Desi Porn Stories बीबी की चाहत - Page 8 - SexBaba
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Desi Porn Stories बीबी की चाहत

मैंने कहा, "अब झिझकने से या हिचकिचाने से या फालतू का पर्दा रखने से काम नहीं चलेगा। अब तो हम दोनों को एकदम बेशर्म होना पडेगा। तुम्हें कुछ नहीं करना है। तुम जाओ उसको गले मिलो और पकड़ कर मेरे पास ले आओ। फिर मैं तरुण के देखते हुए ही में तुम्हारे बूब्स दबाऊंगा, तुम्हें किस करूंगा और तुम्हारे गाउन को ऊपर उठाऊंगा और मेरा लण्ड तुम्हारे हाथ में दूंगा। मैं जानता हूँ की तुम्हारे पास होते ही वह अपने आप को सम्हाल नहीं पायेगा। वह एकदम गरम हो जाएगा और एकदम गरम हो कर तुम्हारे साथ छेड़खानी शुरू कर देगा। अगर तुम भी उसे खूब प्यार करोगी और उसे बिना रोकटोक प्यार करने दोगी तो जरूर वह तुम्हें चोदने के लिए तैयार हो जाएगा। फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और थ्रीसम एम.एम.एफ मनाएंगे। बोलो क्या कहती हो?"

दीपा नजरें निचीं कर बोली, "मैं क्या बोलूं? मैं तुम से अलग थोड़े ही हूँ? मैं तो तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें ठीक लगे वह मेरे लिए भी ठीक है। मैं कोई अवरोध नहीं करुँगी। तुम मुझे सम्हाल लेना। वैसे ही तरुण महीनों से मेरे पीछे पड़ा हुआ था। तुम कहते हो तो चलो आज मैं उसके मन की और तुम्हारे मन की थ्रीसम की इच्छा भी पूरी कर दूंगी।"

मैंने कहा, "तो फिर जाओ और अपना कर्तव्य पूरा करो। तुम यह चिंता मत करो की वह तुम्हारे साथ क्या करेगा। तुम उसे यह कहो की पहले तो उसकी जॉब जायेगी ही नहीं, क्यूंकि उसके जैसा मेहनती एम्प्लोयी उसकी कंपनी को कहाँ मिलेगा? और अगर उसकी नौकरी गयी भी तो मैं मेरे बॉस से बात कर उसको जॉब दिलवा सकता हूँ। बस उसे चिंता नहीं करनी है। जरुरत पड़ी तो वह और टीना हमारे साथ रह सकते हैं जब तक उसे दुसरा जॉब ना मिले। तुम उसे पटा कर मेरे पास ले आओ, फिर हम दोनों मिलकर उसे गरम करेंगे। और अगर एक बार तरुण गरम हो गया तो फिर तो तुम भी जानती हो की उसको रोकना नामुमकिन है। वह अपने सब ग़म भूल जाएगा मैं और तरुण हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और मुझे यकीन है की तरुण तुम्हारी बात मान कर फिर से काम पर लग जाएगा।"

मेरी बात सुन कर मेरी और आशंका से देखती हुई अपने ही अंदर की उधेड़बुन में खोई दीपा घबड़ाई हुई हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। हलकी सी लड़खड़ाती हुई वह तरुण जहां बाहर बरामदे में बैठा था उसके पास गयी। मेरी बीबी की चाल में कुछ अस्थिरता थी। मेरी बीबी को देख कर मुझे उसका अभिसारिका का रूप दिखा। मुझे ऐसा महसूस हुआ की अपने मन में उसने यह तय कर लिया था की उस रात वह तरुण से चुदवायेगी। वह तरुण को उसे चोदने से नहीं रोकेगी। वह मुझसे और तरुण से चुदवायेगी।

मैं खुले हुए दरवाजे से देख रहा था की मेरी बीबी तरुण के पास पहुँच कर तरुण को खड़ा कर उसका हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आयी। घर का दरवाजा अंदर से बंद कर वह खड़ी खड़ी तरुण से लिपट गयी। दीपा जब तरुण से ऐसे बेझिझक लिपट गयी जैसे एक बेल कोई पेड़ के साथ लिपट जाती है तो तरुण के चेहरे पर अजीब से भाव दिख रहे थे। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जब तरुण वैसे ही खड़ा हुआ दीपा के बदन को फील करता रहा तब दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और उसे खीच कर बैडरूम में जहां मैं बैठा था वहाँ ले आई। तरुण की आँखों के आंसूं तब तक सूखे नहीं थे। पलंग पर तरुण को बिठा कर दीपा ने तरुण के आंसूं अपने गाउन के छोर को ऊपर उठाकर पोंछे। दीपा को यह चिंता नहीं थी की ऐसा करने पर दीपा का गाउन उसके घुटनों से भी काफी ऊपर तक उठ गया था और दीपा की करारी जाँघें नंगी दिख रहीं थीं। आंसूं पोंछ कर वह मेरे और तरुण के बिच बैठी। उसने तरुण को लिटा कर उस का सर अपनी गोद में लिया और उसके काले घने बालों में अपनी उंगलियां ऐसे फेरने लगी जैसे माँ अपने छोटे बेटे को अपनी उँगलियों से कंघा कर रही हो।

दीपा ने तरुण के सर के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए प्यार भरी धीमी आवाज में पर शुरू में थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तरुण बाहर जाने से पहले तुमने क्या कहा था? टीना तुम्हारी हैं। और मैं? मैं परायी हूँ? क्या मैं तुम्हारी अपनी नहीं हूँ? मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ तो क्या हुआ? क्या मैं तुम्हारी पत्नी से गयी बीती हूँ? तुम मुझ पर अपना अधिकार नहीं मानते? क्या हम तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो तरुण, हम तुम्हारे ही हैं। तुम्हारे साथ हैं। मुझे लगता है तुम्हारा बॉस सिर्फ तुम्हें डरा रहा है। तुम्हारी कंपनी तुम्हें निकालेगी नहीं। भला तुम्हारी कंपनी को तुम्हारे जैसे मेहनत से काम करने वाले कहाँ मिलेंगे? फिर भी अगर मानलो की तुम्हें निकाल देते हैं तो तुम्हें दीपक अपनी कंपनी में रखने की शिफारिश कर देगा। दीपक का बॉस तुम्हारे बारे में भी जानता है।"

दीपा की बात सुनकर तरुण ने दीपा की गोद में लेटे हुए दीपा की आँखों से आँखें मिलायीं और बड़े प्यार से दीपा का सर अपने हाथोँ के बिच में पकड़ कर बोला, "भाभी क्या ऐसा हो सकता है?"

दीपा ने बड़े ही आत्मविश्वास और गौरव के साथ कहा, "तुम बिलकुल फ़िक्र ना करो और अपना मूड खराब मत करो। दीपक की कंपनी में अच्छी चलती है। दीपक की बात दीपक के बॉस नकार नहीं देंगे। जरुरत पड़ी तो मैं भी दीपक के बोस से बात कर सकती हूँ। तुम्हारे लिए मैं दीपक के बॉस से ख़ास रिक्वेस्ट करुँगी। वह मेरी बात टाल नहीं पाएंगे। तुम्हें याद है, उस पार्टी में दीपक का बॉस भी आया था और उसने मुझे डान्स के लिए भी आमंत्रित किया था? दीपक मुझे कह रहा था की वह मुझ से बड़ा इम्प्रेस्सेड है या साफ़ साफ़ कहूं तो वह भी तुम्हारी तरह मुझ पर फ़िदा है। यार दुखी मत हो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ।" मेरी बीबी ने कुछ शर्म से नजरें झुका कर और कुछ गर्व से अपना सर उठा कर कहा।

दीपा की बात से मैं हैरान था की मेरी रूढ़िवादी बीबी कैसी बातें कर रही थी। ऐसा कह कर मेरी बीबी शायद तरुण को यह सन्देश देना चाहती थी की अगर जरुरत पड़ी तो वह तरुण के जॉब के लिए मेरे बॉस से चुदवाने के लिए भी तैयार थी।

तरुण ने दीपा की और प्यार भरी नज़रों से देखा और दीपा के हाथ पर चुम्मी करते हुए बोला, "क्या आप मेरे लिए इतना सब कुछ कर सकती हो? क्या मेरी जॉब के लिए आप दीपक के बॉस से भी अपने आप के ऊपर समझौता करने के लिए तैयार हो?

दीपा ने कहा, "तरुण, बात तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के भले की है। मैं उसके लिए कोई भी समझौता कर सकती हूँ। वैसे तो मैं किसी के लिए कुछ नहीं करती। पर जिनको मैं अपना समझती हूँ उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर सकती हूँ। मैं ही नहीं मैं और दीपक दोनों ही तुम्हें अपना मानते हैं।"

मैंने देखा की तरुण की आँखें नम हो रहीं थीं। दीपा की बात सुन कर वह भावुक हो रहा था। तरुण ने कहा, "भाभी पहले तो मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ। मैंने आपको बहुत परेशानं किया। मैं सच बताता हूँ, आप और दीपक मेरी जिंदगी का सहारा हो। मैंने आपको इतना छेड़ा फिर भी आपने मुझे हमेशा माफ़ किया। आपके मधुर शब्दों से आपने मुझे जो भरोसा दिलाया है उससे मुझे बड़ी ताकत और हौसला मिला है। मैं तो आपकी पूजा करता हूँ। मैं सच कहता हूँ, अगर मेरा बस चलता तो मैं आपको अपनी पलकों में बिठाये रखता। मैं आपकी कितनी इज्जत करता हूँ यह टीना भी जानती है। मैंने उसे भी कह दिया था की भले ही उसे बुरा लगे पर यह सच है की मैं दीपा भाभी पर कुर्बान हूँ।" बोलते बोलते तरुण की आँखों में से आंसू भर आये।

दीपा ने तरुण की आँखों में आंसूं देखे तो उसकी आँखें भी फिर से छलक उठीं। तरुण ने मेरी और घूम कर कहा, "भाई तुम बड़े लकी हो की तुम्हें दीपा भाभी जैसी बीबी मिली और तुम जब चाहो भाभी को प्यार कर सकते हो। मुझे तुमसे जलन हो रही है।"
 
दीपा ने छलकते हुए आँसुओं के साथ साथ मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा, "तरुण, तुम्हें तुम्हारे भाई की इर्षा करने की कोई जरूरत नहीं है। हम सब एक ही हैं ना? तुम्ही ने तो कहा था न की तरुण हो या दीपक मेरे लिए एक ही हैं? और टीना हो या मैं तुम्हारे लिए भी एक ही हैं? तुम तो यार बहुत ही चालु हो। पहले से ही मुझे फाँसने का प्रोग्राम बना लिया था तुमने। तो तुम मुझसे हिच किचाते क्यों हो? क्या तुम टीना से हिचकिचाते हो? यह क्यों कह रहे हो की यहाँ तुम्हारे पास तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो आज की रात होली की प्यार भरी रात है। और टीना नहीं है तो क्या हुआ? मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम सब साथ है ना? तुम्हारे भाई मुझे प्यार कर सकते हैं तो तुम भी मुझे प्यार कर सकते हो। यह आंसूं हटाओ और खुल कर मुस्कुराओ। जॉब की चिंता मत करो। अगर वाकई मैं कुछ हुआ भी तो तुम हमारे साथ रहने के लिए आ जाना। जो हमें मिलता है उसमें हम सब मिल बाँट कर खा लेंगे।"

फिर मेरी प्यारी बीबी ने शर्माते हुए कहा, "तरुण जहां तक तुम्हारी छेड़खानी का सवाल है तो मैं यह कहूँगी की सच तो यह है की तुम्हारी छेड़खानी का मैंने कतई बुरा नहीं माना। बल्कि तुम्हारा छेड़ना मुझे अच्छा लगता था। मैं देखना चाहती थी की तुम मुझे कितना छेड़ते हो? उस समय अगर तुमने मुझ पर और ज्यादा दबाव डाला होता तो मैं तुम्हें रोकती नहीं। जो पीछे हटता नहीं है वही आदमी जो चाहता है वह पाता है। तुम तो मेरे पीछे ऐसे हाथ धो कर पड़े थे आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।"

मैं समझ गया की मेरी बीबी तरुण को यह कहने की कोशिश कर रही थी की अगर उसने जबरदस्ती की होती तो वह तरुण से चुदवाने के लिए मान जाती। "आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।" यह कह कर शायद जाने अनजाने में मेरी बीबी ने तरुण को हरी झंडी दिखा ही दी।

दीपा ने झुक कर तरुण के सर पर हलके से चुम्मा किया। दीपा के झुकते ही दीपा की गोद में सर रख कर बैठे हुए तरुण का नाक दीपा के पके हुए आम के समान स्तनों को छू रहा था। दीपा की तनी हुयी सख्त निप्पलोँ को वह महसूस कर रहा था। पतले से पारदर्शी गाउन में से उसे उनकी भली भाँती झांकी भी हो रही थी। तरुण का हाल देखने वाला था। दीपा जैसे ही थोड़ी झुकी की उसकी मद मस्त चूंचियां तरुण के नाक पर रगड़ने लगीं। दीपा सिहर उठी और सीधी बैठ गयी। तरुण भी दीपा की गोद में से सर हटा कर वापस अपनी जगह पर बैठ गया।

तरुण दीपा के एकदम करीब खिसका और उसने अपना हाथ दीपा के गाउन के ऊपर रखा और वह दीपा की जाँघों को अपनी हथेली से दबाने और सेहलाने लगा। दीपा ने देखा पर तरुण को रोकने के बजाये दीपा ने भी तरुण की जाँघ पर अपना हाथ रखा और वह भी तरुण की शशक्त करारी जाँघों को पाजामे के ऊपर से सहलाने लगी।

मेरा लण्ड यह देख कर मेरे पाजामे में खड़ा हो गया। मैं भी दीपा की दूसरी जाँघ पर हाथ रख कर उसे सहलाने लगा और धीरे धीरे दीपा का गाउन ऊपर की और खींचने लगा। मेरी हरकत से दीपा थोड़ी सावधान सी हो गयी और उसने अपने दोनों पाँव सख्ती से कस कर भींच लिए। मैंने फिर दीपा की जाँघ पर चूँटी भरकर उसे याद दिलाया की उस रात उसे कोई विरोध नहीं करना है। दीपा ने मेरी तरफ देखा तो मैंने अपनी पलकों से इशारा किया की उसे शांत रहना है। मेरा इशारा पाकर दीपा ने अपनी टाँगें खोल दीं और मैंने मेरा हाथ उसकी जाँघों के बिच में डाल दिया और दीपा की चूत को उसके गाउन के ऊपर से ही धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगा।

दीपा ने अपनी बाँहें फैलायीं और तरुण को बाहुपाश में आने आह्वान करते हुए कहा, "तरुण, तुम कह रहे थे ना, की आज की रात खुशियां मनाने की है? तो फिर यह सब गम छोडो। आओ हम से गले मिल जाओ और हम सब मिलकर आज होली की रात को बस खुशियां मनाये। अब तुम्हारे ग़म हमारे ग़म और तुम्हारी ख़ुशी हमारी ख़ुशी। तुम्हारी जो भी परेशानी है हम सब मिलकर झेलेंगे और उसका हल भी हम सब मिलकर निकालेंगे।"

तरुण ने मेरी बीबी की फैली हुई बाँहें देखि तो उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। तरुण फ़ौरन दीपा की फैली हुई बांहो में समा गया। दीपा ने तरुण को अपने आहोश में लेते हुए कहा, "तुम मुझसे प्यार करना चाहते थे ना? मैं आज तुम्हें कह रही हूँ की, मैं ना रोकूंगी, ना टोकूँगी।आज मैं तुमको तुम्हारे भाई और मेरे पति के सामने कह रही हूँ की आज रात तुम मुझसे दिल्लगी नहीं, दिलकी लगी करो, आज की रात तुम मुझे चाहे जितना प्यार करो। पर मेरी प्यार भरी बिनती है की मुसीबतों से हार मत मानो। हम सब मिलकर जिंदगी की लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे। बोलो, हँसते हँसते लड़ोगे और जीतोगे ना?"

तरुण ने अपने आँसूं पोंछते हुए मुस्काने की कोशिश करते हुए कहा, "भाभी, अगर आप मेरे साथ हो तो मुझे कुछ भी नहीं हो सकता। अब मुझे किसी बात की फ़िक्र नहीं है।"

दीपा ने मेरी और मूड़ कर देखा और बोली, "तो फिर आओ, आप दोनों और मैं हम तीनों मिलकर सही मायने में होली मनाएं। तुम तो एम.एम.एफ. थ्रीसम के एक्सपर्ट हो ना? तो आज तुम दो मर्दों के साथ मैं एक बेचारी अकेली औरत हूँ। चलो हम वही थ्रीसम मनाएं। हम अपने ग़म भूल जाएँ और एक दूसरे को पूरा आनंद दें और एक दूसरे से पूरा आनंद लें।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मुझे भी अपनी बाँहों में लिया और अपने रसीले होँठ मुझे चूमने के लिए प्रस्तुत किये।

दीपा सीधी बैठी और तरुण और मुझे अपनी दोनों बाँहों में लिया। दीपा की एक बाँह में जाते ही मैं दीपा की और घूम गया। दीपा के चेहरे के सामने अपना चेहरा रख कर मैंने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ रख दिए और उसके होँठों को चूसने लगा। मेरी बीबी के रसीले होँठ चूमते और चूसते हुए मैंने मेरी बीबी से कहा, "डार्लिंग, तरुण सच कहता है। मैं बहोत ही लकी हूँ की मुझे तुम्हारे जैसी हिम्मतवान, प्यार भरी, संवेदन शील और सेक्सी बीबी मिली है।"

मैंने तरुण की और घूम कर देखा और बोला, "तरुण तुम्हारी हाजरी की ऐसी की तैसी। मैं आज मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता और डार्लिंग तुम मुझे मत रोकना।"

दीपा ने अपनी आँखें बंद कर ली। फिर मेरी नाक से अपनी नाक रगड़ती हुई बोली, "मैंने तुम लोगों को मुझे प्यार करने से कहाँ रोका है? इसके लिए बेचारे तरुण को क्यों बदनाम कर रहे हो?"

प्यार की उत्तेजना में दीपा भूल गयी की उसके मुंह से गलती से "तुम्हें" की बजाय निकल गया "तुम लोगों को" . इसका मतलब यह हुआ की तरुण भी उसमें शामिल था। फिर मैंने सोचा क्या दीपा भूल गयी थी या जानबूझ कर उसने "तुम लोगों" बोला?

ऐसा बोल कर दीपा मेरे साथ आँखे बंद कर चुम्बन में मशगूल हो गयी। तरुण ने हमें चुम्बन करते देखा तो वह भी मेरे साथ ही दीपा के सामने आ गया। उसने भी "तुम लोगों" सूना था। अब तो दीपा ने उसे भी प्यार करने का अधिकार दे दिया था। तरुण ने हमारे मुंह के बिच अपना मुँह घुसेड़ दिया। जब मैंने देखा की तरुण भी दीपा के रसीले होंठो को चूसने और उसे किस करने के लिए उतावला हो रहा था तो मैंने बीचमें से अपना मुंह हटा लिया।

तरुण और दीपा के रसभरे होंठ मिल गये और तरुण ने दीपा का सर अपने हाथ में पकड़ कर दीपा के होठों को चूसना शुरू किया। दीपा की आँखे बंद थीं। पर जैसे ही तरुण की मूछें उसने महसूस की, तो उसने आँख खोली और तरुण को उस से चुम्बन करते पाया। वह थोड़ी छटपटाई। पर तरुण ने उसका सर कस के पकड़ा था। वह हिल न पायी और उसने तरुण को अपना प्यार देनेका वादा किया था। यह सोच कर वह शांत हो गई और तरुण के चुम्बन में उसकी सहभागिनी हो गयी।
 
तरुण ने दीपा के रस भरे होंठों को चूमते हुए कहा, "भाभी सच कहता हूँ, जब आप ने मुझे इतना सम्मान दिया है की आपने अपने आपको मेरे हवाले किया है और आप और दीपक मुझे इतना हौसला देते हो तो मुझे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। मैं मुसीबतों से लडूंगा और विजयी हूँगा। पर मुझे आपका साथ चाहिए।"

दीपा ने तरुण को चूमते हुए टूटेफूटे शब्दों में कहा, "तरुण, मैं और दीपक पराये नहीं हैं। दीपक भी तुम्हारे हैं और मैं भी तुम्हारी हूँ।" मेरी पत्नी और कुछ बोल नहीं पायी क्यूंकि उसके होंठ पर तरुण के होंठों ने कब्जा कर लिया था।

मेरे लिए यह एक अकल्पनीय द्रष्य था। मेरी रूढ़िवादी पत्नी मेरे प्रिय मित्र को लिपट कर किस कर रही थी। दीपा ने जब महसूस किया की तरुण उसकी जीभ को भी चूसना चाहता था तब दीपा ने तरुण के मुंह में अपनी जीभ को जाने दिया।

तरुण मेरी प्रिय पत्नी को ऐसे चुम्बन कर रहा था जैसे वह अब उसे नहीं छोड़ेगा। दीपा ने एक हाथ से मुझे पीछे से चिपकने का इशारा किया और फौरन, तरुण का सर अपनी हाथोँ में कस के पकड़ा और तरुण के होँठों को अपने होँठों पर और कसके दबाया और तरुण को बेतहाशा चुम्बन करने लग गयी।

तरुण ने सामने से और मैंने पीछे से दीपा को कस के अपनी बाँहों में जकड लिया। मेरी और तरुण की बाँहों के बिच में मेरी प्यारी दीपा जकड़ी हुई थी। हम दोनों दीपा को अपनी बाँहों में जकड़े हुए पलंग पर लेट गए। दीपा का मुंह तरुण की और था। मैं दीपा के पीछे लेटा था। दीपा और जोश से तरुण को चुम्बन करने लगी। तब तरुण और मेरी पत्नी ऐसे चुम्बन कर रहे थे जैसे दो प्रेमी सालों के बाद मिले हों। दीपा के दोनों हाथ तरुण के सर को जकड़े हुए थे। तरुण ने भी मेरी पत्नी को कमर से कस के अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।

यह द्रष्य मेरे लिए एकदम उत्तेजित करने वाला था। मेरा लण्ड एकदम कड़क खड़ा हो गया था। मैंने दीपा को पीछे से मेरी बाहोँ में जकड़ा हुआ था। दीपा के गाउन के ऊपर से मेरी पत्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर मैंने मसलना शुरू किया। हम तीनों पलंग पर लेटे हुए थे। मैंने फिर मेंरे कड़े लण्ड को मेरी पत्नी के गाउन ऊपर से उसकी गाँड़ में डालना चाहा। मैं उसे पीछे से धक्का दे रहा था। इस कारण वह तरुण में घुसी जा रही थी। तरुण पलंग के उस छौर पर पहुँच गया जहाँ दीवार थी और उसके लिए और पीछे खिसकना संभव नहीं था।

अचानक दीपा जोर से हँस पड़ी। उसे हँसते देख तरुण ने पूछा, "भाभीजी, क्या बात है? आप क्यों हंस रही हो?"

तब दीपा सहज रूप से बोल पड़ी, "तुम्हारे भैया मुझे पिछेसे धक्का दे रहे हैं। उनका कड़क लण्ड वह मेरे पिछवाड़े में घुसेड़ ने की कोशिश कर रहे है। इनकी हालत देख मुझे हंसी आ गयी।"

मैंने पहली बार मेरी रूढ़ि वादी पत्नी के मुंह से तरुण के सामने इतने सहज भाव से लण्ड शब्द का इस्तमाल करते हुए सुना। मुझे लगा की जीन और व्हिस्की की मिलावट के दो पुरे पेग पीनेसे अब मेरी बीबी बेफिक्र हो गयी थी। साथ में वह अब तरुण से पहले से काफी अधिक घनिष्ठता महसूस कर रही थी।

इसे सुनकर तरुण ने रिसियायी आवाज में कहा, "भाभीजी, एक बात कहूं? आपने अपने पति की हालत तो देखी पर मेरे हाल नहीं देखे। यह देखिये मेरा क्या हाल है?" ऐसा कहते ही दीपा को कोई मौका ना देते हुए तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ कर अपने दोनों पांव के बीच अपने लण्ड पर रख दिया और ऊपर से दीपा के हाथ को जोरों से अपने लण्ड ऊपर दबाने लगा। मेरे पीछे से धक्का देने के कारण दीपा के बहुत कोशिश करने पर भी वह वहां से हाथ जब हटा नहीं पायी तब दीपा ने तरुण के लण्ड को अपने हाथों में पकड़ा। तरुण का पाजामा उस जगह पर चिकनाहट से भरा हुआ गिला हो चुका था। यह देख कर मैं ख़ुशी से पागल हो रहा था।

मैंने तब दीपा को पीछे से धक्का मारना बंद किया और मैं पीछे हट गया। अब दीपा चाहती तो अपना हाथ वहां से हटा सकती थी। परंतु मुझे यह दीख रहा था की दीपा ने अपना हाथ वहां ही रखा। वह शायद तरुण के लण्ड की लंबाई और मोटाई भाँप ने की कोशीश कर रही थी। तरुण के पाजामे के ऊपर से भी उसे तरुण के लंबे और मोटे लण्ड की पैमायश का अंदाज तो हो ही गया था।

मेरी प्यारी बीबी जब तरुण के लण्ड की पैमाइश कर रही थी तब अचानक ही उसके गाउन की ज़िप का लीवर मेरे हाथों लगा। मैंने कुछ न सोचते हुए उसे नीचे सरकाया और उसको दीपा की कमर तक ले गया।

उसके गाउन के दोनों पट खुल गए। दीपा ने अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जैसे ही गाउन के पट खुले और ज़िप कमर तक पहुँच गयी तो उसके दो बड़े बड़े अनार मेरे हाथों में आ गये। जैसे ही तरुण ने दीपा के नंगे स्तनों को देखा तो वह पागल सा हो गया। इन स्तनों को ब्लाउज के निचे दबे हुए वह कई बार चोरी चोरी देखता था। तरुण ने उनको अधखुले हुए भी देखा था। उस समय उसने सपने में भी यह सोचा नहीं होगा की एक समय वह उन मम्मों को कोई भी आवरण के बिना बिलकुल खुले हुए देख पायेगा।
 
मैंने धीरे से मेरा हाथ उसके गाउन के अंदर डाला। उसकी नाभि और उसके पतले पेट का जो उभार था उसको मैं प्यार से सहलाने लगा। मेरी पत्नी मेरे स्पर्श से काँप उठी। मैंने मेरे हाथ दीपा की पीठ के नीचे डाल दिए और उसे धीरे से बैठाया। उसे बिठाते ही उसका खुला गाउन नीचेकी और सरक गया और वह आगे और पीछे से ऊपर से नंगी हो गयी। तरुण जिसकी मात्र कल्पना ही तब तक करता था वह दीपा के कमसिन जिस्म को ऊपर से पूरा नंगा देख कर उसे तो कुबेर का खजाना ही जैसे मिल गया।

तरुण ने दीपा के दोनों स्तनों को ऐसे ताकत से पकड़ रखा था की जैसे वह उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी वह उन्हें मसाज करता था तो कभी निप्पलों को अपनी उँगलियों में दबाता तो कभी झुक कर एक को चूसता और दूसरे को जोरों से दबाता।

दीपा अब हम दोनों प्रेमियों का उसके मम्मों को चूसना और मलने की प्रक्रिया से इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी के उस से अपने जिस्म को नियत्रण में रखना मुश्किल हो रहा था। दीपा की उन्माद भरी अवस्था को मैं ऐसे महसूस कर पाता था की उसकी हम दोनों मर्दों के लण्ड सेहलानी की गति उसके उन्माद के साथ बढ़ती जाती थी। वह उन्मादपूर्ण अवस्था में कभी मेरी आँखों में आँखें मिला रही थी तो कभी तरुण की आँखों में। जब वह कुछ देर के लिए हमें बारी बारी से देखती थी तब दीपा की आँखों में वही प्यार और कामुकता भरा उन्माद नजर आरहा था। पर ज्यादातर तो वह आँखें मूँद कर ही हमारी हरकतों का आनंद ले रही थी।

मैं देख रहा था की वह हम दोनों के उसके स्तन मंडल के साथ प्यार करने से अब वह अपने कामोन्माद से एकदम असहाय सी लग रही थी। दीपा तब अपनी कमर और अपनी नीचे के बदन को उछालते हुए बोलने लगी, "दीपक, तरुण जल्दी करो, और चुसो जल्दी। ... आह्ह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह... मेरी चूंचियां और दबाव ओओफ़फ़फ़। तब मुझे लगा की वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मैंने तरुण को इशारा किया और हम दोनों उसके मम्मों को और फुर्ती से दबाने और चूसने लगे।

जल्द ही मेरी प्रियतमा एक दबी हुयी टीस और आह के साथ उस रात पहली बार झड़ गयी। उसकी साँसे तेज चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने अपनी आँखें खोली और हम दोनों की और देखा। कुछ देर तक कमरे में मेरी बीबी की गर्म साँसों की तेज गति के अलावा सब सुनसान था।

मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग, अब हम लोगों से क्या परदा? अब हमें अपना लुभावना सुन्दर जिस्म के दर्शन कराओ। अब मत शर्माओ। दीपा ने मेरी और देखा पर कुछ न बोली। मैंने तरुण को इशारा किया की अब वह काम हम ही कर लेते हैं। तरुण थोड़ा हिचकिचाता आगे बढ़ा और दीपा के बदन से गाउन निकालने लगा। दीपा ने शर्म के मारे अपना गाउन को तरुण को उतारने नहीं दिया और अपने हांथों में पकड़ रखा। मैंने दीपा को खड़ा होने को कहा तो वह शर्मा कर बोली, "आप पहले लाइटें बुझा दीजिये।"

यह बात मेरी समझ में नहीं आती। हमारी भारतीय स्त्रियाँ चुदवाने के लिए तो तैयार हो जाती है और चुदवाती भी है, पर अपने स्तनोँ का, अपनी चूत का दर्शन कराने में क्यों झिझकती है, यह मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ।

तरुण ने उठकर कमरे की सारी लाइटें बुझा दी, बस एक डिम लाइट चालू रक्खी। वह धीमी रोशनी भी कमरे में काफी प्रकाश फैलाये हुए थी। बाहर की रोड लाइटों का प्रकाश भी कमरे में आ रहा था। दीपा जब उठ खड़ी हुयी तब उसका गाउन अपने आप ही नीचे सरक गया और मेरी शर्मीली रूढ़ि वादी पत्नी हम दोनों के सामने पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी। पर फिर भी स्त्री सुलभ लज्जा के कारण दीपा ने अपना एक हाथ अपने स्तनों के ऊपर और दुसरा हाथ अपनी खूब सूरत चूत को ढकने के लिए आगे किया। मैंने मेरी बीबी के होंठों को हलके से चूमा और कहा, "दीपा अब छोडो भी। मैंने तो तुम्हारा पूरा बदन कई बार देखा है। तरुण बेचारा तुम्हारे नंगे बदन के दर्शन के लिए कभी से तड़प रहा है। तुम्हारी सुंदरता को उसे भी तो निहारने दो।"

मैंने हलके से दीपा की सुंदरता को ढकने के प्रयास करते हुए दीपा के दोनों हाथ उसकी चूत और स्तनों पर से हटा लिए। मैं अपने सपने में ही यह दृश्य की कल्पना कर सकता था। जो मेरे सामने भी ऐसी नंगी खड़ी होने में शर्माती थी वह मेरी बीबी उस रात मेरे और तरुण के सामने समूर्ण नग्न खड़ी हुई रति के सामान खूबसूरती, कामुकता , नजाकत और स्त्री सुलभ लज्जा का एक अद्भुत संगम सी दिख रही थी। यह उसका पहला अनुभव था जब वह अपने पति के अलावा किसी और व्यक्ति के सामने नंगी खड़ी थी।

तरुण और मैं दोनों दीपा के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। तरुण ने दीपा को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा। मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।

शायद कहीं ना कहीं उसके मन में यह जूनून था की वह कभी ना कभी तरुण को अपना यह रूप जरूर दिखाएगी ताकि तरुण को पता लगे की दीपा भी टीना से अगर ज्यादा नहीं तो कम सेक्सी भी नहीं थी। टीना की वह बिकिनी में मुश्किल से अपने सेक्सी बदन को छुपाती हुई तस्वीरों को देखकर अपने मन ही मन में दीपा की स्त्री सहज जलन का यह शायद रोमांचक नतीजा था।

तरुण बेचारा भौंचक्का सा दीपा के नग्न बदन को देखता ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। जिसके नंगे बदन की कल्पना वह दिन रात सपनों में करता रहता था, वह उसके सामने नग्न खड़ी थी। तरुण ने दीपा का अर्ध नग्न बदन तो कई बार देखा था पर पूरा अनावृत बदन अपनी पूरी छटा में पहली बार उसने देखा और उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की दीपा का साक्षात नंगा बदन उसकी कल्पना से भी कई गुना सुन्दर उसको लगा।

तरुण नंगी खड़ी हुई दीपा को देखता ही रह गया। दीपा की गालों, कंधे और छाती पर बिखरे हुए केश दीपा के उन्मत्त गुम्बज के सामान फुले हुए पर बिनाझुके खड़े हुए और दो चोटियों के सामान निप्पलों से आच्छादित स्तन मण्डल को छुपाने में असमर्थ थे। उस रोशनी में भी दीपा की स्तनों की चोटियों की चारों और फैली हुई एरोला अद्भुत कामुक लग रही थीं। दीपा के स्तनों की एरोला में कई फुंसियां खड़ी थीं जो दीपा की उत्तेजना की चुगली खा रहीं थीं।

दीपा की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में खाई हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था। उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी चूत के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी चूत में से रस चू रहा था। वह दीपा के हालात को बयाँ रहा था।
 
तरुण ने आगे बढ़कर दीपा को अपनी बाहों में लिया। तरुण ने अपने बदन से दीपा का नग्न बदन चिपका कर दीपा को कहा, "दीपा भाभी, आज मैं सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने इतनी सारी लडकियां और औरतें के बदन देखे हैं, पर आपका सा सेक्सी बदन मैंने नहीं देखा।"

दीपा ने शर्माते हुए धीमी दबी हुई कहा, "अच्छा जनाब? झूठ मत बोलो। तुम तो दीपक को कह रहे थे, मैं सुन्दर तो हूँ, पर टीना जैसी सेक्सी नहीं?"

दीपा की बात सुनकर तरुण आश्चर्य से मेरी और देखने लगा और बोला, "भाई, मैंने यह कब कहा? मैं यह सपने में भी नहीं कह सकता। भाभी, जिसे देख कर कोई भी मर्द का लण्ड खड़ा हो जाए और वह उसे चोदने के लिए बेचैन हो जाए उसीको सेक्सी कहते हैं। सेक्सी होना खूबसूरत होने से कहीं आगे है। टीना बेशक खूबसूरत और कुछ हद तक सेक्सी भी है, पर चाहे आप सीधी सी साडी पहनो चाहे जीन्स, आपको देख कर जो मेरे अंदर के हॉर्मोन्स कूदने लगते हैं ऐसा टीना के साथ कभी नहीं हुआ।"

मैं तरुण की बात सुनकर सकपका गया और बोला, "दीपा, मुझे माफ़ करना, तरुण ने ऐसा कभी नहीं कहा। वह तो तुम्हें बहकाने के लिए मैंने ही वह बात बना दी थी।"

दीपा ने टेढ़ी नजर कर मुझे कहा, "पता नहीं और भी कितनी सारी बातें तुमने मुझे उकसाने के लिए कही होंगी?"

उस रात मेरी शर्मीली पत्नी ने यह मन बना लिया था की आज वह मेरी और तरुण ख्वाहिश पूरी करेगी। वह तरुण की बाँहों में समां गयी और उस ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली। तरुण को तो जैसे स्वर्ग मिल गया। वह अपने हाथोँ से दीपा के नंगे बदन को सहला रहा था। उसके दोनोँ हाथ दीपा के पीछे, उसकी रीढ़ की खाई में ऊपर नीचे हो रहे थे। कभी वह अपना हाथ दीपा के चूतड़ों के ऊपर रखता और दीपा की गाँड़ के गालों को दबाता, तो कभी अपनी उंगली को उस गाँड़ के होठों के बिच की दरार में डालता था। उसने मेरी पत्नीको इस हालात में देखने की कल्पना मात्र की थी। उसे यह मानना बड़ा अजीब लग रहा था की तब दीपा का वह बदन उसका होने वाला था।

तरुण नीचे झुक कर दीपा के पीछे गया। वह अपना सर ऊपर कर मेरी और देखते हुए बोला, "क्या मैं भाभी के कूल्हों को महसूस कर सकता हूँ? मैं कई महीनों से, जबसे मैंने दीपा भाभी को पहली बार देखा था तबसे इन कूल्हों को सहलाने के लिए तड़प रहा हूँ।"

दीपा पहले मुस्काई और फिर थोड़ा हीचकिचाते हुए मेरी और देखा। मैंने अपनी पलकें झुका और गर्दन हिला कर तरुण को अपनी अनुमति दे दी। तरुण ने अपने घुटनों पर बैठ कर तुरंत ही मेरी बीबी की सुडौल गाँड़ के दोनों गालों को चूमा और काफी देर तक चूमता ही रहा। दीपा की गाँड़ का घुमाव और उसकी वक्रता में तरुण अपनी जीभ घुसा कर उन्हें चूमने और अपने हाथों से सहलाने लगा। जब उसने दीपा की गाँड़ के छिद्र में अपनी जीभ घुसाई तो दीपा के बदन में कम्पन होने लगा। उस समय जरूर मेरी बीबी के सारे रोंगटे खड़े हो गए होंगे और सिहरन उसके पुरे बदन में फ़ैल गयी होगी, क्यूंकि मैं महसूस कर रहा था की वह मारे रोमांच के काँप रही थी।

मैं उन दोनो की और आगे बढ़ा। मैंने धीरे से तरुण को मेरी बीबी के बिलकुल सामने खड़ा किया और दीपा का हाथ तरुण की टांगों के बिच में रखा और उसके लण्ड को हिलाने के लिए उसे प्रेरित किया। दीपा मेरा इशारा समझ गयी और तरुण के लण्ड को उसके पाजामे के उपरसे सहलाने लगी। मैं धीरे से तरुण के पीछे गया और अपना हाथ तरुण की कमर के आसपास लपेटते हुए तरुण के पाजामे का नाड़ा मैंने खोल दिया।

तरुण पागल हुआ जा रहा था। जैसे ही उसका पाजामा फर्श पर गिरा तो उसका लंबा और मोटा लण्ड हवा में लहराने लगा। वह एकदम कड़क हो चूका था। वह बिलकुल बिना झुके अपना सर उठा के खड़ा हुआ था। ऐसे लग रहा था जैसे वह दीपा की चूत की और जाने को मचल रहा था। तरुण के नंगे होते ही दीपा की आँखें तरुण का लण्ड देख कर फटी की फटी ही रह गयीं। जिस तरह तरुण का लण्ड जो उसके पाजामे में गोल घूम कर समाया हुआ था वह पाजामें का बंधन खुलते ही जैसे एक अजगर या बड़ा साँप अपनी टोकरी में से सर निकालते हुए बाहर निकल कर शान से अपना फ़न फैलाता हुआ अकड़ कर खड़ा होता है वैसे ही एकदम दीपा की चूत के सामने खड़ा हो गया। तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर मेरी बीबी दो कदम पीछे हट गयी शायद उसे डर लगा की कहीं तरुण का इतना लंबा लण्ड इतनी दुरी से भी बिना कुछ जोर लगाए उसकी चूत में सीधा घुस ना जाए।

शायद उस समय पहली बार दीपा को तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई का सही सही अंदाज हुआ जो उसके पहले के अंदाज से कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था। तरुण का लण्ड मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा लंबा और मोटा भी था। जैसे ही तरुण का पाजामा नीचे गिरा दीपा का हाथ अनायास ही तरुण के लण्ड को छू गया। अब तक मेरी प्यारी बीबी ने कोई पराये मर्द का लण्ड देखा नहीं था। उसके लिए तो यह एक अजूबा सा था। इतना मोटा और लंबा लण्ड देख दीपा के चेहरे की भाव भंगिमा देखते ही बनती थी।

तरुण का लण्ड देखते ही बिना सोचे समझे दीपा के मुंह से आवाज निकल गयी, "बापरे! इतना बड़ा?" बोल कर वह चुप हो गयी। और कुछ बोल नहीं पायी।

दीपा ने तरुण का लण्ड देखने के बाद मेरी और देखा। मैं समझ गया की वह तरुण के लण्ड की लम्बाई और मोटाई, जो मेरे लण्ड से कहीं ज्यादा थी, से उत्तेजित हो रही थी। शायद उसे भी यह महसूस होगा की मैं भी यह देख कर छोटा महसूस ना करूँ।

तरुण का इतना तगड़ा लण्ड देखते ही मैंने देखा की अनायास ही मेरी बीबी ने अपनी दोनों टाँगे इकट्ठी कर लीं। वह क्या सोच रही थी, मैं उसकी कल्पना ही कर सकता था। शायद वह यह सोच रही होगी की कभी न कभी तो उस लण्ड को उसकी चूत में घुसना ही था। उस समय उसका क्या हाल होगा उसे कैसा महसूस होगा शायद वह यही सोच रही होगी। यह सोच कर थोड़ी देर के लिए दीपा जैसे ठिठक सी गयी। फिर दीपा ने से धीरे से तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया। वह अपनी मुठी में उसे पूरी तरह से ले न पायी, पर फिर भी उसने अपनी आधी मुठी से ही तरुण के लण्ड को सहलाना शुरू किया। वह शायद तरुण को कुछ सुकून देने के लिए उसके लण्ड को कुछ देर तक सहलाती रही।

तरुण ने वहां तक पहुँचने के लिए कितनी जहमत उठाई थी वह दीपा भली भाँती जानती थी। दीपा को पटाने के लिए तरुण ने क्या क्या नहीं किया? आखिर में जाकर उसने दीपा को पटा ही लिया।

तरुण का लण्ड हलकी सी रोशनी में भी चमक रहा था। तरुण की तरह उसका लण्ड भी गोरा था। उसकी पूरी गोलाई पर उसका पूर्व रस फैला हुआ था। चारों और से चिकनी मलाई फ़ैल जाने के कारण वह स्निग्ध दिख रहा था। सबसे खूबसूरत उसकी पूरी लंबाई पर बिछी हुयी रगें थीं। उसकी गोरी चमड़ी पर थोड़ी सी श्यामल रंग की नसोँ का जाल बिछा हुआ था। जिस वक्त दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथ में लिया उसके लण्ड की चमड़ी के तले बिछी हुयी नसोँ में जैसे गरम खून का सैलाब फर्राटे मारता हुआ दौड़ने लगा। उसकी नसें फूल रही थीं। तरुण का लण्ड पूरी तरह अपनी चरम ताकत से खड़ा था।

तरुण के तने हुए लण्ड को देख दीपा के गाल एकदम लाल हो गए। उसे महसूस हुआ की वह अपने पति के मित्र के सामने नंग धड़ंग खड़ी थी और उसके पति का मित्र भी नंगा उसके सामने खड़ा था और अपने लंबे, मोटे लण्ड का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसा वास्तव में हो सकेगा यह कभी उसने सोचा भी नहीं था। हाँ उसने कभी अपने सपने में ऐसा होने की उम्मीद जरूर की होगी।

दीपा के मुंह के भाव को तरुण समझ गया और उसने मेरी पत्नी को अपने आहोश में लेकर थोड़ा झुक कर पहले उसके गालोँ पर और फिर उसके होठों पर अपने होँठ रख दिए और वह दीपा को बेतहाशा चूमने लगा। दीपा को होठों पर चूमते चूमते थोड़ा और झुक कर तरुण दीपा के स्तनों को भी चूमने और चाटने लगा। दीपा से उसका जी नहीं भर रहा था।

मेरी निष्ठावान पत्नी भी तरुण से लिपट गयी और उसके होठों को चूसने और चूमने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे उसे अपनी कितने सालों की प्यास बुझाने का मौका मिल गया था। मेरी पत्नी और मेरा ख़ास दोस्त अब मेरे ही सामने एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए एक दूसरे को चुम्बन कर रहे थे जैसे काफी अरसे के बाद मिलन के लिए तड़पते हुए वह पति पत्नी या घनिष्ठ प्रेमी हों।
 
मैं उन दोनों को देखता ही रहा। उस वक्त कुछ क्षणों के लिए मेरे मनमे जरा सा ईर्ष्या का भाव आया। इस तरह का उन्मत्त चुम्बन करने के बाद, जब मेरी पत्नी ने मेरी और देखा तो वह मेरे मन के भावों को ताड़ गयी। वह तुरंत तरुण की बाँहों में से निकल कर मेरे पास आयी और मुझे अपनी बाँहों में लेने के लिए मेरी और देखने लगी।

मैंने तुरंत ही उसे अपनी बाहों में लिया, तब उसने तरुण भी सुन सके ऐसे कहा, "अपनी बीबी को किसी और मर्द की बाँहों में देख कर कुछ जलन सी हो रही है ना?"

मैं चुप रहा तो दीपा बोली, "यही तो मैं आपको समझाने की कशिश कर रही थी। मर्दों के लिए पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ बाँटना उनके अहम् को आहत करता है, क्यूंकि वह अपनी पत्नी पर एक तरह से अधिपत्य यानी मालिकाना भाव रखते हैं। वैसी औरतों को कुछ हद तक ऐसा मालिकाना भाव अच्छा भी लगता है, पर सिर्फ कुछ हद तक। हालांकि आप में यह मालिकाना भाव उतना ज्यादा नहीं है। ठीक होता अगर आप मुझे और तरुण को एक दूसरे के करीबी जातीय संपर्क में आने के लिए ना उकसाते। पर यकीन मानो अगर आप ने यह किया है तो इससे कुछ नहीं बदलेगा। आप मेरे सर्वस्व हैं और हमेशा रहेंगे। आज कुछ भी हो जाए, मैं आप की ही हूँ और हमेशा रहूंगी। मैं आप के बिना अधूरी हूँ और आपके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती। आप दुनिया के सर्वोत्तम पति हो यह मैं निसंकोच कह सकती हूँ।

आज मैं यह मानती हूँ की मेरे मन में तरुण के प्रति जातीय आकर्षण था। आपने भी शायद इसे भाँप लिया था। आप मुझे हमेशा तरुण के साथ सेक्स करने का अनुभव करने के लिए कहते रहे और उकसाते रहे। मैं उसका विरोध करती रही। आखिर में आपने और तरुण ने मिलकर मेरे तरुण के प्रति जातीय भाव को इतना भड़का दिया की मैं तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी। आज रात आपने मेरे और तरुण के शारीरिक सम्भोग की व्यवस्था करही दी, और मुझे भी इतने सारे तिकड़म कर तैयार कर ही दिया। आपने जो किया वह आप नहीं करते तो मैं आज ऐसे यहाँ ना होती। यदि आप मुझे इसके लिये मजबूर न करते तो मैं कभी तरुण को अपने बदन को छूने भी नहीं देती। आज जो भी हो, मैं आपकी थी, आपकी हूँ और हमेशा आपकी रहूंगी। इसको कोई भी व्यक्ति बदल नहीं सकता।"

तरुण ने दीपा की बात सुनी और उसे अपने आहोश में लेते हुए तरुण ने मेरी और देखा और बोला, "दीपक, मैं ना कहता था की मेरी भाभी जितनी खूबसूरत और सेक्सी भी है उतनी ही समझदार भी है? कई औरतें जिनको मैंने चोदा, वह मुझसे शादी तक करने के लिए तैयार हो जाती थीं। पर भाभी ने आज एक मर्यादा की रेखा खिंच दी है और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अब दीपा भाभी ने मन बना ही लिया है तो मुझे उनकी चमचागिरी करने की कोई जरुरत नहीं पर मैं यह कहना चाहता हूँ की आप बहुत ही खुशनसीब हो की आप को दीपा भाभी जैसी बीबी मिली। वह मेरी भाभी है और आप की बीबी है। मैंने तो उन्हें एक रात के लिए आप से उधार मांगा है।"

दीपा ने तब तरुण की और टेढ़ी नज़रों से देखा और पट से कहा, "क्यों भाई, जब तुम दोनों ने मुझे फँसा ही दिया है तो फिर एक रात के लिए ही क्यों? कहते हैं ना की खून एक करो या दस, फाँसी तो एक ही बार मिलनी है। तो फिर एक बार क्यों? अब तो तीर कमान से निकल चुका है। अब तो मैं जब मर्जी चाहे तरुण से चुदवाउंगी। मेरे पति को मुझे इसकी इजाजत देनी पड़ेगी।"

तरुण दीपा की बात सुनकर हँस पड़ा और बोला, "ना भाभी ना। आप तो टेम्पररी की बात कर रहे हो, मैं तो भैया को यह कहूंगा की अगर भगवान ना करे और आपकी और भाभी की लड़ाई हो जाए और ऐसी नौबत आ जाये की आप दोनों को तलाक़ लेना पड़े तो भाभी, मेरा खुला आमंत्रण है की आप दीपक को छोड़ मेरे साथ शादी कर लेना, मैं टीना को तलाक़ दे कर आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"

दीपा भी ताव में आ कर धीरे से बोली, "तरुण, यह शादी तलाक के चक्कर छोडो। तुम्हारा जब मन करे तुम आ जाना और हमारे साथ रहना। दीपक ना भी हो तो रात को चुपचाप आ जाना। सुबह होने से पहले चले जाना। तुम्ही ने तो कहा था ना की मैं तुम में और दीपक में फर्क ना समझूँ? तुम भी टीना में और मुझ में फर्क ना समझना। जब दीपक मुझसे ऊब जाएँ या जब तुम टीना से ऊब जाओ तब तुम मेरे पास आ जाना और दीपक को मैं टीना के पास भेज दूंगी। तलाक़ जैसी फ़ालतू चीज़ों के लफड़े में पड़ने की क्या जरुरत है? फिर जब तुम्हारा मन मुझसे भर जाए और दीपक का मन टीना से भर जाए तब वापस आ जाना।"

तरुण ने तालियां बजाते हुए कहा, "वाह मेरी भाभी वाह! क्या दिमाग पाया है? देखो भाई, कितना सटीक हल निकाला है भाभी ने? साला ऐसा आईडिया अपुन के दिमाग नहीं आया?" तरुण की सराहना सुनकर मेरी बीबी ने गर्व से सर ऊंचा कर मेरी और देखा।

दीपा ने पूछा, "पर तरुण सच सच बताना। तुमने मुझे पटाने का फैसला कब किया? मैं वैसे तो किसीके बातों में नहीं आने वाली थी। मैं तो पहले से ही मेरी मोरालिटी क बारे में एकदम स्ट्रिक्ट थी। पता नहीं मैंने क्या देख तुम में? शायद तुम्हारी सच्चाई मुझे भाई। तुम गलत काम भी करते थे तो सच्चाई से करते थे। दीपक ने तो बताया ही होगा, मेरे बारे में। तो फिर तुमने मुझमें क्या बात देखि, की ऐसे मेरे पीछे ही पड़ गए?"

तरुण ने कुछ पल के लिए दीपा का हाथ पकड़ा और दबाया और बोला, "भाभीजी, सच बताऊँ? मैं आपके बारेमें काफी जान गया था। भाई ने भी बताया था की आप तो बिलकुल रूखे हो। पर भाभी, जब पहली बार मैंने आपसे बात की तो मैं समझ गया, की आप का ह्रदय बड़ा कोमल और साफ़ है। आपकी हँसी मेरे जिगर को छू गयी और आपकी सेक्सी फिगर और खूबसूरती ने मुझे मजबूर कर दिया।"

तरुण की बात सुनकर दीपा बोली, "ठीक है तरुण। अब मेरे पति को भी तैयार करो यार।"

तरुण मेरे पीछे आया और एक झटके में ही मेरे पाजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। मैंने भी मेरा कुरता निकाल फेंका और मैं भी दीपा और तरुण जैसे ही नंगा हो गया। मेरे नंगे होते ही मेरा लण्ड अपने बंधन में से बाहर कूद पड़ा। वह अकड़ कर खड़ा था और मेरी पत्नी की चूत को चूमने के लिए उतावला हो ऐसे उसकी दिशा में इंगित कर रहा था। दीपा ने अपने नित्य चुदसखा को अपने हाथ में लिया और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगी।

मैंने दीपा को तरुण की और धकेला और जब दोनों एक साथ हुए तो उनको एक धक्का मार कर पलंग के ऊपर गिराया। गिरते हुए तरुण ने मेरी बाँह पकड़ी और मुझे भी अपने साथ खिंच लीया। हम तीनों धड़ाम से पलंग पर गिरे। मैं अपनी निष्ठावान और शर्मीली पत्नी को मेरे ही घनिष्ठ मित्र की बाहों मेरी मर्जी ही नहीं, मेरे आग्रह से नंगा लिपटते हुए देख उन्मादित हो गया।
 
तरुण ने दीपा को अपनी दोनों टांगों में जकड़ लिया। उसकी शशक्त जाँघें मेरी बीवी के नंगे बदन ऊपर जैसे अजगर अपने शिकार को अपने आहोश में जकड लेता है वैसे ही लिपटी हुयी थीं। मेरी पत्नी उसमे समा गयी थी। तरुण का लण्ड दीपा की चूत पर रगड़ रहा था। ऐसे कड़क लण्ड को सम्हालना तरुण के लिए वास्तव में मुश्किल हो रहा होगा। दीपा और तरुण एक दुसरेकी आहोश में चुम्बन कर रहे थे। दीपा ने अपने और तरुण के बदन के बीचमें एक हाथ डाल कर तरुण का लण्ड पकड़ रखा था, जिसे वह सेहला रही थी। उसका दुसरा हाथ मेरी और बढ़ा और मेर लण्ड को पकड़ा। मेरा लण्ड पकड़ ने में दीपा को कुछ परेशानी जरूर हो रही थी क्यों की मैं दीपा के पीछे उसकी गाँड़ में अपना लण्ड सटा कर लेटा था। दीपा तरुण के होँठों से अपने होँठ चिपका कर उसकी बाँहों और टाँगों में जकड़ी हुई थी। मेरा लण्ड पकड़ने के लिए उसे हाथ पीछे करने पड़ रहे थे। पर फिर भी वह मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी गाँड़ के गालोँ पर रगड़ रही थी।

मेरी शर्मीली और रूढ़िवादी पत्नी तब एक हाथ में मेरा और दूसरे हाथ में तरुण का लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर बड़े प्रेम से सहला रही थी। हम तीनों पूण रूप से नग्न हालात में थे और एक दूसरे को लिपटे हुए थे। दीपा बिच बिच में तरुण के अंडकोष को अपने हाथों से इतने प्यार से सहलाती थी की तरुण का बदन दीपा की उस हरकत से मचल उठता था। मैं जानता था की उस समय तरुण का हाल कैसा हो रहा होगा। दीपा के हाथ में एक जादू था। वह मेरे एंडकोष को ऐसे सहलाती थी की मैं उस आनंद का कोई वर्णन कही कर सकता।

उधर तरुण और मेरी पत्नी ऐसे चिपके थे जैसे अलग ही नहीं होंगे। दीपा भी तरुण की बाँहों मैं ऐसे समा गयी थी के पता ही नहीं चलता था के वह गयी कहाँ। तरुण के हाथ दीपा के नंगे पिछवाड़े को सहला रहे थे। तरुण का हाथ बार बार दीपा के कूल्हों को दबाता रहता था और उसकी उँगलियाँ कूल्हों के बिच वाली दरार में बार बार घुस कर दीपा की गाँड़ के छिद्र में घुसेड़ता रहता था। ऐसा करते हुए उसकीं उंगलियां कई बार मेरे लण्ड को भी छू जाती थीं। कभी कभी तरुण मेरे लण्ड को भी अपनी उँगलियों से सेहला देता था। इस से दीपा और उत्तेजित हो कर गहरी साँसे लेकर, "तरुण यह क्या कर रहे हो? प्लीज मैं बहुत गरम हो रही हूँ। आहहह... बोलती रहती थी। दीपा की उत्तेजना उसकी धीमी सी कराहटों में मेहसूस हो रही थीं।

धीरे धीरे तरुण की कामुक हरकतों से दीपा इतनी गरम और उत्तेजित हो चुकी थी की वह कामोत्तेजना में कराह रही थी। और धीरे धीरे जैसे शर्म की मात्रा कम होती जा रही थी, वैसे वैसे दीपा की कराहट की आवाज की तीव्रता बढ़ती जा रही थी। एक समय तो मुझे ऐसा लगा जैसे वह दीपा नहीं कोई शेरनी गुर्रा रही हो।

मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ की कुछ भी ख़ास कार्यवाही किये बगैर ही मेरी बीबी मात्र तरुण के स्पर्श से ही इतनी उत्तेजित हो रही थी की किसी भी समय उसका छूट जाने वाला था। तरुण भी मेरी बीबी की इस उत्तेजना को अच्छी तरह से समझ रहा था। वह जानता था की भले ही दीपा ने उसे कई बार लताड़ा होगा या भगा दिया होगा, पर कहीं ना कहीं दीपा के मन के कोने में यह इच्छा प्रबल थी की तरुण उसे और छेड़े, जबरदस्ती करे और उसे चुदवाने के लिए मजबूर करे ताकि दीपा उससे चुदाई भी करवाए और दीपा सारा दोष तरुण के सर पर लाद भी दे। जरूर दीपा के मन में तरुण से चुदवाने की इच्छा पहले से ही रही होगी।

और शायद यही कारण था की दीपा के कई बार जबरदस्त लताड़ने पर भी तरुण कभी डरा नहीं और नाहिम्मत भी नहीं हुआ और दीपा को छेड़ कर और उकसाने के लिए दीपा के पीछे लगा रहा। दीपा का गरम मिज़ाज शांत करने के लिए वह बार बार दीपा से माफ़ी माँगता रहता था, ताकि दीपा उसे कहीं गुस्से में ऐसा कुछ ना कह दे जिससे रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाए। फिर भी उस सुबह बाथरूम में तो एक बार ऐसी नौबत आ ही गयी थी, जब दीपा ने तरुण को कह दिया था की "मुझे तुम अब अपनी शकल भी मत दिखाना।" जिसको मैंने बड़े सलीके से सम्हाल लिया था।

तरुण दीपा की पतली कमर पर अपना मुंह रख कर मेरी बीबी की नाभि को चाटने एवं चूमने लगा। उसकी जीभ से लार दीपा के पेट पर गिर रही थी, वह उसे चाटकर दीपा के पेट पर अपना मुंह दबाकर उसे इतने प्यार से चुम्बन कर रहा था की मेरी बीबी की कामुक कराहटें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं। अपना मुंह दीपा के पेट, नाभि और नाभि के नीचे वाले और चूत के ज़रा सा ऊपर उभार पर इतने प्यार से चूमने से मेरी बीबी की कामाग्नि की आग और तेज़ी से भड़क रही था। मैं मान गया की आज तक मैंने इतने सालों मे अपनी पत्नी के बदन को इस तरह नहीं चूमा था।

दीपा कीउत्तेजना को देख तरुण और मैं भी फुर्ती से मेरी बीबी के पुरे बदन को चूमने और चाटने लगा और अपने हाथोँ से दीपा के पुरे बदन को बड़े प्यार से सहलाने लगा। वह दीपा के पाँव से लेकर धीरे धीरे दीपा की चूत तक मसाज करने लगा। दीपा की उत्तेजना जैसे जैसे तरुण के हाथ दीपा की जाँघों से हो कर उसकी चूत के करीब पहुँच रहे थे वैसे वैसे बढ़ने लगी। दीपा के मुंह से हाय... ओह... उफ़... की कराहट बिना रुके निकल रही थी। दीपा बार बार कभी अपनी गाँड़ तो कभी अपना पूरा बदन हिलाकर अपनी उत्तेजना को जाहिर कर रही थी। जब तरुण दीपा की जाँघों के बिच उसकी चूत के पास पहुँच ही रहा था की पुरे बदन को हिला देने वाला काम का अतिरेक समा उन्माद से भरा जबर दस्त ओर्गास्म से दीपा काँप उठी।

जैसे ही तरुण ने दीपा का ओर्गास्म महसूस किया तो वह कुछ समय के लिए रुक गया। वह अपनी प्रियतमा को कुछ देर साँस लेने का मौक़ा देना चाहता था। पर दीपा को चैन कहाँ? वह रात शायद दीपा के लिए उसकी जिंदगी की सबसे उत्तेजक रात थी।

कुछ ही पल दीपा ने पलंग पर अपने धमाके समान ओर्गास्म का आनंद लिया और फ़ौरन ही उसने तरुण से अपने आप को अलग कर उसे अपनी टांगो के पास जाने का इशारा किया और उसका मुंह अपनी नाभि पर रखा। तरुण को और क्या चाहिए था। उसे अपनी कामाङ्गना (सेक्स पार्टनर) का आदेश जो मिला था।

उसका हाथ अनायास ही मेरी बीबी की चूत पर रुक गया। दीपा की चूत का उभार कितना सेक्सी है वह तो मैं जानता ही था। मुझे यह भी पता था की वहाँ हाथ रखने मात्र से मेरी अर्धांगिनी कैसे फुदकती है। तरुण के वहां छूते ही दीपा अपने कूल्हों को गद्दे पर रगड़ ने लगी। तरुण अचानक रुक गया।

तरुण दीपा की चूत में उंगली डालना चाहता था। पर साथ में कहीं ना कहीं उसके मन के कोने में डर था की कहीं दीपा भड़क ना जाये। तरुण ने दीपा की चूत के उभार पर अपनी हथेली रक्खी और वह दीपा की और देखने लगा जैसे वह उसकी इजाजत मांग रहा हो। मेरी प्यारी पतिव्रता पत्नी ने मेरी और देखा। वह शायद मेरी अनुमति चाह रही थी या फिर यह देखने की कोशिश कर रही थी की तरुण के उसकी चूत में उंगली डालने से कहीं मैं फिरसे इर्षा की आग में जलने तो नहीं लगूंगा?

तब मैंने दोनों सुन सके ऐसे कहा। "डार्लिंग, हमारा पति पत्नी का रिश्ता अटूट और पवित्र है। जब तक हम एक दूसरे के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे तब तक इसे आंच नहीं आ सकती। मैं तुम्हारा पति आज तुम्हें तरुण के साथ पूरा सम्भोग करनेकी न सिर्फ इजाजत देता हूँ, मैं तुम्हे आग्रह करता हूँ के आज की रात तुम कोई भी हिचकिचाहट और झिझक के बगैर उसे अपने पति की तरह मानकर उसे सब शारीरिक सुख दो जो तुम दे सकती हो और उससे सारे शारीरिक सुख लो जो वह तुम्हे देना चाहता है। अगर साफ़ साफ़ कहूं तो अब तुम हम दोनों को खुल्लमखुल्ला बेझिझक चोदो और हम दोनों से खुल्लमखुल्ला बेझिझक चुदवाओ।"

मेंरी बात सुन कर दीपा और तरुण दोनोँ में अब जैसे नयी स्फूर्ति आ गयी। मर्यादा के बचे खुचे बंधन तब चकना चूर हो गए। अब तरुण ने दीपा की चूत पर अपना दायां हाथ रखा और वह चूत के होठों को बड़े प्यार से सहलाने लगा। मैं यह दृश्य देख कर अपने हर्षोन्माद पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था। दीपा के लिए तो वह पहला मौका था जब एक पर पुरुष ने उस जगह पर उसे छुआ था। और जब तरुण ने उसके छोटे छिद्र में अपनी उंगली डाली तो दीपा एकदम उछल पड़ी। वह तरुण की उँगलियों को अपने छोटे से प्रेम छिद्र से खेलते अनुभव कर पगला सी गयी थी।

तरुण ने जब दीपा की चूत के दोनों होठों को चौड़ा कर के देखा तो कुछ सोच में पड़ गया। शायद तरुण की बीबी टीना का प्रेम छिद्र और योनि मार्ग (चूत का छेद) ज्यादा खुला हुआ होगा, क्योंकि दीपा का इतना छोटा सा छिद्र देख तरुण अनायास ही बोल उठा, "दीपा तुम्हारा होल (चूत का छिद्र) तो एकदम छोटा सा है।"
 
मेरी बीबी समझ गयी की तरुण कहना चाहता था की दीपा के छोटे से चूत के छिद्र में तरुण का इतना मोटा और लंबा लण्ड कैसे घुसेगा? वह तो खुद ही इस विचार से पहले से ही परेशान हो रही थी। मेरे छोटे से लण्ड को लेने में भी दीपा को दिक्कत होती थी, तो तरुण का लण्ड कैसे घुसा पाएगी यह शंका उसे मारे जा रही थी।

खैर उस समय तो दीपा का पूरा ध्यान तरुण की उंगली पर था जो दीपा की चूत में खेल रही थीं। मैं तो जानता था की मेरी पत्नी को सेक्स के लिए तैयार करने का इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं था। जब दीपा को चुदवाने के लिए तैयार करना होता था, तब मैं उसकी चूत में प्यार से अपनी एक उंगली डाल कर उसकी चूत के होठ को अंदर से धीरे धीरे रगड़ कर उसे चुदवाने के लिए मजबूर कर देता था। तरुण के उंगली डालने से जब दीपा छटपटाई तो तरुण भी यह तरकीब समझ गया। वह बड़े प्यार से मेरी बीबी की चूत में अपनी उंगली को वह जगह रगड़ रहा था जहाँ पर रगड़ने से दीपा एकदम पागल सी होकर चुदवाने के लिए बेबस हो जाती थी।

दीपा की बेबसी अब देखते ही बनती थी। तरुण के लगातार क्लाइटोरिस पर उंगली रगड़ते रहने से दीपा कामुकता भरी आवाज में कराहने लगी। जैसे जैसे दीपा की छटपटाहट और कामातुर आवाजें बढती गयी, तरुण अपनी उंगली उतनी ही ज्यादा फुर्ती से और रगड़ने लगा। मेरी कामातुर पत्नी तब तरुण से चुदवाने के लिए तरुण का हाथ पकड़ कर कहने लगी, "तरुण, यार यह मत करो। मैं पागल हुयी जा रही हूँ। मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही। देखो, मैं पहले ही जान गयी थी की तुम कई महीनों से मुझे चोदने के लिए मेरे पीछे पड़े हुए थे। मुझे चोदने के लिए तुमने क्या क्या पापड नहीं बेले? अब मैं तुम्हें आह्वान कर यहीं हूँ की जल्दी आओ, जल्दी मुझ पर चढ़ जाओ और प्लीज मेरी चुदाई करो।"

पर तरुण तो रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उस रात जैसे उसने ठान ली थी की अब तो वह दीपा को अपनी कामाङ्गिनी बना कर ही छोड़ेगा। वह दीपा को इतना उत्तेजित करेगा की दीपा आगे भी महीनों तक तरुण से चुदवाने के लिए तड़पती रहे। तरुण के उंगली चोदन से दीपा अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। दीपा की साँसे जैसे फुफकार मार रही थी। दीपा के मुंह से सतत आह... ओह... की कराहटें निकल रहीं थीं। बेड पर वह अपने कूल्हों को उछाल के फिर पटक रही थी।

उसके दिल की धड़कन की रफ़्तार तेज हो गयी। मैं जान गया के अब मेरी बीबी झड़ने वाली है। वह कामुकता के चरम पर पहुँच रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने स्तनोँ को चूसने और मलने के लिए इशारा करने लगी। तरुण ने जब यह देखा तो उसने एक हाथ से दीपा के दूध दबाने शुरू कर दिए। मैं भी उसके दूसरे स्तन पर चिपक गया और उसे चूसने और जोर से दबाने लगा। उस समय न सिर्फ मेरी बीबी, किन्तु हम तीनों कामुकता की ज्वाला में जल रहे थे। दीपा तब झड़ने वाली थी।

फिर एक कराह और एक आह्ह की सिसकारी छोड़ते हुए दीपा एकदम शिथिल होकर बिस्तर पर ढेर हो गयी। अब उसकी साँसें भी धीमी हो गयी। करीब पांच मिनट तक तरुण की ऊँगली से चुदने पर कामान्धता की चरम पर पहुँच ने के बाद उन्माद भरे नशे का वह जैसे आस्वादन कर रही थी। कुछ क्षणों बाद उसने मेरे गले में अपनी बाहों के माला डाली और मेरे होठों से होंठ मिलाकर बिना बोले उन्हें चूसने लगी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे इस नए अनुभव करवानेके लिए वह मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शा रही थी।

थोड़ी देर बाद मेरी प्यारी पत्नी बैठी और मेरी और तरुण को और देख कर बोली, "दीपक और तरुण। अब तक तुम दोनों ने मुझे खुश किया, अब मेरी बारी है। पर पहले जाओ और अपना लण्ड अच्छी तरह साफ़ कर लाओ।" हम समझ गए की दीपा हमारा लण्ड चूमना और चूसना चाहती थी। मेरा लण्ड तो ठीक पर वह तरुण का लण्ड चूसना चाहती थी। खैर हम दोनों फटाफट बाथरूम में गए और पहले तरुण ने और फिर मैंने वाश बेसिन में खड़े हो कर अपने अपने लंड साफ़ किये। तरुण तो इतना उत्तेजित हो गया था की वह बार बार मुझे कह रहा था, "भाई आज दीपा भाभी ने मेरे लंड को चूसने का ऑफर दिया है। भाई क्या भाभी आपका लण्ड भी चुस्ती रहती है? क्या उन्हें लण्ड चूसना अच्छा लगता है?"

मैं क्या कहता? दीपा को मेरा लण्ड चूसना अच्छा नहीं लगता था। पहले जब जब मैं उसे कहता तो बड़ा मुंह बना कर कभी कभी वह चूसती थी। पर हाँ एक बार अगर उसने चूसना शुरू किया तो फिर तो वह मेरा छूट ना जाये तब तक लगी रहती थी। मैंने तरुण को अपना सर हिला कर "हाँ" का इशारा किया।"

दीपा के पास वापस पहुँचते ही दीपा ने हम दोनों को फर्श पर खड़ा किया और खुद अपने घुटनों को मोड़ कर अपने कूल्हों पर बैठ गयी। इस पोज़ में वह एकदम सेक्स की देवी लग रही थी। उसके उन्मत्त उरोज उसकी छाती पर ऐसे फैले थे जैसे गुलाबी रंग के दो गुब्बारे उसकी छाती पर चिपका दिये हों। दीपा के स्तन एकदम उन्मत्त और गुब्बारे की तरह फुले हुए थे। जाहिर है की मेरा और तरुण का लण्ड पुरे तनाव में था। दीपा ने मेरी और देखा और हम दोनों का लण्ड अपने दोनों हाथों में लेकर धीरे धीरे सहलाने लगी। हालांकि हम दोनों का लण्ड उसके हाथोँ में था, मैं देख रहा था की उसका ध्यान तरुण के मोटे और लंबे लण्ड पर ज्यादा था। उसका इतना तना हुआ अकड़ा, मोटा और लंबा लण्ड को हाथ में पकड़ कर मुझसे नजरें बचा कर वह उसे घूर घूर कर देखती रहती थी।

थोड़ा सा सहलाने के बाद दीपा ने मेरे लण्ड को अपने होठ से चूमा और अपनी जीभ से मेरे लण्ड पर फैले हुए मेरे रस को चाटा और धीरे से उसके अग्र भाग को अपने होठों के बिच लिया। मेरे लण्ड के छोटे से हिस्से को मुंह में लेकर वह उसको ऊपर नीचे अपनी जीभ से रगड़ ने लगी। जब मेरी बीबी ज्यादा कामातुर हो जाती थी तो मुझे कभी कभी यह लाभ मिलता था। वरना मुझे ही उसे बार बार पूछना पड़ता था की क्या वह मेरा लण्ड चूसेगी? और ज्यादातर वह टाल देती थी। मेरी सात साल की शादी के जीवन में यह शायद तीसरा या चौथा मौका था जब मेरी बीबी ने मुझे अपने आप मेरे बिना कहे मेरा लण्ड चूसने की यह सेवा दी थी। उधर वह दूसरे हाथ से तरुण के लण्ड को आराम से सहलाये जा रही थी।
 
थोड़ी देर मेरा लण्ड चूसने के बाद दीपा ने अपना मुंह तरुण के लण्ड की और किया। धीरे से तरुण की और नजर उठाते हुए दीपा ने तरुण के लण्ड को भी मेरी ही तरह चाटने लगी। तरुण स्तंभित होकर देखता ही रह गया। जब दीपा तरुण के लण्ड को चुम रही थी और चाट रही थी तब तरुण दीपा के सर के बालों को अपने हाथ में ले कर उनको सँवार रहा था और कभी कभी हाथ को नीचा कर दीपा के गले, गाल, कपाल और आँखों पर फिरा कर अपनी उत्तेजना दिखा रहा था।

उसकी स्वप्न सुंदरी आज उसके लण्ड का चुम्बन कर रही थी और उसे चूस रही थी यह उसके लिए अकल्पनीय सा था। दीपा ने धीरे धीरे तरुण को लण्ड को मुंह में डालने की कोशिश की। पर उसका मुंह इतना खुल नहीं पा रहा था। तब दीपा ने तरुण के लण्ड के सिर्फ अग्र भाग को थोड़ा सा मुंह में डाला और उसे चूमने एवं चाटने लगी। धीरे धीरे वह उसमें इतनी मग्न हो गयी की तरुण के लण्ड को वह बार बार चूमने लगी और जैसे वह उसे छोड़ना ही नहीं चाह रही थी। तरुण के लिए यह बड़ी मुश्किल की घडी थी। वह उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहा था। उसी उत्तेजना में उसने दीपा का सर हाथ में लेकर अपना मोटा और लंबा लण्ड दीपा के मुंह में घुसेड़ दिया।

उतना मोटा और लंबा लण्ड दीपा के मुंह में जैसे घुसा की दीपा की हालत खराब हो गयी। तरुण का लण्ड दीपा के गले तक घुस गया था और दीपा को खांसी आने लगी थी। शायद उसकी साँसे रुंध रहीं थीं। मेरी प्यारी पत्नी की आँखें लाल हो गयीं थीं। उनमें पानी भर गया दिख रहा था। दीपा के गाल तरुण का लण्ड दीपा के मुंह में घुसने के कारण फूल गए थे। उस गाल के आकार से ही अंदाज लगाया जा सकता था की तरुण का लण्ड कितना मोटा होगा। और तब वह तीन चौथाई से कहीं ज्यादा तो दीपा के मुंह से बाहर था। जब दीपा की साँस रुंधने लगी तब तरुण ने अपना लण्ड दीपा के मुंह से बाहर निकालना चाहा। पर दीपा ने तरुण को रोका और बस थोड़ा सा बाहर निकालने दिया ताकि वह साँस ले सके।

दीपा को यह भी ध्यान रखना था की दीपा के दाँत कहीं तरुण के लण्ड को काटें नहीं। कुछ देर बाद जब दीपा की साँस ठीक चलने लगी तब दीपा ने अपना मुंह आगे पीछे कर अपने मुंह को तरुण के लण्ड से चुदवाने लगी। दीपा के मुंह को चोदते हुए कुछ ही देर में तरुण का बदन एकदम अकड़ गया। वह अपने आप को रोक नहीं पाया और एक आह्हः... के साथ उसके लण्ड में से फव्वारा छूटा और उसका वीर्य निकल पड़ा और मेरी सुन्दर नग्न पत्नी के मुंह को पूरा भर कर उसके नंगे बदन पर गिरा और फ़ैल गया। तब मैं मेरी बीबी के स्तनों को मेरे दोनों हाथो से दबा रहा था। तरुण का गरमा गरम वीर्य मेरे हाथों को छुआ और मेरी बीबी के स्तनों पर जैसे कोई मलाई फैली हो ऐसे फ़ैल गया। वह मलाई धीरे धीरे और भी नीचे टपकने लगी। पता नहीं कितना माल तरुण ने मेरी बीबी के मुंह में भर डाला था।

तरुण के वीर्य स्खलन होने पर मैंने देखा तो दीपा थोड़ी सी सकुचायी या निराश सी लग रही थी। उसने मेरी और देखा। मैं समझ गया की शायद उसे इसलिए निराशा हो रही होगी की अब तरुण तो झड़ गया। अब वह उसे चोद नहीं पायेगा। मैं धीरेसे दीपा के कान के पास गया और उसके कान में बोला, "डार्लिंग, निराश न हो। वह थोड़े ही अपनी पत्नी को चोदने जा रहा है, जो थक जाएगा या ऊब जाएगा? वह तो उसकी प्रेमिका को चोदने जा रहा है। यही तो अंतर है पत्नी और प्रेमिका में। प्रेमिका के लिए उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहेगा। उलटा एक बार झड़ जानेसे उसका स्टैमिना और बढ़ जायेगा। तरुण अब तुम्हें आसानी से नहीं छोड़ेगा। वह अब तुम्हे दोगुना जोर से चोदेगा। उसके अंडकोष के अंदर तुम्हारे लिए पता नहीं कितना और माल भरा है।"

मेरी इतने खुले से ऐसा कहने पर मेरी शर्मीली बीबी शर्म से लाल हो गयी।

तरुण हमारी काना फूसि देखरहा था। वह धीरेसे बोला, "कहीं तुम मियां बीबी मुझे फंसाने को कोई प्रोग्राम तो नहीं बना रहे हो ना?"

तब दीपा अनायास ही बोल पड़ी, "हम तुम्हे क्या फंसायेंगे? तुम दोनों ने मिलकर तो आज मुझे फंसा दिया। "

पर अब दीपा को मेरी और से कोई संकोच नहीं रहा। दीपा ने तरुण को अपनी बाँहों में लिया और उसके होठों पर चुबन की एक चुस्की लेकर अपने स्तनों को तरुण के मुंह में डाल दिया। वह उसे अपने मम्मो को चुसवाना चाहती थी। जैसे ही तरुण ने मेरी बीबी के मम्मो को चूसना शुरूकिया तो दीपा के बदन में जोश भर गया और उसने अपने मुंह में मेरा लण्ड लिया। वह मुझे यह महसूस नहीं होने देना चाहता थी, की वह मुझे भूलकर तरुण के पीछे लग गयी है। मैं भी दीपा का सर पकड़ कर उस के मुंह को चोदने लगा। मुझे आज उसके मुंह को चोदने में बहुत आनंद आ रहा था, क्योंकि आज मैं अपनी पत्नी की मुंह चुदाई मेरे मित्र के सामने कर रहा था।

थोड़ी ही देर मैं मैं भी अपने जोश पर नियंत्रण नहीं रख पाया। मेरे मुंह से एक आह सी निकल गयी और मैंने मेरी बीबी के मुंह में अपना सारा वीर्य छोड़ दिया। दीपा तरुण के वीर्य का स्वाद तो जानती ही थी। मेरी पत्नी मेरा वीर्य भी पहले ही की तरह निगल गयी। मेरे इतने सालों के वैवाहिक जीवन में यह पहली बार हुआ की मेरी बीबी मेरे वीर्य को निगल गयी हो। तब तक जब भी कोई ऐसा बिरला मौका होता था जब दीपा मेर लण्ड को अपने मुंह में डालती थी तो या तो मैं थोड़ी देर के बाद मेरा लण्ड निकाल लेता था, या फिर मेरी बीबी मुझे मुंह में मेरा वीर्य नहीं छोड़ने की हिदायत देती थी। वह दिन मेरे लिए ऐतिहासिक था।

तरुण और मैं हम दोनों ही दीपा के इस भाव प्रदर्शन से आश्चर्यचकित हो गए थे। मैं बता नहीं सकता की जब घरेलु, रूढ़िवादी समझी जानेवाली और समाज के कड़क बंधनों में पली अपनी बीबी को मेरे कहने पर सारी शर्मोहया को ताक पर रख कर इस तरह सेक्स में हमें उन्मादक आनंद देने के लिए कटिबद्ध होते देख कर एक पति को कितना उन्मादक आनंद मिलता है। मैंने भी तय किया की मैं और तरुण मिलकर मेरी पत्नी को सेक्स का ऐसे उन्मादअनुभव कराएंगे जो उसने पहले कभी नहीं किया हो। मैंने तरुण के कानों में बोला, "क्यों न हम दीपा को अब सेक्स का ऐसा अनुभव कराएं जो उसने पहले कभी किया ना हो?"

तरुण ने मेरी और देखा और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर सख्ती से पकड़ा और बोला, "मैं तुमसे पूरी तरह सहमत हूँ। मेरा भी उसमें एक स्वार्थ है। मैं भी दीपा को सेक्स की पराकाष्ठा पर ले जाना चाहता हूँ, जिससे वह मुझसे दुबारा सेक्स करने को इच्छुक हो। पर उसके लिए तुम्हारी अनुमति भी आवश्यक है।"
 
तब मैंने उसे कहा, "मैं यह मानता हूँ की यदि हम सब साथ में एक दूसरे से कुछ भी न छुपाकर सेक्स करते हैं तो वह आनंद देता है। पर यदि चोरी से या छुपी कर सेक्स करते हैं तो परेशानी और ईर्ष्या का कारण बन जाता है। मैं चाहता हूँ की टीना भी हमारे साथ शामिल हो। हम सब मिलकर एक दूसरे को एन्जॉय करें और करते रहें। "

दीपा ने हमारी और देखा। वह समझ गयी के मैं और तरुण उससे सेक्स करनें के बारे में ही कुछ बात कर रहें होंगे। मैंने उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए कहा, " तरुण तुम्हें बार बार चोदने के लिए पूछ रहा था। मैंने उसे कहा की अगर हम सब राजी हैं तो कोई रुकावट नहीं है।" दीपा मेरी बात सुनकर शर्म से लाल हो गयी पर उसने कोई टिपण्णी नहीं की।

दीपा अब काफी खुल गयी थी। वह उठ खड़ी हुयी और हम दोनों के साथ पलंग पर वापस आ गयी। फिर फुर्ती से वह मेरी गोद मैं बैठ गयी। उसने अपने दोनों पाँव मेरी कमर के दोनों और फैला कर मुझे अपने पाँव में जकड लिया। मेरे होठ से होठ मिलाकर बोली, "मेरे प्राणनाथ, डार्लिंग पूरी दुनिया में तुम शायद गिने चुने लोगों में से हो जो अपनी बीबी को दूसरे मर्द से चुदवाने के लिए लिए उकसाता है। पर जैसे की तरुण ने पूछा अगर मुझे इसकी लत पड़ गयी तो तुम क्या करोगे? कहीं ऐसा न हो की मैं रोज किसी और के साथ चुदवाना चाहूँ तो?" ऐसा बोल उसने मुझे पुरे जोश से चूमना शुरू किया। तब तरुण उसके पीछे सरक कर पहुँच गया और मेरे और दीपा के बिच में हाथ डालकर दीपा की चूँचियों को सहलाने और दबाने लगा।

मैंने दीपा के भरे तने बूब्स को मसलते हुए उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा, "देखो, भले ही तरुण तुम्हें पहले दिन से ही पसंद होगा या तुम उसे चुदवाने के लिए इच्छुक रही होगी, पर तरुण को आज यहां तक पहुँचने में कितना समय लगा और कितने पापड़ बेलने पड़े? क्या तुमने उसे आसानी से चोदने की इजाजत दी? वैसे ही अगर कोई इतना परिश्रम करता है और ऐसे ही पापड़ बेलता है और तुम्हारी और मेरी मर्जी से बात अगर आगे बढ़ती है तो भला मुझे क्या आपत्ति है?"

दीपा ने पीछे घूम कर मेरे होँठों को चूमते हुए कहा, "अरे मैं तो मजाक कर रही थी। मेरे लिए आजसे तुम दोनों हे मेरे पति के समान हो। तुम मेरा सर्वस्व हो और तरुण मेरे बदन का भोक्ता है। मुझे और कोई नहीं चाहिए। तुम दोनों ही काफी हो।"

दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और तरुण को अपनी और खिंचा। तरुण दीपा के कूल्हों से अपना लण्ड सटाकर बैठ गया। दीपा की गरम चूत का स्पर्श होते ही धीरे धीरे मेरा लण्ड कड़क होने लगा। उसके वीर्य का फौवारा निकलने पर भी तरुण का लण्ड तो ढीला पड़ा ही न था। मैं तरुण की क्षमता देख हैरान रह गया। खैर, उस दिन का माहौल ही कुछ ऐसा था। मेरा लण्ड भी तो एक बार झड़ने के बाद फिर से कड़क हो गया था।

थोड़ी देर तक मेरी नंगी बीबी को चूमने के बाद मैंने उसे पलंग के किनारे सुलाया और उसे अपनी टांगें नीचे लटकाने को कहा। तरुण तो जैसे दीपा से चिपका हुआ ही था। जब दीपा पलंग के किनारे अपनी टाँगे नीचे लटका के पलंग के ऊपर लेट गयी तो तरुण उसकी छाती पर अपना मुंह रख कर लेट गया। मैं झट से पलंग के नीचे उतरा और अपनी बीबी की टांगो को फैला कर उसकी चूत चाटने लगा। मेरी जीभ जैसे ही दीपा की चूत में घुसी की दीपा छटपटाने लगी। मुझे पता था की दीपा की चूत चाटने से या उंगली से चोदने से वह इतनी कामान्ध हो जाती थी की तब वह बार बार मुझे चोदने के लिए गिड़गिड़ाती थी। आज मैं उसे हम दोनों से चुदवाना चाहता था। इसके लिए हमें उसे इतना उत्तेजित करना था की वह शर्म के सारे बंधन तोड़ कर हम दोनों से चुदवाने के लिए बाध्य हो जाए।

मेरी पत्नी की छटपटाहट पर ध्यान ना देते हुए मैंने उसकी चूत मैं एक उंगली डाल कर उसे उंगली से बड़ी फुर्ती और जोर से चोदना शुरू किया। दीपा के छटपटाहट देखते ही बनती थी। वह अपना पूरा बदन हिलाकर अपने कूल्हों को बेड पर रगड़ रगड़ कर कामाग्नि से कराह रही थी। उसका अपने बदन पर तब कोई नियंत्रण न रहा था। वह मुझे कहने लगी, "दीपक डार्लिंग, ऐसा मत करो। मुझे चोदो। अरे भाई तुम मुझे तरुण से भी चुदवाना चाहते हो तो चुदवाओ पर यह मत करो। मैं पागल हो जा रही हूँ।" मैं दीपा की बात पर ध्यान दिए बगैर, जोर शोर से उसको उंगली से चोद रहा था। तब दीपा ने तरुण का मुंह अपने मुंह पर रखा और उसे जोश चूमने लगी। मैंने उसे तरुण को यह कहते हुए सुन लिया, "तरुण अपने दोस्त से कहा, मुझे चोदे। आओ तुम भी आ जाओ आज मैं तुम दोनों से चुदवाऊंगी। तुम मुझे चोदने के लिए बड़े व्याकुल थे न? आज मैं तुमसे चुदवाऊंगी। पर दीपक को वहां से हटाओ"

जब मैं फिर भी ना रुका तो एकदम दीपा के मुंह से दबी हुयी चीख सी निकल पड़ी, "आह... ह... ह... दीपक... तरुण... " ऐसे बोलते ही दीपा एकदम ढेर सी शिथिल हो कर झड़ गयी। मैंने आजतक दीपा को इतना जबरदस्त ओर्गास्म करते हुए नहीं पाया था। उसकी चूत में से जैसी एक फव्वारा सा छूटा और मेर हाथ और मुंह को उसके रस से भर दिया। वह दीपा का उस रात शायद चौथा ओर्गास्म था। मैं हैरान रह गया। मेरी बीबी आज तक के इतने सालों में मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा एक रात में मुश्किल से दो बार झड़ी होगी।

मैं थम गया। मैंने देखा की दीपा थोड़ी सी थकी हुई लग रही थी। मैं उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था। मुझे तो उसको हम दोनों से चुदवाने के किये बाध्य करना था, सो काम तो हो गया। दीपा ने थोड़ी देर बाद अपनी आँखे खोली और मुझे और तरुण को उसके बदन के पास ऊपर से उसको घूरते हुए देखा। वह मुस्कुरायी।

उसने हम दोनों के हाथ अपने हाथों में लिए और अपनी पोजीशन बदल कर बिस्तर पर खिसक कर सिरहाने पर सर रख कर लेट गयी। उसने मुझे अपनी टांगों की और धक्का दिया। मैं फिर उसकी चूत के पास पहुँच गया। तब दीपा ने मुझे खिंच कर मेरा मुंह उसके मुंह से मिलाकर मेर लण्ड को अपने हाथ में लिया और अपनी टांगो को फिर ऊपर करके मेर लण्ड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी। वह मुझसे चुदवाना चाहती थी।

मैंने तरुण को अपनी और खींचा और मैं वहाँ से हट गया। अब तरुण दीपा की टांगो के बिच था। मेरी बीबी समझ गयी की मैं उसे पहले तरुण से चुदवाना चाहता हूँ। तरुण का मुंह मेरी बीबी के मुंह के पास आ गया। दोनों एक दूसरे की आँखों में झांकने लगे। तरुण झुक कर मेरी बीबी को बड़े जोश से चुम्बन करने लगा। तरुण उस वक्त कामाग्नि से जल रहा था। इतने महीनों से जिसको चोदने के वह सपने देख रहा था और सपने में ही वह अपना वीर्य स्खलन कर जाता था वह दीपा अब नंगी उसके नीचे लेटी हुयी थी और उससे चुदने वाली थी।

दीपा समझ गयी की अब क़यामत की घडी आ गयी है। तरुण का लटकता लण्ड दीपा की चूत पर टकरा रहा था। दीपा ने धीरेसे तरुण का मोटा और लंबा लण्ड अपने हाथों में लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। अचानक वह थोड़ी थम सी गयी और कुछ सोच में पड़ गयी। तरुण ने अपने होंठ दीपा के होंठ से हटाये और पूछा, "क्या बात है? क्या सोच रही हो? क्या अब भी आप शर्मा रही हो?"
 
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