Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 11 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

शीला नरेश के जाने के बाद हैंरान होकर वहीँ पर खड़ी थी, उसकी साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी। उसका प्लान बिलकुल कामयाब हुआ था । वह सोचने लगी की नरेश को आखिर अचानक क्या हुआ जो वह अपनी नंगी छोटी बहन को ऐसे तडपता हुआ छोडकर चला गया ।
शीला को तभी याद आया के आखिर में उसके भाई ने उसकी गांड पकड़कर अपनी पेण्ट पर दबाई थी और वह ज़ोर से काम्प रहा था। अच्छा तो यह बात थी, शीला को उस वक्त अपनी चूत पर कुछ गीला गीला अहसास हुआ था । तभी नरेश ने उसे छोड दिया था।

शीला मन ही मन में मुस्कुरा रही थी वह समझ गयी थी के उसका भाई अपनी गर्मी को संभल न सका और यों ही झर गया था । शीला ने अपने कपडे पहने और बाहर निकल आई।
नरेश अपने कमरे में आकर बेड पर लेटा हुआ सोच रहा था की जो कुछ भी हुआ पता नहीं शीला उसके बारे में क्या सोच रही होगी, कहीं वह सब कुछ सब को बता तो नहीं देगी । मगर जब उसने शीला को किस दी थी तो वह भी उसका साथ दे रही थी, पर फिर भी एक अन्जाना डर नरेश के दिल में था ।

रेखा कुछ देर तक अपने बाप और मनीषा से बातें करने के बाद वहां से उठते हुए खाना बनाने की तैयारी करने लगी ।
"बापु जी रात को नींद तो अच्छी आ गयी आपको?" मनीषा ने रेखा के जाते ही अपने बाप से कहा ।
"हा बेटी नींद तो बुहत बढिया आई थी, मगर सब तुम्हारी मेहनत की वजह से" अनिल ने मोका देखकर अपनी बेटी पर लाइन मारते हुए कहा ।
"बापु जी आपकी सेवा करते करते हमारी हालत ख़राब हो गई थी रात को" मनीषा ने बात को आगे बढाते हुए कहा।

"क्यों क्या हुआ था बेटी?" अनिल ने अन्जान बनते हुए कहा।
"वो बापू जी आपको शांत करते करते हम गरम हो गये थे" मनीषा ने यह बात कहते हुए शर्म से अपना सर नीचे कर रखा था ।
"ओह इसका मतलब हमारी वजह से हमारी बेटी को तकलीफ उठानी पडी" अनिल ने अपनी बेटी की बात सुनने के बाद कहा।
"नही बापू इस में तकलीफ की क्या बात है वह तो हमारा फ़र्ज़ था" मनीषा ने कहा।
" वह तुम्हारा फ़र्ज़ था, तो क्या मेरा कुछ फ़र्ज़ नहीं बनता था की मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाता" अनिल ने गुस्से से कहा ।
 
"बापु आप इतना दुखी क्यों हो रहे हो, हमने अपने आप को शांत कर दिया था" मनीषा ने अपने बाप से कहा।
"वही तो कह रहा हूँ बेटी के अगर तुम्हें मेरी वजह से तकलीफ हुयी थी तो उसे हमें ही दूर करने देती मगर तुम तो हमें इस लायक समझती ही नहीं हो" अनिल ने अपनी बेटी के पास जाकर बैठते हुए कहा ।

"बापु जी आपका तो अभी भी खडा है क्या बात है अपनी बहु की बुहत याद आ रही है क्या?" मनीषा ने अपने हाथ से अपने बाप के लंड की चिकोटी लेते हुए कहा।
"हमारी इतनी चिंता मत करो अपने बारे में कुछ सोचो, तुम अभी बूढ़ी नहीं हुयी हो" अनिल ने अपनी बेटी के गालों की चिकोटी लेते हुए कहा।

"बापु आप हमारी झूठी तारीफ मत किया करो" मनीषा ने शरमाकर उठते हुए कहा । अब मनीषा अपने बाप के सामने उलटी खडी थी और अनिल अपनी बेटी के चूतडों को घूर रहा था।
"बेटी मैं सच कह रहा हूँ तुम्हें देखकर बिलकुल नहीं लगता की तुम ३ जवान बच्चों की माँ हो" अनिल ने अपनी बेटी की और ज़्यादा तारीफ करते हुए कहा।
"तुम्हे क्या लगता है बापु" मनीषा ने उलटे खडे हुए ही कहा।

"बेटी तुम्हें देखकर ऐसा लगता है की तुम किसी कॉलेज की लड़की हो" अनिल ने अपनी बेटी से कहा।
"बापु में जा रही हूँ,आप तो बुहत ज़्यादा फ़ेंक रहे हो" मनीषा यह कहते हुए जाने लगी की अनिल ने उसे कमर से पकडते हुए कहा।
"बेटी मैं सच कह रहा हूँ । कहाँ जा रही हो" ।
मानिषा अचानक अपनी कमर में हाथ पड़ने से बैलेंस खोकर अपने बाप की गोद में जा गिरी।
"आह्ह ओहह" मनीषा के चूतड़ सीधे अपने पिता के खडे लंड पर आकर पडे थे । जिस वजह से उसके मुँह से हलकी सिसकी निकल गई।

"बेटी क्या हुआ कहीं चोट तो नहीं लगी" अनिल भी अपनी बेटी के नरम नरम चूतडों को अपने लंड पर दबते ही मजा लेते हुए बोला।
"नही पिता चोट तो नहीं लगी है बस थोडी मोच आ गयी है" मनीषा ने अपने बाप के गोद से बगैर उठे उनके लंड को अपने चुतडों से दबाकर मजा लेते हुए कहा ।
"कहाँ पर मोच आ गयी है हमारी बेटी को" अनिल अपना एक हाथ अपनी बेटी के नंगे पेट पर रखते हुए उसे दबोच लिया और थोडा नीचे झुकते हुए अपने दुसरे हाथ से अपनी बेटी के पैर से साड़ी को थोडा ऊपर करते हुए कहा।
 
अनिल के झुकने और अपनी बेटी के पेट पर हाथ रखने से उसका लंड मनीषा के चूतडों में और ज्यादा चुभने लगा।
"आजहहह बापू यहाँ नहीं थोडा और उपर" मनीषा को अपने चुतडो के बीच अपने बापू का लंड बुहत अच्छा लग रहा था इसीलिए वह यह खेल कुछ देर तक यों ही खेलना चाहती थी।
"यहाँ बेटी" अनिल ने अपनी बेटी की साड़ी को अब घुटनों तक ऊपर कर लिया था ।
मानिषा की चूत मज़े से थोडा थोडा पानी टपकाने लगी थी । उसका पूरा बदन मज़े और खुमारी में टूट रहा था।
"बस थोडा और ऊपर बापु" मनीषा ने मज़े से अपने बाप को और तडपाते हुए कहा।

"अब बताओ बेटी कहाँ दर्द है" अनिल ने अपनी बेटी की साड़ी को अब उसके घुटनों से भी ऊपर कर दिया था। जिस वजह से अनिल को अपनी बेटी की पेंटी भी नज़र आ रही थी और अनिल अपनी बेटी की गोरी और चिकनी जाँघ पर हाथ फिरा कर पूछ रहा था ।
"आह्हः बापू आउच यहीं पर है दरद" मनीषा अपने बाप का हाथ अपने घुटनों के ऊपर अपनी जाँघ पर पड़ते ही मज़े के मारे सिसकते हुए बोली।
"अभी तुम्हारा दर्द ग़ायब कर देता हूँ" अनिल अपने हाथ से अपनी बेटी की गोरी गोरी जाँघ को ऊपर से नीचे तक रगडते हुए कहा।

"ओहहहह बापू अभी कुछ अच्छा लग रहा है" अनिल का हाथ अपनी जांघों पर बुहत ज़ोर से रगडने से मनीषा को बुहत मजा आ रहा था । अनिल ने अब अपनी बेटी की जाँघ पर अपना हाथ रगडते हुए बुहत ऊपर तक जा रहा था । जिस वजह से कभी कभी उसकी उंगलिया अपनी बेटी की पेंटी को छू रही थी,
"उईई ओह बापू ऐसे ही अब दर्द कम हो रहा है" अपने बाप की उंगलिया अपनी पेंटी पर महसूस होते ही मनीषा का पूरा जिस्म में चींटिया दौडने लगी और वह बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहने लगी ।
 
अनिल कोई कच्चा खिलाडी तो था नहीं वह समझ चूका था की उसकी बेटी को कोई दर्द नहीं है वह बस बहाने से मजा ले रही है। सो उसने अब अपने हाथ को बुहत ऊपर करते हुए अपनी बेटी की पेंटी को बुहत ज़ोर से अपनी उँगलियों से रगडना शुरू कर दिया । मनीषा का जिस्म इतना गरम हो चुका था की उसके जिस्म से पसीना निकल रहा था जिस वजह से अनिल का दूसरा हाथ भी उसकी पीठ पर फिसल रहा था ।

मानिषा का जिस्म अब काम्पने लगा वह अपनी मंजिल के बिलकुल क़रीब थी और वह किसी भी वक्त झर सकती थी, अनिल भी अपनी बेटी के पेंटी को गीला महसूस करके जान चूका था की उसकी बेटी किसी भी वक्त झर सकती है । इसीलिए उसने अपनी उँगलियाँ को सीधा अपनी बेटी की पेंटी के ऊपर से उसकी चूत पर रगडने लगा।
"आह्ह्ह्ह शहहहह बापू ओह्ह्ह्ह" मनिषा का जिस्म अचानक अकडने लगा और वह अपने बाप की उँगलियों की हरकत को बर्दाशत न करते हुए झरने लगी।

अनिल का हाथ उसकी बेटी के झरने से उसकी पेंटी के ज़्यादा गीले होने होने थोडा गीला हो गया। मगर अनिल ने अपने हाथ को फ़ौरन वहां से हटाते हुए अपनी बेटी को थोडी देर के लिए बिलकुल शांत छोड दिया।
"बेटी अब दर्द तो नहीं हो रहा है" थोड़ी देर बाद मनीषा ने जैसे ही आँखें खोली अनिल ने उससे पुछा ।
"नही बापू जी अब दर्द नही है" मनीषा ने शर्म से पानी पानी होते हुये कहा।
"बेटी मैं तो परेशान हो गया था"अनिल ने खुश होते हुए कहा।


"बापु अब मैं जा रही हूँ थोडा रेखा दीदी से काम है" मनीषा ने अपने बापू की गोद से अपने चुतडो को उठाते हुए कहा।
"ठीक है बेटी तुम अपनी भाभी से जाकर बात करो" अनिल ने मनीषा के उठते ही कहा । मनीषा अपने बापू की बात सुनकर वहां से चलि गयी ।
 
मानिषा अपने बापू के कमरे से निकलकर अपने कमरे में आ गयी और दरवाज़ा बंद करके अलमारी से दूसरी पेंटी निकाली । मनीषा की पेंटी पूरी भीग चुकी थी इसीलिए वह अपनी पेंटी को चेंज करने अपने कमरे में आई थी ।


कंचन खाली पीरियड में अपने क्लास से बाहर आकर बैठी थी, आज उसकी सहेली नीलम भी नहीं आई थी इसीलिए वह बोर हो रही थी । विजय का भी खाली पीरियड था तो वह अपने क्लास से बाहर निकलकर टहलने लगा, अचानक विजय की नज़र अपनी बड़ी बहन पर पर गई वह सीधा चलते हुआ कंचन के पास आ गया।

"वीजू तुम कैसे आओ बैठो" कंचन ने अपने भाई को देखकर खुश होते हुए कहा।
"वो दीदी खाली पीरियड था इसीलिए टहल रहा था की आपको देख लिया और यहाँ आ गया" विजय ने बैठते हुए कहा ।
"मैंने कहा था न विजु के कोई गर्लफ्रेंड बना ले देखो अब अगर तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड होती तो ऐसे अकेले तो न घूमते" विजय के बैठते ही उसकी बड़ी बहन ने उसे छेडते हुए कहा।
"दीदी मैंने एक गर्लफ्रेंड बना ली है" विजय ने अपनी बहन से कहा ।

"सच विजु मुझसे नहीं मिलवाओगे?" कंचन ने खुश होते हुए कहा।
"हाँ क्यों नहीं मगर उसे देखकर जल मत जाना, मेरी गर्लफ्रेंड बुहत ख़ूबसूरत है" विजय ने अपनी बड़ी बहन की तरफ देखते हुए कहा।
"वीजू चलो मुझे उससे मिलवाओ ना" कंचन ने अपना भाई को हाथ से पकड़कर खीचते हुए कहा, वह अपने भाई की बातों से अंदर ही अंदर में जल रही थी की उसके भाई को ऐसी कौन सी लड़की मिल गई जो वह उसकी इतनी तारीफ कर रहा है।

"अरे ठहरो दीदी इतनी जल्दी क्या है पहले उसके बारे में पूरा जान तो लो" विजय ने अपनी बहन से हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"वीजू मैं उसे देखकर जान जाऊँगी" कंचन ने गुस्सा होते हुए कहा।
"नही दीदी पहले उसके बारे में तुम जान लो फिर मैं तुम्हें उसकी तस्वीर दिखाऊँगा" विजय ने अपनी बहन को चिढाते हुए कहा ।
"वीजू तुम्हारे पास उसकी तस्वीर है, मुझे दिखाओ न प्लीज" कंचन अपने भाई की बात सुनकर उससे मिन्नतें करते हुए बोली।
"दीदी मैंने कहा न दिखाऊँगा पहले उसके बारे में जान तो लो" विजय को भी अब अपनी बहन को चिढाने में मजा आ रहा था इसीलिए उसने कंचन को चिढाते हुए कहा ।
 
"वीजू चलो जल्दी से बताओ क्या कहना चाहते हो" कंचन ने मूह बनाते हुए कहा।
"ये हुयी न बात दीदी, मेरी गर्लफ्रेंड इतनी सूंदर है की कॉलेज का हर लड़का उससे दोस्ती करना चाहता है मगर उसने सिर्फ मुझे अपना बॉयफ्रेंड बनाया है" विजय ने खुश होते हुए कहा ।
"उसका नाम क्या है विजू" कंचन ने वैसे ही गुस्सा करते हुए पुछा। अब तो वह सच में वह उस लड़की से जल रही थी।
"दीदी आप उसे जानती हैं नाम से आपको पता लग जाएगा" विजय ने अपनी बहन की तरफ देखते हुए कहा।

"विजू मैं उसे जानती हूँ बताओ न कौन है वह । तुम्हें मेरी कसम?" कंचन ने बुहत ज़्यादा परेशान होते हुए कहा। अब तो कंचन का सच में दिमाग घूम रहा था ।
"दीदी आपने अपनी कसम दे दी है तो अपनी ऑंखें बंद कर लो मैं उसकी तस्वीर दीखाता हूँ" विजय अपनी प्यारी बहन की कसम का सुनते ही बोला।
कंचन ने अपने भाई की बात सुनकर अपनी आँखें बंद कर ली।
"दीदी मेरी गर्लफ्रेंड को ज़रा प्यार से देखना दुनिया की सब से हसीन लड़की है वो" विजय ने अपने हाथ में कोई चीज़ लेकर अपनी बड़ी बहन के ऑंखों के सामने कर दी।

कंचन का दिल ज़ोर से धड़क रहा था की उसके भाई की गर्लफ्रेंड कौन है जिसे वह भी जानती है। उसने जैसे ही अपनी आँखें खोली उसका शर्म और गुस्से का कोई ठिकाना न रहा । कंचन गुस्से में आकर अपने भाई को अपने हाथों से मारने लगी ।
"क्यों दीदी हमारी गर्लफ्रेंड आपको पसंद नहीं आई क्या?" विजय ने हँसते हुए कहा।
"भइया आप बुहत बूरे हो हमें इतनी देर तक यों ही सताते रहे" कंचन ने गुस्से से अपना मूह दूसरी तरफ करते हुए कहा।

विजय ने अपनी बड़ी बहन की आँखें बंद करते ही उसके सामने एक आईने का टुकडा रख दिया था, जब कंचन ने आँखें खोलि तो उसे अपना चेहरा नज़र आया था जिस वजह से वह विजय से नाराज़ थी । कंचन दिल में तो बुहत खुश थी के उसका भाई किसी और की नहीं बल्कि उसकी इतनी तारीफ कर रहा था ।
"दीदी आपने सोच कैसे लिया की मैं आपके होते हुए किसी और को गर्लफ्रेंड बनाऊँगा" विजय ने अपनी बहन को सर से पकरते हुए उसका कन्धा ऊपर करते हुए कहा।
"सच में भैया आप बुहत अच्छे हो" कंचन ने इधर उधर देखते हुए अपने भाई के होंठो पर अपने होंठ रख दिये और तीन चार सेकण्डस तक अपने छोटे भाई के होंठो को चूसने के बाद अपने होंठ वहां से हटा दिए ।
 
कंचन को अपने छोटे भाई पर इतना प्यार आ रहा था की अगर लोगों के देखने का डर न होता तो वह अपने भाई को कभी न छोड़ती । दोनों भाई बहन कुछ देर तक आपस में बैठकर बाते ही करने के बाद अपने अपने क्लासेज में चले गए ।

रेखा किचन में अभी खाना बनाने की तैयारी कर रही थी की अचानक उसे नरेश का ख्याल आया की वह इतनी देर से दिख ही नहीं रहा है आखिर क्या कर रहा है वह ।
रेखा किचन से निकलकर सीधा नरेश के कमरे में पुहंच गयी । दरवाज़ा खुला हुआ था अंदर पुहंचते ही रेखा ने देखा के नरेश वहां नहीं था, वह जाने ही वाली थी की उसे बाथरूम से पानी गिरने की आवज़ सुनायी दी।

नरेश कुछ देर तक बिस्तर पर लेटे रहने के बाद फ्रेश होने के लिए बाथरूम गया था । रेखा ने बेड की तरफ देखा वहां पर नरेश के कपडे पडे थे, रेखा मन ही मन में खुश होते हुए वहीँ पर बैठकर नरेश का इंतज़ार करने लगी ।
रेखा को यकीन था की नरेश सिर्फ टॉवल में ही बाहर निकलेगा क्योंकी उसके कपडे बेड पर पडे थे । नरेश नहाने के बाद अपने आपको बुहत ज़्यादा फ्रेश महसूस कर रहा था। उसका लंड अब भी तना हुआ था क्योंकी उसके ज़हन में अपना जिस्म साफ़ करते हुए उसे अपनी बहन का नंगा जिस्म नज़र आ रहा था ।

नरेश अपने जिस्म पर टॉवल लपेटकर बाहर निकलने लगा, पानी का आवज़ ख़त्म होते ही रेखा बेड से उठकर दरवाज़े पर जाकर खडी हो गई । रेखा नरेश को यह अहसास बिलकुल नहीं दिलाना चाहती थी की वह जान बूझकर उसको नंगा देखना चाहती है, नरेश जैसे ही दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला रेखा भी सामने से आगे बढ़ने लगी ।
"भान्जे तुम्हें शर्म नहीं आती नंगे होकर बैठे हो और दरवाज़ा भी बंद नहीं किया" नरेश बेड की तरफ बढ़ रहा था की अचानक रेखा की आवज़ ने उसे चौंका दिया । नरेश के हाथ से इस अचानक हुयी आवाज़ से अपना टॉवल छूट गया और वह अपनी मामी के सामने बिलकुल नंगा हो गया।

"अरे बेशर्म इतना बड़ा साँप पाल रखा है कुछ तो शर्म करो" रेखा ने अपने भांजे के नंगा होते ही उसके खडे बड़े और मोटे लंड को घूरते हुए झूठा गुस्सा करते हुए कहा, नरेश ने अपनी मामी की बात सुनकर जल्दी से टॉवल उठा लिया और अपने आपको ढ़क लिया ।
"मामी आप अचानक क्या काम है" नरेश ने टॉवल लपेटने के बाद हकलाते हुए कहा।
"अरे मैं तो तुम्हें देखने आई थी की कहाँ चले गए। किचन में कुछ मदद कर देते मगर तुम तो यहाँ नंगे होकर अपनी मामी को ही अपना साँप दिखा कर डरा रहे हो" रेखा ने बड़ी बेशरमी से अपने भान्जे से कहा।
 
वो मामी आप जाओ में कपड़े पहन कर अभी आता हूँ" नरेश ने यों ही हकलाते हुए कहा।
"हा हाँ मैं तो जा रही हूँ मगर अपने साँप को सँभालकर रख। कॉलेज की लड़कियों को डराने के काम आएगा। अपनी मामी के सामने इसे छुपाकर रख" रेखा ने जाते हुए मन ही मन में खुश होते हुए कहा ।
नरेश अपनी मामी के जाते ही बुहत परेशान हो गया। आखिर आज हो क्या रहा है, वह अपने कपड़े पहनकर अपनी मामी के पास किचन में चला गया।
"आ गये मेरे लाडले भांजे, अपने साँप को तो सुला दिया या फिर से वह अपना फन उठाकर हमें डरायेगा?" रेखा ने अपने भान्जे के आते ही उसे छेडते हुए कहा।

"मामी आप इस उम्र में इतना डरती क्यों हो । आप ने ऐसे कई साँप अब तक निगल लिए होंगे" नरेश ने भी अपनी मामी को करारा जवाब देते हुए कहा।
"अरे भांजे कुछ तो शर्म कर कोई कॉलेज की लड़की नहीं पटी तो क्या इस साँप का डंक अपनी मामी को लगाओगे" रेखा ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा ।
"मामी कैसी बातें कर रही हो । मैं आपके बारे में ऐसा कैसे सोच सकता हूं। मगर क्या करुं यह साँप जिस ख़ूबसूरत चीज़ को देख ले बस खडा हो जाता है। मादरचोद यह भी नहीं समझता की यह मामी है या कोई और" नरेश ने अपनी मामी की तरफ देखते हुए कहा।

"भान्जे फिर इसको किसी ख़ूबसूरत चीज़ के बिल में घुसा दे वरना यह तुझे यूँ ही तंग करता रहेंगा" रेखा ने अपने भान्जे से वैसे ही बेशरमी से बात करते हुए कहा।
"मामी अब जब तक कोई दूसरी ख़ूबसूरत बला मिले तब तक यह साँप तो यों ही फनफनाता रहेंगा" नरेश ने अपनी पेण्ट के ऊपर ही अपने लंड को सहलाते हुए कहा।
"तेरी मम्मी से कहकर तुम्हारे साँप के लिए कोई परमानेंट बिल का इन्तज़ाम कर देती हूँ" रेखा ने नरेश की तरफ देखते हुए कहा।
"मामी फिर तो आपकी बुहत बड़ी महरबानी हो जायेगी और मेरा साँप भी हमेशा आपको दुआ देता रहेंगा" नरेश ने खुश होते हुए कहा।
"ठीक है चल अब एक काम करो मुझे वह बर्तन उठाना है । मुझे थोडा ऊपर उठाओ और हाँ अपने साँप को कण्ट्रोल में रखना कहीं वह ख़ुशी में अपनी मामी की बिल में न घुस जाए" रेखा ने अपने भांजे को बड़ी बेशरमी से कहा ।
 
मामी मेरे साँप का ऐसा नसीब कहाँ के आप जीतनी ख़ूबसूरत औरत की बिल में जाने का मौका मिले" नरेश अपनी मामी की बात सुनकर उसके क़रीब आते हुए कहा।
"चल बदमाश मेरी झूठी तारीफ मत कर" नरेश के क़रीब आते ही रेखा ने अपनी बाहों को ऊपर करते हुए कहा।
"मामी कसम से आप बुहत सूंदर हो, मेरा क्या दुनिया का हर साँप आप जैसी सूंदर औरत की बिल में जाना पसंद करेंगा" नरेश ने अपनी मामी की कमर में बाहें ड़ालते हुए उसे ऊपर उठाते हुए कहा।
"नलायक चुप करो मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ मेरे बारे में ऐसा सोचते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती" रेखा ने अपने भांजे की मज़बूत बाहों में आते ही ऊपर से कुछ सामान उतारते हुए कहा।
"क्या करुं मामी मेरे साँप ने मुझे परेशान कर दिया है। इसीलिए ऐसी बातें ज़हन में आ रही हैं" नरेश ने अपनी मामी के नंगे गोरे पेट पर अपने होंठ रखते हुए कहा।
"आह्ह" नरेश के होंठ अपने नंगे पेट पर पडते ही रेखा के पूरे जिस्म में करंट के एक झटके की लहर दौड गई,
"क्या हुआ मामी" नरेश ने अपनी मामी से अन्जान बनते हुए कहा।

"कुछ नहीं भांजे, वह एक काक्रोच था" रेखा ने अपने आप पर काबू रखते हुए कहा।
"मामी थोडा ख़याल रखो यह काक्रोच बुहत शरारती होते हैं कहीं भी घुस जाते हैं । नरेश ने अपने होंठ अपनी मामी के गोर पेट पर ऊपर से नीचे तक फिराते हुए कहा ।
"वो तो मुझे पता है भांजे ज़रा यह तो लेना" रेखा ने इस बार अपनी सिसकी को अपने मुँह में ही दबाते हुए कहा।
नरेश ने जैसे ही अपना मुँह अपनी मामी के पेट से हटाते हुए ऊपर किया उसके होश ही उड़ गये।

रेखा की साड़ी का पल्लु उसकी चुचियों से नीचे गिरा हुआ था और उसके ब्लाउज से आधि चुचियां नंगी होकर नरेश को दिखाई दे रही थी, रेखा का ब्लाउज गर्मी होने के कारण पूरा भीग चूका था । जिस वजह से रेखा के ब्लाउज के अंदर की काली ब्रा बिलकुल साफ़ नज़र आ रही थी ।
"क्या देख रहे हो भांजे, कभी देखि नहीं क्या ऐसी चीजें" रेखा ने अपने भांजे को अपनी चुचियों की तरफ घूरता हुआ देखकर कहा । रेखा के हाथों में दो बर्तन थे।
"मामी बुहत देखे हैं मगर यह तो बिलकुल अनोखे और सब से ख़ूबसूरत हैं" नरेश ने अपनी मामी की चुचियों को यों ही देखते हुए कहा ।
 
"भान्जे इन में दूध रखती हूँ" रेखा ने बर्तनों को नीचे झुककर रखते हुए कहा।
"मामी कितना दूध रख सकते हैं इन में" नरेश ने अपनी मामी के नीचे होकर बर्तन रखने से उसकी दोनों चुचियों को बुहत नज़दीक से देखते हुए कहा ।
"भान्जे बुहत ज़्यादा दूध समां जाता है इन में" रेखा ने बर्तन रखने के बाद जान बूझकर अपनी चुचियां नरेश के मूह से रगडकर ऊपर करते हुए कहा।
"मामी कभी हमें भी तो दूध पीला दिया करो" नरेश ने फिर से अपनी मामी की चुचियों को देखते हुए कहा।

"भान्जे कहो तो अभी गरम गरम पिला दूँ" रेखा ने फिर से दूसरा एक बर्तन उठाकर नीचे झुककर उसे रखते हुए कहा । रेखा के झुकने से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां सीधा नरेश के आँखों के सामने आ गयी ।
"भान्जे क्या कहते हो पियोगे न गरम दूध" रेखा ने नरेश को अपनी चुचियों में खोया हुआ देखकर उससे फिर कहा।
"हा मामी क्यों नहीं पीयेंगे ताज़ा दूध है हम तो ज़रूर पिएँगे" नरेश ने यह कहते हुए इस बार अपने होंठ अपनी मामी की चुचियों के बने उभार पर रख दिये ।

"यआह्ह्ह्ह हहह क्या कर रहे हो भांजे मुझे नीचे उतारो तुम्हें अभी गरम दूध बनाकर देती हूं, नालायक़ तुम तो अपनी मामी की चुचियां का दूध ही पीने लगे" रेखा ने अपने भांजे के होंठ अपने उभारों पर पड़ते ही सिसकते हुए कहा ।
रेखा अपने भांजे को कुछ तडपाना चाहती थी इसीलिए उसने उसे टोक दिया । नरेश अपनी मामी की बात सुनकर होश में आते हुए अपनी मामी को नीचे उतार दिया।
"अरे हमारा भंजा तो बुहत थक गया, जाओ कुर्सी पर बैठो में तुम्हारे लिए दूध बनाती हूँ" रेखा ने नीचे उतरते ही अपने भांजे के माथे से पसीना पोछते हुए कहा।

नरेश की हालत बुहत बिगड चुकी थी, उसका लंड तनकर उसकी पेण्ट को फटने के लिए तैयार था । नरेश का दिल कर रहा था की अभी जाकर अपनी मामी को पकडकर अपना लंड उसकी चूत में घुसा दे, मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था ।
नरेश किचन में ही कुर्सी पर बैठ गया, रेखा फ्रीजर से दूध निकालकर अपने भांजे के लिए गरम करने लगी । कुछ ही देर में दूध गरम हो गया जिसे वह एक गिलास में ड़ालने लगी ।

रेखा दूध को गिलास में ड़ालते हुए उसे लेकर नरेश के पास आ गयी । नरेश अपना कन्धा झुकाये हुए कुर्सी पर बैठा था जैसे कुछ सोच रहा हो।
"भान्जे गरम दूध" रेखा ने नीचे झुककर दूध का ग्लॉस अपने भांजे के सामने कर दिया, मगर नीचे झुकने से रेखा की साड़ी का पल्लु उसकी चुचियों से हट गया और उसकी चुचियां फिर से आधि नंगी होकर नरेश के आँखों के सामने आ गई ।
नरेश जो अपने ख्यालों में बैठा था अपनी मामी की आवाज़ सुनकर जैसे ही अपना कन्धा ऊपर किया उसकी हालत फिर से खराब होने लगी, उसकी मामी की चुचियां आधि नंगी उसके सामने थी । नरेश की नज़रें अपनी मामी की नंगी चुचियों में ही अटक गयी।
 
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