hotaks444
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त्रिकाल तम तमा गया और किसी घायल शेर की तरह आस पास रखी चीज़ो को तोड़ने और उठाके फेंकने लगा. वही त्रिकाल के शिष्यो मे खलबली मच गयी कि आख़िर उनके मालिक को इतना गुस्सा क्यू आया.
“क्या हुआ मालिक...हम से कोई भूल हो गयी क्या..?” एक आदमी ने त्रिकाल से कहा.
“तुमसे नही लेकिन उस आचार्य से ज़रूर भूल हो गयी है....उसने हमे मारने का इक लौता तरीका उन दोनो कुत्तो को बता दिया है....इस भूल की सज़ा आचार्य को भुगतनी पड़ेगी...” दहाड़ता हुआ त्रिकाल तन्त्र साधना करने दोबारा बैठ गया.
इधर आचार्य के आश्रम के लोग आने वाले तूफान से अंजान थे. रात ढल चुकी थी और बाहर बारिश ज़ोरो की बरस रही थी.
“चलिए जी सोने का समय हो गया है...रात्रि बहुत हो गयी है...” आचार्य सत्य प्रकाश की पत्नी सुनीता देवी बोली.
“आप चलिए...हम थोडा यही विश्राम करेंगे...” आचार्य ने विनम्रता से कहा.
सुनीता उनकी बात मान कर अपनी जवान लड़की पायल के साथ कमरे मे चली गयी जब अचानक एक भूकंप सा आने लगा. पूरा आश्रम थर्रा गया. सब लोग डर के मारे इधर उधर भागने लगे. आचार्य को भी अबतक किसी अनहोनी का आभास हो गया था.
“तुम और पायल जल्दी से यहाँ से निकालो....मैं पीछे से आता हू...” हड़बड़ाये हुए आचार्य अपने कमरे मे पहुचे जहाँ उनकी पत्नी और बेटी सो रहे थे.
भूकंप से वो लोग भी डरे हुए थे, बाहर बहुत ज़ोरो से आँधी चल रही थी और पूरी ज़मीन काँप रही थी. वो तीनो उठे और आश्रम के गलियारो से होते हुए पास मे बने एक मंदिर मे जाने की कोशिश करने लगे.
“जल्दी आओ...इस मंदिर मे छुप जाओ...” आचार्य चिल्लाते पायल का हाथ पकड़ते हुए आगे आगे भाग रहे थे. वो और पायल जल्दी से मंदिर मे जाकर शरण ले लिए. तभी सुनीता देवी जो पीछे पीछे भाग रही थी भूकंप से काँप रही धरती पर लड़खड़ा के गिर गयी.
“माँ....” मंदिर के अंदर पहुच चुकी पायल चिल्लाई.
तभी एक काले से धुन्ध ने ज़मीन पर गिरी हुई सुनीता देवी को अपने आगोश मे ले लिया. जैसे जैसे वो धुन्ध छाँटा वैसे वैसे वो हँसने की भयंकर आवाज़ सुनाई देने लगी.
अब वो धुन्ध किसी आदमी का रूप लेने लगी. आचार्य की आँखो मे भय सॉफ देखा जा सकता था. उनको अपनी नही बल्कि अपनी पत्नी की जान की परवाह थी.
उस धुन्ध ने अब तक त्रिकाल का रूप ले लिया था. पायल उसके भयंकर चेहरे को देख कर डर गयी. सुनीता देवी अब त्रिकाल की गिरफ़्त मे थी जो मंदिर तक पहुच पाने से पहले ही गिर पड़ी थी.
“अगर इस औरत की भलाई चाहते हो तो इस कच्ची कली को मंदिर से बाहर भेजो....” त्रिकाल ने पायल की तरफ इशारा करते हुए कहा.
पायल यह देख कर बहुत बुरी तरह से डर गयी. आचार्य, त्रिकाल के काले जादू की ताक़त को जानता था और वो अब तक समझ चुका था कि अब उसकी प्यारी पत्नी नही बचेगी. आचार्य की आँखे नम हो गयी.
“लगता है तुझे अपनी माँ से ज़रा भी प्यार नही है कुतिया....” त्रिकाल ने पायल के तरफ घूर कर कहा. पायल को लगा कि वो त्रिकाल को देख कर ही वही ख़ौफ्फ से मर जाएगी.
“तो फिर ठीक है....अंजाम भुगतने को तय्यार रहना...” दहाड़ते हुए त्रिकाल ने सुनीता देवी के साड़ी का आँचल खीच कर फाड़ दिया और उसके लटके हुए मोटे मोटे स्तनो को मसलने लगा. इसे देख कर सुनीता देवी तड़प उठी और त्रिकाल से रहम की भीख माँगने लगी.
“क्या हुआ मालिक...हम से कोई भूल हो गयी क्या..?” एक आदमी ने त्रिकाल से कहा.
“तुमसे नही लेकिन उस आचार्य से ज़रूर भूल हो गयी है....उसने हमे मारने का इक लौता तरीका उन दोनो कुत्तो को बता दिया है....इस भूल की सज़ा आचार्य को भुगतनी पड़ेगी...” दहाड़ता हुआ त्रिकाल तन्त्र साधना करने दोबारा बैठ गया.
इधर आचार्य के आश्रम के लोग आने वाले तूफान से अंजान थे. रात ढल चुकी थी और बाहर बारिश ज़ोरो की बरस रही थी.
“चलिए जी सोने का समय हो गया है...रात्रि बहुत हो गयी है...” आचार्य सत्य प्रकाश की पत्नी सुनीता देवी बोली.
“आप चलिए...हम थोडा यही विश्राम करेंगे...” आचार्य ने विनम्रता से कहा.
सुनीता उनकी बात मान कर अपनी जवान लड़की पायल के साथ कमरे मे चली गयी जब अचानक एक भूकंप सा आने लगा. पूरा आश्रम थर्रा गया. सब लोग डर के मारे इधर उधर भागने लगे. आचार्य को भी अबतक किसी अनहोनी का आभास हो गया था.
“तुम और पायल जल्दी से यहाँ से निकालो....मैं पीछे से आता हू...” हड़बड़ाये हुए आचार्य अपने कमरे मे पहुचे जहाँ उनकी पत्नी और बेटी सो रहे थे.
भूकंप से वो लोग भी डरे हुए थे, बाहर बहुत ज़ोरो से आँधी चल रही थी और पूरी ज़मीन काँप रही थी. वो तीनो उठे और आश्रम के गलियारो से होते हुए पास मे बने एक मंदिर मे जाने की कोशिश करने लगे.
“जल्दी आओ...इस मंदिर मे छुप जाओ...” आचार्य चिल्लाते पायल का हाथ पकड़ते हुए आगे आगे भाग रहे थे. वो और पायल जल्दी से मंदिर मे जाकर शरण ले लिए. तभी सुनीता देवी जो पीछे पीछे भाग रही थी भूकंप से काँप रही धरती पर लड़खड़ा के गिर गयी.
“माँ....” मंदिर के अंदर पहुच चुकी पायल चिल्लाई.
तभी एक काले से धुन्ध ने ज़मीन पर गिरी हुई सुनीता देवी को अपने आगोश मे ले लिया. जैसे जैसे वो धुन्ध छाँटा वैसे वैसे वो हँसने की भयंकर आवाज़ सुनाई देने लगी.
अब वो धुन्ध किसी आदमी का रूप लेने लगी. आचार्य की आँखो मे भय सॉफ देखा जा सकता था. उनको अपनी नही बल्कि अपनी पत्नी की जान की परवाह थी.
उस धुन्ध ने अब तक त्रिकाल का रूप ले लिया था. पायल उसके भयंकर चेहरे को देख कर डर गयी. सुनीता देवी अब त्रिकाल की गिरफ़्त मे थी जो मंदिर तक पहुच पाने से पहले ही गिर पड़ी थी.
“अगर इस औरत की भलाई चाहते हो तो इस कच्ची कली को मंदिर से बाहर भेजो....” त्रिकाल ने पायल की तरफ इशारा करते हुए कहा.
पायल यह देख कर बहुत बुरी तरह से डर गयी. आचार्य, त्रिकाल के काले जादू की ताक़त को जानता था और वो अब तक समझ चुका था कि अब उसकी प्यारी पत्नी नही बचेगी. आचार्य की आँखे नम हो गयी.
“लगता है तुझे अपनी माँ से ज़रा भी प्यार नही है कुतिया....” त्रिकाल ने पायल के तरफ घूर कर कहा. पायल को लगा कि वो त्रिकाल को देख कर ही वही ख़ौफ्फ से मर जाएगी.
“तो फिर ठीक है....अंजाम भुगतने को तय्यार रहना...” दहाड़ते हुए त्रिकाल ने सुनीता देवी के साड़ी का आँचल खीच कर फाड़ दिया और उसके लटके हुए मोटे मोटे स्तनो को मसलने लगा. इसे देख कर सुनीता देवी तड़प उठी और त्रिकाल से रहम की भीख माँगने लगी.