hotaks444
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मैं अंदर ही अंदर घुट्टी जा रही थी.....बस एक ही डर सता रहा था की वो फिर आएगा और मेरे बच्चे को मुझ से छीन के दूर ले जायेगा| मैं क्या करूँ....क्या करूँ....की इस दरिंदे से अपने बच्चों को बचा सकूँ.....क्या उन्हें अपने सीने से लगा के रखूँ....कहीं बाहर ना जाने दूँ..... जहाँ भी जाऊँ उन्हें अपने साथ रखूँ......... पर अगर मैंने ऐसा किया तो मेरे बच्चों का बचपन बर्बाद हो जायेगा? क्यों?....आखिर क्यों? ये मेरे साथ हो रहा है? मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा बस जो भी हुआ उसे सहती रही....क्या मुझे खुश होने का हक़ नहीं? इन सवालों ने मुझे कुछ भी बोलने लायक नहीं छोड़ा था....ऐसा लगता था की अगर मैं कुछ बोल पड़ी तो जो थोड़ी हिम्मत अंदर बची है वो टूट जाएगी और मैं फिर रो पडूँगी....टूट जाऊँगी..... और फिर मेरे परिवार का क्या होगा? मुझे इस तरह बिलखता हुआ देख मेरे पति का भी सब्र टूट जायेगा...माँ-पिताजी के दिल को भी ठेस पहुँचेगी| भला उनकी इस सब में क्या गलती है? गलती तो मेरी है......ना मैंने इनसे प्यार का इजहार किया होता ....ना ये मेरे लिए कभी गाँव आते ....न हम इन दो महीनों में इतना करीब आते.....ना मैं दुबारा दिल्ली आती....न इनसे मिलती..... न इनके दिल में अपने लिए उस दबे हुए प्यार को जगाती और ना ही हमारी शादी होती| तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता....मेरी एक गलती की वजह से बिचारे बच्चे भी मुसीबत में पड़ गए! पर मैं अब ऐसा क्या करूँ की सब ठीक हो जाये? अकेले बैठी बस यही सोच रही थी .....पर जब अपने पति की तरफ देखती थी तो महसूस कर सकती थी की वो मुझे और बच्चों को लेके कितना चिंतित हैं? पर मुझे दुःख है की मैं उनकी चिंता की कारन बानी...सिर्फ और सिर्फ मैं! हालाँकि जबसे ये दुखद घटना घाटी उसके बाद से ये ही लग रहा था की वो अंदर ही अंडा खुद को दोषी मान रहे हैं ...पर मैं छह कर भी उन्हें कुछ नहीं कह पा रही थी...उन्हें .....कुछ कहने के डर से ही मैं अंदर घुटती जा रही थी| मैं जानती थी की वो बिना कहे मेरी हर एक बात को महसूस कर रहे हैं और कई बार उन्होंने कोशिश की कि मैं कुछ कहूँ...बोलूं....पर मेरा अंतर मन जानता था कि अगर मैं कुछ बोली तो.....
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