Naukar Se Chudai नौकर से चुदाई - SexBaba
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Naukar Se Chudai नौकर से चुदाई

hotaks444

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Nov 15, 2016
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मेरा नाम सीमा गुप्ता है. मैं अभी 35 साल की हूँ. मैं देखने मे
ठीक ठाक सुंदर हू. गोरा रंग. बड़ा बदन. आकर्षक चेहरा. बड़े
बड़े तने हुए उरोज. मांसल जांघे. उभरे हुए कूल्हे. यानी कि मर्द
को प्रिय लगाने वाली हर चीज़ मेरे पास हे. लेकिन मैं विधवा हूँ.
मेरे पास मर्द ही नही है. मेरे पति का देहांत हुए सात साल हुए
हैं. मेरा एक लड़का है.उसके जन्म के समय ही मेरे पति चल बसे
थे.अब मुन्ने की उमर सात साल की है. पिछले सात साल से मैं
विधवा का जीवन गुज़ार रही हू. मेरा घर का बड़ा सा मकान है.
उसमे मेरे अलावा किरायेदार भी रहते हैं. मैं स्कूल मे टीचर
हू..ये मेरे जीवन की सच्ची कहानी है. आप से कुछ नही
छुपाउंगी. दर-असल सेक्स को लेकर मेरी हालत खराब थी. मेने पति
के गुजरने के बाद किसी मर्द से संभोग नही किया. सात साल हो गये.
दिन तो गुजर जाता है पर रात को बड़ी बैचेनी रहती है. मैं ठीक
से सो भी नही पाती हू मन भटकता रहता है. रात को अपनी
जांघों के बीच तकिया लगा कर रगड़ती हूँ. कई बार कल्पना मे
किसी मर्द को बसा कर उससे संभोग करती हूँ...और तकिया रगड़ती
हूँ. मन मे सदा यही होता रहता है कि कोई मर्द मुझे अपनी बाहों
मे ले कर पीस डाले.मुझे चूमे...मुझे सहलाए.मुझे दबाए.मेरे
साथ नाना प्रकार की क्रियाए करे. पर ऐसा कोई मोका नही है.
मेर विधवा होने की वजह से पति का प्यार मेरी किस्मत मे नही
है..यू तो मोहल्ले के बहुत से मर्द मेरे पीछे पड़े रहते है पर
मेरा मन किसी पर नही आता. मैं डरती हू. एक तो समाज से कि
दूसरों को मालूम पड़ेगा तो लोग क्या कहेंगे ? पास पड़ोस
है...रिश्तेदार है..स्कूल है..दूसरे खुद से कि अगर कही बच्चा
ठहर गया तो क्या करूँगी ? इसलिए मैं खुद ही तड़पति रहती हू.
मुझे तो शर्म भी बहुत आती है कि अब किसी से क्या कहूँ कि मेरे पास
मर्द नही है आओ मुझे चोदो...आप से मन की बात कही है. मेरे दिन
इन्ही परिस्थितियों मे निकल रहे थे..इन्ही मनोदशा के बीच एक दिन
मेरे संबंध मेरे नौकर से बन गये..हरिया, मेरा नौकर.उम्र, 30-35
की है. गाव का है. पहाड़ी ताकतवर कसरती देह फॉलदी बदन
थोड़ा काला रंग बड़ी बड़ी मूँछे यूँ रहता साफ सुथरा है. पिछले
दो साल से मेरे पास नौकर है. मैने उसे अपने ही घर मे एक कमरा
दे रखा है. इस प्रकार वो हमारे साथ ही रहता है. उसकी बीबी
गाँव मे रहती है. बच्चे है-पाँच ! साल मे एक दो बार छुट्टी
लेकर गाँव जाता है...बाकी समय हमारे साथ ही रहता है.मैं
स्कूल जाती हू अतः उसके रहने से मुझे बड़ी सहूलियत रहती है.
वह बीड़ी बहुत पीता है. एक तरह से वह हमारे घर का सदस्य ही
है..एक औरत की द्रस्टी से देखूं तो वह पूरा मर्द है और उसमे वो
सब खूबीयाँ है जो एक मर्द मे होना चाहिए...बस ज़रा काला है
और बीड़ी बहुत पीता है..यह कहानी हरिया और मेरे संबंध की
है..उस दिन. शाम का समय था. मुन्ना घर से बाहर खेलने गया
था. मैं और हरिया घर मे अकेले थे. मैं गिर पड़ी...गिरी तो ज़ोर से
चीखी...घबरा गयी. हरिया दौड़ कर आया..और मुझे गोद मे उठा
कर पलंग पर लिटाया..बीबीजी..कहा लगी.डॉक्टर को बुलाओ
?नही..नही.डॉक्टर की क्या ज़रूरत है..वैसे ही ठीक हो
जाओगी.तब.आयोडेक्सा लगा दू.
 
वह दौड़ कर गया और आयोडेक्स की शीशी ले आया..कहा लगी है
बताओ..बीबीजी. उसका व्यवहार देख मैने कह दिया.यहाँ..पीछे लगी
है..पीठ पर.. वह मुझे उल्टा कर के लिटा दिया. और मेरी पीठ पर
अपने हाथ लगा कर देखने लगा. सच कहूँ तो उसकी हरकतें
मुझे अच्छी लग रही थी. आज दो साल से वो मेरे साथ है कभी उसने
मेरे साथ कोई ग़लत हरकत नही की है. आज इस तरह उसका मुझे
पहले गोद मे उठाना फिर अभी उलट कर पीठ सहलाना..वो तो मेरी
चोट देखने के बहाने मेरी पीठ को सहलाने ही लग गया था. लेकिन
उसका हाथ,उसका स्पर्श मुझे अच्छा ही लग रहा था. इसलिए मैं
चुप पड़ी रही. उसने पहले तो बैठ कर मेरी साड़ी पर से पीठ को
सहलाया-फिर कमर पर मलम लगाया. मलम लगाते लगाते
बोला बीबीजी तनिक साड़ी ढीली कर लो..नीचे तक लगा देता हू.साड़ी
खराब हो जाएगी.मुझे तो दर्द हो रहा था और उसका स्पर्श अच्छा
भी लग रहा था मेने तुनकते हुए हाथ नीचे ले जा कर पेटीकोट
का नाडा खीच दिया..और साड़ी पेटीकोट ढीला कर दिया..मैं तो उल्टी
पड़ी थी हरिया ने जब काँपते हाथों से मेरे कपड़े नीचे करके
मेरे चूतर पहली बार देखे तो जनाब की सीटी निकल गयी...मुँह से
निकला.बीबीजी..आप तो बहुत गोरी हैं.आप के जैसा तो हमारे गाँव
मे एक भी नही है. अपनी तारीफ़ सुन मैं शरमा गयी. वो तो अच्छा
था कि मैं औंधी पड़ी थी..अकेले बंद कमरे मे जवान मालकिन के
साथ उस की भी हालत खराब थी.करीब छः महीने से वह अपनी
बीबी के पास नही गया था. मैरे गोरे गोरे चूतर देख कर उसकी
धड़कने बढ़ गयी,हाथ काँपने लगा. पर मर्द हो कर इतना अच्छा
मौका कैसे छोड़ देता ?.मेरे गोरे गोरे मांसल नितंबपर दवाई लगाने
के बहाने सहलाने लगा. दवा कम लगाई हाथ ज़्यादा फेरा..जब
सहलाते सहलाते थोड़ी देर हो गयी और उसने देखा कि मैं विरोध
नही कर रही हू तो आगे बढ़ गया.खुलेपन से मेरे दोनो कुल्हों पर
हाथ चलाने लगा. पहले एक..फिर दूसरा..जहाँ चॉंट नही लगी
थी वहाँ भी..फिर दोनो कुल्हों के बीच की गहरी घाटी भी..जब उसने
मैरे दोनो कुल्हों को हाथ से चोडा करके बीच की जगह देखी तो मैं
तो साँस लेना ही भूल गयी. उसने चौड़ा कर के मेरे गुदा द्वार और
पीछे की ओर से मेरी चूत तक को देख लिया था. अब आपको क्या बताउ उस
के हाथ के स्पर्श से ही मैं कामुक हो उठी थी. और मेरी चूत की
जगह गीली गीली हो चली थी. मेरी चूत पर काफ़ी बड़े बड़े बाल
थे..मेने अपनी झांतें कई महीनों से नही बनाई थी. मुझ विधवा
का था भी कौन..जिस के लिए मैं अपनी चूत को सज़ा सवार कर
रखती ? कमरे मे शाम का ढूंधालका तो था पर अभी अंधेरा नही
हुआ था. मैं एक अनोखे दौर से गुजर रही थी..मेरा नौकर सहला रहा
था और मैं पड़ी पड़ी सहलवा रही थी. मेरा नौकर मेरे गुप्ताँग को
पीछे से देख रहा था और मैं पड़ी पड़ी दिखा रही थी. यहाँ तक
तो था पर जब उसने जानबूझ कर या अंजाने में मेरे गुदा द्वार को
अपनी उंगली से टच किया तो मैं उचक पड़ी. शरीर मे जैसे करेंट
लगा हो..एक दम से उसका हाथ पकड़ के हटा दिया और कह
उठी हरिया ये..क्या..करते..हो..साथ ही हाथ झटक कर उठ बैठी. मैं
घबरा गयी थी और मुझ से ज़्यादा वो घबराया हुआ था. मैं उसका
इरादा नेक ना समझ कर पलंग से उतर पड़ी. परंतु मेरा वो उठ
कर खड़े होना गजब हो गया. क्यों कि मेरी साड़ी तो खुली हुई थी.
खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनो ढलककर पाओं मे जा गिरे...

और मैं कमर के नीचे नंगी हो गयी. इस प्रकार अपने नौकर के आगे
नंगे होने मे मेरी शरम का पारावार ना था. मेरी तो साँस ही अटक
गयी. मैं घबराहट में वही ज़मीन पर बैठ गयी.. तब उसने मुझे
एक बार फिर गोद मे उठा कर पलंग पर डाल दिया. और अगले पल जो
किया उस की तो मैने कल्पना तक नही की थी-कि आज मेरे साथ ऐसा
भी होगा. उसने मुझे पलंग पर पटका और खुद मेरे उपर चढ़ता
चला गया. एक पल को मैं नीचे थी वो उपर..दूसरे पल मेरी टांगे
उठी हुई थी..तीसरे पल वो मेरी टाँगों के बीच था..चोथे पल
उसने अपनी धोती की एक ओर से अपना लंड बाहर कर लिया
था..पाँचवे पल उसने हाथ मे पकड़ कर अपना लंड मेरी चूत से
अड़ा दिया था..और...छठे पल...तो एक मोटी सी..गरम सी..कड़क
सी.चीज़ मेरे अंदर थी. और...बस.फिर क्या था.कमरे में शाम के
समय नौकर मालकिन...औरत और मर्द बन गये थे. मेरी तो साँस बंद
हो गयी थी. शरीर ऐथ गया था. धड़कने रुक गयी थी. आँखे
पथरा गयी थी. जीभ सूख गयी थी. मैं अपने होश मे नही थी कि
मेरे साथ क्या हो रहा है. जो कर रहा था वो वह कर रहा था. मैं
तो बस चुप पड़ी थी. ना मैने कोई सहयोग दिया.ना मैने कोई विरोध
किया. बस...जो उसने किया वो करवा लिया. सात साल बाद..घर के
नौकर से...पता नही क्या हुआ मैं तो कोई विरोध ही ना कर सकी.
बस.उसने घुसेड़ा...और चॉड दिया...मेरे मुँह से उफ़ भी ना निकली. मैं
पड़ी रही टाँगों को उठायेवरवो धक्के पे धक्के मारता गया...पता
नही कितनी देर.पता नही कितनी देर..उसका मोटा सा लंड मेरी चूत को
रौंदता रहा. रगड़ता रहा मैं बेहोश सी पड़ी करवाती
रही.फिर...अंत आया..वो मेरे अंदर ढेर सा पानी छोड़ दिया...मैं
अपने नौकर के वीर्य से तरबतर हो उठी.. जब वह अलग हुआ तो मैं
काँपति हुई उठी और नंगी ही बाथरूम चली गयी.
 
मेरे मन मे यह
बोध था कि यह मेने क्या कर डाला..एक विधवा हो कर चुदवा लिया..वो
भी एक नौकर से.अपने नौकर से..हाय यह क्या हो गया.यह ग़लत
है...यह नही होना चाहिए था. अब क्या होगा ???????.मैं बाथरूम
गयी. वहाँ बैठा कर मूति. मुझे बड़ी ज़ोर की पिशाब लगी थी.
मेने झुक कर देखा..मेरी झातें उसके वीर्य से चिपचिपा रही थी.
मेने सब पानी से साफ किया. इतने मे और पिशाब आ गयी. और मूति.
फिर टावल लपेट कर बाहर निकली तो सामने हरिया खड़ा था.मुझ
से तो नज़र भी ना मिलाई गई.और मैं बगल से निकल के अपने कमरे
मे चली गयी..

(दूसरी बार ).उस शाम मैं बाथरूम से निकल कर बिस्तर पर जा
गिरी. लेटते ही मुझे खुमारी की गहरी नींद आई.करीब सात साल
बाद मैने किसी मर्द का लंड लिया था. चुदाई अंजाने में हुई
थी.बेमन से हुई थी,फिर भी चुदाई तो चुदाई थी.मैं तो ऐसी
पड़ी कि मुन्ना ने ही आ कर जगाया..रात खाने की मेज पर मैं हरिया
से आखे नही मिला पा रही थी.बड़ी मुश्किल से मैने खाना
खाया...बार बार दिल में यही ख्याल आता कि मैने यह क्या कर
डाला-अपने नौकर से चुदवा लिया..विधवा होकर..कैसा पाप कर
डाला..रात मे खाने के बाद भी हरिया से कुछ नही बोली.बस
चुपचाप मुन्ना के साथ जा कर अपने कमरे में सो गयी. सो तो
गयी...पर मेरी आखों में नींद ना थी.मैं दो भागों में बँट गयी
थी-दिल और दिमाग़. दिल आज की घटना को अच्छा कह रहा था.और
दिमाग़ बुरा. मेरा दिल कहता था मैं विधवा का जीवन जी रही
थी.अगर भगवान ने मेरी सुनकर एक लंड का इंतज़ाम कर दिया तो
क्या खराबी है.पर मेरा दिमाग़ इसे पाप मान रहा था..क्या
करूँ..क्या ना करूँ...सोचते सोचते मैं मुन्ना के साथ लेटी थी.
मुन्ना अबोध को मेरी मनोदशा का ग्यान नही था. वह आराम से सो गया
था..मैं जाग रही थी. की दरवाजे की कुण्डी बजी. कोन हो सकता
है.? घर में हरिया के अलावा कोई नही था. वही होगा. क्यों आया
है अब ? मैं चुप रही तो कुण्डी फिर बजी. तब मैं उठ कर गयी और
दरवाजा खोला. वही था. उसे देख मैं झेंप सी गयी..क्यों आए हो
यहा ?बीबीजी अंदर आ जाउ ?नही तुम जाओ यहाँ से और मेने दरवाजा
बंद कर लिया..मेरी सास तेज हो गयी. हाई राम.यह तो अंदर ही आना
चाह रहा था. क्या करता अंदर आ कर ? ऑफ.क्या फिर
से..चुदाई.?????? मा..मुन्ना है यहा..दुबारा ? ना बाबा ना..तो क्या
हो गया इस में.सब तो करते है..एक बार तो करवा लिया अब और क्या है ?
अगर दुबारा भी करवा लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा ? भगवान ने एक
मोका दिया है तो उसका मज़ा ले.बार बार ऐसे मोके कहा मिलते है.
सात साल से तरस रही हू..मैं पड़ी रही..सोचती रही. मोका मिला
है तो रुकमत उस का फ़ायदा उठा.जवानी यूँ ही तो निकल गयी
है.बाकी भी निकल जाएगी.अच्छा भला आया था बेचारा..भगा
दिया. उसे तो कोई दूसरी मिल जाएगी.उस की तो औरत भी है.तेरा कोन
है.तुझे कॉन मिलेगा ? पाप है..पाप है..मे ही सारी जिंदगी निकल
गयी.. थोड़ी देर हो गयी तो मुझे पछतावा होने लगा कि बेकार मेएक
मज़ा लेने का चास खो दिया. तब मैं उठी और जा कर कुण्डी
खोली.दरवाजे के बाहर निकल कर देखा..हाई राम..हरिया तो वही
दीवार से सटा बैठा था.और बीड़ी पी रहा था.मुझे आया देखकर
वह बीड़ी फेककर उठ खड़ा हुआ. मेरे पास आया.मैं झिझकती सी
हाथ में साड़ी का पल्लू लपेटती हुई बोली...गये नही अब तक.. उसने
मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ मे ले लिया.अपना नरम नरम नाज़ुक
सा हाथ उसके मर्दाना हाथ में जाते ही मुझपर नशा सा छा
गया..मुझे विशवास था कि आप ज़रूर आओगी. कह कर उसने मुझे
अपनी तरफ खीचा तो मैं निर्विरोध उसकी तरफ खीची चली
गयी. उसने मुझे अपनी बाहों में बाँध लिया.उसके चौड़े सीने से लग
कर मैं जवानी का अनोखा सुख पा गयी. मैं उस के सीने में अपना
चेहरा छुपा बोल पड़ी..हरिया मुझे डर लगता है...-डर कैसा
बीबीजी. उसने मेरी पीठ पर बाहों का बंधन सख़्त कर दिया..मैं
कसमसाई..एक मर्दाने बदन में बंधना बड़ा ही सुखद लग रहा
था..कोई देख लेगा ना.. तो दोस्तो आगे की कहानी अगले भाग मे
पढ़ते रहिए आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे.......

यहा घर के घर में कॉन देखने आएगा बीबीजी. उसने अपनी बाहों का

बंधन सख़्त किया..मैने शरमाते हुए उसकी छोड़ी छाती में मुँह

छुपा लिया..मुन्ना तो है ना..-अरे वो तो अभी छोटा है..वो क्या जानता

है अभी..मैं उसकी बाहों के घेरे में कसमसाई..और जो कुछ रह

गया तो.मैं विधवा क्या करूँगी ?क्या ? वह कुछ समझा नही.यही.मैं

झिझकी..कह ना पाई.रुकी.सास ली. फिर कहा..आररे राम.कही मैं पेट

से रह गयी तो... हरिया के द्वारा गर्भवती होने की बात से ही मुझे

झुरझुरी आ गयी.जिसे उसने साफ महसूस किया..मेरे जवान जिस्म को

बाहों मे जकड़ा और पीठ पर हाथ फिराता हुआ बोला..बीबीजी यदि

ऐसा हो जाए कि बच्चा ना हो तो. मैं उस की बाहों की गरमी महसूस

करती हुई बुदबूदाई.क्या ऐसा हो सकता है ?समझो कि ऐसा हो चुका

है..मैने नज़र उठाई..उसे देखा. वह मूँछो में मुस्करा दिया..अभी

पिछली बार छः महीने पहले जब मैं गाव गया था ना तो मेने

आपरेशन करवा लिया था..मैने उस की छाती में नाक रगड़ी..कैसा

आपरेशन ? यही..बच्चे बंद होने का.-हाय मुझे तो बताया ही

नही.अब आप को क्या बताता बीबीजी...पाँच बच्चे तो हो गये.जब भी

गाव जाता हम एक बच्चा हो जाता है...उस के कहने का ढंग ऐसा था

कि.मुझे हँसी आ गयी. मुझे हँसता पा उसने मुझे ऐसी ज़ोर से

भीचा कि मेरे उरोज उसके सीने से दब उठे..और फिर उसनेबड़ी आतूरता से

मेरे पिछवाड़े पर हाथ लगाया तो मैं चिहुंक कर कह

उठी..हरिया..यहा नही.. मेरा इशारा समझ हरिया मेरा हाथ पकड़

खीचता हुआ मुझे अपने कमरे में ले गया. और मैं उसके साथ

बिना ना नुकुर किए चली गयी. हरिया का कमरा...मेरे ही घर का एक

कमरा था. उस में एक खटिया बिछी थी. एक कोने मे मोरी बनी थी.

और दूसरे कोने में एक आलिया था जिसमें भगवान बिराजे थे.

कमरे में पहुँचकर तो मेरे पाव जैसे जम से गये. मैं एक ही जगह

खड़ी रह गयी. तब उसने वही मुझे अपनी बालिश्ट भुजाओ में बाँध

लिया.मैं चुपचाप उस के सीने से लग गयी..आप बहुत खूबसूरत हो

बीबीजी.वह बड़बड़ा उठा.उसके हाथ स्वतंत्रता से मेरी पीठ पर

घूमने लगे. मैं खड़ी कुछ देर तो उसकी सहलावट का आनंद लेती

रही.मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.सात साल बाद किसी मर्द का

स्पर्श मिला था. फिर मैं कुनमूना के बोली..हरिया दरवाजा लगा

दो..-अरे बीबीजी यहा कॉन आएगा...-उहू.तुम तो लगा दो.. वह जा कर

दरवाजा लगा आया. आके मेरे को पकड़ा.मैं

बिचकी..हरिया..लाइट..-बीबीजी रहने दो ना.अंधेरे में क्या मज़ा

आएगा उसने मुझे बाहों में बाँध लिया.मुझे शरम आती है ना.. उसने मेरी बात नही

सुना. बस पीछे हाथ चलाता रहा.
 
मैं थोड़ी देर बाद फिर

कुनमुनाई..लाइट बंद करो ना. तब उसने बेमन से लाइट बंद की.

कमरे मे अंधेरा हो गया. अंधेरे बंद कमरे मे मैने अभी थोड़ी सी

चेन की सास भी नही ली थी कि उसने मुझे पकड़ कर खटिया पर पटक

दिया.और खुद मेरे साथ आ गया..मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था.

अब फिर से चुदवाने की घड़ी आ गयी थी. वह मेरे साथ गुथम गुथा

हो गया.

उस के हाथ मेरी पीठ और कुल्हों पर घूमने लगे. मैं उस से और वो
मुझसे चिपकेने लगा. मेरे स्तन बार बार उस के सीने से दबाए.
उस की भी सास तेज थी और मेरी भी. मुझे शरम भी बहुत आ रही
थी. मेरा उसके साथ यह दूसरा मोका था. आज मैने ज़्यादा एक्टिव पार्ट
नही लिया. बस चुपचाप पड़ी रही जो किया उसी ने किया और क्या किया ?
अरे भाई वही किया जो आप मर्द लोग हम औरतों के साथ करते हो.
पहले साड़ी उतारी फिर पेटीकोट का नाडा ढूँढा..खीचा..दोनो
चीज़े टागो से बाहर...मैं तो कहती ही रह गयी..अरे क्या करते
हो..-अरे क्या करते हो.. उसने तो सब खीच खांच के निकाल दिया. फिर
बारी आई ब्लाओज की.वो खुला..मैने तो उस का हाथ पकड़
लिया..नही...यह नही.. पर वो क्या सुने ?.उल्टे पकड़ा पकड़ी में उसका
हाथ कई बार मेरे मम्मों से टकराया. अभी तक उसने मेरे मम्मों को
नही पकड़ा था. ब्लाओज उतारने के चक्कर मे उसका हाथ बार बार
मेरे मम्मों से छुआ तो बड़ा ही अच्छा लगा. और फिर जब उसने मेरी
बाड़ी खोली तो मेरी दशा बहुत खराब थी. सास बहुत ज़ोर से चल
रही थी. गाल गुलाबी हो रहे थे. दिल धड़ धड़ करके बज रहा
था. शरीर का सारा रक्ता बह कर नीचे गुप्ताँग की तरफ ही बह
रहा था. उसने मेरे सारे कपड़े खोल डाले. मैं रात के अंधेरे में
नौकर की खटिया पर नंगी पड़ी थी..और फिर अंधेरे मे मुझे
सरसराहट से लगा कि वह भी कपड़े उतार रहा है. फिर दो
मर्दाने हाथों ने मेरी टांगे उठा दी.घुटनो से मोड़ दी. चौड़ा दी.
कुछ गरम सा-कड़क सामर्दाना अंग मेरे गुप्ताँग से आ टीका. और ज़ोर
लगा कर अपना रास्ता मेरे अंदर बनाने लगा. दर्द की एक तीखी
लहर सी मेरे अंदर दौड़ गयी. मैने अपने होठों को ज़ोर से भीच कर
अपनी चीख को बाहर ना निकलने दिया. शरीर ऐथ गया..मैने बिस्तर
की चादर को मुट्ठी में जाकड़ लिया. वह घुसाता गया और मैं उसे अपने
अंदर समाती गयी. शीघ्र ही वह मेरे अंदर पूरा लंड घुसा कर
धक्के लगाने लगा. मर्द था. ताकतवर था. पहाड़ी था. गाव का
था..और सबसे बड़ी बात.पिछले छः महीने से अपनी बीबी से नही
मिला था. उसे शहर की पढ़ी लिखी खूबसूरत मालकिन मिल गयी तो
मस्त हो उठा. जो इकसठ बासठ करी तो मेरे लिए तो संभालना
कठिन हो गया. बहुत ज़ोर ज़ोर से पेला कम्बख़्त ने..मेरे पास और कोई
चारा भी ना था. पड़ी रही पिलावाती रही. हरिया का लंड दूसरी
बार मेरी चूत में गया था. बहुत मोटा सा.कड़ा कड़ा..गरम
गरम..रोज मैं कल्पना करती थी कि मेरा मर्द मुझे ऐसे चोदेगा
वैसे चोदेगा. आज मैं सचमुच चुदवा रही थी.
 
वास्तविक..सच्ची कि चुदाई.मर्द के लंड की चुदाई..ना तो उसने
मेरे मम्मों को हाथ लगाया. ना हमारे बीच कोई चूमा चॅटी हुई.

बस एक मोटे लंड ने एक विधवा चूत को चोद डाला..और फिर जब
खुशी के पल ख़तम हुए तो वह अलग हुआ. अपना ढेर सा वीर्य उसने
मेरे अंदर छोड़ा था. पता नही क्या होगा मेरा.सोचती मैं उठ
बैठी.और नंगी ही दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गयी. बाथरूम
तो मैने जा कर अपने कमरे मे किया. बहुत सा वीर्य मेरे जघो और
झटों पर लग गया था.सब मेने पानी से धो कर साफ किया...

(अगले दिन).सुबह जब मैं उठी तो बदन बुरी तरह टूट रहा था. बीते
कल मेने अपने नौकर हरिया के साथ सुहागरात जो मनाई थी. मैं
रोज की तरह स्कूल गयी. खाना खाया..शाम को पड़ोस की मिसेज़ वर्मा
आ गयी तो उनके साथ बैठी. सारा रूटीन चला बस जो नही चला वो
यह था कि मेने सारा दिन हरिया से नज़रें नही मिलाई. रात को
खाने के बाद जब मैं रसोई मे गयी तो वह वहीं था. मेरा हाथ
पकड़ कर बोला.बीबीजी रात को आओगी ना.. मेरे तो गाल शरम से लाल
हो उठे. हाथ छुड़ा कर चली आई. रात मुन्ना के सो जाने के बाद
भी मेरी आँखों मे नींद नही थी. बस हरिया के बारे मे ही सोचती
रही. करीब एक घंटा बीत गया.उसने इंतज़ार किया होगा. मैं नही
गयी तो वही आया. दरवाजे की कुण्डी क्या बजी मेरा दिल बज उठा.
मैने धड़कते दिल को साड़ी से कस कर दरवाजा खोला.वही
था..बीबीजी..मैं अंदर आउ ?.मैं ना मे गरदन हिलाई तो वह मेरा
हाथ पकड़ कल की तरह खीचता हुआ अपने कमरे की ओर ले चला.
मैं विधवा अपने नौकर के लंड का मज़ा लेने के लिए उसके पीछे
पीछे चल दी. उस रात हरिया के कमरे मे मेरी दो बार चुदाई हुई.
पूरी तरह सारे कपड़े खोल कर...मैं तो ना ना ही करती रह
गयी..उसने मेरी एक ना सुनी. वो भी नंगा भी नंगी. अंधेरा कर के.
नौकर की खटिया पर. वही टांगे उठा कर्कल वाले आसन से..एक बार
से तो जैसे उस का पेट ही नही भरा. एक बार निपटने के थोड़ी देर
बाद ही खड़ा करके दुबारा घुसेड दिया. बहुत सारा वीर्य मेरी चूत
मे छोड़ा. पर ना मेरे मम्मों को हाथ लगाया ना कोई चुम्मा चॅटी
किया. बस एक पहाड़ी लंड शहर की प्यासी चूत को चोदता रहा. जब
चुद ली तो कल की तरह ही उठकर चुपचाप अपने कमरे मे आ गयी
उस रात जब मैं सोई तो मैने मंथन किया..सुख कहा है. तकिया दबा
के काल्पनिक चुदाई मे या हरिया के पहाड़ी मोटे लंड से वास्तविक
चुदाई मे. विधवा हू तो क्या मुझे लंड से चुदवाने का अधिकार
नही है ? जिंदगी भर यूँ ही तड़पति रहू ? नही..मैं हरिया का
हाथ पकड़ लेती हू. नौकर है तो क्या हुआ. क्या उसके मन नही है ?
क्या वह मर्द नही है? उसमे तो ऐसा सब कुछ है जो औरत को चाहिए
क्या फ़र्क पड़ता है. फिर ? नौकर है तो क्या हुआ ? मर्द तो है. स्वाभाव
कितना अच्छा है. पिछले दो साल से मेरे साथ है कभी शिकायत
का मौका नही दिया. अरे यह तो और भी अच्छा है. घर के घर
मे.किसी को मालूम भी ना पड़ेगा. समाज ने शादी की संस्था क्यों
बनाई है? ताकि लंड चूत का मिलन घर के घर मे होता रहे. जब
लंड का मन हो वो चूत को चोद ले और जब चूत का मन आए वो लंड से
चुदवा ले. हर वक्त दोनो एक दूसरे के लिए अवेलेबल रहें. अब मान लो
मैं कोई मर्द बाहर का करती हू तो क्या होगा वो आएगा तो पूरे
मोहल्ले को खबर लग जाएगी कि सीमा के घर कोई आया है. रात भर
तो वो हरगिज़ नही रह सकेगा. उस की खुद की भी फेमिली होगी. हमेशा
एक डर सा बना रहेगा.
 
इस से तो यह कितना अच्छा है. घर के घर मे
पूरा मर्द चाहो तो रात भर मज़ा लो..किसी को क्या पता पड़ता कि तुम
अपने घर मे क्या कर रहे हो. फिर इस की फेमिली भी गाँव मे है. यह
तो गाँव वैसे भी साल छः महीने मे जाता है. उन लोगों को भी क्या
फ़र्क पड़ता है कि हरिया यहाँ किसके साथ मज़े लूट रहा है..तो
मैं क्या करूँ ?.ठीक है- हो गया जो हो गया..भगवान की मरजी
समझ कबूल करती हू..लेकिन हरिया भी क्या इसे कबूल करेगा?.उसे
क्या चाहिए ?.मुझे मालूम है मर्द को क्या चाहिए होता है जो उसे
चाहिए वो मैं उसे दूँगी तो वह क्यों मना करेगा भला?.वह भी तो
बिना औरत के यहाँ रहता है.उस का भी तो मन करता होगा. मन तो
करता ही है तभी तो कल भी चोदा और आज फिर आ गया..यदि मेरे
जैसी सुंदर औरत इस से राज़ी राज़ी से चुदायेगि तो क्यों नही
चोदेगा भला ?.देखते है आगे क्या होता है मेरे भाग्य मे मर्द का
सुख है या नही..

अगला दिन मेरी जिंदगी का खूबसूरत दिन था. मैं फेसला ले चुकी
थी. मैं हरिया से संबंध कायम रखुगी. जवानी के मज़े लूँगी.
सुबह से मेने अपने रोज के काम मे मन लगाया..नहाते मे मेने अपनी
चूत को साबुन लगा लगा कर खूब साफ किया. बाद मे अपनी झांतदार
चूत को खूब पावडर लगाया. चूत पर हाथ लगाते हुए मुझे हरिया
का ही ध्यान आया. अब तक यह चूत हरिया के लंड से दो दिनों मे चार
बार चुद चुकी थी. अब यह चूत हरिया की चूत है..दोपहर मैं स्कूल
गयी. शाम को घर का दूसरा काम किया. खाने के बाद मैं मुन्ना को
लेकर अपने कमरे मे आ गयी. मुझे इंतज़ार था कि मुन्ना सो जाए तो
कुछ हो. मुन्ना सो गया तो सोचा मैं खुद हरिया के पास चली
जाउ.फिर मन मे आया देखु तो सही आज हरिया की क्या रिएक्शन रहती
है.वह इंटरेसटेड होगा तो अपने आप आएगा. मेरे काम सुख का आगे का
भविष्य उसके आने, ना आने पर ही निर्भर रहेगा. मैं इंतज़ार
करती रही... मेरा इंतज़ार व्यर्थ नही गया. भगवान मुझ पर
प्रसन्न था. थोड़ी देर बाद कुंडी खड़की..मेरा मन नाच उठा. मेरी
खुशी का ठिकाना नही था.मैं तो उठ कर सीधी देवी मा के
सिंहासन के पास गयी और उनको हाथ जोड़ कर नमस्कार किया कि हे मा
मेरा सब काम अच्छे से करना.मुझे किसी चीज़ की कमी नही है.घर
है,नौकरी है,बच्चा है...बस मर्द नही हैमर्द का लंड नही
है.सो अब आपने संयोग बनाया है..इसे ठीक से निभाने देना. इतनी
देर मे तो कुण्डी दुबारा खड़क गयी. मेने जा कर दरवाजा
खोला.हरिया सामने था. उसे सामने पा कर मैं ना जाने क्यों शरमा
उठी..सो गयी थी बीबी जी..उसने बड़े प्यार से पूछा..मुझसे तो मुँह
से बोल ही नही फूटा. बस ना मे गर्दन हिला दी. तब...हरिया..मेरा
नौकर..मुझे हाथ पकड़ कल की तरह ही अपने कमरे मे ले गया.
दोस्तो हरिया और सीमा की चुदाई की दास्तान अगले पार्ट मे पढ़े
आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.........
 
गतान्क से आगे.......

उसके साथ जाते जाते मेरा दिल कल से भी ज़्यादा ज़ोर ज़ोर से धड़क

रहा था. इस घड़ी का तो मैं शाम से इंतज़ार कर रही थी. वहाँ.उस

के कमरे मे..जब वह मुझे पकड़ खीचाने लगा तो मैं छिटक कर बोल

उठी.दरवाजा..वह चुपचाप जा कर दरवाजा लगा आया..तो मैने

साड़ी का पल्लू उंगली पर लपेटते हुए कहा.हर.र.रिया..ला..ई..ट. उसने

चुपचाप जा कर लाईट बुझा कमरे मे अंधकार कर दिया.और पास आ

कर मुझे पकड़ा तो मैं खुद उसके सीने से लग गयी. वह वही खड़े

खड़े मुझे सहलाने लगा..वा मेरी पीठ पर हाथ फेरा..पीठ से

कमर पर आया.और फिर नीचे चूतरो तक पहुँच गया. आपसे सच

कहती हू उसके द्वारा अपने चूतरो सहलाए जाने से मेरी साँस

धोकनि की तरह चलने लगी थी. वह खड़े खड़े बहुत देर तक मेरे

पिछवाड़े पर अपना हाथ फेरता रहा. उसके इस तरह हाथ फेरने

से ही मैं तो गीली हो उठी. और बुरी तरह उस के सीने मे घुसने

लगी..मेरा गला सुख गया था.खड़े रहना मुश्किल हो रहा था. ऐसा

लग रहा था मैं बेहोश हो कर ही गिर पड़ूँगी. उसी हालत मे वह मेरे

कपड़े उतारने लगा तो मेरी हालत और खराब होगयि. उस ने खड़े

खड़े ही अंधेरे बंद कमरे मे मेरे सारे कपड़े खोल

डाले..साड़ी.1.पेटीकोट...2.ब्लाउस..3.और अंत मे ब्रा.4.आपकी

जानकारी के लिए बता दू कि वैसे स्कूल जाते समय तो मैं पेंटी

पहनती हू पर घर मे रहती हू तो उतार देती हू.

और रात मे भी मैं तो साड़ी ब्लाओज मे ही सोती हू.मेक्सी नही पहनती
हू..तो.मैं एक दम नंगी हो कर बहुत शरमाई.वो तो अच्छा था कि
अंधेरा था. फिर पल भर वो अलग हुआ और अपने कपड़े खोल दिए. अब
जो मुझे खड़े खड़े अपनी बाहों मे लिया तो वो पल मेरे लिए बहुत
आनंद दायक था. बहुत अनोखा. एक दम अलग..नंगा वो नंगी मैं.दोनो
एक दूसरे से खड़े खड़े चिपक गये. वही मुझे बाहों मे भीचा मैं
तो बस चुपचाप उसके सीने से लग गयी.मेरे तो शरम के मारे
हाथ ही ना उठे कि उसे अपनी बाहों मे भर लूँ. बहुत अच्छा लग
रहा था. उसने इसी हालत मे जब मेरे पिछवाड़े पर हाथ फिराया तो
बस मुझे लगा मैं खड़े खड़े ही मूत दूँगी. चूत मे अजीब तरह की
सुरसुरी हो रही थी. तभी उसने मुझे अंधेरे मे खटिया पर लिटा
दिया..और मेरे उपर चढ़ कर मेरी टाँगों को उठा दिया. अगले ही पल
उसका मोटा लंड मेरी चूत से आ कर अड़ा..और दबाव के साथ अंदर होने
लगा. मुझे जाँघो के बीच तेज दर्द हुआ. मेरी चूत मोटे लंड के
द्वारा चौड़ी की जा रही थी. मैं बिस्तर मे पड़े पड़े तड़प उठी. पूरी
प्रवेश क्रिया के दौरान मेने एक बार कराह के
कहा.हा..री..य्ाआआः...धीरे..पर यह नही कहा कि हरिया मत करो.
 
आज मेरी मनहस्थिति दूसरी थी. आज तो मैं खुद चुदवाना चाहती
थी. मैने खुद अपनी टाँगों को फेला कर उसका लंड अंदर करवाया.
वह अंदर घुसा चुका तो बोला..बस बीबी जी...हो गया..लेकिन घुसा कर
रुका नही.बस धक्के लगाने शुरू कर दिए. अब लंड अंदर जाएबाहर
निकले.मैं पड़ी पड़ी ठुसक़ती जाउ. उँहुक..उँहुक..उँहुक.अंदर-
बाहर.अंडर्बाहर.उँहुक..उँहुक..उँहुक.हरिया ने थोड़ी ही देर मे वो
मज़ा ला दिया जो मेरे नसीब मे था ही नही.जिसके लिए मैं हमेशा
तरसती रहती थी. वो मज़ा मुझे तकिया लगा कर कभी नही आता
था. उँहुक..उहुंक.उँहुक. खटिया को हिलता हुआ मैं साफ साफ महसूस
कर रही थी. उँहुक..उहुंक.उँहुक. जब उसका मोटा सा लंड अंदर जाता
था तो मेरे मुँह से अपने आप ठुसकने की आवाज़ निकलती थी. इस
तरह कमरे मे रात के अंधेरे मे दो आवाज़ें बड़ी देर तक गूँजती
रही.खटिया की चर्र्र्ररर चर्र्ररर और मेरी उँहुक उम. और.फिर...अच्छे काम का
अंत तो होता ही है. मेरी चुदाई का भी अंत हुआ. वह झाड़ा..एक
दम..अचानक से.फॉरसाफूल..वीर्य का फव्वारा मेरी चूत मे छूट
पड़ा. उस समय के लगने वाले झटके बड़े ही अदभुद थे.पहले मेरा
इस ओर ध्यान ही नही गया था. लंड जो कि लोहे की राड की तरह सख़्त
था-मेरे अंदर ऐसी ज़ोर ज़ोर से तुनका कि बस पूछो मत. उसका
फूलनझटका लेना और फ़िरवीर्या छोड़ना महसूस कर मैं खुशी से
पागल हो उठी. और उसी पागलपन मे जानते है क्या हुआ ?.मेरा खुद
का स्खलन हो गया. गौरतलब है कि पिछली चुदायियो मे मेरा
अपना डिस्चार्ज नही हुआ था.यह मेरी आज की मानसिक अवस्था का
परिणाम था कि मैं आज डिस्चार्ज हुई. एक दम बदन हिला..कंपकपि
आई..और.मेरी चूत पानी छोड़ बैठी. मैं तो बहाल...उसी अवस्था मे
मुझे ना जाने क्या सूझा कि मैने हरिया को पकड़ कर अपने उपर गिरा
लिया.उसके गले मे बाहे डाल दी.बुरी तरह लिपट गयी. बेखुदी मे मेरे
होठ कह उठे..हा..रि..या.मेरे..रा..जा. वह झाड़ चुका था. उसी
अवस्था मे अपना लंड मेरे अंदर डाले हैरत से बोल पड़ा.राजा ??

आपने मुझे राजा कहा बीबीजी... मैं उस से और ज़ोर से लिपट गयी और
ज़ोर ज़ोर से साँसे लेते हुए बोली..अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो
हरियाआआआअ..इस भावना के आते ही मेरा और स्खलन हो उठा. चूत
मे से पानी छूटा तो मैं अपने उपर सवार नौकर से और कस कर लिपट
गयी. बस यही जवानी का सुख था. उसने भी मुझे अंधेरे मे ज़ोर से
बाहों मे जाकड़ लिया. दोनो के मन मे बस यही भावना थी कि हमे कोई
एक दूसरे से जुदा ना करे. जल्दी तो कोई थी नही. दोनो घर के
घर मे थे. दोनो इसी अवस्था मे बहुत देर तक पड़े रहे. लंड राम
मेरी चूत मे ही डाले रहे तब तक जब तक कि ढीले हो कर खुद ही बाहर
ना निकल आए. तब जब बहुत देर हो गयी और उसके मुझ पर से
उतरने के कोई आसार ना दिखे तब मैं नीचे से कुनमूनाई.उसे उठने
का इशारा दिया. तब जा के वह मुझ पर से उठा.

मैं भी उठ बैठी.
 
खटिया से उतर कर जाने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया..जाने दो
ना...अब क्या है.मैं धीरे से बोली.अभी मत जाओ ना बीबीजी..अभी मन
नही भरा. वा सरलता से बोला..सच कहे तो मन तो हमारा भी नही
भरा था. पर मुझे बाथरूम आ रही थी. उसका हाथ छुड़ा धीरे
से बोली.छोड़ो ना..मुझे पिशाब आ रही है.तो यही मोरी पर कर लो
ना..वही पानी भी रखा है..मैं समझ गयी कि अभी ये मुझे छोडने
को तैयार नही है. मैं अंधेरे मे टटोल टटोल कर कमरे मे ही एक
कोने पर बनी मोरी पे गयी. बैठते ही मेरा तो ऐसी ज़ोर से पेशाब
छूटा कि मैं खुद हैरान रह गयी. एक दम तेज सुर्राटी की आवाज़
निकली तो मैं खुद पर ही झेंप गयी.हरिया भी कमरे मे था.सुन रहा
होगा.वो क्या सोचेगा.पर क्या करतीमजबूरी थी.मेरे तो पेशाब ऐसे
ही जोरदार आवाज़ के साथ निकलता है. पेशाब करने के बाद मेने
बाल्टी से पानी ले कर अपनी चूत को धोया. और अंधेरे मे ही
लड़खड़ाती हुई वापस खटिया के पास आई तो हरिया ने पकड़ कर
फॉरन अपनी बगल मे लेटा लिया.. मुझे नंगे बदन उससे लिपट कर मज़ा
ही आ गया. उस के चौड़े सीने मे घुस कर मैं सारे जहा का सुख पा
गयी.उपर से वो पीठ और कमर पर हाथ फेरने लगा तो सोने मे
सुहागा हो गया. मेने खूब चिपक चिपक कर उसके स्पर्श का आनंद
लिया. जब मैं हरिया के साथ थोड़ी कंफर्टेबल हो गयी तो मेने ही
बात छेड़ी..हरिया..मुझे डर लगता है..-कैसा डर बीबीजी.- मैं
कुछ नही बोली,बस उस के चौड़े सीने मे नाक रगड़ दी..वह मेरे कूल्हे
पर हाथ ले गया.तपथपाया..डरने की क्या बात है बीबी जी,
औरत मरद का तो जोड़ा होता है.या मैं नौकर हू,इस लिए.. मैं एक दम
ज़ोर से उस से लिपट गयी..ऐसा ना कहो,हरियाआ..उसने मेरे कूल्हों पर
हाथ चलाया..फिर.क्या आपकी जिंदगी मे और कोई मर्द है ?.मैं
अंधेरे मे और ज़ोर से उस से लिपट गयी.. नही.धात...तुम भी तो हो
मेरे साथ दो साल से...होता तो क्या तुमको नही दिखता ? मैने उल्टा
सवाल किया.मुझे तो नही दिखा..मैं उस की बाहों मे कसमसाई..नही
है...मुझ विधवा को कौन पसंद करेगा रे..- आपको क्या पता
बीबीजी आप कितनी खूबसूरत हो.-मुझे तो बहुत डर लगता
है..हरियाआअ.मैं उस से चिपक गयी.क्यों डरती हो..बीबीजी.सब कोई
तो करते है यह काम.
 
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