कर तरुण उठक बैठक करने लगा।

मैंने प्यार से दीपा का हाथ थामा और धीरे से दबाया और दीपा के कानों के पास मेरे होँठ ले जाकर उसके कानों में प्यार भरी आवाज में धीरे से बोला, "यार डार्लिंग, गुस्सा क्यों करती हो? तुम्ही ने कहा था की आज तुम गुस्सा नहीं करोगी और हमारा साथ दोगी। फिर गुस्सा क्यों? तुम्हारे इतने खूबसूरत बूब्स खुले देख कर तरुण से रहा नहीं गया और उसने उन्हें मसल दिए, तो कौनसा आसमान टूट पड़ा यार? तुम ही सोचो अगर तुम उसकी जगह होती तो क्या तुम्हारा मन नहीं करता? उसने तुम्हारे बूब्स ही दबाये है ना? तो क्या हुआ? पहले नहीं दबाये क्या? डार्लिंग गुस्सा मत करो। मैंने कहा ना था की वह तुम्हें छेड़ेगा? बेचारा क्या करे? वह टीना के बगैर तड़प रहा है। जब से तुम उसके पास बैठी हो ना, तबसे उसका लण्ड उसकी पतलून में बड़ा टेंट बना रहा है। तुमने देखा नहीं? मुझे तो डर था की कहीं अँधेरे में उसने अपना लण्ड तुम्हारे हाथ में पकड़ा कर अपना माल निकलवाने के लिए उसने तुम्हें मजबूर ना किया हो। क्यूंकि तुम्ही देखो ना अभी भी वह अपना लण्ड कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा है। जानेमन तुम समझो। प्लीज अब तुम शांत हो जाओ और एन्जॉय करो। प्लीज?"

मेरे इतना कहने पर दीपा मेरी और बड़ी तिरस्कार भरी आँखों से देखने लगी और चुप हो गयी। फिर कुछ देर बाद कुछ सहम कर थोड़ी शर्माती हुई अपने आप पर कुछ नियंत्रण रखते हुए मेरे कानों में फुसफुसाती हुई बोली, " क्या तुमने देख लिया था? दीपक मुझे माफ़ करना। मैं कबुल करती हूँ की उसने कार में जब हम कवितायें सुन रहे थे तब मेरा हाथ उसकी टाँगों के बिच में उसके पतलून की जीप पर रख दिया था और ऊपर से मेरे हाथ को दबा रहा था। तुम सही कह रहे थे। बापरे! उसका लण्ड उसकी पतलून में लोहे की तरह खड़ा होगया था। हालांकि उसका लण्ड उसकी पतलून में ही था, मुझे ऐसा फील हुआ जैसे उसका लण्ड उसकी पतलून फाड़ कर बाहर आ जाएगा। पतलून के ऊपर से ही मुझे लग रहा था जैसे वह बड़ा मोटा और लंबा है। तरुण वाकई चाहता था की मैं उसकी जीप खोल कर उसके लण्ड को पकड़ कर सेहलाऊं। उसने मेरा हाथ भी उसकी जीप पर दबा कर रख दिया था। पर मैंने उसकी जीप नहीं खोली और कुछ देर बाद मेरा हाथ वहाँ से हटा दिया। मैंने उसका माल वाल नहीं निकाला।" मेरी बीबी के यह स्वीकार करने से मेरा लण्ड भी मेरी पतलून में खड़ा हो कर फुंफकारने लगा।
 
दीपा फिर तरुण की और पीछे मुड़ कर तरुण को थोड़ी दूर उठक बैठक करते हुए देख कर हंस कर मेरे कानों में फुसफुसाती हुई मुझसे बोली, "करने दो उसको कुछ देर कसरत। उसकी सेहत के लिए अच्छा है। साले का लण्ड मुझे देखता है तब खड़ा हो जाता है और कुदने लगता है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग तो कभी कबार बेचारे पर दया खा कर उसे शांत कर दिया करो ना?"

फिर वापस मेरी और मुड़कर थोड़ी झल्ला कर बोली, "दीपक, यार तुम भी ना कभी कभी बड़ी ऊलजलूल बात करते हो। तुम्हारा दोस्त तरुण सिर्फ बन्दर ही नहीं, बहुत बड़ा लम्पट बन्दर है। पता नहीं मुझे देख कर ही इसकी जीभ लपलपाने लगती है। यह मुझे बहोत ज्यादा फ़्लर्ट करता और छेड़ता रहता है और मैं सच बताती हूँ की जब वह मुझे छेड़ता है तो मुझे अंदर से पता नहीं क्या हो जाता है? मैं भी पागल सी हो जाती हूँ। यह तो सुधरेगा नहीं। अब तो मैं वाकई तंग आ गयी हूँ। तुम भी हमेशा उसको ही सपोर्ट करते रहते हो। बोलो ना, आखिर तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? बोलो तो सही। मुझसे क्या हिचकिचाना? मैं तुम्हारी बीबी हूँ। क्या आज तक मैंने कभी तुम्हारी कोई बात नकारी है? एक बार बोलो तो सही तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? यार बर्दाश्त की भी कोई हद होती है। इतना घुट घुट के बार बार मरने से तो एक बार मर जाना ही अच्छा है।"

तरुण उस समय कार के बाहर निकल कर कुछ दूर धीरे धीरे दीपा को दिखाने के लिए दण्डबैठक लगाने का ढोंग कर रहा था। वह हमारी बात नहीं सुन सकता था। मैंने दीपा के कान में अपने होंठ रखे और उसे एकदम धीरे से फुसफुसाते हुए पूछा, "डार्लिंग एक बात बताओ। हम तरुण को कह रहे हैं की उसी ने उस पति पत्नी के साथ मिल कर थ्रीसम एम.एम.एफ. किया था। शायद ऐसा ही हुआ भी होगा।

इसका मतलब तो तरुण को थ्रीसम का अच्छा खासा अनुभव है। तो फिर क्यों ना हम भी उसके अनुभव का फायदा उठायें, और उससे एम.एम.एफ. थ्रीसम करें? तुमने खुद कहा की अगर सेक्स में नीरसता आगयी हो और अगर सब की मर्जी से होता है तो एम्.एम्.एफ. थ्रीसम कोई बुरी बात नहीं है। तुम्हें नहीं लगता की वह हम पर भी लागू होता है? हमारी शादी को भी कई साल हो गए हैं? क्या तुम मानती हो की नहीं की हमारी सेक्स लाइफ में भी कुछ हद तक नीरसता आ गयी है?"

यह बात कह कर मैंने मेरी बीबी को घुमा फिरा कर यह इशारा कर ही दिया की मैं चाहता था की मेरी बीबी उस रात मुझसे और तरुण से चुदवाये। दीपा ने मेरी और टेढ़ी नजर कर के मेरे कान में पूछा, "क्या तुम मुझसे ऊब गए हो?"

मैंने कहा, "नहीं ऊबने वाली बात नहीं है। मैं तो तुमसे नहीं उबा हूँ पर शायद कुछ हद तक तुम मुझसे ऊब गयी हो। चलो, इस तूतू मैंमैं की बहस को छोड़ दो पर अगर हम हमारे जीवन में कुछ नयापन लाना चाहें तो क्या बुरी बात है?"

दीपा ने अपने कन्धों को उठा कर कहा, "क्या पता भाई। जब से तरुण ने हमारी जिंदगी में कदम रखा है तब से मुझे तो नयेपन की कोई कमी नहीं खल रही। रोज ही तुम्हारा यह बन्दर नयापन ला रहा है। कभी वह पिकनिक में मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे बूब्स दबाता है, कभी वह मुझे बाथरूम में दबाकर किस करता है, कभी वह होली में मुझे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मेरे बूब्स को भी रंगता और बिंदास मेरी चूँचियों को दबाता और मसलता है, कभी मेरा घाघरा उठा कर मेरी जाँघों को सेहलता है, कभी घर आ कर तुम्हें अपनी बीबी की आधी नंगी तस्वीरें दिखाता है। कभी वह पतलून में छिपे हुए उसके खड़े मोटे और लम्बे लण्ड को मेरे हाथ में पकड़ाने की कोशिश करता है, कभी वह अँधेरे का फायदा उठा कर मुझे खुले में कार के पीछे खड़ी कर अपनी बाँहों में जकड कर कपडे पहने हुए ही चोदने की कोशिश करता है, और मेरे पति उसमें उसका साथ देते हैं। जब मेरे पति ही चाहते हैं की तरुण मुझे और छेड़े तो मैं लाचार हो जाती हूँ क्यूंकि मैं मानती हूँ की पति पत्नी के बिच में विचार मतभेद हो सकते हैं, पर उन को हमेशा साथमें चलना चाहिए। हो सकता है मैं आपसे सहमत न होऊं, पर अगर आपकी प्रखर इच्छा हो या ज़िद हो तो मुझे भी उसके आगे झुकना पडेगा। तभी तो हम साथ साथ चल सकते हैं। पति को पत्नी पर पूरा भरोसा होना चाहिए और पत्नी को पति की बात माननी चाहिए। मैं कभी आपसे असहमत हो सकती हूँ पर कभी ऐसा नहीं होगा की मैं आपके विरुद्ध जाउंगी। मैं हमारे बिच में कभी भी कोई घर्षण नहीं होने दूंगी। और जहां तक नयेपन का सवाल है तो आजकल तरुण के कारण मेरी जिंदगी में नयापन ही नयापन है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग क्यों ना आज रात हम सब मिल कर इस नयेपन को पूरी तरह एन्जॉय करें?"

दीपा ने मेरी और कुछ देर तक एकटकी लगाकर देखते हुए कहा,"तुम क्यों पूछ रहे हो? मैंने अभी अभी क्या कहा? आज तक ऐसा कभी हुआ है की मैंने ना नुक्कड़ भले ही की हो, पर तुम्हें कहीं भी किसी भी मामले में साथ ना दिया हो? चाहे मैं राजी हूँ या नहीं पर मैंने आखिर में जा कर तुम्हारी बात मानी है की नहीं?" फिर क्यों पूछ रहे हो? बोलो तुम मुझसे क्या चाहते हो?"

मैं क्या बोलता? यदि मैं उस समय दीपा को अचानक यह साफ़ साफ़ कह देता की मुझे उसको तरुण से चुदवाना है, तो पता नहीं क्या होता? शायद दीपा मेरी बात पर सोचती और शायद मान भी जाती, पर ज्यादातर मुझे यही लगा की वह मुझे वहीँ की वहीँ ऐसा लताड़ती की सब कुछ गड़बड़ हो जाता। और तरुण की भी शायद ऐसी की तैसी कर देती। मैंने उस समय इस बात को आगे बढ़ाना ठीक नहीं समझा और चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। पर हाँ, मुझे तब यकीन हो गया की अब कहीं ना कहीं दीपा भी शायद समझ गयी थी की हम दोनों उसे चोदने का प्लान कर रहे थे और उसे चोद कर ही छोड़ेंगे। पर तब भी शायद वह यह बात हम से सुन कर उसे पचा ना पाती और हमारे प्लान पर पानी फेर देती।
 
मुझे मेरी प्यारी बीबी को खुद ही चुदाई करवाने के लिए राजी हो जाए ऐसी स्थिति में लाना था। हालांकि शायद वह मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थी पर उस समय दीपा काफी उत्तेजक स्थिति में थी और तरुण की हरकतों से तंग आ चुकी थी। मैं मेरी प्यारी बीबी को तंग होकर चुदवाने के लिए तैयार नहीं करना चाहता था। लोहा गरम हो चुका था। मौक़ा देख कर अब हथोड़ा ही मारना था। तो अब फ़ौरन बिना समय गँवाये सही समय और माहौल बनाना पडेगा जिससे की दीपा खुद ही अपनी मर्जी से मेरे सामने ही तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो जाए। और मुझे काफी हद तक यह भरोसा हो गया की दीपा शायद तैयार हो ही जाए। हमारा प्लान तैयार था। बस मौके का इंतजार था।

मैंने कहा, "तुम पूछती हो हम क्या चाहते हैं? आजकी रात हम दोनों को बस दीपा चाहिए। आज तुम हमारे साथ बेझिझक मौज करो यही हम चाहते हैं। जानेमन, हम तो आज होली के मजे लेने के लिए आये हैं। तरुण ने थोड़ी सी छूट लेली तो इतना क्यों तिलमिलाती हो डार्लिंग? मैं तो तुम्हारे पीछे पागल हूँ ही। वैसे ही तरुण भी तुम्हारे सामने आते ही लम्पट बन्दर की तरह पागल सा हो जाता है और तुम्हारे तलवे चाटने लगता है। अब शांत हो जाओ और देखो यह तुम्हारा पागल बन्दर अब तक उठक बैठक कर रहा है। उसे मनाओ।"

दीपा ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "अरे मैं शांत ही हूँ। और तुम्हारी दीपा कहाँ भागी जा रही है? मैं तुम दोनों के साथ ही हूँ ना, और एन्जॉय भी कर रही हूँ। तुमने मुझे ऐसा सेक्सी ड्रेस पहनने को कहा और मंब बेवकूफ तुम्हारी बातों में आ गयी और मैंने पहन भी लिया। अब देखो क्या हो रहा है? तुम्हारे बन्दर ने और तुमने मिल कर मेरे ड्रेस की ऐसी की तैसी कर दी। मुझे तुम लोगों ने आधी नंगी ही कर दिया। तुम कहीं सचमुच मुझे तरुण के सामने पूरी नंगी तो नहीं करना चाहते हो? लगता है, मुझे तो तुम्हारे इस बन्दर के सामने बुरखा पहन कर ही आना चाहिए था। तब अगर उसे मेरी शकल ना दिखे तो हो सकता है वह मेरे से कुछ सभ्यता से पेश आये।"

मैं दीपा से कहा, "डार्लिंग, आज की रात तो सभ्यता की बात ना करो प्लीज?"

तरुण कार के बाहर उठक बैठक लगा रहा था उसे देख कर दीपा हँस पड़ी और बोली, "बस करो बन्दर। अब तुम ज़रा दूसरी तरफ घूम जाओ। तुमने मेरे कपड़ों की ऐसी की तैसी कर दी है, उसे ठीक करने दो। भाई अगर तुम बन्दर हो तो मैं बंदरिया ही हुई ना? तुम्हारी इस बंदरिया को मतलब मुझे साडी बगैरह कपडे ठीक तरह से पहनने दो।" आखिर में दीपा ने अपने आप ही खुद को तरुण की बंदरिया बता दिया ताकि तरुण बन्दर कहे जाने पर बुरा ना मान जाए।

तरुण ने भाभी को हाथ जोड़ कर कहा, "भाभीजी अब माफ़ भी करदो। आप ने मुझे बन्दर तो करार कर ही दिया है तो मेरी हरकतों का बुरा मत मानना, प्लीज। अब तो हम बन्दर बंदरिया का खेल खेल सकते हैं ना?"

दीपा ने थोड़ा मुस्करा कर एक हाथ ऊपर कर कहा, "ठीक है भाई, इस बंदरिया ने तुम बन्दर को माफ़ कर दिया। पता नहीं तुम दोनों भाई मिल कर मेरे साथ क्या क्या खेल खेलोगे? तुम दोनों ने मिलकर तो मुझे करीब करीब नंगी ही कर दिया है। मैं ऐसे कपड़ों में तो प्रोग्राम में जा नहीं सकती। अब तुम मुझे मेरे कपडे ठीक से पहनने दो। यार अब थोड़ा सीरियस हो जाओ।"

तरुण कार से थोड़ी दूर अँधेरे में घूम कर जा खड़ा हुआ। दीपा ने अपनी साडी फिर ठीक तरह से बाँध ली और ब्रा और ब्लाउज ठीक किये। मेरी बात सुनकर दीपा थोड़ी सी रिलैक्स लग रही थी। अपने आप को सम्हाल कर बोली, "देखो, छेड़ाछाड़ी ठीक है, पर एक लिमिट होनी चाहिए। यह बन्दा कभी सीरियस भी होगा की नहीं?"

मैंने कहा, " मैंने कहा, "मेरी बात मानो, वह बहुत ज्यादा सीरियस है। उसे सीरियस होने के लिए मत कहो। बस वह तुन्हें देखता है और तुम्हारे साथ मस्ती करता है तभी वह कुछ देर के लिए अपना दर्द भूल जाता है। आज टीना नहीं है तो वह और भी परेशान है। उसके सर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या तुम्हें पता है, उस बेचारे के साथ क्या हुआ है?"

दीपा मेरी बात सुन कर चौंक सी गयी। तरुण ने कई बार कुछ सीरियस बात है उसका जिक्र किया तो था पर तब तक दीपा सोच रही थी की कोई मामूली सी बात होगी। पर मामला कुछ ज्यादा ही सीरियस लग रहा था। दीपा ने मेरी और चिंता भरी नजरों से देखा और बोली, " हुआ क्या?"

मैंने कहा, "चलो तरुण को ही पूछ लेते हैं।" हम ने तरुण को बुलाया।
 
तरुण मुझे और दीपा को फुस्फुस करते देख कर बोला, "क्या बात है? मियाँ बीबी क्या फुस्फुस कर रहे हो? भाभी, आज आपने मुझे काफी झाड़ लगा दी है। मुझे झाड़ने की कोई और बात तो नहीं है?"

दीपा ने कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं। पर तुम बताओ, तुम दीपक को कह रहे थे की तुम कोई ख़ास बात करना चाहते हो? क्या बात है?"

तरुण मेरी बात सुनकर तरुण थोड़ा सीरियस हो गया। उसने कहा, "भाभी, मैं बताऊंगा। आपको नहीं बताऊंगा तो किसको बताऊंगा? पर आज आपकी कंपनी में मैं बिलकुल सीरियस होना नहीं चाहता। मैं आज होली की मस्ती और पागलपन ही करना चाहता हूँ। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। अभी तो आप यह बताओ की अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"

मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।"

दीपा ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "तरुण अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "

मैंने कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"

तरुण ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है दीपक? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है दीपा को पाकर? दीपा भाभी जितनी अक्लमंद, सुन्दर, सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है।"

मैंने तरुण को टोकते हुए कहा, "ऐसा मत बोल यार। टीना भी बहुत अच्छी हैं। तू भी बहोत तक़दीर वाला है।"

तरुण ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "मैंने माना की टीना भी बहोत अच्छी है, पर भाभी से कोई मुकाबला नहीं। तूम तो यार सच में तक़दीर वाले हो। देखो मेरी बात को सीरियसली मत लेना पर मैं सच में कह रहा हूँ आज भी अगर तुम और भाभी तैयार हों तो मैं तो अदलाबदली के लिए तैयार हूँ। भाई आप भाभी मुझे देदो और टीना को आप रखलो। भाई मैं दीपा भाभी की पूजा करूंगा और उनपर कोई भी कष्ट का साया तक नहीं पड़ने दूंगा।"

तरुण की बात सुन कर मैं दंग रह गया। तरुण ने बीबियों की अदलाबदली करने वाली बात उस रात साफ़ साफ़ हम दोनों को कह दी। मैंने दीपा की और देखा। वह भी तरुण की बात सुन कर उसकी और अजीब सी नजरों से देखने लगी। तब तरुण ने बात को घुमाते हुए कहा, " यह तो खैर कहने वाली बात है। पर वाकई में दीपक भाई, मैंने आजतक दीपा भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि।"

मैंने देखा की दीपा ने अदला बदली वाली बात को अनसुना कर दिया। पर तरुण की तारीफ़ सुनकर दीपा को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "तुम यह तो मानोगे की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को बहोत करीब से देखा है और समझा है। तुम मानते हो ना की वह स्त्रियों का एक्सपर्ट है? तो सुनो, तुम्हारा अपना दोस्त मेरे बारे में क्या कह रहा है? पर तुम्हे मेरी कद्र कहाँ? मैं तुम्हारी बीबी जो हूँ। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।"

मेरा मन किया की मैं अपनी बीबी को कहूं की, "दीपा डार्लिंग यह क्यों नहीं कहती हो की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को चोदा है? इसी लिए वह लड़कियों और औरतों का एक्सपर्ट है? पता नहीं अब तुम्हें उसमें शामिल करने के लिए तो कहीं वह तुम्हारी तारीफ़ नहीं कर रहा?" पर मैं चुप रहा क्यूंकि ऐसा कहने से दीपा एकदम बिदक जाती।

मैं अपने मन में तरुण की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। उसने तो अदलाबदली वाली बात भी कह डाली। मुझे वाकई में उसकी अदलाबदली वाली बात सुन कर लगा की "अपना टाइम आएगा।" आश्चर्य की बात तो यह थी की इतना कुछ करने के बावजूद भी दीपा की समझ से तरुण जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं।

मैंने तरुण से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बता दो की क्या बात थी?"

मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक तरुण के चेहरे पर जैसे काला साया छा गया। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब तरुण ने बड़ी गंभीरता से दीपा को कहा, "दीपा भाभी, मैं आज इस रंगीली रात में वह सारी बातें भूलना चाहता हूँ। छोडो भाभी। आप सुनेंगे तो आप भी दुखी हो जाएंगे। मैं आपको दुखी देखना नहीं चाहता।"

दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और बोली, "नहीं तरुण, तुम बताओ, क्या बात है। शायद हम तुम्हारी कुछ मदद कर पाएं। अगर मदद ना भी कर पाएं तो तुम उस बात को कह कर अपना बोझ तो जरूर हल्का महसूस कर पाओगे। अपनों से बात करने से हल निकलता है। देखो हम तुम्हारे अपने निजी हैं के नहीं? अगर तुम मुझे और दीपक को एकदम करीबी अपना समझते हो तो सारी बात खुल कर बताओ। जो वाकई में अपने हैं उनसे कुछभी छुपाते नहीं। हमें एक दूसरे से कितनी ही सीक्रेट बात क्यों ना हो कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए। जहां तक दुःख की बात है, तो क्या हमें एक दूसरे से सुख और दुःख बांटना नहीं चाहिए? क्या तुम टीना से कुछ छुपाते हो? तो फिर हमसे क्यों?" मैंने भी तरुण को कहने का इशारा किया।

तरुण ने दीपा की और देखते हुए कहा, "भाभी, मैं आप को अपना नहीं समझता होता तो आप या भाई से इतनी छूट लेता क्या? आप लोगों से मुझे कोई भी झिझक नहीं है। आप इतना कहती हो तो मैं बताऊंगा। आप कहती हो ना की स्त्रियां पुरुष के बराबर होती हैं? मैं आप की बात करता हूँ। आप मुझ जैसे पुरुष से कहीं ज्यादा बुद्धिमान और अक्लमंद हो। मैं आपको मेरी दर्द भरी कहानी इस लिए भी कहूंगा क्यूंकि मैं समझता हूँ की आप सिर्फ मेरे अपने ही नहीं हैं, आप इतनी धीर गंभीर और समझदार हैं की शायद आप ही मुझे कुछ रास्ता बता सकते हो।" यह कह कर तरुण रुक गया।

मैंने देखा की अपनी ऐसी तारीफ़ सुन कर दीपा खिल उठी और उस ने मेरी तरफ कुछ तिरस्कार भरी नज़रों से देखा। फिर तरुण की और मुड़ कर बोली, "ठीक है बोलते जाओ।"

तरुण ने कहा, "मैं तो यह सब सोच कर थक हार चुका हूँ। आज मैं जबरदस्ती अपने आपको मजाकिया मूड में लाने की कोशिश कर रहा था शायद इसी लिए मैंने आपको इतना परेशान किया। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता। पर यह सब सुनने के लिए और मेरी मदद करने के लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा। यहां बाहर कार में बैठे बैठे मैं कह नहीं पाउँगा।"
 
तरुण ने दीपा को इतनी महत्ता दे दी की उस की बात सुन कर दीपा का चौड़ा सीना (!!) और चौड़ा हो गया। दीपा खुश नजर आ रही थी। पर तरुण के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी ।

मैंने दीपा से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात सुनसान रास्ते पर कार खड़ी कर इस तरह बात करने से कुछ शकिया माहौल हो सकता है, कुछ अनहोनी हो सकती है। तरुण के घर में और कोई है भी नहीं। चलो तरुण के घर ही चलते हैं।" उस पर दीपा ने भी अपनी मुहर लगा दी और तरुण ने कार अपने घर की और मोड़ी।

पुरे रास्ते में तरुण के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने दीपा के कान में कहा, " मैंने कहा था ना की गंभीर बात है। अब तक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम तरुण के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे और तुम थोड़ा उसको छेड़ना तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।"

दीपा की नजर में तरुण एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी दीपा तरुण की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही तरुण के घर पहुंचे तो दीपा ने तरुण की कमर पर हाथ रखा और बोली, "आज मैं तुम दोनों के साथ एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। आप लोगों के साथ मुझे एक अनूठा अपनापन लग रहा है। मुझे आज मेरे पति और मेरे देवर के साथ बड़ा अच्छा लग रहा है। और देवरजी इसका श्रेय तुम्हे जाता है। मैं तुम्हें देवर कहूं या बहनोई?"

मैं जानता था की दीपा का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास और तरुण का तास के पत्तों से बना वह तारीफों का पूल था। पर यह देवर कहूं या बहनोई वाली बात कह कर कहीं मेरी बीबी तरुण को आधी घरवाली वाली बात पर तो नहीं लाना चाहती थी? मतलब कहीं तरुण को और छेड़ने के लिए तो नहीं उकसा नहीं रही थी? अगर ऐसा था तो जरूर वह चुदवाने के बारे में अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। उसके मन में क्या था? यह जानना मेरे लिए जरुरी था।

दीपा सोचती थी की शायद तरुण कुछ जवाब देगा। पर तरुण ने तो जैसे मौन व्रत धारण किया हो ऐसे ही मुंह लटका कर चुप था।

मौक़ा देख कर मैंने कह दिया, "तुम तरुण को देवर समझो या बहनोई, या तरुण तुम्हें भाभी समझे या साली, क्या फर्क पड़ता है? छुरी पर खरबूजा गिरे या खरबूजे पर छुरी, कटना तो खरबूजा ही है।"

दीपा ने आँखें टेढ़ी करके पूछा, "आपका क्या मतलब है? मैं साली हूँ या भाभी, मैं आधी घरवाली तो रहूंगी ही, क्या तुम ऐसा कहना चाहते हो? या फिर तुम यह कहना चाहते हो की आज चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगों से मुझे ही कटना है?"

मुझे मेरी बीबी की बात से ऐसा लगने लगा की कहीं ना कहीं उसके मन में यह साफ़ हो गया था की मैं और तरुण मिलकर मेरी प्यारी बीबी को चोदने का प्लान बना रहे थे। और अब तो वह तरुण को भी उसे छेड़ने के लिए उकसा रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं की वह खुद तरुण से चुदवाना चाहती थी और हमें मोहरा बना रही थी?

तरुण ने मुस्काने की कोशिश की पर उसकी मुस्कान में भी ग़म की छाया थी। तरुण ने दीपा की और दुःख भरी नज़रों से देखा पर कुछ ना बोला।

तरुण को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर तरुण की शक्ल रोनी सी हो रही थी। दीपा बड़ी उलझन में थी। तरुण के मूड में यह परिवर्तन दीपा की समझ में नहीं आया। दीपा ने तब मुझे इशारा किया की मैं सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
 
तरुण ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। तरुण ने तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो दीपा ने जोर से कहा, "तरुण, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ की एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "

दीपा ने तरुण के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। तरुण भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो दीपा ने व्हिस्की के साथ कुछ भी मिलाया नहीं और वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। व्हिस्की अंदर जाने से दीपा ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। उसे व्हिस्की का टेस्ट जमा नहीं पर दीपा कैसे भी व्हिस्की को गटागट पी गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।

मैंने और तरुण ने भी अपने गिलास खाली किये। तरुण ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आप जो सुनना चाहते हो वह एक लम्बी कहानी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। बात कर के हम चाहें तो सुबह थोड़ी देर के लिए सो सकते हैं। दीपक, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। दीपा भाभी क्या मैं आप को टीना की कोई नाईटी दूँ?"

मैंने दीपा की और इशारा करते हुए तरुण को बोला, " लाओ भाई। मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे खुले में कपडे बदलने में कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"

तरुण ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और दीपा और तरुण के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए तरुण का कुर्ता पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया और पजामा पहना। ऐसा करते हुए, मेरा आधा खड़ा लण्ड सब को दिख गया। मैंने उसे छुपाने की कोशिश नहीं की। मैं मेरी बीबी को दिखाना चाहता था की मर्द को औरत की तरह फ़ालतू की शर्म नहीं होती। दीपा मेरे लण्ड का तरुण के सामने मुझे प्रदर्शन करते हुए देख कर चौंक गयी और कुछ सहम भी गयी। दीपा और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।

दीपा ने तरुण की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "सुना और देखा तुमने तरुण? मेरे पति कितने बेशर्म और निर्लज्ज हैं? खुद को नंगा होने में शर्म नहीं पर क्या वह अपनी पत्नी को भी दूसरे के सामने नंगी करवाना चाहते हैं?"

मैंने पट से कहा, "अरे भाई तरुण कोई दुसरा या बाहर का थोड़े ही है? अभी अभी तो तुम कह रही थी की हम तरुण के करीबी हैं और तरुण हमारा अपना करीबी है और हमको एक दूसरे से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए?"

दीपा ने कहा, "बात अगर जिद की है, तो मैं भी पीछे हटनेवालों में से नहीं हूँ। अगर मेरे पति ही मुझे नंगी करना चाहते हैं तो भला मैं क्यों पीछे हटूंगी? बात आज इज्जत की है। अगर वह जिद्दी हैं तो मैं डबल जिद्दी हूँ। मुझे तुम्हारे या टीना के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है टीना का नाईट गाउन?" दीपा की आवाज में साफ़ थरथर्राहट थी। मैं समझ गया की दीपा को अच्छी खासी चढ़ गयी है।

तरुण ने जल्दी से चुन कर टीना का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। तरुण ने अपने हनीमून पर टीना के लीये वह ख़रीदा था।

तरुण ने आगे से थोड़ा झुक कर बड़े अदब से कहा, "भाभीजी, भले ही मैं आपके खूबसूरत बदन को सेक्सी नजर से देखता हूँ और उसे चाहता हूँ, पर इसका मतलब यह नहीं है की आप मेरे लिए बड़े सम्मान के पात्र नहीं हो। दीपक तो पागल हो गया है। अरे उसे शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं?"

फिर मेरी और मुड़ कर बोला, "भाई आप का दिमाग ठिकाने नहीं है। आप को मुझे सम्हालना चाहिए। उसकी जगह आप तो मेरी भाभी को ही परेशान कर रहे हो। मैं अकेला ही काफी हूँ भाभी को परेशान करने के लिए। मेरा दिमाग वैसे ही बिगड़ा हुआ है, उसे और मत बिगाड़ो।"

तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी, भाई का भी दिमाग खराब है। उनकी मत सुनो। स्त्रियों का पुरुषों से कोई मुकाबला ही नहीं है। स्त्रियाँ पुरुषों से कहीं ज्यादा ऊँची और कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है। जो काम स्त्रियां कर सकती हैं क्या वह पुरुष कर सकता है? क्या पुरुष बच्चों को जनम दे सकता है?"

फिर तरुण ने मुझे कहा, "भाई फ़ालतू की बातें मत करो यार! क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? आप को शिष्टता का ध्यान ना हो पर मुझे तो है ना?"

और फिर दीपा को कहा, "भाभीजी आप रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।"
 
दीपा को वह गाउन पकड़ा कर तरुण वहाँ से गायब हो गया। तरुण का सभ्यता पूर्ण व्यवहार देख कर दीपा हैरान रह गयी। उसे डर था की कहीं तरुण वहां खड़े रहने की जिद ना करे। तरुण यदि जिद करता तो दीपा को शायद उसके सामने मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। तब तरुण मेरी बीबी को ब्रा और पैंटी में देख लेता। दीपा की नंगी जाँघों की झलक ही तरुण ने पहले देखीं थीं। अगर तरुण की हाजरी में कपडे बदलती तो दीपा की सुआकार नंगी जांघें भी तरुण दुबारा देख लेता। मेरी बीबी रात को अंडरवियर पहनना पसंद नहीं करती थी। अगर तरुण देखता तो मजबूरन उसे पैंटी और ब्रा पहननी पड़तीं। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने दीपा को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से दीपा तरुण की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।

अब दीपा के मनमें तरुण के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए तरुण एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अगर तरुण ने पहले दीपा से कुछ ज्यादा ही छूट ली थी तो वह एक वीर्यवान मर्द का एक सेक्सी स्त्री को देख कर होने वाली स्वाभाविक प्रतिक्रया मात्र थी ("क्या करें? ऐसा हो जाता है") ऐसा दीपा मानने लगी थी। सुबह और अभी कुछ देर पहले वाली तरुण की शरारत को वह ना सिर्फ माफ़ कर चुकी थी बल्कि भूल चुकी थी।

दीपा ने टीना का गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। दीपा ने इधर उधर देखा। तरुण जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। वैसे तो मेरी बीबी मेरे सामने नंगी होने में हमेशा सकुचाती थी, पर उस रात को उसने मेरे सामने बेधड़क नंगी हो कर अपने कपडे बदले। वह साबित करना चाहती थी की वह भी मुझसे कुछ कम नहीं थी। मुझे डर था की कहीं तरुण दरवाजे के पीछे से छुपकर ना देख रहा हो। पर तरुण ने जाते हुए दरवाजा बंद कर दिया था।

मैंने दीपा को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। दीपा की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसकी तरुण द्वारा की गयी भूरी भूरी प्रशंशा से दीपा को अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। तरुण दीपा को स्त्री होना एक गर्व की बात थी यह अहसास दिलाने में कामयाब हुआ था।

मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। ऊपर से वह गाउन काफी खुला हुआ था। उसमें से दीपा के दोनों मस्त स्तन आधे दिख रहे थे। बस निप्प्लें छिपी हुई थीं। वह गाउन इतना पारदर्शी सा था की उसके पिछे की रौशनी में उसकी जांघें, दीपा की नुकीली और सुआकार गाँड़, उसके गुब्बारे जैसे भरे हुए करारे तने हुए स्तन, चॉकलेटी एरोला के बिलकुल बिच में कड़क गाढ़ी निप्पलेँ बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब तरुण उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।

मुझे डर था की कहीं दीपा को ऐसी ड्रेस पहनी हुई देख कर वह अपना आपा ना खो बैठे और दीपा को बाँहों में पकड़ा कर वह गाउन को उतार कर उसे चोदने के लिये आमादा ना हो जाए।

तभी मैंने तरुण को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने दीपा को उस गाउन में देख लिया था। वह दीपा के पास आया और जैसे दीपा के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।"

तरुण ने आगे बढ़कर दीपा से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"

अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर दीपा तो जैसे बौखला ही गयी। मेरी प्यारी बीबी के गाल तरुण की भूरी भूरी प्रशंषा के कारण शर्म के मारे लाल लाल हो रहे थे। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। पर उसके चेहरे की लालिमा से यह तो लगता ही था की उसे शायद आईडिया हो गया था की उस गाउन में उसके अंग काफी साफ़ दिख रहे थे। पर उसने उस गाउन को पहनने में एतराज नहीं किया क्यूंकि कहीं मैं उसे यह कह कर ना चिढाऊँ की मेरी बीबी एक औरत होने के कारण वह ऐसे कपडे पहनने से डरतीं थीं। जिन और व्हिस्की का जो मिश्रण उसके दिमाग को घुमा रहा था और उद्दंड बना रहा था उससे वह ऐसी छोटीमोटी चिंताओं से ऊपर जा चुकी थी।

बल्कि वह तो तरुण की प्रशंषा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही तरुण के पास आई और तरुण ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मेरी बीबी के फुले हुए गुम्बज के सामान दो गोरे गोरे अल्लड स्तन और उनकी चोटी सम हलकी चॉकलेटी रंग की निप्पलँे जो पतले गाउन में साफ़ दिख रहीं थीं वह सुनील के बाजुओं को छू रहीं थीं। इस बात से दीपा या तो बेखबर थी या उसको उस बात की चिंता नहीं थी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग रह गया। दीपा ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
 
वह तरुण के बाँहों में से बाहर आकर तरुण के ही बगल मैं बैठ गयी। दीपा ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें बैठी हुयी थी। दीपा ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ तरुण के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।

दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कुछ हलके से लहजे में पूछा, "तरुण यार मेरी तारीफों के पुल बाँधना छोडो और अब यह बताओ की वह कौनसी ऐसी समस्या है जिस के कारण तुम इतने ज्यादा परेशान हो। तुम आज निस्संकोच हमें बताओ।"

तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "दीपक और दीपा, आप दोनों मेरे लिए एक बहुत बड़े सहारे हो। मैं आज अकेला हूँ पर आप दोनों के कारण मैं अकेला नहीं फील कर रहा हूँ। मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अपने माता और पिता तक को नहीं बताया।"

अचानक हम सब गम्भीर हो गए।

तरुण ने कहा, "मुझे मेरी कंपनी की और से निकासी का आर्डर मिल गया है। मुझे एक महीने का नोटिस मिला है। दर असल मेरी कंपनी के बड़े बॉस से कोई बात को लेकर मेरी कुछ बहस हो गयी थी जिसके अंत में बॉस ने मुझे नोटिस दे दिया है। उसी कारण से टीना और मेरे बिच में भी तनाव हो गया है। मेरे बॉस से झगडे से टीना खुश नहीं है। ऊपर से उसे मुझ पर एक मेरी पुरानी दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में भी कुछ जबरदस्त गलत फहमी हुई है। मुझसे झगड़ कर टीना पिछले १५ दिनसे मायके चली गयी है। मैंने उसे समझाने की और मनाने की लाख कोशिश की पर वह मुझ पर इतनी नाराज है की वापस आने का नाम ही नहीं लेती। अब मेरे पास कोई जॉब नहीं है, बीबी मुझे छोड़ कर चली गयी है। अगर मैं १५ दिन में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पाया तो मुझे घर बैठना पड़ेगा। भाभी, बात यहां तक बिगड़ चुकी है की मुझे समझ नहीं आता की मैं घर का इन्सटॉलमेंट कैसे भर पाउँगा और मैं करूँ तो क्या करूँ? मुझे अपने से और अपनी खुदकी जिंदगी से नफरत हो गयी है।" कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।

तरुण की बात सुनकर मैं और मेरी बीबी दीपा हम दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देखते ही रहे। दीपा का तो हाल ही खराब लग रहा था। वह जो अब तक सुरूर और जोश में थी, तरुण की बात सुनकर उसे जबरदस्त झटका लगा।

अब तरुण वह तरुण नहीं लग रहा था। हम जानते थे की तरुण का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालत क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। कमरे में जैसे समशान सी शान्ति छा गयी। दीपा ने तरुण का हाथ थामा तो तरुण की आँखों में आंसू भर आये। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और दीपा ने तरुण को थामा और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर तरुण के आंसू थम ने का नाम नहीं ले रहे थे।

दीपा तरुण के एकदम करीब जा बैठी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे दबा कर सहलाने लगी। इससे तो तरुण के आंसूं की धार बहने लगी। तरुण अपने जज्बात पर कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। वह दीपा के हाथों को चूमते हुए बोलने लगा, "भाभी जी कोई क्या कर सकता है? आप भी क्या कर सकती हैं? जब टीना ही मुझे छोड़ कर चली गयी तो और क्या हो सकता है? जब अपने ही अपने नहीं रहे तो मैं आपसे क्या उम्मीद रखूं? आप बहुत अच्छीं है। आप मुझे अपना समझती हैं यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं आपको इतना परेशान कर रहा हूँ फिर भी आप मुझे झेल रहे हो इससे मुझे कितना सकून मिलता है यह आप नहीं जानतीं। पर आखिर में आपकी भी तो मजबूरियां है ना? इसमें आपका क्या दोष है? मेरा तो जो होगा देखा जाएगा। मैं जानता हूँ की आप पर भाई काअधिकार है मेरा नहीं।

भाभी मैं तो आपको छेड़ कर अपना दिल बहला लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए एक खूबसूरत सपना देख लेता हूँ बस। मैं आपसे मेरी हरकतों के लिए माफ़ी माँगता हूँ। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। जब मेरे अपने ही मुझे छोड़ कर चले गए तो मेरे रहने ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?" ऐसा कहता हुआ तरुण एकदम उठ खड़ा हुआ और अपने आँसूं पोंछता हुआ बैडरूम से निकल कर ड्राइंग रूम को पार कर हमसे दूर बाहर बरामदे में जा कर बाहर सोफे पर बैठ कर दूर दूर अँधेरे में सुनी सड़क को सुनी आँखों से ताकने लगा। मैं उसे बैडरूम और ड्राइंग रूम के खुले दवाजे में से देख सकता था, हालांकि हमारी आवाज तरुण तक नहीं पहुँच सकती थी। उस समय उसके जहन में क्या उथल पुथल हो रही थी वह किसी को नहीं पता।

दीपा भी भावुक हो रही थी। वैसे ही मेरी संवेदनशील बीबी से किसीकी परेशानी देखि नहीं जाती। उपर से उस रात को इतनी अठखेलियां मजाक और छेड़खानी करने के बाद अचानक ही तरुण का ऐसा हाल देख कर दीपा घबड़ा गयी। तरुण की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। दीपा उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली, "अरे देखो तो, तरुण का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? इतना जाबांज और नटखट छैले की तरह बात कर रहा था वह, अब क्या हो गया? यार तुम उसके दोस्त हो। जाओ और उसे सम्हालो। टीना को इस वक्त तरुण के पास होना चाहिए था। वह पगली तरुण को ऐसे वक्त में क्यों छोड़ कर चली गयी? तुम क्या कर रहे हो? जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"

तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। तुम क्यों परेशान हो रही हो? हाँ, यह सही है की हमें तरुण को अपने प्यार से शांत करना चाहिए। पर तरुण मेरे ढाढस देने से शांत नहीं होगा। वह तुम्हें इतना चाहता है तुम्हारी खूबसूरती, सेक्सीपन और अक्ल पर इतना फ़िदा है और तुम्हारी इतनी रेस्पेक्ट करता है पर वह तुम से भी नहीं माना तो मेरे कहने से वह थोड़े ही मानेगा? ऐसे वक्त में तो एक पत्नी ही पति को अपना शारीरिक प्रेम देकर शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी टीना वाली बात बिलकुल सही है।"

दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और पूछा, "कौनसी बात?"

मैंने कहा, "इस वक्त टीना को यहां तरुण के पास होना चाहिए था। अगर वह होती तो बेझिझक तरुण को अपनी बाँहों में ले लेती और उससे लिपट कर अपनी छाती में उसका सर छुपाकर अपने बूब्स तरुण के मुंह में दे देती, और उसे अपने बच्चे की तरह अपना दूध चूसने देती, खूब प्यार करती और उसे समझा बुझा कर शांत करती। पर अफ़सोस वह पिछले पंद्रह दिन से यहां नहीं है। तरुण बेचारा वैसे ही पंद्रह दिनों से टीना के बगैर और स्त्री के संग के बगैर ब्रह्मचर्य रख कर तड़प रहा है। उसके जैसे वीर्यवान पुरुष के लिए इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य रखना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए उसने तुमको आज ज्यादा परेशान किया।"
 
मेरी बात सुन कर दीपा ने सहमति में कुछ भी बोले बगैर अपना सर हिलाया। मेरी पत्नी सोच में पड़ गयी। मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "देखो तरुण ने क्या कहा? उसने कहा की जब अपने, मतलब टीना, ही यहां नहीं है तो वह तुमसे क्या उम्मीद रखे? इसका मतलब है अभी तक तरुण तुम्हें अपनी नहीं समझता। क्या तुम तरुण को अपना समझती हो? तरुण शायद यही कहना चाह रहा था की अपने ही उसे शांत कर सकते हैं।"

मेरी बात सुन कर दीपा का चेहरा कुछ मुरझा सा गया। उसने कहा, "मैंने तरुण को हमेशा अपना समझा है। तभी तो उसकी इतनी सारी छेड़ने वाली हरकतों के बावजूद भी मैंने उसे ज्यादा कुछ नहीं कहा। क्या इतना कुछ करने पर भी तरुण मुझे अपनी नहीं समझता? यह तो गलत है ना?"

मैंने कहा, "वह शायद इस लिए तुम्हें अपनी नहीं समझता क्यों की तरुण जब जोश में आ कर तुम्हारे साथ कभी कुछ ज्यादा छूट ले लेता है तो तुम बिगड़ जाती हो। बात तो सही है। क्यूंकि तुम तरुण और मेरे बिच में फर्क समझती हो। तरुण अगर तुम्हें अपनी मान भी ले तो तुम उसे पत्नी की तरह प्यार थोड़े ही करने दोगी? मेरा यह मानना है की तरुण के इस हाल में औपचारिक ढाढस देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। अभी तो प्यार से उसका दिमाग घुमाने की जरुरत है और वह एक पत्नी ही कर सकती है। हाँ अगर चाहो तो तुम जरूर कर सकती हो, क्यूंकि वह तो तुम्हें अपनी पत्नी की तरह ही मानने के और प्यार करने के सपने देखता है, पर वह जानता है की तुम उसे अपना नहीं मानती। क्या मैं गलत कह रहा हूँ?"

मुझे मेरी बीबी का अभिप्राय जानना था। दीपा की आँखें भर आयी थीं। उसने मेरी और देखा और बोली, "दीपक मुझे तुमको एक बात बतानी है। तुम ठीक कह रहे हो। उस दिन जब वह आटे के डिब्बे वाला किस्सा हुआ था ना? याद है? उस दिन बाथरूम में तरुण ने मुझे बहुत परेशान किया था। उसने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी मसली और मुझे लिपट कर किस भी की। वह तो मैंने तुम्हें बताया पर एक बात मैंने तुमसे छुपाई वह यह थी की मैं जब निचे बैठकर उसके पतलून से आटा साफ़ कर रही थी तब उसने अपना लण्ड मेरे मुंह में घुसा दिया था। मतलब लण्ड पतलून के अंदर था पर उसने धक्का मार कर उसे मेरे मुंह में डाल दिया। मैं उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो गयी थी की मैंने उसे हाथ जोड़कर मुझे छोड़ने के लिए यह कहा की मैं बाद में वह जो कहेगा वह करुँगी पर उस समय मुझे जाने दे।"

मैं मेरी बीबी की और खुले मुंह देखता ही रहा। मेरा चेहरा देख कर दीपा कुछ सहम गयी और बोली, "मुझे माफ़ कर देना पर मुझे अपने आप पर इतनी नफरत हो गयी थी की क्या बताऊं? तुम्हें यह बता नहीं सकी। मैं उसके चंगुल से भागना चाहती थी। और आज शामको जब हम बाहर निकले और तुम जब फ़ोन पर तुम्हारी बहन से बात कर रहे थे तब पता है उसने क्या किया?"

मैंने पूछा, "क्या किया?"

दीपा ने कहा, "उसने मुझसे वह वचन पूरा करने को कहा।""

मरे लिए तो मेरी भोली बीबी की यह बात एक बिजली गिरने जैसी थी। हालांकि मैं समझ गया था की तरुण ने क्या माँगा होगा, फिर भी मैंने पूछा, "क्या वचन माँगा उसने?"

दीपा ने मुरझाती हुई आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा, "उसने मुझे उससे चुदवाने का वचन आज मांग लिया।"

मैंने जैसे बिजली गिरी हो ऐसे आश्चर्य दिखाते हुए पूछा, "क्या? दीपा तुम क्या कह रही हो? फिर तुमने क्या कहा?"

दीपा की आँखों में आँसूं भर आये। वह बोल नहीं पा रही थी। आखिर में उसने कहा, "मैं क्या कहती? मैंने उसे कहा, यह उसने गलत किया है। उसने मुझसे धोखाधड़ी की है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने उसे वचन जो दे दिया था?" उसने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।

मैंने मेरी बीबी को ढाढस दिलाते हुए कहा, "धोखे से दिया गया वचन पालने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है। वैसे मुझे लगता है की यह अच्छा ही हुआ की तुमने उसे ऐसा वचन दिया।"

दीपा ने मेरी और पैनी नजर से देखा और पूछा, "क्यों? तुम ऐसा क्यों कहते हो?"

मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा, "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ क्यूंकि अब तुम्हें अगर तरुण चोदता भी है तो तुम्हें कोई रंज नहीं होना चाहिए। वैसे भी तो तुम्हें उससे चुदवाना पडेगा ही क्यों की तुमने वचन जो दिया है? तो बेहतर ही की तुम तरुण को यह एहसास दिलाओ की टीना नहीं है तो क्या हुआ? तुम पत्नी भले ही नहीं हो पर तुम उसे पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती? तुम उसे यह एहसास दिलाओ की तरुण भी तुम्हारा अपना है। तरुण का भी तुम पर अधिकार है। तुम सिर्फ अपने पति की ही नहीं, तरुण की जरुरत का भी ध्यान तुम एक पत्नी की तरह रख सकती हो। जैसे टीना नहीं है तो तुम तरुण के खाने का ख्याल रख सकती हो वैसे ही आज जब टीना नहीं है तो क्या तुम तरुण की दूसरी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकती? क्या तुम तरुण को एक पत्नी का प्यार नहीं दे सकती? क्या तुम तरुण को नयी जिंदगी नहीं दे सकती? क्या प्यार का मतलब सिर्फ छेड़खानी करना या हंसी मजाक करना ही है?"
 
तरुण तुमसे प्यार करता है और तुम्हारी अक्ल और सूझबूझ की वह बड़ी इज्जत भी करता है। शायद यह अच्छा है की आज टीना यहां नहीं है, क्यूंकि वह तरुण को प्यार तो कर सकती है पर शायद ऐसे नहीं समझा पाती जैसे तुम उसे अपनी सूझ बुझ और प्यार से समझा सकती हो। अब यह तुम पर निर्भर है की तुम उसे प्यार देती हो या दुत्कार। तुम तो जानती हो तरुण तुम्हें बेतहाशा प्यार करता है। और तुम भी तो उसे प्यार करती हो।"

दीपा हैरानगी से मेरी और देखती रही। यह उसके लिए कांटे की बात थी। उसने कुछ झिझकते स्वर में कहा, "हाँ ठीक है, मैं भी उसे प्यार करती हूँ पर डार्लिंग, यह प्यार से कहीं आगे की बात है।"

मैंने दीपा का हाथ थाम कर उसे दबा कर कहा, "डार्लिंग, जब सच्चा और बेतहाशा प्यार होता है तो फिर उस प्यार से आगे कुछ नहीं होता। कहते हैं ना की जंग और प्यार में सब कुछ जायज है। प्यार का मतलब है एक दूसरे के गम को दूर करना और एक दूसरे को आनंद देना और लेना। जिस किसी भी तरीके से प्यार करने वाले आनंद लेना चाहें। मैं तुम्हारा पति हूँ और उस अधिकार से मैं कह रहा हूँ की अगर तुम्हें कोई एतराज नहीं है तो मैं तुम्हें कहता हूँ की तुम्हें उसे आनंद देना है और उससे आनंद लेना है। सबसे ज्यादा जरुरी प्यार है। चुदाई उत्कट प्यार का इजहार है, प्यार की अभिव्यक्ति है। वह उन्मत्त प्यार का परिणाम है। चुदाई प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। जब किसी से दिलो जान से प्यार होता है ना, तो आवेश के लम्हों में एक जवान वीर्यवान मर्द और एक खूबसूरत सेक्सी औरत में चुदाई का होना लाज़मी है। चुदाई हो ही जाती है। चुदाई होनी ही चाहिए, तभी तो प्यार की सच्ची ऊंचाई सामने आती है। चुदाई तो प्यार जताने का एक तरिका है। जब तुम उसे दिल खोल कर प्यार दोगी तो चुदाई तो होगी ही। जब चुदाई होगी तभी तो वह न सिर्फ तुम्हारे प्यार में खो जाएगा और शांत होगा, बल्कि वह अपने गम बिलकुल भूल जाएगा और एक बार फिर से हमारे कहने पर जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। अगर प्यार करने वाले मर्द और औरत चुदाई के डर से दूर भागेंगे तो फिर प्यार कैसे होगा? चुदाई से प्यार की इज्जत बढ़ती है, कम नहीं होती।"

मैं मेरी बीबी के दिमाग में यह बात बार बार ठोकना चाहता था की वह चुदाई के डर से भागे नहीं। बल्कि वह चुदाई के लिए तैयार रहे। चुदाई को हँस कर स्वीकार करे। मैंने मेरी बात जारी रखते हुए कहा, "वह बिना किसी से शेयर किये पिछले पद्रह दिनसे यह भ्रह्म्चर्य का दर्द झेल रहा है। इसी लिए तरुण तुम्हारे प्रेम के लिए तड़पता रहता था और अभी भी तड़प रहा है। उस तड़प में वह तुम्हें चोदना जरूर चाहेगा। और मैं पक्का मानता हूँ की तुम्हें भी बड़े प्यार से तरुण से चुदवाना ही चाहिए। अगर मैं और तुम दोनों को इससे कोई एतराज नहीं हो तो फिर चुदवाने में गलत क्या है? बल्कि मैं भी तुम्हें तरुण के साथ और तरुण के सामने उसे देखते हुए चोदुँगा।"

मैं देख रहा था की दीपा मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। उसने एक बार भी मेरी बात का विरोध नहीं किया जो दर्शाता था की वह भी मेरी बात से सहमत थी।

मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "वह आज तक सिर्फ जब तक तुम्हारे साथ होता है तब तक सब कुछ भूल जाता है और ठीक रहता है। अगर उसे अभी तुम्हारा पूरा सहारा मिला और अगर तुमने उसे प्यार से चोदने दिया तो वह तुम्हारी सब बात मानेगा और सब ठीक हो जाएगा। वह तुमसे बहुत प्यार करता है। अगर तुमने उसे अपना प्यार देकर नहीं समझाया और अगर तुमने उसे प्यार से तुम्हें चोदने से रोका तो वह जरूर अपने आप पर कुछ पागलपन कर बैठेगा। कहीं वह पागलपन में अपनी जान ही ना खो बैठे। कहीं पागलपन में वह खुदकुशी ना कर बैठे। वह खतम हो जाएगा। और अगर ऐसा कुछ हुआ तो तुम अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाओगी।"

जब मैंने कहा की कहीं तरुण अपनी जान ही ना देदे या कहीं वह ख़ुदकुशी ही ना कर ले तो दीपा के चेहरे पर आतंक सा छा गया। वह बेचैन हो उठी। उसने कहा, "दीपक, क्या कह रहे हो? क्या तरुण इतना ज्यादा परेशान है? ख़ुदकुशी तक की नौबत आ गयी? "

फिर कुछ रुक कर बोली, "अब बात मेरी समझ में आयी। वह खुद बार बार कह रहा था की वह बहोत परेशान है और अपनी जान की भी उसे परवाह नहीं है; पर वह जब मेरे साथ रहता है तभी उसे सकून मिलता है। बापरे मुझे पता ही नहीं चला की बात यहाँ तक पहुँच गयी है।"

मैं समझ गया की अब तो समझो अपना काम हो गया। मैंने कहा, "दीपा पता नहीं तुम कैसे नहीं समझ पायी। वह पिछले पंद्रह दिनसे हमेशा कह रहा है की वह परेशान है। तुमने उसे लताड़ दिया था तो वह तुमसे मिल नहीं पा रहा था। उसीके कारण शायद उसका यह हाल हुआ है। कहीं तरुण ने कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो गजब हो जाएगा।"

दीपा बड़ी उलझन में पड़ गयी और बोली, "फिर दीपक तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूँ?"
 
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