desiaks
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“पता नहीं । लेकिन ये एक सम्भावना है जो कि समझ में आती है । बशर्ते कि बहस के तौर पर मैं” - उसने ज्योति की और इशारा किया - “मैडम की ये जिद मान हूं कि पायल कातिल नहीं हो सकती । अब देखिये उससे आगे बात कैसे बढती है । पायल भला हाउसकीपर का कत्ल क्यों करेगी ? कोई प्रत्यक्ष वजह सामने नहीं । उसने ऐसा किया तो यहां पहुंचकर अपने कमरे में क्यों किया जब कि रात के ढाई और तीन बजे के बीच वो पायर से लेकर यहां तक के सुनसान रास्ते पर हाउसकीपर के साथ अकेली थी ?”
“दैट्स वैरी गुट रीजनिंग ।” - सतीश प्रभावित स्वर में बोला ।
“इसका मतलब ये है कि पायल कल यहां से इसलिये चुपचाप खिसक रही थी क्योंकि यहां उसे अपनी जान का खतरा दिखाई दे रहा था । कोई बड़ी बात नहीं कि उसने अपने धोखे में हाउसकीपर का कत्ल होता देखा हो और तब फौरन, चुपचाप, चोरों की तरह, जान लेकर भाग निकलने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दो हो ।”
“ओह !” - ज्योति बोली - “तो इसलिये आप मेरे से पूछ रहे थे कि क्या पायल मुझे खौफजदा दिखाई दी थी ?”
“जी हां । जिसे अपने सिर पर मौत मंडराती दिखाई दे रही हो, वो खौफजदा तो होगा ही ।”
“अगर” - ब्रान्डा बोला - “ऐसा कुछ था तो उसने इसका जिक्र ज्योति से तो किया होता जो कि उसकी बैस्ट फ्रैंड थी ?”
“जब दिलोदिमाग पर दहशत सवार हो तो हर कोई नाकाबिले एतबार लगने लगता है ।”
“लेकिन फिर भी...”
“फिर भी ये कि हो सकता है कि पायल को लगता हो कि उसको अपनी बैस्ट फ्रैंड, अपनी बहनों जैसी सहेली ज्योति से हो खतरा था ।”
“क्या कहने ?” - ज्योति व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “फिर तो मैंने बहुत सुनहरा मौका खो दिया, एक बार चूक जाने के बात कामयाबी से पायल का कत्ल करने का । या शायद आप भूल गये हैं कि यहां जब हर कोई घोड़े बेचकर सोया पड़ा था, तब मैं नीचे पोर्टिको में पायल के साथ अकेली थी ।
“मैं आप पर इलजाम नहीं लगा रहा, मैडम । मैं किसी पर इलजाम नहीं लगा रहा । मैं तो महज पायल की एक खास वक्त की खास मनोवृति को हाइलाइट करने की कोशिश कर रहा था ।”
ज्योति खामोश रही ।
“बहरहाल तुझे यकीन है कि पायल अभी आइलैंड पर ही कहीं है । और आप सब लोग भी अभी आइलैंड पर ही हैं और, माइन्ड इट, जब तक मैं यहां से जाने की इजाजत न दूं, आइलैंड पर ही रहेंगे । अब देखते हैं कि पायल तक पहले पुलिस पहुंचती है या आपमें से कोई ।”
सब भौचक्के-से सब-इंस्पेक्टर का मुंह देखने लगे जो कि साफ-साफ ये इलजाम उनके बीच उछाल रहा था कि कातिल उन्हीं में सो कोई था ।
“वाट नानसेंस !” - फिर सतीश भड़ककर बोला - “हममें से कोई कातिल कैसे हो सकता है ! हम सब तो उसको दिलोजान से चाहते हैं । हम तो उसका बाल भी बांका नहीं होने दे सकते । समझे, मिस्टर पुलिस आफिसर !”
सब-इंस्पेक्टर केवल मुस्कराया ।
“ये तस्वीरें” - फिर वो मेज पर फैली तस्वीरें बटोरता हुआ बोला - “फिलहाल मैं अपने पास रखना चाहता हूं । मिस्टर सतीश, आपको कोई एतराज ?”
सतीश ने इनकार में सिर हिलाया ।
“मैडम” - सब-इंस्पेक्टर ज्योति से सम्बोधित हुआ - “आपने ये तस्वीरें देखी हैं ?”
“हां ।” - ज्योति बोली ।
“अच्छी तरह से ?”
“हां ।”
“चाहें तो एक बार फिर देख लें ?”
“जरूरत नहीं ।”
“गुड । यहां आप ही एक इकलौती हस्ती है जिसके साथ सात साल बाद पायल पाटिल उर्फ नाडकर्णी के रूबरू होने का इत्तफाक हुआ था । मेरा आपसे जो सवाल है वो ये है कि क्या आज भी पायल देखने में अपनी इन तस्वीरों जैसी ही लगती है ?”
“हां । हूबहू । कोई तब्दीली नहीं आयी उसमें । गुजश्ता सात सालों में उसके लिये तो जैसे वक्त ठहर गया था । फिर भी कोई तब्दीली आयी थी तो ये कि वो पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगने लगी थी ।”
“पोशाक क्या पहने थी वो ?”
ज्योति सकपकाई ।
“पोशाक क्या पहने थी वो ?” - सब-इंस्पेक्टर ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“पोशाक ?”
“लिबास ! ड्रैस !”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं ! क्यों मालूम नहीं ?”
“क्योंकि... क्योंकि वो एक लम्बा कोट पहने थी जो कि उसके गले से लेकर घुटनों से नीचे तक आता था । कोट के तमाम बटन बन्द थे इसलिये ये दिखाई नहीं देता था कि वो नीचे क्या पहने थी ।”
“आई सी । कोट कैसा था ?”
“सफेद फर का था वो कोट । बड़ा कीमती मालूम होता था ।”
“ये तो कोई उसकी पहचान का पुख्ता जरिया नहीं । यहां ठण्ड रात को ही होती है जब कि आउटडोर्स में कोट पहनने की जरूरत महसूस होती है । दिन में कोट पहन के रखने की जरूरत नहीं होती - खासतौर से नौजवान लोगों को । उसके कोट उतार लेने के बाद सकी पहचान का ये जरिया तो गया ।”
“जाहिर है ?”
“वो खाली हाथ थी ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? अपना कोई सामना पीछे तो छोड़ नहीं गयी वो । रात गुजारने आयी लड़की खाली हाथ कैसे हो सकती थी ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसके पास कोई भारी सामान - जैसे कोई सूटकेस या ट्रंक वगैरह - नहीं था । बस एक छोटा-सा एयरबैग जैसा बैग उठाये थी वो जिसमें कि ओवरनाइट स्टे के लिये साजो-सामान और कपड़े होंगे ।”
“एयरबैग कैसा था ?”
“वैसा ही जैसा बड़ी एयरलाइन्स अपने यात्रियों को उपहारस्वरूप देती हैं ।”
“फिर तो उस पर एयरलाइन्स का नाम होगा !”
“होगा लेकिन मुझे दिखाई नहीं दिया था । उस घड़ी मेरी तवज्जो पायल की तरफ थी, न कि उसके साजो-सामान की तरफ । सच पूछें तो मुझे तो कोट भी इसलिये याद रह गया है क्योंकि वो बहुत शानदार था ।”
“हूं । आपको ख्याल से कत्ल किस वक्त हुआ होगा ?”
“जाहिर है कि पायल के यहां से जाने से पहले किसी वक्त ?”
“यानी कि पांच बजे से पहले किसी वक्त । भले ही वो खुद कत्ल करके यहां से खिसकी जा रही हो या कत्ल के बाद अपनी जान को खतरा पाकर चुपचाप यहां से कूच कर रही हो । रात तीन बजे वो वसुन्धरा के साथ वहां पहुंची थी । कुछ वक्त यहां पहुंचने के बाद उसने कमरे में सैटल होने में भी लगाया होगा । इस लिहाज से मेरा सेफ अन्दाजा ये है कि कत्ल रात साढे तीन और सुबह पांच बजे के बीच के वक्फे में हुआ था । इस वक्फे को और कम करने में पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट सहायक सिद्ध हो सकती है जो कि हमें हासिल होते-होते होगी क्योंकि ऐसे कामों का यहां आइलैंड पर कोई इन्तजाम नहीं । बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं - सच पूछिये तो कत्ल के केस की तफ्तीश की ही मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं, क्योंकि इस शान्त आइलैंड पर कत्ल कोई रोजमर्रा की बात नहीं । पिछले साल यहां चर्चिल अलेमाओ नाम के एक साहब के बंगले पर उग्रवादियों के हमले जैसी एक वारदात जरूर हुई थी जिसमें कि काफी खून-खराबा मचा था, उसके अलावा कम-से-कम मेरी यहां पोस्टिंग के दौरान ऐसी कोई कत्ल ही वारदात यहां हुई नहीं । बहरहाल अब ये गले पड़ा ढोल बजाना तो पड़ेगा ही ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “कत्ल का जो वक्फा मैंने मुकर्रर किया, उसमें आप लोग कहां थे ?”
“भई, वहीं जहां हम लोगों को होना चाहिये था ।” - सतीश अप्रसन्न स्वर में बोला - “अपने-अपने बिस्तर पर । नींद के हवाले ।”
“आप सबकी तरफ से सामूहिक बयान दे रहे हैं ?”
“वाट द हैल ! अरे, ये कोई सवाल है ?”
“क्यों नहीं है ?”
“दैट्स वैरी गुट रीजनिंग ।” - सतीश प्रभावित स्वर में बोला ।
“इसका मतलब ये है कि पायल कल यहां से इसलिये चुपचाप खिसक रही थी क्योंकि यहां उसे अपनी जान का खतरा दिखाई दे रहा था । कोई बड़ी बात नहीं कि उसने अपने धोखे में हाउसकीपर का कत्ल होता देखा हो और तब फौरन, चुपचाप, चोरों की तरह, जान लेकर भाग निकलने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दो हो ।”
“ओह !” - ज्योति बोली - “तो इसलिये आप मेरे से पूछ रहे थे कि क्या पायल मुझे खौफजदा दिखाई दी थी ?”
“जी हां । जिसे अपने सिर पर मौत मंडराती दिखाई दे रही हो, वो खौफजदा तो होगा ही ।”
“अगर” - ब्रान्डा बोला - “ऐसा कुछ था तो उसने इसका जिक्र ज्योति से तो किया होता जो कि उसकी बैस्ट फ्रैंड थी ?”
“जब दिलोदिमाग पर दहशत सवार हो तो हर कोई नाकाबिले एतबार लगने लगता है ।”
“लेकिन फिर भी...”
“फिर भी ये कि हो सकता है कि पायल को लगता हो कि उसको अपनी बैस्ट फ्रैंड, अपनी बहनों जैसी सहेली ज्योति से हो खतरा था ।”
“क्या कहने ?” - ज्योति व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “फिर तो मैंने बहुत सुनहरा मौका खो दिया, एक बार चूक जाने के बात कामयाबी से पायल का कत्ल करने का । या शायद आप भूल गये हैं कि यहां जब हर कोई घोड़े बेचकर सोया पड़ा था, तब मैं नीचे पोर्टिको में पायल के साथ अकेली थी ।
“मैं आप पर इलजाम नहीं लगा रहा, मैडम । मैं किसी पर इलजाम नहीं लगा रहा । मैं तो महज पायल की एक खास वक्त की खास मनोवृति को हाइलाइट करने की कोशिश कर रहा था ।”
ज्योति खामोश रही ।
“बहरहाल तुझे यकीन है कि पायल अभी आइलैंड पर ही कहीं है । और आप सब लोग भी अभी आइलैंड पर ही हैं और, माइन्ड इट, जब तक मैं यहां से जाने की इजाजत न दूं, आइलैंड पर ही रहेंगे । अब देखते हैं कि पायल तक पहले पुलिस पहुंचती है या आपमें से कोई ।”
सब भौचक्के-से सब-इंस्पेक्टर का मुंह देखने लगे जो कि साफ-साफ ये इलजाम उनके बीच उछाल रहा था कि कातिल उन्हीं में सो कोई था ।
“वाट नानसेंस !” - फिर सतीश भड़ककर बोला - “हममें से कोई कातिल कैसे हो सकता है ! हम सब तो उसको दिलोजान से चाहते हैं । हम तो उसका बाल भी बांका नहीं होने दे सकते । समझे, मिस्टर पुलिस आफिसर !”
सब-इंस्पेक्टर केवल मुस्कराया ।
“ये तस्वीरें” - फिर वो मेज पर फैली तस्वीरें बटोरता हुआ बोला - “फिलहाल मैं अपने पास रखना चाहता हूं । मिस्टर सतीश, आपको कोई एतराज ?”
सतीश ने इनकार में सिर हिलाया ।
“मैडम” - सब-इंस्पेक्टर ज्योति से सम्बोधित हुआ - “आपने ये तस्वीरें देखी हैं ?”
“हां ।” - ज्योति बोली ।
“अच्छी तरह से ?”
“हां ।”
“चाहें तो एक बार फिर देख लें ?”
“जरूरत नहीं ।”
“गुड । यहां आप ही एक इकलौती हस्ती है जिसके साथ सात साल बाद पायल पाटिल उर्फ नाडकर्णी के रूबरू होने का इत्तफाक हुआ था । मेरा आपसे जो सवाल है वो ये है कि क्या आज भी पायल देखने में अपनी इन तस्वीरों जैसी ही लगती है ?”
“हां । हूबहू । कोई तब्दीली नहीं आयी उसमें । गुजश्ता सात सालों में उसके लिये तो जैसे वक्त ठहर गया था । फिर भी कोई तब्दीली आयी थी तो ये कि वो पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगने लगी थी ।”
“पोशाक क्या पहने थी वो ?”
ज्योति सकपकाई ।
“पोशाक क्या पहने थी वो ?” - सब-इंस्पेक्टर ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“पोशाक ?”
“लिबास ! ड्रैस !”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं ! क्यों मालूम नहीं ?”
“क्योंकि... क्योंकि वो एक लम्बा कोट पहने थी जो कि उसके गले से लेकर घुटनों से नीचे तक आता था । कोट के तमाम बटन बन्द थे इसलिये ये दिखाई नहीं देता था कि वो नीचे क्या पहने थी ।”
“आई सी । कोट कैसा था ?”
“सफेद फर का था वो कोट । बड़ा कीमती मालूम होता था ।”
“ये तो कोई उसकी पहचान का पुख्ता जरिया नहीं । यहां ठण्ड रात को ही होती है जब कि आउटडोर्स में कोट पहनने की जरूरत महसूस होती है । दिन में कोट पहन के रखने की जरूरत नहीं होती - खासतौर से नौजवान लोगों को । उसके कोट उतार लेने के बाद सकी पहचान का ये जरिया तो गया ।”
“जाहिर है ?”
“वो खाली हाथ थी ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? अपना कोई सामना पीछे तो छोड़ नहीं गयी वो । रात गुजारने आयी लड़की खाली हाथ कैसे हो सकती थी ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसके पास कोई भारी सामान - जैसे कोई सूटकेस या ट्रंक वगैरह - नहीं था । बस एक छोटा-सा एयरबैग जैसा बैग उठाये थी वो जिसमें कि ओवरनाइट स्टे के लिये साजो-सामान और कपड़े होंगे ।”
“एयरबैग कैसा था ?”
“वैसा ही जैसा बड़ी एयरलाइन्स अपने यात्रियों को उपहारस्वरूप देती हैं ।”
“फिर तो उस पर एयरलाइन्स का नाम होगा !”
“होगा लेकिन मुझे दिखाई नहीं दिया था । उस घड़ी मेरी तवज्जो पायल की तरफ थी, न कि उसके साजो-सामान की तरफ । सच पूछें तो मुझे तो कोट भी इसलिये याद रह गया है क्योंकि वो बहुत शानदार था ।”
“हूं । आपको ख्याल से कत्ल किस वक्त हुआ होगा ?”
“जाहिर है कि पायल के यहां से जाने से पहले किसी वक्त ?”
“यानी कि पांच बजे से पहले किसी वक्त । भले ही वो खुद कत्ल करके यहां से खिसकी जा रही हो या कत्ल के बाद अपनी जान को खतरा पाकर चुपचाप यहां से कूच कर रही हो । रात तीन बजे वो वसुन्धरा के साथ वहां पहुंची थी । कुछ वक्त यहां पहुंचने के बाद उसने कमरे में सैटल होने में भी लगाया होगा । इस लिहाज से मेरा सेफ अन्दाजा ये है कि कत्ल रात साढे तीन और सुबह पांच बजे के बीच के वक्फे में हुआ था । इस वक्फे को और कम करने में पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट सहायक सिद्ध हो सकती है जो कि हमें हासिल होते-होते होगी क्योंकि ऐसे कामों का यहां आइलैंड पर कोई इन्तजाम नहीं । बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं - सच पूछिये तो कत्ल के केस की तफ्तीश की ही मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं, क्योंकि इस शान्त आइलैंड पर कत्ल कोई रोजमर्रा की बात नहीं । पिछले साल यहां चर्चिल अलेमाओ नाम के एक साहब के बंगले पर उग्रवादियों के हमले जैसी एक वारदात जरूर हुई थी जिसमें कि काफी खून-खराबा मचा था, उसके अलावा कम-से-कम मेरी यहां पोस्टिंग के दौरान ऐसी कोई कत्ल ही वारदात यहां हुई नहीं । बहरहाल अब ये गले पड़ा ढोल बजाना तो पड़ेगा ही ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “कत्ल का जो वक्फा मैंने मुकर्रर किया, उसमें आप लोग कहां थे ?”
“भई, वहीं जहां हम लोगों को होना चाहिये था ।” - सतीश अप्रसन्न स्वर में बोला - “अपने-अपने बिस्तर पर । नींद के हवाले ।”
“आप सबकी तरफ से सामूहिक बयान दे रहे हैं ?”
“वाट द हैल ! अरे, ये कोई सवाल है ?”
“क्यों नहीं है ?”