Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - Page 5 - SexBaba
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Mastaram Kahani कत्ल की पहेली

“पता नहीं । लेकिन ये एक सम्भावना है जो कि समझ में आती है । बशर्ते कि बहस के तौर पर मैं” - उसने ज्योति की और इशारा किया - “मैडम की ये जिद मान हूं कि पायल कातिल नहीं हो सकती । अब देखिये उससे आगे बात कैसे बढती है । पायल भला हाउसकीपर का कत्ल क्यों करेगी ? कोई प्रत्यक्ष वजह सामने नहीं । उसने ऐसा किया तो यहां पहुंचकर अपने कमरे में क्यों किया जब कि रात के ढाई और तीन बजे के बीच वो पायर से लेकर यहां तक के सुनसान रास्ते पर हाउसकीपर के साथ अकेली थी ?”
“दैट्स वैरी गुट रीजनिंग ।” - सतीश प्रभावित स्वर में बोला ।
“इसका मतलब ये है कि पायल कल यहां से इसलिये चुपचाप खिसक रही थी क्योंकि यहां उसे अपनी जान का खतरा दिखाई दे रहा था । कोई बड़ी बात नहीं कि उसने अपने धोखे में हाउसकीपर का कत्ल होता देखा हो और तब फौरन, चुपचाप, चोरों की तरह, जान लेकर भाग निकलने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दो हो ।”
“ओह !” - ज्योति बोली - “तो इसलिये आप मेरे से पूछ रहे थे कि क्या पायल मुझे खौफजदा दिखाई दी थी ?”
“जी हां । जिसे अपने सिर पर मौत मंडराती दिखाई दे रही हो, वो खौफजदा तो होगा ही ।”
“अगर” - ब्रान्डा बोला - “ऐसा कुछ था तो उसने इसका जिक्र ज्योति से तो किया होता जो कि उसकी बैस्ट फ्रैंड थी ?”
“जब दिलोदिमाग पर दहशत सवार हो तो हर कोई नाकाबिले एतबार लगने लगता है ।”
“लेकिन फिर भी...”
“फिर भी ये कि हो सकता है कि पायल को लगता हो कि उसको अपनी बैस्ट फ्रैंड, अपनी बहनों जैसी सहेली ज्योति से हो खतरा था ।”
“क्या कहने ?” - ज्योति व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “फिर तो मैंने बहुत सुनहरा मौका खो दिया, एक बार चूक जाने के बात कामयाबी से पायल का कत्ल करने का । या शायद आप भूल गये हैं कि यहां जब हर कोई घोड़े बेचकर सोया पड़ा था, तब मैं नीचे पोर्टिको में पायल के साथ अकेली थी ।
“मैं आप पर इलजाम नहीं लगा रहा, मैडम । मैं किसी पर इलजाम नहीं लगा रहा । मैं तो महज पायल की एक खास वक्त की खास मनोवृति को हाइलाइट करने की कोशिश कर रहा था ।”
ज्योति खामोश रही ।
“बहरहाल तुझे यकीन है कि पायल अभी आइलैंड पर ही कहीं है । और आप सब लोग भी अभी आइलैंड पर ही हैं और, माइन्ड इट, जब तक मैं यहां से जाने की इजाजत न दूं, आइलैंड पर ही रहेंगे । अब देखते हैं कि पायल तक पहले पुलिस पहुंचती है या आपमें से कोई ।”
सब भौचक्के-से सब-इंस्पेक्टर का मुंह देखने लगे जो कि साफ-साफ ये इलजाम उनके बीच उछाल रहा था कि कातिल उन्हीं में सो कोई था ।
“वाट नानसेंस !” - फिर सतीश भड़ककर बोला - “हममें से कोई कातिल कैसे हो सकता है ! हम सब तो उसको दिलोजान से चाहते हैं । हम तो उसका बाल भी बांका नहीं होने दे सकते । समझे, मिस्टर पुलिस आफिसर !”
सब-इंस्पेक्टर केवल मुस्कराया ।
“ये तस्वीरें” - फिर वो मेज पर फैली तस्वीरें बटोरता हुआ बोला - “फिलहाल मैं अपने पास रखना चाहता हूं । मिस्टर सतीश, आपको कोई एतराज ?”
सतीश ने इनकार में सिर हिलाया ।
“मैडम” - सब-इंस्पेक्टर ज्योति से सम्बोधित हुआ - “आपने ये तस्वीरें देखी हैं ?”
“हां ।” - ज्योति बोली ।
“अच्छी तरह से ?”
“हां ।”
“चाहें तो एक बार फिर देख लें ?”
“जरूरत नहीं ।”
“गुड । यहां आप ही एक इकलौती हस्ती है जिसके साथ सात साल बाद पायल पाटिल उर्फ नाडकर्णी के रूबरू होने का इत्तफाक हुआ था । मेरा आपसे जो सवाल है वो ये है कि क्या आज भी पायल देखने में अपनी इन तस्वीरों जैसी ही लगती है ?”
“हां । हूबहू । कोई तब्दीली नहीं आयी उसमें । गुजश्ता सात सालों में उसके लिये तो जैसे वक्त ठहर गया था । फिर भी कोई तब्दीली आयी थी तो ये कि वो पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगने लगी थी ।”
“पोशाक क्या पहने थी वो ?”
ज्योति सकपकाई ।
“पोशाक क्या पहने थी वो ?” - सब-इंस्पेक्टर ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“पोशाक ?”
“लिबास ! ड्रैस !”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं ! क्यों मालूम नहीं ?”
“क्योंकि... क्योंकि वो एक लम्बा कोट पहने थी जो कि उसके गले से लेकर घुटनों से नीचे तक आता था । कोट के तमाम बटन बन्द थे इसलिये ये दिखाई नहीं देता था कि वो नीचे क्या पहने थी ।”
“आई सी । कोट कैसा था ?”
“सफेद फर का था वो कोट । बड़ा कीमती मालूम होता था ।”
“ये तो कोई उसकी पहचान का पुख्ता जरिया नहीं । यहां ठण्ड रात को ही होती है जब कि आउटडोर्स में कोट पहनने की जरूरत महसूस होती है । दिन में कोट पहन के रखने की जरूरत नहीं होती - खासतौर से नौजवान लोगों को । उसके कोट उतार लेने के बाद सकी पहचान का ये जरिया तो गया ।”
“जाहिर है ?”
“वो खाली हाथ थी ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? अपना कोई सामना पीछे तो छोड़ नहीं गयी वो । रात गुजारने आयी लड़की खाली हाथ कैसे हो सकती थी ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसके पास कोई भारी सामान - जैसे कोई सूटकेस या ट्रंक वगैरह - नहीं था । बस एक छोटा-सा एयरबैग जैसा बैग उठाये थी वो जिसमें कि ओवरनाइट स्टे के लिये साजो-सामान और कपड़े होंगे ।”
“एयरबैग कैसा था ?”
“वैसा ही जैसा बड़ी एयरलाइन्स अपने यात्रियों को उपहारस्वरूप देती हैं ।”
“फिर तो उस पर एयरलाइन्स का नाम होगा !”
“होगा लेकिन मुझे दिखाई नहीं दिया था । उस घड़ी मेरी तवज्जो पायल की तरफ थी, न कि उसके साजो-सामान की तरफ । सच पूछें तो मुझे तो कोट भी इसलिये याद रह गया है क्योंकि वो बहुत शानदार था ।”
“हूं । आपको ख्याल से कत्ल किस वक्त हुआ होगा ?”
“जाहिर है कि पायल के यहां से जाने से पहले किसी वक्त ?”
“यानी कि पांच बजे से पहले किसी वक्त । भले ही वो खुद कत्ल करके यहां से खिसकी जा रही हो या कत्ल के बाद अपनी जान को खतरा पाकर चुपचाप यहां से कूच कर रही हो । रात तीन बजे वो वसुन्धरा के साथ वहां पहुंची थी । कुछ वक्त यहां पहुंचने के बाद उसने कमरे में सैटल होने में भी लगाया होगा । इस लिहाज से मेरा सेफ अन्दाजा ये है कि कत्ल रात साढे तीन और सुबह पांच बजे के बीच के वक्फे में हुआ था । इस वक्फे को और कम करने में पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट सहायक सिद्ध हो सकती है जो कि हमें हासिल होते-होते होगी क्योंकि ऐसे कामों का यहां आइलैंड पर कोई इन्तजाम नहीं । बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं - सच पूछिये तो कत्ल के केस की तफ्तीश की ही मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं, क्योंकि इस शान्त आइलैंड पर कत्ल कोई रोजमर्रा की बात नहीं । पिछले साल यहां चर्चिल अलेमाओ नाम के एक साहब के बंगले पर उग्रवादियों के हमले जैसी एक वारदात जरूर हुई थी जिसमें कि काफी खून-खराबा मचा था, उसके अलावा कम-से-कम मेरी यहां पोस्टिंग के दौरान ऐसी कोई कत्ल ही वारदात यहां हुई नहीं । बहरहाल अब ये गले पड़ा ढोल बजाना तो पड़ेगा ही ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “कत्ल का जो वक्फा मैंने मुकर्रर किया, उसमें आप लोग कहां थे ?”
“भई, वहीं जहां हम लोगों को होना चाहिये था ।” - सतीश अप्रसन्न स्वर में बोला - “अपने-अपने बिस्तर पर । नींद के हवाले ।”
“आप सबकी तरफ से सामूहिक बयान दे रहे हैं ?”
“वाट द हैल ! अरे, ये कोई सवाल है ?”
“क्यों नहीं है ?”
 
“क्यों नहीं है ? तुम्हें नहीं पता क्यों नहीं है ? रात को क्या कोई अपने साथ गवाह लेकर सोता है ? हममें से किसी को क्या मालूम था कि वहां कत्ल होने वाला था जो कि कोर्ई अपने लिये एलीबाई का एडवांस इन्तजाम करके रखता ।”
“एक जने को तो यकीनन मालूम था ।”
“किसको ?”
“कातिल को ।”
“फिर पहुंच गये उसी पुरानी जगह पर ! अरे, मैं बोला न कि हममें कोई कातिल नहीं हो सकता ।”
“कातिल बाहर से आया भी नहीं हो सकता ।”
“ये बात” - राज बोला - “आप उस शख्स को जेहन में रख के कह रहे हैं जिसने कल रात पोर्टिको में हाउसकीपर पर हमला किया था ?”
“हमला नहीं किया था, सिर्फ धक्का दिया था ।”
“धक्का भी हमला ही होता है ।”
“उसने जो किया था, पकड़े जाने से बचने के लिये किया था ।”
“यानी कि वो ही शख्स फिर लौट आया नहीं हो सकता ? हत्या करने के इरादे से ?”
“नहीं । हम पहले ही कह चुक हैं कि वो कोई लोकल छोकरा था जो कि यहां मौजूद सुन्दरियों को ताकने-झांकने की नीयत से एस्टेट में घुस आया था । कोई पीपिंग टॉम था वो । उसको, यहां से कतई नावाकिफ शख्स को, ये खबर नहीं हो सकती थी कि इतने बड़े मैंशन में पायल कहां उपलब्ध थी !”
“कत्ल” - सतीश बोला - “पायल का नहीं हुआ ।”
“सर, लाइक दैट वुई विल बी बैक टु स्कवायर वन । जब हम पहले से ही इस सम्भावना पर विचार कर रहे हैं कि हाउसकीपर का कत्ल पायल के धोखे में हुआ हो सकता है तो...”
“ओके । ओके ।”
सब-इंस्पेक्टर की निगाह पैन होती हुई उपस्थित लोगों पर फिरी और फिर वो बोला - “तो मैं मिस्टर सतीश के जवाब को ही आप लोगों का भी जवाब समझूं ?”
तमाम सिर सहमति में हिले ।
“आप लोगों में कोई भी ऐसा नहीं जिसकी रात साढे तीन से सुबह पांच बजे तक की कोई मूवमेंट जिक्र के काबिल हो ?”
किसी ने जवाब न दिया ।
“किसी ने गोली चलने की आवाज सुनी ?”
तमाम सिर इनकार में हिले ।
“रात के सन्नाटे में चली गोली की आवाज तो इमारत में काफी जोर से गूंजी होगी !”
“इमारत में गूंजी होगी ।” - ब्राडो बोला - “लेकिन बन्द दरवाजों को न भेद पायी होगी । ऊपर से रात एक बजे तक यहां ड्रिंक्स का दौर चल रहा था जिसके बाद, जाहिर है कि, हर कोई घोड़े बेचकर सोया होगा । ऐसे माहौल में तो यहां तोप ही चलती तो शायद किसी को सुनाई देती ।”
“ऊपर से” - राज बोला - “नींद से एकाएक जागे ऐसे किसी व्यक्ति को क्या सूझ जाता कि वो गोली की आवाज थी ?”
“यानी कि किसी ने गोली की आवाज सुनी थी लेकिन उसे ये नहीं सूझा था कि वो गोली की आवाज थी ?”
“मैंने ये कब कहा !” - राज हड़बड़ाकर बोला - “मैंने तो महज एक मिसाल दी थी ।”
“मिसाल दी थी ! हूं । तो गोली की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी ?”
तमाम सिर फिर इनकार में हिले ।
“अभी मैंने कहा था कि बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं लेकिन इतना मैं फिर भी कह सकता हूं कि कत्ल किसी हैण्ड गन से - किसी पिस्तौल से या रिवॉल्वर से - हुआ था । लेकिन आलायकत्ल, वो गन, मौकायवारदात से बरामद नहीं हुई है । जिसका मतलब ये है कि घातक वार करने के बाद हत्यारा अपनी गन अपने साथ ले गया था ।”
“जोकि” - ब्राडो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “आप समझते हैं कि वो अभी भी अपने पास ही रखे होगा ?”
“लाइसेंसशुदा हथियार को और उसके मालिक को ट्रेस करना आसान होता है । लाइसेंसशुदा हथियार उसके मालिक की जिम्मेदारी होता है जिससे वो आसानी से किनारा नहीं कर सकता । मांगे जाने पर उसे वो हथियार इन्स्पेक्शन के लिये पेश करना पड़ सकता है । न पेश कर पाने पर और भी सख्त जवाबदेही से दो-चार होना पड़ सकता है । यानी कि जहां एक कत्ल का दख्ल हो, वहां ऐसा जवाब कि ‘मेरी पिस्तौल यहीं थी, पता नहीं कहां चली गयी’ या ‘किसी ने इसे इस्तेमाल करके वापिस रख दिया होगा’ जैसा जवाब नहीं चल सकता । अब मेरा सवाल है कि क्या आपमें से किसी के पास कोई हथियार है ?”
तमाम बुलबुलों का और राज का सिर इनकार में हिला ।
सब-इन्स्पेक्टर ने सतीश की तरफ देखा ।
“माई डियर, सर ।” - सतीश हड़बड़ाया-सा बोला - “मेरे पास तो हथियार नहीं है लेकिन हथियारों का यहां क्या घाटा है ?”
“क्या मतलब ?”
“यहां लायब्रेरी में बाकायदा शस्त्रागार है । तोप को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा फायरआर्म होगा जो कि वहां नहीं है ! लायब्रेरी की एक दीवार दायें से बायें तक और ऊपर से नीचे तक रायफलों, बन्दूकों, रिवॉल्वरों, पिस्तौलों वगैरह से ही भरी हुई है । तुम्हारे खास इस बाबत सवाल पूछने से पहले मुझे तो इस बात का ख्याल ही नहीं आया था ।”
“वो सब हथियार लाइसेंसशुदा है ?”
“हां ।”
“सबका आपके पास रिकार्ड है ?”
“हां । बिल्कुल । लायब्रेरी में बाकायदा एक फायरआर्म्स रजिस्टर मौजूद है ।”
“वारदात के बाद आपने जाकर अपने फायर आर्म्सकलैक्शन का मुआयना किया ?”
“नहीं । सूझा तक नहीं मुझे ऐसा करना ।”
“जब कि हो सकता है कि कातिल ने आलायकत्ल आपके कलैक्शन से ही मुहैया किया हो ।”
सतीश खामोश रहा लेकिन अब उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखाई देने लगे थे ।
“आप फायरआर्म्स को ताले में नहीं रखते ?”
“नहीं ।”
“लायब्रेरी की तो ताला लगता होगा ?”
“यहां किसी चीज को ताला नहीं लगा । ऐसी पाबन्दियों को मैं मेहमानों की खिदमत के खिलाफ मानता हूं और उनकी हत्तक मानता हूं । यहां किसी मेहमान का शूटिंग का मूड बन जाये तो क्या वो रायफल और कारतूत मुहैया करने के लिये मेरे से इजाजत मांगेगा ? मेरे से किसी ताले की चाबी मांगेगा ? ऐसा नहीं चल सकता । यहां जो सतीश का है, वो उसके मेहमान का है इसलिये...”
“ओके । ओके । लेकिन वहां से कोई हथियार चोरी गया पाया गया तो आप तब भी वहां कहीं ताला लगायेंगे या नहीं ?”
“मैं तो जरूरत नहीं समझता । लेकिन तुम कहोगे तो लगा दूंगा ।”
“हां । जरूर ।”
“लेकिन तभी जब कि वहां से कोई हथियार गायब पाया गया ।”
“न गायब पाया गया तब भी ।” - सब-इंस्पेक्टर सख्ती से बोला - “मिस्टर सतीश, फायरआर्म्स अन्डर लॉक एण्ड की ही होने चाहिये । उन तक हर किसी की पहुंच नहीं होनी चाहिये ! यू आर ए रिस्पांसिबल सिटिजन । यू शुड नो दिस । नो ?”
सतीश से जवाब देते न बना ।
तभी एक हवलदार ने वहां कदम रखा ।
“सर” - वो सब-इंस्पेक्टर से बोला - “पणजी से फोटोग्राफर और बैलेस्टिक एक्सपर्ट आ गये हैं ।”
“गुड ।” - सब-इंस्पेक्टर उठता हुआ बोला - “मिस्टर सतीश, मैं ऊपर मौकायवारदात पर महकमे के लोगों की हाजिरी भरने जा रहा हूं । आप तब तक बरायमेहरबानी अपने फायरआर्म्स कलैक्शन को चौकस कर लीजिये । अगर आपको वहां कोई घट-बढ मिले तो याद रखियेगा कि आपने फौरन मुझे उसकी खबर करनी है ।”
सतीश ने सहमति में सिर हिलाया ।
***
 
जैसी बादशाही सतीश की एस्टेट की हर चीज थी, वैसी ही वहां की लायब्रेरी और उसका मिनी शस्त्रागार निकला जिसकी बाबत सतीश की खुद नहीं मालूम था कि वहां कुल जमा कितने हथियार थे । उसकी दरख्वास्त पर राज उसके साथ लायब्रेरी में गया था जहां कि उन दोनों ने मिलकर हथियारों का जायजा लिया था । राज हथियारों पर से उनके सीरियल नम्बर पढकर बोलता रहा था और सतीश उन्हें फायरआर्म्स रजिस्टर में टिक करता रहा था । नतीजतन एक हथियार कम निकला था ।
एक अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर वहां से गायब पायी गयी थी ।
सतीश उस खोज से बहुत घबराया था । तब उसने लायब्रेरी के दरवाजे पर एक मजबूत ताला जड़ दिया था और चाबी सम्भालकर अपने पास रख ली थी ।
शाम चार बजे चाय पर सब लोग दोबारा इकट्टे हुए ।
तब तक पुलिस का फोटोग्राफर और बैलेस्टिक एक्सपर्ट वहां से रुख्सत हो चुके थे ।
“मिस्टर सतीश” - तब सब-इंस्पेक्टर बोला - “आई हैव ए प्रॉब्लम हेयर ।”
“क्या ?” - सतीश सशंक भाव से बोला ।
“पुलिस का डाक्टर पणजी से आज यहां नहीं आ सकता । एम्बूलैंस भी कल सुबह से पहले उपलब्ध नहीं । इसलिये पोस्टमार्टम के लिये लाश को कल सुबह से पहले पणजी नहीं ले जाया जा सकता ।”
“इसका क्या मतलब हुआ ?” - सतीश हड़बड़ाकर बोला - “क्या लाश ऊपर पायल के कमरे में ही पड़ी रहेगी ?”
“मजबूरी है, जनाब ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ! बंगले में एक लाश की मौजूदगी में मेरे मेहमान कैसे कम्फर्टेबल महसूस करेंगे ? नहीं-नहीं । आप लाश हटवाइये यहां से ।”
“सारी । लाश पुलिस के डाक्टर की देखरेख में ही हटवाई जा सकती है ।”
“देखरेख वो कहीं और कर ले । आप लाश को अपनी चौकी पर ले जाइये ।”
“वहां जगह नहीं है लाश रखने के लिये ।”
“मिस्टर पुलिस आफिसर, मैं हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकता कि रात-भर लाश मेरे बंगले में पड़ी रहे ।”
“शायद आपके मेहमानों को एतराज न हो !”
“मुझे एतराज है । आई कैन नाट स्लीप विद ए कार्प्स इन माई नेबरहुड ।”
“कल भी तो सोये थे !”
“कल मुझे लाश की खबर नहीं थी ।”
“लेकिन...”
“नो, सर । लाश यहां नहीं रहेगी ।”
“आपकी इतनी बड़ी एस्टेट है, आप कोई और जगह सुझाइये जहां लाश की ओवरनाइट मौजूदगी से आपको एतराज न हो ।”
“ग्रीन हाउस ।”
“ये क्या जगह हुई ?”
“यहां से काफी परे गार्डन में एक काटेज है जो ग्रीन हाउस के नाम से जाना जाता है ।”
“ठीक है । जाने से पहले मैं लाश को वहां शिफ्ट करा दूंगा और रात-भर के लिये वहां एक हवलदार भी तैनात कर दूंगा । ओके ?”
सतीश ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“अब बोलिये, फायरआर्म्स की आपकी पड़ताल का क्या नतीजा निकला ?”
तब मुरझाई सूरत के साथ सतीश ने लायब्रेरी में से एक अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर के गायब होने की घोषणा की ।
“हूं ।” - सब-इंस्पेक्टर गम्भीरता से बोला - “पायल आज से पहले यहां कब आयी थी ?”
“आठ साल पहले ।” - सतीश बोला - “जबकि इस किस्म की पहली पार्टी यहां हुई थी ।”
“मैंशन में आपके शस्त्रागार का अस्तित्व तब भी था ?”
“हां ।”
“यानी कि पायल को खबर थी कि यहां हथियार उपलब्ध था और कहां उपलब्ध था ?”
“वो तो ठीक है लेकिन ये क्या कोई मानने की बात है कि रात तीन बजे यहां पहुंचने के बाद अपने कमरे में जाकर रैस्ट करने की जगह वो हथियार की टोह में निकल पड़ी हो !”
“हथियार कमरे में किसी और जरिये से पहुंचा हो सकता है ।”
“और जरिया ! और जरिया कौन-सा ?”
“आपकी हाउसकीपर वसुन्धरा । वो इतनी रात गये पायल को लिवा लाने के लिये अकेली पायर पर गयी थी । हो सकता है अपनी हिफाजत के लिये उसने अपने पास किसी हथियार की जरूरत महसूस हो ।”
“हो तो सकता है ।” - सतीश के मुंह से स्वयमेव निकला ।
“यानी कि जो रिवॉल्वर आपने अपने शस्त्रागार से गायब पायी है, उसे वसुन्धरा अपने साथ लेकर गयी होगी । जब वो पायल के साथ लौटी होगी तो जाहिर है कि वो रिवॉल्वर तब भी उसके पास होगी । अब मिस फौजिया खान का बयान है कि उन्होंने रात तीन बजे के बाद किसी वक्त पायल के कमरे में पायल और वसुन्धरा के बीच तकरार होती सुनी थी । वो तकरार आगे कब तक जारी रही, ये इन्हें खबर नहीं क्योंकि ये कहती हैं कि पायल के उस वक्त के मूड से खौफ खाकर ये उलटे पांव वापिस लौट आयी थीं । लेकिन हकीकतन पायल के बन्द कमरे में तकरार ने कोई खतरनाक रुख अख्तियार कर लिया, नतीजतन हाउसकीपर ने ताव खाकर रिवॉल्वर निकाल ली, रिवॉल्वर देखकर पायल उस पर झपटी, छीना-झपटी में इत्तफाकन रिवॉल्वर चल गयी, गोली हाउसकीपर की छाती में जा लगी, वो मरकर गिर पड़ी, पायल के छक्के छूट गये और फिर वो वहां से भाग खड़ी हुई ।”
“यानी कि” - राज बोला - “हाउसकीपर का कत्ल महज एक हादसा था ?”
“हो सकता है । कत्ल इरादतन किया जाता है तो बचाव की कोई सूरत पहले सोच के रखी जाती है, मसलन कोई ऐसा जुगाड़ किया जाता है कि वो आत्महत्या लगे या बतौर कातिल किसी और की करतूत लगे । कत्ल दुर्घटनावश हुआ इसलिये पायल का माथा फिर गया और वो यहां से भाग खड़ी हुई ।”
“यानी कि” - सतीश बोला - “अब आप अपनी पहली थ्योरी से किनारा कर रहे हैं कि हाउसकीपर का कत्ल पायल के धोखे में हुआ और पायल अपनी जान को खतरा मानकर यहां से भाग खड़ी हुई ?”
“नहीं । फिलहाल मेरी पसन्दीदा थ्योरी वही है लेकिन पुलिस के लिये हर सम्भावना पर विचार करना जरूरी होता है । ये भी एक सम्भावना है जो अभी मेरे जेहन में आयी है और जिसे मैंने आप लोगों के सामने बयान किया है ।”
“आई सी ।”
“अब” - सब-इंस्पेक्टर गम्भीरता से बोला - “ये स्थापित हो चुका है कि आपकी हाउसकीपर की जान अड़तीस कैलीबर की गोली लगने से ही हुई है । कोई बड़ी बात नहीं कि गोली उसी रिवॉल्वर से चलाई गयी थी जो कि आपके फायरआर्म्स कलैक्शन में से गायब है । ये बात अपने आप में सुबूत है कि कातिल बाहर से नहीं आया था । वो यहीं मौजूद था । लेडीज एण्ड जन्टलमैन, वो रिवॉल्वर, यकीनी तौर पर यहीं से बरामद होगी ।”
“कातिल” - राज बोला - “कत्ल करने के बाद क्या अभी तक उसे अपने पास रखे बैठा होगा ?”
“हो सकता है । कत्ल का तजुर्बा हर किसी को नहीं होता । और नातजुर्बेकार कातिल ऐसी कोई गलती कर सकता है ।”
किसी के चेहरे पर आवश्वासन के भाव नहीं आये ।
“आप लोगों की जानकारी के लिये यहां आसपास के इलाके को रिवॉल्वर की तलाश में इसी घड़ी छाना जा रहा है । रिवॉल्वर मिस्टर सतीश के प्राइवेट बीच के समुद्र में भी फेंकी गयी होगी तो बरामद हो जायेगी ?”
“इतनी दूर जाने की क्या जरूरत है !” - सतीश बोला - “जबकि इस काम को अंजाम देने के लिये तो करीब ही एक बड़ी उम्दा जगह है ।”
“कौन-सी ?”
“पिछवाड़े में एक कुआं है जो कि सौ से ज्यादा साल पुराना है और जो कभी इस्तेमाल नहीं होता । सबसे ज्यादा आसानी से तो रिवॉल्वर वहीं फेंकी जा सकती है । मिस्टर पुलिस आफिसर, मेरी राय में आपको सबसे पहले उस कुएं को खंगालना चाहिये ।”
सब-इंस्पेक्टर सोचने लगा ।
“यकीन जानिये, ऐसा करके आप बहुत ढेर सारी वक्तबर्बादी से बच जायेंगे वर्ना सारी एस्टेट की और मेरे प्राइवेट बीच की तलाशी में तो बहुत ज्यादा वक्त लगेगा और आपके कई आदमियों को जानकारी करनी पड़ेगी । आप देख लीजियेगा, रिवॉल्वर उस कुएं से बरामद होगी ।”
“आप बहुत यकीन से कह रहे हैं ऐसा ?”
“बिकाज दिस स्टैण्ड्स टु रीजन । कम-से-कम अगर मैं कातिल होता तो रिवॉल्वर उस कुएं में ही फेंकता ।”
“आप कातिल हैं ?”
“ओह, माई गॉड ! ओह, नो । नैवर । मैंने तो एक मिसाल दी थी !”
“मैं अभी हाजिर हुआ ।” - सब-इंस्पेक्टकर बोला और लम्बे डग भरता हुआ वहां से बाहर निकल गया ।
“आपकी बात” - राज बोला - “जंच गयी मालूम होती है उसे ।”
सतीश ने बड़े सन्तुष्टिशपूर्ण भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
तभी ज्योति ने अपना चाय का कप खाली किया और ‘एक्सक्यूज मी प्लीज’ बोलकर टेबल पर से उठ गयी ।
किसी ने उससे ये न पूछा कि वो कहां जा रही थी ।
राज ने एक फरमायशी जमहाई ली, फिर वो भी उठ खड़ा हुआ । उसने भी ‘एक्सक्यूज मी’ बोला और लाउन्ज से बाहर की ओर बढ चला ।
आधे रास्ते में उसने एक बार घूमकर पीछे देखा तो पाया डॉली उसे अपलक देख रही थी ।
वो पिछवाड़े में पहुंचा ।
वहां थोड़ा-सा ही भटकने के बाद उसने कुआं तलाश कर लिया ।
कोई पुलिस वाला तब तक वहां नहीं पहुंचा था ।
उसने कुएं के भीतर झांका तो पाया कि कुआं इतना गहरा था कि उसके तलहटी का बस बड़ा अस्पष्ट-सा आभास ही मिलता था जबकि सूरज अभी अपनी पश्चिम की यात्रा की ओर अग्रसर होता आसमान में मौजूद था ।
उसे कबूल करना पड़ा कि कोई चीज हमेशा के लिये गायब कर देने के लिये वो कुआं वाकेई बहुत मुनासिब जगह थी ।
 
वो वापिस लौटा । इस बार इमारत का घेरा काटकर सामने पहुंचने की जगह वो पिछवाड़े से ही, किचन के पहलू से गुजरते रास्ते से भीतर दाखिल हुआ ! किचन में उसे घड़ी कोई नहीं था । उसके साथ जुड़ी पेन्ट्री की खाली थी । पिछवाड़े की सीढियों के नीचे एक छोटा-सा स्टोर था जिसके बन्द दरवाजे के पीछे से उसे हल्की-सी आहट की आवाज सुनायी दी
वो ठिठका । वो कान लगाकर सुनने लगा । सन्नाटा ।
जरूर उसे वहम हुआ था । वो कदम आगे बढाने ही लगा था कि इस बार उसे एक दबी-सी जनाना हंसी सुनायी दी ।
“कौन ही भीतर ?” - वो बन्द दरवाजे से सम्बोधित हुआ ।
खामोशी । उसने आगे बढकर दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो पाया कि वो भीतर से बन्द था । उसने उस पर दस्तक दी और फिर अपना सवाल दोहराया ।
दरवाजा धीरे-से खुला और कोई बीसेक साल के एक सुन्दर युवक ने झिझकते हुए बाहर कदम रखा । राज ने देखा उसके बाल बिखरे हुए थे और कमीज के सामने के बटन खुले हुए थे । फिर उसने यूं जल्दी-जल्दी उन्हें बन्द करना शुरु किया जैसे उसे तभी अहसास हुआ हो कि वो खुले थे ।
राज को वसुन्धरा के पिछली रात के आक्रमणकारी का ख्याल आया ।
“कौन हो तुम ?” - वो सख्ती से बोला ।
“रो... रोमियो !” - युवक घबराया-सा बोला ।
“रोमियो कौन ?”
“केयरटेकर का लड़का हूं ।”
“ऐस्टेट में ही रहते हो ?”
“जी हां । काम में पापा का हाथ बंटाता हूं ।”
“यहां क्या कर रहे हो ?”
“कु... कुछ नहीं ।”
“अन्धेरे स्टोर में अन्दर से कुंडी लगाकर घुसे बैठे हो और कहते हो कि कुछ नहीं !”
“सर, सर । वो... वो...”
“एक तरफ हटो ।”
उसे जबरन परे धकेलकर राज ने स्टोर का दरवाजा पूरा खोला और उसके भीतर झांका ।
भीतर कबूतरी की तरह सहमी रोमियो की ही हमउम्र एक लड़की एक पेटी पर बैठी हुई थी ।
“ओह !” - राज बोला - “तो ये बात है ।”
“सर ।” - युवक गिड़गिड़ाता-सा बोला - “मिस्टर सतीश से न कहियेगा । किसी ने न कहियेगा ।”
“ये कौन है ?”
“माली की लड़की है ।”
“तुम्हारा बाप बेलगाम गया हुआ है न ?”
“जी हां ।”
“उसके पीछे ये गुल खिलाते हो ?”
“सर, माफ कर दीजिये । प्लीज ।”
“मैंशन में एक कत्ल हो गया है । पुलिस आयी हुई है । सबकी जान सांसत में है और तुम यहां रंगरेलियां मना रहे हो !”
“नो, सर । आई मीन यस, सर । आई मीन सारी, सर ।”
“लड़की को खराब करते हो !”
“सर, आई लव हर । शादी बनाना मांगता हूं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“क्रॉस माई हार्ट । एण्ड होप टु डाई ।”
“भाग जाओ ।”
“आप किसी को बोलेंगे तो नहीं, सर !”
“भाग जाओ ।”
“ओह, थैंक्यू, सर । थैंक्यू, सर ।”
वो बाहर को भागा ।
“तुम भी चलो ।” - वो भीतर बैठी लड़की से बोला ।
लड़की वहां से बाहर निकली, भयभीत हिरणी की तरह उसने राज की तरफ देखा और फिर हिरणी की तरह कुलांचें भरती वहां से भाग गयी ।
राज वापिस लाउन्ज की तरफ बढा ।
लाउन्ज में मौजूद हर किसी की निगाहें स्वयंमेव ही उधर उठ गयीं ।
लाउन्ज का नजारा उसने वैसा ही पाया जैसा कि वो उसे छोड़कर गया था । सब-इंस्पेक्टर तब भी वहां नहीं था और सब लोग आपस में बतिया रहे थे । उसे देखकर डॉली ने सोफे पर अपने पहलू की खाली जगह थपथपाई ।
राज जाकर उसके पहलू में बैठ गया ।
“कहां गये थे ?” - वो बोली ।
“हवा खाने ।” - वो बोला - “यहां दम घुट रहा था ।”
“अब ठीक है दम ?”
“हां ।”
“शुक्र है वक्त रहते उठ के चले गये वर्ना... हो जाता काम ।”
“वही तो ।”
तभी पोर्टिको में एक सफेद टयोटा कार आकर रुकी । उसमें से एक फैशन माडल्स जैसा खूबसूरत नौजवान बाहर निकला । वो एक सफारी सूट पहने था और आंखों पर काला चश्मा लगाये था ।
“विकी !” - डॉली के मुंह से निकला ।
“विकी कौन ?” - राज उत्सुक भाव से बोला ।
“कौशल निगम ! ज्योति का हसबेंड ।”
“तुम वाकिफ मालूम होती हो इससे ?”
“मैं क्या, सभी वाकिफ हैं । याद नहीं सुबह ब्रेकफास्ट के दौरान इसको लेकर ज्योति और शशिबाला में कितनी झैं-झैं हुई थी ।”
“ओह ! करता क्या है ये ?”
“कुछ नहीं करता । ज्योति का हसबैंड होना ही उसकी फुल टाइम जॉब है ।”
 
“मेरे को तो इसके लच्छन प्ले ब्वायज जैसे लगते हैं ।”
“प्ले ब्वाय ही है । सच पूछो तो ये ज्योति का कीमती खिलौना है जिसकी मेनटेनेंस में बेचारी का इतना खर्चा होता है कि जितना कमा ले थोड़ा है ।”
“कार तो बड़ी कीमती है ।”
“वो खुद बड़ा कीमती हैं । ऊपर से लाडला भी । ऐसे बच्चे का खिलौना कीमती नहीं होगा तो क्या होगा !”
“ओह !”
कौशल कार से बाहर निकला, बांहें फैलाये भीतर दाखिल हुआ और सब बुलबुलों से गले लग-लग के मिला ।
बुलबुलें किलकारियां मार रही थीं, कौशल से चुहलबाजी कर रही थीं और क्षण भर को बिल्कुल भूल गयी मालूम होती थीं कि वहां एक कत्ल होकर हटा था । पुलिस तफ्तीश की वजह से वहां फैली मनहूसियत को हटाने में उसे आदमी की आमद ने जैसे कोई जादूई असर किया था ।
फिर दो सतीश की तरफ आकर्षित हुआ ।
“विकी, माई ब्वाय ।” - सतीश बांहें फैलाये उसकी तरफ‍ बढता हुआ बोला - “वैलकम ! वैलकम टु माई हम्बल अबोड ।”
उसने करीब आकर विकी से बगलगीर होते हुए उसकी बायीं बांह थामी तो विकी के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे किसी ने उसे गोली मार दी हो । बन्धनमुक्त होने की कोशिश में उसने इतनी जोर से अपनी बांह को झटका दिया कि सतीश का सन्तुलन बिगड़ गया और वो गिरता-गिरता बचा ।
“डोंट टच मी ।” - वो बड़े हिंसकभाव से बोला - “हाथ मत लगाओ ।”
“क... क... क्या ?” - हकबकाया-सा सतीश बड़ी कठिनाई से पाया - “क... क्या... !”
“तुम जानते हो मेरे से हाथापाई बर्दाश्त नहीं होती ।” - फिर जैसे एकाएक वो भड़का था, वैसे ही एकाएक शान्त हो गया । वो जोर से हंसा और फिर सतीश की छाती को टहोकता हुआ बोला - “सारी, बॉस । बहुत थका हुआ हूं । बहुत हलकान हूं । इसलिये माथा गर्म है ।”
“नैवर माइन्ड ।” - सतीश अनमने स्वर में बोला ।
“फीमेल हैंडलिंग के लिये बनी मेरी बॉडी, मुझे अफसोस है कि, तुम्हारी मर्दाना जकड़ बर्दाश्त न कर पायी । बॉस, मेरा ये हाल हुआ, किसी बुलबुल का क्या हाल होता होगा !”
सतीश बेमन से हंसा ।
“अब बोलो” - कौशल ने फिर उसकी छाती को टहोका - “कि तुमने मुझे माफ किया ।”
“माई डियर ब्वाय, माफी वाली कोई बात ही नहीं हुई ।”
“फिर भी बोलो माफ किया ।”
“अच्छा, माफ किया ।”
“गॉड ब्लैस यू, बॉस । नाओ आई एम रिलीव्ड ।”
“बहरहाल आमद का शुक्रिया ।”
“सीधा आगरा से आ रहा हूं । कोई उन्नीस घण्टे की ड्राइव नॉन स्टाप । इतना लम्बा और बोर सफर अकेले करना पड़ा । तौबा बुल गयी !”
“आगरा क्या करने गये थे ?” - शशिबाला ने पूछा ।
“टयोटा की डिलीवरी लेने गया था ।” - वो बड़े गर्व से पोर्टिको में खड़ी अपनी कार की तरफ देखता हुआ बोला ।
“ओह ! एकदम नयी मालूम होती है ।”
“नयी तो नहीं है । है तो सैकेण्ड हैण्ड ही । लेकिन ए-वन कन्डीशन में है । बस जरा एयर कन्डीशनर काम नहीं करता जो तक ठीक करवाना पड़ेगा ।”
“करवा लेना । जल्दी क्या है । इधर तो मौसम वैसे ही सुहावना है ।”
“इधर है । रास्ते में नहीं था । आगरा नर्क । ग्वालियर महानर्क । भोपाल नर्क नर्क नर्क । गर्मी ने बर्बाद कर दिया ।”
“अब ठण्डी हवायें खाना और पिछली कसर भी निकाल लेना ।”
“आपकी तारीफ ?”
राज ने अनुभव किया कि सवाल उसकी बाबत था लेकिन किया सतीश से गया था ।
सतीश ने राज का उससे परिचय करवाया । उसने उसे वहां हुई वारदात की बाबत भी बताया ।
“ओह !” - कौशल संजीदगी से बोला - “ये तो रंग में भंग पड़ने वाली बात हुई ।”
“वहीं तो ।” - सतीश बोला - “पार्टी का मजा मारा गया ।”
जिसके लिये कि - राज ने बड़े वितृष्णापूर्ण भाव से मन-ही-मन सोचा - बेचारी मरने वाली कसूरवार थी ।
“भई, हमारी बेगम नहीं दिखाई दे रहीं ।” - कौशल बोला ।
“अभी तो यहीं थी” - सतीश बोला - “अभी उठकर गयी है । ऊपर अपने कमरे में होगी ।”
“उसका कमरा कहां है ?”
“आओ मैं बताती हूं ।” - आयशा बोली ।
तत्काल कौशल आयशा के साथ हो लिया ।
उसके पीठ फेरते ही सतीश के चेहरे से फर्जी हंसी गायब हो गयी । वो फिर अप्रसन्न दिखाई देने लगा ।
आलोक सतीश के करीब पहुंची और बड़े प्यार से उसका कन्धा थपथपाती हुई - “डोंट माइन्ड हिम, हनी । वहशी है साला । बीवी के लाड का बिगड़ा हुआ है ।”
“मूड खराब कर दिया ।” - सतीश बोला - “कहता है डोंट टच मी । हाथ न लगाओ । जैसे शीशे का बना हुआ हो । जरा-सी ठेस लगने से टूट सकता हो । इतने नखरे तो कोई लड़की नहीं करती ।”
“अब छोड़ो भी । बोला न, पागल है वो ।”
तभी सब-इंस्पेक्टर वहां वापिस लौटा तो उस अप्रिय प्रसंग का पटाक्षेप हुआ । आते ही वो सीधा आलोका के सामने पहुंचा । उसके हाथ में गुलाबी रंग का एक रेशमी रुमाल था जो उसने आलोका की गोद में डाल दिया । तत्काल आलोका यूं चिहकी जैसे वो रुमाल न हो, जीता जागता सांप हो ।
“ये आपका है ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “मुकरने का इरादा हो तो ये ख्याल कर लीजियेगा कि इस पर आपके नाम के प्रथमाक्षर कढे हुए हैं ।”
“इसमें मु... मुकरने की क्या बात है ?” - आलोका फंसे कण्ठ से बोली - “हां, ये रुमाल मेरा है ।”
“आपका है तो आपके पास क्यों नहीं है ?”
“मु... मुझे नहीं मालूम था कि ये मेरे पास नहीं था । आपको कहां से मिला ?”
“वहीं से जहां आपने इसे छोड़ा था ।”
“कहां ?”
“आपको नहीं मालूम ?”
“नहीं ।”
“याद करने की कोशिश कीजिये ।”
“मैं क्या याद करने की कोशिश करूं ! मुझे तो यही मालूम नहीं था कि ये खोया हुआ था ।”
“खोया हुआ था या आप इसे कहीं रख के भूल गयी थीं ।”
“कहां ?”
“मसलन मिस्टर सतीश की कोन्टेसा में ।”
“कोन्टेसा में ?”
“जहां से कि ये मुझे मिला है । ये स्टियरिंग व्हील के नीचे गाड़ी के फर्श पर पड़ा था ।”
 
“वहां कैसे पहुंच गया ?”
“आप बताइये ?”
“म... मैं क्या बताऊं ?”
“आप अभी भी अपने इस बयान पर कायम हैं कि रात को ड्रिंक डिनर की पार्टी खत्म होने के वक्त से लेकर सुबह हाउसकीपर की लाश की बरामदी के वक्त तक आपने यहां से बाहर कदम नहीं रखा था ?”
“हां ।”
“पार्टी रात एक बजे खत्म हुई थी जबकि आप सोने के लिये अपने कमरे में चली गयी थीं । ब्रेकफास्ट टेबल पर आप सुबह नौ बजे पहुंची थीं । इस वक्फे के दौरान आप हर घड़ी अपने कमरे में थीं ?”
“हां ।”
“आज सुबह माली ने मिस्टर सतीश को नयी कोन्टेसा का अगला बम्फर दायीं साइड से पिचका हुआ पाया था । कल शाम को उसने जब जिप्सी को धोया था तो तब बम्फर ठीक था । इसका साफ मतलब ये है कि रात को किसी घड़ी किसी ने वो गाड़ी चलाई थी । गाड़ी में स्टियरिंग के नीचे, ड्राइविंग सीट के सामने आपका रुमाल पड़ा पाया गया है । मैडम, इसका मतलब मैं आपको समझाऊं या आप खुद समझ जायेंगी ?”
आलोका ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“कल रात को” - सब-इंस्पेक्टर अपलक उसे घूरता हुआ बोला - “कोन्टेसा चलाकर कहां गयी थीं आप ?”
“कि... किसी खास जगह नहीं ।” - आलोका बड़ी कठिनाई से कह पायी - “यूं ही जरा ड्राइव के लिये निकल पड़ी थी ।”
“यूं ही ! जरा ड्राइव के लिये ! जिसकी बाबत आप मुझे अब बता रही हैं ।”
“वो-वो मामूली बात थी ।”
“आपने खुद ही फैसला कर लिया कि वो मामूली बात थी ?”
वो खामोश रही । उसने पनाह मांगती निगाहों से सतीश की तरफ देखा ।
“आपने अपने मेजबान की नयी गाड़ी ठोक दी, आपका फर्ज नहीं बनता था कि लौटकर आप मिस्टर सतीश को इस बाबत बतातीं ।”
“आई डोंट माइन्ड ।” - सतीश बोला ।
“वो जुदा मसला है । बात इस वक्त आपकी नहीं, इनकी हो रही है ।”
“मैंने कोई एक्सीडेंट नहीं किया था ।” - आलोका ने आर्तनाद किया - “मुझे तो पता भी नहीं था कि बम्फर पिचक गया था ।”
“आप को ये पता नहीं कि आपसे गाड़ी ठुक गयी थी ?”
“नहीं पता । आप से सुनकर ही मालूम हो रहा है । लेकिन जब जरा-सा बम्फर ही पिचका है तो जाहिर है कि वो किसी मोड़ पर बस कहीं जरा-सी टच ही हुई होगी । इसीलिये मुझे खबर न लगी । खबर लगने लायक ठोकर मैंने मारी होती तो क्या जरा-सा बम्फर ही पिचकता ?”
“आप गयी कहां थी ?”
“कहीं भी नहीं । बस यूं ही जरा ताजा हवा खाने के लिए ड्राइव पर निकल गयी थी । ड्रिंक डिनर जरा हैवी हो गया था, जिसकी वजह से मेरी तबीयत खराब हो रही थी, सिर भारी हो रहा था । ऐसे मौकों पर ताजा हवा लगने से मेरी तबीयत हमेशा सुधर जाती थी इसलिये मैं जीप लेकर ड्राइव पर निकल गयी थी ।”
“बिना किसी को बताये ?”
“हां ।”
“किसी को गाड़ी की जरूरत पड़ सकती थी !”
“गाड़ी की जरूरत सिर्फ हाउसकीपर को थी । पायर पर से पायल को लिवा लाने के लिये । लेकिन मुझे मालूम था कि वो सीडान स्टेशन वैगन लेकर जाने वाली थी । और अभी जिप्सी भी यहां मौजूद थी ।”
“जाने वाली थी ? यानी कि आप उससे पहले ड्राइव पर गयी थीं ?”
“बहुत पहले । तब तो अभी पार्टी जारी थी !”
“कितना अरसा ड्राइव पर रही थीं आप ?”
“यही कोई पन्दरह या बीस मिनट ।”
“खली नहीं किसी को पार्टी से आपकी गैरहाजिरी ?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं । मैं किसी को कुछ बोलकर तो गयी नहीं थी और लेडीज का इतना अरसा तो आम टायलेट में लग जाता है । मेकअप सुधारने में, बाल ठीक करने में, ड्रैस ठीक करने में...”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।” - फिर वो बाकी लोगों की तरफ घूमा और बोला - “कल रात पार्टी के दौरान आप लोगों में से किसी की तवज्जो इस तरफ नहीं गयी थी कि ये आप लोगों के बीच में नहीं थी ?”
“नहीं ही गयी थी ।” - आयशा कठिन स्वर में बोली - “मुझे तो याद नहीं कि आलोका कभी पन्दरह-बीस मिनट के लिये हम लोगों के बीच में से उठकर चली गयी थी । लेकिन ऐसा हुआ हो तो सकता है । ये कहती है तो हुआ ही होगा ।”
“कल सब ड्रिंक्स की वजह से हवाई घोड़ों पर सवार थे” - शशिबाला बोली - “कल खुद की खबर रखना मुहाल था, किसी और की खबर क्या रहती !”
“लेकिन” - सतीश एकाएक बोला - “मुझे याद पड़ रहा है कि आलोका थोड़ी देर के लिये पार्टी छोड़कर गयी थी ।”
“आपने सवाल नहीं किया कि ये कहां जा रही थीं ?”
“नहीं ।”
“इनके लौटने पर भी नहीं पूछा कि ये कहां गयी थीं ?”
“नहीं ।”
“आप भी पार्टी में थे ।” - सब-इंस्पेक्टर राज से सम्बोधित हुआ - “आप क्या कहते हैं ? आपने नोट किया था मैडम का पार्टी छोड़कर जाना और वापिस लौटना ?”
राज कुछ हिचकिचाया, फिर उसने इनकार में सिर हिला दिया ।
“हूं ।” - सब-इंस्पेक्टर फिर आलोका की ओर आकर्षित हुआ - “अब बोलिये गयी कहां थीं आप ?”
“किसी खास जगह नहीं ।” - आलोक नर्वस भाव से बोली - “मैं बस यूं ही मेन रोड पर निकल गयी थी । थोड़ी देर बाद ही मुझे अहसास हुआ था कि मैं ठीक से ड्राइव नहीं कर पा रही थी इसलिये मैं वापिस लौट पड़ी थी । गाड़ी वापिस घुमाने में ही शायद उसका बम्फर किसी चट्टान से टकरा गया था जिसका कि यकीन जानिये तब मुझे अहसास नहीं हुआ था । वापिस आकर मैंने गाड़ी गैरेज में खड़ी की थी और फिर पार्टी में शामिल हो गयी थी । बस, इतनी-सी तो बात थी ।”
“फिर भी आपने इस बाबत मुझे पहले नहीं बताया !”
“इसीलिये नहीं बताया न, क्योंकि ये...”
एकाएक वो बोलते-बोलते चुप हो गयी । सब-इंस्पेक्टर ने नोट किया कि उसकी निगाह उसकी पीठ पीछे कहीं उठी हुई थी ।
“रोशी !” - फिर आलोका के मुंह से निकला और वो सब-इंस्पेक्टर के पीछे उसी क्षण आन खड़े हुए एक व्यक्ति की ओर लपकी ।
रोशन बालपाण्डे ने अपनी खूबसूरत बीवी को अपनी बांहों में भर लिया और फिर आंखें तरेरकर उन लोगों की तरफ देखा जिनकी कि मजाल हुई थी उसकी बीवी को अपसैट करने की ।
***
 
डॉली पिछवाड़े में एक गार्डन चेयर पर बैठी थी जबकि राज यूं ही भटकता-सा उधर पहुंचा ।
उस घड़ी सूरज डूब रहा था और वहां अंधेरा छाने लगा था । नीम अन्धेरे में डॉली के अलावा जो पहली चीज उसे दिखाई दी, वो उसके हाथ में थमा गिलास था ।
“कॉफी है ।” - वो बोला ।
“अरे” - राज हकबकाकर बोला - “मैंने कब कहा कुछ और है ।”
“तुमने नहीं कहा । तुम्हारी सूरत ने कहा ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस । कॉफी पियोगे ?”
राज ने सहमति में सिर हिलाया ।
“रोजमेरी !” - उसने उच्च स्वर में कुक को आवाज लगायी - “साहब के लिये भी कॉफी लाना ।”
“यस, मैडम ।” - किचन का खिड़की में से झांकती रोजमेरी बोली ।
“बैठो ।” - डॉली बोली ।
“शुक्रिया ।” - राज उसके करीब एक अन्य गार्डन चेयर पर बैठ गया और फिर तनिक झिझकता-सा बोला - “बुरा न मानो तो एक बात पूछूं ?”
“पूछो ।”
“कल रात तुम्हारी पायल से मुलाकात हुई थी ?”
“नहीं तो ।”
“पक्की बात ?”
“हां, पक्की बात । मैं ज्योति जैसी नहीं हूं । वैसे भी मेरे पेट में तो कोई मामूली बात हज्म नहीं होती, ये तो बड़ी अहम बात है जो मैंने उस सब-इंस्पेक्टर को फौरन बतायी होती । अपनी मर्जी से, न कि ज्योति की तरह दबाव में आकर ।”
“मुलाकात की तमन्नाई तो बहुत थीं तुम ?”
“उसमें क्या बड़ी बात है ! हम सब ही पायल से मुलाकात के बहुत तमन्नाई थे । यहां तक कि तुम भी ।”
“तुम्हारी मंशा उससे फौरन मिलने की थी, इसीलिये रात को तुम चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थीं और मेरे पुकारने पर लपककर नीचे लाउन्ज में पहुंच गयी थीं और ड्रिंक की तलब का बहाना करने लगी थीं ।”
“बहाना !” - उसकी भवें उठीं ।
“अपनी असल मंशा छुपाने के लिये क्योंकि तुम्हारी उम्मीद के खिलाफ मैं तुम्हारे रास्ते में जो आ गया था ।”
“लेकिन बहाना ?”
“हां, बहाना । तब तुम नशे में नहीं थीं । तब तुम और विस्की पीने की भी तमन्नाई नहीं थीं । बार पर बोतल और गिलास को तुमने महज मुझे दिखाने के लिये अपने काबू में किया था ।”
“मैं कल रात लाउन्ज में थी ?”
“हां । पायल के यहां पहुंच चुकने के बाद किसी वक्त । अब ये न कहना कि तुम्हें नींद में चलने की बीमारी है और तुम्हें ऐसी किसी बात की खबर ही नहीं ।”
“नींद में चलने की बीमारी मुझे नहीं है लेकिन रात तीन बजे के बाद लाउन्ज में अपनी मौजूदगी की सच में ही खबर नहीं मुझे । कल मैं बहुत ज्यादा पी गयी थी इसलिये...”
“बिल्कुल झूठ । हकीकत ये है कि पायल के आगमन की खबर सुनते ही तुमने ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था । उस घड़ी के बाद से तुमने पीने का महज बहाना किया था, पी नहीं थी । तब विस्की का गिलास जरूर हर घड़ी तुम्हारे हाथ में था लेकिन तुमने कभी उसे खाली नहीं किया था, अलबत्ता उसे अपने होंठों तक ले जाकर चुस्की मारने का बहाना तुम बराबर करती रही थीं । एक बार तो तुम बार पर जाकर खुद अपना जाम तैयार करके उसे मुंह तक लगाये बिना वहां वापिस रखकर चली गयी थीं । मैं खुद गवाह हूं तुम्हारी इस हरकत का ।”
“हो सकता है ।” - वो लापरवाही से बोली - “लेकिन बाद में मैंने अपने कमरे में जाकर भी तो पी थी ।”
“तुम अपने साथ बोतल रखती हो ?”
“साथ रखने की क्या जरूरत है ? सतीश का माल यहां हर जगह उपलब्ध है । कहो तो यहीं मंगाऊं ? रोजमेरी ही ले आयेगी ।”
राज ने जोर से इनकार में सिर हिलाया ।
“भई, यहां तो स्काच की नदियां बहती हैं । बाथरूम में शावर खोलो तो विस्की निकलती है, सिंक का नलका खोलो तो विस्की निकलती है ।”
“सब बहाना है तुम्हारा । स्टण्ट है । मेरा दावा है कि कल रात पायल की आमद की घोषणा के बाद तुमने ड्रिंक्स से ऐसा हाथ खींचा था कि दोबारा उसके करीब नहीं फटकी थीं । लाउन्ज में तुमने मुझे शराब में शिकरत करने या दफा हो जाने के लिये कहा ही इसलिये था क्योंकि असल में उस घड़ी तुम मुझे वहां से दफा ही करना चाहती थीं... ताकि मैं तुम्हारी पायल से मुलाकात में विघ्न न बन पाता । अब बोलो पायल से मुलाकात हुई थी तुम्हारी ?”
“मुझे याद नहीं कि कल रात एक बार अपने कमरे में पहुंच जाने के बाद मैं वहां से बाहर निकली थी लाउन्ज में गयी तो मैं हो ही नहीं सकती । मैं तो घोड़े बेचकर सोई थी ।”
“यानी कि मैं झूठ बोल रहा हूं ?”
“तुमने सपना देखा होगा या मुझे नहीं, किसी और को देखा होगा । हम सब एक ही जैसी तो लगती हैं । फिर तुम भी तो नींद से जागे होगे ।”
“जागा तो मैं” - उसके मुंह से निकला - “नींद से ही था ।”
“सो देअर यू आर । ऊंघ में तुमने किसी और को डॉली समझ लिया था ।”
“मैंने तुम्हें नाम लेकर पुकारा था, तुमने जवाब दिया था...”
“मुझे याद नहीं । मुझे कुछ याद नहीं ।”
तभी रोजमेरी वहां पहुंची ।
“लो” - डॉली विषय परिवर्तन की नीयत से बोली - “तुम्हारी कॉफी आ गयी ।”
रोजमेरी ने कॉफी का गिलास राज के सामने टेबल पर रखा ।
“थैंक्यू, रोजमेरी ।” - राज बोला ।
“सर” - रोजमेरी बोली - “जो हाउसकीपर का मर्डर किया, वो पकड़ा जायेंगा न ?”
“जरूर पकड़ा जायेगा । और अपनी करतूत की सख्त सजा पायेगा ।”
“बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ । शी वाज सच ए नाइस वुमन । कैसे कोई उसका मर्डर करना सकता !”
“वो फांसी पर लटकेगा । हाउसकीपर से तुम्हारा मेलजोल कैसा था, रोजमेरी ?”
“ओके था । वो बहुत सीरियस नेचर का था । कभी ज्यास्ती बात करना नहीं मांगता था । खामोश रहता था । कभी कोई पर्सनल बात डिसकस करना नहीं मांगता था ।”
“यानी कि वो अपनी पिछली लाइफ या अपनी फैमिली के बारे में कोई बात नहीं करती थी ?”
“नो । नैवर । मैं एक दो-बार ऐसा सवाल किया, वो जवाब नहीं दिया । सो आई टुक दि हिन्ट । दोबारा नहीं पूछा ।”
“उसकी यहां कोई चिट्ठी-पत्री आती थी ?”
“नो ।”
“वो खुद तो किसी को लिखती होगी ?”
“नैवर । नो लेटर । नो पर्सनल टेलीफोन काल । नो नथिंग । वो बहुत खामोश, बहुत सैल्फकन्टेन्ड होना सकता । ज्यास्ती बात नहीं । मसखरी नहीं । नो नथिंग ।”
“आई सी । बाई दि वे” - राज इस बार तनिक मुस्कराता हुआ बोला - “कल मैं तुम्हारे ब्वाय फ्रेंड से मिला था । बहुत स्मार्ट था । बहुत हैण्डसम था । अलबत्ता थोड़ा कद में मार खा गया था ।”
“मेरा ब्वाय फ्रेड !” - रोजमेरी की भवें उठीं ।
“हां । जो कल रात तुम्हें यहां से लेने आया था । वो बाहर सड़क पर मुझे तुम्हारा इन्तजार करता मिला था ।”
“मेरा ब्वाय फ्रेंड ! वो बोला ऐसा ?”
“हां । ये भी बोला कि जल्दी ही वो तुमने शादी बनाने वाला था ।”
“सर, कोई बंडल मारा । मेरे को तो शादी बनाये नौ साल हो गया ।”
“क्या !”
“मैं तो नौ साल से मैरिड है । दो बाबा लोग भी है ।”
“कमाल है ! कल रात तुम घर कैसे पहुंची थीं ?”
“हाउसकीपर छोड़कर आया । स्टेशन वैगन पर ।”
“तो फिर वो किस फिराक में था जो कहता था कि तुम्हें ले जाने के लिये बाहर मेन रोड पर मौजूद था ?”
“अगर वो रोजमेरी को जानता था” - डॉली बोली - “तो रोजमेरी भी उसे जानती हो सकती है । तुम इसको उसका हुलिया बोलो ।”
राज ने बोला ।
रोजमेरी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“उसकी गाड़ी !” - एकाएक राज बोला - “वो ऐसी थी कि कहीं भी पहचानी जा सकती थी ।”
“कैसा था गाड़ी ?” - रोजमेरी बोली ।
“खटारा फियेट ! सूरत में एकदम कण्डम । कई रंगों में रंगी हुई । ड्राइविंग साइड का पिछला दरवाजा रस्सी से बंधा था...”
“वो तो मारकस रोमानो का गाड़ी है ।”
“मारकस रोमानो । वो कौन है ?”
“छोकरा है ।”
“छोकरा !”
“अभी स्कूल में पढता है ।”
“लेकिन वो जो अपने आपको तुम्हारा ब्वाय फ्रैंड बता रहा था, वो तो उम्र में मेरे से भी बड़ा लगता था ।”
“मालूम नहीं कौन होयेंगा ।”
“क्या पता” - डॉली सस्पेंसभरे स्वर में बोली - “वही पायल का कातिल हो !”
“लेकिन वो था कौन ?” - राज बोला ।
“वो छोकरा - जिसकी कि वो गाड़ी थी, मारकस रोमानो - उसे जानता हो सकता है ।”
“बशर्ते कि उसकी गाड़ी उसने चुराई न हो ।”
“ऐसी गाड़ी कौन चुरायेगा जो दमकल की तरह सारे आइलैंड पर पहचानी जा सकती हो ।”
“ये भी ठीक है । रोजमेरी, ये मारकस रोमानो पाया कहां जाता है ?”
“ईस्टएण्ड पर । अभी उधर किसी बार में बैठ बीयर पीता होयेंगा ।”
“ईस्टएण्ड ।”
***
 
राज और डॉली सतीश की जीप पर सवार ईस्टएण्ड की ओर जा रहे थे । जीप डॉली चला रही थी और उसी ने वो सतीश से हासिल की थी । ईस्टएण्ड राज के साथ चलने की पेशकश भी उसी ने की थी जो कि राज ने तत्काल स्वीकार कर ली थी, क्योंकि एक तो वो इलाके से वाकिफ नहीं था और दूसरे इतना हसीन साथ छोड़कर अकेले एक अनजानी जगह पर टक्करें मारने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
जीप सतीश की एस्टेट से निकलकर मेन रोड पर पहुंची तो एकाएक उसके सामने एक टैक्सी आ खड़ी हुई जिसमें से गले से कैमरा लटकाये एक युवक बाहर निकला और हाथ हिलाता जीप की ओर लपका ।
“तुम डॉली टर्नर हो ।” - वो जीप की ड्राइविंग साइड में पहुंचकर तनिक हांफता हुआ बोला - “मुझे अपनी एक तस्वीर खींच लेने दो ।” - उसकी कैमरे की फ्लैश चमकी - “थैंक्यू ।”
“ये” - माथुर भड़का - “ये क्या बद्तमीजी है ?”
“आपकी तारीफ ?” - युवक मुस्कराता हुआ बोला ।
“ये मिस्टर राज माथुर हैं ।” - डॉली बोली - “वकील हैं ।”
“जरूर, पायल के वकील होंगे । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के यहां से । फिर तो” - फ्लैश फिर चमकी - “एक तस्वीर आप दोनों को भी...”
“वाट नानसेंस !”
डॉली ने राज का हाथ दबाया और युवक से बोली - “तुम कौन हो ? मुझे कैसे जानते हो ?”
“मैं प्रैस रिपोर्टर हूं । यहां हुए कत्ल की कवरेज के लिये खास बम्बई से आया हूं ।”
“एक मामूली हाउसकीपर के कत्ल...” - राज ने कहना चाहा ।
“जिसका कत्ल हुआ है वो मामूली है” - युवक बोला - “लेकिन जिसके यहां कत्ल हुआ है, वो मामूली नहीं, इसलिये... एक तस्वीर और ।”
“मुझे कैसे जानते हो ?” - डॉली ने फिर सवाल किया ।
“बाम्बे !” - वो बत्तीसी निकालता बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “बोरीबन्दर ! सेलर्स क्लब...”
डॉली ने एक झटके से जीप आगे बढा दी ।
रिपोर्टर पीछे चिल्लाता ही रह गया ।
कुछ क्षण सफर खामेशी से कटा ।
“ये, सतीश” - एकाएक राज बोला - “बादशाह सतीश, तुम लोगों का होस्ट, वाकेई कोई काम-काज नहीं करता ?”
“हनी, ही इज फिल्दी रिच ।” - डॉली बोली ।
“फिल्दी रिच भी कामकाज करते हैं । अम्बानी करता है, टाटा करता है, बिरला करता है, डालमिया करता है, मोदी करता है...”
“सतीश नहीं करता । वो लोग नादान हैं । दौलत के दीवाने हैं । सतीश ऐसा नहीं है । वो कहते हैं न कि अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । सतीश अजगर है । पंछी है ।”
“बिना कुछ डाले निकालते रहने से तो कुबेर का खजाना खाली हो जाता है ।”
“जब होगा, तब देखा जायेगा । अभी तो ऐसा कोई अन्देशा नहीं । अब जब अन्देशा होगा तो सबसे पहले वो यहां की शाहाना पार्टिया ही बन्द करेगा ।”
“ये भी ठीक है । वो देश-विदेश विचरने वाला आदमी है, हो सकता है उसका कोई ऐसा कारोबार हो जिसकी तुम्हें खबर न हो ।”
“अरे, भाई, कारोबार के लिये उसके पास वक्त कहां है ! मौजमेला, तफरीह, पार्टीबाजी, सैर-सपाटा, उसकी फुल टाइम जॉब हैं । उसे तो इन्हीं कामों के लिये टाइम का तोड़ा रहता है । इस मामले में उसे भगवान से खास शिकायत है कि दिन सिर्फ चौबीस घण्टे का बनाया, हफ्ता सिर्फ सात दिनों का बनाया, महीना सिर्फ चार हफ्तों का बनाया, साल सिर्फ बारह महीने का बनाया ।”
“ओह ! उसकी फैमिली के बारे में बताओ कुछ ?”
“नो फैमिली । कभी शादी नहीं की ।”
“तुममें से किसी पर भी दिल नहीं आया उसका ? कभी अपनी किसी बुलबुल को शादी के लिये प्रोपोज नहीं किया उसने ?”
“नहीं ।”
“यानी कि उसकी स्पैशल बुलबुल कभी कोई नहीं थी ?”
“न । सतीश सबको एक बराबर चाहता था । उसकी कभी किसी एक में कोई खास रुचि नहीं बनी थी ।”
“पायल में भी नहीं ?”
“नहीं, पायल में भी नहीं ।”
“या सभी को अपना माल मानता होगा ! किंग सोलोमन समझता होगा अपने आपको ?”
“ऐसी कोई बात नहीं । होती तो दस साल तक उसकी बुलबुलों का उसके लिये परम आदर-भाव न बना रहता । तो सतीश के एक इशारे पर दौड़ी चली आना वो अपना फर्ज न समझती होतीं । तो गैरहाजिरी का सिलसिला एक-एक दो-दो करके शुरु होता और एक दिन ऐसा आता कि सतीश अपनी एस्टेट में अकेला बैठा स्टिल लाइफ की तस्वीरें खींच रहा होता ।”
“यू आर-राइट देयर । तुम्हें उसके शस्त्रागार की खबर थी ?”
“हां । थी तो सही ।”
“तुम्हें ये नहीं सूझा था कि कातिल ने कत्ल करने के लिये हथियार वहां से मुहैया किया हो सकता था ?”
“सूझा तो था ?”
“तो बोली क्यों नहीं ?”
“मैं क्यों बोलती ? जब सतीश नहीं बोल रहा था तो मैं क्यों बोलती ? ये हथियार वाली बात पहले उसे सूझनी चाहिये थी या किसी और को ?”
“बात तो दमदार है तुम्हारी ।”
“मैंने सोचा था कि या तो वो अपने हथियार पहले ही चौकस कर चुका होगा या फिर उसके उस बाबत खामोश रहने की कोई वजह होगी । मेरा फर्ज अपने इतने मेहरबान मेजबान की मर्जी के मुताबिक चलना था या पुलिस की मर्जी के मुताबिक ?”
“केस की तफ्तीश में पुलिस के लिये ये बात मददगार साबित हो सकती थी ।”
“अब हो ले साबित मददगार ये बात । अब तो ये बात पुलिस जानती है । ये इतनी ही अहम बात है तो पकड़ क्यों नहीं लेती पुलिस कातिल को ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऐसी बातों से तफ्तीशें नहीं रुकतीं । ऐसी बात की अहमियत तब हो सकती थी जब कि हथियार का मालिक कहे कि कत्ल उसने नहीं किया था और पुलिस की जिद हो कि कत्ल उसी के हथियार से हुआ था इसलिये वो मालिक का कारनामा था ।”
“सतीश हथियार का मालिक है । वो कातिल हो सकता है ?”
“सतीश मक्खी नहीं मार सकता । मुझे पूरा यकीन है कि वो भरी रिवॉल्वर को हाथ में थामने-भर से बेहोश हो जायेगा ।”
“फिर भी इतने हथियार रखता है !”
 
“वो हथियार स्टेटस सिम्बल के तौर पर यहां मौजूद हैं और लायब्रेरी की सजावट का हिस्सा हैं । लायब्रेरी में हजारों की तादाद में किताबें हैं । तुम क्या समझते हो कि सतीश ने उन्हें पढने के लिये रखा हुआ है ? हरगिज भी नहीं । वो वहां महज सजावट के लिये मौजूद हैं, मेहमानों को प्रभावित करने के लिये मौजूद हैं । सतीश ने तो कभी कोई एक किताब खोलकर भी नहीं देखी होगी । उसे तो किताबों के सब्जैक्ट तक ही नहीं मालूम होंगे । मिस्टर, लायब्रेरी की किताबों वाला दर्जा ही वहां के हथियारों का है । समझे ?”
“समझा ।”
“सतीश रंगीला राजा है । उसका शगल, उसका कारोबार, जिन्दगी की बाबत सोचना है, मौत की बाबत नहीं । फिर जिस आदमी की रात एक बजे ऐसी हालत थी कि उसके बुलबुलें उसे उठाकर ऊपर उसके बैडरूम में छोड़कर आयी थीं वो क्या दो ही घण्टे बाद चाक-चौबन्द होकर कत्ल करने की तैयारी में अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था ?”
“शायद वो भी कल रात टुन्न होने का बहाना ही कर रहा हो । ऐन वैसे ही जैसे... जैसे...”
“मैं कर रही थी ?”
“हां ।”
“नानसेंस । सतीश और कातिल ! नामुमकिन । और कातिल भी किसका ? अपनी हाउसकीपर का ! कतई नामुमकिन ।”
“इस बात से काफी लोगों को इत्तफाक मालूम होता है कि पायल के धोखे में उसका कत्ल हो गया था ।”
“दैट इज अटर नानसेंस । अगर सतीश ने पायल का कत्ल करना होता तो क्या वो हमें पायल के आगमन की खबर करता ? वो पायल की फोन काल की बाबत खामोश रहता और रात को अपनी हाउसकीपर को उसे लिवा लाने के लिये भेजने की जगह चुपचाप खुद पायर पर जाता और उसका कत्ल करके उसकी लाश वहीं समुद्र के हवाले कर आता । उसे घर बुलाकर उसका कत्ल करने की हिमाकत भला वो क्यों करता ?”
“यानी कि सतीश कातिल नहीं हो सकता ?”
“मेरी निगाह में तो नहीं हो सकता ।”
“तो फिर कौन है कातिल ?”
“मुझे नहीं पता । मुझे नहीं पता कि कातिल कौन है लेकिन मुझे ये पता है कातिल कौन नहीं है ?”
“कौन नहीं है ।”
“मैं ।”
“ओह ! तुम नहीं हो, मैं नहीं हूं, सतीश भी नहीं है तो फिर बाकी की पांच बुलबुलों में से कोई ? नौकरों-चाकरों में से कोई ? या वो आदमी जो अपने आपको रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड बता रहा था ?”
“तुम दो कौवों को भूल रहे हो ।”
“कौन से कौवे ? ओह ! दो बुलबुलों के हसबैंड ! कौशल निगम और रोशन बालपाण्डे ?”
“हां ।”
“लेकिन वो तो अभी यहां पहुंचे हैं ?”
“पब्लिक के सामने ।” - वो ताकीद करने के अन्दाज से बोली - “पब्लिक के सामने अभी यहां पहुंचे हैं । हकीकतन आइलैंड पर वो पता नहीं कब से विचर रहे हों । हकीकतन कौन जानता है कि आलोका का हसबैंड उसी गाड़ी के किसी और डिब्बे में सवार नहीं था जिसमें कि उसने आलोका को सवार कराकर पूना से रुख्सत किया था ! हकीकतन कौन जानता है कि विकी सच में ही आगरा से उन्नीस घण्टे की नान स्टॉप कार ड्राइव के बाद यहां पहुंचा है !”
“वो कार, वो टयोटा, जो वो कहता है कि उसने आगरा से पिक की थी...”
“कार यहां है, कार का मालिक यहां है, इसका ये तो मतलब जरूरी नहीं कि कार को मालिक ही ड्राइव करके यहां लाया था ? उन्नीस घण्टों का सफर प्लेन से दो घण्टों में भी हो सकता है और कार कोई भी ड्राइव करके आगरे से यहां ला सकता है ।”
“बड़ा खुराफाती दिमाग पाया है तुमने ।”
“ये अगर तुमने मेरी तारीफ की है तो शुक्रिया ।”
“इस घड़ी क्योंकि तुम्हारा दिमाग सही गियर में है और सही रफ्तार पकड़े हुए है इसलिये एक बात और बताओ ।”
“पूछो ।”
“तुमने नोट किया था कि सब-इंस्पेक्टर के सामने हमारा मेजबान मर्डर वैपन की बरामदी की मामले में पिछवाड़े के कुएं पर कुछ ज्यादा ही जोर दे रहा था ?”
डॉली ने एक क्षण के लिये सड़क पर से निगाह हटाकर घूरकर उसे देखा ।
“जोर क्या दे रहा था, यकीनी तौर से कह रहा था कि रिवॉल्वर वहीं से बरामद होगी । ये तक कहा उसने कि अगर वो कातिल होता तो वो रिवॉल्वर उस कुएं में ही फेंकता ।”
“क्या पता वो वहीं से बरामद हो ?”
“नहीं हुई ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“खुद सब-इंस्पेक्टर ने बताया था । उत्सुकतावश मैंने खास उससे पूछा था ।”
“ओह ! सतीश को तो इससे बड़ी मायूसी हुई होगी !”
“नाटक किया तो था उसने मायूसी होने का ।”
“नाटक !”
“एक राज की बात बताऊं ?”
“क्या ?”
“मुझे लगता है कि सतीश को रिवॉल्वर से कुछ लेना-देना नहीं था । उसका वहां से बरामद होना या न होना उसके लिये बेमानी थी । वो तो महज इतना चाहता था कि पुलिस पहले - आई रिपीट, पहले - कुएं की तलाशी ले ले ।”
“क्यों ? क्यों चाहता था ?”
“क्योंकि... एक बात बताओ । कोई खास चीज छुपाने के लिये बेहतरीन जगह कौन-सी होती है ?”
“वहीं जहां कोई न झांकने वाला हो ।”
“एक जगह इससे भी बेहतर होती है ।”
“कौन-सी ?”
“वो जहां पर कोई झांक चुका हो ।”
“ओह माई गॉड, तुम ये कहना चाहते हो कि उस कुएं में सतीश कुछ छुपाना चाहता है ।”
“उसका ऐसा कोई इरादा हो सकता है । जिस जगह की भरपूर तलाशी एक बार हो चुकी हो, उसकी दोबारा तलाशी भला क्यों होगी ? इस लिहाज से कोई चीज छुपाने के लिये कुआं तो सबसे सुरक्षित जगह हुआ ।”
“इसीलिये वो बार-बार कुएं की दुहाई दे रहा था क्योंकि वो चाहता था कि उसकी तलाशी पहले हो जाये ?”
 
“हां ।”
“लेकिन कुआं खुले में है और उस मैंशन की हर खिड़की में से देखा जा सकता है ।”
“वो हर किसी के सो जाने का इन्तजार कर सकता है । देख लेना, वो तभी कुएं की तरफ अपना कदम बढायेगा जबकि उसे यकीन आ चुका होगा कि इमारत में कर कोई सो चुका था ।”
“लेकिन बढायेगा जरूर कदम !”
“उम्मीद तो है । वर्ना कुआं-कुआं भजने की उसे क्या जरूरत थी ?”
“ओह ! हमें... हमें पुलिस की खबर करनी चाहिये ।”
“हमें ?”
“मेरा मतलब है तुम्हें ?”
“मेरा अन्दाजा गलत निकला तो जानती हो क्या होगा ?”
“क्या होगा ?”
“पुलिस तो फटकार लगायेगी ही कि मैंने खामखाह उनका वक्त बरबाद किया, तुम्हारा बुलबुला सतीश भी मुझे कान पकड़कर अपनी एस्टेट से बाहर निकाल देगा ।”
“ओह !”
वो कुछ क्षण सोचती रही और फिर उत्साहपूर्ण स्वर में बोली - “सतीश की तरह हम भी हर किसी के सो जाने का इन्तजार कर सकते हैं । हम ऐसा जाहिर करेंगे कि हम सो चुके हैं लेकिन हकीकतन हम कुएं की - और जाहिर है कि सतीश की - ताक में रहने की कोई जुगत भिड़ायेंगे ।”
“तुमने फिर ‘हम’ कहा ?”
“हनी, रात को मैं तुम्हारे साथ । जैसे इस घड़ी मैं तुम्हारे साथ । बशर्ते कि तुम्हें एतराज न हो ।”
“लो । मुझे भला क्यों एतराज होगा ? नेकी और पूछ-पूछ ।”
“गुड । आई एम ग्लैड । ईस्टएण्ड आ गया है ।”
राज ने सिर उठाया तो स्वयं को रोशनियों से नहाये एक बाजार के दहाने पर पाया । बाजार में खूब भीड़ थी और मेले का सा माहौल था ।
“ये है ईस्टएण्ड ?” - वो बोला ।
“का बाजार ।” - डॉली बोली - “जो कि आसपास के रिहायशी इलाके के बीच में है । सारा इलाका सामूहिक तौर पर ईस्टएण्ड कहलाता है ।”
“बड़ी रौनक है यहां ।”
“त्यौहार के दिन हैं न आजकल ।”
“जीप तो यहां कहीं छोड़ देनी चाहिये ।”
डॉली ने सहमति में सिर हिलाया और फिर जीप को बाजू में लगाकर रोका । फिर जीप छोड़कर वे बाजार में आगे बढे ।
“यहां तो कई बार हैं ।” - राज एकाएक बोला ।
“सारे गोवा में ऐसा ही है । गोवानी काजू की शराब फेनी और बीयर के ठीये तो यहां टी-स्टालों की तरह हैं ।”
“वो तो खुशी से हों लेकिन मैं तो समझा था कि यहां एक ही बार होगा जिसमें बैठा मारकस रोमानो नाम का झांकी फियेट वाला वो छोकरा हमें आते ही मिल जायेगा ।”
वो हंसी ।
छोकरा उन्हें उस चौथे बार में मिला जो कि ‘पैड्रोज’ के नाम से जाना जाता था । राज से मिलकर उसने खुशी प्रकट की । डॉली से मिलकर उसने ज्यादा खुशी प्रकट की ।
“रोमानो !” - राज मतलब की बात पर आता हुआ बोला - “तुम्हारे पास एक फियेट कार है । बहुत पुरानी ! रंग-बिरंगी ! हैण्ड पेंटिड !”
“हां ।” - वो गर्व से बोला - “है । अपुन भाड़े पर देता है । मांगता है ? बहुत कम भाड़ा । ओनली टू सेवेन्टी फाइव पर किलोमीटर । वन थाउजेंड डाउन । घट-बढ बाद में । मांगता है ?”
“तुमने कल किसी को गाड़ी भाडे़ पर उठाई थी ?”
“हां । पापुलर गाड़ी है अपना । चीप एण्ड पापुलर । नई एस्टीम का माफिक दौड़ता है । मांगता है ?”
“किसको दी थी ?”
“क्यों जानना मांगता है ?”
“वो क्या है कि...”
“रोमानो, माई डियर ।” - डॉली अपने स्वर में मिश्री घोलती हुई बोली - “मैं जानना मांगता है ।”
“दैट्स डिफ्रेंट ।” - वो निहाल होता हुआ बोला - “मैडम को तो अपुन मैडम जो पूछेगा बतायेगा ।”
 
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