desiaks
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“यह हिन्दी फिल्मी का कॉमन डायलाग है श्रीमान, जो सुनने और देखने में काफी अच्छा लगता है लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। असल में तो कानून को छोड़कर सभी कानून से ऊपर होते हैं।"
“यह लफ्फाजी बंद करो इंस्पेक्टर और मुझे उसका नाम बताओ इंस्पेक्टर। कानून उसका इंसाफ नहीं कर सकता तो यह मैं करूंगा। अपने दुश्मनों का सिर कुचलने की ताकत मुझमें है। तुम केवल उसका नाम अपनी जुबान पर लाओ, जिससे तुम इतना खौफ खाए हुए हो।"
“आप सुनकर घबरा जाएंगे जजमान।"
“बको मत और जो मैं कह रहा हूं वह करो।"
अजय भी असमंजस भरे भाव से मदारी को देखने लगा था। मदारी की बातों ने उसे भी चकित कर दिया था।
“वैसे तो मैं सरकार के अलावा और किसी का हुक्म नहीं बजाया करता जजमान, जिससे कि मैं तनख्वाह पाता हूं, मगर अब जबकि आपने अपना दिल कड़ा कर ही लिया है, बताए देता हूं उसका नाम...।" वह ठिठका। उसने एक उड़ती सी नजर अजय पर डाली तो अजय का दिल जोर-जोर से धड़क उठा। फिर वह वापस जानकी लाल से मखातिब होकर कछ झिझकता सा बोला “जानकी लाल। सेम यू।” उसने अपनी तर्जनी अंगुली खजूर की तरह उसकी ओर तान दी।
"व्हाट?” जानकी लाल उछल पड़ा। फिर एकाएक उसके चेहरे पर तनाव आ गया। वह खीझकर बोला “यह क्या बदतमीजी है इंस्पेक्टर।”
अजय भी हकबकाकर कभी इंस्पेक्टर तो कभी जानकी लाल को देखने लगा था।
“यह बदतमीजी नहीं, सच्चाई है श्रीमान।” मदारी बोला “वह इंसान आपके अलावा इस सृष्टि में दूसरा नहीं हो सकता। वह केवल आप ही हैं जो खुद को खत्म कर सकते हैं। आपके दुश्मनों में उतना हौसला नहीं है जो आपका बाल भी बांका कर सके। फिर भी अगर यह हौसला हुआ है तो वह केवल आप ही के इशारे पर हो सकता है।"
“त..तुम्हारा मतलब है इंस्पेक्टर कि...।” जानकी लाल हकबकाकर बोला “अपने ऊपर बार-बार यह जानलेवा हमला खुद मैं करवा रहा हूं। वह सब मेरे इशारे पर हो रहा है।
"आपने एकदम दुरुस्त समझा श्रीमान।"
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है इंस्पेक्टर।” जानकी लाल इस बार भड़क ही जो उठा था “पागल हो गए हो तुम। तुम्हें पुलिस इंस्पेक्टर नहीं किसी सरकस का जोकर होना चाहिए था, जिसका काम लोगों का मनोरंजन करना होता है।"
"लगता है आप मान गए श्रीमान या फिर लगता है आप घबरा गए हैं इसीलिए मैंने पहले ही आपको ताकीद किया था कि उसका नाम मत पूछिए। मगर आप हैं कि माने ही नहीं। अब देख लीजिए आप डर गए न?"
“अरे बेवकूफ लेकिन मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं खुद अपने ऊपर जानलेवा हमला क्यों करवाऊंगा? मैं खुद अपनी जान लेने की बार-बार कोशिश क्यों करूंगा?"
“जाहिर है कि इंतकाल फरमा जाने के लिए तो नहीं करवाने वाले। खुदकुशी के तमन्नाई भी आप बिल्कुल नहीं मालूम पड़ते हैं।"
"तो फिर?"
“यह सब असल में एक दिखावा है नाटक है हाईटेंशन ड्रामा है। ताकि लोगों को यह यकीन हो जाए कि कोई सचमुच आपकी जान लेना चाहता है। इस शहर में कोई ऐसा है जो आपका राम नाम सत्य कर देने की प्रबल ख्वाहिश रखता है।"
“मगर लोगों को यह यकीन दिलाकर मुझे क्या हासिल होगा?"
"कुछ तो हासिल होगा ही जजमान । वरना आप यह बार-बार यह इतना बड़ा ड्रामा क्यों करते? बिना हासिल के भी भला कोई कुछ करता है इस फानी दुनिया में?"
"लेकिन हासिल क्या होगा मुझे?”
“आपकी माया अपरम्पार है श्रीमान। यह आपको ही बेहतर मालूम होगा कि इससे आपको क्या हासिल होगा या फिर हासिल हो भी चुका है। लेकिन इसमें कोई रहस्य तो यकीनन है कोई भारी रहस्य।”
“यह लफ्फाजी बंद करो इंस्पेक्टर और मुझे उसका नाम बताओ इंस्पेक्टर। कानून उसका इंसाफ नहीं कर सकता तो यह मैं करूंगा। अपने दुश्मनों का सिर कुचलने की ताकत मुझमें है। तुम केवल उसका नाम अपनी जुबान पर लाओ, जिससे तुम इतना खौफ खाए हुए हो।"
“आप सुनकर घबरा जाएंगे जजमान।"
“बको मत और जो मैं कह रहा हूं वह करो।"
अजय भी असमंजस भरे भाव से मदारी को देखने लगा था। मदारी की बातों ने उसे भी चकित कर दिया था।
“वैसे तो मैं सरकार के अलावा और किसी का हुक्म नहीं बजाया करता जजमान, जिससे कि मैं तनख्वाह पाता हूं, मगर अब जबकि आपने अपना दिल कड़ा कर ही लिया है, बताए देता हूं उसका नाम...।" वह ठिठका। उसने एक उड़ती सी नजर अजय पर डाली तो अजय का दिल जोर-जोर से धड़क उठा। फिर वह वापस जानकी लाल से मखातिब होकर कछ झिझकता सा बोला “जानकी लाल। सेम यू।” उसने अपनी तर्जनी अंगुली खजूर की तरह उसकी ओर तान दी।
"व्हाट?” जानकी लाल उछल पड़ा। फिर एकाएक उसके चेहरे पर तनाव आ गया। वह खीझकर बोला “यह क्या बदतमीजी है इंस्पेक्टर।”
अजय भी हकबकाकर कभी इंस्पेक्टर तो कभी जानकी लाल को देखने लगा था।
“यह बदतमीजी नहीं, सच्चाई है श्रीमान।” मदारी बोला “वह इंसान आपके अलावा इस सृष्टि में दूसरा नहीं हो सकता। वह केवल आप ही हैं जो खुद को खत्म कर सकते हैं। आपके दुश्मनों में उतना हौसला नहीं है जो आपका बाल भी बांका कर सके। फिर भी अगर यह हौसला हुआ है तो वह केवल आप ही के इशारे पर हो सकता है।"
“त..तुम्हारा मतलब है इंस्पेक्टर कि...।” जानकी लाल हकबकाकर बोला “अपने ऊपर बार-बार यह जानलेवा हमला खुद मैं करवा रहा हूं। वह सब मेरे इशारे पर हो रहा है।
"आपने एकदम दुरुस्त समझा श्रीमान।"
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है इंस्पेक्टर।” जानकी लाल इस बार भड़क ही जो उठा था “पागल हो गए हो तुम। तुम्हें पुलिस इंस्पेक्टर नहीं किसी सरकस का जोकर होना चाहिए था, जिसका काम लोगों का मनोरंजन करना होता है।"
"लगता है आप मान गए श्रीमान या फिर लगता है आप घबरा गए हैं इसीलिए मैंने पहले ही आपको ताकीद किया था कि उसका नाम मत पूछिए। मगर आप हैं कि माने ही नहीं। अब देख लीजिए आप डर गए न?"
“अरे बेवकूफ लेकिन मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं खुद अपने ऊपर जानलेवा हमला क्यों करवाऊंगा? मैं खुद अपनी जान लेने की बार-बार कोशिश क्यों करूंगा?"
“जाहिर है कि इंतकाल फरमा जाने के लिए तो नहीं करवाने वाले। खुदकुशी के तमन्नाई भी आप बिल्कुल नहीं मालूम पड़ते हैं।"
"तो फिर?"
“यह सब असल में एक दिखावा है नाटक है हाईटेंशन ड्रामा है। ताकि लोगों को यह यकीन हो जाए कि कोई सचमुच आपकी जान लेना चाहता है। इस शहर में कोई ऐसा है जो आपका राम नाम सत्य कर देने की प्रबल ख्वाहिश रखता है।"
“मगर लोगों को यह यकीन दिलाकर मुझे क्या हासिल होगा?"
"कुछ तो हासिल होगा ही जजमान । वरना आप यह बार-बार यह इतना बड़ा ड्रामा क्यों करते? बिना हासिल के भी भला कोई कुछ करता है इस फानी दुनिया में?"
"लेकिन हासिल क्या होगा मुझे?”
“आपकी माया अपरम्पार है श्रीमान। यह आपको ही बेहतर मालूम होगा कि इससे आपको क्या हासिल होगा या फिर हासिल हो भी चुका है। लेकिन इसमें कोई रहस्य तो यकीनन है कोई भारी रहस्य।”